काठियावाड़ में रविशंकर महाराज ने ठाकुरों से शराब नहीं पीने की प्रतिज्ञाएँ करवाई तो एक ठाकुर ने कहा- “मैंने दारू छोड़ने की प्रतिज्ञा तो की है; मगर दारू ने मेरे रग-रग को पकड़ रखा है।”
महाराज ने कहा- मुझे अभी काम है। कल आ जाना, बातें होंगी।”
दूसरे दिन सवेरे ठाकुर ने आवाज लगाई तो महाराज ने कहा, “मैं कैसे आऊँ, खंभे ने मुझे पकड़ रखा है।”
ठाकुर अंदर गए, तो देखा, महाराज के दोनों हाथ खंभे से सटे हैं। बोले “हाथ वहाँ से हटाइए न।”
यह छोड़े तब तो।” उत्तर मिला।
कुछ देर बाद महाराज ने खंभे को छोड़ दिया और पूछा, “ठाकुर, खंभे ने मुझे पकड़ा था, या मैंने उसे?”
“आपने खंभे को पकड़ा था, खंभा भला आपको क्या पकड़ेगा?
फिर दारू को तुम नहीं छोड़ते कि दारू तुम्हें नहीं छोड़ता?” ठाकुर ने उसी क्षण दारू छोड़ने का संकल्प लिया।