आलोक धन्वा
जन्म : सन् 1948 ई. मुंगेर (बिहार)
प्रमुख रचनाएँ : पहली कविता जनता का आदमी, 1972 में प्रकाशित उसके बाद भागी हुई लड़कियाँ, ब्रूनो की बेटियाँ से प्रसिद्धि, दुनिया रोज़ बनती है (एकमात्र संग्रह)
प्रमुख सम्मान : राहुल सम्मान, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् का साहित्य सम्मान, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, पहल सम्मान।
जहाँ नदियाँ समुद्र से मिलती हैं वहाँ मेरा क्या है
मैं नहीं जानता लेकिन एक दिन जाना है उधर
सातवें-आठवें दशक में कवि आलोक धन्वा ने बहुत छोटी अवस्था में अपनी गिनी-चुनी कविताओं से अपार लोकप्रियता अर्जित की। सन् 1972-1973 में प्रकाशित इनकी आरंभिक कविताएँ हिंदी के अनेक गंभीर काव्यप्रेमियों को ज़बानी याद रही हैं। आलोचकों का तो मानना है कि उनकी कविताओं ने हिंदी कवियों और कविताओं को कितना प्रभावित किया, इसका मूल्यांकन अभी ठीक से हुआ नहीं है। इतनी व्यापक ख्याति के बावजूद या शायद उसी की वजह से बनी हुई अपेक्षाओं के दबाव के चलते, आलोक धन्वा ने कभी थोक के भाव में लेखन नहीं किया। सन् 72 से लेखन आरंभ करने के बाद उनका पहला और अभी तक का एकमात्र काव्य संग्रह सन् 98 में प्रकाशित हुआ। काव्य संग्रह के अलावा वे पिछले दो दशकों से देश के विभिन्न हिस्सों में सांस्कृतिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय रहे हैं। उन्होंने जमशेदपुर में अध्ययन-मंडलियों का संचालन किया और रंगकर्म तथा साहित्य पर कई राष्ट्रीय संस्थानों एवं विश्वविघालयों में अतिथि व्याख्याता के रूप में भागीदारी की है।
पाठ्यपुस्तक में ली गई कविता पतंग आलोक धन्वा के एकमात्र संग्रह का हिस्सा है। यह एक लंबी कविता है जिसके तीसरे भाग को पाठ्यपुस्तक में शामिल किया गया है। पतंग के बहाने इस कविता में बालसुलभ इच्छाओं एवं उमंगों का सुंदर चित्रण किया गया है। बाल क्रियाकलापों एवं प्रकृति में आए परिवर्तन को अभिव्यक्त करने के लिए सुंदर बिंबों का उपयोग किया गया है। पतंग बच्चों की उमंगों का रंग-बिरंगा सपना है। आसमान में उड़ती हुई पतंग ऊँचाइयों की वे हदें हैं, बालमन जिन्हें छूना चाहता है और उसके पार जाना चाहता है।
कविता धीरे-धीरे बिंबों की एक ऐसी नयी दुनिया में ले जाती है जहाँ शरद ऋतु का चमकीला इशारा है, जहाँ तितलियों की रंगीन दुनिया है, दिशाओं के मृदंग बजते हैं। जहाँ छतों के खतरनाक कोने से गिरने का भय है तो दूसरी ओर भय पर विजय पाते बच्चे हैं जो गिर-गिरकर सँभलते हैं और पृथ्वी का हर कोना खुद-ब-खुद उनके पास आ जाता है। वे हर बार नयी-नयी पतंगों को सबसे ऊँचा उड़ाने का हौसला लिए फिर-फिर भादो(अँधेरे)के बाद के शरद(उजाला)की प्रतीक्षा कर रहे हैं। क्या आप भी उनके साथ हैं?
‘पतंग’ कविता का सार
श्री आलोक धन्वा दवारा रचित ‘पतंग’ कविता उनके काव्य-संग्रह ‘दुनिया रोज बनती है’ में संकलित है। पतंग आलोक धन्वा की तीन हिस्सों में फैली हुई एक लंबी कविता है। परंतु उसका तीसरा हिस्सा ही पाठ्य क्रम में शामिल किया गया है। इस कविता में आया हुआ पतंग शब्द असल में बहुत सी बातों का प्रतीक है। वह कल्पना, उमंग, उत्साह, उड़ान और विकास का प्रतीक बनकर कविता में नये अर्थ रचता है। बिंबों और प्रतीक विधान से भी कविता समृद्ध है। इस कविता में कवि ने बाल-सुलभ इच्छाओं एवं उमंगों का सुंदर एवं मनोहारी चित्रण किया है। पतंग बच्चों की उमंगों का रंग-बिरंगा सपना है, जिसमें वे खो जाना चाहते हैं। आकाश में उड़ती हुई पतंग ऊँचाइयों की वे हदें हैं, जिन्हें बाल- मन छूना चाहता है और उसके पार जाना चाहता है।
‘पतंग’ कविता के मुख्य बिंदु-
इस कविता के माध्यम से कवि आलोक धन्वा ने बाल सुलभ इच्छाओं, क्रीडाओं तथा उमंगों के कोमल संसार का सुन्दर चित्रण किया है। कवि ने शरद का मानवीकरण किया है।
> भादो की अँधेरी रात का समय बीत चुका है और शरद आ गया है।
> शरद अँधेरी रातों वाले भादो माह के पुलों को पार करता हुआ आ गया है।
> शरद अपनी चमकीली साइकिल अर्थात चमकीली किरणों रूपी साइकिल को तेज़ चलाते
हुए, घंटी बजाकर बच्चों के झुंड को बुलाता है।
> शरद ऋतु का सवेरा खरगोश की लाल आँखों जैसा प्रतीत होता है।
> आसमान साफ़- मुलायम दिखाई देने लगा है। पतंग उड़ाने के लिए उपयुक्त है।
> पतले कागज़ और बाँस की पतली कमानी से बनी पतंग बालकों की बालसुलभ
इच्छाओं का प्रतीक है।
> बच्चे जन्म से कपास के समान कोमल भावनाएँ एवं लचीला शरीर लेकर आते हैं।
> पतंगों के लिए दौड़ते बच्चे सभी दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए प्रतीत होते हैं।
> बच्चे अपनी धुन में पतंग उड़ाते समय छतों के खतरनाक कोनों तक आ जाते हैं तो उन्हें उनके शरीर का रोमांच गिरने से बचाता है। उड़ती पतंगें मानो उन्हें थामे हुए रहती हैं।
‘पतंग’ कविता का शिल्प सौंदर्य-
> भाषा सरल, भावानुकूल साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
> मुक्त छंद है विभिन्न प्रतीकों और बिंबों का सुंदर प्रयोग हुआ है।
> प्राकृतिक ऋतु परिवर्तन का सजीव चित्रण, जिसके कारण मानवीकरण अलंकार की उपस्थिति है।
> नरम, बेचैन, महज, खतरनाक आदि उर्दू शब्दों का प्रयोग हुआ है।
> मृदंग की तरह दिशाओं को बजाना’ में श्रव्य बिंब, ‘बेचैन पैरों में गति बिंब और पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ’ में दृश्य बिंब का उत्कृष्ट प्रयोग हुआ है।
> ‘खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा में उपमा अलंकार, ज़ोर-ज़ोर में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार, गिरते हैं- बच जाते हैं में विरोधाभास अलंकार, सुनहले सूरज’ में अनुप्रास अलंकार तथा पृथ्वी और तेज़ चूमती हुई आती है में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग दर्शनीय है।
> छोटे-छोटे बच्चों की उमंग, आशा और बाल सुलभ चेष्टाओं का मनोहारी चित्रण हुआ है। साथ ही बालकों के साहसिक कार्यों का वर्णन भी मिलता है।
पतंग
सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादो गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके –
दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके
दुनिया का सबसे पतला कागज़ उड़ सके –
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके –
कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और
तितलियों की इतनी नाज़ुक दुनिया
जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग से अकसर
छतों के खतरनाक किनारों तक –
उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ़ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे
पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने रंध्रों के सहारे
अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
पृथ्वी और भी तेज़ घूमती हुई आती है
उनके बेचैन पैरों के पास।
शब्दार्थ
1. भादो– वर्षा ऋतु का एक मास
2. शरद– शीत ऋतु का पहला महीना
3. किलकारी– शिशु की आवाज़
4. कपास– रुई
5. बेसुध– मस्त, रमजाना
6. मृदंग– ढोलक की तरह एक वाद्ययंत्र
7. पेंग भरना– झूला झूलना
8. लचीला– Flexible
9. वेग– गति
10. रोमांचित–प्रसन्न
11. महज़– केवल
12. रंध्र– शरीर के रोएँ
13. बेचैन– अशांत
14. धागा- Thread
कविता के साथ
1. ‘सबसे तेज़ बौछारें गयीं, भादो गया’ के बाद प्रकृति में जो परिवर्तन कवि ने दिखाया है, उसका वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर – इस कविता में कवि ने प्राकृतिक वातावरण का सुंदर वर्णन किया है। भादों माह में तेज वर्षा होती है। इसमें बौछारें पड़ती हैं। बौछारों के समाप्त होने पर शरद का समय आता है। मौसम खुल जाता है। प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन दिखाई देते हैं-
1- सवेरे का सूरज खरगोश की आँखों जैसा लाल-लाल दिखाई देता है।
2- शरद ऋतु के आगमन से उमस समाप्त हो जाती है। ऐसा लगता है कि शरद अपनी साइकिल को तेज गति से चलाता हुआ आ रहा है।
3- वातावरण साफ़ व धुला हुआ-सा लगता है।
4- धूप चमकीली होती है।
5- फूलों पर तितलियाँ मँडराती दिखाई देती हैं।
2. सोचकर बताएँ कि पतंग के लिए सबसे हलकी और रंगीन चीज़, सबसे पतला कागज़, सबसे पतली कमानी जैसे विशेषणों का प्रयोग क्यों किया है?
उत्तर – पतंग के लिए सबसे हलकी और रंगीन चीज़, सबसे पतली कागज़, सबसे पतली कमानी जैसे विशेषणों का प्रयोग कर कवि पाठकों के मन में जिज्ञासा उत्पन्न करना चाहते हैं तथा पतंग की ओर आकर्षित करना चाहते हैं। ऐसा करने से पाठकगण भी पतंग उड़ाएँगे और पुलकित होंगे।
3. बिंब स्पष्ट करें –
• तेज़ बौछारें – दृश्य (गतिशील) बिंब
• सवेरा हुआ – दृश्य (स्थिर) बिंब
• खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा – दृश्य (स्थिर) बिंब
• पुलों को पार करते हुए – दृश्य (गतिशील) बिंब
• अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए- दृश्य (गतिशील) बिंब
• घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से – श्रव्य बिंब
• चमकीले इशारों से बुलाते हुए – दृश्य (गतिशील) बिंब
• आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए – स्पर्श बिंब
• पतंग ऊपर उठ सके – दृश्य (स्थिर) बिंब
4. जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास – कपास के बारे में सोचें कि कपास से बच्चों का क्या संबंध बन सकता है।
उत्तर – कपास की तरह ही बच्चे भी जन्म से ही कोमल और मुलायम होते हैं। बच्चों के सपने कपास से बनी डोर के सामान होते हैं, जो पतंग की तरह ऊँची उड़ान भरते हैं। बच्चे कपास की तरह कोमल आकर्षक और लचीले होते हैं लचीलेपन के कारण ही वो एक छत से दूसरी छत पर आसानी से छलाँग लगा लेते हैं साथ ही उनकी भावनाएँ भी कपास के सामान स्वच्छ और उज्ज्वल होती हैं यही कारण है कि इन दोनों में समानता बताई गई है।
5. पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं – बच्चों का उड़ान से कैसा संबंध बनता है?
उत्तर – पतंग बच्चों की कोमल भावनाओं का प्रतीक है इसलिए पतंग के साथ बच्चों का अटूट संबंध है। असीम आकाश में उड़ती हुई पतंग जैसे-जैसे हिलोरें लेती है वैसे-वैसे बच्चों का मन भी हिलोरें लेता हुआ प्रतीत होता है। बच्चे पतंग के साथ भावनात्मक व आत्मिक रूप से जुड़ जाते हैं। वे भी आकाश की ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं। इस प्रकार बच्चों का उड़ान से गहन संबंध है।
6. निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़ कर प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
(क) छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
(ख) अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं।
-दिशाओं को मृंदग की तरह बजाने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर – इसका तात्पर्य है कि पतंग उड़ाते समय बच्चे चहकते और किलकारियाँ मारते ऊँची दीवारों से छतों पर कूदते हैं और इधर-उधर भागते हैं तो उनकी पदचापों से एक मनोरम संगीत उत्पन्न होता है। यह संगीत मृदंग की ध्वनि की तरह लगता है। साथ ही बच्चों का शोर भी चारों दिशाओं में गूँजता है अर्थात् उनकी मधुर और उत्साह-भरी ध्वनि सभी दिशाओं में उनके उत्साह-भाव को व्यक्त करती है।
· जब पतंग सामने हो तो छतों पर दौड़ते हुए क्या आपको छत कठोर लगती है?
उत्तर – जब पतंग सामने हो तो छतों पर दौड़ते हुए वह कदापि कठोर नहीं लगती। उस समय तो बच्चों का मस्तिष्क केवल पतंग की ऊँचाइयों से ही जुड़ा रहता है। उनकी दृष्टि केवल पतंग पर ही टिकी रहती हैं और ऐसी स्थिति में उन्हें कोई भी कष्ट का अनुभव नहीं होता।
· खतरनाक परिस्थितियों का सामना करने के बाद आप दुनिया की चुनौतियों के सामने स्वयं को कैसा महसूस करते हैं?
उत्तर – खतरनाक परिस्थितियों का सामना करने के बाद दुनिया की चुनौतियों के सामने हम स्वयं को अधिक सक्षम और साहस से भरे हुए अनुभव करते हैं। हमारे मन से भय का भाव निकल जाता है और असीम उत्साह के साथ हम ऐसी परिस्थितियों से मुखातिब होते हैं।
कविता के आस-पास
1. आसमान में रंग—बिरंगी पतंगों को देखकर आपके मन में कैसे खयाल आते हैं? लिखिए
उत्तर – आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों को देखकर मेरे मन में अनेक ख्याल आते हैं जैसे कि काश! मैं पंछी बन स्वच्छंद नभ में उड़ता। काश! उस स्वच्छंद नभ से नीचे धरती की तरफ देख पाता। काश! मैं हवा बनकर प्रकृति का स्पर्श कर पाता।
2. रोमांचित शरीर का संगीत’ का जीवन के लय से क्या संबंध है?
उत्तर – जब हम किसी कार्य को करने में पूरे मग्न हो जाते हैं तब हमारा शरीर जैसे उस कार्य की लय में डूब जाता है, ऐसा प्रतीत होता है कि हमारी नाड़ियों का स्पंदन और काम में एक सुंदर ताल-मेल बैठ गया हो। इसीलिए कहा गया है – ‘रोमांचित शरीर का संगीत’।
3. महज़ एक धागे के सहारे, पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ’ उन्हें (बच्चों को) कैसे थाम लेती हैं? चर्चा करें।
उत्तर – पतंग बच्चों की कोमल भावनाओं से जुड़ी होती है। पतंग आकाश में उड़ती है, परंतु पतंग की ऊँचाई का नियंत्रण बच्चों के हाथ की डोर में होता है। आकाश में पतंग उड़ाते हुए बच्चे पतंग के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं। उड़ती पतंग ही बच्चों के मन में साहस और निडरता प्रदान करती है। पतंग की बढ़ती ऊँचाई से बाल-मन और अधिक ऊँचा उड़ने लगता है। उनका मन, तन और आत्मा पतंग के साथ-साथ हिलोरें लेने लगता है।
‘पतंग’ कविता से अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न
प्रश्न 1. पतंग उड़ाते समय बच्चों के रोमांचित शरीर का संगीत क्या करता है?
(क) उन्हें गिरने से बचाता है।
(ख) उन्हें नचाता है
(ग) सब बच्चों को बुलाता है
(घ) उन्हें डराता है
उत्तर – (क) उन्हें गिरने से बचाता है।
प्रश्न 2. पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे है’ से आशय है-
(क) उड़ान भरना
(ख) स्वप्न देखना
(ग) आकाश छू लेने का अहसास होना
(घ) पतंग उड़ने पर प्रसन्न होना
उत्तर – (ग) आकाश छू लेने का अहसास होना
प्रश्न 3. ‘रोमांचित शरीर का संगीत के जीवन की लय से क्या संबंध है?
उत्तर :- जब व्यक्त किसी कार्य को करने के लिए उत्साहित होता है तो उस कार्य में आने वाली सभी बाधाएँ आसानी से पार कर लेता है। व्यक्ति अपने जीवन में जितना रोमांचित होगा उतना ही कार्य के प्रति तन्मयता आती है। बच्चे भी पतंग उड़ाते समय बहुत उत्साहित और रोमांचित होते हैं इसी कारण छतों के किनारे से गिरने का डर उनको नही होता यदि व्यक्ति के जीवन में रोमांच भरा होता है तो उसके जीवन में उमंगो की एक लहर बनी होती है जो उसके जीवन को लय ताल प्रदान करती है और वो अपने जीवन के लक्ष्य आसानी से प्राप्त कर लेता है।
प्रश्न 4. पृथ्वी का प्रत्येक कोना बच्चों के पास स्वत: कैसे आ जाता है?
उत्तर :- जब बच्चे पतंग उड़ाते है तो वे सब कुछ भूल जाते हैं और वो चाहते हैं की उनकी पतंग सबसे ऊंची उड़े और पतंग उड़ाते वक़्त वो भूल जाते हैं की वो कहाँ भाग रहे हैं और पतंग की रंगीन दुनिया में खो जाते हैं, इसीलिए पृथ्वी का प्रत्येक कोना उनके लिए अपने आप सिमटता चला जाता है। इसी कारण से कहा गया है कि पृथ्वी का प्रत्येक कोना बच्चों के पास स्वतः आ जाता है।
प्रश्न 5- पतंग कविता में आए अलंकारों को स्पष्ट कीजिए।
1. उपमा खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा, मृदंग की तरह, डाल की तरह
2. मानवीकरण शरद आया पुलों को पार करते हुए, अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए
3. पुनरुक्तिप्रकाश घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से
4. अतिशयोक्ति दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके
दुनिया का सबसे पतला कागज़ उड़ सके-
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके-
प्रश्न 6- कविता में आए बिंबों को स्पष्ट कीजिए।
1. दृश्य बिंब (आँखों के सामने उभरने वाले) सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादो गया, खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा, शरद आया पुलों को पार करते हुए, अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए, चमकीली इशारों से बुलाते हुए, सुनहले सूरज के सामने आते हैं।
2. श्रव्य बिंब (सुनाई देने वाले)- घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से, दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए।
3. स्पर्श बिंब (महसूस करने वाले)- आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए, छतों को नरम बनाते हुए।
‘पतंग’ कविता से अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न
प्रश्न 1 : किन-किन शब्दों का प्रयोग करके कवि ने इस कविता को जीवंत बना दिया हैं?
उत्तर – तेज बौछारें गई – भादों गया
– नयी चमकीली तेज साइकिल चमकीले इशारे
– अपने साथ लाते हैं कपास छतों को भी नरम बनाते हुए
प्रश्न 2-: बच्चों के बारे में कवि ने क्या-क्या बताया है?
उत्तर -बच्चों के बारे में कवि बताता है कि वे कपास की तरह नरम व लचीले होते हैं। वे पतंग उड़ाते हैं तथा झुंड में रहकर सीटियाँ बजाते हैं। वे छतों पर बेसुध होकर दौड़ते हैं तथा गिरने पर भयभीत नहीं होते। वे पतंग के साथ मानो स्वयं भी उड़ने लगते हैं।
प्रश्न 3- शरद ऋतु और भादों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -भादों के महीने में काले-काले बादल घुमड़ते हैं और तेज बारिश होती है। बादलों के कारण अँधेरा-सा छाया रहता है। इस मौसम में जीवन रुक-सा जाता है। इसके विपरीत, शरद ऋतु में रोशनी बढ़ जाती है। मौसम साफ़ होता है, धूप चमकीली होती है और चारों तरफ उमंग का माहौल होता है।
प्रश्न 4- ‘किशोर और युवा वर्ग समाज के मार्गदर्शक हैं।’ ‘पतंग’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कवि ने ‘पतंग’ कविता में बच्चों के उल्लास व निभीकता को प्रकट किया है। यह बात सही है कि किशोर और युवा वर्ग उत्साह से परिपूर्ण होते हैं। किसी कार्य को वे एक धुन से करते हैं। उनके मन में अनेक कल्पनाएँ होती हैं। वे इन कल्पनाओं को साकार करने के लिए मेहनत करते हैं। समाज में विकास के लिए भी इसी एकाग्रता की जरूरत है। अत: किशोर व युवा वर्ग समाज के मार्गदर्शक हैं।
प्रश्न 6 : ‘पतंग’ कविता का प्रतिपाद्य बताइए।
उत्तर -इस कविता में कवि ने बालसुलभ इच्छाओं व उमंगों का सुंदर वर्णन किया है। पतंग बच्चों की उमंग व उल्लास का रंग-बिरंगा सपना है। शरद ऋतु में मौसम साफ़ हो जाता है। चमकीली धूप बच्चों को आकर्षित करती है। वे इस अच्छे मौसम में पतंगें उड़ाते हैं। आसमान में उड़ती हुई पतंगों को उनका बालमन छूना चाहता है। वे भय पर विजय पाकर गिर-गिर कर भी सँभलते रहते हैं। उनकी कल्पनाएँ पतंगों के सहारे आसमान को पार करना चाहती हैं। प्रकृति भी उनका सहयोग करती है, तितलियाँ उनके सपनों की रंगीनी को बढ़ाती हैं।
प्रश्न 7 : शरद ऋतु और भादों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – भादों के महीने में काले-काले बादल घुमड़ते हैं और तेज बारिश होती है। बादलों के कारण अँधेरा-सा छाया रहता है। इस मौसम में जीवन रुक-सा जाता है। इसके विपरीत, शरद ऋतु में रोशनी बढ़ जाती है। मौसम साफ़ होता है, धूप चमकीली होती है और चारों तरफ उमंग का माहौल होता है।
प्रश्न 8 : शरद का आगमन किस लिए होता है?
उत्तर – शरद का आगमन बच्चों की खुशियों के लिए होता है। वे पतंग उड़ाते हैं। वे दुनिया की सबसे पतली कमानी के साथ सबसे हलकी वस्तु को उड़ाना शुरू करते हैं।
प्रश्न 9 : बच्चों के बारे में कवि ने क्या-क्या बताया है?
उत्तर -बच्चों के बारे में कवि बताता है कि वे कपास की तरह नरम व लचीले होते हैं। वे पतंग उड़ाते हैं तथा झुंड में रहकर सीटियाँ बजाते हैं। वे छतों पर बेसुध होकर दौड़ते हैं तथा गिरने पर भयभीत नहीं होते। वे पतंग के साथ मानो स्वयं भी उड़ने लगते हैं।
प्रश्न 10: प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने ‘सबसे’ शब्द का प्रयोग कई बार किया हैं, क्या यह सार्थक हैं?
उत्तर – कवि ने हलकी, रंगीन चीज, कागज, पतली कमानी के लिए ‘सबसे’ शब्द का प्रयोग सार्थक ढंग से किया है। कवि ने यह बताने की कोशिश की है कि पतंग के निर्माण में हर चीज हलकी होती है क्योंकि वह तभी उड़ सकती है। इसके अतिरिक्त वह पतंग को विशिष्ट दर्जा भी देना चाहता है।
प्रश्न 11: ‘पतंग’ कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – श्री आलोक धन्वा द्वारा रचित कविता ‘पतंग’ में कवि ने बाल-सुलभ इच्छाओं एवं उमंगों का सुंदर व सजीव चित्रण किया है। उन्होंने बाल क्रियाकलापों एवं प्रकृति में आए परिवर्तनों को सहज भाव से अभिव्यक्त किया है। पतंग बच्चों की उमंगों का सपना है। आसमान में उड़ती हुई पतंगों को बालमन छूना चाहता है। वे भय पर विजय पाकर गिर-गिर कर भी सँभलते हैं। एक ओर शरद ऋतु का चमकीला संकेत है जहाँ तितलियों की रंगीन दुनिया है। तितलियाँ उनके सपनों की रंगीनी को बढ़ाती हैं। बच्चों की किलकारियों से दिशाएँ भी मृदंग के समान बजती हैं। पृथ्वी भी उनकी कोमलता को छूने हेतु स्वयं उनका स्पर्श करना चाहती है। वे हर बार नई-नई पतंगों को सबसे ऊँचा उड़ाने का साहस लिए अँधेरे अर्थात् भादों के बाद उजाले अर्थात् शरद की प्रतीक्षा करते हैं।
प्रश्न 12: आकाश को मुलायम कौन बनाता है और क्यों?
उत्तर: आकाश को मुलायम शरद ऋतु बनाती है। वह आकाश को इतना सुंदर और मुलायम बना देती है कि पतंग ऊपर उठ सके। पतंग जिसे दुनिया की सबसे हल्की और रंगीन वस्तु माना जाता है, वह इस असीम आकाश में उड़ सके। दुनिया का सबसे पतला कागज़ तथा बाँस की पतली कमानी आकाश में उड़ सके और इसके उड़ने के साथ ही चारों ओर का वातावरण बच्चों की सीटियों, किलकारियों और तितलियों की मधुर ध्वनि से गूँज उठे।