(1907-1987)
हिंदी के महत्त्वपूर्ण काव्ययुग-छायावाद के कवि-चतुष्ट्य में से एक। प्रेम और करुणा से ओत-प्रोत काव्य गीतों एवं संस्मरणात्मक रेखाचित्रों के लिए बहुप्रशंसित। भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित। उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया और वे साहित्य अकादमी की फैलो भी रहीं। प्रमुख कृतियाँ : नीहार, रश्मि, नीरजा, यामा, दीपशिखा (कविता संग्रह); शृंखला की कड़ियाँ (निबंध); स्मृति की रेखाएँ, अतीत के चलचित्र (संस्मरण)।
सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है। इसे देखकर अनायास ही उस छोट जीव का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर मेरे निकट पहुँचते ही कंधे पर कूदकर मुझे चौंका देता था। तब मुझे कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राण की खोज है।
परंतु वह तो अब तक इस सोनजुही की जड़ में मिट्टी होकर मिल गया होगा। कौन जाने स्वर्णिम कली के बहाने वही मुझे चौंकाने ऊपर आ गया हो!
अचानक एक दिन सवेरे कमरे से बरामदे में आकर मैंने देखा, दो कौवे एक गमले के चारों ओर चोंचों से छूआ-छुऔवल जैसा खेल खेल रहे हैं। यह काकभुशुंडि भी विचित्र पक्षी है.एक साथ समादरित अनादरित, अति सम्मानित अति अवमानित।
हमारे बेचारे पुरखे न गरुड़ के रूप में आ सकते हैं, न मयूर के, न हंस के। उन्हें पितरपक्ष में हमसे कुछ पाने के लिए काक बनकर ही अवतीर्ण होना पड़ता है। इतना ही नहीं हमारे दूरस्थ प्रियजनों को भी अपने आने का मधुर संदेश इनके कर्कश स्वर में ही देना पड़ता है। दूसरी ओर हम कौवा और काँव-काँव करने को अवमानना के अर्थ में ही प्रयुक्त करते हैं।
मेरे काकपुराण के विवेचन में अचानक बाधा आ पड़ी, क्योंकि गमले और दीवार की संधि में छिपे एक छोटे-से जीव पर मेरी दृष्टि रुक गई। निकट जाकर देखा, गिलहरी का छोटा-सा बच्चा है जो संभवतः घोंसले से गिर पड़ा है और अब कौवे जिसमें सुलभ आहार खोज रहे हैं।
काकद्वय की चोंचों के दो घाव उस लघुप्राण के लिए बहुत थे, अतः वह निश्चेष्ट-सा गमले से चिपटा पड़ा था।
सबने कहा, कौवे की चोंच का घाव लगने के बाद यह बच नहीं सकता, अतः इसे ऐसे ही रहने दिया जाए।
परंतु मन नहीं माना उसे हौले से उठाकर अपने कमरे में लाई, फिर रुई से रक्त पोंछकर घावों पर पेंसिलिन का मरहम लगाया।
रुई की पतली बत्ती दूध से भिगोकर जैसे-जैसे उसके नन्हे से मुँह में लगाई पर मुँह खुल न सका और दूध की बूँदे दोनों ओर ढुलक गईं ।
कई घंटे के उपचार के उपरांत उसके मुँह में एक बूँद पानी टपकाया जा सका। तीसरे दिन वह इतना अच्छा और आश्वस्त हो गया कि मेरी उँगली अपने दो नन्हे पंजों से पकड़कर, नीले काँच के मोतियों जैसी आँखों से इधर-उधर देखने लगा।
तीन-चार मास में उसके स्निग्ध रोएँ, झब्बेदार पूँछ और चंचल चमकीली आँखें सबको विस्मित करने लगीं।
हमने उसकी जातिवाचक संज्ञा को व्यक्तिवाचक का रूप दे दिया और इस प्रकार हम उसे गिल्लू कहकर बुलाने लगे। मैंने फूल रखने की एक हलकी डलिया में रुई बिछाकर उसे तार से खिड़की पर लटका दिया।
वही दो वर्ष गिल्लू का घर रहा। वह स्वयं हिलाकर अपने घर में झूलता और अपनी काँच के मनकों-सी आँखों से कमरे के भीतर और खिड़की से बाहर न जाने क्या देखता-समझता रहता था। परंतु उसकी समझदारी और कार्यकलाप पर सबको आश्चर्य होता था।
जब मैं लिखने बैठती तब अपनी ओर मेरा ध्यान आकर्षित करने की उसे इतनी तीव्र इच्छा होती थी कि उसने एक अच्छा उपाय खोज निकाला।
वह मेरे पैर तक आकर सर्र से परदे पर चढ़ जाता और फिर उसी तेज़ी से उतरता। उसका यह दौड़ने का क्रम तब तक चलता जब तक मैं उसे पकड़ने के लिए न उठती।
कभी मैं गिल्लू को पकड़कर एक लंबे लिफ़ाफ़े में इस प्रकार रख देती कि उसके अगले दो पंजों और सिर के अतिरिक्त सारा लघुगात लिफ़ाफ़े के भीतर बंद रहता। इस अद्भुत स्थिति में कभी-कभी घंटों मेज़ पर दीवार के सहारे खड़ा रहकर वह अपनी चमकीली आँखों से मेरा कार्यकलाप देखा करता।
भूख लगने पर चिक-चिक करके मानो वह मुझे सूचना देता और काजू या बिस्कुट मिल जाने पर उसी स्थिति में लिफ़ाफ़े से बाहर वाले पंजों से पकड़कर उसे कुतरता।
फिर गिल्लू के जीवन का प्रथम बसंत आया। नीम-चमेली की गंध मेरे कमरे में हौले-हौले आने लगी। बाहर की गिलहरियाँ खिड़की की जाली के पास आकर चिक-चिक करके न जाने क्या कहने लगीं?
गिल्लू को जाली के पास बैठकर अपनेपन से बाहर झाँकते देखकर मुझे लगा कि इसे मुक्त करना आवश्यक है।
मैंने कीलें निकालकर जाली का एक कोना खोल दिया और इस मार्ग से गिल्लू ने बाहर जाने पर सचमुच ही मुक्ति की साँस ली। इतने छोटे जीव को घर में पले कुत्ते, बिल्लियों से बचाना भी एक समस्या ही थी।
आवश्यक कागज़-पत्रों के कारण मेरे बाहर जाने पर कमरा बंद ही रहता है। मेरे कॉलेज से लौटने पर जैसे ही कमरा खोला गया और मैंने भीतर पैर रखा, वैसे ही गिल्लू अपने जाली के द्वार से भीतर आकर मेरे पैर से सिर और सिर से पैर तक दौड़ लगाने लगा। तब से यह नित्य का क्रम हो गया।
मेरे कमरे से बाहर जाने पर गिल्लू भी खिड़की की खुली जाली की राह बाहर चला जाता और दिन भर गिलहरियों के झुंड का नेता बना हर डाल पर उछलता-कूदता रहता और ठीक चार बजे वह खिड़की से भीतर आकर अपने झूले में झूलने लगता।
मुझे चौंकाने की इच्छा उसमें न जाने कब और कैसे उत्पन्न हो गई थी। कभी फूलदान के फूलों में छिप जाता, कभी परदे की चुन्नट में और कभी सोनजुही की पत्तियों में।
मेरे पास बहुत से पशु-पक्षी हैं और उनका मुझसे लगाव भी कम नहीं है, परंतु उनमें से किसी को मेरे साथ मेरी थाली में खाने की हिम्मत हुई है, ऐसा मुझे स्मरण नहीं आता।
गिल्लू इनमें अपवाद था। मैं जैसे ही खाने के कमरे में पहुँचती, वह खिड़की से निकलकर आँगन की दीवार, बरामदा पार करके मेज़ पर पहुँच जाता और मेरी थाली में बैठ जाना चाहता। बड़ी कठिनाई से मैंने उसे थाली के पास बैठना सिखाया जहाँ बैठकर वह मेरी थाली में से एक-एक चावल उठाकर बड़ी सफ़ाई से खाता रहता। काजू उसका प्रिय खाघ था और कई दिन काजू न मिलने पर वह अन्य खाने की चीज़ें या तो लेना बंद कर देता या झूले से नीचे फेंक देता था।
उसी बीच मुझे मोटर दुर्घटना में आहत होकर कुछ दिन अस्पताल में रहना पडा़ उन दिनों जब मेरे कमरे का दरवाज़ा खोला जाता गिल्लू अपने झूले से उतरकर दौड़ता और फिर किसी दूसरे को देखकर उसी तेज़ी से अपने घोंसले में जा बैठता। सब उसे काजू दे आते, परंतु अस्पताल से लौटकर जब मैंने उसके झूले की सफ़ाई की तो उसमें काजू भरे मिले, जिनसे ज्ञात होता था कि वह उन दिनों अपना प्रिय खाघ कितना कम खाता रहा।
मेरी अस्वस्थता में वह तकिए पर सिरहाने बैठकर अपने नन्हे-नन्हे पंजों से मेरे सिर और बालों को इतने हौले-हौले सहलाता रहता कि उसका हटना एक परिचारिका के हटने के समान लगता।
गरमियों में जब मैं दोपहर में काम करती रहती तो गिल्लू न बाहर जाता न अपने झूले में बैठता। उसने मेरे निकट रहने के साथ गरमी से बचने का एक सर्वथा नया उपाय खोज निकाला था। वह मेरे पास रखी सुराही पर लेट जाता और इस प्रकार समीप भी रहता और ठंडक में भी रहता।
गिलहरियों के जीवन की अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं होती, अतः गिल्लू की जीवन यात्रा का अंत आ ही गया। दिन भर उसने न कुछ खाया न बाहर गया। रात में अंत की यातना में भी वह अपने झूले से उतरकर मेरे बिस्तर पर आया और ठंडे पंजों से मेरी वही उँगली पकड़कर हाथ से चिपक गया, जिसे उसने अपने बचपन की मरणासन्न स्थिति में पकड़ा था।
पंजे इतने ठंडे हो रहे थे कि मैंने जागकर हीटर जलाया और उसे उष्णता देने का प्रयत्न किया। परंतु प्रभात की प्रथम किरण के स्पर्श के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया। उसका झूला उतारकर रख दिया गया है और खिड़की की जाली बंद कर दी गई है, परंतु गिलहरियों की नयी पीढ़ी जाली के उस पार चिक-चिक करती ही रहती है और सोनजुही पर बसंत आता ही रहता है।
सोनजुही की लता के नीचे गिल्लू को समाधि दी गई है.इसलिए भी कि उसे वह लता सबसे अधिक प्रिय थी.इसलिए भी कि उस लघुगात का, किसी वासंती दिन, जुही के पीताभ छोटे फूल में खिल जाने का विश्वास, मुझे संतोष देता है।
कौओं की चोंच से आहत गिलहरी के बच्चे का जीवन-रक्षा के लिए गमले और दीवार के बीच छिपने का प्रयास करना।
पेंसिलिन के मरहम और दूध की बूँदों से तीन दिन में स्वस्थ हुए गिल्लू का मित्रवत् व्यवहार।
झूले में झूलना, खिड़की से बाहर झाँकना, लेखिका के पैरों तक आकर पर्दे पर चढ़ना, भूख लगने पर चिक-चिक करना जैसी बाल-सुलभ चेष्टाएँ।
संवेदनशील, भावप्रवण, ममता से परिपूर्ण लेखिका की सेवा से आहत गिलहरी का स्वस्थ होना।
लेखिका द्वारा गिलहरी के बच्चे का नामकरण करना, उसकी रुचियों, खानपान का ध्यान रखना, गिल्लू की बालसुलभ क्रीड़ाओं का आनंद लेना।
नन्हे गिल्लू की जैविकीय आवश्यकताओं, स्वाभाविक जीवनचर्या को समझना, खिड़की की जाली की कीलें निकालकर गिल्लू के लिए बाहर जाने का रास्ता बनाना।
लेखिका की थाली से गिल्लू का चावल उठाकर खाना।
गिल्लू की मृत्यु के बाद उसे सोनजुही की लता के नीचे समाधि देना।
सोनजुही की वासंती कलियों में गिल्लू की बाल-सुलभ चंचलता का आभास होना।
लेखिका के कॉलेज से लौटने पर उनके पैरों से सिर तक और सिर से पैर तक दौड़ लगाना।
खिड़की की खुली जाली के रास्ते बाहर जाना, गिलहरियों के झुंड का नेता बनकर हर डाल पर उछलना।
अस्वस्थ लेखिका के लिए परिचारिका की भूमिका निभाना।
अंतिम समय में लेखिका की उँगलियों का सहारा लेकर जीवन-लीला की समाप्ति।
यह पाठ महादेवी वर्मा द्वारा लिखा गया है जिसमें उन्होंने ‘गिल्लू’ नामक एक गिलहरी के बच्चे की चंचलता और उसके बारे में बताते हुए उसकी मृत्यु तक का वर्णन किया है। एक दिन लेखिका ने दो कौओं द्वारा घायल किए गए एक गिलहरी के बच्चे को देखा। वह निश्चेष्ट-सा गमले से चिपका पड़ा था। लेखिका उसे सावधानी से उठाकर अपने कमरे में ले आई।रूई से उसके खून को पोंछकर उसके घावों पर पेंसिलिन का मरहम लगाया। इस उपचार के तीन दिन बाद वह गिलहरी का बच्चा कूदने-फाँदने लगा। लेखिका ने उसका नाम ‘गिल्लू’ रखा और फल रखने की डलिया में रूई बिछाकर उसके रहने के लिए घोंसला बना दिया। कुछ ही दिनों में गिल्लू लेखिका से घुल-मिल गया। जब लेखिका लिखने बैठती तो गिल्लू लेखिका के आस-पास तेज़ी से दौड़कर लेखिका का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करता। कई बार लेखिका उसे पकड़कर एक लंबे लिफाफे में डाल देती थी इस स्थिति में उसके सिर और पंजे के अलावा सारा शरीर लिफाफे में रहता। भूख लगने पर वह चिक-चिक की ध्वनि करके लेखिका को इसकी सूचना देता और लेखिका उसे काजू या बिस्कुट खाने को देती। एक दिन लेखिका ने देखा कि गिल्लू बाहर घूमते हुए गिलहरियों को बड़े अपनेपन से देख रहा था। लेखिका ने उसके भावनाओं को समझा और खिड़की की जाली से कीलें निकालकर गिल्लू के बाहर जाने का मार्ग खोल दिया। जब लेखिका घर से बाहर जाती तो गिल्लू भी खिड़की वाले रास्ते से बाहर निकल जाता तथा जब लेखिका वापस घर आती तो वह भी खिड़की की जाली के रास्ते से घर में आ जाता। लेखिका गिल्लू की एक हरकत से बड़ी हैरान हुई थी। वह हरकत यह थी कि गिल्लू लेखिका के साथ बैठकर खाना खाना चाहता था। धीरे-धीरे लेखिका ने उसे भोजन की थाली के पास बैठना सिखाया और तब से वह लेखिका के साथ बैठकर खाता। काजू उसका प्रिय खाद्य वस्तु था। एक बार लेखिका मोटर दुर्घटना में घायल हो गई थीं और उन्हें कुछ दिन अस्पताल में रहना पड़ा। उनके न आने के कारण गिल्लू ने अपना प्रिय खाद्य काजू भी नहीं खाया और लेखिका के घर लौटने पर एक परिचारिका के समान उनकी सेवा की। अंततः गिल्लू का अंतिम समय आ गया। उसने खाना-पीना और बाहर जाना भी छोड़ दिया। वह रात भर लेखिका की उँगली पकड़े रहा और प्रभात होने तक वह सदा के लिए मौत की नींद सो गया। लेखिका ने सोनजुही की लता के नीचे गिल्लू की समाधि बनाई। लेखिका को विश्वास था कि एक दिन गिल्लू जूही के छोटे से पीले पत्ते के रूप में फिर से खिलेगा और वह फिर से उसे अपने आस-पास अनुभव कर पाएगी।
1 -निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) पहले पद में भगवान और भक्त की जिन – जिन चीजों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तर – पहले पद में भगवान और भक्त की तुलना चन्दन-पानी, बादल और मोर, चाँद और चकोर, दीप और बाती, मोती और धागा सोना और सुहागा से की गई है।
(ख) पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद – सौंदर्य आ गया है, जैसे – पानी, समानी आदि। इस पद में से अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर – तुकांत वाले शब्द
क. पानी – समानी
ख. मोरा- चकोरा
ग. बाती- राती
घ. धागा – सुहागा
ङ. दासा – रैदासा
(ग) पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबंध हैं। ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए –
उदाहरण : दीपक बाती
उत्तर – उदाहरण-
दीपक – बाती
मोती – धागा
स्वामी – दासा
चंद्र – चकोरा
चंदन – पानी
(घ) दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ किसे कहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – दूसरे पद में ‘गरीब निवाजु’ ईश्वर को कहा गया है। जिस व्यक्ति को ईश्वर की महिमा पर विश्वास होता है वह ईश्वर की कृपा से मोक्ष प्राप्त करता है। नीच से नीच व्यक्ति का भी उद्धार हो जाता है। समाज के ऐसे लोग जिनके स्पर्श से ही उच्च वर्ग लोग अपने आप को अपवित्र मानते हैं, ईश्वर की कृपा से उनका भी समाज में सम्मान बढ़ जाता है।
(ङ) दूसरे पद की ‘जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – इस पंक्ति का आशय यह है कि संसार में व्याप्त वर्ण और जाति व्यवस्था के कारण समाज के अनेक लोगों को अछूत होने की पीड़ा को सहन करना पड़ती है। समाज के कुछ आभिजात्य वर्ग के लोग इनके स्पर्श से अपने आपको अपवित्र मानते हैं। परंतु प्रभु के लिए सब समान हैं। प्रभु सदैव कर्म को ही प्रधानता देते हैं। उनके हिसाब से कर्म ही सच्ची पूजा है और वे कर्मठ व्यक्तियों के सारे दुख दूर कर देते हैं।
(च) ‘रैदास’ ने अपने स्वामी को किन – किन नामों से पुकारा है?
उत्तर – रैदास ने अपने स्वामी को गरीब निवाजु, लाल, गुसाई, हरि, गोविंद नाम से पुकारते हैं।
(छ) निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए –
मोरा, चंद, बाती, जोति, बरै, राती, छत्रु, धरै, छोति, तुहीं, गुसईआ
उत्तर – मोरा – मोर
चंद – चाँद
बाती – रुई, पुराने कपड़े आदि को ऐंठकर या बटकर बनाई हुई पतली पूनी
जोति – ज्योति
बरै – जलना
राती – रात
छत्रु – छत्र
धरै – धारण
छोति – छुआछूत
तुहीं – तुम ही
गुसईआ – स्वामी
1.सोनजुही = Jasmine
2. कली = Bud
3. अनायास = बिना प्रयास के
4. जीव = प्राणी
5. स्मरण = याद
6. लता = Creeper
7. हरीतिमा = हरापन
8. लघुप्राण = छोटा जीवन
9. स्वर्णिम = सुनहरा
10.छूआ-छुऔवल = एक प्रकार का खेल
11.काकभुशुंडि = कौआ
12.विचित्र = अनोखा
13.समादरित = समान आदर वाला
14.अनादरित = बेइज़्ज़त
15.पितरपक्ष = कृष्ण पक्ष
16.काक = कौआ
17.अवतीर्ण = अवतार के रूप में उत्पन्न
18.दूरस्थ = दूर का स्थान
19.संदेश = ख़बर
20.कर्कश = कड़वा
21.अवमानना = तिरस्कार
22.संधि = जोड़ मेल
23.संभवतः = Possibly
24.सुलभ = आसान, सरल, सहज
25.आहार = भोजन
26.काकद्वय = दो कौए
27.चोंच = Beak
28.निश्चेष्ट = बेहोश-सा
29.रक्त = लहू, खून
30.पेंसिलिन = एक प्रकार की दवा
31.मरहम = लेप
32.उपचार = इलाज
33.आश्वस्त = निश्चिंत
34.पंजा = Paws
35.स्निग्ध = चिकना
36.रोएँ = लोम
37.विस्मित = आश्चर्य
38.मनका = मोती
39.आकर्षित = Attract
40.तीव्र = द्रुत, तेज़
41.क्रम = सिलसिला
42.लिफ़ाफ़ा = खाम, Envelope
43.लघुगात = छोटा शरीर
44.अतिरिक्त = के अलावा
45.अद्भुत = विचित्र
46.मुक्त = आज़ाद
47.नित्य = प्रतिदिन
48.चुन्नट = Wrinkle
49.अपवाद = Exceptional
50.दुर्घटना = Accident
51.आहत = चोट
52.खाद्य = भोजन
53.प्रिपरिचारिका = Care taker
54.सुराही = मिट्टी का बर्तन
55.समीप = नज़दीक
56.ठंडक = शीतलता
57.यातना = कष्ट
58.मरणासन्न = मरने की स्थिति
59.उष्णता = गर्मी
60.समाधि = क़ब्र
61.पीताभ = जिसमें पीला रंग झलक रहा हो
62. संतोष = Satisfaction
1.सोनजुही में लगी पीली कली को देख लेखिका के मन में कौन से विचार उमड़ने लगे?
उत्तर – सोनजूही की पीली कली मनमोहक होती है। उस कली को देखकर लेखिका के मन यह विचार आया कि वह छोटा जीव इसी कली की सघन छाया में छिपकर बैठ जाता था। वह लेखिका के निकट पहुँचते ही कंधे पर कूद जाता था और उन्हें चौंका देता था। उस समय लेखिका को केवल कली की खीज रहती थी पर अब वे उस लघुगात, प्राणी को ढूँढ़ रही थी। इस कली को पुनः खिले हुए देखकर लेखिका के मन में उसी पारिवारिक सदस्य की याद आ जाती है जिसका नाम उन्होंने गिल्लू रखा था।
2.पाठ के आधार पर कौए को एक साथ समादरित और अनादरित प्राणी क्यों कहा गया है?
उत्तर – कौआ एक विचित्र प्राणी है। कभी इसका आदर किया जाता है तो कभी अनादर। पाठ के आधार पर कौए को समदारित कहा गया है।श्राद्धों में लोगकौए को आदर से बुलाते हैं क्योंकि माना जाता है कि जो लोग मर जाते हैं वे कौए के रूप में अपने प्रियजनों से मिलने आते हैं। उन्हें खाना खिलाकर ये माना जाता है कि अपने प्रियजनों को खाना खिला दिया। कौए के माध्यम से ही दूर बसे प्रियजनों के आने का संदेश मिलता है। कभी-कभी इसकाअनादर किया जाता है, क्योंकि कर्कश स्वर में काँव- काँव करके हमें परेशान करने लगता है।
3.गिलहरी के घायल बच्चे का उपचार किस प्रकार किया गया?
उत्तर – लेखिका ने दो कौओं की चोंच से घायल , गिलहरी के बच्चे को उठा लिया। कौओं के द्वारा चोंच मारे जाने के कारण निश्चेष्ट-सा गमले से चिपका हुआ पड़ा था। लेखिका उसे उठाकर अपने कमरे में ले आई और रूई से उसका खून पोंछकर उसके घावों पर पेंसिलिन का मरहम लगाया। लेखिका ने रूई की पतली बत्ती दूध से भिगोकर बार-बार उसके नन्हें से मुँह पर लगाई किन्तु उसका मुँह पूरा खुल न पाता था। काफी देर लेखिका उसका उपचार करती रही और उसके मुँह में पानी की बूँद टपकाने में सफल हो सकी।लेखिका के इस प्रकार के उपचार के तीन दिन बाद ही गिलहरी का बच्चा पूरी तरह अच्छा और स्वस्थ हो गया।
4.लेखिका का ध्यान आकर्षित करने के लिए गिल्लू क्या करता था?
उत्तर – जब लेखिका बैठती तो गिल्लू उनका ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करता। इसके लिए वह लेखिका के पैर तक आकार तेज़ी से पर्दे पर चढ़ जाता और फिर तेज़ी से उतरता। गिल्लू का यह सिलसिला उस समय तक चलता रहता जब तक लेखिका उसे पकड़ने के लिए न उठती। इस प्रकार गिल्लू लेखिका का ध्यान आकर्षित करने में सफल हो जाता।
5.गिल्लू को मुक्त करने की आवश्यकता क्यों समझी गई और उसके लिए लेखिका ने क्या उपाय किया?
उत्तर – गिल्लू को मुक्त करने की आवश्यकता पड़ी क्योंकि उसके जीवन का पहला वसंत आ गया था। बाहर की गिलहरियाँ खिड़की की जाली के पास आकर चिक-चिक कहकर गिल्लू को कुछ कहने लगी। गिल्लू जाली के पास बैठकर उन्हें निहारता रहता था। लेखिका को लगा कि उन्हें मुक्त वातावरण मेंउछलते-कूदते देख गिल्लू का भी मन बाहर जाने के लिए मचलता होगा। साथ ही साथ उसे मुक्तकरना इसलिए भी ज़रूरी था क्योंकि उस लघुगात को कुत्ते और बिल्ली से बचाना भी था। लेखिका ने उसे मुक्त करने के लिए जाली का एक कोना खोल दिया और इस मार्ग से गिल्लू बाहर आ-जा सकता था। बाहर जाकर गिल्लू ने सचमुच मुक्ति की सांस ली।
6.गिल्लू किन अर्थों में परिचारिका की भूमिका निभा रहा था?
उत्तर – एक बार लेखिका मोटर दुर्घटना में घायल हो गई और कई दिनों तक उन्हें अस्पताल में रहना पड़ा। अस्पताल से घर आने के बाद गिल्लू ने परिचारिका की तरह लेखिका की सेवा की। वह लेखिका के पास बैठा रहता था। वह तकिये पर सिरहाने बैठकर अपने नन्हें-नन्हें पंजों से लेखिका के सिर और बालों को इस प्रकार सहलाता जिस प्रकार कोई सेविका अपने हाथों को हल्का कर मालिश कर रही हो। गिल्लू का सिरहाने से हटना लेखिका को ऐसा प्रतीत होता मानो परिचारिका ही हट गई हो।
7.गिल्लू की किन चेष्टाओं से यह आभास मिलने लगा था कि अब उसका अंत समय समीप है?
उत्तर – गिलहरी की जीवन अवधि लगभग दो वर्ष की होती है। जब गिल्लू का अंत समय आया तो उसने दिन भर कुछ भी नहीं खाया। वह घर से बाहर भी नहीं गया। वह अपने अंतिम समय में झूले से उतरकरलेखिका के बिस्तर पर निश्चेष्ट लेट गया। उसके पंजे पूरी तरह ठंडे पड़ चुके थे। वह अपने ठंडे पंजे से लेखिका की अँगुली पकड़ कर हाथ से चिपक गया। लेखिका ने हीटर जलाकर उसे गर्मी देने का प्रयास किया परंतु इसका कोई लाभ न हुआ। सुबह होने तक गिल्लू की मृत्यु हो चुकी थी।
8.’प्रभात की प्रथम किरण के स्पर्श के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है मृत्यु। गिल्लू के जीवन का मार्मिक अंत हो गया। गिल्लू महादेवी वर्मा के परिवार का एक सदस्य था। गिल्लू की मौत पर लेखिका के ये वाक्य इस ओर इशारा करते हैं कि गिल्लू भले ही आज हमारे साथ न हो परंतु वह किसी न किसी रूप में फिर से जन्म लेगा।
9.सोनजुही की लता के नीचे बनी गिल्लू की समाधि से लेखिका के मन में किस विश्वास काजन्म होता है?
उत्तर – सोनजूही की पीली कली लगी थी। इसी सोनजूही की लता के नीचे गिल्लू की समाधि थी जो लेखिका को गिल्लू के पुनर्जन्म की अनुभूति दिला रहा था।लेखिका को ऐसा लगा कि इस पीली कली के रूप में गिल्लू फिर से उन्हें चौंकाने आया है।
मुहावरे
1. मिट्टी में मिलना – समाप्त होना
2. जीवन में बसंत आना – प्रसन्न होना
3. मुक्ति की सांस लेना – स्वतंत्रता का अहसास होना
वाक्यांशों के लिए एक शब्द
1. अनायास = बिना प्रयास किए
2. समदारित = सम्मान के योग्य
3. अनादरित = जो तिरस्कृतया अपमानित हो
4. सुलभ = आसानी से प्राप्त होनेवाला
5. अद्भुत = जो अनोखा हो
6. अपवाद = सामान्य नियम को बाधित करनेवाला
7. परिचारिका = सेवा-सुश्रुषा करनेवाली
8. मरणासन्न = मृत्यु के पास पहुँची हुई अवस्था
विलोम शब्द
1. अनायास # सायास
2. स्मरण # विस्मरण
3. लघु # विशाल/गुरु
4. दूरस्थ # निकटस्थ
5. मधुर # कर्कश
6. अर्थ # अनर्थ
7. सुलभ # दुर्लभ
8. आहार # निराहार
9. निश्चेष्ट # सचेष्ट
10. उपरांत # पूर्व
11. आश्वस्त # नाश्वस्त
12. चंचल # स्थिर
13. आकर्षित # अनाकर्षित
14. तीव्र # मंद
15. इच्छा # अनिच्छा
16. अगले # पिछले
17. अद्भुत # सामान्य
18. अपनापन # परायापन
19. मुक्त # बंधन
20. नित्य # अनित्य
21. खाद्य # अखाद्य
22. स्वस्थ # अस्वस्थ
23. अंत # अनंत
24. उष्ण # शीत
अनेकार्थी शब्द
1. प्राण = वायु, जल, जीवात्मा
2. पक्षी = जीवात्मा, पक्षी
3. खोज = आविष्कार, ढूँढ़ना
उपसर्ग एवं प्रत्यय
उपसर्ग
1. स- सघन
2. वि – विचित्र
3. सम – समाहरित, समदारित
4. अन- अनादरित
5. अव- अवमानित, अवतीर्ण, अवमानना
6. प्र – प्रयुक्त
7. सु – सुलभ
8. अ – अस्वस्थ
9. अप – अपवाद
प्रत्यय
10. इम – स्वर्णिम
11. इत – सम्मानित, समदारित
12. पन – अपनापन
13. स्थ – दूरस्थ
14. त: – संभवत:
15. दार – समझदार, झब्बेदार
16. ता – कूदता, उछलता, उष्णता
17. इका – परिचारिका
18. ईली – चमकीली
19. क – ठंडक
20. याँ – गिलहरियाँ
पर्यायवाची
1. कली – कालिका, डोंडी, कोरक
2. मिट्टी – मृत्तिका, खाक, प्राणहीन
3. कौआ- काक, काग, दीर्घायु
4. पक्षी- खग, विहग, पखेरू
5. पुरखे – पूर्वज, वयोवृद्ध, बुजुर्ग
6. गरुड़ – खगराज, भुजंग, भोगी, हरिवाहन
7. मयूर- नीलकंठ, मोर, अहिभक्षी, केकी
8. हंस – मराल, राजहंस, धवलपक्ष
9. गिलहरी – गिल्की, चेखुर, कट्टो
10. घर- गृह, सदन, निकेतन
11. उपाय – तरकीब, युक्ति
12. गात – देह, तन, शरीर
13. झुंड – दल, गिरोह, टोली
14. नेता – नायक, प्रमुख, सरदार
15. चावल – धन, तंदुल, अक्षत
16. बाल- केश, कुंतल, अलक
17. अवधि – समय, काल, हद
18. यात्रा – भ्रमण, देशाटन, पर्यटन
19. समाधि – एकाग्रता, ध्यान, ब्रह्मलीनता