Class – X, Sparsh, Chapter -11, Sitaram Seksariya – Dayari ka Ek Panna,  सीताराम सेकसरिया – डायरी का एक पन्ना

(1892  – 1982)

1892 में राजस्थान के नवलगढ़ में जन्मे सीताराम सेकसरिया का अधिकांश जीवन कलकत्ता (कोलकाता) में बीता। व्यापार-व्यवसाय से जुड़े सेकसरिया अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक और नारी शिक्षण संस्थाओं के प्रेरक, संस्थापक, संचालक रहे। महात्मा गांधी के आह्वान पर स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की। गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस के करीबी रहे। सत्याग्रह आंदोलन के दौरान जेल यात्रा भी की। कुछ साल तक आज़ाद हिंद फ़ौज के मंत्री भी रहे। भारत सरकार ने उन्हें 1962 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया।

सीताराम सेकसरिया को विद्यालयी शिक्षा पाने का अवसर नहीं मिला। स्वाध्याय से ही पढ़ना-लिखना सीखा। स्मृतिकण, मन की बात, बीता युग, नयी याद और दो भागों में एक कार्यकर्ता की डायरी उनकी उल्लेखनीय कृतियाँ हैं।

अंग्रेज़ों से देश को मुक्ति दिलाने के लिए महात्मा गांधी ने सत्याग्रह आंदोलन छेड़ा था। इस आंदोलन ने जनता में आज़ादी की अलख जगाई। देश भर से ऐसे लाखों लोग सामने आए जो इस महासंग्राम में अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर थे। 26 जनवरी 1930 को गुलाम भारत में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। यह सिलसिला आगे भी जारी रहा। आज़ादी के ढाई साल बाद, 1950 में यही दिन हमारे अपने गणतंत्र के लागू होने का दिन भी बना।

प्रस्तुत पाठ के लेखक सीताराम सेकसरिया आज़ादी की कामना करने वाले उन्हीं अनंत लोगों में से एक थे। वह दिन-प्रतिदिन जो भी देखते, सुनते और महसूस करते थे, उसे अपनी निजी डायरी में दर्ज़ कर लेते थे। यह क्रम कई वर्षों तक चला। इस पाठ में उनकी डायरी का 26 जनवरी 1931 का लेखाजोखा है।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस और स्वयं लेखक सहित कलकत्ता (कोलकाता) के लोगों ने देश का दूसरा स्वतंत्रता दिवस किस जोश-खरोश से मनाया, अंग्रेज़ प्रशासकों ने इसे उनका अपराध मानते हुए उन पर और विशेषकर महिला कार्यकर्ताओं पर कैसे-कैसे ज़ुल्म ढाए, यही सब इस पाठ में वर्णित है। यह पाठ हमारे क्रांतिकारियों की कुर्बानियों की याद तो दिलाता ही है, साथ ही यह भी उजागर करता है कि एक संगठित समाज कृतसंकल्प हो तो ऐसा कुछ भी नहीं जो वह न कर सके।

– स्वतंत्रता आंदोलन में कलकत्तावासियों का योगदान।

– 26 जनवरी 1931 की कहानी।

– कलकत्ता के विभिन्न स्थानों की जानकारी। 

– आंदोलन का आँखों-देखा हाल। 

– अन्य जानकारियाँ।

1. अविनाश बाबू – बंगाल प्रांतीय विद्यार्थी संघ के मंत्री।

2. हरिश्चंद्र सिंह – कांग्रेस कमेटी के युद्ध मंत्री

3. सुभाष बाबू – आंदोलन के मुख्य

4. पूर्णोदास – सुभाष बाबू के जुलूस का भार इन पर था।

5. पुरुषोत्तम राय – एक कार्यकर्ता

6. ज्योतिर्मय गांगुली – एक कार्यकर्ता

7. क्षितीश चटर्जी – एक कार्यकर्ता

8. वृजलाल गोयनका – एक कार्यकर्ता जो लेखन सीताराम सेकसरिया के साथ दमदम जेल में थे।

9. डॉक्टर दासगुप्ता – ज़ख़्मियों का इलाज करने के साथ-साथ उनकी फ़ोटो उतरवा रहे थे।

10. गुजराती सेविका संघ की महिलाएँ जिन्होंने इस आंदोलन में भाग लिया।

11. मारवाड़ी बालिका विद्यालय की लड़कियों ने भी इस आंदोलन में भाग लिया।

12. मदालसा बजाज – महिला कार्यकर्ता

13. जानकी देवी – महिला कार्यकर्ता

14. विमल प्रतिभा – महिला कार्यकर्ता

26 जनवरी 1931 26 जनवरी : आज का दिन तो अमर दिन है। आज के ही दिन सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। और इस वर्ष भी उसकी पुनरावृत्ति थी जिसके लिए काफ़ी तैयारियाँ पहले से की गई थीं। गत वर्ष अपना हिस्सा बहुत साधारण था। इस वर्ष जितना अपने दे सकते थे, दिया था। केवल प्रचार में दो हज़ार रुपया खर्च किया गया था। सारे काम का भार अपने समझते थे अपने ऊपर है, और इसी तरह जो कार्यकर्ता थे उनके घर जा-जाकर समझाया था।

बड़े बाज़ार के प्रायः मकानों पर राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और कई मकान तो ऐसे सजाए गए थे कि ऐसा मालूम होता था कि मानो स्वतंत्रता मिल गई हो। कलकत्ते के प्रत्येक भाग में ही झंडे लगाए गए थे। जिस रास्ते से मनुष्य जाते थे उसी रास्ते में उत्साह और नवीनता मालूम होती थी। लोगों का कहना था कि ऐसी सजावट पहले नहीं हुई। पुलिस भी अपनी पूरी ताकत से शहर में गश्त देकर प्रदर्शन कर रही थी। मोटर लारियों में गोरखे तथा सारजेंट प्रत्येक मोड़ पर तैनात थे। कितनी ही लारियाँ शहर में घुमाई जा रही थीं। घुड़सवारों का प्रबंध था। कहीं भी ट्रैफ़िक पुलिस नहीं थी, सारी पुलिस को इसी काम में लगाया गया था। बड़े-बड़े पार्कों तथा मैदानों को पुलिस ने सवेरे से ही घेर लिया था।

मोनुमेंट के नीचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी उस जगह को तो भोर में छह बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में घेर लिया था पर तब भी कई जगह तो भोर में ही झंडा फहराया गया। श्रद्धानंद पार्क में बंगाल प्रांतीय विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू ने झंडा गाड़ा तो पुलिस ने उनको पकड़ लिया तथा और लोगों को मारा या हटा दिया। तारा सुंदरी पार्क में बड़ा-बाज़ार कांग्रेस कमेटी के युद्ध मंत्री हरिश्चंद्र सिंह झंडा फहराने गए पर वे भीतर न जा सके। वहाँ पर काफ़ी मारपीट हुई और दो-चार आदमियों के सिर फट गए। गुजराती सेविका संघ की ओर से जुलूस निकला जिसमें बहुत-सी लड़कियाँ थीं उनको गिरफ़्तार  कर लिया।

11 बजे मारवाड़ी बालिका विद्यालय की लड़कियों ने अपने विद्यालय में झंडोत्सव मनाया। जानकीदेवी, मदालसा (मदालसा बजाज-नारायण) आदि भी गई थीं। लड़कियों को, उत्सव का क्या मतलब है, समझाया गया। एक बार मोटर में बैठकर सब तरफ़ घूमकर देखा तो बहुत अच्छा मालूम हो रहा था। जगह-जगह फ़ोटो उतर रहे थे। अपने भी फ़ोटो का काफ़ी प्रबंध किया था। दो-तीन बजे कई आदमियों को पकड़ लिया गया। जिसमें मुख्य पूर्णोदास और पुरुषोत्तम राय

थे। सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था पर यह प्रबंध कर चुका था। स्त्री समाज अपनी तैयारी में लगा था। जगह-जगह से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने की तथा ठीक स्थान पर पहुँचने की कोशिश कर रही थीं। मोनुमेंट के पास जैसा प्रबंध भोर में था वैसा करीब एक बजे नहीं रहा। इससे लोगों को आशा होने लगी कि शायद पुलिस अपना रंग न दिखलावे पर वह कब रुकने वाली थी। तीन बजे से ही मैदान में हज़ारों आदमियों की भीड़ होने लगी और लोग टोलियाँ बना-बनाकर मैदान में घूमने लगे। आज जो बात थी वह निराली थी।

जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी। पुलिस कमिश्नर का नोटिस निकल चुका था कि अमुक-अमुक धारा के अनुसार कोई सभा नहीं हो सकती। जो लोग काम करने वाले थे उन सबको इंसपेक्टरों के द्वारा नोटिस और सूचना दे दी गई थी कि आप यदि सभा में भाग लेंगे तो दोषी समझे जाएँगे। इधर कौंसिल की तरफ़ से नोटिस निकल गया था कि मोनुमेंट के नीचे ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। सर्वसाधारण की उपस्थिति होनी चाहिए। खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी। ठीक चार बजकर दस मिनट पर सुभाष बाबू जुलूस लेकर आए। उनको चौरंगी पर ही रोका गया, पर भीड़ की अधिकता के कारण पुलिस जुलूस को रोक नहीं सकी। मैदान के मोड़ पर पहुँचते ही पुलिस ने लाठियाँ चलानी शुरू कर दीं, बहुत आदमी घायल हुए, सुभाष बाबू पर भी लाठियाँ पड़ीं। सुभाष बाबू बहुत ज़ोरों से वंदे मातरम् बोल रहे थे। ज्योतिर्मय गांगुली ने सुभाष बाबू से कहा, आप इधर आ जाइए। पर सुभाष बाबू ने कहा, आगे बढ़ना है।

यह सब तो अपने सुनी हुई लिख रहे हैं पर सुभाष बाबू का और अपना विशेष फ़ासला नहीं था। सुभाष बाबू बड़े ज़ोर से वंदे मातरम् बोलते थे, यह अपनी आँख से देखा। पुलिस भयानक रूप से लाठियाँ चला रही थी। क्षितीश चटर्जी का फटा हुआ सिर देखकर तथा उसका बहता हुआ खून देखकर आँख मिंच जाती थी। इधर यह हालत हो रही थी कि उधर स्त्रियाँ मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़ झंडा फहरा रही थीं और घोषणा पढ़ रही थीं। स्त्रियाँ बहुत बड़ी संख्या में पहुँच गई थीं। प्रायः सबके पास झंडा था। जो वालेंटियर गए थे वे अपने स्थान से लाठियाँ पड़ने पर भी हटते नहीं थे।

सुभाष बाबू को पकड़ लिया गया और गाड़ी में बैठाकर लालबाज़ार लॉकअप में भेज दिया गया। कुछ देर बाद ही स्त्रियाँ जुलूस बनाकर वहाँ से चलीं। साथ में बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गई। बीच में पुलिस कुछ ठंडी पड़ी थी, उसने फिर डंडे चलाने शुरू कर दिए। अबकी बार भीड़ ज़्यादा होने के कारण बहुत आदमी घायल हुए। धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस टूट गया और करीब 50-60 स्त्रियाँ वहीं मोड़ पर बैठ गईं। पुलिस ने उनको पकड़कर लालबाज़ार भेज दिया। स्त्रियों का एक भाग आगे बढ़ा जिसका नेतृत्व विमल प्रतिभा कर रही थीं। उनको बहू बाज़ार के मोड़ पर रोका गया और वे वहीं मोड़ पर बैठ गईं। आस-पास बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गई, जिस पर पुलिस बीच-बीच में लाठी चलाती थी।

इस प्रकार करीब पौन घंटे के बाद पुलिस की लारी आई और उनको लालबाज़ार ले जाया गया। और भी कई आदमियों को पकड़ा गया। वृजलाल गोयनका जो कई दिन से अपने साथ काम कर रहा था और दमदम जेल में भी अपने साथ था, पकड़ा गया। पहले तो वह झंडा लेकर वंदे मातरम् बोलता हुआ मोनुमेंट की ओर इतने ज़ोर से दौड़ा कि अपने आप ही गिर पड़ा और उसे एक अंग्रेज़ी घुड़सवार ने लाठी मारी फिर पकड़कर कुछ दूर ले जाने के बाद छोड़ दिया। इस पर वह स्त्रियों के जुलूस में शामिल हो गया और वहाँ पर भी उसको छोड़ दिया तब वह दो सौ आदमियों का जुलूस बनाकर लालबाज़ार गया और वहाँ पर गिरफ़्तार  हो गया। मदालसा भी पकड़ी गई थी। उससे मालूम हुआ कि उसको थाने में भी मारा था। सब मिलाकर 105 स्त्रियाँ पकड़ी गई थीं। बाद में रात को नौ बजे सबको छोड़ दिया गया। कलकत्ता में आज तक इतनी स्त्रियाँ एक साथ गिरफ़्तार  नहीं की गई थीं। करीब आठ बजे खादी भंडार आए तो कांग्रेस ऑफ़िस से फ़ोन आया कि यहाँ बहुत आदमी चोट खाकर आए हैं और कई की हालत संगीन है उनके लिए गाड़ी चाहिए। जानकीदेवी के साथ वहाँ गए, बहुत लोगों को चोट लगी हुई थी। डॉक्टर दासगुप्ता उनकी देख-रेख तथा फ़ोटो उतरवा रहे थे। उस समय तक 67 आदमी वहाँ आ चुके थे। बाद में तो 103 तक आ पहुँचे।

अस्पताल गए, लोगों को देखने से मालूम हुआ कि 160 आदमी तो अस्पतालों में पहुँचे और जो लोग घरों में चले गए, वे अलग हैं। इस प्रकार दो सौ घायल ज़रूर हुए हैं। पकड़े गए आदमियों की संख्या का पता नहीं चला, पर लालबाज़ार के लॉकअप में स्त्रियों की संख्या 105 थी। आज तो जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ है। बंगाल के नाम या कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है वह आज बहुत अंश में धुल गया और लोग सोचने लग गए कि यहाँ भी बहुत सा काम हो सकता है।

1.सांस्कृतिक – Cultural

2.संस्थापक – Establisher

3.आह्वान – बुलावा

4.स्वाध्याय – खुद से पढ़ना

5.कार्यकर्ता – Activist

6.अलख – ज्योति

7.तत्पर – तैयार

8.सिलसिला – क्रम

9.अनंत – जिसका अंत न हो

10.अपराध – Crime

11.ज़ुल्म – अत्याचार

12.संगठित  – Organised

13.पुनरावृत्ति – फिर से आना

14.अपने / अपना – हम / हमारे / मेरा (लेखक के लेखन शैली का उदाहरण)

15.गश्त – पुलिस कर्मचारी का पहरे के लिए घूमना, Patrolling

16.सारजेंट – सेना में एक पद

17.मोनुमेंट – स्मारक

18.कौंसिल – परिषद्

19.चौरंगी – कलकत्ता (कोलकाता) शहर में एक स्थान का नाम

20.वालेंटियर – स्वयंसेवक

21.संगीन – गंभीर

22.मदालसा – जानकीदेवी एवं जमना लाल बजाज की पुत्री का नाम

23.कलकत्ता (कोलकाता) – अंग्रेज़ों ने भारत में पहली राजधानी कलकत्ता में स्थापित की थी। बाद में नई दिल्ली राजधानी बनी

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

1 – कलकत्ता वासियों के लिए 26 जनवरी 1931 का दिन क्यों महत्त्वपूर्ण था?

उत्तर – देश का स्वतंत्रता दिवस एक वर्ष पहले इसी दिन मनाया गया था और इस वर्ष भी उसकी पुनरावृत्ति कलकत्ता में थी इसलिए यह महत्त्वपूर्ण दिन था।   

2 – सुभाष बाबू के जुलूस का भार किस पर था?

उत्तर – सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था ।

3 – विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर क्या प्रतिक्रिया हुई?

उत्तर – बंगाल प्रांतीय विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू ने जैसे ही झंडा गाड़ा, पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया तथा लोगों को लठियाँ मार कर वहाँ से हटा दिया।    

4 – लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर किस बात का संकेत देना चाहते थे?

उत्तर – लोग अपने मकानों और सामाजिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर संकेत देना चाहते थे कि उनमें जोश और उत्साह है तथा वे अपने को आज़ाद समझकर आज़ादी मना रहे हैं।  

5 – पुलिस ने बड़े-बड़े पार्कों तथा मैदानों को क्यों घेर लिया था?

उत्तर – आज़ादी मनाने के लिए पूरे कलकत्ता शहर में जुलूस तथा जनसभाओं व झंडारोहण का आयोजन किया गया था इसलिए पुलिस ने पार्कों और मैदानों को घेर लिया था ताकि जनता वहाँ जमा न हो सके।   

1 – 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए क्या-क्या तैयारियाँ की गईं?

उत्तर – 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए कलकत्ता शहर में जगह-जगह-झंडे लगाए गए थे। शहर के कई स्थानों  पर जुलूस निकाले गए तथा झंडा फहराया गया। टोलियाँ बनाकर लोगों की भीड़ उस जगह पर  जुटने लगी जहाँ सुभाष बाबू के जुलूस को पहुँचना था।    

2 – आज जो बात थी वह निराली थी’ – किस बात से पता चल रहा था कि आज का दिन अपने आप में निराला है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – आज का दिन निराला था क्योंकि स्वाधीनता दिवस मनाने की यह प्रथम  आवृत्ति थी। पुलिस ने सभा करने को गैर-कानूनी कहा था किन्तु सुभाष बाबू के आह्वान पर पूरे कलकत्ता में अनेक संगठनों के माध्यम से जुलूस व सभाओं की जोशीली तैयारी थी। पूरे शहर में राष्ट्रीय झंडा फहराया जा रहा था। ये सारी गतिविधियाँ प्रशासन को एक खुला चैलेंज था।  

3 – पुलिस कमिश्नर के नोटिस और कौंसिल के नोटिस में क्या अंतर था?

उत्तर – पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाला था कि कोई भी जनसभा करना या जुलूस निकालना कानून के खिलाफ़ होगा और सभाओं में भाग लेने वाले लोगों को दोषी माना जाएगा। कौंसिल ने नोटिस निकाला था कि मोनुमेंट के नीचे चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी।

4 – धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस क्यों टूट गया?

उत्तर – जब सुभाष बाबू को गिरफ़्तार कर लिया गया तो कुछ स्त्रियाँ जुलूस बनाकर चलीं। कुछ और लोग भी जमा हो गए।  पुलिस उनपर डंडे बरसाने लगी जिससे बहुत-से लोग घायल हो गए और जुलूस टूट गया। 

5 – डॉ॰ दासगुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख-रेख तो कर ही रहे थे, उनके फ़ोटो भी उतरवा रहे थे। उन लोगों के फ़ोटो खींचने की क्या वजह हो सकती थी? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – जुलूस में घायल लोगों की फ़ोटो खींचकर अंग्रेज़ों के जुल्मों का पर्दाफाश किया जा सकता था। दूसरी बात ये फ़ोटो इस बात की साक्षी थीं कि बंगाल में भी स्वतंत्रता की लड़ाई हेतु बहुत काम हो रहा है।

1 – सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी?

उत्तर -सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की विशेष भूमिका थी। कलकत्ता शहर की अनेक महिला समितियों ने इस स्वतंत्रता समारोह में भाग लिया। भारी पुलिस व्यवस्था की परवाह किए बिना शहर के अलग-अलग भागों से स्त्री दलों ने जुलूस में भाग लिया। मोनुमेंट पर स्त्रियों ने निडर होकर झंडा फहराया। स्त्रियों को भी कई स्थानों पर भारी मात्रा में गिरफ़्तार किया गया, उनपर लठियाँ चलाई गईं । यहाँ तक कि सुभाष बाबू के गिरफ़्तारी के बाद भी स्त्रियाँ लालबाज़ार तक आगे बढ़ती रही।

2 – जुलूस के लालबाज़ार आने पर लोगों की क्या दशा हुई?

उत्तर – जुलूस के लालबाज़ार आने पर भीड़ बेकाबू हो गई थी तथा पुलिस लोगों पर डंडे बरसा रही थी। लोगों को पकड़-पकड़ कर लॉकअप में भेजा जा रहा था। इतनी बड़ी संख्या में कभी भी स्त्रियों की गिरफ़्तारी नहीं हुई थी। लोगों का जोश थमने का नाम नहीं ले रहा था। इधर पुलिस गिरफ़्तार करती थी तो उधर से नया दल नारे लगाता हुआ बढ़ा आता था। लोग घायल हो गए थे, कितनों के खून बह रहे थे परंतु जोश-उत्साह में कोई कमी नहीं दिख रही थी।    

3 – ‘जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।’ यहाँ पर कौन से और किसके द्वारा लागू किए गए कानून को भंग करने की बात कही गई है? क्या कानून भंग करना उचित था? पाठ के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर -यह देश की स्वतंत्रता संग्राम की गाथा का वह भाग है जहाँ हर व्यक्ति आज़ादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर था। अंग्रेज़ों ने अपना कानून बनाकर आंदोलन, जुलूस तथा सभाओं को गैर-कानूनी घोषित किया था किंतु अत्याचारी प्रशासन की इन घोषणाओं का जनमानस पर कोई असर नहीं हुआ। देशवासियों ने सत्ता की ज़बरदस्ती व कानून व्यवस्था को मनाने से इंकार कर दिया था।

4 – बहुत से लोग घायल हुए, बहुतों को लॉकअप में रखा गया, बहुत-सी स्त्रियाँ जेल गईं, फिर भी इस दिन को अपूर्व बताया गया है। आपके विचार में यह सब अपूर्व क्यों है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – सुभाष बाबू के नेतृत्व में कलकत्तावासियों ने स्वतंत्रता दिवस मनाने की ज़ोर-शोर से तैयारी की हुई थी। मोनुमेंट के पास झंडा फहराने और आज़ादी की शपथ लेने के लिए शहर के समस्त भागों से जुलूस निकल पड़े। असंख्य स्त्रियों ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। पुलिस लोगों की उमड़ती भीड़ को काबू नहीं कर पा रही थी। आंदोलनकारियों पर लठियाँ बरसाई गईं । लोगों ने अपना खून बहाया, गिरफ्तारियाँ दीं लेकिन उनके जोश में कमी नहीं आई। लोगों का जोश कलकत्ता के इतिहास में इतने प्रचंड रूप में पहले कभी नहीं देखा गया था।  

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

1 – आज तो जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ है। बंगाल के नाम या कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है वह आज बहुत अंश में धुल गया।

उत्तर – इस कथन का आशय यह है कि पूरे भारत में यह माना जाता था कि स्वतंत्रता संग्राम में कलकत्ता हमेशा से उदासीन रहा है परंतु आज़ादी की पहली वर्षगाँठ मनाने के लिए कलकत्तावासियों में भरपूर उत्साह था। दूसरी तरफ़ प्रशासन ने इन जुलूस और जन-सभाओं का दमन करने के लिए इन गतिविधियों को गैर-कानूनी घोषित कर दिया था। इतनी अटकलें लगने के बावजूद हज़ारों की संख्या में स्त्री-पुरुषों ने इसमें भाग लिया था। लोगों का जोश कलकत्ता के इतिहास में इतने प्रचंड रूप में पहले कभी नहीं देखा गया था। इस विशाल आंदोलन के बाद भारतवासियों की सोच कलकत्ता के प्रति बदल गई।   

2 – खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी।

उत्तर – इस कथन का आशय यह है कि पुलिस ने नोटिस निकाला था कि सभा तथा जुलूस नहीं निकाले जा सकते। लेकिन सुभाष बाबू की अध्यक्षता में कौंसिल ने नोटिस निकाला था कि मोनुंनेट के नीचे झंडा फहराया जाएगा और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। सर्वसाधारण को इसमें भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए खूब प्रचार किया गया था। एक तरह से यह आंदोलन सरकार और कलकत्तावासियों के बीच खुली लड़ाई थी।          

1 – रचना की दृष्टि से वाक्य तीन प्रकार के होते हैं –                                    

सरल वाक्य – सरल वाक्य में कर्ता, कर्म, पूरक, क्रिया और क्रिया विशेषण घटकों या इनमें से कुछ घटकों का योग होता है। स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त होने वाला उपवाक्य ही सरल वाक्य है।

उदाहरण – लोग टोलियाँ बनाकर मैदान में घूमने लगे।

संयुक्त वाक्य – जिस वाक्य में दो या दो से अधिक स्वतंत्र या मुख्य उपवाक्य समानाधिकरण योजक से जुड़े हों, वह संयुक्त वाक्य कहलाता है। योजक शब्द – और, परंतु, इसलिए आदि।

उदाहरण – मोनुमेंट के नीचे झंडा फहराया जाएगा और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी।

मिश्र वाक्य – वह वाक्य जिसमें एक प्रधान उपवाक्य हो और एक या अधिक आश्रित उपवाक्य हों, मिश्र वाक्य कहलाता है।

उदाहरण – जब अविनाश बाबू ने झंडा गाड़ा तब पुलिस ने उनको पकड़ लिया।

निम्नलिखित वाक्यों को सरल वाक्यों में बदलिए –

(क) दो सौ आदमियों का जुलूस लालबाज़ार गया और वहाँ पर गिरफ़्तार हो गया।

उत्तर – दो सौ आदमियों का जुलूस लालबाज़ार जाकर गिरफ़्तार हो गया।

(ख) मैदान में हज़ारों आदमियों की भीड़ होने लगी और लोग टोलियाँ बना-बनाकर मैदान में घूमने लगे।

उत्तर – मैदान में हज़ारों आदमियों की भीड़ होने पर लोग टोलियाँ बना-बनाकर घूमने लगे।

(ग) सुभाष बाबू को पकड़ लिया गया और गाड़ी में बैठाकर लालबाज़ार लॉकअप में भेज दिया गया।

उत्तर – सुभाष बाबू को पकड़कर गाड़ी में बैठाकर लालबाज़ार लॉकअप में भेज दिया गया।

ii ‘बड़े भाई साहब’ पाठ में से भी दो-दो सरल, संयुक्त और मिश्र वाक्य छाँटकर लिखिए।

उत्तर – सरल वाक्य

वे स्वभाव से अध्ययनशील थे।

इतिहास में रावण का हाल तो पढ़ा ही होगा।

संयुक्त वाक्य

उनकी नज़र मेरी ओर उठी और प्राण निकल गए।

मुद्रा कांतिहीन हो गई थी, मगर बेचारे फेल हो गए।

मिश्र वाक्य

मुझे कुछ ऐसी धारणा हुई कि मैं पास हो जाऊँगा।

उन्होंने भी उसी उम्र में पढ़ना शुरू किया था, जब मैंने शुरू किया। 

2  –  निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं को ध्यान से पढ़िए और समझिए कि जाना, रहना और चुकना क्रियाओं का प्रयोग किस प्रकार किया गया है।

(क) 1  –  कई मकान सजाए गए थे।

2 – कलकत्ते के प्रत्येक भाग में झंडे लगाए गए थे।

(ख) 1 – बड़े बाज़ार के प्रायः मकानों पर राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था।

2 – कितनी ही लारियाँ शहर में घुमाई जा रही थीं।

3 – पुलिस भी अपनी पूरी ताकत से शहर में गश्त देकर प्रदर्शन कर रही थी।

(ग) 1 – सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था, वह प्रबंध कर चुका था।

2 – पुलिस कमिश्नर का नोटिस निकल चुका था।

3 – नीचे दिए गए शब्दों की संरचना पर ध्यान दीजिए –

विद्या + अर्थी  –  विद्यार्थी

‘विद्या’ शब्द का अंतिम स्वर ‘आ’ और दूसरे शब्द ‘अर्थी’ की प्रथम स्वर ध्वनि ‘अ’ जब मिलते हैं तो वे मिलकर दीर्घ स्वर ‘आ’ में बदल जाते हैं। यह स्वर संधि है जो संधि का ही एक प्रकार है।

संधि शब्द का अर्थ है – जोड़ना। जब दो शब्द पास-पास आते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि बाद में आने वाले शब्द की पहली ध्वनि से मिलकर उसे प्रभावित करती है। ध्वनि परिवर्तन की इस प्रक्रिया को संधि कहते हैं। संधि तीन प्रकार की होती है – स्वर संधि, व्यंजन संधि, विसर्ग संधि। जब संधि युक्त पदों को अलग-अलग किया जाता है तो उसे संधि विच्छेद कहते हैं

जैसे – विद्यालय – विद्या + आलय

नीचे दिए गए शब्दों की संधि कीजिए –

1  –  श्रद्धा + आनंद =  श्रद्धाआनंद

2  –  प्रति + एक =   प्रत्येक

3  –  पुरुष + उत्तम =   पुरुषोत्तम

4  –  झंडा + उत्सव =  झंडोत्सव

5  –  पुनः + आवृत्ति =   पुनरावृत्ति

6  –  ज्योतिः + मय =   ज्योतिर्मय

योग्यता-विस्तार

1 – भौतिक रूप से दबे हुए होने पर भी अंग्रेज़ों के समय में ही हमारा मन आज़ाद हो चुका था। अतः दिसंबर सन् 1929 में लाहौर में कांग्रेस का एक बड़ा अधिवेशन हुआ, इसके सभापति जवाहरलाल नेहरू जी थे। इस अधिवेशन में यह प्रस्ताव पास किया गया कि अब हम ‘पूर्ण स्वराज्य’ से कुछ भी कम स्वीकार नहीं करेंगे। 26 जनवरी 1930 को देशवासियों ने ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ के लिए हर प्रकार के बलिदान की प्रतिज्ञा की। उसके बाद आज़ादी प्राप्त होने तक प्रतिवर्ष 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। आज़ादी मिलने के बाद 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

2 – डायरी – यह गद्य की एक विधा है। इसमें दैनिक जीवन में होने वाली घटनाओं, अनुभवों को वर्णित किया जाता है। आप भी अपनी दैनिक जीवन से संबंधित घटनाओं को डायरी में लिखने का अभ्यास करें।

3 – जमना लाल बजाज महात्मा गांधी के पाँचवें पुत्र के रूप में जाने जाते हैं, क्यों? अध्यापक से जानकारी प्राप्त करें।

4 – ढाई लाख का जानकी देवी पुरस्कार जमना लाल बजाज फाउंडेशन द्वारा पूरे भारत में सराहनीय कार्य करने वाली महिलाओं को दिया जाता है। यहाँ ऐसी कुछ महिलाओं के नाम दिए जा रहे हैं –

श्रीमती अनुताई लिमये 1993 महाराष्ट्र सरस्वती गोरा 1996 आंध्र प्रदेश;

मीना अग्रवाल 1998 असम; सिस्टर मैथिली 1999 केरल; कुंतला कुमारी आचार्य 2001 उड़ीसा।

इनमें से किसी एक के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर – छात्र स्वयं करें।

परियोजना कार्य

1  –  स्वतंत्रता आंदोलन में निम्नलिखित महिलाओं ने जो योगदान दिया, उसके बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करके लिखिए –

(क) सरोजिनी नायडू

(ख) अरुणा आसफ अली

(ग) कस्तूरबा गांधी

उत्तर – छात्र स्वयं करें।

2 – इस पाठ के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम में कलकत्ता (कोलकाता) के योगदान का चित्र स्पष्ट होता है। आज़ादी के आंदोलन में आपके क्षेत्र का भी किसी न किसी प्रकार का योगदान रहा होगा। पुस्तकालय, अपने परिचितों या फिर किसी दूसरे स्रोत से इस संबंध में जानकारी हासिल कर लिखिए।

उत्तर – छात्र स्वयं करें।

3 – ‘केवल प्रचार में दो हज़ार रुपया खर्च किया गया था।’ तत्कालीन समय को मद्देनज़र रखते हुए अनुमान लगाइए कि प्रचार-प्रसार के लिए किन माध्यमों का उपयोग किया गया होगा?

उत्तर – छात्र स्वयं करें।

4 – आपको अपने विद्यालय में लगने वाले पल्स पोलियो केंद्र की सूचना पूरे मोहल्ले को देनी है। आप इस बात का प्रचार बिना पैसे के कैसे कर पाएँगे? उदाहरण के साथ लिखिए।

उत्तर – छात्र स्वयं करें।

ठंडा पड़ना – शांत होना

पाठ ‘डायरी का एक पन्ना’ के कुछ स्मरणीय बिंदु –

1. पाठ ‘ डायरी का एक पन्ना’ के लेखक सीताराम सेकसरिया हैं।

2. 26 जनवरी 1930 के ही दिन सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था और 26 जनवरी 1931 के दिन कलकत्ता में उसकी पुनरावृत्ति के दिन जो-जो घटनाएँ घटीं उसी का  वर्णन ही ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ  में दर्ज़ है।

3. इस अभियान के प्रचार में दो हज़ार रुपया खर्च किया गया था। 

4. पुलिस कमिश्नर को इस सभा के बारे में पता चला तो उसने इस सभा को गैर-कानूनी करार दिया और यह भी कहा कि सभा में भाग लेने वाले को दोषी माना जाएगा।

5. कौंसिल की तरफ़ से नोटिस निकल गया था कि मोनुमेंट के नीचे ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी।

6. सुभाष बाबू, स्त्री समाज की जानकीदेवी, मदालसा सभी को  अपने-अपने दल के साथ मोनुमेंट के नीचे पहुँचकर ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराने और  स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़नी थी। 

7. स्त्रियों के एक दल का नेतृत्व विमल प्रतिभा कर रही थीं।

8. पुलिस के लाठीचार्ज से क्षितीश चटर्जी का सिर फट गया था।

9.  सुभाष बाबू, अन्य व्यक्ति, मदालसा तथा 105 स्त्रियाँ पकड़ी गई थीं जिन्हें लालबाज़ार लॉकअप में भेज दिया गया।

10. बंगाल के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है वह इस आंदोलन के बाद  बहुत अंश में धुल गया।

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