सड़क दुर्घटना की झाँकी

sadak durghatana ka aankhon dekha haal

संकेत बिंदु – (1) दुर्घटनाओं के मुख्य कारण (2) सड़क दुर्घटना का वर्णन (3) ड्राइवर की लापरवाही (4) ताँगे और बस की टक्कर (5) उपसंहार।

जनसंख्या की अतिवृद्धि और यातायात के साधनों का अत्यधिक प्रसार सड़क दुर्घटनाओं के मुख्य कारण हैं। दस वर्ष पूर्व जितनी सड़क दुर्घटनाएँ होती थीं, आज उससे कई गुणा अधिक होती हैं। दुर्घटनाएँ न हों या बहुत ही कम हों, सरकार ने इसके लिए अनेक उपाय किए हैं, किंतु जैसे-जैसे सरकार सुरक्षात्मक उपाय बरतती जाती है, वैसे- वैसे दुर्घटनाएँ भी बढ़ती जाती हैं। समाचार-पत्रों में प्रतिदिन प्रकाशित होने ‘दुर्घटनाओं से मृत्यु’ के समाचार इस बात के प्रमाण हैं।

सड़क पर चलता हुआ बच्चा कार की चपेट में आया और भगवान ने उस अविकसित कली को अपने दरबार में पेश करने की आज्ञा दे दी। ताँगे में बैठे यात्री बातचीत में मस्त चले जा रहे हैं, अकस्मात् दिल्ली परिवहन तथा प्राइवेट ब्लू लाइन की बस टकराई और बातचीत बदल गई ‘हाय ! हाय!’ में।

ये दुर्घटनाएँ न मनुष्य की उपयोगिता और महत्ता को देखती हैं और न समय और कुसमय को कोई व्यक्ति किसी आवश्यक कार्य से जा रहा है, कितने उत्साह के साथ किसी स्वागत समारोह या विवाहोत्सव की तैयारियाँ हो रही हैं, इन बातों से दुर्घटना को कोई वास्ता नहीं। जरा झटका लगने की देर है और मानव की जीवन लीला समाप्त ! दुर्घटना को तो किसी की बलि चाहिए-चाहे वह कोई भी हो। किसी का लिहाज नहीं, मोहब्बत नहीं। हिंदी की प्रसिद्ध कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान और तत्कालीन अखिल भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष डॉ. रघुवीर की मृत्यु कार दुर्घटना में ही हुईं थीं।

आइए, आपको एक हृदय विदारक सड़क दुर्घटना का वर्णन सुनाएँ। दिल्ली में एक स्थान है तीस हजारी। उसके आगे सीधे चलें तो मोरीगेट का पुल आता है। इस मार्ग के बीच में बाएँ हाथ को एक सड़क मुड़ती है, जो ‘टेलीफोन एक्सचेंज’ और ‘न्यू कोर्ट्स’ के मध्य से होती हुई निकल्सन पार्क की ओर चली जाती है। तीस हजारी से न्यू कोर्ट्स को मुड़ने वाली सड़क पर बीच में यातायात नियंत्रक ‘सिपाही’ के खड़े होने का गोल चबूतरा है। इसके आगे मोरीगेट पुल तक ‘एक मार्गीय’ यातायात व्यवस्था है।

रात्रि के आठ बजे थे। मैं जामा मस्जिद से दिल्ली परिवहन की रूट नम्बर ग्यारह की बस में बैठा राणा प्रताप बाग की ओर जा रहा था। मेरे लिए बस के हिचकोले माता की गोदी की हिलोरों में बदल जाते हैं और मैं प्राय: बस में सो जाता हूँ। उस दिन भी मुझे निद्रा देवी ने धर दबाया था।

चलती हुई बस में यात्रियों के चढ़ने-उतरने या झटके के साथ बस रुकने से निद्रा में विघ्न पड़ता था और मैं एक बार आँख खोलकर देख लेता था कि बस कहाँ तक पहुँच गई है। फतेहपुरी बस स्टॉप से चलकर बस मोरीगेट पर रुकी। यहाँ भीड़ अधिक थी। सभी यात्री चढ़ जाना चाहते थे। इधर, बस ठसाठस भरी हुई थी। अतः कंडक्टर सबको लेना नहीं चाहता था। उसने दो-चार सवारियाँ लीं और दो बार सीटी बजाकर बस को चलाने का आदेश दे दिया। ड्राइवर ने गाड़ी पहले गेयर में डाली और तेजी से चला दी। ड्राइवर अब तेजी के मूड में आ गया था।

बीस के स्थान पर लगभग चालीस आदमी खड़े थे। अतः धक्कापेल होनी स्वाभाविक थी। परिणामतः मेरी नींद भी रफूचक्कर हो गई। इधर ‘न्यू कोर्ट्स’ बस स्टॉप पर एक नवदंपति ने बस को रोकने का इशारा किया, किंतु ड्राइवर ने बस और तेज़ कर ली। बस यहाँ से मुड़ती हुई टेलीफोन-एक्सचेंज के पास सिपाही के चबूतरे के पीछे बनी ईंटों के सात-आठ फुट लंबे और एक फुट ऊँचे चबूतरे के छोर पर एक सेकिण्ड रुकी। तेज बस के अकस्मात् रुकने पर थोड़ा झटका लगा। पलक झपकते ही बस पुनः तेज हो गई और चल पड़ी सड़क को दो भागों में बाँटने वाली पटरी के दाहिनी ओर मोड़ काटने के लिए। गलत दिशा में बढ़ती हुई बस को देखकर मेरा दिल दहल-सा गया।

आत्मा की आवाज हृदय से सुनी जा सकती है। इधर मेरा दिल अज्ञात दुर्घटना की आशंका से धड़का ही था कि एकदम बस के टकराने और लोगों के चीखने-चिल्लाने की आवाज कानों में पड़ी। बस लड़खड़ाती हुई-सी एकदम रुक गई। बस के एकदम रुकने से यात्री एक-दूसरे के ऊपर गिर पड़े।

यात्री किसी तरह शनैः-शनैः बस से बाहर निकले। मैं भी बाहर आया। देखा, बस और टैक्सी की टक्कर हुई थी। टैक्सी का चालक मर गया था और उसके नीचे पड़ा था। वह टैक्सी में बैठी सवारियों में दो व्यक्ति उछल कर दूर जा पड़े थे, किंतु अगली सीट पर बैठे दो व्यक्ति कार के नीचे पड़े कराह रहे थे।

इधर, बस में भीड़ अधिक होने के कारण जो लोग पायदान पर लटक रहे थे, उनमें से दो बस के झटके से नीचे गिर पड़े और एक के ऊपर से बस निकल गई। उसका शरीर खून से लथपथ पड़ा था।

यह सब कुछ पलक झपकते हो गया। ताँगा कैसे और किस ढंग से टकराया, बस वाले ने बाईं ओर से न जाकर दाईं ओर से बस को क्यों निकाला? बीस के स्थान पर चालीस ‘स्टैडिंग’ क्यों लीं? पायदान पर यात्रियों को क्यों खड़ा रहने दिया गया? आदि तथ्यों को अब झूठी-सच्ची गवाहियों से तोड़-मरोड़कर बदला जाएगा। ये सब बातें मेरे दिमाग में घूम गईं।

पाँच मिनट में पुलिस का ‘फ्लाइंग स्क्वॉड’ पहुँच गया। उसने बस, बस ड्राइवर और कंडक्टर को अपने कब्जे में ले लिया। जनता को घटना स्थल से 20-20 गज की दूरी तक पीछे हटा दिया। फिर टैक्सी में बैठे चारों व्यक्तियों और कुछ बस यात्रियों को रोक लिया। मार्ग विभेदक निर्जीव पटरी चालक को मूर्खता पर हँस रही थी। प्रायः सड़कों पर लिखी आदर्श पंक्ति ‘दो क्षण की बचत के लिए जीवन को खतरे में न डालिए’ बस चालक का उपहास कर रही थी।

मरने वाले की संख्या एक थी। मामूली चोटों वाले अब भी कराह रहे थे। मैं दुखी हृदय से तीस हजारी की ओर चल पड़ा। आँखों में अश्रु-बिंदु अनजाने ही आ गए थे।

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Avinash Ranjan Gupta

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