केदारनाथ सिंह – रोटी

केदारनाथ सिंह का जन्म 1934, चकिया (बलिया), उत्तरप्रदेश में हुआ। आरंभिक शिक्षा गाँव में हुई। बाद की शिक्षा हाईस्कूल से लेकर एम.ए. तक बनारस में (1956) हुई। ‘आधुनिक कविता में बिंब – विधान’ (1964) पर पी-एच. डी की उपाधि प्राप्त की। विधिवत् काव्य-लेखन 1952-53 के आसपास शुरू किया। शिक्षा प्राप्त करने के बाद अध्यापक कार्य में संलग्न हो गए।

तीसरा सप्तक (1959) के सात कवियों में से एक रह चुके हैं। इनका प्रथम कविता संग्रह ‘अभी बिलकुल अभी’ 1960 में प्रकाशित हुआ। इस संग्रह की कविताओं ने इस कवि को प्रथम श्रेणी के कवियों में स्थान दिला दिया। मानव और प्रकृति के प्रति गहन अनुराग, जन की पीड़ा का सच्चा अनुभव और काव्य-संवेदना की ईमानदारी केदारनाथ के काव्य की पहचान रही है। आरंभ में नए बिंबों के प्रति आकृष्ट हुए पर बाद में बिंब – मोह धीरे-धीरे कम होता गया। उनके काव्यानुभव में जीवन – यथार्थ गहरे रूप से प्रवेश करता गया और काव्य – शिल्प में धूप-सा खुलापन आ गया। 1980 में प्रकाशित ‘जमीन पक रही है’ शीर्षक काव्य संग्रह में जो कविताएँ हैं, उनमें सामाजिक-राजनीतिक चेतना का स्वर प्रखर है। इसमें कवि ने आम आदमी के दर्द को बड़े उदार भाव से खुलकर कहा है। ‘अकाल में सारस’ (1988) काव्य-संग्रह की कविताओं में बौद्धिक सघनता और विचारों की ऊर्जा का विस्फोट है। उन्होंने नए काव्य- मुहावरों का प्रयोग किया है, अतः केदारनाथ सिंह की कविताएँ सन् 1960 के बाद की कविताएँ अपनी खास पहचान रखती हैं। ‘अकाल में सारस’ काव्य-संग्रह पर इन्हें 1989 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया है। काव्यपाठ के लिए अमरीका, रूस, कज्जकिस्तान, लंदन, पैरिस, इटली आदि देशों की उन्होंने यात्राएँ की हैं।

उनके द्वारा संपादित पुस्तकें हैं – ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन), समकालीन रूसी कविताएँ, कविता दशक। संप्रति (अभी) वे ‘साखी’ पत्रिका के प्रधान संपादक हैं।

रोटी

उसके बारे में कविता करना

हिमाकत की बात होगी

और वह मैं नहीं करूँगा

मैं सिर्फ आपको आमंत्रित करूँगा

कि आप आएँ और मेरे साथ सीधे

उस आग तक चलें

उस चूल्हे तक जहाँ वह पक रही है

एक अद्भुत ताप और गरिमा के साथ

समूची आग को गन्ध में बदलती हुई

दुनिया की सबसे आश्चर्यजनक चीज

वह पक रही है

और पकना

लौटना नहीं है जड़ों की ओर

वह आगे बढ़ रही है

धीरे-धीरे

झपट्टा मारने को तैयार

वह आगे बढ़ रही है

उसकी गरमाहट पहुँच रही है आदमी की नींद

और विचारों तक

मुझे विश्वास है

आप उसका सामना कर रहे हैं

मैंने उसका शिकार किया है

मुझे हर बार ऐसा ही लगता है

जब मैं उसे आग से निकलते हुए देखता हूँ

मेरे हाथ खोजने लगते हैं

अपने तीर और धनुष

मेरे हाथ मुझी को खोजने लगते हैं

जब मैं उसे खाना शुरू करता हूँ

मैंने जब भी उसे तोड़ा है

मुझे हर बार वह पहले से ज्यादा स्वादिष्ट लगी है

पहले से ज्यादा गोल

और खूबसूरत

पहले से ज्यादा सूर्ख और पकी हुई

आप विश्वास करें

मैं कविता नहीं कर रहा

सिर्फ आग की ओर इशारा कर रहा हूँ

वह पक रही है

और आप देखेंगे – यह भूख के बारे में

आग का बयान है

जो दीवारों पर लिखा जा रहा है

आप देखेंगे

दीवारें धीरे-धीरे

स्वाद में बदल रही हैं।

प्रस्तुत कविता में कवि केदारनाथ सिंह रोटी के बारे में कहना चाहते हैं। यह कविता आदमी और रोटी के संबंध की कविता है।

कवि कहते हैं कि रोटी के बारे में अगर वह बात करते हैं तो वह हिमाकत (बेवकूफी) की बात होगी। उसके बारे में विशद विवरण देन को बजाय वह सीधे आपको अपने साथ उस जगह आमंत्रित कर ले जाना चाहते हैं। वह अपने साथ हमें उस चूल्हे तक ले जाना चाहते हैं जहाँ आग जल रही है और उस आग में रोटी पक रही है। यहाँ कवि आग की बात इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि जब सभ्यता का विकास हुआ तब मानव ने सबसे पहले आग का आविष्कार किया। इस कविता में कवि रोटी और आग के संबंध की बात करते हैं।  

रोटी का संबंध मनुष्य के पेट और भूख के साथ है। और उस आग में जब रोटी पकती है तो वह अपने साथ अद्भुत ताप और गरिमा को साथ लिए हुए होती है। जब रोटी पकती है तो वह समूची आग को गंध में बदल देती है। इस कविता में रोटी मुख्य है। कवि ने रोटी के सौंदर्य की परिभाषा देते हुए कहा है वह दुनिया की सबसे आश्चर्यजनक चीज है।

रोटी खाने का प्रतीक है। रोटी का पकना जड़ों की ओर लौटना नहीं है। क्योंकि रोटी का आविष्कार पुराना हो चुका है। अब लोग चेत गए हैं। वे आगे बढ़कर अपना हक माँगने चले हैं। इसलिए मानो लोग झपट्टा मारने को तैयार हैं। क्योंकि रोटी आसानी से नहीं मिलती। रोटी के लिए शिकार यानी मेहनत करनी पड़ती है। तब से लेकर आज तक सभ्यता के विकास में भूख मुख्य है जो रोटी से जुड़ी है। रोटी मनुष्य के विचारों को भी प्रभावित करने लगी है। भूखे लोगों के प्रति उनके अधिकारों के प्रति सजगता बढ़ रही है।

जो लोग यह सोचते हैं कि जब रोटी पक जाती है और आग से निकलती है तो लोग अपने तीर-धनुष खोजने लगते हैं ताकि रोटी सुरक्षित रहे। लोग उसे पाने को हाथ बढ़ाते हैं और कुछ लोग उसे छीनकर ले जाना चाहते हैं। लेकिन आज वह संभव नहीं है। भूखे को भोजन का स्वाद मिल चुका है। इसलिए खाद्य वस्तु आज गोल रोटी की भाँति सुंदर लगती है। वह अच्छी तरह पकती है तो उसका रंग निखरता है। उसे देखकर लोगों की भूख बढ़ती है।

ध्यान देने की बात यह है कि रोटी आग में पकती है अर्थात् मनुष्य की मेहनत से बनती है। रोटी आग से बनती है। रोटी बनना और भूखे के पास पहुँचना दोनों महत्त्वपूर्ण बातें हैं। घर की खूबसूरती रोटी से है। रोटी पकती है तो घर की दीवारें खूबसूरत लगती हैं।

ये बातें सब को मालूम करा दी जाएँ, तभी रोटी का सच्चा स्वाद सबको मिलेगा।  कवि स्पष्ट करना चाहते हैं कि सभ्यता के विकास में भूख मुख्य है। हर बार रोटी ज्यादा स्वादिष्ट लगती है और पहले से भी ज्यादा गोल और खूबसूरत और भूख का बयान आग ही कर सकती है।

(i) किसके बारे में बात करना हिमाकत होगी?

(क) रोटी

(ग) चना

(ख) दाल

(घ) आटा

उत्तर – (क) रोटी

(ii) दुनिया की सबसे आश्चर्यजनक चीज क्या है?

(क) चावल

(ख) मिठाई

(ग) रोटी

(घ) लड्डू

उत्तर – (ग) रोटी

(ii) कौन झपट्टा मारने को तैयार है?

(क) आदमी

(ग) रोटी

(ख) बाघ

(घ) मिठाई

उत्तर – (क) आदमी

(क) लेखक क्यों रोटी पकने की जगह तक लोगों को ले जाना चाहता है?

उत्तर – मानव सभ्यता के विकास में सबसे पहले आग की ही खोज की गई थी और कवि आग और रोटी के संबंध को करीब से बताने के लिए हमें रोटी पकने की जगह तक लोगों को ले जाना चाहते हैं।

(ख) पकना जड़ों की ओर लौटना नहीं है क्यों, उत्तर दीजिए।

उत्तर – रोटी जीवन का प्रतीक है। रोटी का आविष्कार पुराना हो चुका है अर्थात् अब लोग अपने अधिकारों के प्रति चेत गए हैं, सावधान हो गए हैं। अब वे आगे बढ़कर अपना हक माँगने लगे हैं। इसलिए रोटी का पकना जड़ों की ओर लौटना नहीं है।  

(ग) ‘मैंने उसका शिकार किया है।’ – समझाकर लिखिए।

उत्तर – ‘मैंने उसका शिकार किया है।’ के माध्यम से कवि यह कहना चाहते हैं कि रोटी पाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। शिकार करने में जितनी मेहनत और मशक्कत करनी पड़ती है उतना ही बहुत लोगों के जीवन में कड़ी मेहनत और संघर्ष के बाद ही उन्हें रोटी प्राप्त होती है। 

(क) रोटी के बारे में कविता करना हिमाकत की बात क्यों होगी?

उत्तर – कवि का यह दृढ़ विश्वास है कि सत्य का संधान करने के लिए हमें मूल तत्त्वों का अन्वेषण करना चाहिए और यही नीति यहाँ रोटी के संदर्भ में भी सामने आ रही है क्योंकि रोटी के आविष्कार से कहीं पहले आग की खोज हुई थी और रोटी आग आग का घनिष्ठ संबंध है। इसलिए कवि हमें रोटी के बारे में न बताते हुए सीधे उस चूल्हे के पास ले जाने का प्रयास कर रहे हैं जिसकी आग में रोटी तैयार होती है। 

(ख) लेखक को रोटी हर बार गोल और खूबसूरत क्यों लगती है?

उत्तर – मनुष्य की प्राकृतिक आवश्यकता भूख है। भूख लगने पर मनुष्य को भोजन के अलावा और किसी भी चीज़ की इच्छा नहीं होती है। क्षुधा से बड़ी तो ईश्वर के दर्शन भी नहीं होते। ऐसे में जब मनुष्य रोटी खाकर अपनी भूख मिटाता है तो उसे रोटी पहले खाई हुई रोटियों से ज़्यादा गोल और खूबसूरत लगती है। इसका कारण यह होता है कि भूख के समय भोजन से खूबसूरत और कुछ भी नहीं होता। 

(ग) दीवारें स्वाद में बदल रही हैं का क्या अर्थ है?

उत्तर – मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं में घर भी शुमार है। मनुष्य अपने घर की चहारदीवारी से बाहर निकलकर रोटी कमाने के लिए मेहनत करता है और जब उसे अपने घर में सुख-चैन से रोटी नसीब होती है तो घर की दीवारें स्वाद में बदल जाती हैं। अर्थात् घर उन्हें जन्नत लगने लगता है। 

(क) ‘रोटी’ कविता का संदेश क्या है?

उत्तर – आज इस पृथ्वीपृष्ठ पर जितने भी सप्राण जीव हैं उनकी मूलभूत आवश्यकताओं में सबसे पहले रोटी (भूख) को रखा जाता है। मनुष्य अपनी भूख मिटाने के लिए नाना-प्रकार के उद्यमों में संलग्न हैं। अपनी कविता ‘रोटी’ के माध्यम से केदारनाथ सिंह हमें रोटी की खोज, रोटी और आग का संबंध, रोटी की अहमियत और आवश्यकता, रोटी के माध्यम से मनुष्यों की विविध प्रवृत्ति, रोटी कमाने के लिए किया जाने वाला श्रम आदि बिन्दुओं के बारे में बता रहे हैं।  

(ख) रोटी के साथ ताप और गरिमा क्यों जुड़ी है?

उत्तर – रोटी के साथ ताप दो दृष्टियों से जुड़ी हुई हैं पहली तो यह कि रोटी का सीधा संबंध मनुष्य की भूख से है और जब पेट की आग जलती है तो उसे केवल रोटी (भोजन) से ही शांत किया जा सकता है।  दूसरी यह कि रोटी आग में ही पकती है। इस दृष्टि से रोटी और आग का घनिष्ठ संबंध है। रोटी गरिमा से भी जुड़ी हुई है क्योंकि भूखे आदमी का स्वाभिमान यदा-कदा भूख के कारण खंडित होता रहता है। इसके विपरीत जब कोई व्यक्ति अपने आपको इस लायक बना लेता है कि रोटी की समस्या उसे कभी नहीं होती हो तो वह स्वाभिमान के साथ जीवन-यापन करता है।        

(ग) कवि कविता को नहीं, किसको इशारा कर रहा है?

उत्तर – कवि कविता को नहीं, बल्कि समाज के उन वर्गों की ओर  इशारा कर रहा है जो जीवन को सिर्फ साँसें गिनने के लिए जी रहे हैं। उनके जीवन का न ही कोई उद्देश्य है और न ही कोई ध्येय। ऐसे व्यक्ति समाज के लिए उपयोगी नहीं होते बल्कि किसी दूसरे के उन्नति में खुद को नियोजित कर देते हैं। कवि कहना चाहते हैं कि अपने आपको समर्थ-शक्तिवान बनाने के प्रयास अंतिम साँस तक करते रहना चाहिए। ऐसा होने पर हम सम्मान और स्वाभिमान से जीवन यापन कर सकेंगे और असल में जीना यही कहलाता है।  

(घ) कवि केदारनाथ सिंह के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – केदारनाथ सिंह का जन्म 1934, चकिया (बलिया), उत्तरप्रदेश में हुआ। आरंभिक शिक्षा गाँव में हुई। बाद की शिक्षा हाईस्कूल से लेकर एम.ए. तक बनारस में (1956) हुई। ‘आधुनिक कविता में बिंब – विधान’ (1964) पर पी-एच. डी की उपाधि प्राप्त की। विधिवत् काव्य-लेखन 1952-53 के आसपास शुरू किया। शिक्षा प्राप्त करने के बाद अध्यापक कार्य में संलग्न हो गए।

तीसरा सप्तक (1959) के सात कवियों में से एक रह चुके हैं। इनका प्रथम कविता संग्रह ‘अभी बिलकुल अभी’ 1960 में प्रकाशित हुआ। इस संग्रह की कविताओं ने इस कवि को प्रथम श्रेणी के कवियों में स्थान दिला दिया।

उनके द्वारा संपादित पुस्तकें हैं – ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन), समकालीन रूसी कविताएँ, कविता दशक। संप्रति (अभी) वे ‘साखी’ पत्रिका के प्रधान संपादक हैं।

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