एक बार मैं काशी में किसी जगह जा रहा था। उस जगह एक तरफ भारी जलाशय और दूसरी तरफ ऊँची दीवार थी। उस स्थान पर बहुत-से बंदर रहते थे। काशी के बंदर बड़े दुष्ट होते हैं। अब उनके मन में यह विकार पैदा हुआ कि मुझे उस रास्ते पर से न जाने दें। वे विकट चीत्कार करने लगे और झट आकर मेरे पैरों से चिपटने लगे। उन्हें निकट देखकर मैं भागने लगा। किंतु मैं जितना ज्यादा जोर से दौड़ने लगा, वे उतनी ही अधिक तेज़ी से आकर मुझे काटने लगे। उनके हाथ से छुटकारा पाना असंभव प्रतीत होने लगा। ऐसे ही समय एक अपरिचित ने आकर मुझे आवाज़ दी — “बंदरों का सामना करो।” मैं भी जैसे ही उलटकर उनके सामने खड़ा हुआ, वैसे ही वे पीछे हटकर भाग गए।
समस्त जीवन में, जो कुछ भी भयानक है, उसका हमें सामना करना पड़ेगा, साहसपूर्वक उसके सामने खड़ा होना पड़ेगा। यदि हमें मुक्ति या स्वाधीनता का अर्जन करना हो, तो प्रकृति को जीतने पर ही हम उसे पाएँगे, प्रकृति से भागकर नहीं। कापुरुष कभी विजय नहीं पा सकता। हमें भय, कष्ट और अज्ञान के साथ संग्राम करना होगा, तभी वे हमारे सामने से भागेंगे।