शमशेर बहादुर सिंह
जन्म : 13 जनवरी, सन् 1911 को देहरादून (उत्तर प्रदेश अब उत्तराखंड में)
प्रकाशित रचनाएँ : कुछ कविताएँ, कुछ और कविताएँ, चुका भी हूँ नहीं मैं, इतने पास अपने, बात बोलेगी, काल तुझसे होड़ है मेरी, ‘उर्दू-हिंदी कोश’ का संपादन
सम्मान : ‘साहित्य अकादेमी’ तथा ‘कबीर सम्मान’ सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित
निधन : सन् 1993, अहमदाबाद में
“तुमने ‘धरती’ का पद्य पढ़ा है? उसकी सहजता प्राण है।”
खुद को उर्दू और हिंदी का दोआब मानने वाले शमशेर की कविता एक संधिस्थल पर खड़ी है। यह संधि एक ओर साहित्य, चित्रकला और संगीत की है तो दूसरी ओर मूर्तता और अमूर्तता की तथा ऐंद्रिय और ऐंद्रियेतर की है।
विचारों के स्तर पर प्रगतिशील और शिल्प के स्तर पर प्रयोगधर्मी कवि शमशेर की पहचान एक बिंबधर्मी कवि के रूप में है। उनकी यह बिंबधर्मिता शब्दों से रंग, रेखा, स्वर और कूची की अद्भुत कशीदाकारी का माद्दा रखती है। उनका चित्रकार मन कलाओं के बीच की दूरी को न केवल पाटता है, बल्कि भाषातीत हो जाना चाहता है। उनकी मूल चिंता माध्यम का उपयोग करते हुए भी बंधन से परे जाने की है।
ओ माध्यम! क्षमा करना
कि मैं तुम्हारे पार जाना चाहता हूँ।
कथा और शिल्प दोनों ही स्तरों पर उनकी कविता का मिज़ाज अलग है। उर्दू शायरी के प्रभाव से संज्ञा और विशेषण से अधिक बल सर्वनामों, क्रियाओं, अव्ययों और मुहावरों को दिया है। उन्होंने खुद भी कुछ अच्छे शेर कहे हैं। सचेत इंद्रियों का यह कवि जब प्रेम, पीड़ा, संघर्ष और सृजन को गूँथकर कविता का महल बनाता है तो वह ठोस तो होता ही है अनुगूँजों से भी भरा होता है। वह पाठक को न केवल पढ़े जाने के लिए आमंत्रित करती है, बल्कि सुनने और देखने को भी।
प्रयोगवादी (1943 से प्रारंभ) कविता शिल्प संबंधी बहुत से प्रयोग लेकर आई। नए बिंब, नए प्रतीक, नए उपमान कविता के उपकरण बने। यहाँ तक कि पुराने उपमानों में भी नए अर्थ की चमक भरने का प्रयास प्रयोक्ता कवियों ने किया। अपना आस-पड़ोस कविता का हिस्सा बना। प्रकृति में होने वाला परिवर्तन मानवीय जीवन-चित्र बनकर अभिव्यक्त हुआ। प्रस्तुत कविता उषा सूर्योदय के ठीक पहले के पल-पल परिवर्तित प्रकृति का शब्द-चित्र है। शमशेर ऐसे बिंबधर्मी कवि हैं, जिन्होंने प्रकृति की गति को शब्दों में बाँधने का अद्भुत प्रयास किया है। यह कविता भी इसका उदाहरण प्रस्तुत करती है। कवि भोर के आसमान का मूकद्रष्टा नहीं है। वह भोर की आसमानी गति को धरती के जीवन भरे हलचल से जोड़ने वाला स्रष्टा भी है। इसीलिए वह सूर्योदय के साथ एक जीवंत परिवेश की कल्पना करता है जो गाँव की सुबह से जुड़ता है – वहाँ सिल है, राख से लीपा हुआ चौका है और है स्लेट की कालिमा पर चाक से रंग मलते अदृश्य बच्चों के नन्हे हाथ। यह एक ऐसे दिन की शुरूआत है, जहाँ रंग है, गति है और भविष्य की उजास है और है हर कालिमा को चीरकर आने का एहसास कराती उषा।
उषा (कविता)
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और…
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।
शब्दार्थ
1. भोर– सुबह से पहले का समय
2. चौका– रसोई बनाने का स्थान
3. सिल– मसाला पीसने वाला पत्थर
4. केसर–फूल का सुंगधित पदार्थ
5. नील जल– नीले रंग का पानी
6. गौर– गोरा
7. झिलमिल– चमकता हुआ
8. देह– शरीर
कविता की पृष्ठभूमि
इस कविता में गाँव में भोर के समय से सूर्योदय तक के समय का गतिशील चित्रण बड़े ही अच्छे-अच्छे उपमानों के प्रयोग से किया गया है। इस कविता का आद्योपांत अध्ययन करने के बाद पाठक भोर के नभ की सुंदरता का स्वयं अवलोकन करने के लिए लालायित हो जाता है।
कविता का परिचय :
‘उषा’ कविता हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध प्रगतिवादी कवि श्री शमशेर बहादुर जी की एक प्रसिद्ध रचना है। यह कविता उनके कविता संग्रह ‘दुनिया रोज बनती है’ काव्य संग्रह से लिया गया है जो उनके चित्रकार हृदय का परिचय कराती है। इसमें विभिन्न उपमानों और बिंबों के द्वारा उषाकाल के सौंदर्य का मनोहारी वर्णन किया गया है जिसमें आसमान विभिन्न रंगों (नीला, स्लेटी, केसरिया) में परिवर्तित होता दिखाई देता है। कवि ने इसे ही ‘उषाकाल का जादू’ कहा है। सूर्योदय के बाद आसमान का रंग-बिरंगा जादू अचानक समाप्त हो जाता है जिसे कवि ने ‘उषा के जादू का टूटना’ बताया है।
उपमानों का प्रयोग
आसमान में होने वाले विभिन्न रंगों के परिवर्तन को दर्शाने के लिए कवि ने निम्नलिखित उपमानों का प्रयोग किया है
नीले रंग का आसमान नीले शंख के समान
स्लेटी रंग का आसमान
राख़ से लीपे हुए चौके (रसोई) के समान
केसरिया रंग सिल (पत्थर का टुकड़ा) पर पीसे गए केसर के समान अथवा
काली स्लेट पर बिखरी हुई लाल रंग की खड़िया
कविता के साथ
1. कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उषा कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है?
उत्तर – कवि ने प्रकृति की गतिशीलता को शब्दों में बाँधने का अद्भुत और अद्वितीय प्रयास किया है। निम्नलिखित उपमानों में ग्रामीण क्षेत्रों के भोर से लेकर सूर्योदय तक की गतिशील झाँकी स्पष्ट दिखाई देती है –
– वहाँ नीला नभ है जो नीले शंख की तरह है या फिर राख से लीपे हुए चौके के समान है।
– सूर्य की पहली किरण जब प्रस्फुटित हुई तब आसमान स्लेट की कालिमा पर लाल चाक से घिस जाने जैसा है या फिर सिल पर लाल केसर के घिस जाने जैसा है।
यह एक ऐसे दिन की शुरुआत है, जहाँ रंग है, गति है और भविष्य की उजास है।
2. भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
नयी कविता में कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।
उत्तर – नई कविता में कोष्ठक, विराम-चिह्नों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। यह अतिरिक्त जानकारी है जिससे पाठकों को पंक्ति का महत्त्व, उसका सरल भाव बोधा ग्रहण करने मेन मदद मिलती है। राख से लीपा हुआ चौका में गीलापन स्वयं ही आ गया है परंतु अतिरिक्त जानकारी ‘अभी गीला पड़ा है’ से वह अधिक स्पष्ट हो जाता है।
आपकी रचना
अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त का शब्दचित्र खींचिए।
उत्तर – प्रातःकालीन सूर्य उदित हो रहा है जो ऐसा लगता हैं मानो अपने सुनहरे वस्त्र की रोशनी से आकाश और धरती दोनों को नवीन स्फूर्ति से भर दे रहा हो। सभी अपने दिन की शुरुआत नए जोश और उमंग के साथ करते हैं। धीरे-धीरे दिन आगे बढ़ता है सूर्यास्त के समय जैसे हमारी पोशाक अपनी रंगत कुछ खो देती है उसी प्रकार सूर्य हल्की लाल पोशाक पहनकर क्षितिज में विलीन होने के लिए तैयार हो जाता है। उसे देख सभी अपने दैनिक कार्य समाप्त कर अपने-अपने घरों की तरफ बढ़ने लगते हैं और एक नई सुबह का इंतज़ार करते हुए सोने की तैयारी करने लगते हैं।
आपसदारी
सूर्योदय का वर्णन लगभग सभी बड़े कवियों ने किया है। प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ और अज्ञेय की ‘बावरा अहेरी’ की पंक्तियाँ आगे बॉक्स में दी जा रही हैं। ‘उषा’ कविता के समानांतर इन कविताओं को पढ़ते हुए नीचे दिए गए बिंदुओं पर तीनों कविताओं का विश्लेषण कीजिए और यह भी बताइए कि कौन-सी कविता आपको ज़्यादा अच्छी लगी और क्यों?
● उपमान ● शब्दचयन ● परिवेश
बीती विभावरी जाग री!
अंबर पनघट में डुबो रही –
तारा-घट ऊषा नागरी।
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई –
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
अधरों में राग अमंद पिए,
अलकों में मलयज बंद किए –
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री।
– जयशंकर प्रसाद
भोर का बावरा अहेरी
पहले बिछाता है आलोक की
लाल-लाल कनियाँ
पर जब खींचता है जाल को
बाँध लेता है सभी को साथः
छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मँझोले परेवे, बड़े-बड़े पंखी
डैनों वाले डील वाले डौल के बेडौल
उड़ने जहाज़,
कलस-तिसूल वाले मंदिर-शिखर से ले
तारघर की नाटी मोटी चिपटी गोल धुस्सों वाली उपयोग-सुंदरी
बेपनाह काया कोः
गोधूली की धूल को, मोटरों के धुएँ को भी
पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक-खची तन्वि रूप-रेखा को
और दूर कचरा जलानेवाली कल की उद्दंड चिमनियों को, जो
धुआँ यों उगलती हैं मानो उसी मात्र से अहेरी को हरा देंगी।
– सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
उत्तर – मुझे इन दोनों कविताओं में से उपमान, शब्दचयन और परिवेश की दृष्टि से जयशंकर प्रसाद की ‘बीती विभावरी जाग री!’ कविता ज्यादा अच्छी लगी।
उपमान – ‘अम्बर-पनघट’, ‘तारा-घट’ एवं ‘ऊषा-नगरी’ को उपमेय उपमान माना गया है।
शब्दचयन – इस कविता में तत्सम और तद्भव शब्दों का सफल संयोजन देखने को मिलता है।
परिवेश – ‘भोर के सौंदर्य’ पर रचित एक कोमल रागात्मक कविता है, जिसमें कवि ने प्रकृति का सुंदर मानवीकरण किया है ।
‘उषा’ कविता से जुड़े अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न
पंक्तियों पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ
(अभी गीला पड़ा है)
चौका
बहुत काली सिल जरा-से लाल केसर से
कि जैसे धुल गयी हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो
और जादू टूटता
इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है !
1. ‘उषाकाल’ से क्या तात्पर्य है?
a. प्रातःकालीन नभ
b. लालिमायुक्त नभ
c. सूर्योदय के बाद का नभ
d. सूर्योदय के पूर्व का नभ
उत्तर – d. सूर्योदय के पूर्व का नभ
2. कवि ने सूर्योदय से पूर्व आकाश में हो रहे परिवर्तनों को किस रूप में देखा है?
a. उषाकालीन नभ में नीले शंख समान पवित्रता होती है।
b. आसमान में लीपे गए चौके के समान नमी रहती है।
c. आसमान में केसर के समान लालिमा रहती है।
d. उपरोक्त सभी
उत्तर – d. उपरोक्त सभी
3.‘अभी गीला पड़ा है’ पंक्ति द्वारा कवि क्या भाव व्यक्त करना चाहते हैं?
a. भोर के नभ में सजलता का गुण विद्यमान है।
b. आसमान बारिश की नमी के कारण भीगा है।
c. नभ ताजगी और पवित्रता का द्योतक है।
d. आसमान नमी से धुला हुआ प्रतीत होता है।
उत्तर – c. नभ ताजगी और पवित्रता का द्योतक है।
4. उषाकालीन नभ के सौंदर्य को दर्शाने के लिए कवि ने नीला शंख, राख से लीपा चौका, सिल पर बिखरा केसर जैसे उपमानों का प्रयोग क्यों किया होगा?
a. कवि को रंगों से प्रेम है
b. नभ के बदलते रंगों का परिचय कराने के लिए
c. कवि को यह उपमान प्रिय हैं
d. उषाकालीन नभ के पल-पल बदलते सौंदर्य को बताने के लिए
उत्तर – d. उषाकालीन नभ के पल-पल बदलते सौंदर्य को बताने के लिए
5. ‘उषा’ कविता प्रकृति का _______ चित्रण प्रस्तुत करती है।
a. गतिशील
b. परिवर्तनशील
c. नवीन
d. प्रगतिशील
उत्तर – a. गतिशील
6. उषा का जादू कब समाप्त हो जाता है?
a. नीले जल में किसी की गौरवर्ण परछाई दिखने पर
b. नभ के बदलते रंगों में कोई नया परिवर्तन न होने पर
c. सूर्य का प्रकाश नभ में भर जाने पर
d. आसमान में बादल छा जाने पर
उत्तर – c. सूर्य का प्रकाश नभ में भर जाने पर
7. ‘स्लेट पर या किसी ने, पंक्ति किस बदलाव का चित्रण करती है?
a. बच्चे द्वारा स्लेट पर खड़िया फैलाने की
b. काली रंग की स्लेट पर लाल खड़िया का सौंदर्य दिखने की
c. सूर्य की लालिमा क्षितिज पर बिखरने की
d. सूर्य का प्रकाश नील जल में भर जाने की
उत्तर – c. सूर्य की लालिमा क्षितिज पर बिखरने की
8. ‘बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो पंक्ति में अलंकार होगा –
a. उपमा
b. उत्प्रेक्षा
c. मानवीकरण
d. रूपक
उत्तर – b. उत्प्रेक्षा
‘उषा’ कविता से जुड़े अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न
प्रश्न – 1. शमशेर बहादुर की कविता गाँव की सुबह का जीवंत गतिशील चित्रण है, पुष्टि कीजिए।
उत्तर – उषा कविता में कवि ने जिन उपमानों का प्रयोग किया है उनमें से अधिकांशतः ग्रामीण जीवन का हिस्सा है, जैसे
• राख़ से लीपा हुआ चौका ग्रामीण परिवेश में महिलाएँ भोजन पकाने के बाद चौके को स्वच्छ करने के लिए उसकी राख से लिपाई करती है जो काफी समय तक भीगा रहता है।
• काली सिल – सिल अर्थात् पत्थर का टुकड़ा जो प्रायः काले या गहरे रंग का होता है। इस पर महिलाएँ अनाज या मसाले पीसकर भोजन तैयार करती हैं।
• काली स्लेट और खड़िया स्लेट और खड़िया जैसी वस्तुओं का प्रयोग भी ग्रामीण जीवन में अधिक दिखाई देता है। नन्हें बालक स्लेट और खड़िया द्वारा ही लिखना पढ़ना सीखते हैं।
उपरोक्त तीनों उपमानों के आधार पर कहा जा सकता है कि ‘उषा’ कविता गाँव की सुबह का जीवंत गतिशील चित्रण है।
प्रश्न – 2. ‘उषा’ कविता के आधार पर उस जादू को स्पष्ट कीजिए जो सूर्योदय के समाप्त हो जाता है?
अथवा
सूर्योदय होते ही उषा का जादू कैसे टूटने लगता है?
अथवा
सूर्योदय के साथ उषाकाल का कौन-सा जादू टूटने लगता है?
उत्तर – उषाकालीन नभ में सूर्योदय के पूर्व अलग-अलग रंगों का परिवर्तन दिखाई दे रहा था जो किसी जादुई सम्मोहन जैसा था। सूर्योदय के बाद आसमान सूर्य की किरणों से भर जाता हैं। इसके परिणामस्वरूप आसमान का नीला, स्लेटी और केसरिया रंग अचानक लुप्त हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे सूर्य ने उषाकाल का रंग-बिरंगा जादुई सौंदर्य समाप्त कर दिया हो। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सूर्योदय होने पर उषा का जादू टूट जाता है।
प्रश्न – 3. ‘उषा’ कविता में किन उपमानों का प्रयोग हुआ है, इससे कविता के सौंदर्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर – उषाकाल के समय आसमान कई रंगों में बदलता है जिसके लिए कवि ने क्रमशः नीलिमा युक्त आसमान के लिए नीला शंख, स्लेटी रंग के आसमान के लिए राख़ से लीपा चौका और अंत में केसरिया रंग के लिए सिल पर बिखरा केसर/ स्लेट पर बिखरी खड़िया आदि उपमानों का प्रयोग किया है।
प्रश्न – 4. उषाकाल का जादू किसे कहा गया है?
उत्तर – प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व आसमान में कई परिवर्तन दिखाई देते हैं जैसे आसमान का गहरा नीला रंग उसके कुछ समय बाद स्लेटी रंग और अंत में केसरिया रंग। आसमान में इस तरह कई रंगों का आना और फिर लुप्त हो जाना किसी जादू जैसा प्रतीत होता है।
प्रश्न – 5. प्रातः काल के नभ की तुलना नीले शंख से किए जाने का क्या कारण होगा?
उत्तर – रात्रि के समाप्त होने के बाद धीरे-धीरे आसमान में बदलाव आता है। वह नीले रंग का दिखाई देता है। कवि ने इसे नीले शंख जैसा बताया है। जिस प्रकार नीलशंख की ध्वनि नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है उसी तरह प्रातः काल की यह बेला नकारात्मकता का नाश करके एक नई सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।
प्रश्न – 6. उषाकाल के पल-पल परिवर्तित सौंदर्य की क्या विशेषता है?
उत्तर – उषाकाल एक प्राकृतिक घटना है जो परिवर्तन का सूचक है। यह रात्रि के समापन से प्रातः सूर्योदय होने तक दिखाई देता है। रात्रि के अंधकार के बाद आसमान धीरे-धीरे कई रंगों में परिवर्तित होकर कभी नीला कभी स्लेटी और कभी केसरिया रंग का दिखाई देता है। आसमान में रंगों का इस प्रकार आना और फिर लुप्त हो जाना अद्भुत और जादुई लगता है। इस सौंदर्य की विशेषता है कि इसमें जीवंतता और गति है।