बारदोली में किसान सत्याग्रह को सफल नेतृत्व प्रदान करने के कारण महात्मा गांधी ने उन्हें सरदार का नाम दिया। अगस्त 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जिस दृढ़ता से इन्होंने देशी रियासतों के विलय के लिए कदम उठाए उसके कारण वे लौह पुरुष कहलाए। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान लंबे समय तक जेल यात्रा करनी पड़ी। वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के करमसद गाँव में हुआ। 1922 में अपनी बैरिस्टरी की प्रैक्टिस छोड़ गोधरा, खेड़ा, बारदोली आदि आंदोलनों में भाग लिया और गांधी जी के साथ जुड़ गए। कराची में हुए अधिवेशन में ये कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। यह वह समय था जब भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी दी गई थी। सरदार पटेल एक साहसी, ईमानदार, बेलाग, सख्त और तुरंत निर्णय लेने वाले व्यक्ति थे। भारत के पहले गृहमंत्री और उपप्रधानमंत्री पद पर रहते हुए 15 दिसंबर 1950 को इनका निधन हो गया। यहाँ हम उनका स्वतंत्रता दिवस से चार दिन पूर्व अर्थात 11 अगस्त 1947 को दिल्ली के रामलीला मैदान में दिया गया भाषण प्रस्तुत कर रहे हैं।
यह दिन उन लोगों की स्मृति में रखा गया है जो आजादी के लिए शहीद हुए, जिन्होंने अपने प्राण अर्पित किए। उन्हें याद करना हमारा प्रथम कर्तव्य है । हमारी फतह उनके बलिदान के कारण हुई है। हम उन्हें याद न करें तो बेवफा कहलाएँगे।
चार दिन बाद विदेशी सरकार यहाँ से हट जाएगी। अब कांग्रेस का काम पूरा होता है। हमारा जीवन-कार्य पूरा होता है । जब लोकमान्य का देहांत हुआ तब चौपाटी के मैदान में हमने प्रतिज्ञा की थी कि स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। उसके बाद लाहौर कांग्रेस में रावी के किनारे कांग्रेस के उस झंडे के नीचे आजादी के लिए प्राण देने की प्रतिज्ञा की और निश्चय किया कि हिंदू, मुसलमान, पारसी, ईसाई, सब एक होकर रहेंगे। वह निश्चय हम पूरी तरह नहीं निभा सके। इसलिए आज जितना आनंद होना चाहिए उतना नहीं हो रहा है। मगर इतना समझ लेना चाहिए कि अब विदेशी हमारे बीच में किसी तरह की फूट नहीं डाल सकेंगे। यह बहुत बड़ी बात है। लोग कहते हैं कि कांग्रेस ने मुल्क के टुकड़े कर दिए। एक तरह से यह बात सच है। हमने सोच-विचारकर यह जिम्मेदारी ली है। किसी के डर या दबाव में नहीं ली। हिंदुस्तान के टुकड़े करने का मैं सबसे कट्टर विरोधी था। लेकिन जब मैं केंद्रीय सरकार में आकर बैठा, तो देखा कि सांप्रदायिक जहर चपरासी से लेकर ऊँचे अधिकारियों तक फैल गया है। ऐसी हालत में साथ रहकर लड़ते रहने और तीसरे से बीच-बचाव कराते रहने से अलग हो जाना अच्छा है।
कुछ हफ्तों के बाद 2 सितंबर को हमें केंद्रीय सरकार में आए एक बरस पूरा हो जाएगा। कलकत्ता (अब कोलकाता) में मारकाट मचने के थोड़े ही दिन बाद हम केंद्रीय सरकार में आए। दोनों जातियों में बहुत वैरभाव है। कलकत्ता, लाहौर और बंबई (वर्तमान मुंबई) में जाकर देखिए तो जगह-जगह पाकिस्तान बन गए हैं। मुसलिम मुहल्ले में कोई हिंदू नहीं जा सकता। रावलपिंडी में जाकर देखिए तो वहाँ कोई हिंदू नहीं रह सकता। हमने देख लिया कि जब तक विदेशी सरकार रहेगी तब तक इस प्रश्न का निबटारा नहीं होगा। अंग्रेज़ सरकार ने डेढ़ वर्ष बाद सत्ता छोड़ने का निश्चय किया, तब आसाम, पंजाब, बंगाल, सरहद प्रांत चारों तरफ दंगे हुए, खूनखराबा हुआ। हमने सरकार से कहा, आप जल्दी चले जाइए। तब उन्होंने कहा कि तुम आपस में फैसला कर लो तो हम चले जाएँ। जिस पर हमने कहा कि अच्छा, पाकिस्तान की बात हमें मंजूर है परंतु बंगाल और पंजाब के टुकड़े कर दीजिए ।
हमने मजबूरी से यह बात मानी। नतीजा यह हुआ कि सरकार जो जून 1948 में सत्ता छोड़ने वाली थी, उसने उसके बजाय 15 अगस्त 1947 को छोड़ना तय किया। सेना और अधिकारियों वगैरह का बँटवारा कर दिया।
विभाजन के बाद भी देश की कुल आबादी की 75 फीसदी प्रजा जिस तरफ रही है उसे ऊँचा उठाना है। हिंदुस्तान इस वक्त कठिनाई में है। आर्थिक कठिनाइयाँ हैं। हिंदुस्तान देनदार से लेनदार देश जरूर बन गया है, मगर यह निश्चित नहीं है कि इंग्लैंड रुपया कब तक लौटाएगा, तब लेनदार बनने से क्या लाभ?
बोलने से कुछ नहीं होता। पंडित तो बहुत हैं। हमारे समाजवादी भाई समाजवादी राज्य की बातें करते हैं। मैं उनसे कहता हूँ कि तुम एक प्रांत लेकर उसमें सब कुछ करके दिखाओ। इंग्लैंड में समाजवादी दल का राज्य है, मगर वे मज़दूरों के काम के घंटे बढ़ाने की बात कहते हैं और हमारे यहाँ समाजवादी हड़ताल की बातें करते हैं। और कहते हैं कि वेतन बढ़ाओ। तब पैसा कहाँ से आएगा? नासिक के कारखाने में नोट छापते रहने से देश का धन नहीं बढ़ेगा। देश में धन है कहाँ? हिसाब लगाओ, प्रति आदमी कितनी पाइयाँ आती हैं ?
राजा-महाराजाओं से मैं कहता हूँ कि वक्त आने पर आपको प्रजा के कहे अनुसार करना है। जिन राजाओं के साथ प्रजा नहीं होगी वे अपने आप खतम हो जाएँगे। मैं उनसे कहता हूँ कि 15 तारीख तक जो भारतीय संघ में आ गया वह आ गया, बाद में दूसरी तरह हिसाब होगा। आज जो शर्तें मिलती हैं वे फिर नहीं मिलेंगी। इसलिए राज्य सँभालना हो तो अंदर आ जाइए। आज की दुनिया में अकेला रहना मुश्किल है। जब तेज आँधी आती है तब अकेला पेड़ गिर जाता है। मगर जो दूसरे पेड़ के समूह में होता है वह बच जाता है। आप भी रामचंद्र जी और अशोक जैसों के वंशज हैं। परंतु आजकल आप अंग्रेज अधिकारियों के छोटे-छोटे चपरासियों को भी सलाम करते हैं। आपको अभी तक विश्वास नहीं होता कि 15 अगस्त को अंग्रेज़ चले जाएँगे, परंतु जब वे जाएँगे और आपको स्वतंत्रता की हवा लगेगी तब आपके हृदयपट खुलेंगे।
मैं जब जेल से छूटा तभी से कहता हूँ कि अब एशिया महाद्वीप में यूरोपियों के लिए हुकूमत करना मुश्किल है। इंडोनेशिया में डच लोग गड़बड़ कर रहे हैं। पिछले युद्ध के नतीजे तो अभी खतम ही नहीं हुए कि फिर जहाँ-तहाँ छोटी-छोटी लड़ाइयाँ हो रही हैं। दोबारा बड़ी लड़ाई होगी तो सब जगह लड़ने वालों का कब्रिस्तान बन जाएगा।
देश में शांति होनी चाहिए। जंगली ढंग से लड़ने से, कोई बहन जा रही हो या बच्चा जा रहा हो, उसे छुरी मार देने से किसी जाति की प्रतिष्ठा नहीं बढ़ती। शांति के बिना हमारा किसी तरह उद्धार नहीं होगा। जिसमें किसी के संतोष के लिए झुकने की बात नहीं है, अक्ल की बात है। फिर भी आपको लड़ना हो तो लड़िए। मगर फौज से लड़िए। जिस तरह गले काटने में दुनिया हमारा तमाशा देखती है। अंग्रेज़ लोगों के दिल में जहर था, वह तो निकल गया है। अब हम कितना ही लड़ें, तो भी एक प्रजा से दो प्रजा नहीं हो सकते। देश के टुकड़े होने पर भी प्रजा के टुकड़े नहीं हो सकते। टुकड़े कौन कर सकता है? नदी और पहाड़ के टुकड़े हो सकेंगे? मुसलमानों का भी मूल यहीं है। यहाँ जामा मसजिद है, ताजमहल है, अलीगढ़ यूनिवर्सिटी है। इसलिए हमारे साथ एक हुए बिना उनका छुटकारा नहीं। आज जो सरकार बन रही है, उसमें सावधानी रखने की जरूरत है। सेना में जितने मुसलमान थे, वे उस तरफ चले गए हैं और हिंदू इस ओर आ गए हैं। ऐसी सेना में राष्ट्रीयता कहाँ से आएगी? हिंदू चपरासी और क्लर्क सब इधर आ गए हैं और मुसलमान उधर चले गए हैं। मगर जब मुश्किल पड़ेगी तब वे लौट आएँगे। हमारा राज्य सांप्रदायिक राज्य नहीं है। देश के टुकड़े हो जाने के बाद भी हमारा मुल्क बहुत बड़ा है। आबादी भी बहुत है। बीते हुए समय को सपने की तरह भूल जाइए। पाकिस्तान को भूल जाइए। हाँ, एक बात है। उनकी तरफ से झगड़ा करने की कोशिश की जाए तो फिर हमारे बदन में ताकत होनी चाहिए। इसमें संगठन होना चाहिए।
कुछ लोग इस समय गो-रक्षा की बात करने लगे हैं। अभी तो बच्चों, स्त्रियों और बूढ़ों की ही रक्षा नहीं होती, तब गो-रक्षा की तो बात ही कहाँ ? जिन मुल्कों में गायों की हत्या करने की मनाही नहीं है वहाँ जैसी हृष्ट-पुष्ट गायें पाई जाती हैं, वैसी यहाँ नहीं पाई जातीं। सचमुच गो-रक्षा करनी हो तो गाय को अच्छी तरह पालना सीखिए ।
इस समय हिंदुस्तान को एक करने का मौका है। आज लाहौर से लेकर पूर्व बंगाल का थोड़ा भाग छोड़कर बाकी के हिंदुस्तान को एक करने का मौका एक हजार वर्ष बाद आया है। हमें आजादी मिल गई है। हमें अच्छी तरह काम करना हो तो देश में शांति चाहिए। शांति नहीं होगी, खाने को नहीं होगा, तो लोग कहेंगे कि अंग्रेजों की गुलामी अच्छी थी। पिछला इतिहास अब भूल जाइए। 15 अगस्त के बाद कांग्रेस का कार्यक्रम बना लीजिए। अब तक का बहुत-सा समय झगड़े में बीता है। हम यहाँ इस तरह नहीं बैठे हैं कि धक्का मारते ही हट जाएँ। जैसा परसों जवाहर लाल जी ने कहा है, जो हमसे अच्छा काम करके दिखाए वह आ सकता है। हम उसे सत्ता सौंपने को तैयार हैं।