मीरा- के पद

मीराबाई (1498 – 1546)

मीराबाई मेवाड़ (राजस्थान) के रत्नसिंह की इकलौती पुत्री तथा प्रख्यात राजा राव दूदाजी की पौत्री थी। उनका विवाह उदयपुर के राणा भोजराज से हुआ था। परंतु भोजराज का देहांत जल्दी हो गया और मीरा विधवा हो गई।

बचपन से ही मीरा कृष्ण की भक्त थीं। वैधव्य के बाद संसार उनको विषमय लगा और वे गिरिधारी के प्रेम में सर्वदा निमग्न रहने लगीं। उनकी भक्ति में अनन्यता और तल्लीनता के कारण वे श्रीकृष्ण को अपना पति मानती थीं। वे संत रैदास की शिष्या बन गई। फिर क्या था? सांसरिक व्यवहार की परवाह न कर मंदिर और सत्संग जाने लगीं। परिवार के लोगों को अच्छा नहीं लगा। उनको बार-बार सताया गया। मीरा ने गोस्वामी तुलसीदास से सलाह माँगी। तुलसी दास ने लिख भेजा “जाको प्रिय न राम वैदेही, तजिये ताहि कोटि वैरी सम जदपि परम सनेही।” मीरा द्वारका चली गईं। वहाँ रणछोड़ (जरासंध से नहीं लड़ने के कारण कृष्ण को रण छोड़कर भागने वाला रणछोड़ कहा गया) द्वारकाधीश के मंदिर में नाच-गाकर प्रेमनिवेदन करती रहीं। अंत में उन्हीं के विग्रह में विलीन हो गईं।

मीरा का जीवन विषादमय रहा। माता, अन्य कुटुंबियों की मौत, जौधपुर, मेड़ता और मेवाड़ राज्यों की लड़ाइयों, बाबर, बहादुर शाह आदि का आक्रमण देख वे संसार को तुच्छ मानने लगीं। कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति बढ़ने लगी। अतएव वे

1- सर्वदा संसार से विराग और कृष्ण के अनुराग की बात करती हैं।

2- वे कृष्ण को अविनाशी ईश्वर कहती हैं। ब्रह्म निर्गुण हों, लेकिन मीरा प्रत्यक्ष रूप से गोपीभाव से कृष्ण को अपना पति मानती हैं।

3- उनकी भक्ति दृढ़ है, एकमात्र गिरिधर के प्रति है, प्रेम-भक्ति सच्ची है, तल्लीनता है। दिखावा या ढोंग नहीं है।

4- सहज स्वाभाविक, सरल भावों को व्यक्त किया।

5- भाषा भी सरल राजस्थानी हिंदी है।

6 – गीतात्मकता है। अतएव मीरा के गीत पूरे देश में अत्यंत लोकप्रिय हुए हैं।

1-

बसो मेरे नैनन में नंदलाल

मोहनी मूरति साँवरी सूरति, नैना बने बिसाल।

अधर सुधारस मुरली राजति, उर बैजंती माल।

छुद्र घंटिका कटि तट सोभित, नूपुर सब्द रसाल।

मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भक्तबच्छल गोपाल।

शब्दार्थ –

बसो – बस्न

नैनन में – आँखों में

नंदलाल – कृष्ण  

मोहनी – मन मोहने वाली

मूरति – मूर्ति

साँवरी – साँवला

सूरति – सूरत

नैना बने बिसाल – बड़ी-बड़ी आँखें  

अधर – होंठ

सुधारस – अमृत

मुरली – वंशी

राजति – विराजमान

उर – हृदय

बैजंती माल – पाँच प्रकार के फूलों से बनी माला  

छुद्र – छोटी

घंटिका – घुँघरू

कटि – कमर

तट – नीचे

सोभित – सुंदर लगना

नूपुर सब्द रसाल – घुँघरू की मीठी ध्वनि

संतन – संतजन

सुखदाई – सुख देने वाला

भक्तबच्छल – भक्तों पर कृपा करने वाले  

भावार्थ –

मीरा नंदराजा के प्रिय पुत्र कृष्ण से प्रार्थना करती हैं कि तुम सदा मेरी आँखों में बस जाओ। हे प्रभो, तुम्हारी मूर्ति अत्यंत मोहक है। साँवला रूप है। तुम्हारी बड़ी-बड़ी और सुंदर आँखें हैं। तुम्हारे इसी रूप को देखने के लिए मेरी आँखें भी बड़ी हो गईं है। तुम्हारे होंठों पर अमृत बरसानेवाली यह मुरली शोभा पा रही है। तुम्हारी छाती पर वैजयंती माला शोभित हो रही है। कमर से बँधी करधनी के छोटे-छोटे घूँघरू अनूठे प्रतीत हो रहे हैं। नूपुर की मधुर ध्वनि मन मोह रही है। ऐसे मनोहारी रूपवाले श्रीकृष्ण संत जनों को सुख देते हैं और भक्तों के प्रति कृपालु और स्नेहशील हैं।

2-

मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई

जा के सिर मोर—मुकुट, मेरो पति सोई

छांड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई?

संतन ढिग बैठि—बैठि, लोक—लाज खोयी

अंसुवन जल सींचि—सींचि, प्रेम—बेलि बोयी

अब त बेलि फैलि गयी, आणंद—फल होयी

दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी

दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी

भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी

दासि मीरां लाल गिरधर! तारो अब मोही

शब्दार्थ –

गिरधर – गिरि को धारण करने वाला, कृष्ण

गोपाल – गायें पालने वाला, कृष्ण

मोर-मुकुट – मोर के पंखों से बना मुकुट

सोई – वही

कुल की कानि – वंश की मर्यादा

कहा – क्या

करिहै – करेगा

संतन – संत

ढिग – पास

लोक-लाज – समाज की मर्यादा

अंसुवन जल – आँसुओं का जल

सींचि – सींचकर

प्रेम-बेलि – प्रेम रूपी बेल

आणंद – आनंद

मथनियाँ – मथानी, मथने वाला उपकरण

विलोयी – मथी

दधि – दही

मथि – मथकर

घृत – घी

काढ़ि लियो – निकाल लिया

डारि दयी – छोड़ दिया

छोयी – छाछ

राजी – प्रसन्न

तारो – उद्धार करो

भावार्थ –

मीरा कहती है कि उसके जीवन में कृष्ण ही उसके सर्वस्व हैं। उसने लोक-लाज छोड़कर और कुल-मर्यादा का बंधन तोड़कर संतों का साथ कर लिया है। अब वह किसी से भी नहीं डरती है। उसने अपने आँसुओं से सींच-सींचकर प्रेम की बेल को बढ़ा लिया है। उसे कृष्ण का प्रेम ही माखन जैसा मूल्यवान प्रतीत होता है और शेष सांसारिकता छाछ जैसी व्यर्थ प्रतीत होती है। वह भक्तों को देखकर प्रसन्न होती है और जगत को देखकर रोती है। मीरा कृष्ण से यह अनुनय-विनय करती हैं कि अब मेरा भी उद्धार करो। 

3-

माई री, मोहि लिया गोबिन्द मोल।

तूं कहा छाणे, मैं कहा चौडे, लियो बजंता ढोल।

कोई कहै मुंहघो कोई कहै सुहघो, लियो री तराजू तोल।

कोई कहै कारो कोई कहै गोरौ लियो री अमोलिक मोल।

याहो कूँ सब लोग जानत हैं, लियो री आँख खोल।

मीरा कूँ प्रभु दरसन दीज्यौ पूरब जनम की कोल।

शब्दार्थ –

माई री – अरी माँ

मोहि – मुझे

गोबिन्द – कृष्ण

मोल – खरीदना  

तूं – तुम

छाणे – छुपकर

चौडे – खुले में

लियो – लेना

बजंता ढोल – ढोल बजाकर  

कोई कहै – कोई कहता है

मुंहघो – महँगा

सुहघो – सस्ता

तराजू तोल – तराजू में तोलना  

कारो – काला

गोरौ – गोरा

अमोलिक – अमूल्य

याहो कूँ सब – यहाँ के सब कोई

जानत – जानते

कूँ – को

दरसन – दर्शन

दीज्यौ – दीजिए

पूरब जनम – पूर्व जन्म

कोल – वादा

भावार्थ –

मीरा कहती हैं- अरी माँ, मैंने गोविंदजी ने खरीद लिया है, अर्थात् अपने वशीभूत कर लिया है। तू कहती है कि मैंने यह सब छिपकर किया, लेकिन मैं कहती हूँ, नहीं सबके सामने ढोल-नगाड़े बजाकर मैंने उन्हें  मोल लिया है। कोई कहता है महँगे में लिया, कोई कहता है कि सस्ते में लिया है। कोई कहता है तराजू में तोल कर, अच्छी तरह परख कर मोल लिया है। कोई कहता है वे साँवले हैं, कोई कहता है, वे गोरे हैं, जो भी हैं देख सुन कर भक्तिरूपी अमूल्य मूल्य देकर खरीद लिया। सभी जानते हैं कि मैंने अपनी आखें खोलकर उन्हें देख लिया है। मेरे प्रभु ने अब मुझे दर्शन दिया है  क्योंकि इन्होंने पूर्व जन्म में प्रतिज्ञा की थी। अनन्य भक्ति भाव तो पूर्व जन्म के पुण्य से मिलते हैं। गोपियों से कृष्ण ने मिलने का वादा किया था। मीरा कहती है कि वह पूर्व जन्म में गोपी थी और उसी पुण्य से इस जन्म में प्रभु के दर्शन पा गई है।

4-

पग घूँघरू बाँध मीराँ नाची रे।

मैं तो अपने नारायण की आपही हो गयी दासी रे।

लोग कहैं मीरा भई बावरी, न्यात कहै कुलनासी रे।

विष का प्याला राणाजीने भेज्या, पीवत मीरा हाँसीरे।

मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, सहज मिले अबिनासी रे।

शब्दार्थ –

पग – पैर

नारायण – ईश्वर, कृष्ण

आपहि – खुद ही

साची – सच्ची

भइ – हो गई

बावरी – बावली, पागल

न्यात – कुटुंब के लोग, रिश्तेदार

कुल-नासी – कुल का नाश करने वाली

विस – विष, जहर

पीवत – पीते हुए

हाँसी – हँसी

नागर – श्रेष्ठ, चतुर

सहज – आसान, स्वाभाविक

अविनासी – जिसका विनाश न हो, अमर।

भावार्थ –

इस पद में मीरा कृष्ण के प्रति अपने अनुराग को प्रकट करती हैं। वे अपने नारायण के प्रति पूरी तरह समर्पित हो चुकी हैं। लोग उसे ‘दीवानी’ कहते हैं, उनके संबंधी उसे ‘कुलनाशिनी’ कहते हैं। राणा जी ने उसे मारने के लिए विष का प्याला भेजा है जिसे मीरा ने हँसते-हँसते पी लिया है। मीरा का कहना है कि ईश्वर अपने भक्तों की रक्षा सदैव करते हैं और भक्ति से सहज ही प्राप्त हो जाते हैं।

1. मीराबाई नंदलाल से क्या अनुरोध करती हैं?

उत्तर – मीरा नंदराजा के प्रिय पुत्र नंदलाल से प्रार्थना करती हैं कि हे प्रभो, तुम्हारा रूप अत्यंत मोहक है। तुम सदा सदा के लिए मेरी आँखों में बस जाओ।

2. मीरा अपने नैनों को विशाल कैसे बनाती हैं?

उत्तर – कृष्ण की छवि अत्यंत मनोहारी है। साँवला रूप है। बड़ी-बड़ी और सुंदर आँखें हैं। होंठों पर अमृत बरसानेवाली यह मुरली शोभा पा रही है। छाती पर वैजयंती माला शोभित हो रही है। कमर से बँधी करधनी के छोटे-छोटे घूँघरू अनूठे प्रतीत हो रहे हैं। नूपुर की मधुर ध्वनि मन मोह रही है। इस रूप को सदा-सदा के लिए अपने हृदय में बसाने के लिए मीरा अपने नैनों को विशाल कर लेती हैं।

3. ‘अधर सुधारस मुरली राजति’ का भाव स्पष्ट कीजिए?

उत्तर – ‘अधर सुधारस मुरली राजति’ का भाव यह है कि श्रीकृष्ण के होंठों पर सुधा रस की वर्षा करने वाली मुरली शोभा पा रही है। 

4. मीरा अपना पति किसे मानती हैं?

उत्तर – मीरा अपना पति श्रीकृष्ण को मानती हैं क्योंकि इस संपूर्ण जगत में कृष्ण के अलावा उनका और कोई भी नहीं है।

5. मीरा ‘कुल कानि’ क्यों छोड़ देना चाहती हैं?

उत्तर – मीरा ‘कुल कानि’ अर्थात् कुल की मर्यादा को छोड़ देना चाहती है क्योंकि कुल की परंपरा के अनुसार विधवा स्त्रियों को अनेक बन्दिशों में रहना पड़ता था। इस कारण से वह श्रीकृष्ण की भक्ति में संपूर्ण भाव से लीन नहीं हो पा रही थी।  

6. ‘लोकलाज खोई’ का क्या मतलब है?

उत्तर – ‘लोकलाज खोई’ का मतलब है कि मीरा ने कृष्ण की भक्ति के लिए साधुओं और संतों के साथ शिक्षा लेने के उद्देश्य से उठना-बैठना शुरू कर दिया था। उस समय स्त्रियों को पर्दे में रहना पड़ता था, इसलिए कहा गया है कि मीरा ने लोकलाज सबका त्याग कर दिया है।  

7. ‘प्रेम की बेलि’ को कैसे बढ़ाया गया?

उत्तर – ‘प्रेम की बेलि’ को मीरा ने अपने आँसुओं से सींचकर बढ़ाया है।

8. ‘भगत देख राजी हुई, जगत देख रोई’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए?

उत्तर – ‘भगत देख राजी हुई, जगत देख रोई’ का अर्थ है कि मीरा जब भी किसी ऐसे व्यक्ति को देखती हैं जो उनकी तरह ही श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहता है तो वह बहुत प्रसन्न होती हैं परंतु जब वह किसी ऐसे व्यक्ति को देखती हैं जो कृष्ण की भक्ति से विमुख होकर सांसरिक मोह-माया में उलझा हुआ है तो उन्हें बहुत दुख होता है।

9. मीरा ने गोविंद को मोल लिया, कैसे?

उत्तर – मीरा ने गोविंद को ढोल-नगाड़े की आवाज़ में सबके सामने बिना किसी से छिपाए भक्ति रूपी कीमत अदा करके मोल लिया है।

10. ‘तराजू तोल’ कैसे किया?

उत्तर – मीरा कहती हैं कि उन्होंने कृष्ण गुणों-अवगुणों को अच्छे-से तराजू में तोल कर खरीदा है। इसे ही ‘तराजू तोल’ कहा गया है। 

11. विष का प्याला राणाजी ने किसके लिए और क्यों भेजा?

उत्तर – मीरा की कृष्ण भक्ति के कारण उसके परिवारवाले परेशान रहते थे। उन्हें अपनी कुल की मर्यादा खतरे में मालूम पड़ती थी। अत:, राणाजी ने मीरा को मारने के लिए जहर का प्याला भेजा और मीरा ने भी उस जहर के प्याले हँसते-हँसते पी लिया परंतु कृष्ण भक्ति के कारण जहर भी मीरा का कुछ न बिगाड़ पाया।

12. मीरा को गिरिधर नागर सहज ही मिल गए, यह कैसे?

उत्तर – मीरा को गिरिधर नागर अर्थात् श्रीकृष्ण सहज ही मिल गए हैं क्योंकि मीरा ने प्रभु को अविनाशी माना है। मीरा के अनुसार ऐसे अविनाशी प्रभु को पाने के लिए सच्चे मन से सहज भक्ति करनी पड़ती है। ऐसी सहज भक्ति से प्रभु प्रसन्न होकर भक्त को मिल ही जाते हैं।

13. मीरा ने पग में घूँघरू बाँध कर क्यों नाचा?

उत्तर – मीरा ने पग में घूँघरू बाँध कर अपने आराध्य श्रीकृष्ण को रिझाने के लिए नाचा है। मीरा का ध्येय जगत न होकर मीरा के जगत जगन्नाथ को प्रसन्न करना था।

1. मीरा बाई नंदलाल को नयनों में बिठाना क्यों चाहती हैं?

उत्तर – मीरा बाई नंदलाल को नयनों में बिठाना चाहती हैं क्योंकि श्रीकृष्ण का रूप अतीव ही मनमोहक और नयनाभिराम है। इस मायामय संसार में श्रीकृष्ण के अतिरिक्त और कुछ भी उनके हृदय को शांति नहीं दे सकता। 

2. मीरा की एकमात्र गति गिरिधर गोपाल हैं-प्रमाणित कीजिए?

उत्तर – मीरा की एकमात्र गति गिरिधर गोपाल हैं- मीरा ने स्वयं ऐसा कहा है क्योंकि अब न तो उनके पति ही इस दुनिया में हैं और न ही पिता। उनके परिवार वाले तो उन्हें कुलनाशिनी कहकर उसका तिरस्कार कर चुके हैं और राणाजी ने तो उन्हें मारने के लिए विष का प्याला तक भिजवा दिया था। ऐसे में इस जगत में जगन्नाथ के अतिरिक्त उनका और कोई नहीं है। 

3. कान्हा ‘अमोलिक मोल’ हैं, समझाइए?

उत्तर – कान्हा ‘अमोलिक मोल’ हैं, इसका यह अर्थ हुआ कि कान्हा को खरीदने के लिए अमूल्य कीमत चाहिए और वह अमूल्य कीमत और कुछ नहीं बल्कि श्रीकृष्ण के प्रति संपूर्ण समर्पण भाव से की गई भक्ति भावना ही है।

1. लोग मीरा को ‘कुलनासी’ कहते थे क्योंकि –

(क) उनकी कोई संतान न थी।  

(ख) वे राजकुल छोड़ मंदिर में नाचती गाती थीं।  

(ग) कुल को जला दिया था

(घ) वे विधवा थीं

उत्तर – (ख) वे राजकुल छोड़ मंदिर में नाचती गाती थीं।  

2. ‘नैना बने बिसाल’ का क्या मतलब है

(क) बड़ी बड़ी आँखें होना

(ख) आँखों में रोग होना

(ग) आँखों का सही उपयोग होना

(घ) मोहनी सूरत देखना

उत्तर – (क) बड़ी बड़ी आँखें होना

You cannot copy content of this page