(1938-2013)
अध्यापन कार्य से प्रारंभ कर सरकारी नौकरी में विभिन्न महकमों में उच्च पदों पर कार्यरत रहे। सूचना और प्रसारण मंत्रालय में निदेशक (फिल्म नीति) के पद पर कार्य करते हुए समय से पहले ही नौकरी को विदा कह अपनी विशेष दिलचस्पी के कारण सिनेमा और टेलिविज़न के क्षेत्र में हो गए।
विकास, पर्यावरण और देशाटन की ओर विशेष झुकाव रखने वाले के. विक्रम सिंह ने ‘अंधी गली’ (1984), ‘न्यू डेल्ही टाइम्स’ (1985) के निर्माण में सहयोग करने के साथ-साथ तर्पण (1994) का भी निर्माण किया। उन्होंने टेलिविज़न के लिए फिल्म सृजन (1994) का निर्देशन तथा कवि और कविता शृंखला का निर्माण एवं निर्देशन भी किया। साठ से अधिक वृत्तचित्र भी बनाए। अनेक वृत्तचित्र राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में प्रदर्शित हुए। फिल्म कार्य के साथ-साथ जीवन, समाज और कलाओं से संबंधित विषयों पर जनसत्ता में नियमित रूप से स्तम्भ लेखन किया।
ध्वनि में यह अद्भुत गुण है कि एक क्षण में ही वह आपको किसी दूसरे समय-संदर्भ में पहुँचा सकती है। मैं उनमें से नहीं हूँ जो सुबह चार बजे उठते हैं, पाँच बजे तक तैयार हो लेते हैं और फिर लोधी गार्डन पहुँचकर मकबरों और मेम साहबों की सोहबत में लंबी सैर पर निकल जाते हैं। मैं आमतौर पर सूर्योदय के साथ उठता हूँ, अपनी चाय खुद बनाता हूँ और फिर चाय और अखबार लेकर लंबी अलसायी सुबह का आनंद लेता हूँ। अकसर अखबार की खबरों पर मेरा कोई ध्यान नहीं रहता। यह तो सिर्फ दिमाग को कटी पतंग की तरह यों ही हवा में तैरने देने का एक बहाना है। दरअसल इसे कटी पतंग योग भी कहा जा सकता है। इसे मैं अपने लिए काफ़ी ऊर्जादायी पाता हूँ और मेरा दृढ़ विश्वास है कि संभवतः इससे मुझे एक और दिन के लिए दुनिया का सामना करने में मदद मिलती है-एक ऐसी दुनिया का सामना करने में जिसका कोई सिर-पैर समझ पाने में मैं अब खुद को असमर्थ पाता हूँ।
अभी हाल में मेरी इस शांतिपूर्ण दिनचर्या में एक दिन खलल पड़ गया। मैं जगा एक ऐसी कानफाड़ू आवाज़ से, जो तोप दगने और बम फटने जैसी थी, गोया जॉर्ज डब्लू. बुश और सद्दाम हुसैन की मेहरबानी से तीसरे विश्वयुद्ध की शुरूआत हो चुकी हो। खुदा का शुक्र है कि ऐसी कोई बात नहीं थी। दरअसल यह तो महज़ स्वर्ग में चल रहा देवताओं का कोई खेल था, जिसकी झलक बिजलियों की चमक और बादलों की गरज के रूप में देखने को मिल रही थी। मैंने खिड़की के बाहर झाँका। आकाश बादलों से भरा था जो सेनापतियों द्वारा त्याग दिए गए सैनिकों की तरह आतंक में एक-दूसरे से टकरा रहे थे। विक्षिप्तों की तरह आकाश को भेद-भेद देने वाली तड़ित के अलावा जाड़े की अलस्सुबह का ठंडा भूरा आकाश भी था, जो प्रकृति के तांडव को एक पृष्ठभूमि मुहैया करा रहा था। इस तांडव के गर्जन-तर्जन ने मुझे तीन साल पहले त्रिपुरा में उनाकोटी की एक शाम में पहुँचा दिया।
दिसंबर 1999 में ‘ऑन द रोड’ शीर्षक से तीन खंडों वाली एक टीवी शृंखला बनाने के सिलसिले में मैं त्रिपुरा की राजधानी अगरतला गया था। इसके पीछे बुनियादी विचार त्रिपुरा की समूची लंबाई में आर-पार जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-44 से यात्रा करने और त्रिपुरा की विकास संबंधी गतिविधियों के बारे में जानकारी देने का था। त्रिपुरा भारत के सबसे छोटे राज्यों में से है। चौंतीस प्रतिशत से ज़्यादा की इसकी जनसंख्या वृद्धि दर भी खासी ऊँची है। तीन तरफ़ से यह बांग्लादेश से घिरा हुआ है और शेष भारत के साथ इसका दुर्गम जुड़ाव उत्तर-पूर्वी सीमा से सटे मिज़ोरम और असम के द्वारा बनता है। सोनामुरा, बेलोनिया, सबरूम और कैलासशहर जैसे त्रिपुरा के ज़्यादातर महत्त्वपूर्ण शहर बांग्लादेश के साथ इसकी सीमा के करीब हैं। यहाँ तक कि अगरतला भी सीमा चौकी से महज़ दो किलोमीटर पर है। बांग्लादेश से लोगों की अवैध आवक यहाँ ज़बरदस्त है और इसे यहाँ सामाजिक स्वीकृति भी हासिल है। यहाँ की असाधारण जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण यही है। असम और पश्चिम बंगाल से भी लोगों का प्रवास यहाँ होता ही है। कुल मिलाकर बाहरी लोगों की भारी आवक ने जनसंख्या संतुलन को स्थानीय आदिवासियों के खिलाफ़ ला खड़ा किया है। यह त्रिपुरा में आदिवासी असंतोष की मुख्य वजह है।
पहले तीन दिनों में मैंने अगरतला और उसके इर्द-गिर्द शूटिंग की, जो कभी मंदिरों और महलों के शहर के रूप में जाना जाता था। उज्जयंत महल अगरतला का मुख्य महल है जिसमें अब वहाँ की राज्य विधानसभा बैठती है। राजाओं से आम जनता को हुए सत्ता हस्तांतर को यह महल अब नाटकीय रूप में प्रतीकित करता है। इसे भारत के सबसे सफल शासक वंशों में से एक, लगातार 183 क्रमिक राजाओं वाले त्रिपुरा के माणिक्य वंश का दुखद अंत ही कहेंगे।
त्रिपुरा में लगातार बाहरी लोगों के आने से कुछ समस्याएँ तो पैदा हुई हैं लेकिन इसके चलते यह राज्य बहुधार्मिक समाज का उदाहरण भी बना है। त्रिपुरा में उन्नीस अनुसूचित जनजातियों और विश्व के चारों बड़े धर्मों का प्रतिनिधित्व मौजूद है। अगरतला के बाहरी हिस्से पैचारथल में मैंने एक सुंदर बौद्ध मंदिर देखा। पूछने पर मुझे बताया गया कि त्रिपुरा के उन्नीस कबीलों में से दो, यानी चकमा और मुघ महायानी बौद्ध हैं। ये कबीले त्रिपुरा में बर्मा या म्यांमार से चटगाँव के रास्ते आए थे। दरअसल इस मंदिर की मुख्य बुद्ध प्रतिमा भी 1930 के दशक में रंगून से लाई गई थी।
अगरतला में शूटिंग के बाद हमने राष्ट्रीय राजमार्ग-44 पकड़ा और टीलियामुरा कस्बे में पहुँचे जो दरअसल कुछ ज़्यादा बड़ा हो गया गाँव ही है। यहाँ मेरी मुलाकात हेमंत कुमार जमातिया से हुई जो यहाँ के एक प्रसिद्ध लोकगायक हैं और जो 1996 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा पुरस्कृत भी हो चुके हैं। हेमंत कोकबारोक बोली में गाते हैं जो त्रिपुरा की कबीलाई बोलियों में से है। जवानी के दिनों में वे पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन के कार्यकर्ता थे। लेकिन जब उनसे मेरी मुलाकात हुई तब वे हथियारबंद संघर्ष का रास्ता छोड़ चुके थे और चुनाव लड़ने के बाद ज़िला परिषद् के सदस्य बन गए थे।
ज़िला परिषद ने हमारी शूटिंग यूनिट के लिए एक भोज का आयोजन किया। यह एक सीधा-सादा खाना था जिसे सम्मान और लगाव के साथ परोसा गया था। भारत की मुख्य धारा में आई मुँहजोर और दिखावेबाज संस्कृति ने अभी त्रिपुरा के जन-जीवन को नष्ट नहीं किया है। भोज के बाद मैंने हेमंत कुमार जमातिया से एक गीत सुनाने का अनुरोध किया और उन्होंने अपनी धरती पर बहती शक्तिशाली नदियों, ताज़गी भरी हवाओं और शांति का एक गीत गाया। त्रिपुरा में संगीत की जड़ें काफ़ी गहरी प्रतीत होती हैं। गौरतलब है कि बॉलीवुड के सबसे मौलिक संगीतकारों में एक एस.डी. बर्मन त्रिपुरा से ही आए थे। दरअसल वे त्रिपुरा के राजपरिवार के उत्तराधिकारियों में से थे।
टीलियामुरा शहर के वार्ड नं. 3 में मेरी मुलाकात एक और गायक मंजु ऋषिदास से हुई। ऋषिदास मोचियों के एक समुदाय का नाम है। लेकिन जूते बनाने के अलावा इस समुदाय के कुछ लोगों की विशेषज्ञता थाप वाले वाघों जैसे तबला और ढोल के निर्माण और उनकी मरम्मत के काम में भी है। मंजु ऋषिदास आकर्षक महिला थीं और रेडियो कलाकार होने के अलावा नगर पंचायत में अपने वार्ड का प्रतिनिधित्व भी करती थीं। वे निरक्षर थीं। लेकिन अपने वार्ड की सबसे बड़ी आवश्यकता यानी स्वच्छ पेयजल के बारे में उन्हें पूरी जानकारी थी। नगर पंचायत को वे अपने वार्ड में नल का पानी पहुँचाने और इसकी मुख्य गलियों में ईंटें बिछाने के लिए राज़ी कर चुकी थीं।
हमारे लिए उन्होंने दो गीत गाए और इसमें उनके पति ने शामिल होने की कोशिश की क्योंकि मैं उस समय उनके गाने की शूटिंग भी कर रहा था। गाने के बाद वे तुरंत एक गृहिणी की भूमिका में भी आ गईं और बगैर किसी हिचक के हमारे लिए चाय बनाकर ले आईं। मैं इस बात को लेकर आश्वस्त हूँ कि किसी उत्तर भारतीय गाँव में ऐसा होना संभव नहीं है क्योंकि स्वच्छता के नाम पर एक नए किस्म की अछूत-प्रथा वहाँ अब भी चलन में है।
त्रिपुरा के हिंसाग्रस्त मुख्य भाग में प्रवेश करने से पहले, अंतिम पड़ाव टीलियामुरा ही है। राष्ट्रीय राजमार्ग-44 पर अगले 83 किलोमीटर यानी मनु तक की यात्रा के दौरान ट्रैफिक सी.आर.पी.एफ. की सुरक्षा में काफ़िलों की शक्ल में चलता है। मुख्य सचिव और आई.जी., सी.आर.पी.एफ. से मैंने निवेदन किया था कि वे हमें घेरेबंदी में चलने वाले काफ़िले के आगे-आगे चलने दें। थोड़ी ना-नुकुर के बाद वे इसके लिए तैयार हो गए लेकिन उनकी शर्त यह थी कि मुझे और मेरे कैमरामैन को सी.आर.पी.एफ. की हथियारबंद गाड़ी में चलना होगा और यह काम हमें अपने जोखिम पर करना होगा।
काफ़िला दिन में 11 बजे के आसपास चलना शुरू हुआ। मैं अपनी शूटिंग के काम में ही इतना व्यस्त था कि उस समय तक डर के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं थी जब तक मुझे सुरक्षा प्रदान कर रहे सी.आर.पी.एफ. कर्मी ने साथ की निचली पहाड़ियों पर इरादतन रखे दो पत्थरों की तरफ़ मेरा ध्यान आकृष्ट नहीं किया। “दो दिन पहले हमारा एक जवान यहीं विद्रोहियों द्वारा मार डाला गया था”, उसने कहा। मेरी रीढ़ में एक झुरझुरी सी दौड़ गई। मनु तक की अपनी शेष यात्रा में मैं यह खयाल अपने दिल से निकाल नहीं पाया कि हमें घेरे हुए सुंदर और अन्यथा शांतिपूर्ण प्रतीत होने वाले जंगलों में किसी जगह बंदूकें लिए विद्रोही भी छिपे हो सकते हैं।
त्रिपुरा की प्रमुख नदियों में से एक मनु नदी के किनारे स्थित मनु एक छोटा कस्बा है। जिस वक्त हम मनु नदी के पार जाने वाले पुल पर पहुँचे, सूर्य मनु के जल में अपना सोना उँड़ेल रहा था। वहाँ मैंने एक और काफ़िला देखा। एक साथ बँधे हज़ारों बाँसों का एक काफ़िला किसी विशाल ड्रैगन जैसा दिख रहा था और नदी पर बहा चला आ रहा था। डूबते सूरज की सुनहरी रोशनी उसे सुलगा रही थी और हमारे काफ़िले को सुरक्षा दे रही सी.आर.पी.एफ. की एक समूची कंपनी के उलट इसकी सुरक्षा का काम सिर्फ़ चार व्यक्ति सँभाले हुए थे।
अब हम उत्तरी त्रिपुरा ज़िले में आ गए थे। यहाँ की लोकप्रिय घरेलू गतिविधियों में से एक है अगरबत्तियों के लिए बाँस की पतली सींकें तैयार करना। अगरबत्तियाँ बनाने के लिए इन्हें कर्नाटक और गुजरात भेजा जाता है। उत्तरी त्रिपुरा ज़िले का मुख्यालय कैलासशहर है, जो बांग्लादेश की सीमा के काफ़ी करीब है।
मैंने यहाँ के ज़िलाधिकारी से मुलाकात की, जो केरल से आए एक नौजवान निकले। वे तेज़तर्रार, मिलनसार और उत्साही व्यक्ति थे। चाय के दौरान उन्होंने मुझे बताया कि टी.पी.एस. (टरू पोटेटो सीड्स) की खेती को त्रिपुरा में, खासकर उत्तरी ज़िले में किस तरह सफलता मिली है। आलू की बुआई के लिए आमतौर पर पारंपरिक आलू के बीजों की ज़रूरत दो मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर पड़ती है। इसके बरक्स टी.पी.एस की सिर्फ़ 100 ग्राम मात्रा ही एक हेक्टेयर की बुआई के लिए काफ़ी होती है। त्रिपुरा से टी.पी.एस. का निर्यात अब न सिर्फ़ असम, मिज़ोरम, नागालैंड और अरूणाचल प्रदेश को, बल्कि बांग्लादेश, मलेशिया और विएतनाम को भी किया जा रहा है। कलेक्टर ने अपने एक अधिकारी को हमें मुराई गाँव ले जाने को कहा, जहाँ टी.पी.एस. की खेती की जाती थी।
फिर ज़िलाधिकारी ने अचानक मुझसे पूछा, “क्या आप उनाकोटी में शूटिंग करना पसंद करेंगे?”
यह नाम मुझे कुछ जाना-पहचाना सा लगा, लेकिन इसके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं थी। ज़िलाधिकारी ने आगे बताया कि यह भारत का सबसे बड़ा नहीं तो सबसे बड़े शैव तीर्थों में से एक है। संसार के इस हिस्से में जहाँ युगों से स्थानीय आदिवासी धर्म ही फलते-फूलते रहे हैं, एक शैव तीर्थ? ज़िलाधिकारी के लिए मेरी उत्सुकता स्पष्ट थी। ‘यह जगह जंगल में काफ़ी भीतर है हालाँकि यहाँ से इसकी दूरी सिर्फ़ नौ किलोमीटर है।’ अब तक मेरे ऊपर इस जगह का रंग चढ़ चुका था।
टीलियामुरा से मनु तक की यात्रा कर लेने के बाद मैं खुद को ज़्यादा साहसी भी महसूस करने लगा था। मैंने कहा कि मैं निश्चय ही वहाँ जाना चाहूँगा और यदि संभव हुआ तो इस जगह की शूटिंग करना भी मुझे अच्छा लगेगा। अगले दिन ज़िलाधिकारी ने सारे सुरक्षा इंतज़ाम किए और यहाँ तक कि उनाकोटी में ही हमें लंच कराने का प्रस्ताव भी रखा। वहाँ हम सुबह नौ बजे के आसपास पहुँच गए लेकिन एक घंटे हमें इंतज़ार करना पड़ा क्योंकि खासे ऊँचे पहाड़ों से घिरी होने के चलते इस जगह सूरज की रोशनी दस बजे ही पहुँच पाती है।
उनाकोटी का मतलब है एक कोटि, यानी एक करोड़ से एक कम। दंतकथा के अनुसार उनाकोटी में शिव की एक कोटि से एक कम मूर्तियाँ हैं। विद्वानों का मानना है कि यह जगह दस वर्ग किलोमीटर से कुछ ज़्यादा इलाके में फैली है और पाल शासन के दौरान नवीं से बारहवीं सदी तक के तीन सौ वर्षों में यहाँ चहल-पहल रहा करती थी।
पहाड़ों को अंदर से काटकर यहाँ विशाल आधार-मूर्तियाँ बनी हैं। एक विशाल चट्टान ऋषि भगीरथ की प्रार्थना पर स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगा के अवतरण के मिथक को चित्रित करती है। गंगा अवतरण के धक्के से कहीं पृथ्वी धँसकर पाताल लोक में न चली जाए, लिहाज़ा शिव को इसके लिए तैयार किया गया कि वे गंगा को अपनी जटाओं में उलझा लें और इसके बाद इसे धीरे-धीरे पृथ्वी पर बहने दें। शिव का चेहरा एक समूची चट्टान पर बना हुआ है और उनकी जटाएँ दो पहाड़ों की चोटियों पर फैली हैं। भारत में शिव की यह सबसे बड़ी आधार-मूर्ति है। पूरे साल बहने वाला एक जल प्रपात पहाड़ों से उतरता है जिसे गंगा जितना ही पवित्र माना जाता है। यह पूरा इलाका ही शब्दशः देवियों-देवताओं की मूर्तियों से भरा पड़ा है।
इन आधार-मूर्तियों के निर्माता अभी चिह्नित नहीं किए जा सके हैं। स्थानीय आदिवासियों का मानना है कि इन मूर्तियों का निर्माता कल्लू कुम्हार था। वह पार्वती का भक्त था और शिव-पार्वती के साथ उनके निवास कैलाश पर्वत पर जाना चाहता था। पार्वती के जोर देने पर शिव कल्लू को कैलाश ले चलने को तैयार हो गए लेकिन इसके लिए शर्त यह रखी कि उसे एक रात में शिव की एक कोटि मूर्तियाँ बनानी होंगी। कल्लू अपनी धुन के पक्के व्यक्ति की तरह इस काम में जुट गया। लेकिन जब भोर हुई तो मूर्तियाँ एक कोटि से एक कम निकलीं। कल्लू नाम की इस मुसीबत से पीछा छुड़ाने पर अड़े शिव ने इसी बात को बहाना बनाते हुए कल्लू कुम्हार को अपनी मूर्तियों के साथ उनाकोटी में ही छोड़ दिया और चलते बने।
इस जगह की शूटिंग पूरी करते शाम के चार बज गए। सूर्य के ऊँचे पहाड़ों के पीछे जाते ही उनाकोटी में अचानक भयावना अंधकार छा गया। मिनटों में जाने कहाँ से बादल भी घिर आए। जब तक हम अपने उपकरण समेटें, बादलों की सेना गर्जन-तर्जन के साथ कहर बरपाने लगी। शिव का तांडव शुरू हो गया था जो कुछ-कुछ वैसा ही था, जैसा मैंने तीन साल बाद जाड़े की एक सुबह दिल्ली में देखा और जिसने मुझे एक बार फिर उनाकोटी पहुँचा दिया था।
इस यात्रा वृत्तांत में एक दिन अचानक आकाश में मेघों के घिरने व गर्जन-तर्जन होने से, तोप दागने और बम फटने जैसी आवाज़ों से लेखक के स्मृति पटल पर, तीन साल पहले त्रिपुरा के उनाकोटी की शाम की स्मृतियों उभरने लगती हैं।
दिसंबर 1999 में ‘ऑन द रोड’ शीर्षक से तीन खंडों में बनने वाली टी.वी. शृंखला बनाने के सिलसिले में लेखक त्रिपुरा की राजधानी अगरतला पहुँचे। त्रिपुरा राज्य की भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक स्थिति का वर्णन करना ही इस शृंखला और पाठ का प्रमुख उद्देश्य है। त्रिपुरा के बहुधार्मिक समाज, घरेलू उद्योगों तथा आलू की खेती के विषय में जानकारी देकर लेखक ने त्रिपुरा की प्रगति और वहाँ की संस्कृति को स्पष्ट किया है। त्रिपुरा की जीवन रेखा मानी जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-44 (यह राष्ट्रीय राजमार्ग-44 –कश्मीर से कन्याकुमारी— त्रिपुरा वाले से अलग है।) से यात्रा करने के दौरान ही लेखक ने इन सब दृश्यों को अपने कैमरे में कैद कर लिया था। अगरतला के इर्द-गिर्द वहाँ के महलों, मंदिरों बहुधार्मिक समाज, पैचारथल के बौद्ध मंदिरों आदि की शूटिंग करते हुए लेखक राष्ट्रीय राजमार्ग पकड़कर ‘टिलियामुरा’ कस्बे में जा पहुँचे।
प्रसिद्ध गायक हेमंत जमातिया और मंजु ऋषिदास से मिलकर सी.आर.पी.एफ. की सुरक्षा में, काफ़िले के रूप में आगे बढ़ते हुए लेखक ‘मनु’ नमक एक जगह पर पहुँचे। वहाँ की घरेलू गतिविधियों, खेती आदि की शूटिंग करते हुए जिला अधिकारी के सुझाव पर भारत के बड़े शैव तीर्थों में गिने जाने वाले ‘उनाकोटी’ में शूटिंग का कार्यक्रम बनाया। 9 किलोमीटर की दूरी पर जंगल के काफी अंदर स्थित उनाकोटी में भगवान शिव की एक करोड़ से एक कम मूर्तियाँ बनी हुई हैं। ऋषि भगीरथ की प्रार्थना पर गंगा अवतरण के प्रसंग को बड़े ही कलात्मक ढंग से चट्टानों पर उभारा गया है। शूटिंग करते-करते शाम के चार बज गए। सूर्य के ऊँचे पहाड़ों के पीछे जाते ही उनाकोटी में अचानक अंधकार छा गया, बादल घिर आए और गर्जन-तर्जन के साथ बरसने लगे। इसी ध्वनि ने लेखक के दिलो-दिमाग को वर्तमान के गर्जन-तर्जन से अतीत के साथ जोड़ दिया था।
‘ऑन द रोड’ नामक तीन खंडों वाली टी.वी. शृंखला के निर्माण हेतु लेखक के. विक्रम सिंह का त्रिपुरा की राजधानी अगरतला की ओर प्रस्थान करना।
राष्ट्रीय राजमार्ग 44 से यात्रा करना तथा त्रिपुरा के विकास संबंधी जानकारी देना ही इस टी.वी. शृंखला का मूल उद्देश्य था।
प्रथम तीन दिन अगरतला एवं उसके इर्द-गिर्द शूटिंग करना।
मंदिरों एवं महलों के शहर के रूप में विख्यात त्रिपुरा की शूटिंग करना।
इसके पश्चात् राष्ट्रीय राजमार्ग-44 से टीलियापुरा कस्बे में आगमन।
प्रसिद्ध लोकगायक हेमंत कुमार जमातिया से मुलाकात।
हेमंत कुमार जमातिया तत्कालीन जिला परिषद के सदस्य बन गए थे।
जिला परिषद द्वारा भोज का आयोजन।
बॉलीवुड के प्रख्यात मौलिक संगीतकार एस.डी. वर्मन भी त्रिपुरा से ही आए थे।
टीलियामुरा शहर में ही एक और गायिका मंजु ऋषिदास से लेखक की मुलाकात।
दो मधुर गीतों की प्रस्तुति के पश्चात् मंजु ऋषिदास लेखक के लिए चाय बनाकर लाई।
लेखक ने अगले 85 किलोमीटर यानी मनु तक की यात्रा सी.आर.पी.एफ. काफिले के साथ पूरी सुरक्षा के साथ पूरी की।
त्रिपुरा जिले के मुख्यालय कैलास शहर के तेज-तर्रार जिलाधिकारी से लेखक की मुलाकात।
यहाँ से 9 किलोमीटर दूर उनाकोटी में शूटिंग का प्रस्ताव।
उनाकोटी में शिव की आधार मूर्ति तथा गंगा अवतरण के पाषाण चित्रों की शूटिंग।
पूरा क्षेत्र देवियों-देवताओं के मूर्तियों से भरा हुआ है। शूटिंग करते-करते शाम के चार बज गए।
सूर्य के पहाड़ों के पीछे जाते ही बादलों की सेना पूरे गर्जन-तर्जन के साथ बरसने लगी।
ऐसा प्रतीत होता था कि शिव का तांडव शुरू हो गया हो।
1.महकमा – विभाग
2.कार्यरत – In service
3.प्रसारण – Transmission
4.निदेशक – Director
5.दिलचस्पी – रुचि
6.देशाटन – भ्रमण
7.तर्पण – तृप्त करने की क्रिया
8.शृंखला – कड़ी
9.वृत्तचित्र – विशेष घटना के मुख्य अंग
10.अंतर्राष्ट्रीय – International
11.प्रदर्शित – फिल्माया गया
12.नियमित – नियम से होने वाला
13.संदर्भ – Reference
14.आमतौर – Generally
15.दरअसल – वास्तव में
16.ऊर्जादायी – शक्ति देने वाला
17.खलल- Disturbance
18.कानफाड़ू – कान को फाड़ने वाली आवाज
19.शुक्र – Thank
20.महज़ – केवल
21.आतंक – Terrorism
22.विक्षिप्तों – जिन्हें छोड़ा जा चुका हो
23.तड़ित – आकाशीय विद्युत, बिजली
24.अलस्सुबह – तड़के
25.तांडव – नाश नृत्य
26.पृष्ठभूमि – Background
27.राष्ट्रीय राजमार्ग – National Highway
28.प्रतिशत – औसत
29.दुर्गम – जहाँ जाना कठिन हो
30.सीमा – सरहद
31.विधानसभा – Legislative Assembly
32.सत्ता – Ruling Party
33.हस्तांतर – Handover
34.क्रमिक – सिलसिला
35.प्रतीकित – Symbolises
36.बहुधार्मिक – Multi religious
37.अनुसूचित जनजातियों – Schedule Tribe
38.प्रतिनिधित्व – Leadership
39.कबीलों – Tribes
40.रंगून – बर्मा की राजधानी
41.दशक- Decade
42.लोकगायक – Folk Singer
43.परिषद – Council
44.संस्कृति – Culture
45.अनुरोध – निवेदन
46.मौलिक – Fundamental
47.विशेषज्ञता – Mastery
48.निरक्षर – Illiterate
49.गृहिणी – House wife
50.भूमिका – Role
51.हिचक – Hesitation
52.आश्वस्त – Relax
53.किस्म – प्रकार
54.अछूत – Untouchable
55.चलन – Trend
56.हिंसाग्रस्त – मार-काट से प्रभावित
57.दौरान – While
58.काफ़िलों – कारवाँ
59.सचिव – Secretary
60.शर्त – Condition
61.जोखिम – Risk
62.आकृष्ट – Attract
63.रीढ़ – मेरुदंड
64.सुलगा – जलाने का प्रथम चरण
65.समूची- पूरी
66.तेज़तर्रार – बहुत तेज़
67.मिलनसार – Open minded
68.हेक्टेयर – ज़मीन नापने की एक इकाई
69.शैव – शिव धर्म को मनाने वाला
70.महसूस – आभास
71.इंतज़ाम – प्रबंध
72.चट्टान – Cliff
73.निर्माता – Producer
1. ‘उनाकोटी’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए बतलाएँ कि यह स्थान इस नाम से क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर – उनाकोटी का मतलब है एक कोटि, यानी एक करोड़ से एक कम। दंतकथा के अनुसार उनाकोटी में शिव की एक कोटि से एक कम मूर्तियाँ हैं। पहाड़ों को अंदर से काटकर यहाँ विशाल आधार-मूर्तियाँ बनी हैं। यह भारत के सबसे बड़े शैव तीर्थों में से एक है। यहाँ आदिवासी धर्म फलते-फूलते हैं। यह स्थान जंगल के काफी भीतर है।यहाँ केमूर्तियों के निर्माता कल्लू कुम्हार माने जाते हैं। वह पार्वती का भक्त था और शिव-पार्वती के साथ उनके निवास कैलाश पर्वत पर जाना चाहता था। पार्वती के जोर देने पर शिव कल्लू को कैलाश ले चलने को तैयार हो गए लेकिन इसके लिए शर्त यह रखी कि उसे एक रात में शिव की एक कोटि मूर्तियाँ बनानी होंगी। कल्लू अपनी धुन के पक्के व्यक्ति की तरह इस काम में जुट गया। लेकिन जब भोर हुई तो मूर्तियाँ एक कोटि से एक कम निकलीं। कल्लू नाम की इस मुसीबत से पीछा छुड़ाने पर अड़े शिव ने इसी बात को बहाना बनाते हुए कल्लू कुम्हार को अपनी मूर्तियों के साथ उनाकोटी में ही छोड़ दिया और चलते बने।
2. पाठ के संदर्भ में उनाकोटी में स्थित गंगावतरण की कथा को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – पहाड़ों को अंदर से काटकर यहाँ विशाल आधार-मूर्तियाँ बनी हैं। एक विशाल चट्टान ऋषि भगीरथ की प्रार्थना पर स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगा के अवतरण के मिथक को चित्रित करती है। गंगा अवतरण के धक्के से कहीं पृथ्वी धँसकर पाताल लोक में न चली जाए, लिहाज़ा शिव को इसके लिए तैयार किया गया कि वे गंगा को अपनी जटाओं में उलझा लें और इसके बाद इसे धीरे-धीरे पृथ्वी पर बहने दें। शिव का चेहरा एक समूची चट्टान पर बना हुआ है और उनकी जटाएँ दो पहाड़ों की चोटियों पर फैली हैं। भारत में शिव की यह सबसे बड़ी आधार-मूर्ति है। पूरे साल बहने वाला एक जल प्रपात पहाड़ों से उतरता है जिसे गंगा जितना ही पवित्र माना जाता है।
3. कल्लू कुम्हार का नाम उनाकोटी से किस प्रकार जुड़ गया?
उत्तर – यह पूरा इलाका ही शब्दशः देवियों-देवताओं की मूर्तियों से भरा पड़ा है। इन आधार-मूर्तियों के निर्माता अभी चिह्नित नहीं किए जा सके हैं। स्थानीय आदिवासियों का मानना है कि इन मूर्तियों का निर्माता कल्लू कुम्हार था। वह पार्वती का भक्त था और शिव-पार्वती के साथ उनके निवास कैलाश पर्वत पर जाना चाहता था। पार्वती के जोर देने पर शिव कल्लू को कैलाश ले चलने को तैयार हो गए लेकिन इसके लिए शर्त यह रखी कि उसे एक रात में शिव की एक कोटि मूर्तियाँ बनानी होंगी। कल्लू अपनी धुन के पक्के व्यक्ति की तरह इस काम में जुट गया। लेकिन जब भोर हुई तो मूर्तियाँ एक कोटि से एक कम निकलीं। कल्लू नाम की इस मुसीबत से पीछा छुड़ाने पर अड़े शिव ने इसी बात को बहाना बनाते हुए कल्लू कुम्हार को अपनी मूर्तियों के साथ उनाकोटी में ही छोड़ दिया और चलते बने। इस प्रकार उनाकोटि की मूर्तियों के निर्माता के रूप में कल्लू कुम्हार को प्रसिद्धि मिली और उसका नाम उनाकोटी से जुड़ गया।
4. ‘मेरी रीढ़ में एक झुरझुरी-सी दौड़ गई’- लेखक के इस कथन के पीछे कौन-सी घटना जुड़ी है?
उत्तर – त्रिपुरा के हिंसाग्रस्त मुख्य भाग में प्रवेश अंतिम पड़ाव टिलियामुरा ही है। राष्ट्रीय राजमार्ग – 44 पर अगले 83 किलोमीटर यानी मनु तक की यात्रा के दौरान ट्रैफिक सी.आर.पी.एफ़ की सुरक्षा में काफ़िले की शक्ल में चलता है।काफ़िला दिन में 11 बजे के आसपास चलना शुरू हुआ। मैं अपनी शूटिंग के काम में ही इतना व्यस्त था कि उस समय तक डर के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं थी जब तक निचली पहाड़ियों पर इरादतन रखे दो पत्थरों की तरफ़ मेरा ध्यान आकृष्ट नहीं किया।“दो दिन पहले हमारा एक जवान यहीं विद्रोहियों द्वारा मार डाला गया था”, सुरक्षा कर्मी ने लेखक से कहा यह सुनते ही लेखक कीरीढ़ में एक झुरझुरी सी दौड़ गई। मनु तक की अपनी शेष यात्रा का यह खयाल लेखक अपने दिल से निकाल नहीं पाया कि हमें घेरे हुए सुंदर और अन्यथा शांतिपूर्ण प्रतीत होने वाले जंगलों में किसी जगह बंदूकें लिए विद्रोही भी छिपे हो सकते हैं।
5. त्रिपुरा ‘बहुधार्मिक समाज’ का उदाहरण कैसे बना?
उत्तर – त्रिपुरा में लगातार बाहरी लोगों के आने से यह राज्य बहुधार्मिक समाज का उदाहरण बना है। त्रिपुरा में उन्नीस अनुसूचित जनजातियों और विश्व के चारों बड़े धर्मों का प्रतिनिधित्व मौजूद है। अगरतला के बाहरी हिस्से पैचारथल में एक सुंदर बौद्ध मंदिर है जिससे पता चलता है कि त्रिपुरा के कबीलों में से दो, यानी चकमा और मुघ महायानी बौद्ध हैं। ये कबीले त्रिपुरा में बर्मा या म्यांमार से चटगाँव के रास्ते आए थे। दरअसल इस मंदिर की मुख्य बुद्ध प्रतिमा भी 1930 के दशक में रंगून से लाई गई थी।
6. टीलियामुरा कस्बे में लेखक का परिचय किन दो प्रमुख हस्तियों से हुआ? समाज-कल्याण के कार्यों में उनका क्या योगदान था?
उत्तर – टीलियामुरा शहर में लेखक की मुलाकात हेमंत कुमार जमातिया से हुई जो यहाँ के एक प्रसिद्ध लोकगायक हैं और जो 1996 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा पुरस्कृत भी हो चुके हैं। हेमंत कोकबारोक बोली में गाते हैं जो त्रिपुरा की कबीलाई बोलियों में से है। जवानी के दिनों में वे पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन के कार्यकर्ता थे। लेकिन जब उनसे मेरी मुलाकात हुई तब वे हथियारबंद संघर्ष का रास्ता छोड़ चुके थे और चुनाव लड़ने के बाद ज़िला परिषद् के सदस्य बन गए थे। टीलियामुरा शहर के वार्ड नं. 3 में लेखक कीमुलाकात एक और गायक मंजु ऋषिदास से हुई। ऋषिदास मोचियों के एक समुदाय का नाम है। लेकिन जूते बनाने के अलावा इस समुदाय के कुछ लोगों की विशेषज्ञता थाप वाले वाद्यों जैसे तबला और ढोल के निर्माण और उनकी मरम्मत के काम में भी है। मंजु ऋषिदास आकर्षक महिला थीं और रेडियो कलाकार होने के अलावा नगर पंचायत में अपने वार्ड का प्रतिनिधित्व भी करती थीं। वे निरक्षर थीं। लेकिन अपने वार्ड की सबसे बड़ी आवश्यकता यानी स्वच्छ पेयजल के बारे में उन्हें पूरी जानकारी थी। नगर पंचायत को वे अपने वार्ड में नल का पानी पहुँचाने और इसकी मुख्य गलियों में ईंटें बिछाने के लिए राज़ी कर चुकी थीं।
7. कैलासशहर के ज़िलाधिकारी ने आलू की खेती के विषय में लेखक को क्या जानकारी दी?
उत्तर – ज़िलाधिकारी केरल के एक नौजवान थे। वे तेज़तर्रार, मिलनसार और उत्साही व्यक्ति थे। उन्होंने बताया कि टी.पी.एस. (टरू पोटेटो सीड्स) की खेती को त्रिपुरा में, खासकर उत्तरी ज़िले में किस तरह सफलता मिली है। आलू की बुआई के लिए आमतौर पर पारंपरिक आलू के बीजों की ज़रूरत दो मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर पड़ती है। इसके बरक्स टी.पी.एस की सिर्फ़ 100 ग्राम मात्रा ही एक हेक्टेयर की बुआई के लिए काफ़ी होती है। त्रिपुरा से टी.पी.एस. का निर्यात अब न सिर्फ़असम, मिज़ोरम, नागालैंड और अरूणाचल प्रदेश को, बल्कि बांग्लादेश, मलेशिया और विएतनाम को भी किया जा रहा है।
8. त्रिपुरा के घरेलू उघोगों पर प्रकाश डालते हुए अपनी जानकारी के कुछ अन्य घरेलू उघोगों के विषय में बताइए?
उत्तर – त्रिपुरा में आलू की खेती के साथ-साथ यहाँ की लोकप्रिय घरेलू गतिविधियों में से एक है अगरबत्तियों के लिए बाँस की पतली सींकें तैयार करना। अगरबत्तियाँ बनाने के लिए इन्हें कर्नाटक और गुजरात भेजा जाता है। अन्य घरेलू उद्योगों में माचिस, साबुन, प्लास्टिक, स्टील, लकड़ी आदि के घरेलू उद्योग सर्वप्रसिद्ध है। घरेलू आवश्यकता दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली जा रही है जिससे उद्योगों में भी प्रतिद्वंद्विता की भावना बढ़ती जा रही है।
मुहावरे
1. कटी पतंग होना – निरुद्देश्य होना
2. धुन का पक्का – इरादा बना लेना
3. रंग चढ़ना – प्रभाव पड़ना
वाक्यांशों के लिए एक शब्द
1. दुर्गम = जहाँ जाना मुश्किल हो
2. सूर्योदय = सूर्य का उदय होना
3. हस्तांतरण = संपत्ति या अधिकार का एक के पास से दूसरे के पास जाना
4. शैव= शिव धर्म को मानने वाले
विलोम शब्द
1. सूर्योदय # सूर्यास्त
2. योग # वियोग
3. समर्थ # असमर्थ
4. त्यागना # स्वीकारना
5. शेष # अशेष
6. दुर्गम # सुगम
7. ज़्यादातर # कमतर
8. अवैध # वैध
9. स्वीकृति # अस्वीकृति
10. वृद्धि # कमी
11. मुख्य # गौण
12. बाहरी # भीतरी
13. संतुलन # असंतुलन
14. सफल # असफल
15. शासक # प्रजा
16. स्वच्छ # अस्वच्छ
17. साक्षर # निरक्षर
18. छूत # अछूत
19. हिंसा # अहिंसा
20. प्रवेश # निकास
21. अंतिम # प्रथम
22. उत्साही # निरुत्साही
23. विशाल # लघु
24. अंधकार # प्रकाश
अनेकार्थी शब्द
1. योग = जोड़, प्राणायाम
2. जल = पानी, जलना क्रिया
उपसर्ग एवं प्रत्यय
उपसर्ग
1. अ- असमर्थ, अछूत, असंतोष
2. वि – विश्वास, विचार, विशेषज्ञ, विद्रोही
3. सम् – सम्मान, संभव, संदर्भ, संतुलन
4. दर- दरअसल
5. त्रि – त्रिपुरा
6. प्र – प्रवास, प्रवेश, प्रमुख, प्रपात
7. स – सफल
8. बहु- बहुधार्मिक
9. आ – आयोजन
10.निर् – निरक्षर
11.प्रति – प्रतिशत, प्रतिनिधित्व
प्रत्यय
12. त: – संभवत:
13. इत – क्रोधित, अपमानित
14. त्व – प्रतिनिधित्व
15. आव – जुड़ाव, लगाव
16. आत – शुरुआत
17. यों – मूर्तियों, बिजलियों
18. इत – तड़ित, प्रतिकित
19. क – शीर्षक
20. ईय- राष्ट्रीय, स्थानीय, भारतीय
21. तर – ज़्यादातर
22. इक- सामाजिक, धार्मिक, क्रमिक, पारंपरिक
23. लाई – कबीलाई
24. ज़ोर – मुँहजोर
25. बाज़ – दिखावेबाज़
26. ई – ऊँची, बाहरी, जानकारी, साहसी, अधिकारी
पर्यायवाची
1. अद्भुत – अपूर्व, अनोखा, अनूठा
2. पतंग- गुड्डी, कनकौआ
3. सिर- कपाल, खोपड़ी, मुंड
4. खुदा – अल्लाह, परवरदीगार
5. स्वर्ग – अमरपुर, देवभूमि, परमधाम
6. बिजली – दामिनी, तड़ित, चपला, विद्युत
7. बादल – जलद, मेघ, अंबुधर
8. आकाश – नभ, गगन, अंबर, व्योम
9. सैनिक – फ़ौजी, योद्धा, सिपाही
10. प्रकृति – कुदरत, मूलरूप
11. भारत- हिंदुस्तान, भरतखंड, आर्यावर्त
12. मंदिर- देवस्थान, पूजागृह, देवालय
13. महल- राजभवन, प्रसाद, विशाल भवन
14. शासक – हाकिम, प्रशासक
15. बुद्ध- तथागत, गौतम, सिद्धार्थ
16. मूर्ति – बुत, प्रतिमा, विग्रह
17. हथियार- अस्त्र, शस्त्र, आयुध
18. संघर्ष- जद्दोजहद, स्पर्धा, घर्षण
19. नदी- सलिला, निर्झरिणी, तटिनी
20. गृहिणी – पत्नी, अर्धांगिनी, गृहस्वामिनी
21. भारतीय- हिंदुस्तानी, भारतवासी, इंडियन
22. प्रथा – चलन, परिपाटी, रीति
23. तीर्थ – पुण्यक्षेत्र, पवित्र स्थान, तीरथ
24. विद्वान – सुधी, कोविद, पंडित
25. गंगा – जाह्नवी, त्रिपथगा, देवनदी
26. शिव – महादेव, नटराज, नीलकंठ
27. जलप्रपात – झरना, निर्झर, आबशार
28. पार्वती – गिरिजा, गौरी, गिरिनंदिनी