संकेत बिंदु-(1) भारत के नाम और ग्रंथ (2) भारत सभ्यता और संस्कृति का आदि स्रोत (3) भारत ज्ञान-विज्ञान का केंद्र और समन्वय सामंजस्य भारत संस्कृति के गुण (4) कांग्रेस के नेतृत्व में स्वाधीनता (5) उपसंहार।
भारत हमारी मातृभूमि है, पितृभूमि है, पुण्यभूमि है। हम इसकी कोख से उत्पन्न हुए। इसने हमारा पालन-पोषण किया। इसके तीर्थ हमारी आस्था और श्रद्धा के केंद्र हैं। वेदों, पुराणों, रामायण, महाभारत आदि में प्रतिपादित धर्म भारतीय धर्म है।
प्राचीन काल में यह देश ‘जम्बू द्वीप’ कहलाता था। सात महती नदियों के कारण इसे ‘सप्तसिंधु’ कहा गया। श्रेष्ठ जन का वास होने के कारण इसका ‘आर्यावर्त’ नाम पड़ा। परम भागवत ऋषभदेव के प्रतापी पुत्र भरत के संबंध से ‘भरतखंड’ और ‘भारत’ बना। प्रिय भूमि भारत की गाथा देवता भी गाते थे। विष्णु पुराण के अनुसार स्वर्ग में देवत्व भोगने के बाद देवता मोक्ष प्राप्ति के लिए भारत में ही मनुष्य रूप में जन्म लेते थे।
गायंति देवाः किल गीतकानि / धन्यास्तु ते भारत भूमिभागे।
स्वर्गापवर्गास्पदहेतुभूते / भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्॥
भारत को ‘विश्वगुरु’ कहलाने का गौरव है। न केवल यूरोप, अपितु फारस-अरब आदि राष्ट्रों में भारत को ‘सोने की चिड़िया’ या ‘स्वर्ण भूमि’ कहकर इसकी स्तुति की जाती रही है। मनु ने भारत को मानवीय गुणों की प्रेरणा और शिक्षा का एकमात्र केंद्र बताया है। कवीन्द्र रवींद्र ने इसे ‘महामानव समुद्र’ कहा, जो आया, वह इसका हो गया।
हिमालय हमारा भाव प्रतीक है। गंगा हमारी माँ है। इन जैसा संसार में और कहाँ? हमारा देश सरिता मय है। यहाँ प्रकृति का लावण्य और सौंदर्य अलसा कर बिखर गया है। कालिदास ने हिमालय को देवतात्मा और पृथ्वी का मानदंड माना है। महाकवि रवींद्रनाथ भी उसे देवात्मा मानते हैं। निकोलस रोरिख का कथन है कि-‘हे रहस्यमय, तुम्हें नमस्कार है। तुम्हारे दर्शन मात्र से चित्त प्रफुल्ल और भव्य भावनाओं से परिपूर्ण हो जाता है। तुम अनन्य हो।’
भारत सभ्यता और संस्कृति का आदि स्रोत है। धर्म की जन्मभूमि होने के कारण भारत आध्यात्मिक देश है। यहीं मानव, प्रकृति एवं अंतर्जगत् के रहस्यों की जिज्ञासाओं के अंकुर सर्वप्रथम उगे। यहीं परमात्मा की अमरता, एक अंतर्यामी ईश्वर की सत्ता, प्रकृति और मनुष्य के भीतर एक परमात्मा के दर्शन सर्वप्रथम किए गए। यहीं धर्म तथा दर्शन के उच्चतम सिद्धांतों ने अपने चरम शिखर स्पर्श किए। भारत की आध्यात्मिकता और दर्शन की लहर बार-बार उभड़ी और उसने समस्त संसार को सिक्त किया।
संसार गणित और ज्योतिष के लिए भारत का ऋणी है। अरब राष्ट्रों ने ज्योतिष-विद्या भारत से सीखी। भारत ने चीन को ज्योतिष और अंकगणित सिखाया। गणित में शून्य (0) का सिद्धांत भी भारत ने ही विश्व को पढ़ाया। बंदूक और तोपों का प्रचलन वैदिककाल में था। आयुर्वेद, चित्रकारी और कानून भी भारतवासियों ने यूरोप को पढ़ाया। मलमल, रेशम, टीन, लोहे और शीशे का ज्ञान भी यूरोप ने भारत से प्राप्त किया।
कर्म, त्याग और संयम भारत की धरोहर हैं। ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ यहाँ का मूल मंत्र है। भोग संयम के साथ बँधा है। निर्मल वैराग्य के द्वारा दैन्य उज्ज्वल होता है। संपदा पुण्य कर्मों द्वारा मांगल्य प्राप्त करती है। त्याग मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। समन्वय और सामंजस्य भारत और भारतीय संस्कृति के विशेष गुण हैं। शक और हूण, यूनानी और तुरुक, मुगल और पठान एक दिन दृप्तवीर्य होकर यहाँ आए और सब कुछ भूलकर यहाँ के ही हो रहे। शक, हूण, कुषाण तो यहीं की संस्कृति-सभ्यता में रच-खप गए, किंतु इस्लाम के मानने वाले आक्रान्ता, मुगल, तुर्क, पठान भारत पर राज्य करते हुए, यहीं रहते हुए भी भारतीय संस्कृति को अपना न सके। हाँ, उन पर उसका कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य पड़ा। रसखान, रहीम, जायसी आदि ऐसे ही कवि थे।
धर्मप्राण भारत पर सन् 712 ई. में मुगलों का आक्रमण हुआ। मुहम्मद बिन कासिम पहला आक्रमणकारी था। देश उस समय दुर्बल हो चुका था, खंड-खंड हो चुका था। परिणामत: यह मुसलमानों के अधीन हो गया। गुलाम वंश, तुगलक वंश, लोदी वंश और अंत में मुगल वंश ने यहाँ राज्य किया।
देश की स्वाधीनता के लिए जहाँ कांग्रेस के तत्त्वावधान में अहिंसात्मक आंदोलन चल रहा था, वहाँ क्रांतिकारियों ने अंग्रेज शासकों के दिलों में दहशत पैदा करने में कसर न छोड़ी। सुभाषचंद्र बोस ने जापान और जर्मनी के सहयोग से भारत पर सशस्त्र आक्रमण ही कर दिया। दूसरी ओर नौ सेना में विद्रोह हो गया। इधर, द्वितीय महायुद्ध में अंग्रेज कौम राजनीति के मोर्चे पर विजयी होते हुए भी आर्थिक मोर्चे पर हार गई। अर्थ-संकट ने ब्रिटेन की कमर तोड़ दी। इन सभी कारणों से अंग्रेज भारत छोड़ने के लिए विवश हो गए, किंतु कूटनीति निपुण अंग्रेज जाते-जाते भारत के दो भाग कर गए। 15 अगस्त, 1947 को देश का विभाजन करके अंग्रेजी साम्राज्य की पताका भारत से उतर गई। भारत-विभाजन का आधार था-द्विराष्ट्रवाद। मुस्लिम बहुल प्रांतों का स्वतंत्र राष्ट्र पाकिस्तान बना। हिंदुओं के लिए शेष ‘हिंदुस्तान’ रह गया। भारत माता का अंग-अंग कटवाकर हम स्वतंत्र हुए। इस खंडित भारत को ही ‘भारत माता’ को वास्तविक मूर्ति मानकर हमने इसकी पूजा-अर्चना आरंभ की। देश के नेता भारत की प्रगति और समृद्धि के लिए जुट गए। अपना संविधान निर्माण कर 26 जनवरी, 1950 को भारत गणतंत्र घोषित हुआ।
21वीं सदी के प्रवेश पर भारत की आबादी एक अरब से अधिक हो गई है। शासन की दृष्टि से भारत संघ में 28 राज्य तथा 7 केंद्र शासित प्रदेश हैं।
स्वतंत्र भारत में जनता का जीवन-स्तर पूर्वापेक्षा ऊँचा हुआ। जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का द्वितीय महान् राष्ट्र भारत में जनतंत्र सफल हुआ। यहाँ लोकतंत्र की आधार भूत मान्यताओं का विकास हुआ, औद्योगिक विकास हुआ। विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति हुई। अंतरिक्ष-विजय में तो विश्व के महान् राष्ट्रों में भारत की गणना होने लगी है। भारत अजर है, अमर है और आध्यात्मिक छवि से आज भी विश्व गुरु है। इसलिए डॉ. इकबाल ने कहा था- ‘कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।’