सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
जन्म : सन् 1899, महिषादल, (बंगाल के मेदिनीपुर ज़िले में) पारिवारिक गाँव-गढ़ाकोला, (उन्नाव, उत्तर प्रदेश)
प्रमुख रचनाएँ : अनामिका, परिमल, गीतिका, बेला, नए पत्ते, अणिमा, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता (कविता संग्रह); चतुरी चमार, प्रभावती, बिल्लेसुर बकरिहा, चोटी की पकड़, काले कारनामे (गघ); आठ खंडों में ‘निराला रचनावली’ प्रकाशित। समन्वय, मतवाला पत्रिका का संपादन
निधन : सन् 1961, (इलाहाबाद में)
नव गति नव लय ताल छंद नव / नवल कंठ नव जलद मंद रव /
नव नभ के नव विहग वृंद को / नव पर नव स्वर दे।
कविता को नया स्वर देने वाले निराला छायावाद के ऐसे कवि हैं जो एक ओर कबीर की परंपरा से जुड़ते हैं तो दूसरी ओर समकालीन कवियों के प्रेरणा स्रोत भी हैं। उनका यह विस्तृत काव्य-संसार अपने भीतर संघर्ष और जीवन, क्रांति और निर्माण, ओज और माधुर्य, आशा और निराशा के द्वंद्व को कुछ इस तरह समेटे हुए है कि वह किसी सीमा में बँध नहीं पाता। उनका यह निर्बंध और उदात्त काव्य-व्यक्तित्व कविता और जीवन में फाँक नहीं रखता। वे आपस में घुले-मिले हैं। उल्लास-शोक, राग-विराग, उत्थान-पतन, अंधकार-प्रकाश का सजीव कोलाज है उनकी कविता। जब वे मुक्त छंद की बात करते हैं तो केवल छंद, रूढ़ियों आदि के बंधन को ही नहीं तोड़ते बल्कि काव्य विषय और युग की सीमाओं को भी अतिक्रमित करते हैं।
विषयों और भावों की तरह भाषा की दृष्टि से भी निराला की कविता के कई रंग हैं। एक तरफ़ तत्सम सामासिक पदावली और ध्वन्यात्मक बिंबों से युक्त राम की शक्ति पूजा और कठिन छंद-साधना का प्रतिमान तुलसीदास है, तो दूसरी तरफ़ देशी टटके शब्दों का सोंधापन लिए कुकुरमुत्ता, रानी और कानी, महँगू महँगा रहा जैसी कविताएँ हैं।
धिक जीवन जो / पाता ही आया विरोध, कहने वाले निराला उत्कट आत्मशक्ति और अद्भुत जिजीविषा के कवि हैं, जो हार नहीं मानते और निराशा के क्षणों में शक्ति की मौलिक कल्पना कर शक्ति का साधन जुटाते हैं।
इसीलिए इस शक्तिसाध्य कवि निराला को वर्षा ऋतु अधिक आकृष्ट करती है क्योंकि बादल के भीतर सृजन और ध्वंस की ताकत एक साथ समाहित है। बादल उन्हें प्रिय है क्योंकि स्वयं उनका व्यक्तित्व बादल के स्वभाव के करीब है। बादल किसान के लिए उल्लास एवं निर्माण का तो मज़दूर के संदर्भ में क्रांति एवं बदलाव का अग्रदूत है।
‘बादल राग’ कविता का सामान्य परिचय
बादल राग कविता अनामिका में छह खंडों में प्रकाशित है। यहाँ उसका छठा खंड लिया गया है। लघुमानव (आम आदमी) के दुख से त्रस्त कवि यहाँ बादल का आह्वान क्रांति के रूप में कर रहा है क्योंकि विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते। किसान मज़दूर की आकांक्षाएँ बादल को नव-निर्माण के राग के रूप पुकार रही हैं। क्रांति हमेशा वंचितों का प्रतिनिधित्व करती है – इस अर्थ में भी छोटे को देखा जा सकता है। अट्टालिका नहीं है रे में भी वंचितों की पक्षधरता की अनुगूँज स्पष्ट है। बादलों के अंग-अंग में बिजलियाँ सोई हैं, वज्रपात से उनके शरीर आहत भी हों तो भी हिम्मत नहीं हारते, बार-बार गिरकर उठते हैं। गगन स्पर्शी, स्पर्द्धा-धीर ये बादल दरअसल वीरों का एक प्रमत्त दल दिखाई देते हैं। चूँकि ये विप्लव के बादल हैं, इसलिए गर्जन-तर्जन अमोघ हैं। गरमी से तपी-झुलसी धरती पर क्रांति के संदेश की तरह बादल आए हैं। हर तरफ़ सब कुछ रूखा-सूखा और मुरझाया-सा है। अकाल की चिंता से व्याकुल किसान ‘हाड़-मात्र’ ही रह गए हैं – जीर्ण शरीर, त्रस्त नयनमुख । पूरी धरती का हृदय दग्ध है – ऐसे में बादल का प्रकट होना, प्रकृति में और जगत में, कैसे परिवर्तन घटित कर रहा है – कविता इन बिंबों के माध्यम से इसका अत्यंत सजल और व्यंजक संकेत करती है। धरती के भीतर सोए अंकुर नवजीवन की आशा में सिर ऊँचा करके बादल की उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं। क्रांति जो हरियाली लाएगी, उसके सबसे उत्फुल्ल धारक नए पौधे, छोटे बच्चे ही होंगे। समीर-सागर के विराट बिंब से निराला की कविता शुरू होती है। यह इकलौता बिंब इतना विराट और व्यंजक है कि निराला का पूरा काव्य-व्यक्तित्व इसमें उमड़ता-घुमड़ता दिखाई देता है। इस तरह यह कविता लघुमानव की खुशहाली का राग बन गई है। इसीलिए बादल राग एक ओर जीवन निर्माण के नए राग का सूचक है तो दूसरी ओर उस भैरव संगीत का, जो नव निर्माण का कारण बनता है।
बादल राग
तिरती है समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया –
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया –
यह तेरी रण-तरी
भरी आकांक्षाओं से,
घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!
फिर-फिर
बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा धीर।
हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार –
शस्य अपार,
हिल-हिल
खिल-खिल,
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।
अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन,
क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से
सदा छलकता नीर,
रोग-शोक में भी हँसता है
शैशव का सुकुमार शरीर।
रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष
अंगना-अंग से लिपटे भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धनी, वज्र-गर्जन से बादल!
त्रस्त – नयन मुख ढाँप रहे हैं।
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
ड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार!
शब्दार्थ
1. तिरती- तैरती
2. समीर- वायु
3. अस्थिर- क्षणिक
4. दग्ध- जला हुआ
5. निर्दय- कठोर
6. विप्लव- विनाश
7. प्लावित- डूबा हुआ
8. रण- युद्ध
9. तरी- नाव
10. भेरी- नगाड़ा
11. सुप्त- सोया हुआ
12. अंकुर- बीज
13. उर- ह्रदय
14. ताकना- देखना
15. वर्षण- बारिश होना
16. मूसलधार- ज़ोरों की बारिश
17. शापित- जिसे अभिशाप दिया गया हो
18. घोर- भयंकर
19. उन्नत- विकसित
20. लघुभार- हलके
21. अपार- बहुत अधिक
22. शस्य-फसल
23. स्पर्धा- आगे बढ़ने की होड़
24. क्षत-विक्षत- घायल
25. अचल- अडिग, पहाड़
26. अशनि-पात- बिजली का गिरना
27. अट्टालिका- महल
28. आतंक-भवन- भय का निवास स्थान
29. पंक- कीचड़
30. प्लावन- बाढ़
31. क्षुद्र- लघु, छोटा
32. प्रफुल्ल- प्रसन्न
33. जलज- कमल
34. नीर- पानी
35. शोक- दुख
36. शैशव- बचपन
37. रुद्ध- रुकहुआ
38. त्रस्त- भयभीत, वंचित
39. अंगना- पत्नी
40. अंक- गोद, संख्या
41. कोष- खज़ाना
42. तोष- संतोष
43. वज्र- बिजली
44. सुकुमार- कोमल
45. जीर्ण-पुराण, फटा हुआ
46. बाहु- भुजा
47. शीर्ण- कमज़ोर
48. कृषक- किसान
49. अधीर- व्याकुल
50. सार- प्राण
51. हाड़-मात्र- हड्डियों का ढाँचा
52. पारावार- समुद्र
कविता का सारांश :
‘बादलराग’ कविता प्रसिद्ध छायावादी कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी द्वारा रचित है। यह कविता उनके प्रसिद्ध काव्य संग्रह ‘अनामिका’ से ली गई है। वे बादलों को विप्लव और क्रांति का प्रतीक मानकर उनका आह्वान करते हैं। क्रांति द्वारा ही अन्याय और शोषण का अंत किया जा सकता है।
जब धरती पर ग्रीष्म ऋतु अपने भीषण और चरम रूप में होती है तब पौधों वनस्पतियों के साथ-साथ जीव जंतुओं के प्राणों पर संकट छा जाता है। पानी की कमी से वे त्राहि-त्राहि करने लगते हैं। ऐसे में क्रांति के प्रतीक बादलों का आगमन होता है जो उनके जीवन के साथ-साथ प्रकृति में भी एक नया बदलाव लाता है। बादल किसी क्रांतिकारी की भाँति आकर धरती से शोषण समाप्त करता है और सभी को नवजीवन प्रदान करता हैं। जब भीषण गर्मी पूरी धरती को अपने ताप से झुलसाने लगती है तब अनजान दिशाओं से बादल किसी योद्धा की भाँति आकर पूरे आकाश में छा जाते हैं, उनकी कड़कदार आवाज भेरी गर्जना जैसी लगती है। उनके इस रूप को देखकर धरती के नन्हें-नन्हें पौधे और गरीब किसान राहत की साँस लेते हैं। वे आशा भरी दृष्टि से बादलों की ओर देखने लगते हैं।
एक ओर बादलों का आगमन जहाँ भीषण गर्मी की मार झेल रहे शोषितों और वंचितों को न्याय दिलाता है तो वहीं दूसरी तरफ वह गर्मी के मौसम के लिए विनाश का रूप लेकर आता है। गरीब और कमजोर वर्ग के लिए बादलों का आगमन किसी मंगल उत्सव से कम नहीं। इसलिए वह सदा इन बादलों की प्रतीक्षा करता है।
‘बादलराग’ कविता एक ओर प्रकृति में बदलाव की बात करती है तो दूसरी ओर सामाजिक बदलाव के लिए क्रांति को आवश्यक मानती है। वर्षों से शोषण की मार झेल रहे पीड़ितों को राहत मिलती है। वे खुलकर अपने अधिकारों के साथ जी पाते हैं।
कविता में आए प्रतीकात्मक शब्द
बादल – क्रांतिकारी
अंकुर, छोटे पौधे, जलज, नन्हें शिशु – समाज का दबा कुचला, वंचित (सर्वहारा वर्ग)
अचल – समाज का ताकतवर वर्ग (पूँजीपति)
पंक – सामाजिक बुराई
विप्लव – क्रांति
कविता के साथ
1. ‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया’ पंक्ति में दुख की छाया किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर – ‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया’ पंक्ति में ‘दुख की छाया’ मनुष्य जीवन में आने वाले दुखों, कष्टों, मुसीबतों एवं प्रतिकूल परिस्थितियों को कहा गया है। ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि सुख-दुख मानव-जीवन के दो पक्ष हैं, जो जीवनभर आते-जाते रहते हैं और दोनों ही अस्थिर और अस्थायी हैं।
2. अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया गया है?
उत्तर – ‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ पंक्ति में पूँजीपति या शोषकवर्ग या धनी वर्ग के लोगों की ओर संकेत किया गया है। ये धनी वर्ग के लोग क्रांति के दूत बादल की विद्रोहपूर्ण बिजली गिरने से उन्नति के शिखर से पृथ्वी तल पर गिर जाते हैं। शोषण से एकत्रित हुई इनकी उन्नति के आधार निर्मूल हो जाते हैं।
3. विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते पंक्ति में विप्लव-रव से क्या तात्पर्य है? छोटे ही हैं शोभा पाते ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर – ‘विप्लव-रव’ से तात्पर्य है – क्रांति के विद्रोहपूर्ण शब्दों या गर्जना से। यह ऐसे लोगों की गर्जना या स्वर है जो सदियों से पूँजीपति वर्ग के शोषण का शिकार होकर टुकड़ों में तथा दयनीय जीवन जी रहे हैं। ‘छोटे ही हैं शोभा पाते’ ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि क्रांति का विनाशकारी प्रभाव सदा उच्च वर्ग के लोगों पर ही होता है। इस विद्रोह का निम्न वर्ग के लोगों पर कोई विनाशकारी प्रभाव नहीं होता। शोषक वर्ग तो क्रांति के शब्दों से ही भयभीत हो उठता है लेकिन छोटे अर्थात् जनसामान्य वर्ग के लोग प्रसन्न हो उठते हैं। वे जीवन में शोषण की चक्की से निकलकर समृद्धि प्राप्त करते हैं।
4. बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती है?
उत्तर – महाकवि निराला द्वारा रचित ‘बादल राग’ एक प्रतीकात्मक कविता है, जिसमें कवि ने बादलों का क्रांति के रूप में आह्वान किया है। इस कविता में बादलों के आगमन से पृथ्वी के गर्भ में सोए हुए अंकुर अंकुरित हो उठते हैं। वे अपने मन में नवजीवन का संचार कर अनेक आशाओं के साथ बादलों की ओर देखते हैं। बादलों की घनघोर गर्जना से संपूर्ण संसार भयभीत हो उठता है। उन्नति के शिखर पर पहुँचे शोषक वर्ग रूपी सैंकड़ों वीर पृथ्वी पर आ गिरते हैं। उच्च वर्ग के लोग घायल होकर धराशायी हो जाते हैं। लेकिन शोषित वर्ग के प्रतीक छोटे भारवाले छोटे-छोटे पौधे हँसते-मुस्कुराते रहते हैं। वे अपार हरियाली से भरकर, हिल-हिलकर तथा खिलखिलाते हुए हाथ हिलाते रहते हैं।
व्याख्या कीजिए
1. तिरती है समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया –
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया –
उत्तर –
संदर्भ – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित ‘बादल राग’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी हैं।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने बादल को विप्लव और क्रांति का प्रतीक मानकर उसका आह्वान किया है।
व्याख्या- कवि बादल को संबोधित करते हुए कहता है कि हे क्रांति के दूत रूपी बादल! जिस प्रकार वायु सागर पर तैरती रहती है। जैसे मानवीय जीवन में अस्थिर सुखों पर दुखों की छाया मँडराती रहती है। ठीक उसी प्रकार संसार के दग्ध हृदय पर तेरी कठोर क्रांतिरूपी माया छाई हुई है अर्थात् मानव जीवन में सुखों पर सदैव दुख रूपी बादल मँडराते रहते हैं। वे कभी भी स्थिर नहीं रहते। संसार के दुख से दुखी और जले हुए हृदय पर कठोर क्रांति का मायावी विस्तार फैला हुआ है। जैसे क्रांति संसार के शोषण और दुखों को समाप्त कर सुख और अमन के वातावरण की सृष्टि कर देती है, उसी प्रकार क्रांति का प्रतीक बादल गर्मियों की प्रचंड गर्मी से परेशान और दुखी संसार को नवीन सुख और आनंद का संदेश देने आता है।
विशेष – बादल को क्रांतिदूत के रूप में चित्रित किया गया है।
– तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी-बोली है।
– समीर-सागर’, ‘दुख की छाया’ में रूपक अलंकार है।
– वीर रस का प्रयोग है।
– मुक्तक छंद है।
2. अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन
उत्तर –
संदर्भ- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित ‘बादल राग’ नामक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी हैं।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने पूँजीपतियों के विलासी जीवन पर कटाक्ष किया है। उनका कहना है कि क्रांति का प्रभाव सदा शोषक या पूँजीपति वर्ग पर होता है। क्रांति ही शोषक-शोषित के भेदभाव को मिटा सकती है।
व्याख्या- कवि क्रांति के बादल का आह्वान करते हुए कहता है कि हे क्रांति के दूत बादल! पूँजीपतियों के ये ऊँचे-ऊँचे विशाल भवन तेरी क्रांति से ऐशो-आराम के महल नहीं रह गए हैं बल्कि यह तो गरीबों को आतंकित करने वाले भवन हैं। तुम्हारी क्रांतिपूर्ण गर्जना को सुनकर ये पूँजीपति लोग अपने भवनों में भी भयभीत हो रहे हैं। इन्हें अब यह डर रहता है कि क्रांति की प्रलयकारी गर्जना न जाने कब इन्हें मिटा दे। जिस प्रकार बाढ़ का विनाशकारी प्रभाव सदैव कीचड़ पर होता है, उसी प्रकार क्रांति का विनाशकारी प्रभाव भी बुराई रूपी कीचड़ अर्थात पूँजीपति वर्ग के शोषकों पर ही होता है।
विशेष – कवि ने निम्न वर्ग के प्रति सहानुभूति एवं शोषक वर्ग के प्रति घृणा व्यक्त की है।
– भाषा खड़ी बोली है जिसमें तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।
– प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग है।
– ‘पंक पर’ में अनुप्रास अलंकार है।
– मुक्तक छंद है।
कला की बात
1. पूरी कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। आपको प्रकृति का कौन-सा मानवीय रूप पसंद आया और क्यों?
उत्तर – मुझे प्रकृति का हँसते हुए निर्धन वर्ग का मानवीय रूप पसंद आया क्योंकि समाज में सदा से उच्च वर्ग या पूँजीपति वर्ग के शोषण के कारण निर्धन वर्ग दबता रहा है। शोषण की पीड़ा के कारण वह तो हँसना ही भूल गया है। लेकिन आज क्रांति के कारण उसे अपने शोषण का अंत दिखाई दे रहा है।
2. कविता में रूपक अलंकार का प्रयोग कहाँ-कहाँ हुआ है? संबंधित वाक्यांश को छाँटकर लिखिए।
उत्तर – कविता में रूपक अलंकार का प्रयोग निम्नलिखित वाक्यांशों में हुआ है –
• तिरती है समीर-सागर पर
• अस्थिर सुख पर दुःख की छाया
• यह तेरी रण-तरी
• भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
• ऐ विप्लव के बादल!
• ऐ जीवन के पारावार
3. इस कविता में बादल के लिए ऐ विप्लव के वीर!, ऐ जीवन के पारावार! जैसे संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। बादल राग कविता के शेष पाँच खंडों में भी कई संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। जैसे – अरे वर्ष के हर्ष!, मेरे पागल बादल!, ऐ निर्बंध!, ऐ स्वच्छंद!, ऐ उद्दाम!, ऐ सम्राट!, ऐ विप्लव के प्लावन!, ऐ अनंत के चंचल शिशु सुकुमार! उपर्युक्त संबोधनों की व्याख्या करें तथा बताएँ कि बादल के लिए इन संबोधनों का क्या औचित्य है?
उत्तर – कवि इन संबंधों द्वारा कविता की सार्थकता को बढ़ाना चाहते हैं। बादलों के लिए किए संबोधनों की व्याख्या इस प्रकार है –
अरे वर्ष के हर्ष! खुशी का प्रतीक
मेरे पागल बादल! मदमस्ती का प्रतीक
ऐ निर्बंध! बंधनहीन
ऐ स्वच्छंद! स्वतंत्रता से घूमने वाले
ऐ उद्दाम! भयहीन
ऐ सम्राट! सर्वशक्तिशाली
ऐ विप्लव के प्लावन! प्रलय या क्रांति
ऐ अनंत के चंचल शिशु सुकुमार! बच्चों के समान चंचल
4. कवि बादलों को किस रूप में देखता है? कालिदास ने मेघदूत काव्य में मेघों को दूत के रूप में देखा। आप अपना कोई काल्पनिक बिंब दीजिए।
उत्तर – कवि बादलों को क्रांति के प्रतीक के रूप में देखता है। मैं बादल को किसानों के मसीहा के रूप में देखता हूँ।
काल्पनिक बिंब –
जब आएगा बादल नभ में
तब आएगा जीवन सब में
बूँद- बूँद को सब कोई तरसे
न जाने जल कब बरसे
लेकिन बारिश होगी जिस दिन
होगी खुशियाँ हर ओर, हर ओर
5. कविता को प्रभावी बनाने के लिए कवि विशेषणों का सायास प्रयोग करता है जैसे- अस्थिर सुख। सुख के साथ अस्थिर विशेषण के प्रयोग ने सुख के अर्थ में विशेष प्रभाव पैदा कर दिया है। ऐसे अन्य विशेषणों को कविता से छाँटकर लिखें तथा बताएँ कि ऐसे शब्द-पदों के प्रयोग से कविता के अर्थ में क्या विशेष प्रभाव पैदा हुआ है?
उत्तर – कवि ने कविता में निम्नलिखित विशेषणों का प्रयोग किया है –
निर्दय विप्लव – विप्लव (विनाश) के साथ निर्दय विशेषण लगने से विनाश और अधिक क्रूर हो गया है।
दग्ध हृदय – दुख की अधिकता व संतपत्ता हेतु दग्ध विशेषण।
सुप्त अंकुर – सुप्त विशेषण अंकुरों की मिट्टी में दबी हुई स्थिति का घोतक है।
गगन-स्पर्शी – बादलों की अत्यधिक ऊँचाई बताने हेतु गगन।
जीर्ण बाहु – भुजाओं की दुर्बलता।
रुद्ध कोष – भरे हुए खजानों हेतु।
प्रफुल्ल जलज – कमल की खिलावट।
‘बादल राग’ कविता से अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न
पंक्तियों पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न :
काव्यांश – 01
तिरती है समीर सागर पर
अस्थिर सुख पर दुःख
जग के दग्ध हृदय पर
की छाया
निर्दय विप्लव की प्लावित माया
यह तेरी रण-तरी
भरी आकांक्षाओं से,
घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर,
उर में पृथ्वी के आशाओं से
नवजीवन की, ऊंचा कर सिर
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल !
1. अस्थिर सुख पर दुःख की छाया किसे बताया गया है?
a. हवा को
b. बादलों को
c. सागर को
d. तेज धूप को
उत्तर – b. बादलों को
2. बादलों के आगमन का वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
a. मौसम सुहाना हो रहा है।
b. मौसम बिगड़ रहा है।
c. मौसम उदासीन हो रहा है।
d. मौसम में क्रांतिकारी बदलाव हो रहा है।
उत्तर – d. मौसम में क्रांतिकारी बदलाव हो रहा है।
3. बादलों को विप्लव का रूप क्यों माना गया है?
a. वह मौसम को बदलने की सामर्थ्य रखता है
b. वह तेज गर्जन-तर्जन के साथ वर्षा करता है
c. वह बिजली गिराता है
d. उपरोक्त सभी
उत्तर – d. उपरोक्त सभी
4. सुप्त अंकुर के आशावान होने का क्या कारण है?
a. बादलों के आने से उसे नया जीवन मिलेगा
b. सुहाना वातावरण देखने को मिलेगा
c. वे बादलों की जल वर्षा देख सकेंगे
d. वे धरती से बाहर आ सकेंगे
उत्तर – a. बादलों के आने से उसे नया जीवन मिलेगा
5. पृथ्वी की गोद में सोए हुए अंकुरों पर किसका प्रभाव पड़ता हैं?
a. बादलों के गरजने का
b. चिड़ियों के चहकने का
c. बिजली के कड़कने का
d. झरनों के गिरने का
उत्तर – a. बादलों के गरजने का
काव्यांश – 02
फिर फिर
बार बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार, हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्रहुंकार।
अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर
क्षत-विक्षत हत अचलशरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्धाधीर।
हँसते हैं छोटे पौधे लघु भार
शस्य अपार,
हिलहिल,
खिल खिल
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।
1. ‘हृदय थाम लेता संसार’ पंक्ति में संसार के हृदय थामने का क्या कारण है?
a. विनाश की संभावना से ग्रसित होकर
b. बादलों का आना देखकर
c. मौसम का परिवर्तन देखकर
d. बिजली की कड़क के कारण
उत्तर – a. विनाश की संभावना से ग्रसित होकर
2. उन्नत शत-शत वीर कौन हैं?
a. बादल
b. पेड़
c. सागर
d. पर्वत
उत्तर – b. पेड़
3. पंक्ति में बादलों का कौन सा रूप उभर कर सामने आया है?
a. तूफान लाने वाला
b. तेज बारिश लाने वाला
c. क्रांति द्वारा परिवर्तन लाने वाला
d. क्रांति द्वारा विनाश लाने वाला
उत्तर – c. क्रांति द्वारा परिवर्तन लाने वाला
4. कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा कि विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते?
a. क्रांति से पेड़-पौधे प्रभावित होते हैं।
b. क्रांति से सभी को खुशी मिलती है।
c. क्रांति द्वारा ही बदलाव संभव होता है।
d. क्रांति द्वारा हमेशा शोषित वर्ग ही लाभान्वित होता है।
उत्तर – d. क्रांति द्वारा हमेशा शोषित वर्ग ही लाभान्वित होता है।
5. पंक्तियों द्वारा कवि क्या ने क्या बताने का प्रयास किया है?
a. परिवर्तन के लिए क्रांति की आवश्यकता होती है।
b. परिवर्तन के लिए क्रांति की आवश्यकता नहीं होती।
c. क्रांति से लोगों को डराया जा सकता है।
d. क्रांति पूँजीपतियों का नाश करती है।
उत्तर – a. परिवर्तन के लिए क्रांति की आवश्यकता होती है।
काव्यांश – 03
अट्टालिका नही है रे आतंक भवन,
सदा पंक पर ही होता
जलविप्लव प्लावन,
क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से
सदा छलकता नीर,
रोगशोक में भी हँसता है शैशव का सुकुमार शरीर।
रुद्ध कोष, है क्षुब्ध तोष,
अंगनाअंग से लिपटे भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं
1. अट्टालिकाएँ आतंक भवन क्यों बन गई हैं?
a. क्योंकि इसमें पूँजीपति रहता है।
b. अट्टालिकाएँ भयानक होती हैं।
c. अट्टालिकाएँ कमजोर होती हैं।
d. इनमें रहने वाला पूँजीपति क्रांति के आगमन से भयभीत है, उसका सामना करने में
डरता है।
उत्तर – d. इनमें रहने वाला पूँजीपति क्रांति के आगमन से भयभीत है, उसका सामना करने में
डरता है।
2. ‘सदा पंक पर ही होता ‘जल विप्लव प्लावन’ द्वारा कवि क्या कहना चाहते हैं?
a. पंक पानी को प्रदूषित कर देता है।
b. कीचड़ का सफाया करने के लिए पानी आवश्यक है।
c. पानी से जल प्रलय का खतरा होता है।
d. पानी की क्रांतिकारी धारा सदैव पंक रूपी बुराई का नाश करती है।
उत्तर – d. पानी की क्रांतिकारी धारा सदैव पंक रूपी बुराई का नाश करती है।
3. जलज और शिशु किनका प्रतीक हैं?
a. आभिजात्य वर्ग का
b. सर्वहारा वर्ग का
c. सुकोमल वर्ग का
d. शोषक वर्ग का
उत्तर – b. सर्वहारा वर्ग का
4. आतंक अंक पर कौन काँप रहे हैं?
a. बादल
b. व्यापारी वर्ग
c. सर्वहारा वर्ग
d. शोषक वर्ग
उत्तर – d. शोषक वर्ग
5. क्रांति से शोषितों वंचितों को क्या लाभ पहुँचता है?
a. न्याय मिलता है
b. खुशी मिलती है
c. जीवन के सभी दुःख दूर होते हैं
d. उपर्युक्त सभी
उत्तर – d. उपर्युक्त सभी
काव्यांश – 04
धनी, वज्र गर्जन से, बादल !
त्रस्त नयनमुख ढाँप रहे है।
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
हाड़ मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार!
1. क्रांति की गर्जना का शोषक वर्ग पर क्या प्रभाव पड़ता है?
a. वे खुशी मनाते हैं।
b. उन्हें अनुचित तरीकों से जमा की गई पूँजी की समाप्ति का भय होता है।
c. वे पीड़ितों को न्याय नहीं देना चाहते।
d. शोषक वर्ग वीरता से अन्याय का सामना करता है।
उत्तर – b. उन्हें अनुचित तरीकों से जमा की गई पूँजी की समाप्ति का भय होता है।
2. कृषक की अधीरता का क्या कारण है?
a. उन्हें क्रांति द्वारा होने वाले परिवर्तन का इंतजार है।
b. उन्हें क्रांति द्वारा होने वाले विनाश का इंतजार रहता है।
c. उन्हें झमाझम पानी बरसने का इंतजार होता है।
d. वे बारिश में भीगकर प्रसन्न होते हैं।
उत्तर – a. उन्हें क्रांति द्वारा होने वाले परिवर्तन का इंतजार है।
3. बादलों को विप्लव के वीर कहकर क्यों संबोधित किया गया है?
a. वे तेज गर्जना करते हुए आते हैं।
b. वे जलधारा बरसाते हैं।
c. वे मौसम में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में सक्षम होते हैं।
d. वे पूरे आसमान को ढक देते हैं।
उत्तर – c. वे मौसम में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में सक्षम होते हैं।
4. गरीब वर्ग को क्रांति का इंतजार क्यों रहता है?
a. खुशी मानने के लिए
b. गरीबी मिटाने के लिए
c. अमीर बनने के लिए
d. शोषण से छुटकारा पाने के लिए
उत्तर – d. शोषण से छुटकारा पाने के लिए
5. सामाजिक क्रांति की आवश्यकता क्यों होती है?
a. समाज को बदलने के लिए
b. समाज में नयापन लाने के लिए
c. समाज से भेदभाव दूर करने के लिए
d. समाज में एकता, भाईचारा और न्याय व्यवस्था की स्थापना के लिए
उत्तर – d. समाज में एकता, भाईचारा और न्याय व्यवस्था की स्थापना के लिए
‘बादल राग’ कविता से अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न
प्रश्न -1. ‘बादलराग’ कविता के आधार पर धनी शोषकों की जीवन शैली पर टिप्पणी कीजिए। उन्हें सुविधा संपन्न होते हुए भी उन्हें किस बात का भय होता है?
उत्तर – समाज का धनी वर्ग प्रभुत्वशाली और साधन संपन्न होता है। यह वर्ग पूँजीवादी और सामंती होता है। यह साधन संपन्न वर्ग गरीबों, वंचितों और पिछड़े वर्ग का शोषण कर अपनी तिजोरियाँ भरता है और आनंदित होता है। लेकिन जब दबी-कुचली जनता अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने लगती है तब इन्हें भय लगने लगता है। ये पूँजीपति वर्ग किसी भी सामाजिक परिवर्तन के आने से डरता है।
प्रश्न 2. ‘बादलराग’ कविता में निराला जी ने शोषितों की वेदना को स्वर दिया है इस पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर – विप्लव के बादल जब घोर गर्जना करते हैं, तो धनी वर्ग अपने विनाश, मृत्यु तथा लूट जाने की आशंका से ग्रस्त हो जाता है। ऐसा धनी वर्ग अपने महल के शयन कक्ष में भी भयभीत दिखाई देता है। उसे अपने अस्तित्व पर खतरा दिखने लगता है। गरीबों पर अत्याचार और शोषण करके उसे अब तक जो फायदा हो रहा था, उसे उसका भी अंत होता दिखाई देने लगता है। क्रांति की प्रक्रिया जहाँ शोषितों, वंचितों को न्याय दिलाती है वहीं पूँजीपतियों के अत्याचारों का अंत भी करती है।
प्रश्न 3. ‘बादलराग’ कविता में अट्टालिकाओं को आतंक भवन क्यों कहा गया है?
उत्तर – अट्टालिकाएँ पूँजीपतियों के निवास स्थल को कहा गया है। ये अट्टालिकाएँ उनके लिए किसी महल से कम नहीं होतीं। इनमें निवास करने वाला पूँजीपति वर्ग क्रांति आने के भय से हमेशा आशंकित और डरा रहता है। उनका भय और आशंकाएँ इस अट्टालिका रूपी महल को महल नहीं रहने देते बल्कि आतंक भवन बना देते हैं। यह पूँजीपति अब तक गरीबों और कमजोर वर्ग का शोषण और दमन करके लाभ उठा रहा था, इसलिए जब यह शोषक वर्ग क्रांति का स्वर सुनता है तो अंदर तक आतंक से भर जाता है।
प्रश्न 4. क्रांति की गर्जना का शोषक वर्ग पर क्या प्रभाव पड़ता है, उनका मुख ढाँपना उनकी किस मानसिकता का द्योतक है?
उत्तर – क्रांति की गर्जना से शोषक वर्ग भयभीत हो जाता है। अब तक वह सर्वहारा वर्ग का शोषण करके अपनी तिजोरियाँ भर रहा था और आनंदित होता था। सामाजिक क्रांति के आने से उसे अपने अधिकार और संपत्ति दोनों के छिन जाने की चिंता सताने लगती है। शोषित और वंचित वर्ग अन्याय के विरुद्ध एकजुट हो जाता हैं। उन्हें उनका खोया अधिकार और न्याय हासिल होता है और इस तरह पूँजीपतियों के शोषण का अंत होता है। इसी कारण पूँजीपति वर्ग सामाजिक बदलाव के पक्ष में नहीं होता। ‘मुख ढाँपना’ उनकी भयभीत मानसिकता का द्योतक है। वे अपने अधिकारों को खो देने से डरते हैं। इसी कारण ऊंचे और आलीशान महलों में रहकर भी वह भयभीत रहता है।
प्रश्न 5. ‘बादल राग’ कविता में बादलों का आहवान कौन कर रहा है और क्यों?
उत्तर – ‘बादलराग;’ कविता में बादलों का आह्वान कृषक कर रहे हैं। बादलों द्वारा की जाने वाली वर्षा से ही उनकी फसलों को नया जीवन मिलेगा। खेतों में अपार फसल होगी जिससे उनके जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली आएगी। इसलिए वह बादल को क्रांति का प्रतीक मानकर उसका आह्वान करता है।
प्रश्न 6. ‘विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते’ पंक्ति में ‘विप्लव-रव’ का क्या तात्पर्य है? ‘छोटे ही हैं शोभा पाते’ ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर – ‘विप्लव रव’ का अर्थ है- क्रांति का स्वर। क्रांति के स्वर से ही समाज में साकारात्मक परिवर्तन आता है। ऐसा परिवर्तन समाज के कमजोर, वंचित और शोषण का शिकार हुए लोगों को न्याय दिलाने में सक्षम होता है।
‘छोटे ही हैं शोभा पाते’ ऐसा कहा गया है क्योंकि सामाजिक क्रांति से पिछड़े लोगों को ही आगे बढ़ने का मौका मिलता है।
प्रश्न 7. बादलों की रणभेरी का सुप्त अंकुरों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
उत्तर – बादलों की रणभेरी रूपी गर्जना सुनकर धरती की गोद में सोए हुए अंकुर सजग हो जाते हैं। नवजीवन मिलने की आशा में वे अपना सिर उठाकर बादलों की देखने लगते हैं। बादलों द्वारा की जाने वाली जलवर्षा उनके लिए बहुत लाभकारी होती है।
प्रश्न 8. छोटे पौधे किसके प्रतीक हैं? वे क्यों हँसते हैं?
उत्तर – छोटे पौधे सर्वहारा या शोषित वर्ग के प्रतीक हैं। क्रांति के कारण उन्हें लाभ पहुँचता है। जिस प्रकार छोटे पौधे वर्षा का जल पाकर तृप्त होते हैं उसी प्रकार सर्वहारा वर्ग क्रांति के परिणाम स्वरूप आने वाले न्याय से लाभान्वित होता है।
प्रश्न 9. गगन स्पर्शी स्पर्धा धीर किन्हें कहा गया है और क्यों?
उत्तर – गगनस्पर्शी स्पर्धा धीर क्रांति वीर बादलों को कहा गया जो गर्मी के प्रतिकूल मौसम का नाश करने के लिए वीरों को दल की तरह आकाश में उमड़-घुमड़ करते दिखाई देते हैं। वे तेज गड़गड़ाहट के साथ बिजली गिराते हैं, तेज जलधार बरसाते हैं। इस प्रक्रिया में वे कई बार नष्ट होते हैं किंतु फिर एकत्र होकर आकाश में छा जाते हैं और किसी वीर योद्धा की भाँति मौसम के विरुद्ध युद्ध लड़ते रहते हैं।
प्रश्न 10. हर प्रकार से सुरक्षित और संपन्न होते हुए भी शोषक वर्ग विप्लव की संभावना से भयभीत क्यों है?
उत्तर – शोषक वर्ग हर प्रकार के साधन और सुविधा से संपन्न होते हुए भी क्रांति के भय से डरा रहता है क्योंकि उसे पता है कि उसने अब तक गरीबों का शोषण किया है। अतः जब सर्वहारा वर्ग क्रांति करेगा तो उनके शोषण का अंत हो जाएगा। उनकी सुख-शांति और अनुचित तरीके से कमाई गई संपत्ति नष्ट हो जाएगी। उनकी ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएँ नष्ट कर दी जाएँगी।