नागार्जुन – बहुत दिनों के बाद

नागार्जुन

आधुनिक हिंदी साहित्य में नागार्जुन प्रगतिशील रचनाकार हैं, उनका मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र है। ये प्रगतिवादी विचारधारा के प्रमुख लेखक और कवि हैं। खरापन और अकृत्रिम स्वभाव उनके काव्य की विशेषता है, दलित वर्ग के प्रति उन्होंने संवेदना जताने के साथ-साथ शोषित समाज की दुरवस्था को दिखाया है।

उनका जन्म जून 1911 में दरभंगा, बिहार में हुआ। उनके पिता का नाम श्री गोकुल मिश्र था और वे तैरानी गाँव में रहते थे। नागार्जुन संस्कृत भाषा जानते थे; साथ ही पालि, मैथिली और हिंदी के भी विद्वान थे। वे घुमक्कड़ स्वभाव के थे। किसानों के संघर्ष का उन्होंने नेतृत्व किया, फलस्वरूप जेल में दस महीने की सजा काटी। 1948 ई. में गाँधी-वाद पर लिखी गई कविता जब्त कर ली गई और फिर से जेल भेज दिए गए।

उनकी कव्य सृष्टि का आधार है- जनपदीय संस्कृति और लोकजीवन। उनका प्रारंभिक काव्य संकलन ‘युगधारा’ है। लोग चेतना और यथार्थ अनुभव से वे अनुप्राणित थे। उनकी कविता में हास्य-व्यंग्य मौजूद हैं। उनकी काव्य-कृति ‘सतरंगे पंखोंवाली’ प्रगतिशील कविता का एक बेहतरीन नमूना है।

अपनी भाषा में उन्होंने संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग किया है। सहजता उनके काव्य की विशेषता है। जटिल भाव को वह सहज रूप से अभिव्यक्त करते हैं। किसान जीवन की पीड़ा उनकी कविता की मुख्य विषयवस्तु है। नागार्जुन को बिहार सरकार, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान और साहित्य अकादेमी दिल्ली द्वारा फेलोशिप सम्मान से सम्मानित किया गया।

नागार्जुन के प्रसिद्ध कविता संग्रह :

युगधारा, सतरंगे पंखोवाली, प्यासी पथराई आँखें, तालाब की मछलियाँ, हजार-हजार बाँहोंवाली आदि हैं।

‘बहुत दिनों के बाद’ शीर्षक कविता ‘सतरंगे पंखोंवाली’ (1959) काव्य-संग्रह में संगृहीत है। कवि बहुत दिनों के बाद अपने गाँव लौटा है। वह लंबे समय तक गाँव से बाहर रहा है। गाँव लौटने पर उसे अपनी पुरानी अनुभूतियों को एक बार फिर महसूस करने का मौका मिला है। वह परितोष का अनुभव कर उल्लसित हो उठता है। अपने उल्लास को कवि ने शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध के पाँच बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है।

बहुत दिनों के बाद

अब की मैंने जी भर देखी

पकी-सुनहली फसलों की मुसकान

– बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद

अब की मैं जी-भर सुन पाया

धान कूटती किशोरियों की कोकिल कंठी तान

– बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद

अब की मैंने जी-भर सूँघे

मौलसिरी के ढेर – ढेर से ताजे – टटके फूल

– बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद

अब की मैं जी – भर छू पाया

अपनी गँवई पगडंडी की चंदनवर्णी धूल

– बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद

अब की मैंने जी-भर तालमखाना खाया

गन्ने चूसे जी-भर

– बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद

अब की मैंने जी-भर भोगे

गंध-रूप-रस-स्पर्श सब साथ-साथ इस भू पर

– बहुत दिनों के बाद

नागार्जुन ‘बहुत दिनों के बाद’ शीर्षक कविता में अपने गाँव से लगाव को कई तरह से प्रकट करते हैं। जीवन की परिस्थितियों के कारण घर से दूर चले जाने की मजबूरी कई लोगों के सामने आती है। बाहर जाकर हम कई तरह की सफलताएँ भी प्राप्त करते हैं। कई बार हमारी जिन्दगी में समृद्धि भी आती है, मगर अपनी जगह का आकर्षण हमारे भीतर बना हुआ रहता है।

नागार्जुन इन्हीं परिस्थितियों के बीच अपने गाँव को लौटे हैं और वे कह रहे हैं कि बहुत दिनों के बाद मैंने सुनहले रंग की पकी फसलों को मुस्कुराते हुए जी-भर के देखा है। यह कवि का लगाव है कि उसे फसलें मुस्कुराती हुई जान पड़ती हैं !

इसी तरह की बात कवि आगे भी कहता है कि बहुत दिनों के बाद मैंने धान कूटती हुई लड़कियों के कोकिल–कंठ से गीत सुने हैं। उन गीतों को मैं जी भर सुनता रहा। बहुत दिनों के बाद मैंने मौलसिरी के ताजे-ताजे फूलों की जी -भर सूँघा है। बहुत दिनों के बाद मैंने अपने गाँव के कच्चे रास्तों की धूल को जी भर कर छुआ है। मुझे यह धूल चंदन के रंग की मालूम पड़ती है। बहुत दिनों के बाद मैंने ताल में पैदा हुए मखाने को जी भर कर खाया है, जी भर कर गन्ने चूसे हैं।

अब की बार बहुत दिनों के बाद मैंने अपने गाँव की धरती पर आकर जाना है कि गंध, रूप, रस, शब्द और स्पर्श को जी भर कर भोगने का असली मतलब क्या होता है? मैंने ‘मौलसिरी’ से गंध को, ‘पकी – सुनहली फसलों’ से रूप को, ‘तालमखाना और गन्ने’ से रस को, ‘किशोरियों की कोकिल-कंठी तान’ से शब्द को और ‘चंदनवर्णी धूल से स्पर्श को महसूस किया है। इन्द्रियों की सार्थकता मानो यहीं लौटकर महसूस हुई है।

कोकिल-कंठी, तान—- कोयल की सुरीली आवाज,

टटके फूल – ताजे फूल,

गँवई पगडंडी – गाँव के कच्चे रास्ते,

चंदनवर्णी धूल – चंदन के रंग की धूल,

तालमखान – तालाब में पैदा हुआ मखाना,

गन्ध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श – पाँच इन्द्रियों से जुड़े गुण नाक से गंध, आँख से रूप, जीभ से रस, कान से शब्द और त्वचा से स्पर्श का सम्बन्ध

है।

विशेष

प्रवासी के जीवन से निकल चुकी आत्मीयता को यह कविता चित्रित करती है।

अपना परिवेश हमारे प्रत्येक पक्ष से स्वाभाविक रूप से जुड़ जाता है।

इस कविता की छंद-योजना में चौपाई के एक चरण (16 मात्रा) तथा दोहा के सम चरण (11 मात्रा) का उपयोग ज्यादा हुआ है। दोनों को जोड़कर 27 मात्राओं की पंक्तियाँ भी रखी गई हैं, जिसे सरसी छंद कहते हैं।

नागार्जुन की यह कविता सुगठित है। अनुभूतियों के पाँच रूपों और स्रोतों के परम्परागत आधार पर रची गई यह कविता कुल छह चरणों में है। पाँच में पाँचों इन्द्रियाँ इस क्रम से सक्रिय हैं- आँख, कान, नाक, त्वचा और जीभ। छठे चरण में उपसंहार है।

1. सही विकल्प चुनकर उत्तर दीजिए।

(i) नागार्जुन का वास्तव नाम क्या है?

(क) वैद्यनाथ मिश्र

(ख) कलराज मिश्र

(ग) राधामाधव मिश्र

(घ) कृष्ण मिश्र

उत्तर – (क) वैद्यनाथ मिश्र

(ii) ‘बहुत दिनों के बाद’ कविता किस कवि द्वारा लिखी गई है?

(क) धूमिल

(ख) नागार्जुन

(ग) शमशेर बहादुर सिंह

(घ) केदारनाथ सिंह

उत्तर – (ख) नागार्जुन

(iii) नागार्जुन किस धारा के कवि हैं?

(क) छायावाद

(ख) हालावाद

(ग) प्रगतिवाद

(घ) प्रयोगवाद

उत्तर – (ग) प्रगतिवाद

(iv) ‘बहुत दिनों के बाद’ कविता किस काव्य-संग्रह से ली गई है?

(क) युगधारा

(ख) प्रेमधारा

(ग) पल्लव

(घ) वीणा

उत्तर – (क) युगधारा

(v) कवि नागार्जुन बहुत दिनों के बाद कहाँ पहुँचते हैं?

(क) शहर

(ख) गाँव

(ग) नगर

(घ) बस्ती

उत्तर – (ख) गाँव

(vi) बहुत दिनों के बाद कवि ने क्या खाया?

(क) चूड़ा

(ख) मूढ़ी

(ग) तालमखाना

(घ) अचार

उत्तर – (ग) तालमखाना

(vii) बहुत दिनों के बाद कवि ने क्या चूसे?

(क) आइसक्रीम

(ख) आम

(ग) चुस्की

(घ) गन्ने

उत्तर – (घ) गन्ने

(viii) किशोरियाँ कोकिल कंठी तान में गाते हुए क्या कूट रही थीं?

(क) मिर्च

(ख) धान

(ग) गरम मसाला

(घ) धनिया

उत्तर – (ख) धान

(ix) कवि नागार्जुन ने किस ताजे टटके फूल को जी भर सूँघे?

(क) गुलाब

(ख) चमेली

(ग) मौलसिरी

(घ) चंपा

उत्तर – (ग) मौलसिरी

(x) किसकी मुस्कान को कवि नागार्जुन गाँव पहुँचकर देखते हैं?

(क) पकी सुनहली फसल की

(ख) फूलों की

(ग) परिवेश की

(घ) घर की

उत्तर – (क) पकी सुनहली फसल की

(क) नागार्जुन की किन्हीं दो साहित्यिक विशेषताओं के बारे में लिखिए।

उत्तर – अपनी काव्य की भाषा में उन्होंने संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग किया है। सहजता उनके काव्य की विशेषता है। जटिल भाव को वह सहज रूप से अभिव्यक्त करते हैं। किसान जीवन की पीड़ा उनकी कविता की मुख्य विषयवस्तु है।

(ख) हिंदी के अलावा नागार्जुन को और कौन-कौन सी भाषा का ज्ञान था?

उत्तर – हिंदी के अलावा नागार्जुन को संस्कृत, मैथिली और पालि भाषाओं का ज्ञान था।

(क) नागार्जुन का कवि परिचय दीजिए।

उत्तर – आधुनिक हिंदी साहित्य में नागार्जुन प्रगतिशील रचनाकार हैं, उनका मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र है। ये प्रगतिवादी विचारधारा के प्रमुख लेखक और कवि हैं। खरापन और अकृत्रिम स्वभाव उनके काव्य की विशेषता है, दलित वर्ग के प्रति उन्होंने संवेदना जताने के साथ-साथ शोषित समाज की दुरवस्था को दिखाया है। सन् 1935 में उन्होंने दीपक (मासिक) तथा 1942-43 में विश्वबंधु (साप्ताहिक) पत्रिका का संपादन किया। अपनी मातृभाषा मैथिली में वे ‘यात्री’ नाम से रचना करते थे।

(ख) बहुत दिनों के बाद गाँव जाकर कवि क्या खाते और चूसते हैं?

उत्तर – बहुत दिनों के बाद गाँव जाकर कवि तालमखाना खाते हैं और जी भरकर गन्ने चूसते हैं।

(ग) गाँव में धान कूटती किशोरियों का कवि ने किस प्रकार वर्णन किया है?

उत्तर – गाँव में धान कूटती किशोरियों का वर्णन करते हुए कवि ने कहा है कि बहुत दिनों के बाद मैंने धान कूटती हुई लड़कियों के कोकिल–कंठ से गीत सुने हैं। उन गीतों को मैं जी भर सुनता रहा। उनके गीतों में इतनी मधुरता थी कि मेरी श्रवणीय इंद्रियाँ पुलकित हो उठीं।

(घ) कवि ने गाँव में जी भर क्या सूँघे?

उत्तर – बहुत दिनों के बाद कवि ने मौलसिरी के ताजे-ताजे फूलों की जी -भर सूँघा है।

(क) हिंदी कविता को नागार्जुन का क्या योगदान है, लिखिए।

उत्तर – नागार्जुन एक ऐसे साहित्यकार हैं जो अभावों में ही जनमें हैं, पीड़ित वर्गों के कष्टों को उन्होंने स्वयं झेला है। नि:संदेह ऐसा ही व्यक्ति भारत की निम्नवर्गीय जनता का सच्चा सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व कर सकता है। देश की स्वतंत्रता तथा खुशहाली के लिए उच्च स्वर से आवाहन उनके काव्य में मिलता है। इनकी रचनाओं में दलितों, पीड़ितों, उपेक्षितों, तिरस्कृतों के प्रति अपनी हृदयस्थ सच्ची सहानुभूति व आत्मीयता के दर्शन होते हैं। इसीलिए इन्हें सामाजिक चेतना का गायक भी कहा जाता है। इन्होंने आजीवन परंपरागत रीति-रिवाजों का पुरजोर विरोध किया, शोषितों के प्रति सहानुभूति व शोषकों के प्रति आक्रोश भाव, यथार्थ के प्रति आग्रह, नारियों के प्रति उत्तम दृष्टिकोण आदि इनकी रचनाओं में देखने को मिलते हैं। 

(ख) नागार्जुन की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।  

उत्तर – नागार्जुन एक जनवादी कवि हैं। मार्क्सवादी विचारधारा से आप्लावित जनकवि श्री नागार्जुन ने खड़ी बोली के साथ अनेक भाषाओं के शब्दों का प्रयोग किया है। इनकी रचनाओं में मुहावरे का भी अच्छा प्रयोग मिलता है। काव्य के विविध पक्ष, जैसे – लाक्षणिकता, अलंकार, छंद योजना, प्रतीक योजना, बिंब योजना, शैली विधान में परंपरागत और नए प्रयोग करके अपनी रचनाओं को उत्कृष्ट बनाया है।    

(ग) ‘बहुत दिनों के बाद’ कविता में किस तरह शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध के पाँच बिंब साकार हुए हैं, आलोचना कीजिए।

उत्तर – ‘बहुत दिनों के बाद’ कविता में कवि नागार्जुन बहुत दिनों के बाद जब अपने गाँव जाते हैं तो पाँचों इंद्रियों का सुख अनुभव करते हैं, जैसे- कोकिल-कंठी-तान, कोयल की सुरीली आवाज सुनकर शब्द (ध्वनि) आनंद प्राप्त करते हैं, टटके फूल – ताजे फूल सूँघकर गंध का आनंद लेते हैं, गँवई पगडंडी गाँव के कच्चे रास्ते को देखकर रूप का आनंद लेते हैं, चंदनवर्णी धूल-चंदन के रंग की धूल का स्पर्श करके स्पर्श का आनंद लेते हैं, तालमखाना अर्थात् तालाब में पैदा हुआ मखाना खाकर रस का आनंद लेते हैं, इस तरह गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श पाँच इंद्रियों से जुड़े गुण नाक से गंध, आँख से रूप, जीभ से रस, कान से शब्द और त्वचा से स्पर्श का संबंध है।

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