हे ज्योतिर्मय आओ,
अँधेरा गहरा तन-मन में,
अंतर में दीप जलाओ,
हे ज्योतिर्मय आओ
युगों-युगों से बुझी हुई है,
मन की ज्योत हमारी,
सूर्य-चंद्र विद्युत तारे
सब तेरे रहे अनुचारी
मेरे सूने जीवन में तुम
अपनी ज्योत जलाओ।
हे ज्योतिर्मय आओ,
नए प्राण आए मेरे मन में
प्रेम-स्नेह भरे इस सदन में
भजूँ मैं तुमको हर नमन में
लोकहित में बीते ये जीवन
ऐसे भाव जगाओ
हे ज्योतिर्मय आओ,
अविनाश रंजन गुप्ता