निदा फ़ाज़ली – लेखक परिचय
(1938-2016)
12 अक्तूबर 1938 को दिल्ली में जन्मे निदा फ़ाज़ली का बचपन ग्वालियर में बीता। निदा फ़ाज़ली उर्दू की साठोत्तरी पीढ़ी के महत्त्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। आम बोलचाल की भाषा में और सरलता से किसी के भी दिलोदिमाग में घर कर सके, ऐसी कविता करने में इन्हें महारत हासिल है। वही निदा फ़ाज़ली अपनी गद्य रचनाओं में शेर-ओ-शायरी पिरोकर बहुत कुछ को थोड़े में कह देने के मामले में अपने किस्म के अकेले ही गद्यकार हैं। निदा फ़ाज़ली की लफ़्ज़ों का पुल नामक कविता की पहली पुस्तक आई। शायरी की किताब खोया हुआ-सा कुछ के लिए 1999 के साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित निदा फ़ाज़ली की आत्मकथा का पहला भाग दीवारों के बीच और दूसरा दीवारों के पार शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है। इन दिनों फ़िल्म उघोग से संबद्ध हैं। यहाँ तमाशा मेरे आगे किताब में संकलित एक अंश प्रस्तुत है।
पाठ प्रवेश
कुदरत ने यह धरती उन तमाम जीवधारियों के लिए अता फरमाई थी जिन्हें खुद उसी ने जन्म दिया था। लेकिन हुआ यह कि आदमी नाम के कुदरत के सबसे अज़ीम करिश्मे ने धीरे-धीरे पूरी धरती को ही अपनी जागीर बना लिया और अन्य तमाम जीवधारियों को दरबदर कर दिया। नतीजा यह हुआ कि अन्य जीवधारियों की या तो नस्लें खत्म होती गईं या उन्हें अपना ठौर-ठिकाना छोड़कर कहीं और जाना पड़ा या फिर आज भी वे एक आशियाने की तलाश में मारे-मारे फिर रहे हैं।
इतना भर हुआ रहा होता तब भी गनीमत होती, लेकिन आदमी नाम के इस जीव की सब कुछ समेट लेने की भूख यहीं पूरी नहीं हुई। अब वह अन्य प्राणियों को ही नहीं खुद अपनी जात को भी बेदखल करने से ज़रा भी परहेज़ नहीं करता। आलम यह है कि उसे न तो किसी के सुख-दुख की चिंता है, न किसी को सहारा या सहयोग देने की मंशा ही। यकीन न आता हो तो इस पाठ को पढ़ जाइए और साथ ही याद कीजिएगा अपने आसपास के लोगों को। बहुत संभव है इसे पढ़ते हुए ऐसे बहुत लोग याद आएँ जो कभी न कभी किसी न किसी के प्रति वैसा ही बरताव करते रहे हों।
अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले
बाइबिल के सोलोमेन जिन्हें कुरआन में सुलेमान कहा गया है, ईसा से 1025 वर्ष पूर्व एक बादशाह थे। कहा गया है, वह केवल मानव जाति के ही राजा नहीं थे, सारे छोटे-बड़े पशु-पक्षी के भी हाकिम थे। वह इन सबकी भाषा भी जानते थे। एक दफ़ा सुलेमान अपने लश्कर के साथ एक रास्ते से गुज़र रहे थे। रास्ते में कुछ चींटियों ने घोड़ों की टापों की आवाज़ सुनी तो डर कर एक-दूसरे से कहा, ‘आप जल्दी से अपने-अपने बिलों में चलो, फ़ौज आ रही है।’ सुलेमान उनकी बातें सुनकर थोड़ी दूर पर रुक गए और चींटियों से बोले, ‘घबराओ नहीं, सुलेमान को खुदा ने सबका रखवाला बनाया है। मैं किसी के लिए मुसीबत नहीं हूँ, सबके लिए मुहब्बत हूँ।’ चींटियों ने उनके लिए ईश्वर से दुआ की और सुलेमान अपनी मंज़िल की ओर बढ़ गए।
ऐसी एक घटना का ज़िक्र सिंधी भाषा के महाकवि शेख अयाज़ ने अपनी आत्मकथा में किया है। उन्होंने लिखा है – ‘एक दिन उनके पिता कुएँ से नहाकर लौटे। माँ ने भोजन परोसा। उन्होंने जैसे ही रोटी का कौर तोड़ा। उनकी नज़र अपनी बाजू पर पड़ी। वहाँ एक काला च्योंटा रेंग रहा था। वह भोजन छोड़कर उठ खड़े हुए।’ माँ ने पूछा, ‘क्या बात है? भोजन अच्छा नहीं लगा?’ शेख अयाज़ के पिता बोले, ‘नहीं, यह बात नहीं है। मैंने एक घर वाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुएँ पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ।’
बाइबिल और दूसरे पावन ग्रंथों में नूह नाम के एक पैगंबर का ज़िक्र मिलता है। उनका असली नाम लशकर था, लेकिन अरब ने उनको नूह के लकब से याद किया है। वह इसलिए कि आप सारी उम्र रोते रहे। इसका कारण एक ज़ख्मी कुत्ता था। नूह के सामने से एक बार एक घायल कुत्ता गुज़रा। नूह ने उसे दुत्कारते हुए कहा, ‘दूर हो जा गंदे कुत्ते!’ इस्लाम में कुत्तों को गंदा समझा जाता है। कुत्ते ने उनकी दुत्कार सुनकर जवाब दिया… ‘न मैं अपनी मर्ज़ी से कुत्ता हूँ, न तुम अपनी पसंद से इनसान हो। बनाने वाला सबका तो वही एक है।’
मट्टी से मट्टी मिले, खो के सभी निशान।
किसमें कितना कौन है, कैसे हो पहचान॥
नूह ने जब उसकी बात सुनी और दुखी हो मुद्दत तक रोते रहे। ‘महाभारत’ में युधिष्ठिर का जो अंत तक साथ निभाता नज़र आता है, वह भी प्रतीकात्मक रूप में एक कुत्ता ही था। सब साथ छोड़ते गए तो केवल वही उनके एकांत को शांत कर रहा था।
दुनिया कैसे वजूद में आई? पहले क्या थी? किस बिंदु से इसकी यात्रा शुरू हुई? इन प्रश्नों के उत्तर विज्ञान अपनी तरह से देता है, धार्मिक ग्रंथ अपनी-अपनी तरह से। संसार की रचना भले ही कैसे हुई हो लेकिन धरती किसी एक की नहीं है। पंछी, मानव, पशु, नदी, पर्वत, समंदर आदि की इसमें बराबर की हिस्सेदारी है। यह और बात है कि इस हिस्सेदारी में मानव जाति ने अपनी बुद्धि से बड़ी-बड़ी दीवारें खड़ी कर दी हैं। पहले पूरा संसार एक परिवार के समान था अब टुकड़ों में बँटकर एक-दूसरे से दूर हो चुका है। पहले बड़े-बड़े दालानों-आँगनों में सब मिल-जुलकर रहते थे अब छोटे-छोटे डिब्बे जैसे घरों में जीवन सिमटने लगा है। बढ़ती हुई आबादियों ने समंदर को पीछे सरकाना शुरू कर दिया है, पेड़ों को रास्तों से हटाना शुरू कर दिया है, फैलते हुए प्रदूषण ने पंछियों को बस्तियों से भगाना शुरू कर दिया है। बारूदों की विनाशलीलाओं ने वातावरण को सताना शुरू कर दिया। अब गरमी में ज़्यादा गरमी, बेवक्त की बरसातें, ज़लज़ले, सैलाब, तूफ़ान और नित नए रोग, मानव और प्रकृति के इसी असंतुलन के परिणाम हैं। नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। नेचर के गुस्से का एक नमूना कुछ साल पहले बंबई (मुंबई) में देखने को मिला था और यह नमूना इतना डरावना था कि बंबई निवासी डरकर अपने-अपने पूजा-स्थल में अपने खुदाओं से प्रार्थना करने लगे थे।
कई सालों से बड़े-बडे़ बिल्डर समंदर को पीछे धकेल कर उसकी ज़मीन को हथिया रहे थे। बेचारा समंदर लगातार सिमटता जा रहा था। पहले उसने अपनी फैली हुई टाँगें समेटीं, थोड़ा सिमटकर बठै गया। फिर जगह कम पड़ी तो उकड़ूँ बैठ गया। फिर खड़ा हो गया…जब खड़े रहने की जगह कम पड़ी तो उसे गुस्सा आ गया। जो जितना बड़ा होता है उसे उतना ही कम गुस्सा आता है। परंतु आता है तो रोकना मुश्किल हो जाता है, और यही हुआ, उसने एक रात अपनी लहरों पर दौड़ते हुए तीन जहाज़ों को उठाकर बच्चों की गेंद की तरह तीन दिशाओं में फेंक दिया। एक वर्ली के समंदर के किनारे पर आकर गिरा, दूसरा बांद्रा में कार्टर रोड के सामने औंधे मुँह और तीसरा गेट-वे-ऑफ़ इंडिया पर टूट-फूटकर सैलानियों का नज़ारा बना बावजूद कोशिश, वे फिर से चलने-फिरने के काबिल नहीं हो सके।
मेरी माँ कहती थी, सूरज ढले आँगन के पेड़ों से पत्ते मत तोड़ो, पेड़ रोएँगे। दीया-बत्ती के वक्त फूलों को मत तोड़ो, फूल बद्दुआ देते हैं।… दरिया पर जाओ तो उसे सलाम किया करो, वह खुश होता है। कबूतरों को मत सताया करो, वे हज़रत मुहम्मद को अज़ीज़ हैं। उन्होंने उन्हें अपनी मज़ार के नीले गुंबद पर घोंसले बनाने की इज़ाज़त दे रखी है। मुर्गे को परेशान नहीं किया करो, वह मुल्ला जी से पहले मोहल्ले में अज़ान देकर सबको सवेरे जगाता है –
सब की पूजा एक-सी, अलग-अलग है रीत।
मस्जिद जाए मौलवी, कोयल गाए गीत॥
ग्वालियर में हमारा एक मकान था, उस मकान के दालान में दो रोशनदान थे। उसमें कबूतर के एक जोड़े ने घोंसला बना लिया था। एक बार बिल्ली ने उचककर दो में से एक अंडा तोड़ दिया। मेरी माँ ने देखा तो उसे दुख हुआ। उसने स्टूल पर चढ़कर दूसरे अंडे को बचाने की कोशिश की। लेकिन इस कोशिश में दूसरा अंडा उसी के हाथ से गिरकर टूट गया। कबूतर परेशानी में इधर-उधर फड़फड़ा रहे थे। उनकी आँखों में दुख देखकर मेरी माँ की आँखों में आँसू आ गए। इस गुनाह को खुदा से मुआफ़ कराने के लिए उसने पूरे दिन रोज़ा रखा। दिन-भर कुछ खाया-पिया नहीं। सिर्फ़ रोती रही और बार-बार नमाज पढ़-पढ़कर खुदा से इस गलती को मुआफ़ करने की दुआ माँगती रही।
ग्वालियर से बंबई की दूरी ने संसार को काफ़ी कुछ बदल दिया है। वर्सोवा में जहाँ आज मेरा घर है, पहले यहाँ दूर तक जंगल था। पेड़ थे, परिंदे थे और दूसरे जानवर थे। अब यहाँ समंदर के किनारे लंबी-चौड़ी बस्ती बन गई है। इस बस्ती ने न जाने कितने परिंदों-चरिंदों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़कर चले गए हैं। जो नहीं जा सके हैं उन्होंने यहाँ-वहाँ डेरा डाल लिया है। इनमें से दो कबूतरों ने मेरे फ्लैट के एक मचान में घोंसला बना लिया है। बच्चे अभी छोटे हैं। उनके खिलाने-पिलाने की ज़िम्मेदारी अभी बड़े कबूतरों की है। वे दिन में कई-कई बार आते-जाते हैं। और क्यों न आएँ-जाएँ आखिर उनका भी घर है। लेकिन उनके आने-जाने से हमें परेशानी भी होती है। वे कभी किसी चीज़ को गिराकर तोड़ देते हैं। कभी मेरी लाइब्रेरी में घुसकर कबीर या मिर्ज़ा गालिब को सताने लगते हैं। इस रोज़-रोज़ की परेशानी से तंग आकर मेरी पत्नी ने उस जगह जहाँ उनका आशियाना था, एक जाली लगा दी है, उनके बच्चों को दूसरी जगह कर दिया है। उनके आने की खिड़की को भी बंद किया जाने लगा है। खिड़की के बाहर अब दोनों कबूतर रात-भर खामोश और उदास बैठे रहते हैं। मगर अब न सोलोमेन है जो उनकी ज़ुबान को समझकर उनका दुख बाँटे, न मेरी माँ है, जो इनके दुखों में सारी रात नमाज़ों में काटे –
नदिया सींचे खेत को, तोता कुतरे आम। सूरज ठेकेदार-सा, सबको बाँटे काम॥
पाठ का सार
लेखक निदा फ़ाज़ली के अनुसार ईश्वर ने यह समस्त संसार तथा जीवित प्राणी और निर्जीव बनाए हैं। धरती के सभी जीवों का उस पर पूर्ण अधिकार है। बाइबिल के सोलोमेन अथवा कुरआन के सुलेमान सभी छोटे-बड़े पशु-पक्षियों से प्रेम करते थे। महाकवि शेख अयाज़ के पिता ने एक च्योंटे को जीवन देने के लिए अपना भोजन बीच में ही छोड़ दिया था। नूह पैगंबर ने एक कुत्ते को दुत्कार तो दिया, परंतु जीवनभर पश्चाताप की अग्नि में जलते रहे। पहले ज़माना ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का था, परंतु अब लोगों का जीवन अपने में सिमटने लगा है। मानव हर बदलते समय के साथ-साथ अधिक स्वार्थी होता जा रहा है। उसके द्वारा फैलाए प्रदूषण से अब प्रकृति की सहनशीलता भी समाप्त हो चुकी है। वह अब भूकंप, बाढ़, सूखा, अत्यधिक ताप आदि में अपने क्रोध का उफान प्रकट करती है। लेखक को अपनी माँ की बातें याद आती हैं कि किस प्रकार वे पेड़-पौधे तथा पशु-पक्षियों को तंग न करने के लिए लेखक को समझाती थीं। उन्हें दुख में देखकर माँ की आँखों से करुणा बरसने लगती थी। लेखक को लगता है कि अब ऐसे विचारों वाले लोग संसार में रहे ही नहीं, जो दूसरों के दुख से दुखी हों।
शब्दार्थ
1.साठोत्तरी – साठ से अधिक (Sexagenarian)
2.महारत – सिद्धहस्त (Mastery)
3.हासिल – प्राप्त
4.लफ़्ज़ – शब्द
5.कुदरत – प्रकृति
6.तमाम – सारा
7.अजीम – महान
8.करिश्मा – चमत्कार
9.जागीर – संपत्ति
10.दरबदर – दरवाजे दरवाजे
11.नतीजा – परिणाम
12.नस्ल – प्रजाति
13.आशियाना – घोंसला , घर
14.गनीमत – संतोष की बात
15.बेदखल – निकाल देना
16.परहेज – Prevention
17.आलम – स्थिति
18.मंशा – इच्छा
19.यकीन – विशवास
20.बादशाह – सम्राट
21.हाकिम – मालिक
22.लश्कर – सेना
23.फौज – सेना
24.मुहब्बत – प्रेम
25.ईश्वर – भगवान
26.दुआ – विनती
27.मंजिल – लक्ष्य
28.जिक्र – चर्चा
29.कौर – निवाला , Morsel
30.बाजू – बाँह
31.च्योंटा – चींटी
32.पावन – पवित्र
33.नूह – प्रलय में बच जाने वाला पैगंबर
34.पैगंबर – Prophet
35.दुत्कार – घृणापूर्वक दूर करना
36.इस्लाम – एक धर्म
37.मर्जी – इच्छा
38.वजूद – अस्तित्व
39.हिस्सेदारी – भागीदारी
40.दालान – आँगन
41.आबादी – जनसंख्या
42.प्रदूषण – Pollution
43.ज़लज़ला – प्रलय
44.सैलाब – बाढ़
45.नमूना – Sample
46.सैलानी – पर्यटक
47.नज़ारा – दृश्य
48.काबिल – योग्य
49.बावजूद – के बाद भी
50.बददुआ – अभिशाप
51.दरिया – नदी
52.सलाम – नमस्कार
53.अज़ीज़ – प्रिय
54.मज़ार – दरगाह
55.अज़ान – प्रार्थना
56.गुनाह – दोष
57.मुआफ – माफी
58.खामोश – शांत
59.आशियाना – घोंसला, घर
60.मचान – थोड़ी ऊँची जगह
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
1. बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे क्यों धकेल रहे थे?
उत्तर – बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे धकेल रहे हैं ताकि वे समुद्र की जमीन को हथिया सकें और उस पर इमारतें खड़ी कर विपुल धन कमा सकें।
2. लेखक का घर किस शहर में था?
उत्तर – लेखक का घर ग्वालियर (मध्यप्रदेश) शहर में था।
3. जीवन कैसे घरों में सिमटने लगा है?
उत्तर – आज का जीवन डिब्बे जैसे छोटे-छोटे घरों में सिमटने लगा है।
4. कबूतर परेशानी में इधर—उधर क्यों फड़फड़ा रहे थे?
उत्तर – कबूतरों का घोंसला लेखक के घर में था जिसे एक बार बिल्ली ने उचक कर घोंसले का एक अंडा तोड़ दिया था। यह देख माँ ने घोंसले के दूसरे अंडे को बचाने की कोशिश में वह अंडा भी टूट गया। जब कबूतर को घोंसले में अंडे नहीं मिले तो वे परेशानी में इधर-उधर क्यों फड़फड़ाने लगे।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
1. अरब में लशकर को नूह के नाम से क्यों याद करते हैं?
उत्तर – बाइबिल और दूसरे पावन ग्रंथों में नूह नामक पैंगंबर का जिक्र मिलता है, उनका असली नाम लशकर था। अरब में उन्हें नूह के लकब से याद किया जाता है क्योंकि उनहोंने एक बार कुत्ते को दुत्कारते हुए कहा था, “दूर हो जा, गंदे कुत्ते। ” कुत्ते ने दुत्कार सुनकर जवाब दिया न मैं अपनी मर्जी से कुत्ता हूँ और न तुम अपनी मर्जी से इंसान, बनानेवाला सबका तो एक ही है। यह सुन वे बहुत दुखी हुए और मुद्दत तक रोते रहे इसलिए उन्हें अरब में लशकर को नूह के नाम से याद करते हैं।
2. लेखक की माँ किस समय पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थीं और क्यों?
उत्तर – लेखक की माँ शाम के समय पेड़ों के पत्ते तोड़ने से मना करती थीं। उनका मानना था कि इससे पेड़ों को दुख पहुँचता है और वे रोते हैं। मानव धर्म तो यही कहता है कि कभी भी किसी भी सूरत में किसी को दुख न पहुँचाया जाए।
3. प्रकृति में आए असंतुलन का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर – प्रकृति में आए असंतुलन का यह परिणाम हुआ कि गर्मी से अधिक गर्मी पड़ने लगी, बेवक्त बर्षा होने लगी, भूकंप, बाढ़, तूफ़ान आने लगे हैं। नाना प्रकार के रोगों का आविर्भाव हुआ है। पशु-पक्षी इधर-उधर भागने लगे। एक बार तो मुंबई में समंदर की लहरों पर तैरती तीन समुद्री जहाज़ों को समुद्र ने बच्चों की गेंद की तरह तीन दिशाओं में फेंक दिया।
4. लेखक की माँ ने पूरे दिन का रोज़ा क्यों रखा?
उत्तर – लेखक की माँ ने पूरे दिन रोज़ा रखा क्योंकि उनके हाथ से कबूतर के घोंसले का एक अंडा टूट गया था। हालाँकि, वह कबूतर के अंडे को बचाने की कोशिश कर रही थीं पर दुर्भाग्यवश अंडा टूट गया। इसके लिए माँ ने खुद को दोषी ठहराया और प्रायश्चित स्वरूप एक दिन का रोज़ा रखा और खुदा से अपनी गलती को माफ करने की दुआ माँगती रही।
5. लेखक ने ग्वालियर से बंबई तक किन बदलावों को महसूस किया? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – लेखक का ग्वालियर में खुला और बड़ा मकान था। उस समय लोगों के हृदय में पशु-पक्षियों के प्रति अथाह प्रेम हुआ करता था। वे उनके दुख से दुखी हो जाया करते थे। फिर वे मुंबई के वर्सोवा इलाके में आकर बस गए। यहाँ भी पहले दूर तक घना जंगल था पर अब यहाँ जंगल नहीं रहा। समुद्र के किनारे लंबी-चौड़ी बस्ती बन गई है। अब यहाँ पशु-पक्षियों का नामों-निशाँ तक नहीं रहा। पेड़ भी धीरे-धीरे गायब हो गए हैं।
6. ‘डेरा डालने’ से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – डेरा डालने’ से हम समझते हैं कि किसी भी प्राणी द्वारा जीवन-अनुकूल स्थान पर कब्ज़ा करके उसे अपना स्थायी या अस्थायी निवास बना लेना। प्राय: बंजारे या ख़ानाबदोश जातियाँ डेरा डालकर रहते हैं। कहीं-कहीं पक्षी भी किसी अनुकूल जगह पर घोंसला बना लेती हैं। ये भी ‘डेरा डालने’ का उदाहरण है।
7. शेख अयाज़ के पिता अपने बाजू पर काला च्योंटा रेंगता देख भोजन छोड़ कर क्यों उठ खड़े हुए?
उत्तर – शेख आयाज़ के पिता अपने बाजू पर काला च्योंटा रेंगता देख भोजन छोड़ कर उठ खड़े हुए क्योंकि उन्हें लगा कि उन्होंने एक च्योंटे को बेघर कर दिया है। च्योंटे का घर कुएँ के पास था; अत: वे उसे उसके घर तक छोड़ने के लिए चल दिए।
लिखित
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1. बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर यह दुष्प्रभाव पड़ा कि प्रकृति का संतुलन ही बिगड़ गया। बढ़ती हुई आबादी के जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रकृति को विभिन्न तरीकों से नष्ट किया जा रहा है। बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे धकेल रहे हैं। पेड़ों को रास्ते से हटाया जा रहा है। बड़ी-बड़ी इमारतों ने प्राकृतिक सुंदरता को नष्ट ही कर दिया है। अब गर्मी से अधिक गर्मी पड़ने लगी, बेवक्त बर्षा होने लगी, भूकंप, बाढ़, तूफ़ान आने लगे हैं। नाना प्रकार के रोगों का आविर्भाव हुआ है। पशु-पक्षी इधर-उधर भागने लगे। एक बार तो मुंबई में समंदर की लहरों पर तैरती तीन समुद्री जहाज़ों को समुद्र ने बच्चों की गेंद की तरह तीन दिशाओं में फेंक दिया।
2. लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली क्यों लगवानी पड़ी?
उत्तर- लेखक के घर में कबूतरों ने डेरा डाल रखा था। कबूतरों के बच्चे छोटे-छोटे थे जिसके कारण वे बार-बार आते-जाते रहते थे। इससे घर के लोगों को परेशानी होती थी। कभी-कभी वे चीज़ों को गिराकर तोड़ भी देते थे। इस रोज़-रोज़ की परेशानी से तंग आकर लेखक की पत्नी ने खिड़की में जाली लगवा दी।
3. समुद्र के गुस्से की क्या वजह थी? उसने अपना गुस्सा कैसे निकाला?
उत्तर- समुद्र के गुस्से की वजह थी कि बड़े-बड़े बिल्डर उसकी सहन शक्ति को बार-बार ललकार रहे थे। बिल्डर निरंतर समुद्र को पीछे की ओर धकेल रहे थे और उसकी जगह हथिया रहे थे। समुद्र लगातार सिकुड़ता चला जा रहा था। पहले तो उसने अपनी टाँगे सिकोड़ीं फिर उकड़ूँ बैठ गया फिर खड़ा हो गया और जब खड़े होने की भी जगह नहीं रही तो क्रोधित होकर अपनी लहरों पर तैर रहे तीन समुद्री जहाज़ों को बच्चों की गेंद की तरह तीन दिशाओं में उछालकर फेंक दिया। एक जहाज़ वर्ली के समुद्र के किनारे जा गिरा दूसरा बांद्रा में कार्टर रोड के किनारे औंधे मुँह गिरा और तीसरा गेट-वे-ऑफ इंडिया के पास जाकर गिरा।
4. ‘मट्टी से मट्टी मिले, खो के सभी निशान,
किसमें कितना कौन है, कैसे हो पहचान’
इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि सभी प्राणियों में प्रकृति के ही पाँच तत्त्व मिले हुए हैं। इन्हीं पाँच तत्त्वों के समावेश से सभी प्राणी बने हुए हैं। हम सब की रचना इसी प्रकृति ने की है। प्रकृति के अनुसार सभी जीव समान हैं कोई भी छोटा-बड़ा नहीं है। मृत्यु के बाद सभी को इसी में मिल जाना है उसके बाद यह पता नहीं लगाया जा सकता कि किसमें कौन है और कितना है?
लिखित
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1. नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। नेचर के गुस्से का एक नमूना कुछ साल पहले बंबई में देखने को मिला था।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश का आशय यह है कि प्रकृति की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। जब इसके साथ खिलवाड़ किया जाता है तब यह कुपित होकर रौद्र रूप धारण कर लेती है। नेचर के गुस्से का एक नमूना कुछ साल पहले बंबई में देखने को मिला था जब समंदर की लहरों पर तैरती तीन समुद्री जहाज़ों को समुद्र ने बच्चों की गेंद की तरह तीन दिशाओं में फेंक दिया।
2. जो जितना बड़ा होता है उसे उतना ही कम गुस्सा आता है।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश का आशय यह है कि जो जितना बड़ा होता है उसे उतना ही कम गुस्सा आता है पर जब आ जाता है तो किसी विनाश के घटित हुए बिना उसका गुस्सा शांत नहीं होता। कुछ साल पहले बंबई में इसका नमूना देखने को मिला था। और आए दिन विश्व के किसी न किसी कोने में होने वाले प्राकृतिक आपदाएँ इसका ज्वलंत उदाहरण हैं।
3. इस बस्ती ने न जाने कितने परिंदों-चरिंदों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़कर चले गए हैं। जो नहीं जा सके हैं उन्होंने यहाँ-वहाँ डेरा डाल लिया है।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश का आशय यह है कि लोग अपने फायदे और जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। समुद्र के किनारे बनाई गई बस्तियों के कारण पशु-पक्षियों से उनके आशियाने छीन लिए गए हैं। अब वे बेघर हो गए हैं। कुछ पशु- पक्षी बस्ती को छोड़कर पलायन कर गए हैं। और कुछ इधर-उधर ही डेरा डाल बैठे हैं।
4. शेख अयाज़ के पिता बोले, ‘नहीं, यह बात नहीं है। मैंने एक घरवाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुएँ पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ।’ इन पंक्तियों में छिपी हुई उनकी भावना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- शेख आयाज़ के पिता परम परोपकारी व्यक्ति थे। वे किसी को दुखी नहीं देख सकते थे। जब एक च्योंटा उनके माध्यम से उनके घर तक चला आया तब उन्हें अनजाने में हुई भूल का अहसास हुआ और भोजन पर से उठ कर उस च्योंटे को उसके घर पहुँचाने के चल पड़े।
भाषा-अध्ययन
1. उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित वाक्यों में कारक चिह्नों को पहचानकर रेखांकित कीजिए और उनके नाम रिक्त स्थानों में लिखिए; जैसे –
(क) माँ ने भोजन परोसा। कर्ता कारक
(ख) मैं किसी के लिए मुसीबत नहीं हूँ। संप्रदान कारक
(ग) मैंने एक घरवाले को बेघर कर दिया। कर्ता कारक, कर्म कारक
(घ) कबूतर परेशानी में इधर—उधर फड़फड़ा रहे थे। अधिकरण कारक
(ङ) दरिया पर जाओ तो उसे सलाम किया करो। अधिकरण कारक
2. नीचे दिए गए शब्दों के बहुवचन रूप लिखिए –
चींटी – चींटियाँ
घोड़ा – घोड़े
आवाज़ – आवाज़ें
बिल – बिल
फ़ौज – फौजें
रोटी – रोटियाँ
बिंदु – बिंदुएँ
दीवार – दीवारें
टुकड़ा – टुकड़े
3. ध्यान दीजिए नुक्ता लगाने से शब्द के अर्थ में परिवर्तन हो जाता है। पाठ में ‘दफा’ शब्द का प्रयोग हुआ है जिसका अर्थ होता है – बार (गणना संबंधी), कानून संबंधी। यदि इस शब्द में नुक्ता लगा दिया जाए तो शब्द बनेगा ‘दफ़ा’ जिसका अर्थ होता है – दूर करना, हटाना। यहाँ नीचे कुछ नुक्तायुक्त और नुक्तारहित शब्द दिए जा रहे हैं उन्हें ध्यान से देखिए और अर्थगत अंतर को समझिए।
सजा — सज़ा
नाज — नाज़
जरा — ज़रा
तेज — तेज़
निम्नलिखित वाक्यों में उचित शब्द भरकर वाक्य पूरे कीजिए –
(क) आजकल ज़माना बहुत खराब है। (जमाना/ज़माना)
(ख) पूरे कमरे को सजा दो। (सजा/सज़ा)
(ग) ज़रा चीनी तो देना। (जरा/ज़रा)
(घ) माँ दही जमाना भूल गई। (जमाना/ज़माना)
(ङ) दोषी को सज़ा दी गई। (सजा/सज़ा)
(च) महात्मा के चेहरे पर तेज था। (तेज/तेज़)
योग्यता—विस्तार
1. पशु—पक्षी एवं वन्य संरक्षण केंद्रों में जाकर पशु-पक्षियों की सेवा-सुश्रूषा के संबंध में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर उत्तर करें।
परियोजना कार्य
1. अपने आसपास प्रतिवर्ष एक पौधा लगाइए और उसकी समुचित देखभाल कर पर्यावरण में आए असंतुलन को रोकने में अपना योगदान दीजिए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर करें।
2. किसी ऐसी घटना का वर्णन कीजिए जब अपने मनोरंजन के लिए मानव द्वारा पशु—पक्षियों का उपयोग किया गया हो।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर करें।