CBSE, NCERT, Class – IX, Sparsh, Chapter -2, Bachendri Pal – Everest Meri Shikhar Yatra, बचेंद्री पाल – एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा (HINDI Course B)

(1954)
बचेंद्री पाल का जन्म उत्तरांचल के चमोली ज़िले में बंपा गाँव में 24 मई 1954 को हुआ। बचेंद्री अपनी माँ हंसादेई नेगी और पिता किशन सिंह पाल की तीसरी संतान हैं। पिता पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ थे, अतः बचेंद्री को आठवीं से आगे की पढ़ाई का खर्च सिलाई-कढ़ाई करके जुटाना पड़ा। दसवीं पास करने के बाद बचेंद्री के प्रिंसिपल ने उनके पिता को उनकी आगे की पढ़ाई के लिए सहमत किया। बचेंद्री ने ऐसी विषम स्थितियों के बावजूद संस्कृत से एम.ए. और फिर बी. एड. की शिक्षा हासिल की। लक्ष्य के प्रति इसी समर्पण भाव ने इन्हें एवरेस्ट पर विजय पाने वाली पहली भारतीय पर्वतारोही होने का गौरव दिलाया।

बचेंद्री को पहाड़ों पर चढ़ने का चाव बचपन से ही था। जब इनका बड़ा भाई इन्हें पहाड़ पर चढ़ने से रोकता था और इनसे छह साल छोटे भाई को पहाड़ पर चढ़ने के लिए उकसाता था, तब बचेंद्री को बहुत बुरा लगता था। वह सोचती थी कि भाई यह क्यों नहीं समझता कि जो काम छोटा भाई कर सकता है, वह उसकी यह बहन भी कर सकती है। लोग लड़कियों को इतना कोमल, नाज़ुक क्यों समझते हैं। बहरहाल, पहाड़ों पर चढ़ने की उनकी इच्छा बचपन में भी पूरी होती रही। चूँकि इनका परिवार साल के कुछ महीने एक ऊँचाई वाले गाँव में बिताता था और कुछ महीने पहाड़ से नीचे तराई में बसे एक और गाँव में जिस मौसम में परिवार नीचे तराई वाले गाँव में आ जाता था, उन महीनों में स्कूल जाने के लिए बचेंद्री को भी पाँच-छह मील पहाड़ की चढ़ाई चढ़नी और उतरनी पड़ती थी।
इधर बचेंद्री की पढ़ाई पूरी हुई, उधर इंडियन माउंटेन फाउंडेशन ने एवरेस्ट अभियान पर जाने का साहस रखने वाली महिलाओं की खोज शुरू की। बचेंद्री इस अभियान-दल में शामिल हो गईं। ट्रेनिंग के दौरान बचेंद्री 7500 मीटर ऊँची मान चोटी पर सफलतापूर्वक चढ़ीं। कई महीनों के अभ्यास के बाद आखिर वह दिन आ ही गया, जब उन्होंने एवरेस्ट विजय के लिए प्रयाण किया।
बचेंद्री ने एवरेस्ट विजय की अपनी रोमांचक पर्वतारोहण-यात्रा का संपूर्ण विवरण स्वयं ही कलमबद्ध किया है। प्रस्तुत अंश उसी विवरण में से लिया गया है। यह लोमहर्षक अंश बचेंद्री के उस अंतिम पड़ाव से शिखर तक पहुँचकर तिरंगा लहराने के पल-पल का ब्योरा बयान करता है। इसे पढ़ते हुए ऐसा लगता है, मानो पाठक भी उनके कदम-से-कदम मिलाता हुआ, सभी खतरों को खुद झेलता हुआ एवरेस्ट के शिखर पर जा रहा हो।

एवरेस्ट अभियान दल 7 मार्च को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज़ से चल दिया। एक मज़बूत अग्रिम दल बहुत पहले ही चला गया था जिससे कि वह हमारे ‘बेस कैंप’ पहुँचने से पहले दुर्गम हिमपात के रास्ते को साफ़ कर सके।
नमचे बाज़ार, शेरपालैंड का एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र है। अधिकांश शेरपा इसी स्थान तथा यहीं के आसपास के गाँवों के होते हैं। यह नमचे बाज़ार ही था, जहाँ से मैंने सर्वप्रथम एवरेस्ट को निहारा, जो नेपालियों में ‘सागरमाथा’ और तिब्बतियों में ‘चोमुलुंगमा’ के नाम से प्रसिद्ध है। मुझे यह नाम अच्छा लगा।
एवरेस्ट की तरफ़ गौर से देखते हुए, मैंने एक भारी बर्फ़ का बड़ा फूल (प्लूम) देखा, जो पर्वत-शिखर पर लहराता एक ध्वज-सा लग रहा था। मुझे बताया गया कि यह दृश्य शिखर की ऊपरी सतह के आसपास 150 किलोमीटर अथवा इससे भी अधिक की गति से हवा चलने के कारण बनता था, क्योंकि तेज़ हवा से सूखा बर्फ़ पर्वत पर उड़ता रहता था। बर्फ़ का यह ध्वज 10 किलोमीटर या इससे भी लंबा हो सकता था। शिखर पर जानेवाले प्रत्येक व्यक्ति को दक्षिण-पूर्वी पहाड़ी पर इन तूफ़ानों को झेलना पड़ता था, विशेषकर खराब मौसम में। यह मुझे डराने के लिए काफ़ी था, फिर भी मैं एवरेस्ट के प्रति विचित्र रूप से आकर्षित थी और इसकी कठिनतम चुनौतियों का सामना करना चाहती थी।
जब हम 26 मार्च को पैरिच पहुँचे, हमें हिम-स्खलन के कारण हुई एक शेरपा कुली की मृत्यु का दुःखद समाचार मिला। खुंभु हिमपात पर जानेवाले अभियान-दल के रास्ते के बाईं तरफ़ सीधी पहाड़ी के धसकने से, ल्होत्से की ओर से एक बहुत बड़ी बर्फ़ की चट्टान नीचे खिसक आई थी। सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए थे।
इस समाचार के कारण अभियान दल के सदस्यों के चेहरों पर छाए अवसाद को देखकर हमारे नेता कर्नल खुल्लर ने स्पष्ट किया कि एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए।
उपनेता प्रेमचंद, जो अग्रिम दल का नेतृत्व कर रहे थे, 26 मार्च को पैरिच लौट आए। उन्होंने हमारी पहली बड़ी बाधा खुंभु हिमपात की स्थिति से हमें अवगत कराया। उन्होंने कहा कि उनके दल ने कैंप-एक (6000 मी.), जो हिमपात के ठीक ऊपर है, वहाँ तक का रास्ता साफ़ कर दिया है। उन्होंने यह भी बताया कि पुल बनाकर, रस्सियाँ बाँधकर तथा झंडियों से रास्ता चिह्नित कर, सभी बड़ी कठिनाइयों का जायज़ा ले लिया गया है। उन्होंने इस पर भी ध्यान दिलाया कि ग्लेशियर बर्फ़ की नदी है और बर्फ़ का गिरना अभी जारी है। हिमपात में अनियमित और अनिश्चित बदलाव के कारण अभी तक के किए गए सभी काम व्यर्थ हो सकते हैं और हमें रास्ता खोलने का काम दोबारा करना पड़ सकता है।
‘बेस कैंप’ में पहुँचने से पहले हमें एक और मृत्यु की खबर मिली। जलवायु अनुकूल न होने के कारण एक रसोई सहायक की मृत्यु हो गई थी। निश्चित रूप से हम आशाजनक स्थिति में नहीं चल रहे थे।
एवरेस्ट शिखर को मैंने पहले दो बार देखा था, लेकिन एक दूरी से। बेस कैंप पहुँचने पर दूसरे दिन मैंने एवरेस्ट पर्वत तथा इसकी अन्य श्रेणियों को देखा। मैं भौंचक्की होकर खड़ी रह गई और एवरेस्ट, ल्होत्से और नुत्से की ऊँचाइयों से घिरी, बर्फ़ीली टेढ़ी-मेढ़ी नदी को निहारती रही।
हिमपात अपने आपमें एक तरह से बर्फ़ के खंडों का अव्यवस्थित ढंग से गिरना ही था। हमें बताया गया कि ग्लेशियर के बहने से अकसर बर्फ़ में हलचल हो जाती थी, जिससे बड़ी-बड़ी बर्फ़ की चट्टानें तत्काल गिर जाया करती थीं और अन्य कारणों से भी अचानक प्रायः खतरनाक स्थिति धारण कर लेती थीं। सीधे धरातल पर दरार पड़ने का विचार और इस दरार का गहरे-चौड़े हिम-विदर में बदल जाने का मात्र खयाल ही बहुत डरावना था। इससे भी ज़्यादा भयानक इस बात की जानकारी थी कि हमारे संपूर्ण प्रवास के दौरान हिमपात लगभग एक दर्जन आरोहियों और कुलियों को प्रतिदिन छूता रहेगा।
दूसरे दिन नए आनेवाले अपने अधिकांश सामान को हम हिमपात के आधे रास्ते तक ले गए। डॉ. मीनू मेहता ने हमें अल्यूमिनियम की सीढ़ियों से अस्थायी पुलों का बनाना, लट्ठों और रस्सियों का उपयोग, बर्फ़ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सियों को बाँधना और हमारे अग्रिम दल के अभियांत्रिकी कार्यों के बारे में हमें विस्तृत जानकारी दी।
तीसरा दिन हिमपात से कैंप-एक तक सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास करने के लिए निश्चित था। रीता गोंबू तथा मैं साथ-साथ चढ़ रहे थे। हमारे पास एक वॉकी-टॉकी था, जिससे हम अपने हर कदम की जानकारी बेस कैंप पर दे रहे थे। कर्नल खुल्लर उस समय खुश हुए, जब हमने उन्हें अपने पहुँचने की सूचना दी क्योंकि कैंप एक पर पहुँचनेवाली केवल हम दो ही महिलाएँ थीं।
अंगदोरजी, लोपसांग और गगन बिस्सा अंततः साउथ कोल पहुँच गए और 29 अप्रैल को 7900 मीटर पर उन्होंने कैंप-चार लगाया। यह संतोषजनक प्रगति थी।
जब अप्रैल में मैं बेस कैंप में थी, तेनजिंग अपनी सबसे छोटी सुपुत्री डेकी के साथ हमारे पास आए थे। उन्होंने इस बात पर विशेष महत्त्व दिया कि दल के प्रत्येक सदस्य और प्रत्येक शेरपा कुली से बातचीत की जाए। जब मेरी बारी आई, मैंने अपना परिचय यह कहकर दिया कि मैं बिलकुल ही नौसिखिया हूँ और एवरेस्ट मेरा पहला अभियान है। तेनजिंग हँसे और मुझसे कहा कि एवरेस्ट उनके लिए भी पहला अभियान है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि शिखर पर पहुँचने से पहले उन्हें सात बार एवरेस्ट पर जाना पड़ा था। फिर अपना हाथ मेरे कंधे पर रखते हुए उन्होंने कहा, “तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो। तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए।”
15-16 मई 1984 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन मैं ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर लगाए गए सुंदर रंगीन नाइलॉन के बने तंबू के कैंप-तीन में थी। कैंप में 10 और व्यक्ति थे। लोपसांग, तशारिंग मेरे तंबू में थे, एन.डी. शेरपा तथा और आठ अन्य शरीर से मज़बूत और ऊँचाइयों में रहनेवाले शेरपा दूसरे तंबुओं में थे। मैं गहरी नींद में सोई हुई थी कि रात में 12.30 बजे के लगभग मेरे सिर के पिछले हिस्से में किसी एक सख्त चीज़ के टकराने से मेरी नींद अचानक खुल गई और साथ ही एक ज़ोरदार धमाका भी हुआ। तभी मुझे महसूस हुआ कि एक ठंडी, बहुत भारी कोई चीज़ मेरे शरीर पर से मुझे कुचलती हुई चल रही है। मुझे साँस लेने में भी कठिनाई हो रही थी।
यह क्या हो गया था? एक लंबा बर्फ़ का पिंड हमारे कैंप के ठीक ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर नीचे आ गिरा था और उसका विशाल हिमपुंज बना गया था। हिमखंडों, बर्फ़ के टुकड़ों तथा जमी हुई बर्फ़ के इस विशालकाय पुंज ने, एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तेज़ गति और भीषण गर्जना के साथ, सीधी ढलान से नीचे आते हुए हमारे कैंप को तहस-नहस कर दिया। वास्तव में हर व्यक्ति को चोट लगी थी। यह एक आश्यर्च था कि किसी की मृत्यु नहीं हुई थी।
लोपसांग अपनी स्विस छुरी की मदद से हमारे तंबू का रास्ता साफ़ करने में सफल हो गए थे और तुरंत ही अत्यंत तेज़ी से मुझे बचाने की कोशिश में लग गए। थोड़ी-सी भी देर का सीधा अर्थ था मृत्यु। बड़े- बड़े हिमपिंडों को मुश्किल से हटाते हुए उन्होंने मेरे चारों तरफ़ की कड़े जमे बर्फ़ की खुदाई की और मुझे उस बर्फ़ की कब्र से निकाल बाहर खींच लाने में सफल हो गए।
सुबह तक सारे सुरक्षा दल आ गए थे और 16 मई को प्रातः 8 बजे तक हम प्रायः सभी कैंप-दो पर पहुँच गए थे। जिस शेरपा की टाँग की हड्डी टूट गई थी, उसे एक खुद के बनाए स्ट्रेचर पर लिटाकर नीचे लाए। हमारे नेता कर्नल खुल्लर के शब्दों में, “यह इतनी ऊँचाई पर सुरक्षा-कार्य का एक ज़बरदस्त साहसिक कार्य था।’’
सभी नौ पुरुष सदस्यों को चोटों अथवा टूटी हड्डियों आदि के कारण बेस कैंप में भेजना पड़ा। तभी कर्नल खुल्लर मेरी तरफ़ मुड़कर कहने लगे, “क्या तुम भयभीत थीं?”
“जी हाँ।”
“क्या तुम वापिस जाना चाहोगी?”
“नहीं”, मैंने बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दिया।
जैसे ही मैं साउथ कोल कैंप पहुँची, मैंने अगले दिन की अपनी महत्त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। मैंने खाना, कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन सिलिंडर इकट्ठे किए। जब दोपहर डेढ़ बजे बिस्सा आया, उसने मुझे चाय के लिए पानी गरम करते देखा। की, जय और मीनू अभी बहुत पीछे थे। मैं चिंतित थी क्योंकि मुझे अगले दिन उनके साथ ही चढ़ाई करनी थी। वे धीरे-धीरे आ रहे थे क्योंकि वे भारी बोझ लेकर और बिना ऑक्सीजन के चल रहे थे।
दोपहर बाद मैंने अपने दल के दूसरे सदस्यों की मदद करने और अपने एक थरमस को जूस से और दूसरे को गरम चाय से भरने के लिए नीचे जाने का निश्चय किया। मैंने बर्फ़ीली हवा में ही तंबू से बाहर कदम रखा। जैसे ही मैं कैंप क्षेत्र से बाहर आ रही थी मेरी मुलाकात मीनू से हुई। की और जय अभी कुछ पीछे थे। मुझे जय जेनेवा स्पर की चोटी के ठीक नीचे मिला। उसने कृतज्ञतापूर्वक चाय वगैरह पी लेकिन मुझे और आगे जाने से रोकने की कोशिश की। मगर मुझे की से भी मिलना था। थोड़ा-सा और आगे नीचे उतरने पर मैंने की को देखा। वह मुझे देखकर हक्का-बक्का रह गया।
“तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री?”
मैंने उसे दृढ़तापूर्वक कहा, “मैं भी औरों की तरह एक पर्वतारोही हूँ, इसीलिए इस दल में आई हूँ। शारीरिक रूप से मैं ठीक हूँ। इसलिए मुझे अपने दल के सदस्यों की मदद क्यों नहीं करनी चाहिए।” की हँसा और उसने पेय पदार्थ से प्यास बुझाई, लेकिन उसने मुझे अपना किट ले जाने नहीं दिया।
थोड़ी देर बाद साउथ कोल कैंप से ल्हाटू और बिस्सा हमें मिलने नीचे उतर आए। और हम सब साउथ कोल पर जैसी भी सुरक्षा और आराम की जगह उपलब्ध थी, उस पर लौट आए। साउथ कोल ‘पृथ्वी पर बहुत अधिक कठोर’ जगह के नाम से प्रसिद्ध है।
अगले दिन मैं सुबह चार बजे उठ गई। बर्फ़ पिघलाया और चाय बनाई, कुछ बिस्कुट और आधी चॉकलेट का हलका नाश्ता करने के बाद मैं लगभग साढ़े पाँच बजे अपने तंबू से निकल पड़ी। अंगदोरजी बाहर खड़ा था और कोई आसपास नहीं था।
अंगदोरजी बिना ऑक्सीजन के ही चढ़ाई करनेवाला था। लेकिन इसके कारण उसके पैर ठंडे पड़ जाते थे। इसलिए वह ऊँचाई पर लंबे समय तक खुले में और रात्रि में शिखर कैंप पर नहीं जाना चाहता था। इसलिए उसे या तो उसी दिन चोटी तक चढ़कर साउथ कोल पर वापस आ जाना था अथवा अपने प्रयास को छोड़ देना था।
वह तुरंत ही चढ़ाई शुरू करना चाहता था… और उसने मुझसे पूछा, क्या मैं उसके साथ जाना चाहूँगी? एक ही दिन में साउथ कोल से चोटी तक जाना और वापस आना बहुत कठिन और श्रमसाध्य होगा! इसके अलावा यदि अंगदोरजी के पैर ठंडे पड़ गए तो उसके लौटकर आने का भी जोखिम था। मुझे फिर भी अंगदोरजी पर विश्वास था और साथ-साथ मैं आरोहण की क्षमता और कर्मठता के बारे में भी आश्वस्त थी। अन्य कोई भी व्यक्ति इस समय साथ चलने के लिए तैयार नहीं था।
सुबह 6.20 पर जब अंगदोरजी और मैं साउथ कोल से बाहर आ निकले तो दिन ऊपर चढ़ आया था। हलकी-हलकी हवा चल रही थी, लेकिन ठंड भी बहुत अधिक थी। मैं अपने आरोही उपस्कर में काफ़ी सुरक्षित और गरम थी। हमने बगैर रस्सी के ही चढ़ाई की। अंगदोरजी एक निश्चित गति से ऊपर चढ़ते गए और मुझे भी उनके साथ चलने में कोई कठिनाई नहीं हुई।

जमे हुए बर्फ़ की सीधी व ढलाऊ चट्टानें इतनी सख्त और भुरभुरी थीं, मानो शीशे की चादरें बिछी हों। हमें बर्फ़ काटने के फावड़े का इस्तेमाल करना ही पड़ा और मुझे इतनी सख्ती से फावड़ा चलाना पड़ा जिससे कि उस जमे हुए बर्फ़ की धरती को फावड़े के दाँते काट सकें। मैंने उन खतरनाक स्थलों पर हर कदम अच्छी तरह सोच-समझकर उठाया।
दो घंटे से कम समय में ही हम शिखर कैंप पर पहुँच गए। अंगदोरजी ने पीछे मुड़कर देखा और मुझसे कहा कि क्या मैं थक गई हूँ। मैंने जवाब दिया, “नहीं।” जिसे सुनकर वे बहुत अधिक आश्चर्यचकित और आनंदित हुए। उन्होंने कहा कि पहलेवाले दल ने शिखर कैंप पर पहुँचने में चार घंटे लगाए थे और यदि हम इसी गति से चलते रहे तो हम शिखर पर दोपहर एक बजे एक पहुँच जाएँगे।
ल्हाटू हमारे पीछे-पीछे आ रहा था और जब हम दक्षिणी शिखर के नीचे आराम कर रहे थे, वह हमारे पास पहुँच गया। थोड़ी-थोड़ी चाय पीने के बाद हमने फिर चढ़ाई शुरू की। ल्हाटू एक नायलॉन की रस्सी लाया था। इसलिए अंगदोरजी और मैं रस्सी के सहारे चढ़े, जबकि ल्हाटू एक हाथ से रस्सी पकड़े हुए बीच में चला। उसने रस्सी अपनी सुरक्षा की बजाय हमारे संतुलन के लिए पकड़ी हुई थी। ल्हाटू ने ध्यान दिया कि मैं इन ऊँचाइयों के लिए सामान्यतः आवश्यक, चार लीटर ऑक्सीजन की अपेक्षा, लगभग ढाई लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट की दर से लेकर चढ़ रही थी। मेरे रेगुलेटर पर जैसे ही उसने ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई, मुझे महसूस हुआ कि सपाट और कठिन चढ़ाई भी अब आसान लग रही थी।
दक्षिणी शिखर के ऊपर हवा की गति बढ़ गई थी। उस ऊँचाई पर तेज़ हवा के झोंके भुरभुरे बर्फ़ के कणों को चारों तरफ़ उड़ा रहे थे, जिससे दृश्यता शून्य तक आ गई थी। अनेक बार देखा कि केवल थोड़ी दूर के बाद कोई ऊँची चढ़ाई नहीं है। ढलान एकदम सीधा नीचे चला गया है।
मेरी साँस मानो रुक गई थी। मुझे विचार कौंधा कि सफलता बहुत नज़दीक है। 23 मई 1984 के दिन दोपहर के एक बजकर सात मिनट पर मैं एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचनेवाली मैं प्रथम भारतीय महिला थी।
एवरेस्ट शंकु की चोटी पर इतनी जगह नहीं थी कि दो व्यक्ति साथ-साथ खड़े हो सकें। चारों तरफ़ हज़ारों मीटर लंबी सीधी ढलान को देखते हुए हमारे सामने प्रश्न सुरक्षा का था। हमने पहले बर्फ़ के फावड़े से बर्फ़ की खुदाई कर अपने आपको सुरक्षित रूप से स्थिर किया। इसके बाद, मैं अपने घुटनों के बल बैठी, बर्फ़ पर अपने माथे को लगाकर मैंने ‘सागरमाथे’ के ताज का चुंबन लिया। बिना उठे ही मैंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला। मैंने इनको अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा, छोटी-सी पूजा-अर्चना की और इनको बर्फ़ में दबा दिया। आनंद के इस क्षण में मुझे अपने माता-पिता का ध्यान आया।
जैसे मैं उठी, मैंने अपने हाथ जोड़े और मैं अपने रज्जु-नेता अंगदोरजी के प्रति आदर भाव से झुकी। अंगदोरजी जिन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया और मुझे लक्ष्य तक पहुँचाया। मैंने उन्हें बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट की दूसरी चढ़ाई चढ़ने पर बधाई भी दी। उन्होंने मुझे गले से लगाया और मेरे कानों में फुसफुसाया, “दीदी, तुमने अच्छी चढ़ाई की। मैं बहुत प्रसन्न हूँ!”
कुछ देर बाद सोनम पुलजर पहुँचे और उन्होंने फोटो लेने शुरू कर दिए। इस समय तक ल्हाटू ने हमारे नेता को एवरेस्ट पर हम चारों के होने की सूचना दे दी थी। तब मेरे हाथ में वॉकी-टॉकी दिया गया। कर्नल खुल्लर हमारी सफलता से बहुत प्रसन्न थे। मुझे बधाई देते हुए उन्होंने कहा, “मैं तुम्हारी इस अनूठी उपलब्धि के लिए तुम्हारे माता-पिता को बधाई देना चाहूँगा!” वे बोले कि देश को तुम पर गर्व है और अब तुम ऐसे संसार में वापस जाओगी, जो तुम्हारे अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम भिन्न होगा!

बचेन्द्री पाल एवरेस्ट शिखर पर पहुँचने वाली प्रथम भारतीय महिला हैं। उनका अभियान दल 7 मार्च, 1984 को दिल्ली से काठमांडू के लिए रवाना हुआ। उन्होंने नमचे बाजार पहुँचकर सबसे पहले ‘सागरमाथा’ (एवरेस्ट) की सुंदरता को देखा। शिखर पर तेज़ हवाओं के कारण उड़ती हुई सूखी बर्फ़ का ध्वज-सा लहरा रहा था। 26 मार्च को वे पैरिच पहुँचे, जहाँ हिमस्खलन के कारण एक शेरपा कुली की मृत्यु का समाचार मिला। अग्रिम दल के नेता प्रेमचंद ने खुंभु हिमपात के ठीक ऊपर स्थित कैंप एक तक का रास्ता अभियान दल के लिए साफ़ कर दिया था। बेस कैंप पहुँचने से पहले रसोई सहायक की मृत्यु का समाचार मिला। कर्नल खुल्लर ने अभियान दल के साथी सदस्यों को खतरों तथा अनहोनी घटनाओं को सहज भाव से स्वीकार करने की प्रेरणा दी। बेस कैंप में पर्वतारोहियों के उत्साहवर्धन के लिए तेनजिंग अपनी सबसे छोटी सुपुत्री डेकी के साथ वहाँ पहुँचे और बचेंद्री पाल से कहा कि तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो। तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए। डॉ. मीनू मेहता ने एल्यूमिनियम की सीढ़ियों से पुल बनाने हेतु अभियान्त्रिक कार्यों की जानकारी दी। बेस कैंप में 15-16 मई की आधी रात के समय एक लंबा बर्फ का पिंड ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर नीचे आ गिरा। लेखिका उस बर्फ के पिंड के नीचे दब गई। लोपसांग ने अपनी स्विस छुरी की मदद से लेखिका को बर्फ की कब्र से खींचकर बाहर निकाला। इस दिल दहला देने वाली घटना में लगभग सभी सदस्यों को चोटें आई थी। कुछ सदस्यों को पुनः वापस नीचे जाना पड़ा। इधर बचेंद्री पाल ने आरोहण जारी रखा और साउथ कोल पहुँच गई। वहाँ पहुँचकर लेखिका ने चाय बनाई और जूस पिलाकर अपने साथियों ‘मीनू’, ‘जय’ तथा ‘की’ की सहायता की। अगले दिन सुबह लेखिका ने चाय, बिस्कुट और चॉकलेट का नाश्ता करके वे अंगदोरजी के साथ शिखर कैंप की ओर चल पड़ीं। वे साउथ कोल से दो घंटे में शिखर कैंप पहुँच गईं। कुछ देर विश्राम किया। उसी समय ल्हाटू वहाँ नायलॉन की रस्सी लेकर पहुँचा। उसने रस्सी से अंगदोरजी और लेखिका के बीच संतुलन बनाए रखा।
23 मई, 1984 की दोपहर एक बजकर सात मिनट पर लेखिका एवरेस्ट के शिखर पर पहुँच गई। फावड़े से बर्फ खोदकर उन्होंने खड़े होने की जगह बनाई। घुटनों के बल झुककर सागरमाथा के ताज का स्पर्श व चुंबन लिया। थैले से दुर्गा माता का चित्र और हनुमान चालीसा निकालकर, छोटी-सी पूजा अर्चना करके उसे लाल कपड़े में लपेटकर बर्फ में दबा दिया। इसके बाद उठकर हाथ जोड़कर सिर हिलाकर अंगदोरजी को धन्यवाद दिया। कर्नल खुल्लर ने उनको उनकी महान उपलब्धि की बधाई दी।

1. गौरव – Glory
2. बी. एड. – Bachelor of Education
3. एम.ए. – Master of Arts
4. प्रिंसिपल – प्राचार्य
5. संतान – औलाद
6. असमर्थ – incapable
7. विषम – विपरीत
8. उकसाता – provoke
9. नाज़ुक – fragile
10. बहरहाल – हालाँकि
11. ट्रेनिंग – प्रशिक्षण
12. प्रयाण – चढ़ाई
13. रोमांचक – Adventures
14. विवरण – detail
15. कलमबद्ध – लिखना
16. लोमहर्षक – अत्यंत सुख देने वाला
17. ब्योरा – report
18. शिखर – summit
19. अभियान – चढ़ाई (आगे बढ़ना), किसी काम के लिए प्रतिबद्धता
20. दुर्गम – जहाँ पहुँचना कठिन हो, कठिन मार्ग
21. हिमपात – बर्फ़ का गिरना
22. आकर्षित – मुग्ध होना, आकृष्ट होना
23. अवसाद – उदासी
24. ग्लेशियर – बर्फ़ की नदी
25. अनियमित – नियम विरुद्ध, जिसका कोई नियम न हो
26. आशाजनक – आशा उत्पन्न करनेवाला
27. भौंचक्की – हैरान
28. अव्यवस्थित – व्यवस्थाहीन, जिसमें कोई व्यवस्था न हो
29. प्रवास – यात्रा में रहना
30. हिम-विदर – दरार, तरेड़
31. आरोही – ऊपर चढ़नेवाला
32. विख्यात – मशहूर, प्रसिद्ध
33. अभियांत्रिकी – तकनीकी
34. नौसिखिया – नया सीखनेवाला
35. विशालकाय पुंज – बड़े आकार के बर्फ़ के टुकड़े (ढेर)
36. पर्वतारोही – पर्वत पर चढ़नेवाला
37. आरोहण – चढ़ना, ऊपर की ओर जाना
38. कर्मठता – काम में कुशलता, कर्म के प्रति निष्ठा
39. उपस्कर – आरोही की आवश्यक सामग्री
40. शंकु – नोक
41. उपलब्धि – प्राप्ति
42. जोखिम – खतरा

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
1- अग्रिम दल का नेतृत्व कौन कर रहा था?
उत्तर – अग्रिम दल का नेतृत्व उपनेता प्रेमचंद कर रहे थे।
2- लेखिका को सागरमाथा नाम क्यों अच्छा लगा?
उत्तर – एवरेस्ट को नेपाली भाषा में सागरमाथा के नाम से जाना जाता है इसलिए लेखिका को सागरमाथा नाम अच्छा लगा।
3- लेखिका को ध्वज जैसा क्या लगा?
उत्तर – एवरेस्ट की तरफ गौर-से देखते हुए लेखिका को एक भारी बर्फ का फूल दिखा जो पर्वत शिखर पर लहराता ध्वज-सा लग रहा था।
4- हिमस्खलन से कितने लोगों की मृत्यु हुई और कितने घायल हुए?
उत्तर – हिमस्खलन से एक की मृत्यु और चार घायल हुए।
5- मृत्यु के अवसाद को देखकर कर्नल खुल्लर ने क्या कहा?
उत्तर – मृत्यु के अवसाद को देखकर कर्नल खुल्लर ने कहा कि एवरेस्ट जैसे महान अभियानों में खतरों को और कभी-कभी मृत्यु को सहज भाव से स्वीकार करना चाहिए।
6- रसोई सहायक की मृत्यु कैसे हुई?
उत्तर – एवरेस्ट शिखर पर चढ़ाई के दौरान जलवायु अमुकुल नहीं थी। हिमपात में अनिश्चित और अनियमित बदलावों के कारण रसोई सहायक की मृत्यु हो गई।
7- कैंप-चार कहाँ और कब लगाया गया?
उत्तर – कैंप चार साउथ कोल में 29 अप्रैल को सात हज़ार नौ सौ मीटर की ऊँचाई पर लगाया गया।
8- लेखिका ने शेरपा कुली को अपना परिचय किस तरह दिया?
उत्तर – लेखिका ने शेरपा कुली को अपना परिचय यह कहकर दिया कि मैं बिलकुल ही नौसिखिया हूँ और एवरेस्ट मेरा पहला अभियान है।
9- लेखिका की सफलता पर कर्नल खुल्लर ने उसे किन शब्दों में बधाई दी?
उत्तर – लेखिका की सफलता पर कर्नल खुल्लर ने बधाई देते हुए उन्होंने कहा, “मैं तुम्हारी इस अनूठी उपलब्धि के लिए तुम्हारे माता-पिता को बधाई देना चाहूँगा!” वे बोले कि देश को तुम पर गर्व है और अब तुम ऐसे संसार में वापस जाओगी, जो तुम्हारे अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम भिन्न होगा।

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
1- नज़दीक से एवरेस्ट को देखकर लेखिका को कैसा लगा?
उत्तर – नज़दीक से एवरेस्ट को देखकर लेखिका को इतना अच्छा लगा कि वह भौंचक्की होकर देखती रही। बेस-कैंप पहुँचने पर दूसरे दिन एवरेस्ट और उसकी अन्य श्रेणियों को भी देखा। लोहत्से और नुत्से की ऊँचाई से घिरी बर्फ़ीली टेढ़ी-मेढ़ी नदी को भी निहारती रहती थी।
2- डॉ. मीनू मेहता ने क्या जानकारियाँ दीं?
उत्तर – डॉक्टर मीनू ने उन्हें निम्न जानकारियाँ दीं –
क. अल्युमिनियम को सीढ़ियों से अस्थायी पूल बनाना।
ख. लट्ठों और रस्सियों का प्रयोग करना।
ग. बर्फ़ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सियों को बाँधना।
घ. अग्रिम दल के अभियांत्रिकी कार्यों के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
3- तेनजिंग ने लेखिका की तारीफ़ में क्या कहा?
उत्तर – तेनजिंग ने लेखिका की तारीफ़ में कहा कि यह एक पर्वतीय लड़की है। इसे तो पहले ही प्रयास में शिखर पर पहुँच जाना चाहिए। इसके जोश को देखकर ऐसा लगता है मानो पर्वत और पर्वतीय स्थानों की इसे बहुत अच्छी जानकारी है।
4- लेखिका को किनके साथ चढ़ाई करनी थी?
उत्तर – लेखिका को तोपसांग, तशरिंग, एन. डी. शेरपा और आठ अन्य शरीर से मज़बूत जो और ऊँचाइयों में रहते थे उन शेरपाओं के साथ चढ़ाई करनी थी।
5- लोपसांग ने तंबू का रास्ता कैसे साफ़ किया?
उत्तर – लोपसांग ने अपनी स्विस छुरी से बड़े-बड़े हिमखंडों को हटाया और चारों तरफ फैली हुई कठोर बर्फ़ की खुदाई की। इस प्रकार लोपसांग ने तंबू का रास्ता साफ़ किया।
6- साउथ कोल कैंप पहुँचकर लेखिका ने अगले दिन की महत्त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी कैसे शुरू की?
उत्तर –साउथ कोल कैंप पहुँचकर लेखिका ने अगले दिन की महत्त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी के लिए खाना, कूकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीज़न सिलिंडर इकट्ठे किए इसके बाद लेखिका अपने दूसरे साथियों की सहायता के लिए तथा अपने लिए एक थरमस में जूस और दूसरे थरमस में चाय भरने के लिए नीचे उतर गई।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1- उपनेता प्रेमचंद ने किन स्थितियों से अवगत कराया?
उत्तर – उपनेता प्रेमचंद ने अग्रिम दल को खुंभु हिमपात की स्थिति से पर्वतारोहियों को अवगत कराया। उन्होंने कहा कि उनके एक दल ने कैंप एक जो हिमपात के ठीक ऊपर है, वहाँ तक का रास्ता साफ़ कर दिया है। उन्होंने यह भी बताया कि पुल बनाकर, रस्सियाँ बाँधकर तथा झंडियों से रास्ता चिह्नित कर सभी बड़ी कठिनाइयों का जायजा ले लिया गया है। उन्होंने यह भी ध्यान दिलाया कि ग्लेशियर बर्फ़ की नदी है और बर्फ़ का गिरना अभी भी जारी है।
2- हिमपात किस तरह होता है और उससे क्या-क्या परिवर्तन आते हैं?
उत्तर – हिमपात का अर्थ है बर्फ़ की बारिश जिसकी वजह से रास्ते ढक जाते हैं और दरारों पर बर्फ़ पड़ जाने के कारण आना-जाना मुश्किल हो जाता है। पाठ में बर्फ़ के खंडों का अव्यवस्थित ढंग से गिरने को ही हिमपात कहा गया है। हिमपात अनिश्चित और अनियमित होता है। ग्लेशियर के ढहने से अधिकतर हलचल होती है। इससे बर्फ़ की बड़ी-बड़ी चट्टानें तुरंत गिर जाती है इससे धरातल पर दरारें पड़ जाती हैं।
3- लेखिका के तंबू में गिरे बर्फ़ पिंड का वर्णन किस तरह किया गया है?
उत्तर – लेखिका गहरी नींद में सोई थी कि रात में 12.30 बजे के लगभग लेखिका के सिर के पिछले हिस्से में किसी एक सख्त चीज़ के टकराने से लेखिका की नींद अचानक खुल गई और साथ ही एक ज़ोरदार धमाका भी हुआ। तभी लेखिका को महसूस हुआ कि एक ठंडी, बहुत भारी कोई चीज़ मेरे शरीर पर से मुझे कुचलती हुई चल रही है। मुझे साँस लेने में भी कठिनाई हो रही थी। एक लंबा बर्फ़ का पिंड कैंप के ठीक ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर नीचे आ गिरा था और उसका विशाल हिमपुंज बन गया था। हिमखंडों, बर्फ़ के टुकड़ों तथा जमी हुई बर्फ़ के इस विशालकाय पुंज ने, एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तेज़ गति और भीषण गर्जना के साथ, सीधी ढलान से नीचे आते हुए हमारे कैंप को तहस-नहस कर दिया।
4- लेखिका को देखकर ‘की’ हक्का-बक्का क्यों रह गया?
उत्तर – की लेखिका को देखकर हक्का-वक्का रह गया क्योंकि लेखिका साउथ कोल कैंप पहुँच चुकी थी फिर भी की से मिलने के लिए बर्फीली आँधी का सामना करते हुए नीचे आ गई थी। यह जानलेवा साबित हो सकता था। दूसरी तरफ यह लेखिका का पहला अभियान था और अनुभव बिलकुल नहीं।
5- एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए कुल कितने कैंप बनाए गए? उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर – एवरेस्ट पर चढ़ने केलिए कुल सात कैंप लगाए गए थे-
i. बेसकैंप- यह कैंप काठमांडू के शेरपालैंड में लगाया गया था।
ii. कैंप एक – यह हिमपात से 6000 मीटर की ऊँचाई पर था।
iii. कैंप दो – 16 मई प्रातः सभी लोग इस कैंप में पहुँचे।
iv. कैंप तीन – यह लोहात्से पहाड़ी के आँगन में स्थित था।
v. कैंप चार – यह समुद्र तल से 7900 मीटर ऊपर था। यहीं से साउथ कोल कैंप और शिखर कैंप के लिए चढ़ाई की गई।
vi. साउथ कोल कैंप – यहीं से अंतिम दिन की चढ़ाई शुरू हुई।
vii. शिखर कैंप – यह शिखर की सर्वोत्तम चोटी से ठीक नीचे स्थित है।
6- चढ़ाई के समय एवरेस्ट की चोटी की स्थिति कैसी थी?
उत्तर – चढ़ाई करते समय एवरेस्ट पर जमी बर्फ सीधी और ढलाऊ थी। दक्षिणी शिखर के ऊपर हवा की गति बढ़ गई थी। उस ऊँचाई पर तेज़ हवा के झोंके भुरभुरे बर्फ़ के कणों को चारों तरफ़ उड़ा रहे थे, जिससे दृश्यता शून्य तक आ गई थी। थोड़ी दूर के बाद कोई ऊँची चढ़ाई नहीं है। ढलान एकदम सीधा नीचे चला गया है। एवरेस्ट शंकु की चोटी पर दो व्यक्ति साथ-साथ खड़े हो सकें इतनी जगह भी नहीं थी।
7- सम्मिलित अभियान में सहयोग एवं सहायता की भावना का परिचय बचेंद्री के किस कार्य से मिलता है?
उत्तर – सम्मिलित अभियान में सहयोग एवं सहायता की भावना का परिचय बचेंद्री के इस कार्य से मिलता है जब लेखिका ने अपने दल के दूसरे सदस्यों की मदद करने का निश्चय किया। इसके लिए वह एक थरमस को जूस और दूसरे को गरम चाय से भरकर बर्फीली हवा में तंबू से बाहर निकली और नीचे उतरने लगी। जय ने उसके इस प्रयास को खतरनाक बताया तो लेखिका ने जवाब दिया, “मैं भी औरों की तरह पर्वतारोही हूँ इसलिए इस दल में आई हूँ। मैं शारीरिक रूप से ठीक हूँ इसलिए मुझे अपने दल के सदस्यों की मदद करनी चाहिए।”

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1- एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए।
उत्तर – इस कथन के माध्यम से कर्नल खुल्लर यह कहना चाहते हैं कि एवरेस्ट पर पहुँचना एक महान अभियान है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने की लालशा में कितने लोगों की मृत्यु हो चुकी है। इस अभियान में कदम-कदम पर खतरा बना रहता है।
2- सीधे धरातल पर दरार पड़ने का विचार और इस दरार का गहरे-चौड़े हिम-विदर में बदल जाने का मात्र खयाल ही बहुत डरावना था। इससे भी ज़्यादा भयानक इस बात की जानकारी थी कि हमारे संपूर्ण प्रयास के दौरान हिमपात लगभग एक दर्जन आरोहियों और कुलियों को प्रतिदिन छूता रहेगा।
उत्तर – इन कथनों के माध्यम से लेखिका एवरेस्ट अभियान की भयावहता को सजीव कर रही हैं। बड़े-बड़े हिम खंडों का गिरना और उसके परिणाम बड़े ही खतरनाक हैं। लेखिका हिम – विदर की कल्पना कर सिहर उठती है। इसके अतिरिक्त हिमपात का प्रकोप इस अभियान को और भी अधिक भयानक बना रहा था परंतु बिना हिम्मत खोए वो अपना लक्ष्य प्राप्त करती है।
3- बिना उठे ही मैंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला। मैंने इनको अपने साथ लाए लाल कपडे़ में लपेटा, छोटी-सी पूजा-अर्चना की और इनको बर्फ़ में दबा दिया। आनंद के इस क्षण में मुझे अपने माता-पिता का ध्यान आया।
उत्तर – लेखिका एवरेस्ट की शंकु पर पहुँचने वाली पहली भारतीय महिला हैं। लेखिका ने अपने विजय का श्रेय माँ दुर्गा और हनुमानजी को दिया। एवरेस्ट की शंकु पर इनकी पूजा यह दर्शाता है कि ये धार्मिक स्वभाव की हैं। ये पल उन्हें अपने जीवन के सबसे आनंद के पल लग रहे थे जिसे वह अपने माता-पिता के साथ बाँटना चाहती थी। इससे यह पता चलता है कि ये अपने माता-पिता का बहुत सम्मान करती हैं।

प्रश्न – एवरेस्ट अभियान दल कब और कहाँ से काठमांडू के लिए रवाना हुआ?
उत्तर – एवरेस्ट अभियान दल 7 मार्च को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज़ से चल दिया।
प्रश्न – शेरपालैंड का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र क्या है?
उत्तर – नमचे बाज़ार, शेरपालैंड का एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र है।
प्रश्न – नेपाली भाषा में एवरेस्ट को किस नाम से पुकारा जाता है?
उत्तर – नेपाली भाषा में एवरेस्ट को ‘सागरमाथा’ नाम से पुकारा जाता है।
प्रश्न – एवरेस्ट पर बर्फ़ का बड़ा फूल (प्लूम) क्यों दिखाई पड़ता है?
उत्तर – एवरेस्ट पर 150 किलोमीटर या इससे भी अधिक रफ्तार से हवा चलने पर बर्फ़ का बड़ा फूल (प्लूम) दिखाई पड़ता है।
प्रश्न – लेखिका अपने अभियान दल के साथ पैरिच कब पहुँची?
उत्तर – लेखिका अपने अभियान दल के साथ 26 मार्च को पैरिच पहुँची।
प्रश्न – शेरपा कुली की मृत्यु का क्या कारण था?
उत्तर – हिम स्खलन शेरपा कुली की मृत्यु का कारण था।
प्रश्न – ल्होत्से की ओर से बर्फ़ की चट्टान नीचे खिसक आने से कितने शेरपा की मौत और कितने घायल हुए थे?
उत्तर – ल्होत्से की ओर से बर्फ़ की चट्टान नीचे खिसक आने से सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए थे।
प्रश्न – अग्रिम दल का नेतृत्व कौन कर रहा था?
उत्तर – उपनेता प्रेमचंद अग्रिम दल का नेतृत्व कर रहे थे।
प्रश्न – रसोई सहायक की मृत्यु किस कारण से हो गई थी?
उत्तर – जलवायु अनुकूल न होने के कारण रसोई सहायक की मृत्यु हो गई थी।
प्रश्न – एवरेस्ट पर हिमस्खलन होने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर – एवरेस्ट पर ग्लेशियर के बहने से अकसर बर्फ़ में हलचल हो जाती है, जिससे बड़ी-बड़ी बर्फ़ की चट्टानें तत्काल गिर जाया करती हैं और यही हिमस्खलन होने का मुख्य कारण है।
प्रश्न – डॉ. मीनू मेहता ने आरोहियों को क्या-क्या जानकारियाँ दीं?
उत्तर – डॉ. मीनू मेहता ने आरोहियों को अल्यूमिनियम की सीढ़ियों से अस्थायी पुलों का बनाना, लट्ठों और रस्सियों का उपयोग, बर्फ़ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सियों को बाँधना और अग्रिम दल के अभियांत्रिकी कार्यों के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
प्रश्न – कैंप एक पर बचेंद्री पाल के साथ पहुँचनेवाली महिला आरोही कौन थी?
उत्तर – कैंप एक पर बचेंद्री पाल के साथ पहुँचनेवाली महिला आरोही रीता गोंबू थीं।
प्रश्न – 29 अप्रैल को साउथ कोल पर कैंप-चार किसने लगाया?
उत्तर – अंगदोरजी, लोपसांग और मगन बिस्सा ने 29 अप्रैल को साउथ कोल पर कैंप-चार लगाया।
प्रश्न – साउथ कोल कितनी ऊँचाई पर है?
उत्तर – साउथ कोल 7900 मीटर की ऊँचाई पर है।
प्रश्न – बेस कैंप में आरोहियों से मिलने कौन आया था?
उत्तर – तेनजिंग अपनी सबसे छोटी सुपुत्री डेकी के साथ बेस कैंप में आरोहियों से मिलने आए थे।
प्रश्न – 15-16 मई 1984 के दिन अभियान दल के साथ कौन-सी घटना घटी?
उत्तर – 15-16 मई 1984 के दिन कैंप तीन में लगभग रात के 12:30 बजे लोहत्से से एक बड़ा हिमपिंड आ गिरा और अनेक आरोही इससे घायल हो गए।
प्रश्न – बुद्ध पूर्णिमा के दिन हुई दुर्घटना से बचेंद्री की जान किसने और कैसे बचाई?
उत्तर – बुद्ध पूर्णिमा के दिन हुई दुर्घटना से बचेंद्री की जान लोपसांग तथा अन्य आरोहियों ने उन्हें बर्फ की कब्र से निकाल कर बचाई।
प्रश्न – बुद्ध पूर्णिमा के दिन हुई दुर्घटना में कितने पुरुष आरोही घायल हुए?
उत्तर – बुद्ध पूर्णिमा के दिन हुई दुर्घटना में नौ पुरुष आरोही घायल हुए थे।
प्रश्न – साउथ कोल कैंप पहुँचकर बचेंद्री पाल किस महत्त्वपूर्ण तैयारी में लग गई?
उत्तर – साउथ कोल कैंप पहुँचकर बचेंद्री पाल अगले दिन की महत्त्वपूर्ण तैयारी में लग गई।
प्रश्न – बचेंद्री पाल अन्य आरोहियों के लिए क्या लेकर नीचे उतरी?
उत्तर – बचेंद्री पाल अन्य आरोहियों के लिए थरमस में जूस से और दूसरे थरमस को गरम चाय से भरकर नीचे उतरने लगी।
प्रश्न – बचेंद्री पाल को और किन आरोहियों के साथ चढ़ाई करनी थी?
उत्तर – बचेंद्री पाल को की, जय और मीनू के साथ चढ़ाई करनी थी।
प्रश्न – बचेंद्री पाल की मुलाक़ात जय से कहाँ हुई?
उत्तर – जेनेवा स्पर की चोटी के ठीक नीचे बचेंद्री पाल की मुलाक़ात जय से हुई।
प्रश्न – एवरेस्ट का कौन-सा स्थान ‘पृथ्वी पर बहुत अधिक कठोर’ जगह के नाम से प्रसिद्ध है?
उत्तर – एवरेस्ट का साउथ कोल ‘पृथ्वी पर बहुत अधिक कठोर’ जगह के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रश्न – साउथ कोल कैंप से बचेंद्री पाल ने किसके साथ चढ़ाई शुरू की?
उत्तर – साउथ कोल कैंप से बचेंद्री पाल ने सुबह 6.20 पर अंग दोरजी साथ चढ़ाई शुरू की।
प्रश्न – बचेंद्री पाल ने एवरेस्ट की चोटी पर कब कदम रखा?
उत्तर – 23 मई 1984 के दिन दोपहर के एक बजकर सात मिनट पर बचेंद्री पाल ने एवरेस्ट की चोटी पर कदम रखा।
प्रश्न – बचेंद्री पाल के रज्जु नेता कौन थे?
उत्तर – अंग दोरजी बचेंद्री पाल के रज्जु नेता थे।
प्रश्न – अंगदोरजी ने कौन-सा नया कीर्तिमान स्थापित किया?
उत्तर – अंगदोरजी ने बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट की दूसरी चढ़ाई चढ़ने का नया कीर्तिमान स्थापित किया।

 

 

1. इस पाठ में प्रयुक्त निम्नलिखित शब्दों की व्याख्या पाठ का संदर्भ देकर कीजिए –
1. निहारा है – एवरेस्ट की चोटी को बचेंद्री पाल ने निहारा है।
धसकना – खिसकना – ये दोनों शब्द हिम – खंडो के गिरने के संदर्भ में आए हैं।
सागरमाथा – नेपाली एवरेस्ट चोटी को सागरमाथा कहते हैं।
जायज़ा लेना – यह शब्द प्रेमचंद ने कैंप के परीक्षण निरीक्षण कर स्थिति के बारे में प्रयुक्त हुआ है।
नौसिखिया – बचेंद्री पाल ने तेनजिंग को अपना परिचय देते हुए यह शब्द प्रयुक्त किया है।
2. निम्नलिखित पंक्तियों में उचित विराम चिह्नों का प्रयोग कीजिए –
(क) उन्होंने कहा तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए
उत्तर – उन्होंने कहा,”तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो। तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए।”
(ख) क्या तुम भयभीत थीं
उत्तर – “क्या तुम भयभीत थीं?”
(ग) तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री
उत्तर – “तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री?”

3. नीचे दिए उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्द-युग्मों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-
उदाहरणः हमारे पास एक वॉकी-टॉकी था।
1. टेढ़ी-मेढ़ी – उनके घर के रास्ते में टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियाँ हैं।
2. गहरे-चौड़े – चौराहे के गहरे-चौड़े नालों में हमेशा पानी भरा रहता है।
3. आस-पास – उसका घर यहीं आस-पास है।
4. हक्का-बक्का – मशहूर क्रिकेटर को पार्टी में देखकर मैं हक्का-बक्का रह गया।
5. इधर-उधर – शिक्षक का ध्यान हटते ही बच्चे इधर-उधर भागने लगे।
6. लंबे-चौड़े – रास्ते में लंबे – चौड़े साँप को देखकर मेरी घिग्घी बँध गई।

4. उदाहरण के अनुसार विलोम शब्द बनाइए-
उदाहरणः अनुकूल – प्रतिकूल
नियमित – अनियमित
आरोही – अवरोही
सुंदर – असुंदर/कुरूप
विख्यात – कुख्यात
निश्चित – अनिश्चित

5. निम्नलिखित शब्दों में उपयुक्त उपसर्ग लगाइए-
जैसेः पुत्र – सुपुत्र
वास – प्रवास
व्यवस्थित – सुव्यवस्थित
कूल – प्रतिकूल, अनुकूल
गति – प्रगति
रोहण – आरोहण
रक्षित – आरक्षित
6. निम्नलिखित क्रिया विशेषणों का उचित प्रयोग करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
अगले दिन, कम समय में, कुछ देर बाद, सुबह तक
(क) मैं सुबह तक यह कार्य कर लूँगा।
(ख) बादल घिरने के कुछ देर बाद ही वर्षा हो गई।
(ग) उसने बहुत कम समय में इतनी तरक्की कर ली।
(घ) नाङकेसा को अगले दिन गाँव जाना था।

मुहावरे
1. माथे से लगाना – इज्ज़त देना

वाक्यांशों के लिए एक शब्द
1. साहसिक – साहस वाला
2. अनूठा – जो अनोखा हो
3. उपलब्धि – किसी चीज़ की प्राप्ति
4. दुर्गम – जहाँ पहुँचना कठिन हो
5. कर्मठता – कर्म के प्रति निष्ठा
6. आरोही – ऊपर चढ़ने वाला

विलोम शब्द
1. मजबूत – कमज़ोर
2. अग्रिम – पश्च
3. महत्त्वपूर्ण – महत्त्वहीन
4. नगरीय – ग्रामीण
5. कठिनतम – सरलतम
6. दुखद – सुखद
7. सहज – असहज
8. स्वीकार – अस्वीकार
9. नियमित – अनियमित
10. आशाजनक – निराशाजनक
11. अव्यवस्थित – व्यवस्थित
12. विस्तृत – लघु
13. विशेष – सामान्य
14. सख़्त- कोमल
15. जय – पराजय
16. चढ़ाई – ढलान
17. सुरक्षित- असुरक्षित
18. भिन्न – अभिन्न

अनेकार्थी शब्द
1. दल – समूह, पत्ता
2. गति – चाल, प्रवाह
3. उत्तर – दिशा, जवाब
4. चोटी – शिखर, बालों की चोटी
5. लाल – पुत्र, रंग, रत्न
उपसर्ग एवं प्रत्यय
उपसर्ग
1. सम्- संपूर्ण
2. वि – विचित्र
3. दुर् – दुर्गम
4. अ- अनियमित, अनिश्चित, अस्थायी
5. प्रति – प्रतिदिन
6. प्र – प्रवास, प्रगति
7. अभि – अभियांत्रिकी
प्रत्यय
1. वाले – आनेवाले
2. इत – आकर्षित, चिह्नित, सुरक्षित, व्यवस्थित
3. तम – कठिनतम
4. ई – ऊपरी, पूर्वी, पहाड़ी, पक्की, दक्षिणी, अनूठी, जानकारी, आरोही
5. द – दुखद
6. इक – साहसिक, शारीरिक
7. ता – सफलता
8. कर – विशेषकर, टूटकर, लौटकर
9. याँ – कठिनाइयाँ
10. नाक – खतरनाक
11. दार – जोरदार
12. आन – ढलान
13. आई – चढ़ाई, ऊँचाई, कठिनाई
14. पूर्वक – कृतज्ञतापूर्वक, दृढ़तापूर्वक
15. ईय – नगरीय, पर्वतीय, भारतीय

पर्यायवाची
1. पर्वत – पहाड़, गिरि, अचल
2. ध्वज – झंडा, केतु, पताका
3. विचित्र – अनोखा, अद्भुत, अनूठा
4. रास्ता – मार्ग, पथ, सड़क
5. हिम – बर्फ़, तुषार, तुहिन
6. मृत्यु – महायात्रा, देहांत, देहावसान
7. नदी – तटिनी, तरंगिनी, सलिला
8. दिन – दिवस, वासर, वार
9. महिलाएँ – देवी, स्त्री, भद्रनारी
10. प्रगति – उन्नति, विकास, उत्थान
11. हाथ – कर, हस्त, पाणि
12. पानी – जीवन, सलिल, अंबु

1- इस पाठ में आए दस अंग्रेज़ी शब्दों का चयन कर उनके अर्थ लिखिए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर इस प्रश्न को करें।
2- पर्वतारोहण से संबंधित दस चीज़ों के नाम लिखिए।
उत्तर – रस्सियाँ, छुरी, ऑक्सीज़न सिलेंडर, सीढ़ी, मुखौटा, उपस्कर, तंबू, कीलदार जूते, थर्मस
3- तेनजिंग शेरपा की पहली चढ़ाई के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर इस प्रश्न को करें।
4- इस पर्वत का नाम ‘एवरेस्ट’ क्यों पड़ा? जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर – एक अंग्रेज़ अधिकारी जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर। (विस्तृत उत्तर के लिए छात्र पुस्तकों की मदद लें।)

1- आगे बढ़ती भारतीय महिलाओं की पुस्तक पढ़कर उनसे संबंधित चित्रों का संग्रह कीजिए एवं संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करके लिखिए-
(क) पी.टी. उषा
उत्तर – पीटी उषा का पूरा नाम पिलाउल्लाकांडी थेक्केपरांबिल उषा है। – पीटी उषा भारत की महानतम धावकों में से एक हैं, जिन्हें अक्सर देश की “क्वीन ऑफ ट्रैक एंड फील्ड” कहा जाता है।
(ख) आरती साहा
उत्तर – कलकत्ता, पश्चिम बंगाल की मूल निवासी आरती ने चार साल की उम्र से ही तैराकी शुरु कर दी थी। उनका पूरा नाम आरती साहा ‘गुप्ता’ है। सचिन नाग ने उनकी इस प्रतिभा को पहचाना और उसे तराशने का कार्य शुरु किया। 1949 में आरती ने अखिल भारतीय रिकार्ड सहित राज्यस्तरीय तैराकी प्रतियोगिताओं को जीता। उन्होंने 1952 में हेलसिंकी ओलंपिक में भी भाग लिया। भारतीय पुरुष तैराक मिहिर सेन से प्रेरित होकर उन्होंने इंग्लिश चैनल पार करने की कोशिश की और 29 सितम्बर 1959 को वे एशिया से ऐसा करने वाली प्रथम महिला तैराक बन गईं। उन्होंने ४२ मील की यह दूरी १६ घंटे 20 मिनट में तैय की।
(ग) किरण बेदी
उत्तर – डॉ॰ किरण बेदी का जन्म 9 जून 1949 मेन हुआ था। भारतीय पुलिस सेवा की सेवानिवृत्त अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, भूतपूर्व टेनिस खिलाड़ी एवं राजनेता हैं। सन् 1972 में भारतीय पुलिस सेवा में सम्मिलित होने वाली वे प्रथम महिला अधिकारी हैं। 35 वर्ष तक सेवा में रहने के बाद सन 2007 में उन्होने स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली।
2- रामधारी सिंह दिनकर का लेख- ‘हिम्मत और ज़िंदगी’ पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर इस प्रश्न को करें।
3- ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’- इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर इस प्रश्न को करें।

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