हे विद्यार्थी,
तुम हो दिव्य शक्ति के स्वामी,
बनो अग्रणी, नहीं अनुगामी,
अपने ही अनुभव के बल पर,
नव सृजन-आधार बनाओ,
अपने सूर्य स्वयं बन जाओ।
हे विद्यार्थी,
निर्माता हो तुम निज पथ के,
स्वयं विधाता हो विधि-सुधि के,
हैं अनंत तुममें क्षमताएँ,
अंतर में ये विश्वास जगाओ,
अपने सूर्य स्वयं बन जाओ।
हे विद्यार्थी,
चलो न मिटते पद-चिह्नों पर,
रुको न बाधाओं विघ्नों पर,
नित्य नए प्रयास रश्मि से,
अपनी प्रतिभा स्वयं जगाओ,
अपने सूर्य स्वयं बन जाओ।
हे विद्यार्थी,
पंचतत्त्व की काया हो तुम,
ओम की श्रेष्ठ माया हो तुम,
भान करो ये ध्रुव सत्य है,
ध्रुव सम तुम स्वयं बन जाओ,
अपने सूर्य आप बन जाओ।
अविनाश रंजन गुप्ता