CBSE, NCERT, Class – IX, Sparsh, Chapter -1, Yashpaal, Dukh Ka Adhikaar, यशपाल, – दुख का अधिकार (HINDI Course B)

(1903 – 1976)
यशपाल का जन्म फिरोज़पुर छावनी में सन् 1903 में हुआ। इन्होंने आरंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूल में और उच्च शिक्षा लाहौर में पाई। यशपाल विद्यार्थी काल से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में जुट गए थे। अमर शहीद भगतसिंह आदि के साथ मिलकर इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया।
यशपाल की प्रमुख कृतियाँ हैं : देशद्रोही, पार्टी कामरेड, दादा कामरेड, झूठा सच तथा मेरी, तेरी, उसकी बात (सभी उपन्यास), ज्ञानदान, तर्क का तूफ़ान, पिंजड़े की उड़ान, फूलो का कुर्ता, उत्तराधिकारी (सभी कहानी संग्रह) और सिंहावलोकन (आत्मकथा)। ‘मेरी, तेरी, उसकी बात’ पर यशपाल को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। यशपाल की कहानियों में कथा रस सर्वत्र मिलता है। वर्ग-संघर्ष, मनोविश्लेषण और पैना व्यंग्य इनकी कहानियों की विशेषताएँ हैं।
यशपाल यह मानते रहे कि समाज को उन्नत बनाने का एक ही रास्ता है – सामाजिक समानता के साथ-साथ आर्थिक समानता। यशपाल ने अपनी रचनाओं में हिंदी के अलावा उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्दों का भी बेहिचक प्रयोग किया है।

प्रस्तुत कहानी देश में फैले अंधविश्वासों और ऊँच-नीच के भेद-भाव को बेनकाब करते हुए यह बताती है कि दुःख की अनुभूति सभी को समान रूप से होती है। कहानी धनी लोगों की अमानवीयता और गरीबों की मजबूरी को भी पूरी गहराई से उजागर करती है। यह सही है कि दुःख सभी को तोड़ता है, दुःख में मातम मनाना हर कोई चाहता है, दुःख के क्षण से सामना होने पर सब अवश हो जाते हैं, पर इस देश में ऐसे भी अभागे लोग हैं जिन्हें न तो दुःख मनाने का अधिकार है, न अवकाश!

मनुष्यों की पोशाकें उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती हैं। प्रायः पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार और उसका दर्ज़ा निश्चित करती है। वह हमारे लिए अनेक बंद दरवाज़े खोल देती है, परंतु कभी ऐसी भी परिस्थिति आ जाती है कि हम ज़रा नीचे झुककर समाज की निचली श्रेणियों की अनुभूति को समझना चाहते हैं। उस समय यह पोशाक ही बंधन और अड़चन बन जाती है। जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं, उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।

बाज़ार में, फुटपाथ पर कुछ खरबूज़े डलिया में और कुछ ज़मीन पर बिक्री के लिए रखे जान पड़ते थे। खरबूज़ों के समीप एक अधेड़ उम्र की औरत बैठी रो रही थी। खरबूज़े बिक्री के लिए थे, परंतु उन्हें खरीदने के लिए कोई कैसे आगे बढ़ता? खरबूज़ों को बेचनेवाली तो कपडे़ से मुँह छिपाए सिर को घुटनों पर रखे फफक-फफककर रो रही थी।

पड़ोस की दुकानों के तख्तों पर बैठे या बाज़ार में खडे़ लोग घृणा से उसी स्त्री के संबंध में बात कर रहे थे। उस स्त्री का रोना देखकर मन में एक व्यथा-सी उठी, पर उसके रोने का कारण जानने का उपाय क्या था? फुटपाथ पर उसके समीप बैठ सकने में मेरी पोशाक ही व्यवधान बन खड़ी हो गई।

एक आदमी ने घृणा से एक तरफ़ थूकते हुए कहा, “क्या ज़माना है! जवान लड़के को मरे पूरा दिन नहीं बीता और यह बेहया दुकान लगा के बैठी है।”

दूसरे साहब अपनी दाढ़ी खुजाते हुए कह रहे थे, “अरे जैसी नीयत होती है अल्लाह भी वैसी ही बरकत देता है।”

सामने के फुटपाथ पर खड़े एक आदमी ने दियासलाई की तीली से कान खुजाते हुए कहा, “अरे, इन लोगों का क्या है? ये कमीने लोग रोटी के टुकड़े पर जान देते हैं। इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।”

परचून की दुकान पर बैठे लाला जी ने कहा, “अरे भाई, उनके लिए मरे-जिए का कोई मतलब न हो, पर दूसरे के धर्म-ईमान का तो खयाल करना चाहिए! जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है और वह यहाँ सड़क पर बाज़ार में आकर खरबूज़े बेचने बैठ गई है। हज़ार आदमी आते-जाते हैं। कोई क्या जानता है कि इसके घर में सूतक है। कोई इसके खरबूज़े खा ले तो उसका ईमान-धर्म कैसे रहेगा? क्या अँधेर है!”

पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर पता लगा – उसका तेईस बरस का जवान लड़का था। घर में उसकी बहू और पोता-पोती हैं। लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा भर ज़मीन में कछियारी करके परिवार का निर्वाह करता था। खरबूज़ों की डलिया बाज़ार में पहुँचाकर कभी लड़का स्वयं सौदे के पास बैठ जाता, कभी माँ बैठ जाती।

लड़का परसों सुबह मुँह-अँधेरे बेलों में से पके खरबूज़े चुन रहा था। गीली मेड़ की तरावट में विश्राम करते हुए एक साँप पर लड़के का पैर पड़ गया। साँप ने लड़के को डँस लिया।

लड़के की बुढ़िया माँ बावली होकर ओझा को बुला लाई। झाड़ना-फूँकना हुआ। नागदेव की पूजा हुई। पूजा के लिए दान-दक्षिणा चाहिए। घर में जो कुछ आटा और अनाज था, दान-दक्षिणा में उठ गया। माँ, बहू और बच्चे ‘भगवाना’ से लिपट-लिपटकर रोए, पर भगवाना जो एक दफ़े चुप हुआ तो फिर न बोला। सर्प के विष से उसका सब बदन काला पड़ गया था।

ज़िंदा आदमी नंगा भी रह सकता है, परंतु मुर्दे को नंगा कैसे विदा किया जाए? उसके लिए तो बजाज की दुकान से नया कपड़ा लाना ही होगा, चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।

भगवाना परलोक चला गया। घर में जो कुछ चूनी-भूसी थी सो उसे विदा करने में चली गई। बाप नहीं रहा तो क्या, लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे। दादी ने उन्हें खाने के लिए खरबूज़े दे दिए लेकिन बहू को क्या देती? बहू का बदन बुखार से तवे की तरह तप रहा था। अब बेटे के बिना बुढ़िया को दुअन्नी-चवन्नी भी कौन उधार देता?

बुढ़िया रोते-रोते और आँखें पोंछते-पोंछते भगवाना के बटोरे हुए खरबूज़े डलिया में समेटकर बाज़ार की ओर चली – और चारा भी क्या था?

बुढ़िया खरबूज़े बेचने का साहस करके आई थी, परंतु सिर पर चादर लपेटे, सिर को घुटनों पर टिकाए हुए फफक-फफककर रो रही थी।

कल जिसका बेटा चल बसा, आज वह बाज़ार में सौदा बेचने चली है, हाय रे पत्थर-दिल!

उस पुत्र-वियोगिनी के दुःख का अंदाज़ा लगाने के लिए पिछले साल अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुःखी माता की बात सोचने लगा। वह संभ्रांत महिला पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी। उन्हें पंद्रह-पंद्रह मिनट बाद पुत्र-वियोग से मूर्छा आ जाती थी और मूर्छा न आने की अवस्था में आँखों से आँसू न रुक सकते थे। दो-दो डॉक्टर हरदम सिरहाने बैठे रहते थे। हरदम सिर पर बरफ़ रखी जाती थी। शहर भर के लोगों के मन उस पुत्र-शोक से द्रवित हो उठे थे।

जब मन को सूझ का रास्ता नहीं मिलता तो बेचैनी से कदम तेज़ हो जाते हैं। उसी हालत में नाक ऊपर उठाए, राह चलतों से ठोकरें खाता मैं चला जा रहा था। सोच रहा था –

शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और – – – दुःखी होने का भी एक अधिकार होता है।

 

इस कहानी में लेखक यशपाल ने समाज में फैली कुप्रथाएँ, अंधविश्वास, ढोंग-पाखंड, ऊँच-नीच, अमीरी-गरीबी के भेदभाव, अशिक्षा आदि समस्याओं को स्पष्ट करते हुए समाज में इसके विकृत रूप को दिखाया है। एक अधेड़ उम्र की गरीब माँ के बेटे भगवाना को खेत में जब साँप ने डस लिया तो उसने अपने बेटे को बचाने के लिए विभिन्न प्रकार के टोटके किए, ओझा को बुलाया, झाड़-फूँक करवाया, नाग-देवता की पूजा की, पर इसका कोई फायदा न हुआ। उसने अपने तेईस वर्ष के युवा बेटे को खोकर अपनी गोद सूनी की, तो उसकी बहू का सुहाग ही उजड़ गया और उसके पोते-पोती के सिर पर से पिता का हाथ सदा-सदा के लिए उठ गया। बेचारी बुढ़िया के सारे पैसे क्रिया-कर्म में खत्म हो गए। घर में बीमार बहू और भूख से बिलबिलाते बच्चों की देखभाल के लिए रोती हुई मज़बूर बुढ़िया को जब किसी से उधार भी नहीं मिला तो वह अगले दिन ही खरबूजे बेचने के लिए बाजार चली आई। आस-पास के दुकानदार उसे सहानुभूति देने की जगह उसे गालियाँ देते रहे क्योंकि उन अंध-विश्वासी लोगों को लगता था कि इस बुढ़िया से खरबूजे खरीदने पर उसके पुत्र का मृत्यु सूतक-दोष उन्हें लग जाएगा। लेखक को बुढ़िया के प्रति सहानुभूति थी, परंतु उसकी पोशाक ने उन्हें फुटपाथ पर बैठकर उस बुढ़िया को सहानुभूति जताने से रोक दिया। उस पुत्र-वियोगिनी को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की उस संभ्रांत महिला की याद हो आई, जो अपने पुत्र की मृत्यु के बाद ढाई महीने तक बिस्तर से नहीं उठ पाई थी। संभ्रांत होने के कारण दो-दो डॉक्टर उनके सिरहाने सदा बैठे रहते थे। लोग उसके दुख को देखकर दुखी हो जाते थे। परंतु इस गरीब महिला के दुखों को बाँटने कोई नहीं आया। लेखक का यह अनुभव है कि ‘दुख’ पर केवल सभ्रांत लोगों का ही अधिकार है, यदि लोग गरीब हैं तो क्या उनका ‘दुख’ दुख नहीं है? यह विचारपरक कहानी लेखक ने समाज के अमीर व गरीब वर्ग की सामाजिक स्थिति को स्पष्ट करने के लिए और लोगों की बढ़ती विकृत मानसिकता को दर्शाने के लिए ही लिखी है।

 

 

 

1. छावनी – Cantonment 

2. आरंभिक – Preliminary

3. स्थानीय – Local

4. उच्च शिक्षा – Higher Education

5. गतिविधियाँ – Activities

6. पैना – तीक्ष्ण

7. व्यंग्य – Comment 

8. उन्नत – विकसित

9. आर्थिक – Econimic

10. समानता – Equality

11. बेहिचक – Without Hesitation

12. मातम – शोक

13. अवश – वश से बाहर

14. अवकाश – छुट्टी

15. दर्ज़ा – Class

16. सहसा – अचानक

17. खास – विशेष

18. तख्त – कुर्सी

19. घृणा – नफ़रत

20. व्यथा – पीड़ा

21. व्यवधान – समस्या

22. खसम-लुगाइ – पति-पत्नी

23. पोशाक – वस्त्र, पहनावा

24. अनुभूति – एहसास

25. अड़चन – विघ्न, रुकावट, बाधा

26. अधेड़ – आधी उम्र का, ढलती उम्र का

27. व्यथा – पीड़ा, दुःख

28. व्यवधान – रुकावट, बाधा

29. बेहया – बेशर्म, निर्लज्ज

30. नीयत – इरादा, आशय

31. बरकत – वृद्धि, लाभ, सौभाग्य

32. परचून की दुकान – आटा, चावल, दाल आदि की दुकान

33. सूतक – परिवार में किसी बच्चे के जन्म होने या किसी के मरने पर कुछ निश्चित समय तक परिवार के लोगों को न छूना, छूत

34. कछियारी – खेतों में तरकारियाँ बोना

35. निर्वाह – गुज़ारा

36. मेड़ – खेत के चारों ओर मिट्टी डालकर बनाया हुआ घेरा, दो खेतों के बीच की सीमा

37. तरावट – गीलापन, नमी, शीतलता, ठंडक

38. ओझा – झाड़-फूँक करने वाला

39. छन्नी – ककना – मामूली गहना, जेवर

40. सहूलियत – सुविधा

1 – किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है?
उत्तर – किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें समाज में उसका दर्जा और अधिकार का पता चलता है और साथ ही साथ उसकी अमीरी- गरीबी की श्रेणी का भी पता चलता है।
2 – खरबूज़े बेचनेवाली स्त्री से कोई खरबूज़े क्यों नहीं खरीद रहा था?
उत्तर – खरबूज़े बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूज़े नहीं खरीद रहा था क्योंकि वह घुटनों में सिर गड़ाए फफक-फफक कर रो रही थी। उसके बेटे की मृत्यु से लगे सूतक के कारण लोग इससे खरबूज़े नहीं ले रहे थे।
3 – उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा?
उत्तर – उस स्त्री को देखकर लेखक के मन में उसके प्रति सहानुभूति की भावना उत्पन्न हुई। उसे देखकर लेखक का मन व्यथित होने लगा। वह नीचे झुक कर उसके दुख का कारण जानना चाहता था तभी उसे लगा कि पोशाक कभी-कभी कितनी बाधा उत्पन्न करती है।
4 – उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था?
उत्तर – उस स्त्री का लड़का भगवाना एक दिन सुबह-सुबह खेत में से पके खरबूज़े चुन रहा था तभी उसका पैर गीली मेढ़ की तरावट में आराम करते साँप पर पड़ गया और साँप ने उसे डस लिया। इस प्रकार भगवाना की मृत्यु हो गई।
5 – बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नहीं देता?
उत्तर – उस बुढ़िया का बेटा मर चुका था। लोगों को पता था कि बुढ़िया को अगर उधार दिया जाए तो पैसे मिलने की कोई भी संभावना नहीं है। इसलिए बुढ़िया को कोई भी उधार नहीं दे रहा था।

1 – मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्त्व है?
उत्तर – हमारे शरीर को ढकना ही पोशाक की सबसे बड़ी उपयोगिता है परंतु वर्तमान जीवन में मनुष्य की पहचान उसके पोशाक से होने लगी है। यह पोशाक ही मनुष्य को समाज में ऊँचा स्थान दिलाने के साथ साथ उसके रुत्बे और अधिकार की भी घोषणा करती है।
2 – पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?
उत्तर – पोशाक हमारे शरीर को तो ढक देता है मगर हमारे जज़्बातों को नहीं। कभी-कभी हमारे जीवन में हम किसी के दुख से इतने विचलित हो जाते हैं कि उसके दुख का निवारण करने हेतु हमारा अंतर्मन उत्कंठित हो उठता है ऐसे स्थिति में हमारी पोशाक ही अड़चन बन जाती है जैसा कि इस पाठ में लेखक यशपाल के साथ होता है।
3 – लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया?
उत्तर – लेखक उस स्त्री के रोने का कारण नहीं जान पाया क्योंकि इसमें उसकी पोशाक ही रुकावट बन गई थी। उनकी पोशाक इतनी सभ्य थी कि किसी निर्धन बुढ़िया के पास बैठकर उससे उसके दुख के बारे में जानने की अनुमति न तो उसके पोशाक दे रहे थे और न ही उनका तथाकथित सभ्य समाज। उन्हें तो उसके दुख का पता बाज़ार में खड़े लोगों और आस-पास के दुकानदारों से चला जो बुढ़िया के संबंध में तरह-तरह की बातें कर रहे थे।
4 – भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?
उत्तर – भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा ज़मीन पर खेती करके परिवार का निर्वाह करता था। वह कभी-कभी खरबूजों की डलियाँ बाज़ार में बेचने भी जाया करता था। वह घर का एकमात्र सहारा था। वह पूरी लगन से कछियारी करता था और अपने घरवालों का भरण-पोषण किया करता था।
5 – लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूज़े बेचने क्यों चल पड़ी?
उत्तर – लड़के की मृत्यु के दूसरे दिन बुढ़िया खरबूज़े बेचने चली गई क्योंकि उसके पास जो कुछ भी था भगवाना की मृत्यु के बाद दान-दक्षिणा में खत्म हो चुका था। बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे। बहू बीमार थी। मज़बूरी के कारण बुढ़िया को खरबूज़े बेचने के लिए जाना पड़ा।
6 – बुढ़िया के दुःख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई?
उत्तर – बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद आई क्योंकि उसके साथ भी ठीक ऐसी ही घटना घटी थी। वह अपने जवान बेटे की मृत्यु के कारण अढ़ाई मास तक पलंग से न उठ सकी थी। पंद्रह-पंद्रह मिनट पर मूर्च्छित हो जाती थी। शहर भर के लोगों के हृदय उसके पुत्र के शोक को देखकर द्रवित हो उठे थे। उसकी अवस्था में सुधार लाने के लिए डॉक्टरों का भी प्रबंध किया गया था। दूसरी तरफ यहाँ लोग बुढ़िया पर ताने कस रहे थे। उस पर तरह-तरह के आरोप लगा रहे थे। ऐसा दृश्य देखकर लेखक को लगा कि दुख मनाने का भी अधिकार होता है। दुख मनाने के लिए भी पर्याप्त पैसे और समय होना चाहिए।

1 – बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचनेवाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – पड़ोस की दुकानों के तख्तों पर बैठे या बाज़ार में खडे़ लोग घृणा से उसी स्त्री के संबंध में बात कर रहे थे।एक आदमी ने घृणा से एक तरफ़ थूकते हुए कहा, “क्या ज़माना है! जवान लड़के को मरे पूरा दिन नहीं बीता और यह बेहया दुकान लगा के बैठी है।” दूसरे साहब अपनी दाढ़ी खुजाते हुए कह रहे थे, “अरे जैसी नीयत होती है अल्लाह भी वैसी ही बरकत देता है।”
सामने के फुटपाथ पर खड़े एक आदमी ने दियासलाई की तीली से कान खुजाते हुए कहा, “अरे, इन लोगों का क्या है? ये कमीने लोग रोटी के टुकड़े पर जान देते हैं। इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।”
परचून की दुकान पर बैठे लाला जी ने कहा, “अरे भाई, उनके लिए मरे-जिए का कोई मतलब न हो, पर दूसरे के धर्म-ईमान का तो खयाल करना चाहिए! जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है और वह यहाँ सड़क पर बाज़ार में आकर खरबूज़े बेचने बैठ गई है।
2 – पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?
उत्तर – पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर पता लगा – उसका तेईस बरस का जवान लड़का था। घर में उसकी बहू और पोता-पोती हैं। लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा भर ज़मीन में कछियारी करके परिवार का निर्वाह करता था। खरबूज़ों की डलिया बाज़ार में पहुँचाकर कभी लड़का स्वयं सौदे के पास बैठ जाता, कभी माँ बैठ जाती। लड़का परसों सुबह मुँह-अँधेरे बेलों में से पके खरबूज़े चुन रहा था। गीली मेड़ की तरावट में विश्राम करते हुए एक साँप पर लड़के का पैर पड़ गया। साँप ने लड़के को डँस लिया और भगवाना परलोक सिधार गया।
3 – लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या उपाय किए?
उत्तर – लड़के की बुढ़िया माँ बावली होकर ओझा को बुला लाई। झाड़ना-फूँकना हुआ। नागदेव की पूजा हुई। पूजा के लिए दान-दक्षिणा चाहिए। घर में जो कुछ आटा और अनाज था, दान-दक्षिणा में उठ गया। माँ, बहू और बच्चे ‘भगवाना’ से लिपट-लिपटकर रोए, पर भगवाना जो एक दफ़े चुप हुआ तो फिर न बोला। भगवाना परलोक सिधार गया।
4 – लेखक ने बुढ़िया के दुःख का अंदाज़ा कैसे लगाया?
उत्तर – पुत्र-वियोगिनी के दुःख का अंदाज़ा लगाने के लिए पिछले साल अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुःखी माता की बात सोचने लगा। वह संभ्रांत महिला पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी। उन्हें पंद्रह-पंद्रह मिनट बाद पुत्र-वियोग से मूर्छा आ जाती थी और मूर्छा न आने की अवस्था में आँखों से आँसू न रुक सकते थे। दो-दो डॉक्टर हरदम सिरहाने बैठे रहते थे। हरदम सिर पर बरफ़ रखी जाती थी। शहर भर के लोगों के मन उस पुत्र-शोक से द्रवित हो उठे थे।
5 – इस पाठ का शीर्षक ‘दुःख का अधिकार’ कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – मुझे इस पाठ का शीर्षक ‘दुख का अधिकार’ सटीक लगता है क्योंकि यह कहानी समाज के दो वर्गों का ब्योरा प्रस्तुत करती है, पहला तो शोषित वर्ग जिसका उदाहरण भगवाना और उसका परिवार है और दूसरा शोषक वर्ग जिसका उदाहरण लेखक के पड़ोस की संभ्रांत महिला। दोनों के साथ एक ही प्रकार की घटना घटती है मगर एक के दुख को समझने वाला कोई नहीं बल्कि ताने कस-कस कर उसके दुख को और भी गहरा करते हैं और दूसरी तरफ संभ्रांत महिला के दुख को देखकर लोगों के दिल द्रवित हो उठे थे। ये घटनाएँ साफ़ बयान करती है कि दुख मनाने के लिए भी पैसे और सहूलयित चाहिए जो एक के पास नहीं था और दूसरे के पास था।

1 – जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।
उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश में लेखक पोशाक के विषय में वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि जिस प्रकार आकाश में उड़ रहे पतंग को डोर नियंत्रित करती है और जब पतंग कट जाती है तो भी हवा उसे एकाएक ज़मीन पर नहीं गिर जाने देती ठीक ऐसी ही स्थिति पोशाक के कारण होती है। यहाँ लेखक बुढ़िया के दयनीय अवस्था से काफी व्याकुल था और उसके दुख के बारे में जानना चाहता था। वह नीचे झुककर उस गरीब बुढ़िया का दुख बाँटना चाहता था परंतु उनकी पोशाक इसमें बाधा बन रही थी।
2 – इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।
उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश का आशय यह है कि समाज में अनेक प्रकार के लोग रहते हैं जिनकी मानसिकता काफी विकृत हो चुकी है। उनके लिए सच उतना ही होता है जितना कि वे देख पा रहे हैं। जबकि सच्चाई तो यह होती है कि वे वास्तविक स्थिति से परिचित ही नहीं होते हैं। बिना पूर्ण सत्य का संधान किए मौजूदा हालात पर टीका-टिप्पणी करने लगते हैं जैसा कि यहाँ पर बाज़ार में मौजूद लोग और दुकानदार बुढ़िया पर कर रहे हैं।
3 – शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और – – – दुःखी होने का भी एक अधिकार होता है।
उत्तर – इस गद्यांश का आशय यह है कि समाज में दुख मनाने का अधिकार केवल आर्थिक रूप से संपन्न परिवारों को ही है। यह तो सत्य ही है कि दुख सभी को तोड़ता है। दुख में मातम सभी मनाना चाहते हैं पर ऐसा हो नहीं पाता है। पारिवारिक और आर्थिक संकट गरीबों को दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए मजबूर कर देता है तो दूसरी तरफ आर्थिक रूप से संपन्न परिवार के लोग महीनों तक दुख मनाते हैं।

1 – निम्नांकित शब्द-समूहों को पढ़ो और समझो –
(क) कङ्घा, पतङ्ग, चञ्चल, ठण्डा, सम्बन्ध।
(ख) कंघा, पतंग, चंचल, ठंडा, संबंध।
(ग) अक्षुण्ण, सम्मिलित, दुअन्नी, चवन्नी, अन्न।
(घ) संशय, संसद, संरचना, संवाद, संहार।
(ङ) अँधेरा, बाँट, मुँह, ईंट, महिलाएँ, में, मैं।
ध्यान दो कि ङ्, ञ्, ण् , न् और म् ये पाँचों पंचमाक्षर कहलाते हैं। इनके लिखने की विधियाँ तुमने ऊपर देखीं – इसी रूप में या अनुस्वार के रूप में। इन्हें दोनों में से किसी भी तरीके से लिखा जा सकता है और दोनों ही शुद्ध हैं। हाँ, एक पंचमाक्षर जब दो बार आए तो अनुस्वार का प्रयोग नहीं होगा; जैसे – अम्मा, अन्न आदि। इसी प्रकार इनके बाद यदि अंतस्थ य, र, ल, व और ऊष्म श, ष, स, ह आदि हों तो अनुस्वार का प्रयोग होगा, परंतु उसका उच्चारण पंचम वर्णों में से किसी भी एक वर्ण की भाँति हो सकता है जैसे – संशय, संरचना में ‘न्’, संवाद में ‘म्’ और संहार में ‘ङ्’ ।
(ं) यह चिह्न है अनुस्वार का और (ँ) यह चिह्न है अनुनासिक का। इन्हें क्रमशः बिंदु और चंद्र-बिंदु भी कहते हैं। दोनों के प्रयोग और उच्चारण में अंतर है। अनुस्वार का प्रयोग व्यंजन के साथ होता है अनुनासिक का स्वर के साथ।
2 – निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए –
ईमान – धर्म, विश्वास
बदन – शरीर, काया
अंदाज़ा – अनुमान, आकलन
बेचैनी – व्याकुलता, अकुलाहट
गम – दुःख, पीड़ा
दर्ज़ा – श्रेणी, पदवी
ज़मीन – पृथ्वी, धरा
ज़माना – युग, काल
बरकत – लाभ, इज़ाफा

3. निम्नलिखित उदाहरण के अनुसार पाठ में आए शब्द-युग्मों को छाँटकर लिखिए –
उदाहरण : बेटा-बेटी
खसम – लुगाई,
पोता-पोती,
झाड़ना-फूँकना,
छन्नी-ककना,
दुअन्नी-चवन्नी।

4. पाठ के संदर्भ के अनुसार निम्नलिखित वाक्यांशों की व्याख्या कीजिए –
• बंद दरवाज़े खोल देना – प्रगति में बाधक तत्त्व हटने से बंद दरवाज़े खुल जाते हैं।
• निर्वाह करना – परिवार का भरण-पोषण करना।
• भूख से बिलबिलाना – बहुत तेज भूख लगना।
• कोई चारा न होना – कोई और उपाय न होना।
• शोक से द्रवित हो जाना – दूसरों का दुख देखकर भावुक हो जाना।

5. निम्नलिखित शब्द-युग्मों और शब्द-समूहों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
क.
1. छन्नी-ककना – गरीब माँ ने अपना छन्नी-ककना बेचकर बच्चों को पढ़ाया-लिखाया।
2. अढ़ाई-मास – वह विदेश में अढ़ाई – मास के लिए गया है ।
3. पास-पड़ोस – पास-पड़ोस के साथ मिल-जुलकर रहना चाहिए, वे ही सुख-दुःख के सच्चे साथी होते है।
4. दुअन्नी-चवन्नी – आजकल दुअन्नी-चवन्नी का कोई मोल नहीं है।
5. मुँह-अँधेरे – वह मुँह-अँधेरे उठ कर काम ढूँढने चला जाता है ।
6. झाड़-फूँकना – आज के जमाने में भी कई लोग झाँड़ने-फूँकने पर विश्वास करते हैं।
ख)
1. फफक-फफककर – भूख के मारे गरीब बच्चे फफक-फफककर रो रहे थे।
2. तड़प-तड़पकर – अंधविश्वास और इलाज न करने के कारण साँप के काटे जाने पर गाँव के लोग तड़प-तड़पकर मर जाते है ।
3. बिलख-बिलखकर – बेटे की मृत्यु पर वह बिलख-बिलखकर रो रही थी।
4. लिपट-लिपटकर – बहुत दिनों बाद मिलने पर दोनों सहेलियाँ लिपट-लिपटकर मिली।

6. निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं को ध्यान से पढ़िए और इस प्रकार के कुछ और वाक्य बनाइए :
(क)
• लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे।
उत्तर – छोटा बच्चा नींद से उठते ही भूख से बिलबिलाने लगा।
• उसके लिए तो बजाज की दुकान से कपड़ा लाना ही होगा।
उत्तर – आज उसके जन्मदिन का उपहार लाना ही होगा।
• चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।
उत्तर – माँ मोहन को पढ़ाना चाहती थीं, चाहे उसके लिए उसके हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।
(ख)
• अरे जैसी नीयत होती है, अल्लाह भी वैसी ही बरकत देता है।
• भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला।
उत्तर – अरे जो जैसा करता है, वैसा ही भरता है।
उत्तर – बीमार रामू जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला।

मुहावरे
1. चल बसना – मृत्यु होना

वाक्यांशों के लिए एक शब्द
1. ओझा – झाड़-फूँक करने वाला
2. व्यथा – आंतरिक क्लेश या दुख

विलोम शब्द
1. अधिकार # कर्तव्य
2. निश्चित # अनिश्चित
3. अनेक # एक
4. बिक्री # खरीद
5. समीप # दूर
6. मृत्यु # जीवन
7. शोक # हर्ष, अशोक

अनेकार्थी शब्द
1. मन = हृदय, एक तोल (40 किलो)
2. नाक = इज़्ज़त, अंग विशेष

उपसर्ग एवं प्रत्यय
उपसर्ग
1.निर् = निर्वाह
2. वि = विभिन्न, वियोगिनी
3. परि – परिस्थिति
4. पर = परलोक
प्रत्यय
5.ई – निचली, दुखी
6. कर – झुककर, फफककर
7. इत – द्रवित
8. इया – बुढ़िया

पर्यायवाची
1. मनुष्य – मानव, नर, मानुष
2॰ पोशाक – परिधान, पहनावा, लिबास, अंबर, चीर
3.वायु – हवा, पवन, प्राण, समीर, अनिल
4.भूमि – धरा, धरती, वसुंधरा, भू
5.व्यथा – दुख, दर्द, पीड़ा
6.लड़का – बेटा, कुमार, बालक
7.नाग – सर्प, साँप, अहि
8.माँ – जननी, माता, मातृ
9.विष – ज़हर, कालकूट, हलाहल
10. सुबह – सवेरा, तड़के, प्रातः
11. बेटा – आत्मज, तनय, सुत
12. पिता – जनक, वालिद, जन्मदाता
13. नाक – नासिका, नासापुट, घ्राणेंद्रि
14. बदन – देह, कलेवर, शरीर
15. ऊर्जा – बल, शक्ति, ताकत

1 – ‘व्यक्ति की पहचान उसकी पोशाक से होती है।’ इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर प्रश्न का उत्तर करें।
2 – यदि आपने भगवाना की माँ जैसी किसी दुखिया को देखा है तो उसकी कहानी लिखिए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर प्रश्न का उत्तर करें।
3 – पता कीजिए कि कौन-से साँप विषैले होते हैं? उनके चित्र एकत्र कीजिए और भित्ति पत्रिका में लगाइए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर प्रश्न का उत्तर करें।

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