कवि परिचय : मंगलेश डबराल
मंगलेश डबराल का जन्म 16 मई सन 1948 में टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड के कापफलपानी गाँव में हुआ। इनकी शिक्षा दीक्षा हुई देहरादून में हुई। दिल्ली आकर हिंदी ‘पेट्रियट’, ‘प्रतिपक्ष’ और ‘आसपास’ में काम करने के बाद भोपाल में भारत भवन से प्रकाशित होनेवाले ‘पूर्वग्रह’ में सहायक संपादक हुए। इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित ‘अमृत प्रभात’ में भी कुछ दिन नौकरी की। सन 1983 में ‘जनसत्ता’ अखबार में साहित्य-संपादक का पद संभाला।
उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं- ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’ और ‘आवाज भी एक जगह है’।
कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार के माध्यम और संस्कृति के सवालों पर नियमित लेखन भी करते हैं। मंगलेश की कविताओं में सामंती एवं पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का प्रतिकार है। वे यह प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं, बल्कि प्रतिपक्ष में एक सुंदर सपना रचकर करते हैं। उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी है।
मंगलेश का आग्रह है कि जो मनुष्य भूख से तड़पता है, उसे अपना आक्रोश व्यक्त करना चाहिए। वे तानाशाह और साम्राज्यवाद को बेनकाब करते हैं।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि मंगलेश डबराल आम आदमी की पीड़ा, टूटे सपनों, जीने की विवशताओं के यथार्थवादी कलाकार हैं। उनकी कविता में हुंकार है, जिसे अनसुना करना असंभव है।
वे साहित्य अकादमी पुरस्कार, पहल सम्मान से सम्मानित हुए।
ताकत की दुनिया
ताकत की दुनिया
ताकत की दुनिया में जाकर में क्या करूँगा
मैं सैकड़ों हजारों जूते चप्पल लेकर क्या करूँगा
मेरे लिए एक जोड़ी जूते ही ठीक से रखना कठिन है
हजारों लाखों कपड़ों मोजों दस्तानों का मैं क्या करूँगा
उन्हें पहनने का हिसाब रखना असंभव ही होगा
मैं इतने सारे कमरों का क्या करूँगा
यह दुनिया घर है कोई होटल नहीं
और मेरी नींद का आकार हद से हद एक चिड़िया के बराबर है
मैं सिक्कों पर अपना नाम और चेहरा क्यों खुदवाऊँगा
मैं जानता हूँ बाजार से बाहर उनका कोई मोल नहीं है
में क्यों बनवाऊँगा कोई मंदिर मस्जिद गिरजा या ऐसा ही कुछ
मुझे पता है वहाँ कोई ईश्वर नहीं रहता
मैं क्यों जमा करूँगा इतने टोप तमगे छाते इतने घोड़े कुत्ते
हीरे मोती इतना हरबा हथियार ऐसे-ऐसे जहाज
मैं क्यों रहने जाऊँगा चाँद पर
वह मुझे धरती से ही दिखाई देता है बहुत सुंदर
तीन डग में ही मैं क्यों नाप लूँगा तीन लोक
सब कुछ छीनकर किसी को क्यों भेजूँगा पाताल
मैं क्यों कब्जा करूँगा इस धरती पर
किसी को ज़रूरत हुई तो दे दूँगा उसे जो भी होंगे मेरे खेत खलिहान
मैं कोई दरिंदा नहीं जो किसी धरती पर बम गिराने चला जाऊँगा
में मनुष्य हूँ
तेल पीते और खून चूसते हुए क्यों बिता दूँगा अपना जीवन
(2007 : मुझे दिखा एक मनुष्य)
शब्दार्थ-
दस्ताना – हाथ में पहनने का बुना हुआ या चमड़े का गिलाफ,
मोल – कीमत
गिरजा – Church
डग – कदम
खलिहान – Barn
दरिंदा – हिंस्र,
हरबा हथियार – अस्त्र-शस्त्र,
टोप – टोपी,
तमगे – पीतल आदि के बने सरकारी निशान जिसे छाती के बायीं तरफ वस्त्र पर लगाया जाता है। (Medal)
छाते – छाता, छतरी
इस कविता के बारे में-
‘ताकत की दुनिया’ कविता में कवि ताकत की दुनिया को नकारता है। यह ऐसी दुनिया है जहाँ बेवजह पैसे खर्च किए जाते हैं। कवि को फिजुलखर्ची पसंद नहीं। अतः कवि को ताकत की दुनिया निरर्थक लगती है। वह कहता है ताकत की दुनिया में लोग अर्थ के बल पर सैकड़ों, हजारों जूते चप्पल रखते हैं। पर मुझे इतने सारे जूते चप्पलों की ज़रूरत नहीं। उसके लिए एक जोड़ी जूते को अच्छी तरह रख पाना मुश्किल है, क्योंकि जूते को पॉलिश लगाकर उसकी हिफाजत की जाती है। उसी तरह कवि हजारों, लाखों मोजों और दस्तानों से भी इंकार करता है। इन्हें पहनने का हिसाब रखने में कवि असमर्थ है। क्योंकि उसे याद नहीं रहेगा अनगिनत मोजों और दास्तानों में से उसने कितने पहने और कितने नहीं पहने। इनके खोने का डर भी बना रहता है।
फिर कवि रहने की समस्या को लेकर बात करता है। कवि कहता है उसे बहुत सारे कमरों की कोई ज़रूरत नहीं। होटल में बहुत सारे कमरे होते हैं, जहाँ लोग किराया देकर ठहरते हैं। इस दुनिया में हमें रहने के लिए बस एक ही कमरा चाहिए। ज्यादा कमरों की लालच इंसान को नहीं करनी चाहिए। कवि नींद को बहुत छोटी यानी हल्की बताता है। अगर उसकी नींद का आकार एक चिड़िया के बराबर है तो फिर इसी दुनिया में उसके लिए एक घर यानी एक कमरा काफी है। अतः एक छोटे से घर में ही इंसान को संतुष्ट हो जाना चाहिए। बहुत ज्यादा कमरों की उसे ज़रूरत नहीं है।
कवि को अपने नाम या चेहरे को स्थायी करने की भी कोई चाह नहीं है। वह सिक्कों पर अपना नाम और चेहरा खुदवाने का पक्षपाती नहीं है। सिक्का बाजार में चीज़ खरीदने के काम आता है। पर एक बार सिक्का बाजार से बाहर निकल जाता है तो वह मूल्यहीन वस्तु के बराबर हो जाता है। अतः इसी अस्थायित्व की वजह से कवि का यह भी मानना है कि धार्मिक पीठों पर ईश्वर नहीं रहता इसलिए वह मंदिर, मस्जिद, गिरजा या और किसी भी प्रकार के उपासना स्थल के निर्माण से इंकार करता है। साथ ही साथ कवि संचय की प्रवृत्ति को भी इंकार करता है। वह कहता है इतने टोप, तमगे, छाते, घोड़े, कुत्ते, हीरे, मोती और हरबा, हथियार जमा करने की उसे कोई ज़रूरत नहीं। बड़े-बड़े जहाज का मालिक बनने से वह इंकार करता है। यह संसार अस्थायी है। मनुष्य की जिंदगी चार दिन की है। अतः इंसान के लिए बेहतर है कि वह संचय की प्रवृत्ति को त्याग दे। इंसान को जो ताकत पाने की लालसा है, यह कविता उसके खिलाफ आवाज बुलंद करती है।
आजकल लोग चाँद पर जमीन खरीदने की इच्छा रखते हैं। कवि चाँद पर रहने को इच्छुक नहीं है। वह कहता है इस धरती से जब वह चाँद की तरफ देखता है तो चाँद उसे बहुत ज्यादा सुंदर दिखाई देता है। इस धरती से ही चाँद को अवलोकन करना चाहिए। इंसान के पाँव धरती पर रहें तो अच्छा है, ताकि वह अपनी औकात न भूले। अत: चाँद पर जाकर रहने से कवि इंकार करता है।
पुनः कवि तानाशाह के खिलाफ आवाज उठाता है। राजा बली एक सुशासक थे और न्यायप्रिय थे। पर उनकी न्यायप्रियता से देवता भयभीत हो गए और राजा बली को देवताओं के षड्यंत्र का शिकार होना पड़ा। राजा बली महादानी थे। अतः विष्णु ने वामन अवतार का रूप धारण करके तीन पग जमीन उनसे माँगी। बली ने वचन दिया; और तीन पग में ही वामनावतार ने तीन लोक को नाप लिया और राजा बली से सबकुछ छीनकर उन्हें पाताल लोक भेज दिया। कवि इस प्रकार के छल से सहमत नहीं है। अतः वह संदेश देता है कि वह छलपूर्वक किसी से कुछ छीनने के पक्ष में नहीं है। ओणम दक्षिण भारतीय त्योहार है। इस त्योहार में राजा बली को याद किया जाता है।
कवि उन सत्ताधारियों का भी विरोध करता है जो इस धरती पर कब्जा करते हैं। छल, बल, कौशल से किसी की जमीन छीनने के पक्ष में कवि नहीं है। अतः कवि अवैध तरीके से इस धरती पर कब्जा करना नहीं चाहता। कवि इतना ज्यादा वदान्य (बात से संतुष्ट करने वाला) है कि वह किसी ज़रूरतमंद को अपने खेत-खलिहान तक देने को तैयार है। जो कोई भी तकलीफ में है, कवि उसकी मदद करने को तैयार है।
फिर कवि दुनिया के शक्तिशाली देशों की तरफ इशारा करते हुए उनके वर्चस्व की निंदा करता है। वह कहता है कि वह कोई दरिंदा नहीं है जो किसी कमतर अथवा कम शक्तिशाली देश पर बम गिराने चला जाएगा, शक्तिशाली देश कमजोर देश पर बम गिराकर वहाँ के निरीह लोगों को मारता है। विश्व की महाशक्तियों का अत्याचार छोटे देश को झेलना पड़ता है। कवि ने अमरीका के वर्चस्व की ओर संकेत किया है
अंत में कवि इंसानियत की दुहाई देते हुए कहता है कि वह मनुष्य है और हर मनुष्य को मनुष्य के साथ मनुष्योचित व्यवहार करना चाहिए। बड़े-बड़े देश तेल पर कब्जा करने के लिए छोटे-छोटे देशों पर (जिनके पास तेल है) हमला करते हैं। वहाँ के लोगों का शोषण करते हैं। अतः कवि गलत तरीके से उन छोटे देश पर तेल की खातिर कब्जा करने और निरीह लोगों का खून चूसने से इंकार करता है। अमरीका ने इराक पर जो हमला किया था, कवि उसकी तरफ इशारा करते हैं।
यह कविता एक उत्कृष्ट कविता है जो मानवतावाद का संदेश देती है।
1. नीचे दिए गए प्रश्नों के चार विकल्प दिए गए हैं। उनमें से सही विकल्प चुनिए।
i) मंगलेश डबराल का जन्म कब हुआ था?
(क) 16 मई 1948
(ख) 15 मई 1945
(ग) 1 जून 1941
(घ) 2 जून 1942
उत्तर – (क) 16 मई 1948
ii) मंगलेश डबराल का जन्म किस गाँव में हुआ था?
(क) धरमपुर
(ख) कापफलपानी
(ग) लमही
(घ) रानीगंज
उत्तर – (ख) कापफलपानी
iii) सन 1983 में किस अखबार में मंगलेश जी ने साहित्य संपादक
का पद संभाला?
(क) हिंदुस्तान टाइम्स
(ख) समाज
(ग) जनसत्ता
(घ) दि हिन्दू
उत्तर – (ग) जनसत्ता
iv) मंगलेश अपनी कविताओं में किसका प्रतिकार करते हैं?
(क) कपटाचार
(ख) राजसी वृत्ति
(ग) घृणा
(घ) सांमती बोध और पूँजीवादी छल छद्म
उत्तर – (घ) सांमती बोध और पूँजीवादी छल छद्म
v) कवि के लिए क्या ठीक से रखना कठिन है?
(क) दो जोड़ी जूते
(ख) एक जोड़ी जूते
(ग) तीन जोड़ी चप्पल
(घ) एक जोड़ी चप्पल
उत्तर -(ख) एक जोड़ी जूते
vi) कवि के लिए किन्हें पहनने का हिसाब रखना असंभव होगा
(क) पैंट-शर्ट – बुश शर्ट
(ख) लुंगी, अत्तरीय
(ग) कपड़ों, मोजों, दस्तानों
(घ) स्वेटर, मफलर
उत्तर – (ग) कपड़ों, मोजों, दस्तानों
vii) कवि दुनिया को क्या मानता है?
(क) घर
(ख) मकान
(ग) होटल
(घ) रेस्तराँ
उत्तर – घर
viii) कवि की नींद का आकार किसके बराबर है?
(क) तोता
(ख) गौरैया
(ग) कोआ
(घ) चिड़िया
उत्तर – (घ) चिड़िया
2. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं पाँच के उत्तर एक-एक वाक्य में दीजिए।
i) मंगलेश डबराल का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर – मंगलेश डबराल के चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं- ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’ और ‘आवाज भी एक जगह है’। कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार के माध्यम और संस्कृति के सवालों पर नियमित लेखन भी करते हैं। मंगलेश की कविताओं में सामंती एवं पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का प्रतिकार है। वे यह प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं, बल्कि प्रतिपक्ष में एक सुंदर सपना रचकर करते हैं। उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी है।
ii) मंगलेश जी ने कविता के अतिरिक्त और क्या क्या लिखे?
उत्तर – मंगलेश जी ने कविता के अतिरिक्त साहित्य, सिनेमा, संचार के माध्यम और संस्कृति के सवालों पर नियमित लेखन भी करते हैं।
iii) मंगलेश की कविता की मुख्य चिंता क्या है?
उत्तर – मंगलेश की कविता की मुख्य चिंता आम आदमी की पीड़ा उनके टूटे सपने और जीने की विवशताएँ हैं।
iv) कवि कितने जोड़ी जूते पहनना चाहते हैं?
उत्तर – कवि एक जोड़ी जोड़ी जूते पहनना चाहते हैं।
v) बाजार से बाहर किसका कोई मोल नहीं है?
उत्तर – बाजार से बाहर सिक्के का कोई मोल नहीं है।
vi) कवि कहाँ कब्जा नहीं करना चाहते?
उत्तर – कवि अवैध तरीके से इस धरती पर कब्जा करना नहीं चाहते।
vii) कवि को धरती से कौन सुंदर दिखाई देता है?
उत्तर – कवि को धरती से चाँद सुंदर दिखाई देता है।
viii) कवि क्या पीकर और क्या चूसकर अपना जीवन बिताना नहीं
चाहते?
उत्तर – कवि तेल पीकर और खून चूसकर अपना जीवन बिताना नहीं
चाहते।
3. निम्न प्रश्नों के दो-दो वाक्यों में उत्तर दीजिए:
i) मंगलेश डबराल की किन्हीं दो काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश
डालिए।
उत्तर – मंगलेश की कविताओं में सामंती एवं पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का प्रतिकार है। वे यह प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं, बल्कि प्रतिपक्ष में एक सुंदर सपना रचकर करते हैं। उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी है।
ii) मंगलेश जी को किन सम्मानों से नवाजा गया?
उत्तर – मंगलेश जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार और पहल सम्मान से सम्मानित किया गया है।
iii) मंगलेश जी ज़रूरतमंद को अपनी कौन-सी चीज देना चाहते हैं?
उत्तर – मंगलेश जी इतने ज्यादा वदान्य हैं कि वह किसी ज़रूरतमंद को अपने खेत-खलिहान तक देने को तैयार है। जो कोई भी तकलीफ में है, कवि उसकी मदद करने को तैयार है।
iv) कवि स्वयं को दरिंदा न होने की बात कैसे प्रमाणित करते हैं?
उत्तर – कवि स्वयं को दरिंदा न होने की बात प्रमाणित करने के लिए कहते हैं कि वह किसी कमतर अथवा कम शक्तिशाली देश पर बम गिराने कभी नहीं जाएँगे और न ही बम गिराकर वहाँ के निरीह लोगों को मारेंगे।
4. निम्न प्रश्नों के उत्तर तीन-तीन वाक्यों में दीजिए:
i) कवि कितने जूते, कपड़े, मोजे और दस्ताने रखना चाहता है?
उत्तर – कवि एक जोड़ी जूते, कपड़े, मोजे और दस्ताने रखना चाहता है क्योंकि उन्हें पता है कि वह इतने को ही संभाल सकता है और इतने में ही उन्हें संतुष्टि मिल जाएगी। वास्तव में वे समाजवाद के सिद्धांतों के पक्षधर हैं जिसमें सभी को संसाधनों पर समान अधिकार प्राप्त होता है।
ii) ‘ताकत की दुनिया’ कविता के आधार पर कवि की तीन चाहों पर
प्रकाश डालिए।
उत्तर – ‘ताकत की दुनिया’ कविता के आधार पर कवि की तीन चाह है – उनके पास एक जोड़ी जूते ही हो।
– उन्हें रहने के लिए एक छोटा-सा घर ही चाहिए।
– जरूरतमंदों को वे अपने खेत-खलिहान तक देने को तैयार है।
iii) मंगलेश डबराल किसे बेनकाब करते हैं और क्यों?
उत्तर – मंगलेश डबराल ताकत की दुनिया को बेनकाब करते हैं क्योंकि ये ताकत की दुनिया जंगल के कानून को बढ़ावा देती है जहाँ क्रूर और शक्तिशाली के इशारों पर सारी व्यवस्था काम करती हैं। ऐसी व्यवस्था में मानवता और इंसानियत के लिए कोई स्थान शेष नहीं रहता। अपनी इस कविता के माध्यम से कवि ऐसे लोगों में मानवता का संचार करने की कोशिश कर रहे हैं।
iv) मंगलेश की कविता में किसकी हुंकार सुनाई पड़ता है?
उत्तर – मंगलेश की कविता में आम आदमी की पीड़ा, उनके टूटे सपने, जीने की विवशताएँ आदि समस्याओं का यथार्थ चित्रण है जिसे कविता का हुंकार कहा गया है। यह हुंकार इतना प्रभाव उत्पन्न करता है कि इसे अनसुना करना असंभव है।
5. निम्न प्रश्नों के उत्तर दस-बारह वाक्यों में दीजिए।
i) मंगलेश डबराल का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर – मंगलेश डबराल अध्ययनोपरांत दिल्ली आकर हिंदी ‘पेट्रियट’, ‘प्रतिपक्ष’ और ‘आसपास’ में काम करने के बाद भोपाल में भारत भवन से प्रकाशित होनेवाले ‘पूर्वग्रह’ में सहायक संपादक हुए। इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित ‘अमृत प्रभात’ में भी कुछ दिन नौकरी की। सन् 1983 में इन्होंने ‘जनसत्ता’ अखबार में साहित्य-संपादक का पद संभाला।
उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं- ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’ और ‘आवाज भी एक जगह है’।
कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार के माध्यम और संस्कृति के सवालों पर नियमित लेखन भी करते हैं। मंगलेश की कविताओं में सामंती एवं पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का प्रतिकार है। वे यह प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं, बल्कि प्रतिपक्ष में एक सुंदर सपना रचकर करते हैं। उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी है।
ii) ‘ताकत की दुनिया’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना
चाहते हैं?
उत्तर – ‘ताकत की दुनिया’ कविता के माध्यम से कवि हमें यह संदेश देश देना चाहते हैं कि हम मनुष्य सभी अन्य जीवधारियों से श्रेष्ठ हैं और इस लिहाज से हमें सबके प्रति संवेदनशील और दयावान रहना चाहिए। इस दुनिया को सुंदर से सुंदरतम बनाने की कोशिश करनी चाहिए। किसी भी तरह से ईश्वर की अद्वितीय कृति अर्थात् हम मनुष्य कृपासिन्धु की तरह पीयूष वर्षण करते रहे यही हमारा ध्येय होना चाहिए। पर आज स्थिति ठीक इसके विपरीत है। आज जहाँ देखो वहाँ लूट-खसोट अपने चरम पर है। मनुष्य मनुष्य से नफरत करने लगा है। ईर्ष्या, द्वेष, क्लेश और कलुषित विचारों से हमारा मस्तिष्क भरा पड़ा है। ऐसी स्थिति के मूल में पूँजीवाद समाज का बहुत बड़ा हाथ है। पूँजीवाद समाज और ताकत को महत्त्व देने वाले समुदाय ने इस सुंदर दुनिया की यह दुर्गति कर रखी है। कवि हमें यह बतलाना चाहते हैं कि ये दुनिया सभी की जरूरतों को पूरा करने में तो सक्षम है पर किसी एक के लालच को पूरा करने के लिए बहुत ही छोटी। इसलिए हमें अपने आवश्यकता अनुसार संसाधनों का उपयोग करना चाहिए और आने वाली पीढ़ी के लिए भी कुछ छोड़कर जाना चाहिए।
चाहते हैं
iii) ‘ताकत की दुनिया’ कविता की समीक्षा कीजिए।
उत्तर – ‘ताकत की दुनिया’ कविता वर्तमान समाज के परिप्रेक्ष्य में बिलकुल सटीक साबित होती है। आज ताकत वाले ही वास्तव में समाज के कर्णधार बने हुए हैं। विडम्बना की बात तो यह है कि ताकत वाले अगर अनीति भी कर रहे हैं तो आम आदमी क्रांति का आगाज़ नहीं कर पा रहा है क्योंकि उसकी अपनी आवश्यकताएँ और जिम्मेदारियाँ हैं जिसका निर्वहन भी उसे पूरी नैतिकता और ईमानदारी से करना है। इसी चक्की में एक तरफ तो आम आदमी ताकत की दुनिया का एक मोहरा बन जाता है दूसरी तरफ वह अपने पारिवारिक बंधनों को निर्वहन भी पूरी तन्मयता से करने को वचनबद्ध है। आज जहाँ देखिए वहाँ शक्तिशाली लोगों का ही वर्चस्व कायम दिखाता है। शिक्षा के क्षेत्र में। चिकित्सा के क्षेत्र में, यहाँ तक कि न्याय के क्षेत्र में भी उन्हीं का बोलबाला है जिसमें समाज को चलाने का सामर्थ्य है। ताकतवर देश कमजोर देशों पर बम गिराकर अपना मनचाहा शासन करना शुरू कर देते हैं। लूट-खसोट तो आम बात हो गई है। यहाँ गोदाम में कंबल भरे पड़े रहते हैं और यहीं कहीं ठंडी रातों में ठंड के कारण कोई ठिठुर-ठिठुर कर अपने प्राण गँवा देता है। सच कहा जाए या सच पूछा जाए दोनों स्थिति में ताकत की दुनिया हेय है त्याज्य है।
iv) मंगलेश डबराल के साहित्यिक व्यक्तित्व का आकलन कीजिए।
उत्तर – मंगलेश डबराल समकालीन हिन्दी कवियों में सबसे चर्चित नामों में से एक है। दिल्ली आकर हिंदी ‘पैट्रियट’, ‘प्रतिपक्ष’ और ‘आसपास’ में काम करने के बाद वे भोपाल में मध्यप्रदेश कला परिषद, भारत भवन से प्रकाशित साहित्यिक त्रैमासिक ‘पूर्वाग्रह’ में सहायक संपादक रहे। आजकल वे नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े हैं।
मंगलेश डबराल के अब तक पाँच काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’, ‘आवाज भी एक जगह है’ और ‘नये युग में शत्रु’। इसके अतिरिक्त इनके दो गद्य संग्रह ‘लेखक की रोटी’ और ‘कवि का अकेलापन’ के साथ ही एक यात्रावृत्त ‘एक बार आयोवा’ भी प्रकाशित हो चुका है।
दिल्ली हिंदी अकादमी के साहित्यकार सम्मान, कुमार विकल स्मृति पुरस्कार और अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना ‘हम जो देखते हैं’ के लिए साहित्य अकादमी द्वारा सन् 2000 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं। इनकी प्रसिद्धि अनुवादक के रूप में भी है। इनकी कविताओं के भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, डच, स्पेनिश, पुर्तगाली, इतालवी, फ्रांसीसी, पोलिश और बुल्गारियाई भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति के विषयों पर नियमित लेखन भी करते हैं। उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी।
v) ‘ताकत की दुनिया’ कविता के माध्यम से कवि किस तरह संचय
की प्रवृत्ति को नकाराता है।
उत्तर – ‘ताकत की दुनिया’ कविता के माध्यम से कवि यह कहना चाहते हैं कि हजारों जोड़ी जूते, मोजे और दास्तानों का संचय करना मेरे लिए असंभव है, मैं इतना हिसाब-किताब नहीं रख सकता। मेरे लिए दो एक जोड़ी जूते ही काफी है। कवि तो यहाँ तक कह देते हैं कि अगर कोई ज़रूरतमंद मुझसे मेरे खेत-खलिहान माँग ले तो उसकी आवश्यकता की परख करने के बाद मैं उसे अपने खेत-खलिहान भी दे दूँगा। कवि का यह मानना है कि हम इस दुनिया में अतिथि के रूप में आए हैं और अपने कार्य पूरा करके हमें लौट जाना है। इसलिए चीजों का संग्रह और संचयन अप्रयोजनीय है। हमें पृथ्वी के संसाधनों पर स्वामित्व की भावना नहीं वरन् सहकारिता की भावना रखनी चाहिए।