अपना हाथ जगन्नाथ

apna haath jagannath hindi essay

संकेत बिंदु – (1) जगन्नाथ का अर्थ (2) मनुष्य को कर्म की प्रेरणा (3) मनुष्य की अनेक शक्तियाँ (4) मनुष्य की साहस और शक्ति के उदाहरण (5) उपसंहार।

यह एक किंवदंती है ‘अपना हाथ जगन्नाथ’, वैसे हिंदू धर्म में भगवान का नाम जगन्नाथ है। जग के नाथ अर्थात् जगन्नाथ। यह लोकोक्ति मनुष्य के लिए प्रयोग की गई है। ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ यदि हम इस पर गहराई से विचार करें तो पता चलता है कि भगवान या ईश्वर में प्रत्येक कार्य को संपन्न करने की अपार शक्ति का विपुल भंडार है और यही शक्ति का असीम भंडार भगवान ने मनुष्य को भी प्रदान किया है, मगर स्वार्थ के कारण मनुष्य अपने अधिकार को भूल चुका है।

बात हाथ की है तो हम भगवान की वंदना करते समय यह कहना नहीं भूलते कि ‘हरी है हजार हाथ वाला’, भगवान के समस्त चित्रों में कहीं चार हाथ, कहीं आठ हाथ दिखाई देते हैं, यह सत्य है कि जिस प्रकार हम चित्रों में भगवान के चार और आठ हाथ देखते हैं, उसी प्रकार मनुष्य के पास भी चार या आठ हाथ हैं, मगर मनुष्य को केवल दो ही हाथ दिखाई देते हैं। संभवत: इसीलिए यह उक्ति बनी हो कि – “अपना हाथ जगन्नाथ”। यह वाक्य शायद हमारे पूर्वजों ने हमें कर्म करने की प्रेरणा के लिए ही सूत्र के रूप में दिया हो।

मनुष्य को कर्म करने की प्रेरणा देने के लिए अपने हाथ को जगन्नाथ कहना एक मुहावरा हो सकता है, सूक्ति हो सकती है मगर मनुष्य को बड़े कार्य करने की प्रेरणा इसी वाक्य से मिलती है। कठिन काम को देखकर जब व्यक्ति हताश या निराश हो जाता है तो यह वाक्य मनुष्य के मन में शक्ति का संचार करने का एक माध्यम बनकर उभरता है। तभी तो कवि मनोहरलाल ‘रत्नम्’ की यह पक्तियाँ सार्थक लगने लगती हैं क्योंकि हताश और निराश व्यक्ति को कवि प्रेरित करते हुए कहता है-

“रह सनाथ, मत हो अनाथ, यह अपना हाथ है जगन्नाथ।

कर प्रयास, हो पूरी आस- अपना कर ‘रत्नम् ‘ ऊँचा माथ।

यह अपना हाथ है जगन्नाथ॥”

भगवान श्रीकृष्ण ने जब हताश अर्जुन को कर्म करने के लिए गीता का ज्ञान दिया तो उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था- “हे पार्थ! मनुष्यों में बल मैं ही हूँ, सृष्टि का प्राण मैं ही हूँ अर्थात् अहं ब्रह्मस्मियों” जब श्रीकृष्ण अहं ब्रह्म कह पाने में सक्षम हो सकते हैं तो हम ईश्वर का स्मरण करते हुए अपने हाथ को जगन्नाथ क्यों नहीं कह सकते? जब मनुष्य स्वयं को जगन्नाथ मानकर चलेगा तो कठिन से कठिन कार्य भी सुलभ व सुगम बन जाएगा।

मनुष्य को अनेक प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त हैं, कार्य करने की शक्ति, सब कुछ जानने की शक्ति, मानने की शक्ति, स्वयं को पहचानने की शक्ति। यह शक्ति ही तो है जिसके आधार पर मनुष्य सभी कार्य संपन्न करता है। वस्तु, शरीर योग्यता और सामर्थ्य यह सभी कुछ तो मनुष्य के पास है और इन्हीं के बल पर मनुष्य विश्व-विजयी बन सकता है।

सागर पार करने की कठिन यात्रा से जब हनुमान विचलित हुए तो कहा जाता है कि जामवंत ने हनुमान को उनके भीतर संपूर्ण शक्ति का आभास कराया, जिसे हनुमान भूल चुके थे। शक्ति का स्मरण आते ही पवन पुत्र हनुमान ने क्षण भर में सागर पार कर लिया और लंका में जाकर जानकी की सुधि भी ली। हनुमान के इस बलपूर्वक किए गए कार्य को भी हम ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ के नाम से जोड़कर देख सकते हैं।

मनुष्य के शरीर में व्याप्त वस्तु, योग्यता, सामर्थ्य सभी कुछ संसार के लिए हैं और संसार के काम आते भी हैं। मनुष्य बड़े से बड़ा कार्य करने में सक्षम है, केवल मन में धारणा और विश्वास होना चाहिए। इसी संदर्भ में कवि रामप्रकाश ‘राकेश’ का कहना है कि “मन में केवल साहस चाहिए, पाँव स्वयं ही चल पड़ते हैं।” यह पंक्ति भी ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ वाली उक्ति को चरितार्थ करती है। मनुष्य अपने इन दोनों हाथों से सब कुछ करने की क्षमता रखता है, केवल मन में साहस होना अनिवार्य है।

‘अपना हाथ जगन्नाथ’ से अभिप्राय यह है कि मनुष्य में शक्ति और साहस होना चाहिए। उल्लेख मिलता है कि रावण ने अपने दोनों हाथों से कैलाश पर्वत को शिव सहित ऊपर उठा दिया था, यदि व्यावहारिक दृष्टिकोण से हम देखें तो पता चलता है कि रावण ने भी ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ की कहावत को चरितार्थ करके संसार को दिखा दिया कि असंभव भी संभव हो सकता है। रावण द्वारा कैलाश को उठाना मात्र कल्पना हो सकती है मगर हमें उस साहस और श्रम को नहीं भूलना चाहिए जो मनुष्य के भीतर विद्यमान है। यदि देखा जाए तो गगन चूमते भवनों का निर्माण हाथों द्वारा ही हुआ है। आगरा में प्रेम का प्रतीक ताजमहल भी हाथों के निर्माण का जीवित उदाहरण है। दिल्ली में कुतुबमीनार, इंडिया गेट, लालकिला तथा अन्य भवन भी मजदूरों के हाथों की मेहनत माँ की गाथा का बखान कर रहे हैं। इसी प्रकार ऋषिकेष में लक्ष्मण झूला, हरिद्वार में उड़न खटोला जैसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। अभी हाल में दिल्ली में भूमिगत और ऊपर खम्बों पर दौड़ने वाली मेट्रो रेल भी तो हमें ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ का ही स्मरण कराती है।

समाज में स्त्री हो या पुरुष, बालक हो या वृद्ध, शिक्षित हो या अशिक्षित, साधु-संन्यासी हो या गृहस्थ सभी के पास दो हाथ हैं और इन्हीं हाथों से मनुष्य अनेक प्रकार के अच्छे व बुरे, संभव-असंभव, कठिन व सरल कार्य करने में सक्षम माना गया है। यह हमारे हाथ जहाँ एक ओर अन्न उपजाते हैं, खाद्य सामग्री, सब्जी-दालें उपलब्ध कराते हैं, वहीं दूसरी ओर विज्ञान में अनूठे चमत्कार भी हाथों की ही देन हैं। आकाश में विचरण करते वायुयान, पटरी पर सरपट दौड़ती रेल, पानी, बिजली की व्यवस्था भी हाथों द्वारा ही संभव हैं। तभी तो समाज के मनीषियों, शास्त्रियों, बुद्धिजीवियों ने ‘हाथ को जगन्नाथ’ की संज्ञा देकर मनुष्य में साहस, सम बल और शक्ति का संचार करने की प्रेरणा दी है।

जीवन की अमूल्य धरोहर है, अपने तन में दो लगे हाथ।

मैंने ‘रत्नम् ‘ से जान लिया-यह अपने हाथ हैं जगन्नाथ॥

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