रेलवे स्टेशन का दृश्य

Indian railway station par ek scene

संकेत बिंदु-(1) बाहरी प्रांगण का दृश्य (2) प्रवेश प्रांगण का दृश्य (3) प्लेटफॉर्म का दृश्य (4) पटरी का दृश्य (5) उपसंहार।

रेलवे स्टेशन के दृश्य को हम चार भागों में बाँट सकते हैं- 1. रेलवे स्टेशन के बाहरी प्रांगण का दृश्य, 2. स्टेशन में प्रवेश प्रांगण का दृश्य, 3. प्लेटफार्म का दृश्य तथा 4. पटरी का दृश्य।

रेलवे के बाहरी प्रांगण का दृश्य अति कोलाहलपूर्ण होता है। कार, ताँगा, टैक्सी तिपहिया स्कूटर आदि के आगमन ने इस भूमि को रौंद रखा है। साइकिल या मोटर- साइकिल सवार अपने वाहनों को स्टैंड पर खड़ा करके पैदल बढ़ रहे हैं। बस के उतरने वाले यात्री भी पैदल स्टेशन की ओर बढ़ रहे हैं। कोई वाहन आकर स्टेशन प्रांगण के मुख्य द्वार पर ठहरा नहीं कि कुली यात्री के आसपास ऐसे मँडरा जाते हैं जैसे चीलें मांस-पिंड पर झपट्टा मारती हैं। पैसे के लेन-देन में थोड़ी देर हुई नहीं कि पीछे खड़े वाहन ने हार्न बजा-बजाकर उसे जल्दी करने की चेतावनी देनी शुरू कर दी। दूसरी ओर, किसी गाड़ी के आगमन पर सारा प्रांगण हलचल से भर जाता है। कुछ यात्री बच्चों का हाथ पकड़े कुली के सिर पर सामान उठवाए बस स्टैंड की ओर बढ़ रहे हैं, कुछ लोग तेजी से उस प्रांगण को पार कर बस पकड़ने की चिंता में हैं। कोई तिपहिए वाले से बातचीत में संलग्न है, तो कोई रिक्शेवाले से भाव-ताव कर रहा है। सिनेमा हॉल के छूटने के दृश्य की तुलना गाड़ी से उतरकर रेलवे स्टेशन का प्रांगण छोड़ने के दृश्य से की जा सकती है। बस, अंतर इतना ही है कि सिनेमा हॉल के दर्शकों के पास सामान प्रायः नहीं होता और गाड़ी से उतरने वाले प्रायः सभी यात्रियों के पास सामान होता ही है।

स्टेशन के प्रवेश-प्रांगण का दृश्य अपेक्षाकृत शांत होता है, इस प्रांगण में या तो रॉकेट की-सी तेजी है या श्मशान की-सी शांति। चाँदनी चौक की-सी सामान्य हलचल वहाँ नहीं मिलेगी। सैकड़ों आदमी पंक्तिबद्ध टिकट की खिड़कियों पर खड़े हैं। उतावले इतने हैं कि हर टिकट खरीदने वाले पर जल्दी करने की आवाज कसते हैं, पूछताछ खिड़की पर भी हर यात्री अपने प्रश्न का उत्तर पहले प्राप्त कर लेना चाहता है। गाड़ी पकड़ने की चिंता में प्रवेश-प्रांगण को यात्री तेजी से पार कर रहे हैं। दूसरी ओर वे यात्री जिनकी गाड़ी आने में विलंब है, बिस्तर बिछाकर लेटे हैं। कोई बच्चों के साथ भोजन कर रहा है, कोई गपशप में मस्त है, कहीं धूम्रपान कक्ष का धुआँ उड़ रहा है, तो कहीं सफाई कर्मचारी गीले टाट से प्रांगण के फर्श की सफाई कर रहा है। भीख माँगने वाले भी यदा-कदा यात्रियों को तंग करते रहते हैं। प्रवेश प्रांगण में कहीं सामान की बुकिंग हो रही है, तो कहीं डाक के थैलों को गाड़ी में चढ़ाने की तैयारी हो रही है। प्रवेश द्वार का दृश्य और भी आकर्षक है। अंदर जाने वाले यात्रियों की गति इस द्वार पर जहाँ मध्यम हो जाती है, वहाँ गाड़ी से उतरने वालों का इस द्वार पर जमघट जमा हो जाता है। टिकट कलेक्टर फुर्ती में टिकट लेता रहता है। भीड़- भाड़ में कुछ यात्री बिना टिकट दिए निकल जाते हैं, तो कोई ‘पीछे वाले के पास टिकट है’ की आवाज देकर निकल जाता है।

आइए, प्लेटफार्म के अंदर चलें। है न कनाट प्लेस का दृश्य। यात्रियों के विश्राम के लिए बैंच रखे हैं, चाय- लस्सी, बिस्कुट की चबुतरेनुमा दुकानें हैं और हैं बुक मेगजीन- स्टाल। इन दुकानों पर गाड़ी आने से आधा घंटा पूर्व और दो-चार मिनिट पश्चात् तक बड़ी भीड़ होती है। इन दुकानों के अतिरिक्त चाय, फल, रोटी-पूरी, छोले-कुलचे, मिठाई- नमकीन तथा खिलौनों की रेहड़ियाँ प्लेटफार्म के एक सिरे से दूसरे सिरे तक ग्राहक की तलाश में घूमती रहती हैं। हाथों में दैनिक पत्र-पत्रिकाएँ तथा पॉकेट बुक्स लिए हॉकर चक्कर काटते हैं। प्यास बुझाने के लिए नल लगे हैं। एक प्लेटफार्म से दूसरें प्लेटफार्म पर जाने के लिए सीढ़ियाँ और पुल बने हुए हैं।

कुछ यात्री अपने सामान के साथ गाड़ी आने की प्रतीक्षा में हैं, कोई टहल कर अपना समय बिता रहा है, कोई बच्चों के लिए चीजें खरीदने में व्यस्त है, तो कोई कुली की सहायता लेने में संलग्न है। चाय वाला चाय बनाने में फुर्ती दिखाता है, तो मैंगजीन यो पॉकेट बुक्स खरीदने वाला उतनी ही सुस्ती प्रकट करता है।

दृश्य बदलता है। गाड़ी धीरे-धीरे प्लेटफार्म में प्रवेश कर रही है। गाड़ी की आवाज के साथ बिजली के स्विच खोलने के समान सारा प्लेटफार्म जीवंत हो गया, सचेत हो उठा है, यात्री सचेत हो गए हैं। ‘बुक्ड’ कुलियों ने सामान उठा लिया है। द्वार पर खड़ा टिकट- चेकर ‘एलर्ट’ हो गया है।

गाड़ी रुकी। प्लेटफार्म का दृश्य बदला। सरकस की तरह नया खेल शुरू हुआ। गाड़ी में चढ़ने और उतरने वालों की उतावली का दृश्य धक्का-मुक्की का आनंद दे रहा है। कुली पहलवानी दिखा रहे हैं। वे जबरदस्ती सामान को चढ़ाने में दक्षता प्रकट कर रहे हैं। सामान उतारने और चढ़ाने की तीव्र गति की प्रक्रिया में जो कोलाहल चल रहा है, उसी के बीच वेंडरों की कर्कश आवाजें भी सुनाई पड़ती हैं- ‘चाय गरम गरम छोले-कुलचे’, ‘दाल-रोटी गरम’, ‘पान-बीड़ी-सिगरेट’। उतरे हुए यात्री प्लेटफार्म छोड़ने की जल्दी में हैं। कोई कुली से सौदा कर रहा है, तो कोई बिना सौदा किए ही सामान उठवा रहा है। कोई अपना सामान और बच्चे संभाल रहा है, उन्हें इकट्ठा कर रहा है।

गाड़ी आई और चली गई। प्लेटफार्म का दृश्य पूर्ववत् हो गया। मानो कोई नृत्यांगना, नृत्य दिखा कर पुनः अपने सामान्य रूप में आ गई हो।

रेलवे स्टेशन का अंतिम दृश्य है- रेल पटरी का। गाड़ी यदि प्लेटफार्म पर न खड़ी हो तो लोग इनका प्रयोग दूसरे प्लेटफार्म पर जाने के लिए करते हैं-‘शॉर्ट कट’ का युग जो हुआ। गाड़ी आने पर पटरी भी सक्रिय हो जाती है। रेल कर्मचारी जल-नल के स्तम्भों से कैन्वस की नलिकाओं से पानी भरना शुरू कर देते हैं। दूसरी ओर, रेल के पहियों का निरीक्षण शुरू हो जाता है। ज्वाइंटस् को लोहे के हथौड़े से बजाकर परखा जाता है। वस्तुतः लौहपथ की अपनी कहानी है, अपना दृश्य हैं।

इस प्रकार रेलवे स्टेशन का दृश्य चाँदनी चौक जैसा, वातावरण ‘पिक्चर हाउस’ जैसा और व्यस्तता समाचार-पत्र के कार्यालय जैसी होती है।

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Avinash Ranjan Gupta

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