इस पाठ को पढ़ने के बाद आप ये जान/बता पाएँगे
- दोहा अर्द्ध सम मात्रिक छंद है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 13 मात्राएँ और द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 11 मात्राएँ होती हैं।
- अब्दुर्रहीम खानखाना के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की जानकारी।
- मुस्लिम कवि संप्रदाय में कृष्ण-भक्ति का प्रभाव।
- वर्तमान जीवन में भी दोहों की उपयोगिता।
- नीतिपरक सबक एवं सीखों का संक्षिप्त परंतु अद्भुत संकलन।
- रहीम के अतिरिक्त कबीर, वृंद, बिहारी के दोहों का संक्षिप्त परिचय।
- ब्रज भाषा की मधुरता एवं भाषा ज्ञान।
- अन्य जीवनोपयोगी जानकारियाँ।
कवि परिचय – रहीम (1556 – 1626)
जीवन वृत्त
रहीम का जन्म लाहौर (अब पाकिस्तान) में सन् 1556 में हुआ। इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। रहीम अरबी, फ़ारसी,संस्कृत और हिंदी के अच्छे जानकार थे। इनकी नीतिपरक उक्तियों पर संस्कृत कवियों की स्पष्ट छाप परिलक्षित होती है। रहीम मध्ययुगीन दरबारी संस्कृति के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। अकबर के दरबार में हिंदी कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान था। रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे।
रहीम के काव्य का मुख्य विषय शृंगार, नीति और भक्ति है। रहीम बहुत लोकप्रिय कवि थे। इनके दोहे सर्वसाधारण को आसानी से याद हो जाते हैं। इनके नीतिपरक दोहे ज़्यादा प्रचलित हैं, जिनमें दैनिक जीवन के दृष्टांत देकर कवि ने उन्हें सहज, सरल और बोधगम्य बना दिया है। रहीम को अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। इन्होंने अपने काव्य में प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग किया है।
रहीम बड़े लोकप्रिय कवि हैं क्योंकि उनके दोहे सामान्य और विद्वान् दोनों के द्वारा आदृत होते हैं। दैनिक जीवन की अनुभूतियों को प्रत्यक्ष दृष्टांतों के द्वारा अभिव्यक्त करने से रहीम के दोहे नीरस नहीं होते, उनके कथन सीधे मर्म को स्पर्श करते हैं। रहीम बड़े महल में रहते हुए भी मानवीय गुण-दोषों की अच्छी जानकारी रखते थे। उनकी भले-बुरे की पहचान बहुत अच्छी थी।
कृतित्व
रहीम की प्रमुख कृतियाँ हैं: रहीम सतसई, शृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली, बरवै, भाषिक भेदवर्णन। ये सभी कृतियाँ ‘रहीम ग्रंथावली’ में समाहित हैं।
प्रस्तुत पाठ में रहीम के नीतिपरक दोहे दिए गए हैं। ये दोहे जहाँ एक ओर पाठक को औरों के साथ कैसा बरताव करना चाहिए, भक्ति का स्वरूप कैसा होना चाहिए, कैसी संगति में रहना चाहिए आदि की शिक्षा देते हैं, वहीं मानव मात्र को करणीय और अकरणीय आचरण की भी नसीहत देते हैं। इन्हें एक बार पढ़ लेने के बाद भूल पाना संभव नहीं है और उन स्थितियों का सामना होते ही इनका याद आना लाज़िमी है, जिनका इनमें चित्रण है।
दोहे की सप्रसंग व्याख्या
दोहा – 1
तैं रहीम मन आपुनो, किन्हों चारु चकोर।
निसि-बासर लागि रहै, कृष्णचंद्र की ओर॥
शब्दार्थ
तैं – तुम
मन – हृदय
आपुनो – अपना
किन्हों – जैसे किया है
चारु – सुंदर
चकोर – एक पक्षी
निसि-बासर – रात-दिन
लागि रहै – लगा रहता है
ओर – तरफ़
प्रसंग – प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य सुधा’ में संकलित काव्य पाठ रहीम के दोहे से लिया गया है। इस दोहे के रचनाकार रहीम जी हैं। इस दोहे में रहीम जी कृष्ण भक्ति का मनोरम चित्र उकेर रहे हैं।
व्याख्या – इस दोहे में रहीम जी कह रहे हैं कि जिस प्रकार चकोर नामक पक्षी प्रेमवश सारी रात शीतल, सुंदर और सौम्य शशि को निहारता रहता है, उसी प्रकार मेरा मन भी दिन-रात श्रीकृष्ण की भक्ति में ही लीन रहता है। श्रीकृष्ण की महिमा वास्तव में अपरंपार है।
विशेष –
इस दोहे में रहीम जी की उच्च धार्मिक विचारधारा का बोध होता है।
भक्ति की महिमा अतुलनीय होती है।
दोहा – 2
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।।
शब्दार्थ
रहिमन – रहीम
मत – नहीं
चटकाय – झटके से
गाँठ – टूटने के बाद फिर से जोड़ने के लिए बाँधा गया गिरह या गाँठ
परि – पड़ना
जाय – जाना
प्रसंग – प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य सुधा’ में संकलित काव्य पाठ रहीम के दोहे से लिया गया है। इस दोहे के रचनाकार रहीम जी हैं। इस दोहे में रहीम जी रिश्तों की अहमियत और उसे संभाल के रखने की बात कर रहे हैं।
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम हमें यह बताने का सफल प्रयास कर रहे हैं जीवन में प्रेम की बहुत आवश्यकता होती है इसके बिना जीवन नीरस हो जाता है। मनुष्य को कभी भी इस प्रेम रूपी धागे को अपने अहम के कारण नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि यह एक बार टूट जाता है तो फिर नहीं जुड़ता है और अगर जुड़ता भी है तो इसमें गाँठ पड़ जाती है अर्थात् उस रिश्ते में फिर पहले जैसी मिठास नहीं रहती।
विशेष –
इस दोहे में रहीम जी संबंधों की महत्ता और उसे बचा कर रखने का संदेश दे रहे हैं।
इसमें सहनशील होने का भाव भी दृष्टिगोचर होता है।
दोहा – 3
कह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय ।
बैर, प्रीति, अभ्यास जस, होत होत ही होय ॥
शब्दार्थ
निज – अपना
संग – साथ
लै – लेकर
जनमत – जन्म लेना
जगत – दुनिया
कोय – कोई
बैर – दुश्मनी
प्रीति – प्रेम
अभ्यास – साधना
जस- यश
होत – होता है
होय – हुआ
प्रसंग – प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य सुधा’ में संकलित काव्य पाठ रहीम के दोहे से लिया गया है। इस दोहे के रचनाकार रहीम जी हैं। इस दोहे में रहीम जी व्यक्ति के मानसिक उन्नति और अवनति के कारक पारिवारिक, सामाजिक विचारधारा को मान रहे हैं।
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीमजी हमें गूढ़ ज्ञान देते हुए यह बता रहे हैं शत्रुता, प्रेम, अभ्यास और यश इनके साथ संसार में कोई भी जन्म नहीं लेता है। ये सारी चीज़ें तो मन-मस्तिष्क में हमें अपने परिवार और समाज से ही धीरे-धीरे प्राप्त होती हैं। अर्थात् जैसा परिवार और समाज होगा मानसिकता भी वैसी ही होगी।
विशेष –
शिशु की मानसिकता का सौम्य या उग्र होना, आलस्य या उद्यमी होना, आत्मनिर्भर या परनिर्भर होना ये सारी बातें परिवार और समाज पर आधारित होती हैं।
इसमें परिवार और समाज को सुदृढ़ समाज की स्थापना का मूल बिंदु बताया गया है।
दोहा – 4
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति-कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत॥
शब्दार्थ
सगे – अपने
बनत – बनना
बहु – बहुत
रीत – संबंध
बिपति – विपत्ति, कष्ट
कसौटी – परीक्षा
जे – जो
कसे – खरा
सो – वही
साँचे – सच्चा
मीत – मित्र
प्रसंग – प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य सुधा’ में संकलित काव्य पाठ रहीम के दोहे से लिया गया है। इस दोहे के रचनाकार रहीम जी हैं। इस दोहे में रहीम जी हम सभी को सच्चे मित्र की पहचान का दुर्लभ उपाय बता रहे हैं।
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम जी सच्चे दोस्तों की पहचान करने का तरीका बताते हुए कह रहे हैं कि हमारे सच्चे मित्र या संबंधी तो वे ही होते हैं, जो विपत्ति की कसौटी पर कसे जाने पर खरे उतरते हैं। सोना खरा है या खोटा, इसकी परख कसौटी पर घिसने से होती है। ठीक वैसे ही जब हमारे पास बहुत धन-संपत्ति होती है, तो दूर-दूर के रिश्ते बन जाते हैं। किसी भी उपाय से लोग हमसे अपना संबंध स्थापित कर लेना चाहते हैं। पर हमारा सच्चा मित्र और सच्चे संबंधी वे ही साबित होते हैं जो संकट के समय में हमारा साथ न छोड़ें।
विशेष –
सच्ची मित्रता आर्थिक न होकर हार्दिक होती है।
हमें यह ज़रूर जान लेना चाहिए कि हमारे सगे-संबंधी या मित्र हमारे धन की वजह से है या हमारे मन की वजह से।
दोहा – 5
रहिमन कठिन चितान तै, चिन्ता को चित चेत।
चिता दहति निर्जीव को, चिन्ता जीव-समेत॥
शब्दार्थ
कठिन – मुश्किल
चितान – चिता, शव
तै – से
चिन्ता – परेशानी, चिंता करना
चित – मन
चेत – सावधान
चिता – शव
दहति – जलाती है
निर्जीव – जिसमें जान न हो
जीव – जीवित
समेत – साथ
प्रसंग – प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य सुधा’ में संकलित काव्य पाठ रहीम के दोहे से लिया गया है। इस दोहे के रचनाकार रहीम जी हैं। इस दोहे में रहीम जी हमें चिंता के दुष्परिणामों से सचेत हो जाने को कह रहे हैं।
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम जी चिंता से जुड़ी गंभीर समस्या को रेखांकित करते हुए कह रहे हैं कि चिंता तो चिता से भी भंयकर है। इसलिए हमें सावधान हो जाना चाहिए और यथासंभव चिंता से दूर रहना चाहिए। चिता तो मुर्दे को जलाती है परंतु चिंता तो जीवित व्यक्ति को पल-पल जलाती ही रहती है।
विशेष –
चिंता मनुष्य का परम शत्रु है।
चिंता चिता समान होती है इसलिए हमें चिंता न करके चिंतन करना चाहिए।
चिंता किसी भौतिक चीजों के लिए होती है जबकि चिंतन मस्तिष्क का व्यायाम।
दोहा – 6
जे गरीब पर हित करै, ते रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
शब्दार्थ
जे – जो
गरीब – दरिद्र
हित – भला
करै – करता है
ते – वो
कहा – कहना
सुदामा – श्रीकृष्ण के मित्र
बापुरो – गरीबी
मिताई – मित्रता
जोग – योग
प्रसंग – प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य सुधा’ में संकलित काव्य पाठ रहीम के दोहे से लिया गया है। इस दोहे के रचनाकार रहीम जी हैं। इस दोहे में रहीम जी उदार लोगों के लक्षण, आचरण और उनके कृत्यों की व्याख्या कर रहे हैं।
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे को माध्यम बनाकर रहीम जी बड़े लोगों के गुणों की गाथा स्वरित करते हुए कह रहे हैं कि जो ग़रीबों का हित करते हैं, वास्तव में वे ही बड़े लोग होते हैं। बड़े लोगों की कृपा भी एक प्रकार की साधना की सिद्धि है। यहाँ सुदामा कहते हैं कृष्ण की मित्रता भी एक साधना है और इसी साधना की सिद्धि हो जाने से मेरी दरिद्रता दूर हो गई।
विशेष –
सच्ची मित्रता वरदान के समान है।
सही अर्थों में बड़े लोग वे ही होते हैं जो गरीबों की मदद करते हैं।
दोहा – 7
कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन ॥
शब्दार्थ
कदली – केला
सीप – शामूका
भुजंग – साँप
मुख – मुँह
स्वाति – एक नक्षत्र
गुन – गुण
संगति – साथ
बैठिए – रहना
तैसोई – वैसा ही
फल – परिणाम
दीन – देता है
प्रसंग – प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य सुधा’ में संकलित काव्य पाठ रहीम के दोहे से लिया गया है। इस दोहे के रचनाकार रहीम जी हैं। इस दोहे में रहीम जी माकुल उदाहरणों से संगति के असर के बारे में बता रहे हैं।
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे को आधार बनाकर रहीम जी हमें संगति के सुपरिणामों और कुपरिणामों से अवगत करवाते हुए कह रहे हैं कि स्वाति नक्षत्र की वर्षा की बूँद तो एक ही हैं, पर उसके गुण तीन अलग-अलग तरह के देखे जाते हैं। केले में पड़ने से वह बूँद कपूर बन जाता है, बूँद अगर सीप में पड़े तो वह मोती बन जाता है और अगर साँप के मुँह में गिरे तो कालकूट अर्थात् विष बन जाता है। ठीक इसी प्रकार हम जिस प्रकार की संगति में रहेंगे हमें वैसा ही परिणाम मलेगा।
विशेष –
कुसंगति का असर दुखद होता है और सुसंगति का असर सुखद।
जीवन को अर्थवान बनाने के लिए अच्छी संगति का ही आश्रय लेना पड़ता है।
दोहा – 8
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह ॥
शब्दार्थ
चाह – चाहत, इच्छा
चिंता – परेशानी
मिटी – समाप्त होना
मनुआ – मन
बेपरवाह – जिसे किसी चीज़ की चिंता न हो
कछु – कुछ
नहि – नहीं
साहन के साह – राजाओं के राजा
प्रसंग – प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य सुधा’ में संकलित काव्य पाठ रहीम के दोहे से लिया गया है। इस दोहे के रचनाकार रहीम जी हैं। इस दोहे में रहीम जी चिंतामुक्त जीवन जीने से होने वाले लाभों के बारे में बता रहे हैं।
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम जी हमें यह कह रहे हैं कि जिन्हें कुछ नहीं चाहिए वो राजाओं के राजा हैं। रहीम जी ऐसा कह रहे हैं क्योंकि उन्हें न तो किसी चीज़ की चाह है, न ही चिंता और जब हमें किसी चीज़ की चाहत ही नहीं होती तो हम चिंता भी करना छोड़ देते हैं और हमारा मन बिल्कुल बेपरवाह हो जाता है।
विशेष –
इच्छा ही दुखों का कारण है।
इच्छाओं का निरोध चिंतामुक्त जीवन की कुंजी है।
दोहा – 9
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥
शब्दार्थ
पानी – चमक, इज्ज़त, जल
राखिए – रखिए
बिन – बिना
सून – सूना
ऊबरै – उठना
मोती – मुक्ता, Pearl
मानुष – मनुष्य
चून – आटा
प्रसंग – प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य सुधा’ में संकलित काव्य पाठ रहीम के दोहे से लिया गया है। इस दोहे के रचनाकार रहीम जी हैं। इस दोहे में रहीम जी मनुष्य, मोती और आटे के संबंध में पानी की महत्ता का बखान कर रहे हैं।
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम कह रहे हैं कि पानी का बहुत महत्त्व है। पानी के बिना मोती, मोती नहीं रह जाता। अर्थात् जब मोती की चमक चली जाती है तो वह अपना मूल्य खो बैठता है, उसी प्रकार अगर किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा चली जाए तो वह समाज में नज़रें ऊँची करके नहीं चल सकता और अगर आटे में पानी न मिलाया जाए तो रोटी बना पाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए रहीम कह रहे हैं कि मोती के संदर्भ में चमक, मनुष्य के संदर्भ में इज्ज़त और आटे के संदर्भ में पानी का बहुत महत्त्व होता है।
विशेष –
इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है।
किसी भी वस्तु की पहचान उसके गुण से होती है। किसी भी अवस्था में उसका गुण बरकरार रहना चाहिए।
दोहा – 10
समय पात फल होत है, समय पाय झरि जाय।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछिताय॥
शब्दार्थ
पात – होने पर
होत – होता है
2. झरि – झड़ जाना
3. जाय – जाता है
4. सदा – हमेशा
5. का – क्यों
6. पछिताय – पछताना
प्रसंग – प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य सुधा’ में संकलित काव्य पाठ रहीम के दोहे से लिया गया है। इस दोहे के रचनाकार रहीम जी हैं। इस दोहे में रहीम जी धैर्य और समय की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए हमें जीवनोपयोगी शिक्षा दे रहे हैं।
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम हमें धैर्यवान और समयानुवर्ती होने की सीख देते हुए कह रहे हैं कि समय के अनुसार ही सारे काम होते हैं। पेड़ों पर फल एक निश्चित समय पर लगते हैं और झड़ते भी हैं, निश्चित समय पर। उसी प्रकार हमारा उतावलापन किसी भी काम को समय से पहले पूरा नहीं कर सकता और समय बीत जाने के बाद हमारा पछताना भी समय को विपरीत दिशा में नहीं ले जा सकता। इसलिए हमें अपने सारे काम समय के अनुसार ही करने चाहिए।
विशेष –
इस दोहे में चिर गतिशील समय के बारे में बताया गया है।
हमें समय के अनुसार चलना चाहिए क्योंकि समय कभी भी किसी के लिए नहीं रुकता।
दोहा – 11
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।।
शब्दार्थ
बिथा – व्यथा, परेशानी
राखो – रखो
गोय – छिपाकर
सुनि – सुनकर
अठिलैहें – इतराना
बाँटि -बाँटना
कोई – कोई
प्रसंग – प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य सुधा’ में संकलित काव्य पाठ रहीम के दोहे से लिया गया है। इस दोहे के रचनाकार रहीम जी हैं। इस दोहे में रहीम जी हमें अपने दुख, चिंता और तकलीफ़ को सभी के सामने प्रकाश करने से रोक रहे हैं क्योंकि अधिकतर लोग हमारे दुख में अपना सुख खोजने लगते हैं।
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम हमें यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि हमें अपनी पीड़ा व समस्याओं के बारे में दूसरों को नहीं बताना चाहिए। ऐसा करने पर लोग हमारे दुख व कष्ट को जानकर मन ही मन यह सोचकर प्रसन्न होंगे कि ठीक हुआ मैं इस समस्या से बच गया। वे हमारी समस्या का समाधान करने के बजाय हमारा उपहास करेंगे और हमारी समस्या का नि:शुल्क प्रचार कर देंगे जिससे लोगों के सामने हमारा व्यक्तित्व धूमिल हो जाएगा।
विशेष –
इस दोहे में अपना दुख किसी को न बताने की बात की गई है।
हमारा शुभचिंतक होने का नाटक करने वाले हमारी समस्या को सुनकर उसका समाधान करने के बजाय हमारा उपहास करेंगे।
1. नीचे दिए गए बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्प का चयन कीजिए-
1. रहीम कृष्णचंद्र की ओर किसको लगाना चाहते हैं?
क. मनरूपी चकोर ख. हृदय की डोर
ग. जंगल का मोर घ. निसि-बासर
उत्तर – क. मनरूपी चकोर
2. प्रेम के धागे को तोड़ देने पर क्या होता है?
क. मित्रता दृढ़ होती है ख. शत्रुता बढ़ती है
ग. फिर वह नहीं मिलता घ. छिटक जाता है
उत्तर – ग. फिर वह नहीं मिलता
3. सच्चा मित्र कौन है?
क. जो संपत्ति का हिस्सा ले ख. जो खूब मिले
ग. जो हँसमुख हो घ. जो विपत्ति में मदद करे
उत्तर – ग. फिर वह नहीं मिलता
4. मन की व्यथा को छिपाकर क्यों रखना चाहिए?
क. कहने से दूसरे दुखी होते हैं ख. कहने से दूसरे हँसते हैं
ग. कहने से झगड़ा बढ़ता है घ. कहने से दूसरे मित्र बनते हैं
उत्तर – ख. कहने से दूसरे हँसते हैं
2.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में दीजिए-
(क) प्रत्येक धागे को छिटकाने से वह टूट जाता है, फिर नहीं मिलता, लेकिन अगर मिलता भी है तो क्या बुरा नतीजा होता है?
उत्तर – धागे को छिटकाने से वह टूट जाता है और उसे मिलाने पर उसमें गाँठ पड़ जाती है जिससे पता चलता है कि धागे किसी कारणवश अलग हो गए थे।
(ख) चिता से चिंता अधिक खतरनाक क्यों है?
उत्तर – चिता से चिंता अधिक खतरनाक है क्योंकि चिता तो मृत को एक ही बार जलाती है परंतु चिंता जीवित को ही पल-पल जलाती रहती है।
(ग) संपत्ति के समय क्या होता है?
उत्तर – जब हमारे पास प्रचुर संपत्ति होती है तो हमारे बहुत से सगे-संबंधी बनते हैं।
3. नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दीजिए-
1. पानी के विभिन्न अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है, यहाँ पानी का मतलब इज्ज़त या विनम्रता से है। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है।
2. वैर-प्रीति जन्म से होती है या बाद में, क्यों?
उत्तर – जन्म से ही वैर-प्रीति लेकर शिशु पैदा नहीं होता है। एक नवजात शिशु बिल्कुल कोरा मस्तिष्क लेकर पैदा होता है। उस कोरे मस्तिष्क में वैर-प्रीति की भावना में से किसकी प्रधानता होगी ये परिवार और समाज पर निर्भर करता है।
3. सुदामा और कृष्ण की मित्रता से क्या सीख मिलती है?
उत्तर – सुदामा और कृष्ण की मित्रता से हमें ये सीख मिलती है कि सच्ची मित्रता भी किसी कठोर साधना से कम नहीं और सही मायनों बड़े लोग वही होते हैं जो गरीबों की मदद करें।
4. जिनको कुछ नहीं चाहिए वे क्या होते हैं?
उत्तर – जिनको कुछ नहीं चाहिए वे राजाओं के राजा होते हैं क्योंकि ऐसे महापुरुषों ने अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लिया है। ये अब वैराग्य की स्थिति में पहुँच चुके हैं और बिना किसी चिंता के जीवन यापन करते हैं।
4.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से दीजिए-
(क) रहीम के दोहे मानव जीवन पर आधारित हैं, कैसे? बताइए।
उत्तर – रहीम के दोहे मानव जीवन पर आधारित हैं, ये उनके दोहों से स्वयं सिद्ध हो जाता है। रहीम के दोहे मानव जीवन के विविध पक्षों से संबंध रखते हैं और साथ ही साथ उन सभी पक्षों को परिष्कृत एवं उज्ज्वल करने हेतु दोहों के माध्यम से नीति ज्ञान भी देते हैं। हमारे प्रतिदिन के जीवन में हमारा आचरण, ईश्वर की भक्ति, रिश्ते-नातों का महत्त्व, सच्चे मित्रों तथा संबंधियों की पहचान, महानता की परिभाषा एवं स्वरूप, सत्संगति की आवश्यकता, प्रतिष्ठा तथा धैर्य का महत्त्व, निजी समस्याओं के निराकरण आदि विषयों पर अपने माकूल विचार प्रस्तुत किए हैं। ये सारे लौकिक व्यवहार के महत्त्वपूर्ण बिन्दुएँ हैं। इन बिंदुओं पर यदि हम विचार कर तदनुरूप कार्य करें तो हमारा जीवन सार्थक हो जाएगा।
रहीम ने इन दोहों की रचना अपने अनुभव और सामाजिक स्थितियों पर गहन अध्ययन करने के उपरांत ही की है। यही कारण है कि उनके दोहों की उपयोगिता आज के युग में भी पूर्ववत बनी हुई है।
(ख) शाहों के शाह कौन हैं और कैसे हैं?
उत्तर – जिन्हें कुछ नहीं चाहिए अर्थात् जिन्होंने अपनी इच्छाओं पर विजय पा लिया है वे शाहों के शाह हैं। ऐसे महान आत्माओं के सोच की परिधि बहुत विस्तृत होती है। ऐसे सज्जनों के लिए पूरी दुनिया ही उनके घर के समान होती है और ईश्वर प्रदत्त चीज़ों पर ही निर्भर रहकर ये खुशी-खुशी अपना जीवन यापन करते हैं। भौतिक वस्तुओं के प्रति इनमें किसी भी प्रकार की चाह नहीं होती और जिन्हें भौतिक चीज़ों की चाह नहीं होती वह छल-कपट, भय-चिंता, काम-वासना, लाभ-हानि आदि से निर्लिप्त रहकर ईश्वर की भक्ति में ही लीन रहते हैं। इनके लिए तो आध्यात्मिकता का मार्ग ही सर्वोपरि होता है।
(ग) फल की गति को देखकर रहीम मनुष्य के जीवन के सत्य पर कैसे प्रकाश डालते हैं? समझाइए।
उत्तर – प्रकृति के सारे काम धीरे-धीरे और निर्धारित समय पर निश्चित अवधी (Duration) में ही होते हैं। एक पेड़ में चाहे आप प्रतिदिन पानी दें फिर भी पर फल तभी लगेंगे जब उपयुक्त मौसम आएगा और एक नियत तिथि के बाद फल सूख भी जाएगा। ये प्रकृति के धैर्य और निरंतर गतिमान होने का सूचक है। दूसरी तरफ़ आज हम मनुष्यों के पास धैर्य नाम की चीज़ ही नहीं रही। हम सभी में किसी न किसी रूप में उतावलापन (Impatience) देखने को मिलता है और कभी – कभी धैर्य का हवाला (Reference) देते हुए हम इतना आलस्य करने लगते हैं कि कार्य की निर्धारित और निश्चित अवधी निकल चुकी होती है। इसीलिए हमें समय रहते अपने सारे काम कर लेने चाहिए, नहीं तो बाद में पछताने के अलावा और कुछ भी शेष नहीं रह जाएगा।
(घ) कदली, सीप, भुजंग मुख के उदाहरण द्वारा कौन-सी गंभीर बात कही गई है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में ही रह सकता है और समाज में रहने के दौरान वह बहुत से लोगों के संपर्क में आता है, जो स्वाभाविक है। परंतु ध्यान देने वाली बात यह है कि वह किस प्रकार के लोगों से संपर्क रखता है क्योंकि समाज में तरह तरह के लोग होते हैं। किसी की मानसिकता विकसित होती है तो किसी की विकृत किसी की सामान्य होती है तो किसी की स्वार्थी। ऐसे में संगति का चुनाव करते वक्त चौकन्ना रहना बहुत ही ज़रूरी होता है। अगर हमने गलत संगति का चुनाव कर लिया तो हमारा अधोपतन निश्चित है। जिस प्रकार स्वाति नक्षत्र की वर्षा की बूँद तो एक ही हैं, पर उसके गुण तीन अलग-अलग तरह के देखे जाते हैं। केले में पड़ने से वह बूँद कपूर बन जाता है, बूँद अगर सीप में पड़े तो वह मोती बन जाता है और अगर साँप के मुँह में गिरे तो कालकूट अर्थात् विष बन जाता है। ठीक इसी प्रकार हम जिस प्रकार की संगति में रहेंगे हमें वैसा ही परिणाम मलेगा।
परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
1. नीचे दिए गए बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्प का चयन कीजिए-
1. शाहों के शाह कौन होते हैं?
क. प्रतापी राजा
ख. चक्रवर्ती सम्राट
ग. जिन्हें कुछ नहीं चाहिए
घ. दयावान राजा
उत्तर – ग. जिन्हें कुछ नहीं चाहिए
2. मन की व्यथा मन में ही क्यों रखनी चाहिए?
क. इससे हमारा आत्मबल बढ़ता है
ख. लोग उपहास करते हैं
ग. इससे हमारी कमजोरी साबित होती है
घ. लोग अपना स्वार्थ साधते हैं
उत्तर – ख. लोग उपहास करते हैं
3. कदली, सीप, भुजंग मुख का संबंध किस चीज़ से है?
क.हवा
ख. इज्ज़त
ग. पानी
घ. चिंता
उत्तर – ग. पानी
4. ‘फल की गति’ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है?
क. समय
ख. पछतावा
ग. समस्या
घ. इनमें से कोई नहीं
उत्तर – क. समय
5. मनुष्य के संदर्भ में पानी का अर्थ _________ से है।
क. चमक
ख. जल
ग. इज्ज़त
घ. अहंकार
उत्तर – ग. इज्ज़त
6. ‘कसौटी’ शब्द का क्या अर्थ है?
क. धन
ख. रिश्तेदार
ग. परीक्षा
घ. सच्चे मित्र
उत्तर – ग. परीक्षा
7. रहीम जी किसकी भक्ति में अपना मन लगाना चाहते हैं?
क. राम
ख. कृष्ण
ग. विष्णु
घ. दुर्गा
उत्तर – ख. कृष्ण
8. चिंता चिता से भी अधिक खतरनाक क्यों है?
क. यह व्यक्ति को कमजोर बनाती है
ख. यह व्यक्ति को हर पल जलाती है
ग. इससे व्यक्ति जल्दी मर जाता है
घ. इनमें से कोई नहीं
उत्तर – ख. यह व्यक्ति को हर पल जलाती है
9. रहीम के अनुसार बड़े लोग कौन होते हैं?
क. जो धनी होते हैं
ख. जो गरीबों की मदद करते हैं
ग. जो बड़े पदों पर होते हैं
घ. जो ईश्वर की बहुत भक्ति करते हैं
उत्तर – ख. जो गरीबों की मदद करते हैं
2. नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए-
1. रहीम के दोहों की क्या खासियत है?
उत्तर – रहीम के दोहे मानव जीवन की अनुभूतियों से जुड़े होते हैं और दिन-प्रतिदिन के लौकिक व्यवहार में काम आते हैं।
2. बैर, प्रीति, अभ्यास और यश के संबंध में रहीम के क्या विचार हैं?
उत्तर – बैर, प्रीति, अभ्यास और यश इनके साथ संसार में कोई भी जन्म नहीं लेता। ये सारी चीजें तो धीरे-धीरे ही आती हैं।
3. चिन्ता को चिता के समान क्यों बतलाया गया है?
उत्तर – चिन्ता तो चिता से भी भंयकर है। चिता तो मुर्दे को जलाती है, और यह चिन्ता जिन्दा व्यक्ति को ही जलाती रहती है ।
4. कृष्ण की मित्रता को साधना के समान क्यों बताया गया है?
उत्तर – सुदामा कहते हैं कि कृष्ण की दोस्ती भी एक साधना है क्योंकि साधना करने से ही हमारे कष्टों का निवारण होता है।
5. वास्तव में कौन बड़े लोग कहलाने के लायक हैं?
उत्तर – जो ग़रीब का हित करते हैं वो बड़े लोग कहलाते हैं।
6. राजाओं के राजा कौन होते हैं?
उत्तर – जिन्हें कुछ नहीं चाहिए वो राजाओं के राजा हैं। क्योंकि उन्हें ना तो किसी चीज़ की चाह है, ना ही चिंता और और मन तो बिल्कुल बेपरवाह है।
7. मनुष्य के संदर्भ में पानी का क्या अर्थ है?
उत्तर – मनुष्य के संदर्भ में पानी का अर्थ विनम्रता या इज्ज़त से है।
8. स्वाति नक्षत्र की वर्षा की बूँद अगर सीप में पड़े तो वह क्या हो जाता है?
उत्तर – स्वाति नक्षत्र की वर्षा की बूँद अगर सीप में वह पड़े तो वह मोती बन जाता है।
9. स्वाति नक्षत्र की वर्षा की बूँद अगर साँप के मुँह में पड़े तो वह क्या हो जाता है?
उत्तर – स्वाति नक्षत्र की वर्षा की बूँद अगर साँप के मुहँ गिरे तो विष बन जाता है।
3. नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दो वाक्यों में दीजिए-
1. रहीम जी भक्ति भावना कैसी है?
उत्तर – जिस प्रकार चकोर नामक पक्षी प्रेमवश सारी रात शीतल, सुंदर और सौम्य शशि को निहारता रहता है, उसी प्रकार रहीम जी का मन भी दिन-रात श्रीकृष्ण की भक्ति में ही लीन रहना चाहता है।
2. मोती के संदर्भ में पानी का क्या अर्थ है?
उत्तर – मोती के संदर्भ में पानी का अर्थ आभा, प्रभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं।
3. अपार धन-संपत्ति आने पर क्या होता है?
उत्तर – अपार धन-संपत्ति आने पर तो अनेक लोग सगे-संबंधी बन जाते हैं। सभी हमारा शुभ-चिंतक होने का दावा करते हैं।
4. हमारी संगति कैसी होनी चाहिए?
उत्तर – हमें ऐसी संगति में रहना चाहिए जिसमें लोगों की मानसिकता अच्छी हो ताकि उनके सान्निध्य से हमारा चतुर्दिग विकास हो सके।
5. समय के अनुसार काम करने से क्या लाभ होगा?
उत्तर – समय इस दुनिया की सबसे कीमती चीज़ है। समय के अनुसार काम करने से हम जीवन में उन्नति कर सकते हैं और अपने कीर्तिमान स्थापित कायम कर सकते हैं।
4. नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर तीन वाक्यों में दीजिए-
1. प्रेम का धागा टूटने पर पहले की भाँति क्यों नहीं हो पाता?
उत्तर – प्रेम का धागा टूटने पर पहले की भाँति नहीं हो पाता क्योंकि प्रेम आपसी विश्वास और एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना से जुड़ा होता है और जब इसमें कड़वाहट आ जाती है तो पहले की भाँति न तो एक दूसरे के प्रति आपसी विश्वास रहता है और न ही एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना। अत: रिश्ते में गाँठ पड़ जाती है।
2. ‘मोती, मानुष, चून’ के संदर्भ में पानी के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – रहीम कह रहे हैं कि पानी का बहुत महत्त्व है पानी के बिना मोती मोती नहीं रह जाता। अर्थात जब मोती की चमक चली जाती है तो वह अपना मूल्य खो बैठता है, उसी प्रकार अगर किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा चली जाए तो वह समाज में नज़रें ऊँची करके नहीं चल सकता और अगर आटे में पानी न मिलाया जाए तो रोटी बना पाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए रहीम कह रहे हैं कि मोती के संदर्भ में चमक, मनुष्य के संदर्भ में इज्ज़त और आटे के संदर्भ में पानी का बहुत महत्त्व होता है।
3. हमें अपनी समस्या को अपने तक ही सीमित रखना चाहिए, क्यों? पठित दोहे के आधार पर लिखिए।
उत्तर – हमें अपनी पीड़ा व समस्याओं के बारे में दूसरों को नहीं बताना चाहिए। ऐसा करने पर लोग हमारे दुख व कष्ट को जानकर मन ही मन यह सोचकर प्रसन्न होंगे कि ठीक हुआ मैं इस समस्या से बच गया। वे हमारी समस्या का समाधान करने के बजाय हमारा उपहास करेंगे। हमारे सामने तो हमारा परम-हितैषी होने का नाटक करेंगे पर पीठ पीछे हमें कमजोर व्यक्तित्व का इंसान कहेंगे और हमारी समस्या का प्रचार कर देंगे।
4. सच्चे मित्र कौन होते हैं?
उत्तर – सच्चे मित्र तो वे ही होते हैं, जो विपत्ति की कसौटी पर कसे जाने पर खरे उतरते हैं। सोना खरा है या खोटा, इसकी परख कसौटी पर घिसने से होती है। इसी प्रकार विपत्ति में जो हर तरह से साथ देता है, वही सच्चा मित्र है।
5. शत्रुता, प्रेम, अभ्यास और यश कैसे अर्जित की जाती है?
उत्तर – शत्रुता, प्रेम, अभ्यास और यश इनके साथ संसार में कोई भी जन्म नहीं लेता है। ये सारी चीज़ें तो मन-मस्तिष्क में हमें अपने परिवार, संगति, समाज और आत्म-मंथन से ही धीरे-धीरे प्राप्त होती हैं। अर्थात् जैसा परिवार, संगति, समाज और आत्म-मंथन होगा मानसिकता भी वैसी ही होगी।
6. समय की महत्ता पर रहीम जी ने क्या कहा है?
उत्तर – रहीम जी कहते हैं समय के अनुसार ही सारे काम होते हैं। पेड़ों पर फल एक निश्चित समय पर लगते हैं और निश्चित समय पर झड़ते भी हैं। हमारा उतावलापन किसी भी काम को समय से पहले पूरा नहीं कर सकता और समय बीत जाने के बाद हमारा पछताना भी समय को पीछे नहीं ले जा सकता। अर्थात् हमें समयानुसार ही काम करने चाहिए।
5. नीचे दिए गए प्रश्न का उत्तर दस-पंद्रह वाक्यों में दीजिए-
1. बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।
रहीम का यह दोहा पाठ के किस दोहे से समानता रखता है? इस दोहे का अर्थ बताते हुए दूसरे दोहे से इसका संबंध बताइए।
उत्तर – रहीम का यह दोहा पाठ के दूसरे दोहे “रहिमन धागा प्रेम का ……………… मिले गाँठि परि जाय॥” से समानता रखता है। दिए गए दोहे में रहीम जी कह रहे हैं कि हमें बहुत ही सोच-समझ कर बातचीत करनी चाहिए क्योंकि अगर हमारे कहे हुए कथन, प्रसंग, व्यक्ति, स्थान और काल के हिसाब से सही न हुए तो बात बिगड़ सकती है और अगर एक बार बात बिगड़ जाए तो फिर वह नहीं बनती। इस बात को पुष्ट करने के लिए रहीम फटे हुए दूध का उदाहरण देते हुए कह रहे हैं कि फटे दूध को जितना भी मथने से मक्खन नहीं निकलता उसी प्रकार एक बार बात बिगड़ जाने पर वह दुबारा नहीं बनती। ठीक उसी प्रकार पठित दोहे में भी रहीम जी ने बताया है कि प्रेम के संबंध को सावधानी से निभाना पड़ता है। थोड़ी-सी चूक से यह संबंध टूट जाता है। टूटने से यह फिर नहीं जुड़ता है और जुड़ने पर भी एक कसक रह जाती है। दोनों स्थितियों में हमें सोच-समझकर ही कदम उठाने चाहिए।
दोहे के कुछ स्मरणीय बिंदु
- इन दोहों के दोहेकार का नाम अब्दुर्रहीम खानखाना है।
- इन दोहों में लौकिक व्यवहार को उज्जवल बनाने हेतु नीति ज्ञान दिया गया है।
- इन दोहों में से अधिकांशत: दोहे में रहीम जी का नाम ‘रहीम’ या ‘रहिमन’ के रूप में आया है।
- प्रत्येक दोहा मानवीय अनुभूतियों पर आधारित है।
- मुस्लिम होते हुए भी रहीम जी श्रीकृष्ण के परम भक्त थे।
- रहीम जी की मित्रता हिंदी साहित्य जगत के श्रेष्ठतम विभूति गोस्वामी तुलसीदास से थी।