CBSE, NCERT, Class – IX, Sparsh, Chapter -8, Raidas Ke Pad – रैदास – अब कैसे छूटै राम, नाम…, ऐसी लाल तुझ बिनु…   (HINDI Course B)

रैदास नाम से विख्यात संत रविदास का जन्म सन् 1388 और देहावसान सन् 1518 में बनारस में ही हुआ, ऐसा माना जाता है। इनकी ख्याति से प्रभावित होकर सिकंदर लोदी ने इन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा था। मध्ययुगीन साधकों में रैदास का विशिष्ट स्थान है। कबीर की तरह रैदास भी संत कोटि के कवियों में गिने जाते हैं। मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा जैसे दिखावों में रैदास का ज़रा भी विश्वास न था। वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे। रैदास ने अपनी काव्य-रचनाओं में सरल, व्यावहारिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है, जिसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। रैदास को उपमा और रूपक अलंकार विशेष प्रिय रहे हैं। सीधे-सादे पदों में संत कवि ने हृदय के भाव बड़ी सफ़ाई से प्रकट किए हैं। इनका आत्मनिवेदन, दैन्य भाव और सहज भक्ति पाठक के हृदय को उद्वेलित करते हैं। रैदास के चालीस पद सिक्खों के पवित्र धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहब’ में भी सम्मिलित हैं।

यहाँ रैदास के दो पद लिए गए हैं। पहले पद ‘प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी’ में कवि अपने आराध्य को याद करते हुए उनसे अपनी तुलना करता है। उसका प्रभु बाहर कहीं किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं विराजता वरन् उसके अपने अंतस में सदा विघमान रहता है। यही नहीं, वह हर हाल में, हर काल में उससे श्रेष्ठ और सर्वगुण संपन्न है। इसीलिए तो कवि को उन जैसा बनने की प्रेरणा मिलती है।
दूसरे पद में भगवान की अपार उदारता, कृपा और उनके समदर्शी स्वभाव का वर्णन है। रैदास कहते हैं कि भगवान ने तथाकथित निम्न कुल के भक्तों को भी सहज-भाव से अपनाया है और उन्हें लोक में सम्माननीय स्थान दिया है।

(1)
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग—अंग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा।।

शब्दार्थ
बास – गंध, वास
समानी – समाना (सुगंध का बस जाना), बसा हुआ (समाहित)
घन – बादल
बन- जंगल
मोरा – मोर, मयूर
चितवत – देखना, निरखना
चकोर- तीतर की जाति का एक पक्षी जो चंद्रमा का परम प्रेमी माना जाता है
बाती – बत्ती; रुई, पुराने कपड़े आदि को ऐंठकर या बटकर बनाई हुई पतली पूनी
जोति – ज्योति,
बरै – बढ़ाना, जलना
राती – रात्रि
सोनहिं – सोने में
सुहागा – सोने को शुद्ध करने के लिए प्रयोग में आनेवाला क्षारद्रव्य
दासा – दास, सेवक
व्याख्या
कवि रैदास अपने इष्टदेव का स्मरण करते हुए अपनी भक्ति का प्रदर्शन करते हैं। वे कहते हैं कि मैं अपनी भक्ति के माध्यम से अपने प्रभु को प्राप्त करूँगा। कवि कहते हैं कि हे प्रभु! मुझे अब आपके नाम की रट लग गई है, वह छूट नहीं सकती। अब तो मैं आपका परम भक्त हो गया हूँ। आपमें और मुझमें वही संबंध स्थापित हो गया है जो चन्दन और पानी में होता है। चन्दन के संपर्क में रहने से पानी में भी सुगंध फैल जाती है, उसी प्रकार मेरे अंग-अंग में आपकी भक्ति की सुगंध समा गई है। हे प्रभु! आप बादल हो और मेरा मन मोर है। जो आपके भक्ति की गड़गड़ाहट सुनते ही नृत्य करने लगता है। प्रभु! जैसे चकोर चाँद को एकटक निहारता रहता है वैसे ही मैं आपकी भक्ति में निरंतर लगा हुआ हूँ। हे प्रभु! आप दीपक की तरह हो और मैं बत्ती की तरह हूँ जो दिन-रात भक्ति की आस में प्रज्ज्वलित होती रहती है। हे प्रभु ! आप मोती के समान हो और मैं धागे के समान। अर्थात आप मोती के समान उज्ज्वल, पवित्र और सुंदर हो मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ। आपका और मेरा संबंध सोने और सुहागे के समान है। जिस प्रकार सुहागे के संपर्क में आकर सोना और अधिक खरा हो जाता है, उसका मूल्य बढ़ जाता है। उसी प्रकार आपके संपर्क में आने से मैं पवित्र हो गया हूँ। मेरी भक्ति और और भी निखर उठी है। आप मेरे स्वामी हो और में आपका दास हूँ मैं रैदास इसी प्रकार आपके चरणों में रहकर अपनी भक्ति अर्पित करना चाहता हूँ।


(2)
ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै ।।
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै।।
नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै।।

शब्दार्थ
लाल – स्वामी
कउनु – कौन
गरीब निवाजु – दीन – दुखियों पर दया करनेवाला।
गुसईआ – स्वामी, मालिक
माथै छत्रु धरै – मस्तक पर स्वामी होने का मुकुट धारण करता है।
छोति – छुआछूत, अस्पृश्यता
जगत कउ लागै – संसार के लोगों को लगती है।
ता पर तुहीं ढरै – उन पर द्रवित होता है।
नीचहु ऊच करै – नीच को भी ऊँची पदवी प्रदान करता है।
गोबिंद – प्रभु
नामदेव – महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध संत, इन्होंने मराठी और हिंदी दोनों भाषाओं में रचना की है।
तिलोचनु (त्रिलोचन) – एक प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य, जो ज्ञानदेव और नामदेव के गुरु थे।
सधना- एक उच्च कोटि के संत जो नामदेव के समकालीन माने जाते हैं।
सैनु – एक प्रसिद्ध संत
हरिजीउ – हरि जी से
सभै सरै – सब कुछ संभव हो जाता है।

व्याख्या
कवि रैदास निम्न कुल के भक्तों को समभाव स्थान देनेवाले प्रभु का गुणगान करते हुए कहते हैं कि हे स्वामी! ऐसी कृपा तुम्हारे अलावा कौन कर सकता है? हे गरीबों पर दया करने वाले स्वामी ! तुम ऐसे दयालु स्वामी हो जिसने मुझ अछूत और नीच के माथे पर राजाओं जैसा छ्त्र रख दिया। तुम्हीं ने मुझे राजाओं जैसा सम्मान प्रदान किया है। जिसे संसार अछूत मानता है तब भी हे स्वामी! तुमने मुझ पर असीम कृपा की। मुझ पर द्रवित हो गए। हे गोविंद! तुमने मुझ जैसे नीच प्राणी को इतना उच्च स्थान प्रदान किया है ऐसा करते हुए तुम्हें किसी का भय नहीं। तुम्हारी ही कृपा से नामदेव, कबीर, जैसे जुलाहे, त्रिलोचन जैसे सामान्य, साधना जैसे कसाई सैन जैसे नाई इस संसार में अपना नाम अमर कर पाए हैं। उन्हें लौकिक और अलौकिक ज्ञान प्राप्त हुआ। रैदास कहते हैं कि हे संतों, सुनो! हरि जी सब कुछ करने मे समर्थ हैं। वे कुछ भी कर सकते हैं।

1 -निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) पहले पद में भगवान और भक्त की जिन – जिन चीजों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तर – पहले पद में भगवान और भक्त की तुलना चन्दन-पानी, बादल और मोर, चाँद और चकोर, दीप और बाती, मोती और धागा सोना और सुहागा से की गई है।
(ख) पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद – सौंदर्य आ गया है, जैसे – पानी, समानी आदि। इस पद में से अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर – तुकांत वाले शब्द
क. पानी – समानी
ख. मोरा- चकोरा
ग. बाती- राती
घ. धागा – सुहागा
ङ. दासा – रैदासा
(ग) पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबंध हैं। ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए –
उदाहरण : दीपक बाती
उत्तर – उदाहरण-
दीपक – बाती
मोती – धागा
स्वामी – दासा
चंद्र – चकोरा
चंदन – पानी
(घ) दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ किसे कहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – दूसरे पद में ‘गरीब निवाजु’ ईश्वर को कहा गया है। जिस व्यक्ति को ईश्वर की महिमा पर विश्वास होता है वह ईश्वर की कृपा से मोक्ष प्राप्त करता है। नीच से नीच व्यक्ति का भी उद्धार हो जाता है। समाज के ऐसे लोग जिनके स्पर्श से ही उच्च वर्ग लोग अपने आप को अपवित्र मानते हैं, ईश्वर की कृपा से उनका भी समाज में सम्मान बढ़ जाता है।
(ङ) दूसरे पद की ‘जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – इस पंक्ति का आशय यह है कि संसार में व्याप्त वर्ण और जाति व्यवस्था के कारण समाज के अनेक लोगों को अछूत होने की पीड़ा को सहन करना पड़ती है। समाज के कुछ आभिजात्य वर्ग के लोग इनके स्पर्श से अपने आपको अपवित्र मानते हैं। परंतु प्रभु के लिए सब समान हैं। प्रभु सदैव कर्म को ही प्रधानता देते हैं। उनके हिसाब से कर्म ही सच्ची पूजा है और वे कर्मठ व्यक्तियों के सारे दुख दूर कर देते हैं।
(च) ‘रैदास’ ने अपने स्वामी को किन – किन नामों से पुकारा है?
उत्तर – रैदास ने अपने स्वामी को गरीब निवाजु, लाल, गुसाई, हरि, गोविंद नाम से पुकारते हैं।
(छ) निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए –
मोरा, चंद, बाती, जोति, बरै, राती, छत्रु, धरै, छोति, तुहीं, गुसईआ
उत्तर – मोरा – मोर
चंद – चाँद
बाती – रुई, पुराने कपड़े आदि को ऐंठकर या बटकर बनाई हुई पतली पूनी
जोति – ज्योति
बरै – जलना
राती – रात
छत्रु – छत्र
धरै – धारण
छोति – छुआछूत
तुहीं – तुम ही
गुसईआ – स्वामी

(क) जाकी अंग-अंग बास समानी
उत्तर – इस पंक्ति का भाव यह है कि हमें अपनी संगति का चुनाव बहुत ही सोच-समझ कर करना चाहिए। संगति का असर हमारे व्यक्तित्व और कृतित्व पर पड़ता है। यहाँ पर रैदास ने अपनी संगति प्रभु से की है जिसे उन्होंने चंदन माना है और खुद को पानी। ऐसे तो पानी में कोई भी सुगंध नहीं होता है पर चंदन के संपर्क में आ जाने के बाद पानी भी सुगंधित हो जाता है।
(ख) जैसे चितवत चंद चकोरा
उत्तर – कवि इस पंक्ति के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि हमारे जीवन का एक ही लक्ष्य होना चाहिए। और उस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु हमें हमेशा प्रयत्नशील रहना चाहिए। उन्होंने यहाँ पर एक पक्षी चकोर का उदाहरण दिया है जो चाँद का प्रेमी है। वह चाँद को निहारता रहता है। उसी प्रकार रैदास भी अपने प्रभु के दर्शन निरंतर करते रहना चाहते हैं।
(ग) जाकी जोति बरै दिन राती
उत्तर – यहाँ कवि स्वयं को बाती और प्रभु को दीपक मानते हैं। जिसकी ज्योति दिन-रात जलती रहती है। कवि कहते हैं कि उनके मन में अपने प्रभु के लिए अगाध प्रेम है जो दीपक कि तरह हमेशा प्रज्ज्वलित होती रहती है।
(घ) ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै
उत्तर – कवि यहाँ अपने प्रभु के गुणों का बखान करते हुए कहते हैं कि इस संसार का कोई भी ऐसा काम नहीं जो ईश्वर नहीं कर सकते वो तो समाज में नीच से नीच लोगों को भी राजाओं जैसा सम्मान प्रदान करने में सक्षम हैं।
(ङ) नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै
उत्तर – कवि ईश्वर की असीम कृपा का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि समाज में निम्न श्रेणी के लोग जिन्हें समाज में उचित स्थान नहीं मिल पाता है ईश्वर के दरबार में उनका स्वागत किया जाता है। कबीर, सैन सधना, त्रिलोचन जैसे सामान्य लोगों को ईश्वर की कृपा से अमरत्व का वरदान प्राप्त हुआ।

3. रैदास की इन पंक्तियों का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए —
उत्तर – रैदास के पहले और दूसरे पद का केंद्रीय भाव
पहला पद – रैदास के पहले पद का केंद्रीय भाव यह है कि वे उनके प्रभु के अनन्य भक्त हैं। वे अपने ईश्वर से कुछ इस प्रकार से घुल-मिल गए हैं कि उन्हें अपने प्रभु से अलग करके देखा ही नहीं जा सकता।
दूसरा पद – रैदास के दूसरे पद का केंद्रीय भाव यह है कि उसके प्रभु सर्वगुण संपन्न, दयालु और समदर्शी हैं। वे निडर हैं तथा गरीबों के रखवाले हैं। ईश्वर अछूतों के उद्धारक हैं तथा नीच को भी ऊँचा बनाने की क्षमता रखनेवाले सर्वशक्तिमान हैं।

वाक्यांशों के लिए एक शब्द
1. गरीब निवाजु – दीन-दुखियों पर दया करने वाले

विलोम शब्द
1. स्वामी – दास

अनेकार्थी शब्द
1. जल – पानी, जलना (क्रिया)
2. पानी – इज्ज़त, जल
3. लाल – रत्न, पुत्र, रंग

पर्यायवाची
1. चन्दन – गंधराज, श्रीखंड, सर्पावास
2. मोती – मुक्ता, स्वातिसुत

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