स्वास्थ्य और विज्ञान

Health and science behind it hindi nibandh

संकेत बिंदु-(1) स्वास्थ्य के बिना जीवन अधूरा (2) वैज्ञानिक आविष्कारों का जीवन में उपयोग (3) आयुर्विज्ञान विज्ञान की देन (4) मन को स्वस्थ रखने में विज्ञान का योगदान (5) उपसंहार।

‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ के अनुसार सभी धर्मों (कर्तव्यों) का प्रथम साधन शरीर है। अतः शरीर का स्वस्थ रहना परमावश्यक है। स्वास्थ्य के बिना जीवन, जीवन नहीं है। विज्ञान स्वास्थ्य-रक्षा में महायक है। वह स्वस्थ रहने के नियम बताता है, रोगी होने पर रोग का निदान कर व्यक्ति को स्वस्थ बनाता है। मृत्यु के मुँह में पहुँचे मानव को जीवन प्रदान करता है। हायजीन (Hygiene) विज्ञान की वह शाखा है, जो मानव स्वास्थ्य की देख-भाल करती है। इसी कारण जो शास्त्र स्वास्थ्य, रोगोत्पत्ति और उसके निदान को बताता है, उसे आयुर्वेद या आयुर्विज्ञान नाम दिया गया है।

स्वास्थ्य के लिए चाहिए पाचन क्रिया का ठीक होना। कारण, पाचन-क्रिया ठीक होगी तो वात, पित्त और कफ समान रूप से कार्य करेंगे। रस आदि तथा धातु और मलों की क्रिया सम होगी। पाचन-क्रिया का ठीक संचालन विज्ञान करता है। विज्ञान बताता है कि मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए संतुलित आहार करना चाहिए। संतुलित आहार से तात्पर्य है-शरीर की संवृद्धि और विकास के पोषक तत्त्वों का सेवन। पोषक तत्त्व हैं- कार्बोहाइड्रेट, फैटस्, प्रोटीन, खनिज लवण, विटामिन तथा जल। ये छहों तत्त्व विज्ञान की देन हैं। विज्ञान की देन कैसे हैं? इसके लिए एक दो उदाहरण पर्याप्त होंगे।

पानी जो जीवन का आधार है हाइड्रोजन और आक्सीजन से बना एक रासायनिक यौगिक है। कार्बन हाइड्रेट में प्रत्येक पदार्थ के स्टार्च व शक्कर शामिल है। मीठी चीनी कार्बन हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बनती है। कोयला, तेल, अनाज, सब्जियाँ, फल और मेवे, सभी तो रसायन हैं, अतः विज्ञान के अंश हैं।

प्रकृति की लीला भी निराली है। अत्यधिक गर्मी और अत्यधिक सर्दी को मानव सहन नहीं कर पाता। गर्मी से विह्वल होता है तो सर्दी से ठिठुरता है। इसके लिए विज्ञान ने वातानुकूलन की व्यवस्था प्रदान की। पंखे, हीटर, कूलर, एक्जोस्टर फैन-क्या हैं? मानव को प्रकृति प्रकोप से बचाने के वैज्ञानिक आविष्कार ही तो हैं।

शरीर आखिर शरीर हैं। बीमार होते क्या देर लगती है। इसीलिए तो ‘शरीरं व्याधिमंदिरम्’ कहा गया है। नजला, जुकाम, सिर-दर्द, बदन दर्द, आँख में सूजन, पेट फूलना, बदहजमी (अपचन) या दस्त। ये सामान्य बीमारियाँ हैं। एस्प्रो या सिरोडीन लीजिए सिरदर्द गायब, विक्स 500 या कोलड्रिन की गोली से नजला-जुकाम में आराम। पचनोल या पुदीनहरा से पेट के विकार दुरुस्त। ‘लकोला’ या ‘आईटोन’ डालिए आँखें स्वस्थ। ये सब गोलियाँ क्या हैं? विज्ञान की शाखा औषध-विज्ञान (आयुर्विज्ञान) की देन हैं।

बुखार, मलेरिया, टाइफाइड, इफ्लूएँजा, नमूनिया, हैजा, मधुमेह, गठिया, कोढ़, पेचिस, दमा, खसरा, प्लेग, पोलियो, पायोरिया, हाइड्रोफोविया, सूखा रोग, चेचक, टिटेनस, रतौंधी, मोतियाबिंद, गण्डमाला आदि बीमारियाँ दूषित खान-पान प्रदूषण के कारण होती रहती हैं। आयुर्विज्ञान की कृपा से मनुष्य इन रोगों से शीघ्र स्वस्थ हो जाता है।

पीलिया, टी. बी. (क्षयरोग) दमा, हृदयरोग, किडनी के रोग, कैंसर आदि असाध्य रोग समझे जाते थे। आज विज्ञान की अपार कृपा से ये रोग मानव को पराजित नहीं कर सकते, शीघ्र मृत्यु का निमंत्रण नहीं दे सकते। हृदय तथा गुर्दे का प्रत्यारोपण तथा हृदय की ‘बाई-पास सर्जरी’ द्वारा मृत्यु-मुँह से मानव को निकालकर स्वस्थ खड़ा कर देना, विज्ञान का ही वरदान तो हैं।

शरीर के साथ मन का भी मानव स्वास्थ्य पर बहुत असर पड़ता है। मन स्वस्थ होगा तो स्वास्थ्य शुक्लपक्ष के चाँद की तरह निरंतर बढ़ेगा। मन अस्वस्थ होगा तो ‘चिंता ज्वाल शरीर बन, दावा लगि लगि जाए’ की स्थिति निर्मित होगी। मन के स्वस्थ रखने लिए विज्ञान ने मनोरंजन के अनेक साधन प्रदान किए हैं। दूरदर्शन, आकाशवाणी, चलचित्र, वीडियो, पत्र-पत्रिकाएँ, पुस्तकें मानव का भरपूर मनोरंजन करते हैं। दिन का थका हारा मानव जीविका की ऊँच-नीच से टूटा आदमी जब दूरदर्शन का स्विच ऑन करता है तो एक ओर तो उसकी थकावट दूर होती है, तो दूसरी ओर मनोरंजन का आनंद भी प्राप्त होता है।

विज्ञान का मानव के साथ जहाँ तक 6-3 का संबंध है, वहाँ वह स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है, किंतु यह संबंध जहाँ 3-6 का हुआ, वहाँ विनाशकारी बन जाता है। वह मानव के स्वास्थ्य से ही खिलवाड़ नहीं करता, उसका जीवन भी दूभर कर देता है। नगरों तथा महानगरों का मानव विज्ञान की विनाशकारी देन ‘पर्यावरण प्रदूषण’ से परेशान है। वाहनों से निकले धुएँ से उसका दम घुटता है। मलमूत्र तथा कारखानों मिलों के रासायनिक पदार्थ से युक्त नदी जल को हाईजनिक करके पेय जल पीता है। कीटनाशक औषधियों से युक्त फल-सब्जियाँ और अन्न खाने को मिलते हैं। मदर डेरी का बासी, किंतु वैज्ञानिक ढंग से ताजा बनाकर दूध मिलता है, तो कहाँ रहेगा स्वास्थ्य? दूसरी ओर, जहाँ घर में सलेंडर ने गैस लीक की नहीं कि एक तो अग्नि देवता ने घर को स्वाहा कर दिया और कारखाने-मिल की गैस लीक हुई तो हजारों रोगी हो गए, अंधे हो गए, जीवन लीला खो बैठे। ‘भोपाल का गैस कांड’ आज भी हृदय में कंपन्न पैदा कर देता है।

विज्ञान के अनेक आविष्कारों ने औषध और शल्य चिकत्सा द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांति उत्पन्न की, किंतु जरा-सा इंजेक्शन गलत लगा और मानव परलोक पहुँचा। औषध ने जरा-सा रिएक्शन (प्रतिक्रिया) दिखाया नहीं, आदमी को बिना माँग रोग चिपटकर उसके स्वास्थ्य का दीवाला पीट देता है।

सृष्टि ही गुण-दोषमयी है, तो फिर विज्ञान इससे अछूता कैसे रह सकता है? पर यह सच है कि विज्ञान ने केवल मानव के अपितु पशु-पक्षी जगत के स्वास्थ्य को भी सुरक्षा, संवर्द्धना तथा सचेतना प्रदान की है। 20वीं शताब्दी के पाँचवें-छठे दशक तक आम आदमी की औसत उम्र 50-60 वर्ष होती थी, जबकि 21वीं सदी के प्रवेश में यह सीमा बढ़कर 70-80 पहुँच गई है। पहले पचास वर्ष का आदमी अपने को बूढ़ा कहता था और आज बुढ़ापा षष्टिपूर्ति के पश्चात् प्रारंभ होता है।

अर्केडियन फरार के शब्दों में- ‘विज्ञान ने अन्धों को आँखें दीं और बहरों को सुनने की शक्ति दी। उसने भय को कम कर दिया, पागलपन को वश में कर लिया। रोग को रौंद कर जीवन की दीर्घता प्रदान की।’

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Avinash Ranjan Gupta

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