कवि परिचय – अब्दुर्रहीम खानखाना
कविवर रहीम के पिता बैराम खाँ थे, जो क्रमशः बादशाह हुमायूँ तथा अकबर के प्रधान मंत्री थे। अकबर ने उनकी शिक्षा-दीक्षा का संपूर्ण भार अपने ऊपर उठा लिया था और योग्य अध्यापकों को रख संस्कृत, अरबी, फारसी आदि भाषाओं का ज्ञान उन्हें कराया था।
रहीम के ग्रंथों में ‘रहीम दोहावली’, ‘बरवै नायिका भेद, मंदनाष्टक, रासपंचाध्यायी’ और ‘शृंगार सोरठा’ प्रसिद्ध हैं। ‘बरवै छंद’ के वे आरंभकर्ता हैं।
अब्दुर्रहीम खानखाना
- 1. माँगे घटत रहीम पद, कितो करौ बड़ काम।
तीन पैग बसुधा धरी, तऊ बावनै नाम॥
शब्दार्थ –
कितो – कितना ही
पैग – पाँव,
वसुधा – भूमि,
तऊ – तो भी
बावनै – वामन।
भावार्थ –
रहीम भी कबीरदास की तरह माँगने की निंदा करते हैं। रहीम कहते हैं कि चाहे कितना भी बड़ा काम करो, दूसरे से कुछ माँगने से पद घट जाता है। बड़ा व्यक्ति छोटा बन जाता है। भगवान विष्णु ने सारी भूमि की तीन पगों में नापकर अद्भुत कार्य किया, तब उसका नाम वामन पड़ गया। ऐसा माँगने के कारण हुआ है। यहाँ विष्णु के वामनावतार की कथा की ओर संकेत किया गया है। भगवान विष्णु ने वामन के रूप में राजा बलि से तीन पग जमीन का दान माँगा था। बलि ने वह दान दे दिया। विष्णु ने भूमि और आकाश को दो पगों में नाप दिया और तीसरे पग के लिए जगह माँगी तो बलि ने अपना सिर प्रस्तुत किया। विष्णु ने राजा बलि को बंदी बनाकर पाताल लोक में भेज दिया और स्वर्ग का राज्य देवताओं को दे दिया। इतना बड़ा काम करने पर भी चूँकि विष्णु ने राजा बलि से दान माँगा था। अतः वे वामन कहलाने लगे।
- रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल।
आपु तो कहि भीतर गई, जूती खात कपाल॥
शब्दार्थ –
जिह्वा – जीभ
बावरी पगली
कहिगइ – कह गई,
सरग पताल – ऊँच-नीच, भला-बुरा
आपु – स्वयं
कपाल – सिर।
भावार्थ –
रहिमन कहते हैं यह जीभ बड़ी पगली है, वह भला-बुरा जो सूझा कह देती है। वह तो कहकर भीतर चली जाती है, लेकिन उसका फल या कुफल सर को भोगना पड़ता है। दूसरे की निंदा जीभ करती है परंतु जूती सिर पर पड़ती है। भाव यह है कि मुँह से बात निकालने के पहले खूब सोच समझ कर लेना चाहिए।
- अन्तर दाव लगी रहै, धुवाँ न प्रगटै सोई।
कै जिय आपन जानही, कै जिहि बीती होइ॥
शब्दार्थः
दाव – दावग्नि, चिन्ता की ज्वाला
कै – या
जिय – हृदय
आपन – आप
जानही – जानता है
जिहि – जिस पर।
भावार्थ –
चिन्ता की ज्वाला अंदर ही अंदर दावाग्नि की तरह जलती रहती है। उसका धुआँ (चिंता के लक्षण) बाहर प्रकट नहीं होते। उसकी वेदना तो हृदय ही जानता है। जिस पर से होकर वह गुजरी हो वही जानता है। भाव यह है कि चिंता की वेदना और तीव्रता या तो स्वयं अनुभव करने वाला जानता है या तो जिसने इसके पहले उसका अनुभव किया हो, वह जानता है। अन्य लोग उसको नहीं समझ सकते। दावाग्नि वह अग्नि है जो जंगल में गर्मियों के समय अपने आप लग जाती है और अनेक पेड़-पौधों और वन्य प्राणियों को जला डालती है। उसी प्रकार चिंता भी मनुष्य के उत्साह और उसकी खुशियों को नष्ट कर देती है। चिंता ग्रस्त मनुष्य बाहर से शांत दिखने पर भी अंदर ही अंदर घुलता रहता है।
- रहिमन विपदाहू भली, जो थोरे दिन होइ।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोइ॥
शब्दार्थः
विपदाहू – विपत्ति भी
हित – भलाई चाहने वाला, हितचिंतक,
अनहित – अहित चिंतक शत्रु।
भावार्थ –
रहीम कहते हैं यदि थोड़े दिन हो तो विपत्ति भी भलाई करती है क्योंकि उससे यह मालूम होता कि इस दुनिया में उसका कौन हित चिंतक है और कौन अहित चिंतक है। सुख और संपत्ति के दिनों में सब लोग साथ रहते हैं लेकिन जो सच्चे मित्र भलाई चाहते हैं, वे विपत्ति में साथ रह जाते हैं। अतः थोड़े दिनों की विपत्ति भी लाभकारी होती है।
कठिन शब्दार्थ —
Hindi Word | Hindi Meaning | Tamil Meaning | English Meaning |
माँगे | माँगना | கேட்பது (Kēṭpadu) | To beg/ask for |
घटत | कम होना | குறைவது (Kuraivadu) | To diminish/reduce |
पैग | पाँव, कदम | பாதம் (Pādam) | Foot, step |
वसुधा | पृथ्वी, भूमि | பூமி (Pūmi) | Earth, land |
तऊ | तो भी | இருப்பினும் (Iruppiṉum) | Even then |
बावनै | वामन | வாமனர் (Vāmaṉar) | Vaman (dwarf incarnation of Vishnu) |
जिह्वा | जीभ | நாக்கு (Nākku) | Tongue |
बावरी | पगली, मूर्ख | பைத்தியம் (Paittiyam) | Crazy, foolish |
सरग | स्वर्ग, ऊँचा | விண்ணுலகம் (Viṇṇulakam) | Heaven, high |
पताल | नीच, पाताल लोक | பாதாளம் (Pātāḷam) | Netherworld, low |
कपाल | सिर | தலை (Talai) | Head, skull |
दाव | जंगल की आग | காட்டுத் தீ (Kāṭṭut tī) | Forest fire |
धुवाँ | धुआँ | புகை (Pukai) | Smoke |
जिय | हृदय | இதயம் (Itayam) | Heart |
जानही | जानता है | அறிந்தவர் (Aṟintavar) | Knows |
विपदाहू | विपत्ति भी | துன்பமும் (Tuṉbamum) | Even calamity |
हित | शुभचिंतक | நண்பர் (Naṇpar) | Well-wisher, friend |
अनहित | शत्रु, अहितकारी | எதிரி (Etiri) | Enemy, ill-wisher |
परत | प्रकट होना | வெளிப்படுத்தப்படுதல் (Veḷippaṭuttapadutal) | Becomes evident |
कुफल | बुरा परिणाम | மோசமான விளைவு (Mōcamāṉa viḷaivu) | Bad consequence |
अभ्यास के लिए प्रश्न
- रहीम के काव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – रहीम के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ नीति, मानवता, भक्ति और जीवन-व्यवहार की सच्चाई हैं। उनके दोहे सरल, सहज, लोकप्रचलित भाषा में लिखे गए हैं। रहीम ने अपने दोहों में नैतिक शिक्षा, जीवन के अनुभव और समाज के लिए उपयोगी विचार प्रकट किए हैं। उनकी भाषा में अरबी-फ़ारसी और हिंदी का सुंदर मेल दिखाई देता है।
- रहीम ने विपदा को क्यों भली माना है?
उत्तर – रहीम ने विपदा को भली इसलिए माना है क्योंकि विपत्ति के समय ही सच्चे मित्रों और झूठे मित्रों की पहचान होती है। सुख के समय सब साथ रहते हैं, परंतु कठिन समय में केवल सच्चे हितचिंतक साथ देते हैं। इसलिए थोड़े समय की विपत्ति भी मनुष्य के लिए उपयोगी होती है।
- रहीम माँगने की वृत्ति के बारे में क्या कहते हैं?
उत्तर – रहीम कहते हैं कि माँगने से व्यक्ति का पद घट जाता है, चाहे वह कितना ही बड़ा कार्य करे। माँगने वाला व्यक्ति सम्मान खो देता है। उन्होंने भगवान विष्णु के वामनावतार का उदाहरण देकर बताया कि माँगने के कारण ही उन्हें वामन कहलाना पड़ा।
- रहीम जिह्वा को नियंत्रण रखने की सलाह क्यों देते हैं?
उत्तर – रहीम कहते हैं कि जीभ बहुत पगली होती है, वह बिना सोचे-समझे भला-बुरा बोल देती है। परंतु उसके परिणाम सिर को भुगतने पड़ते हैं। इसलिए मुँह से कोई भी बात कहने से पहले विचार करना चाहिए। जीभ को नियंत्रण में रखना ही बुद्धिमानी है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. पहले दोहे में रहीम माँगने की निंदा क्यों करते हैं?
a) यह सम्मान बढ़ाता है
b) यह पद घटाता है
c) यह धन देता है
d) यह शक्ति बढ़ाता है
उत्तर – b) यह पद घटाता है
प्रश्न 2. पहले दोहे में “पैग” शब्द का अर्थ क्या है?
a) हाथ
b) पाँव
c) सिर
d) हृदय
उत्तर – b) पाँव
प्रश्न 3. पहले दोहे में वसुधा का अर्थ है –
a) आकाश
b) पृथ्वी
c) नदी
d) जंगल
उत्तर – b) पृथ्वी
प्रश्न 4. भगवान विष्णु को “बावनै” क्यों कहा गया?
a) दान देने के कारण
b) तीन पग जमीन माँगने के कारण
c) युद्ध जीतने के कारण
d) स्वर्ग प्राप्त करने के कारण
उत्तर – b) तीन पग जमीन माँगने के कारण
प्रश्न 5. दूसरे दोहे में जिह्वा को क्या कहा गया है?
a) बुद्धिमान
b) बावरी (पगली)
c) शांत
d) शक्तिशाली
उत्तर – b) बावरी (पगली)
प्रश्न 6. जिह्वा के भला-बुरा कहने का परिणाम क्या भोगता है?
a) हृदय
b) सिर (कपाल)
c) हाथ
d) पैर
उत्तर – b) सिर (कपाल)
प्रश्न 7. दूसरे दोहे का मुख्य संदेश क्या है?
a) बोलने से पहले सोचें
b) सिर की रक्षा करें
c) जीभ को नियंत्रित न करें
d) निंदा से बचें
उत्तर – a) बोलने से पहले सोचें
प्रश्न 8. तीसरे दोहे में चिंता की तुलना किससे की गई है?
a) नदी
b) दावाग्नि (जंगल की आग)
c) हवा
d) सूर्य
उत्तर – b) दावाग्नि (जंगल की आग)
प्रश्न 9. तीसरे दोहे में चिंता का धुआँ क्यों नहीं दिखता?
a) यह बाहर प्रकट होता है
b) यह अंदर ही जलता है
c) यह हवा में उड़ जाता है
d) यह रात में छिप जाता है
उत्तर – b) यह अंदर ही जलता है
प्रश्न 10. चिंता की वेदना को कौन समझ सकता है?
a) सभी लोग
b) केवल हृदय या अनुभवी व्यक्ति
c) कोई नहीं
d) केवल कवि
उत्तर – b) केवल हृदय या अनुभवी व्यक्ति
प्रश्न 11. चौथे दोहे में विपत्ति को भली क्यों कहा गया है?
a) यह लंबे समय तक रहती है
b) यह हित-अनहित को प्रकट करती है
c) यह धन देती है
d) यह शत्रुओं को हराती है
उत्तर – b) यह हित-अनहित को प्रकट करती है
प्रश्न 12. चौथे दोहे में “हित” का अर्थ है –
a) शत्रु
b) शुभचिंतक
c) धन
d) शक्ति
उत्तर – b) शुभचिंतक
प्रश्न 13. रहीम के अनुसार विपत्ति कितने समय की होनी चाहिए?
a) लंबी
b) थोड़े दिन
c) हमेशा
d) कभी नहीं
उत्तर – b) थोड़े दिन
प्रश्न 14. पहले दोहे में भगवान विष्णु ने राजा बलि से क्या माँगा था?
a) धन
b) तीन पग जमीन
c) स्वर्ग
d) हथियार
उत्तर – b) तीन पग जमीन
प्रश्न 15. दूसरे दोहे में जूती किस पर पड़ती है?
a) जीभ
b) सिर (कपाल)
c) हृदय
d) पैर
उत्तर – b) सिर (कपाल)
प्रश्न 16. तीसरे दोहे में दावाग्नि का क्या प्रभाव बताया गया है?
a) यह ठंडक देती है
b) यह पेड़-पौधों को जलाती है
c) यह बारिश लाती है
d) यह प्रकाश देती है
उत्तर – b) यह पेड़-पौधों को जलाती है
प्रश्न 17. चौथे दोहे में सुख के दिनों में क्या होता है?
a) सभी साथ छोड़ देते हैं
b) सभी लोग साथ रहते हैं
c) कोई साथ नहीं देता
d) शत्रु बढ़ जाते हैं
उत्तर – b) सभी लोग साथ रहते हैं
प्रश्न 18. रहीम ने किस ग्रंथ में बरवै छंद का उपयोग किया?
a) रहीम दोहावली
b) बरवै नायिका भेद
c) रासपंचाध्यायी
d) शृंगार सोरठा
उत्तर – b) बरवै नायिका भेद
प्रश्न 19. रहीम के पिता का नाम क्या था?
a) अकबर
b) हुमायूँ
c) बैराम खाँ
d) तानसेन
उत्तर – c) बैराम खाँ
प्रश्न 20. रहीम को किन भाषाओं का ज्ञान था?
a) हिंदी और अंग्रेजी
b) संस्कृत, अरबी, फारसी
c) तमिल और तेलुगु
d) उर्दू और बंगाली
उत्तर – b) संस्कृत, अरबी, फारसी
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – रहीम के पिता का नाम क्या था?
उत्तर – रहीम के पिता का नाम बैराम खाँ था। - प्रश्न – बैराम खाँ किस बादशाह के प्रधान मंत्री थे?
उत्तर – बैराम खाँ बादशाह हुमायूँ और अकबर दोनों के प्रधान मंत्री थे। - प्रश्न – रहीम की शिक्षा किसके संरक्षण में हुई थी?
उत्तर – रहीम की शिक्षा बादशाह अकबर के संरक्षण में हुई थी। - प्रश्न – रहीम किन-किन भाषाओं के ज्ञाता थे?
उत्तर – रहीम संस्कृत, अरबी और फ़ारसी भाषाओं के ज्ञाता थे। - प्रश्न – रहीम की प्रसिद्ध रचनाओं के नाम बताइए।
उत्तर – रहीम की प्रसिद्ध रचनाएँ ‘रहीम दोहावली’, ‘बरवै नायिका भेद’, ‘मंदनाष्टक’, ‘रासपंचाध्यायी’ और ‘शृंगार सोरठा’ हैं। - प्रश्न – ‘बरवै छंद’ के आरंभकर्ता कौन माने जाते हैं?
उत्तर – ‘बरवै छंद’ के आरंभकर्ता अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना माने जाते हैं। - प्रश्न – रहीम माँगने की वृत्ति के बारे में क्या कहते हैं?
उत्तर – रहीम कहते हैं कि माँगने से व्यक्ति का पद घट जाता है, चाहे वह कितना ही बड़ा कार्य करे। - प्रश्न – रहीम के अनुसार भगवान विष्णु वामन क्यों कहलाए?
उत्तर – रहीम के अनुसार भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि माँगी, इसलिए माँगने के कारण वे वामन कहलाए। - प्रश्न – रहीम ने जीभ को बावरी क्यों कहा है?
उत्तर – रहीम ने जीभ को बावरी इसलिए कहा है क्योंकि वह बिना सोचे-समझे भला-बुरा बोल देती है। - प्रश्न – जीभ की गलती का फल किसे भुगतना पड़ता है?
उत्तर – जीभ की गलती का फल सिर को भुगतना पड़ता है। - प्रश्न – रहीम जिह्वा को नियंत्रण में रखने की सलाह क्यों देते हैं?
उत्तर – रहीम कहते हैं कि मुँह से बात निकालने से पहले सोच लेना चाहिए, क्योंकि उसका परिणाम बुरा भी हो सकता है। - प्रश्न – रहीम चिंता की तुलना किससे करते हैं?
उत्तर – रहीम चिंता की तुलना जंगल की दावाग्नि से करते हैं। - प्रश्न – रहीम के अनुसार चिंता की ज्वाला कैसी होती है?
उत्तर – रहीम के अनुसार चिंता की ज्वाला भीतर ही भीतर जलती रहती है और बाहर से दिखाई नहीं देती। - प्रश्न – रहीम ने विपत्ति को भली क्यों कहा है?
उत्तर – रहीम ने विपत्ति को भली इसलिए कहा है क्योंकि उससे सच्चे और झूठे मित्रों की पहचान हो जाती है। - प्रश्न – सुख के समय में लोग कैसे व्यवहार करते हैं?
उत्तर – सुख के समय में सब लोग साथ रहते हैं और अपने को मित्र दिखाते हैं। - प्रश्न – विपत्ति के समय सच्चे मित्रों की पहचान कैसे होती है?
उत्तर – विपत्ति के समय केवल सच्चे हितचिंतक साथ रहते हैं, इससे उनकी पहचान हो जाती है। - प्रश्न – रहीम के दोहों की भाषा कैसी है?
उत्तर – रहीम के दोहों की भाषा सरल, सरस, लोकप्रिय और नीतिपरक है। - प्रश्न – रहीम के काव्य में कौन-कौन से भाव प्रमुख हैं?
उत्तर – रहीम के काव्य में नीति, भक्ति, प्रेम और मानवता के भाव प्रमुख हैं। - प्रश्न – रहीम की काव्य शैली की क्या विशेषता है?
उत्तर – रहीम की काव्य शैली में अनुभव की सच्चाई, सहजता और गहन विचार की गूंज मिलती है। - प्रश्न – रहीम का साहित्य आज भी क्यों लोकप्रिय है?
उत्तर – रहीम का साहित्य आज भी लोकप्रिय है क्योंकि उनके दोहे जीवन के गहरे सत्य और व्यावहारिक ज्ञान से भरे हुए हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – पहले दोहे में रहीम माँगने की निंदा क्यों करते हैं?
उत्तर – रहीम कहते हैं कि माँगने से व्यक्ति का पद घट जाता है। भगवान विष्णु ने तीन पग जमीन माँगकर बड़ा कार्य किया, पर माँगने के कारण वामन कहलाए। यह दर्शाता है कि माँगना सम्मान को कम करता है। (46 शब्द)
प्रश्न 2 – पहले दोहे में वामन कथा का क्या संदर्भ है?
उत्तर – रहीम वामनावतार की कथा का उल्लेख करते हैं, जहाँ विष्णु ने राजा बलि से तीन पग जमीन माँगी। दो पगों में भूमि-आकाश नाप लिया और तीसरे के लिए बलि का सिर लिया, जिससे वे वामन कहलाए। (48 शब्द)
प्रश्न 3 – दूसरे दोहे में जिह्वा को बावरी क्यों कहा गया है?
उत्तर – जिह्वा को बावरी (पगली) कहा गया क्योंकि वह बिना सोचे भला-बुरा कह देती है। वह तो भीतर चली जाती है, लेकिन उसके कुपरिणाम (जूती) सिर को भोगने पड़ते हैं, जो बोलने से पहले सोचने की सीख देता है। (49 शब्द)
प्रश्न 4 – तीसरे दोहे में चिंता की तुलना दावाग्नि से क्यों की गई है?
उत्तर – चिंता को दावाग्नि (जंगल की आग) से तुलना की गई क्योंकि यह अंदर ही अंदर जलती है और खुशियों को नष्ट करती है। इसका धुआँ बाहर नहीं दिखता, केवल हृदय या अनुभवी व्यक्ति ही इसकी पीड़ा समझ सकता है। (47 शब्द)
प्रश्न 5 – चौथे दोहे में विपत्ति को भली क्यों माना गया है?
उत्तर – रहीम कहते हैं कि थोड़े दिन की विपत्ति भली है क्योंकि यह हित (शुभचिंतक) और अनहित (शत्रु) को प्रकट करती है। सुख में सभी साथ रहते हैं, पर विपत्ति सच्चे मित्रों को उजागर करती है। (45 शब्द)
प्रश्न 6 – रहीम के दोहों में नैतिक शिक्षा का क्या महत्त्व है?
उत्तर – रहीम के दोहे नैतिक शिक्षा देते हैं, जैसे माँगने की निंदा, सोचकर बोलना, चिंता की हानि और विपत्ति से सीख। ये जीवन मूल्यों, आत्मसम्मान, संयम और सच्ची मित्रता को प्रेरित करते हैं। (43 शब्द)
प्रश्न 7 – दूसरे दोहे में जिह्वा और कपाल का संबंध कैसे दर्शाया गया है?
उत्तर – जिह्वा बिना सोचे भला-बुरा कहती है और भीतर चली जाती है, लेकिन उसके कुपरिणाम कपाल (सिर) को भोगने पड़ते हैं। यह दर्शाता है कि अनुचित शब्दों का परिणाम व्यक्ति को अपमान या हानि के रूप में भुगतना पड़ता है। प्रश्न 8 – तीसरे दोहे में चिंता की वेदना को कौन समझ सकता है?
उत्तर – चिंता की वेदना केवल हृदय या वह व्यक्ति समझ सकता है, जिसने इसे अनुभव किया हो। यह दावाग्नि की तरह अंदर जलती है, जिसका धुआँ बाहर नहीं दिखता, इसलिए अन्य लोग इसकी तीव्रता नहीं समझते।
प्रश्न 9 – चौथे दोहे में सुख और विपत्ति का अंतर कैसे बताया गया है?
उत्तर – सुख में सभी लोग साथ रहते हैं, पर विपत्ति में केवल सच्चे शुभचिंतक साथ रहते हैं। रहीम कहते हैं कि थोड़े दिन की विपत्ति हित और अनहित को प्रकट करती है, जो सच्ची मित्रता को पहचानने में मदद करती है।
प्रश्न 10 – रहीम के दोहों में प्रकृति के तत्वों का उपयोग कैसे हुआ है?
उत्तर – रहीम ने चिंता को दावाग्नि और धुएँ से तुलना करके प्रकृति के तत्वों का उपयोग किया। यह चित्रण चिंता की विनाशकारी और गुप्त प्रकृति को दर्शाता है, जो अंदर ही अंदर जलती है और केवल अनुभवी ही समझ सकता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – पहले दोहे में वामन कथा के माध्यम से रहीम ने माँगने की निंदा कैसे की है?
उत्तर – रहीम कहते हैं कि माँगने से व्यक्ति का पद घट जाता है। भगवान विष्णु ने वामन रूप में राजा बलि से तीन पग जमीन माँगी और सारी सृष्टि नापकर बड़ा कार्य किया, पर माँगने के कारण वामन कहलाए। यह दर्शाता है कि माँगना, चाहे कितना भी बड़ा कार्य हो, सम्मान को कम करता है। कवि आत्मसम्मान और स्वावलंबन की सीख देते हैं।
प्रश्न 2 – दूसरे दोहे में रहीम ने जीभ और सिर के संबंध से क्या नैतिक शिक्षा दी है?
उत्तर – रहीम जीभ को बावरी कहते हैं, जो बिना सोचे भला-बुरा कह देती है और भीतर चली जाती है, लेकिन उसके कुपरिणाम सिर को भुगतने पड़ते हैं। यह दर्शाता है कि अनुचित शब्द अपमान या हानि लाते हैं। कवि सलाह देते हैं कि बोलने से पहले सोच-विचार करना चाहिए ताकि अपमान से बचा जा सके।
प्रश्न 3 – तीसरे दोहे में चिंता की तुलना दावाग्नि से कैसे चिंता की प्रकृति को दर्शाती है?
उत्तर – रहीम चिंता को दावाग्नि से तुलना करते हैं, जो अंदर ही अंदर जलती है और खुशियों को नष्ट करती है। इसका धुआँ बाहर नहीं दिखता, इसलिए केवल हृदय या अनुभवी व्यक्ति ही इसकी पीड़ा समझता है। यह चित्रण चिंता की गुप्त और विनाशकारी प्रकृति को उजागर करता है, जो बाहरी शांति के बावजूद मन को खोखला करती है।
प्रश्न 4 – चौथे दोहे में रहीम ने विपत्ति को भली क्यों माना और इसका जीवन पर क्या प्रभाव है?
उत्तर – रहीम कहते हैं कि थोड़े दिन की विपत्ति भली है क्योंकि यह हित (शुभचिंतक) और अनहित (शत्रु) को प्रकट करती है। सुख में सभी साथ रहते हैं, पर विपत्ति सच्चे मित्रों को उजागर करती है। यह जीवन में सच्चाई और मित्रता की पहचान कराती है, जो व्यक्ति को सही रास्ता चुनने और संबंधों को समझने में मदद करती है।
प्रश्न 5 – रहीम के दोहों में नैतिक और सामाजिक मूल्यों का महत्त्व कैसे दर्शाया गया है?
उत्तर – रहीम के दोहे आत्मसम्मान, संयम, और सच्ची मित्रता जैसे नैतिक मूल्यों को दर्शाते हैं। माँगने की निंदा, सोचकर बोलना, चिंता की हानि, और विपत्ति से हित-अनहित की पहचान जैसे विषय सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में संयम, आत्मनिर्भरता और सच्चाई को प्रोत्साहित करते हैं। ये दोहे सरल भाषा में गहन जीवन दर्शन सिखाते हैं।

