हरिवंशराय बच्चन
(1907 – 2003)
हरिवंशराय बच्चन का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में 27 नवंबर 1907 को हुआ। ‘बच्चन’ इनका माता-पिता द्वारा प्यार से लिया जानेवाला नाम था, जिसे इन्होंने अपना उपनाम बना लिया था।
बच्चन कुछ समय तक विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहने के बाद भारतीय विदेश सेवा में चले गए थे। इस दौरान इन्होंने कई देशों का भ्रमण किया और मंच पर ओजस्वी वाणी में काव्यपाठ के लिए विख्यात हुए। बच्चन की कविताएँ सहज और संवेदनशील हैं। इनकी रचनाओं में व्यक्ति-वेदना, राष्ट्र-चेतना और जीवन-दर्शन के स्वर मिलते हैं। इन्होंने आत्मविश्लेषणवाली कविताएँ भी लिखी हैं। राजनैतिक जीवन के ढोंग, सामाजिक असमानता और कुरीतियों पर व्यंग्य किया है। कविता के अलावा बच्चन ने अपनी आत्मकथा भी लिखी, जो हिंदी गघ की बेजोड़ कृति मानी गई।
बच्चन की प्रमुख कृतियाँ हैं: मधुशाला, निशा-निमंत्रण, एकांत संगीत, मिलन-यामिनी, आरती और अंगारे, टूटती चट्टानें, रूप तरंगिणी (सभी कविता-संग्रह) और आत्मकथा के चार खंड : क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक।
बच्चन साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार और सरस्वती सम्मान से सम्मानित हुए।
प्रस्तुत कविता में कवि ने संघर्षमय जीवन को ‘अग्नि पथ’ कहते हुए मनुष्य को यह संदेश दिया है कि राह में सुख रूपी छाँह की चाह न कर अपनी मंज़िल की ओर कर्मठतापूर्वक बिना थकान महसूस किए बढ़ते ही जाना चाहिए। कविता में शब्दों की पुनरावृत्ति कैसे मनुष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है, यह देखने योग्य है।
अग्नि पथ
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने, हों बड़े,
एक पत्र – छाँह भी
माँग मत, माँग मत, माँग मत!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी! –
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
यह महान दृश्य है –
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से
लथपथ, लथपथ, लथपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
प्रस्तुत कविता में कवि ने व्यक्ति के जीवन को संघर्षमय कहते हुए इससे घबराए बिना निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है। कवि कहते हैं कि जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ है। जीवन पथ ‘अग्नि पथ’ के समान है। राह में भले ही छायादार वृक्ष मिलें (आराम करने की जगह), परंतु व्यक्ति को छाया की इच्छा किए बिना निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। कवि मनुष्य को कर्मठतापूर्वक आगे बढ़ने का संदेश देते हुए कहते हैं कि तेरे सामने कठिनाइयों और विभिन्न बाधाएँ हैं परंतु तू कभी मत घबराना। शपथ लो कि तुम कभी भी नहीं थकोगे, नहीं रुकोगे तथा न ही वापस मुड़ने की बात करोगे। कवि आँसू, पसीने तथा रक्त से लथपथ निरंतर आगे बढ़ते मनुष्य के इस दृश्य को महान मानता है। कवि के अनुसार यह अद्भुत दृश्य मनुष्य की निरंतरता कर्मठता और जुझारूपन ही उसे आम से खास बनाती है।
1.उपनाम – Title
- विश्वविद्यालय – University
- प्राध्यापक – Lecturer
- दौरान – While
- मंच – Stage
- ओजस्वी – शौर्य से भरा हुआ
- काव्यपाठ – Recitation
- विख्यात – प्रसिद्ध
- संवेदनशील – Emotional
10.वेदना – कष्ट
11.दर्शन – Philosophy
12.आत्मविश्लेषण – Self-analysis
13.ढोंग – दिखावा
14.व्यंग्य – मज़ाक
15.आत्मकथा – Biography
16.मंज़िल – लक्ष्य
17.पुनरावृत्ति – Repetition
18.संग्रहालय – अजायबघर, Museum
19.सन्निधि – company
20.यायावर – ख़ानाबदोश, Nomads
21.संपादन – Publishing
22.सारगर्भित – उद्देश्य से भरा हुआ
23.संस्मरण – यादें
24.शैली – Style
25.अपितु – बल्कि
26.वंचित – Deprived
27.बानगी – Hallmark
28.श्रद्धेय – श्रद्धा योग्य
29.अग्नि पथ – कठिनाइयों से भरा हुआ मार्ग, आगयुक्त मार्ग
30.पत्र – पत्ता
31.शपथ – कसम, सौगंध
32.अश्रु – आँसू
33.स्वेद – पसीना
34.रक्त – खून, शोणित
35.लथपथ – सना हुआ
1 -निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) कवि ने ‘अग्नि पथ’ किसके प्रतीक स्वरूप प्रयोग किया है?
उत्तर – ‘अग्निपथ’ का अर्थ है- आग से घिरा हुआ रास्ता। जिसका लक्षणार्थ है कठिनाइयों से भरा हुआ रास्ता। कवि ने इसे संघर्षमयी जीवन के रूप में प्रस्तुत किया है। कवि का मानना है कि यह दुनिया केवल किसी एक आदमी के लिए नहीं बनी है। इस दुनिया में सभी अपने जीवन के अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं जो आसान नहीं है। ऐसे में व्यक्ति को अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाना पड़ता है अर्थात् उसे अग्निपथ पर चलना होता है।
(ख) ‘माँग मत’, ‘कर शपथ’, ‘लथपथ’ इन शब्दों का बार—बार प्रयोगकर कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर – ‘माँग मत’, ‘कर शपथ’, ‘लथपथ’ इन शब्दों का बार—बार प्रयोग कर कवि कहना चाहते हैं कि सफलता दो प्रकार से प्राप्त की जा सकती हैं, एक तो अपने दम पर और दूसरा बड़े लोगों की चापलूसी कर कर। निस्संदेह कवि हमें पहले वाले रास्ते पर ही चलने का संदेश दे रहे हैं क्योंकि जब हम अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे तो सिर उठाकर और निर्भीक होकर अपनी सफलता की कहानी से दूसरे बंदों को प्रेरित कर सकेंगे जो कि दूसरे वाले रास्ते से कभी भी संभव नहीं हो सकेगा। और जब आपकी सफलता का इतिहास लिपिबद्ध किया जाएगा तो उसमें केवल आपकी ही मेहनत का वर्णन रहेगा।
(ग) ‘एक पत्र – छाँह भी माँग मत’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘एक पत्र – छाँह भी माँग मत’ इस पंक्ति का आशय कवि की दृष्टि से यह है कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें दूसरों की मदद नहीं लेनी चाहिए। कवि को सांसरिक अनुभव बहुत ही है। वे अच्छी तरह से जानते हैं कि इस दुनिया में लोग बड़े ही मौकापरस्त हैं। आपकी छोटी-सी मदद करने के बाद हर जगह यही ढोल पीटते रहेंगे कि आपकी सफलता के पीछे उनका बहुत बड़ा हाथ है।
2 -निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) तू न थमेगा कभी
तू न मुड़ेगा कभी
उत्तर – कविता के इन पंक्तियों का आशय यह है कि हमें जीवन पथ पर लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सदैव आगे बढ़ते रहना चाहिए। यह रास्ता बहुत ही कठिनाइयों से भरा हुआ होता है। इस मार्ग पर चलते समय हमें काफी कष्ट होगा। हमें अनेक कुर्बानियाँ देनी होंगी। ऐसी स्थिति में हम कमजोर पड़ सकते हैं और अपने पथ से भटक सकते हैं। इसी भटकाव से बचने के लिए कवि हमें यह शपथ दिला रहे हैं कि हमें अपना मार्ग किसी भी स्थिति में नहीं त्यागना है। मुसीबतों के समय हमें यह कल्पना कर धैर्य धारण करना चाहिए कि सफलता मिलने की असीम खुशी इस दुख और कष्ट से काफी बड़ी होगी।
(ख) चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों का आशय यह है कि मनुष्य को अपना जीवन सफल बनाने के लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ेगा। इस संघर्ष के दौरान पसीने और खून का बहना सामान्य-सी बात हो सकती है। ऐसी स्थिति में भी हमें उस वीर सैनिक की तरह आगे बढ़ते ही रहना चाहिए जो अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए उस समय तक शत्रुओं से लड़ता है जब तक उसमें आखिरी साँस बची रहती है।
3 -इस कविता का मूलभाव क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – इस कविता का मूलभाव यह है कि यह जीवन एक संघर्ष है और हरेक जीव को अपने जीवन के रोज़मर्रा कामों में भी संघर्ष करना ही पड़ता है फिर चाहे वह आदमी हो या पशु। इसके अतिरिक्त जब कोई व्यक्ति अपने जीवन को आने वाली पीढ़ी के लिए मिसाल बनाने की ठान लेता है, जब कोई व्यक्ति इतिहास के पन्नों में अपने नाम को अमर करने की आरजू पाल बैठता है, जब कोई मनुष्य अपनी मौत को तारीख बना देना चाहता है। ऐसे में उसका लक्ष्य अग्निपथ यानी कि कठिनाइयों, दुवधाओं, बलिदानों के लंबे मार्ग के बाद प्राप्त होता है। लक्ष्य को हासिल करने में आने वाली कठिनाइयों को झेलना, अपने दम पर आगे बढ़ने का जोश, बिना किसी की चापलूसी किए और मदद लिए , सभी चुनौतियों का सामना करते हुए, अपने पुरुषार्थ पर बिना कोई कलंक लगाए जब कोई अपने लक्ष्य तक पहुँचता है तो उसकी प्रशस्ति सारे संसार में होती है।
मुहावरे
- छाँह माँगना – मदद माँगना
वाक्यांशों के लिए एक शब्द
- अग्निपथ – कष्टों से भरा हुआ मार्ग
विलोम शब्द
- अग्नि # जल
- छाँव # धूप
अनेकार्थी शब्द
- पत्र – चिट्ठी, पत्ता
पर्यायवाची
- अग्नि – आग, पावक, अनल, हुताशन
- पथ – रास्ता, मार्ग, बाट
- वृक्ष – तरु, विटप, पादप
- रक्त – खून, रुधिर, लहू
‘जीवन संघर्ष का ही नाम है’ इस विषय पर निबंध/कहानी लिखिए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर करें।
परियोजना कार्य
‘जीवन संघर्षमय है, इससे घबराकर थमना नहीं चाहिए’ इससे संबंधित अन्य कवियों की कविताओं को एकत्र कर एक एलबम बनाइए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर करें।