धन अर्जन की अंधी दौड़ और उपेक्षित स्वास्थ्य

a person in bysy making money and losses his health

संकेत बिंदु – (1) पैसा कमाना एक फैशन (2) पैसे के लिए अनैतिक कार्य (3) स्वास्थ्य को हानि (4) पैसे के समक्ष स्वास्थ्य चिंता नहीं (5) उपसंहार।

धन अर्जन अर्थात् पैसा कमाना या यह कहा जाए कि पैसा इकट्ठा करना इसके लिए हमारे समाज में एक अंधी दौड़ प्रारंभ हो गई है, क्योंकि अब हमारी महत्त्वाकांक्षा इतनी बढ़ गई हैं कि पैसे के आगे सब रिश्ते बौने से लगने लगे हैं। धन कमाने और एकत्र करने का एक फैशन-सा बन पड़ा है और मनुष्य अपने शरीर की चिंता न करके केवल पैसा एकत्र करने के अपने लक्ष्य को साधने में जुटा है। धन एकत्र करने वाला धन का लोभी व्यक्ति शायद यह भूल गया है कि धन ही सब कुछ नहीं है। पैसा कमाने की इस अंधी दौड़ में व्यक्ति न तो अपना शरीर ही देख पा रहा है और न उसे अपने स्वास्थ्य की ही चिंता है, चिंता है तो केवल धन को एकत्र करने की, पैसा पैदा करने की। पैसा पाने के लालच में आदमी हर प्रकार का नीच-से-नीच काम करने को भी तत्पर रहता है, मगर वह भूल रहा है कि सिकंदर का क्या हाल हुआ था, इस पर एक शायर ने कहा है.

“इकट्ठा कर जहाँ के जर (धन), सभी मुल्कों के माली थे।

सिकंदर जब गया दुनिया से, हाथ दोनों ही खाली थे॥”

या यह कहा जाए कि एक कवि ने भी सिकंदर की स्थिति पर अपनी कविता की पंक्तियों में इसका उल्लेख किया है-

“हाथ मेरे जनाजे से बाहर करो,

देख सिकंदर है खाली गया।

है मैंने कहर की तरह,

एक गुल्मी रिवासा (झाड़ियों का साम्राज्य) का माली गया॥”

यह सच है कि पैसा कमाने के लिए अत्याचार भी आदमी करता है, झूठ-फरेब, जालसाजी भी पैसे के लिए ही होती है। आज चारों ओर भ्रष्टाचार का बोलबाला है, काला-बाजारी, काले धंधे दिन के उजाले में भी अपना साम्राज्य फैला रहे हैं। आज मानवता टके के मोल बिकने लगी है। हिंसा, मार-काट, लूट-खसोट, हत्या, डकैती, बलात्कार आज पैसे के नाम पर एक आम बात हो गई है। अब तो पैसा कमाने के लिए रक्षक ही भक्षक बन रहे हैं- केवल कुछ रुपये के लिए। वैसे भी आज की स्थिति पर यदि विचार किया जाए तो आदमी को केवल पैसा ही चाहिए चाहे वह किसी भी तरह से क्यों न प्राप्त हो। आज लगता है कि आदमी पैसे की इस अंधी दौड़ में अवसरवादी भी हो गया है। आदमी को अवसर मिलना चाहिए। वह पैसा पाने के लिए दूसरे के तन के कपड़े भी उतारने पर उतारू हो जाता है। दिन भर पैसे के लिए हाय-हाय करने के लिए आदमी अपने तन का भी होश खो रहा है।

आदमी पैसा बटोरने के इतना लालायित हो गया है कि अपने तन की, अपने स्वास्थ्य की चिंता तो कर नहीं रहा मगर धन पाने की चिंता में रात-दिन भाग रहा है। मगर यह दौड़ कहाँ जाकर समाप्त होगी यह आदमी को स्वयं भी नहीं पता। आज आदमी का लक्ष्य केवल पैसा है- पैसा और अगर पैसा होगा तो स्वस्थ शरीर का उपचार तो कहीं भी पैसे के बल पर कराया जा सकता है। आवश्यक है कि पैसा होना चाहिए, वह पैसा चाहे ईमानदारी का हो या बेईमानी का पैसा चाहिए बस पैसा। दौड़ते-दौड़ते जब आदमी जर्जर हो जाएगा तब वह जोड़ा गया पैसा क्या जर्जर काया को फिर से जवानी और ताकत लौटा पाएगा? इस बात पर इन पैसा बटोरने वालों ने शायद कभी ध्यान नहीं दिया। कवि ‘रत्नम’ का एक और दोहा इसी ओर ध्यान आकर्षित करता है-

“केवल धन ही चाहिए, चाहे तन जर्जर हो जाए।

धन की अंधी दौड़ में, ‘रत्नम्’ दौड़ा जाए॥”

आज समय ऐसा आ गया है कि धन अर्जन करने वाले को न तो अपने तन की चिंता है और न परिवार की। ऐसा आदमी अपनी माता तक की भी निंदा कर देता है, पिता का सम्मान भी नहीं करता। पत्नी, बेटे-बेटियों के लिए उसके पास समय नहीं है। यदि समय है तो केवल धन जमा करने में, वह भी शायद मरते समय अपने साथ ही ले जाएगा, क्योंकि हो सकता है कि पैसा बटोरने वाले व्यक्ति ने अपने कफन में भी जेब लगवा ली हो। जिस आदमी को केवल अपने तन से भी अधिक प्यारा पैसा लगता है वह निश्चय ही धन-लोलुप कहा जाएगा।

पैसा कमाने और पैसा बटोरने में आज आदमी कहाँ तक गिर सकता है, इसका अनुमान देश में घटित घटनाओं से सहज ही लगाया जा सकता है। पैसा कमाने की अंधी दौड़ में उग्रवादी मानव बम बनने को तैयार हो जाते हैं। अगर कोई इनसे यह पूछे कि जिस पैसे के लिए तुम इस शरीर को ही समाप्त करने पर उतारू हो गए इस पैसे को एकत्र करने से क्या लाभ? पैसा बटोरने के लिए ही तो समूचे देश में आतंक है। मगर इन आतंकवादियों ने पैसा तो बटोरा मगर शरीर तो चला गया !

समाज में अपने को उच्च ही नहीं सर्वोच्च व्यक्ति कहलाने वाले लोग जो पैसा बटोरने के काले काम में लिप्त हैं वह अपने परिवार तक को भी पैसे के लिए दूसरों के हाथों में सौंपने में परहेज नहीं करते। पैसा बटोरते – बटोरते शरीर चाहे साथ छोड़ दे, काया रोगी हो जाए मगर लालसा कभी समाप्त होने वाली नहीं है। पति भी कमा रहा है, पत्नी भी कमा रही है, बच्चे भी कमा रहे हैं, समूचा घर मशीन की तरह धन अर्जन में जुटा है, मगर अपने शरीर का, अपने तन का, अपने मन का किसी को भी ध्यान नहीं है। पैसे के लिए दौड़ते-दौड़ते यदि शरीर साथ छोड़ दे तो वह पैसा किस काम का। लेकिन इस प्रकार की प्रवृत्ति के लोगों को केवल पैसे से ही तात्पर्य है अपने शरीर या स्वास्थ्य से नहीं।

आज एक-दूसरे की ओर देखकर आदमी प्रतिस्पर्धा में ही घुटा जा रहा है। उसके पास पैसा है, कार है, कोठी है, नौकर-चाकर हैं; मेरे पास सामने वाले से चार गुना धन होना चाहिए। आदमी तस्करी करता है, देश की युवा पीढ़ी को पथ-भ्रष्ट करने के लिए नशे की सामग्री का बाहर से आयात करता है, केवल पैसा बटोरने के लिए। पैसा बटोरने वाले व्यक्ति के लिए अपने शरीर और अपने स्वास्थ्य से अधिक रुपये या धन का महत्त्व अधिक है और पैसे को ही वह सबसे बड़ा आधार मानता है। यह कहा जाता है कि अधिक धनवान व्यक्ति अपने प्रति, परिवार के प्रति और समूचे समाज के प्रति क्रूर हो जाता है, जैसे लंकापति रावण ने अपने तन की, मन की, परिवार की, राज्य की चिंता नहीं की और अपने हठ के आगे समूची लंका का ही सर्वनाश करा दिया, उसी प्रकार धन के लोलुप व्यक्ति किसी का हित नहीं कर सकते। वैसे अगर देखा जाए तो धन को संग्रह करने वाला जीव जब अपने शरीर का, अपने स्वास्थ्य का ही ध्यान नहीं रख पाया तो बेचारा परिवार या समाज का क्या ध्यान रख पाएगा। धन की अंधी दौड़ को देखकर एक संन्यासी का यह कहना कितना सार्थक लगता है कि-

“बहुत पसारा मत करो, कर थोड़े की आस।

पैसा भी साथ रहे, और परिवार भी पास॥”

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