संकेत बिंदु – (1) अद्भुत व आनंददायक अनुभव (2) शरत् पूर्णिमा का पर्व (3) नाविकों द्वारा मुँहमाँगा किराये की माँग (4) चाँदनी रात में खीर का आनंद (5) उपसंहार।
जो आनंद प्रेमी-प्रेयसी की क्रीड़ा में आता है, जो सुख नवदंपति की चुहलबाजियों में प्राप्त होता है, जो प्रसन्नता रुचि- अनुकूल फिल्म देखने में होती है, जो गुद्गुदाहट विवाह के सीटनों (उपालम्भपूर्ण गालियों) को सुनकर होती है, न्यूनाधिक रूप में वही आनंद तथा प्रसन्नता चाँदनी रात में नौका विहार में आता है।
चाँदनी रात हो, नदी का जल मंथर गति से बह रहा हो, समवयस्क हमजोलियों की टोली हो, गीत-संगीत का मूड हो, तालियों की लयबद्ध ताल हो तो किसका हृदय बल्लियों की तरह नहीं उछलेगा? कौन हृदय-हीन उन मस्ती के क्षणों में आनंदित नहीं होना चाहेगा?
शरत् पूर्णिमा का पर्व। चंद्र-किरणों में अमृत का प्रवाह मान कर खीर पकाकर चंद्र- किरणों के स्पर्श हेतु रखने की रात्रि, नदी तट पर आनंदोत्सव का त्योहार। मित्रों की टोली निकल चली यमुना तट के लिए 19-20 मित्र हम-उमर, हमें खयाल, किंतु कोई ताड़ की तरह आकाश को छूता हुआ, तो कोई भगवान वामन का अवतार, कोई अंग्रेजों की गोरी चमड़ी को चुनौती दे रहा है, तो कोई भगवान राम-कृष्ण का रूप प्रदर्शित कर रहा है। मोटर साइकिल और स्कूटरों का काफिला समगति, समभाव से दिल्ली की चौड़ी सड़कों पर रात की नीरवता को चीरता हुआ चला जा रहा है।
यमुना तट पर चाँदनी रात्रि में कार, स्कूटर, मोटरसाइकिल और टैम्पों का जमघट। लोग यमुना तट पर खड़े यमुना में पड़ती क्षपाकर-किरणों को देख रहे हैं। सुदूर पुल पर जलते हुए विद्युत् बल्बों के प्रतिबिंब से सुशोभित जल की छटा को निहार रहे हैं। हिलोरें लेती जल – राशि में चंद्र किरणों और बल्बों का बिंब अत्यंत शोभायमान लग रहा है। थिरक-थिरक कर नृत्य करने वाली तरंग – मालाओं से पवन अठखेलियाँ कर रहा है।
इस दिन नाविक सीधे मुँह बात नहीं करते। ‘डिमांड एन्ड सप्लाई’ का युग है। नौकाएँ कम और सैलानी अधिक। पचास के पाँच सौ माँग लें, तो कोई आश्चर्य नहीं। दो सौ में सौदा हो जाए, तो सस्ते छूट। मित्रों की टोली चढ़ गई नाव पर जब आनंद लेना है तो ब्लैक के टिकट खरीदने में दोष, दुख या क्रोध क्यों? फिर आनंद ऐसा इत्र है, जिसे जितना अधिक दूसरों पर छिड़केंगे, उतना ही सुगंध अपने अंदर समाएगी।
हमारी नौका का लंगर खुला। पक्षी पिंजरे से छूटा। नाविक ने जल पर चप्पू का प्रहार किया। नौका नृत्य की प्रथम भंगिमा में आकर डगमगाने लगी, जल-राशि पर थिरकने लगी। यात्रियों ने जय घोष किया- ‘यमुना मैया की जय।’
तरणी बीच धारा में पहुँची, तो चारों ओर असीम अनंत चंद्रिका का विस्तार दिखाई देता था। जहाँ तक दृष्टि जाती थी, शुभ्र ज्योत्स्ना का ही प्रसार दिखाई देता था। नील गगन निष्पलक नेत्रों से धरती को निहार रहा था। नौका चप्पू के रूप में अपने हाथ फैला – फैला कर, चमकीली फेन रूपी मोतियों के गुच्छे भर-भर कर लुटा रही थी।
इस मादक दृश्य ने सबके हृदय को आह्लादित कर दिया। एक गायक मित्र मचल उठा और उसके कोमल कंठ से मधुर गीत-ध्वनि बह निकली- ‘कुछ-कुछ होता है’ गीत के लय के चढ़ाव उतार के साथ-साथ मित्र ताली बजाकर रस उत्पन्न कर रहे थे। इसी बीच दूसरे मित्र ने खड़े होकर नशे का अभिनय करते हुए झूम कर चुनौती दी ‘प्यार किया तो डरना क्या?’ गाने के बीच में गायक मित्र की हिचकियाँ अनारकली को भी मात दे रही थीं। तभी मीनाकुमारी की याद ताजा करने हुए कब्बाली मुखरित हो उठी, ‘इन्हीं लोगों ने, छीना दुपट्टा मेरा।’
यमुना का दूसरा तट आ पहुँचा, नाव एक क्षण रुकी। नाविक ने पूछा उतरोगे? मित्र ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की, ‘चल मेरे भाई? तेरे हाथ जोड़ता हूँ। हाथ जोड़ता हूँ, तेरे पाँव पड़ता हूँ।’ सभी ठहाका मार कर हँस पड़े।
नौका को वापिस लौटाने के लिए नाविक ने पतवारों को घुमाया। सरिता का प्रवाह कम था। जल-राशि का कोश थोड़ा था। चप्पू जल-थल को स्पर्श कर रहे थे। नाविक जोर
लगा रहा था।
तभी आवाज आई, ‘खीर’! खीर को बाल्टी सामने आई। विश्वास था कि सुधाकर अमृतवर्षा कर चुके होंगे। काल्पनिक अमृत के आनंद में खीर स्वादिष्ट लगी। थोड़ी छीना- झपटी, थोड़ी चोरा-चोरी और अपना चमचा दूसरे के मुख में देना आदि से वातावरण अत्यंत मधुर बन गया।
अकस्मात् जल-धारा का वेग थोड़ा तीव्र हो गया। लहरें थोड़ी उछलने लगीं। यमुना का कल-कल निनाद कुछ तीव्र होने लगा।
नौका मध्य- धारा में थिरकने लगी, तो पानी में प्रतिबिंबित तट जल में डूबा हुआ- सा लगने लगा। जल में तारों का प्रतिबिंब देखकर लगा कि अनंत जल राशि में मुक्तामणि ढूँढ़ रहे हैं। यमुना के वक्ष पर हिलोरें लेती लहरें तथा उन पर पड़ता चंद्र प्रकाश ऐसा प्रतीत होता था, मानो यमुना को चंद्रमा ने हीरों का हार पहना दिया हो। चप्पू से उठने वाले पानी के बबूले बनते और फूटते देखकर लगता था मानों होली के छोटे-छोटे गुब्बारे फूल और फूट रहे हों।
मस्ती भरा, उल्लासमय रंगीन नौका-विहार क्षण-क्षण में समाप्ति की ओर जा रहा था। थका माँदा किसान, दिन भर फाइलों से मल्लयुद्ध करता लिपिक और सवारी ढोता पशु अपने घर की ओर जब चलता है, तो गति में स्वाभाविक तेजी आ जाती है। निर्जीव तरणी भी तट की ओर वेग से चल रही थी। चप्पू की आवाज कर्कशता में बदल रही थी। नौका- विहार में उमंगें यात्रा समाप्ति पर हृदय को दबोच रही थीं।
तरणी से उतर कर यमुना माता को प्रणाम किया। माता के मधुर स्नेह को पाकर कौन पुत्र विछोह पसंद करेगा? पैर मोटर साइकिल और स्कूटरों को किक मार रहे थे, किंतु हृदय में माता के स्नेह की उमंगें किक मार रही थीं। मित्र- कंठ गा उठा-
“ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी यह, नौका-विहार की चाँदनी रात!”