आदमी अपनी मेहनत से जो प्राप्त करता है, वही उसके हाथ लगता है। बिना परिश्रम किए किसी भी वस्तु को पाने की इच्छा करना लालच कहलाती है। इस कहानी में नफे के चक्कर में पड़े एक व्यक्ति की दशा का वर्णन अत्यंत मनोविनोद रूप में वर्णित है।
नफ़े के चक्कर में
एक दिन बाबू भाई को नारियल खाने का मन हुआ। उसके बारे में सोचते ही बाबू भाई ने अपने होठों को चटकारा, “वाह क्या मीठा-मीठा-सा स्वाद होगा!”
लेकिन एक छोटी सी समस्या थी। घर में तो एक भी नारियल नहीं था। “ओहो! अब मुझे बाज़ार जाना पड़ेगा और पैसे भी खर्च करने पड़ेंगे।” जूते पहनकर, छड़ी उठाकर, बाबू भाई निकल पड़े।
बाज़ार में लोग अपने-अपने कामों में लगे थे। देखते-पूछते, वे नारियलवाले के पास पहुँच गए।
“ऐ नारियलवाले, नारियल कितने में दोगे?” बाबू भाई ने पूछा।
नारियलवाले ने कहा, “बस, दो रुपए में काका”, बाबू भाई ने आँखें फैलाकर कहा, “बहुत ज़्यादा है। एक रुपए में दे दो!”
नारियलवाले ने कहा, “ना जी ना। दो रुपए, सही दाम। ले लो या छोड़ दो, “ठीक है! ठीक है!” बाबू भाई बड़बड़ाए। “अच्छा तो बताओ, एक रुपए में कहाँ मिलेगा?”
नारियलवाले ने कहा, “यहाँ से थोड़ी दूर जो मंडी है, वहाँ शायद मिल जाए।”
बाबू भाई उसी तरफ़ चल पड़े।
मंडी में कोलाहल फैला हुआ था। व्यापारियों की ऊँची-ऊँची आवाज़ें गूँज रही थीं।
नारियलवाले को देखकर बाबू भाई ने पूछा, “अरे भाई, एक नारियल कितने में दोगे?”
“सिर्फ़ एक रुपया, काका,” नारियलवाले ने जवाब दिया, “जो चाहो ले जाओ। जल्दी।”
बाबू भाई ने कहा, “यह क्या? मैं इतनी दूर से आया हूँ और तुम पूरा एक रुपया माँग रहे हो। पचास पैसे काफ़ी हैं। मैं इस नारियल को लेता हूँ और तुम, यह लो, पकड़ो, पचास पैसे।”
नारियलवाले ने झट बाबू भाई के हाथ से नारियल को छीन लिया और बोला, “माफ़ करो, काका। एक रुपया या फिर कुछ नहीं।” लेकिन बाबू भाई का निराश चेहरा देखकर बोला, “बंदरगाह पर चले जाओ, हो सकता है वहाँ तुम्हें पचास पैसे में मिल जाए।”
बाबू भाई अपनी छड़ी से टेक लगाकर सोचने लगे, “आखिर पचास पैसे तो पूरे पचास पैसे हैं। वैसे भी मेरी टाँगों में अभी भी दम है।”
पैरों को घसीटते हुए, बाबू भाई चलने लगे। सागर के किनारे एक नाववाला बैठा था। उसके सामने दो-चार नारियल पड़े थे। ‘अरे भाई, एक नारियल कितने में दोगे?” बाबू भाई ने पूछा और कहा, “ये तो काफ़ी अच्छे दिखते हैं।”
“काका, यह कोई पूछने वाली बात है? केवल पचास पैसे” नाववाले ने कहा।
“पचास पैसे! बाबू भाई हक्के-बक्के हो गए। इतनी दूर से पैदल आया हूँ। इतना थक गया हूँ और तुम कहते हो पचास पैसे? मेरी मेहनत बेकार हो गई। ना भाई ना! पचास पैसे बहुत ज़्यादा हैं। मैं तुम्हें पच्चीस पैसे दूँगा। यह लो, रख लो।” ऐसा कहते हुए, बाबू भाई झुककर नारियल उठाने ही वाले थे…
नाववाले ने कहा, “ नीचे रख दो। मेरे साथ कोई सौदा – वौदा नहीं। सस्ते में चाहिए? नारियल के बगीचे में चले जाओ। वहाँ ढेर सारे मिल जाएँगे, मनपसंद दाम में।”
बाबू भाई ने फिर अपने आप को समझाया, “इतनी दूर आया हूँ। अब बगीचे तक जाने में हर्ज ही क्या है?” सच बात तो यह थी कि वे काफ़ी थक चुके थे, मगर पच्चीस पैसे बचाने के ख्याल से ही उनमें फुर्ती आ गई।
बाबू भाई नारियल के बगीचे में पहुँच गए। वहाँ के माली को देखकर उससे पूछा, “यह नारियल कितने में बेचोगे?”
माली ने जवाब दिया, “जो पसंद आए ले जाओ, काका, बस, पच्चीस पैसे का एक।
“हे भगवान! पच्चीस पैसे! पूरा रास्ता पैदल आने के बाद भी! मेरी बात मानो, एक नारियल मुफ़्त में ही दे दो, हाँ। देखो, मैं कितना थक गया हूँ।”
बाबू भाई की बात सुनकर माली ने कहा, “अरे, काका! मुफ़्त में चाहिए न? पेड़ पर चढ़ जाओ और जितने चाहो तोड़ लो।
“सच? जितना चाहूँ ले लूँ?” बाबू भाई तो खुशी से फूले न समाए। उन्होंने जल्दी-जल्दी पेड़ पर चढ़ना शुरू कर दिया।
पेड़ पर चढ़ते-चढ़ते बाबू भाई ने सोचा “बहुत अच्छे! मेरी तो किस्मत खुल गई। जितने नारियल चाहे तोड़ लूँ और पैसे भी न दूँ। क्या बात है!”
बाबू भाई ऊपर पहुँच गए और दोनों हाथों को आगे बढ़ाने लगे सबसे बड़े नारियल को तोड़ने के लिए। ज़्ज़्ज़्क! पैर फिसल गए। बाबू भाई ने एकदम से नारियल को पकड़ लिया। उनके दोनों पैर हवा में झूलते रह गए।
बाबू भाई चिल्लाने लगे, “अरे भाई! मदद करो!” उन्होंने नीचे खड़े माली से विनती की।
माली ने कहा, “वो मेरा काम नहीं, काका, मैंने सिर्फ़ नारियल लेने की बात की थी। बाकी सब तुम्हारे और तुम्हारे नारियल के बीच का मामला है।”
तभी ऊँट पर सवार एक आदमी वहाँ से गुज़रा।
“अरे ओ!” बाबू भाई ज़ोर-ज़ोर से बुलाने लगे, “ओ ऊँटवाले! मेरे पैर वापस पेड़ पर टिका दो न! बड़ी मेहरबानी होगी।”
ऊँटवाले ने सोचा, “चलो, मदद कर देता हूँ। मेरा क्या जाता है।”
ऊँट की पीठ पर खड़े होकर उसने बाबू भाई के पैरों को पकड़ लिया। ठीक उसी समय ऊँट को हरे-हरे पत्ते नज़र आए। पत्ते खाने के लालच में ऊँट ने गर्दन झुकाई और अपनी जगह से हट गया। बस, वह आदमी ऊँट की पीठ से फिसल गया! अपनी जान बचाने के लिए उसने बाबू भाई के पैरों को कसकर पकड़ लिया। इतने में एक घुड़सवार आया।
घुड़सवार को देखकर बाबू भाई ने दुहाई दी, “ओ मेरे भाई, मुझे पेड़ पर वापस पहुँचा दो।”
“हम्म्म। एक मिनट भी नहीं लगेगा। मैं घोड़े की पीठ पर चढ़कर इनकी मदद कर देता हूँ” यह सोचकर घुड़सवार घोड़े पर उठ खड़ा हुआ।
घास के चक्कर में घोड़ा ज़रा आगे बढ़ा और छोड़ चला अपने मालिक को ऊँटवाले के पैरों से लटकते हुए।
एक, दो और अब तीनों के तीनों झूलते रहे नारियल के पेड़ से।
“काका! काका! कसके पकड़े रहना, हाँ”, घुड़सवार ने पसीना-पसीना होते हुए कहा, “जब तक कोई बचाने वाला न आए, कहीं छोड़ न देना। मैं आपको सौ रुपए दूँगा।’
“काका! काका!” अब ऊँटवाले की बारी थी। “मैं आपको दो सौ रुपए दूँगा, लेकिन नारियल को छोड़ना नहीं।”
“सौ और दो सौ! बाप रे बाप, तीन सौ रुपए! ” बाबू भाई का सिर चकरा गया। “इतना सारा पैसा!” खुशी से उन्होंने अपनी दोनों बाहों को फैलाया… और नारियल गया हाथ से छूट।
धड़ाम से तीनों ज़मीन पर गिरे। बाबू भाई अपने आप को सँभाल ही रहे थे कि एक बहुत बड़ा नारियल उनके सिर पर आ फूटा।
शब्दार्थ :
नफे का चक्कर – लाभ के पीछे भागना
नारियल – Tender Coconut
छड़ी – सीधी पतली लकडी या लाठी
दाम – कीमत, मूल्य
शायद – संभवतः
बंदरगाह – समुद्र का तट जहाँ जहाज रुकते – ठहरते हैं, (Port)
टाँग – पैर, पाँव
दम – शक्ति
घसीटना – ज़मीन से रगड़ते हुए खींचना
हक्का-बक्का होना – चकित होना
बेकार – व्यर्थ
सौदा – व्यापार
हर्ज – हानि, नुकसान
फुर्ती – उत्साह
मुफ्त – निःशुल्क
फूले न समाना – अधिक प्रसन्न होना
झूलना – लटकना
मामला – विषय
मेहरबानी – कृपा,
पसीना पसीना होना – भयभीत होना,
चकराना – घूम जाना।
मजबूती – कसकर
I. एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
- किसको नारियल खाने का मन हुआ?
उत्तर – एक दिन बाबू भाई को नारियल खाने का मन हुआ।
- बाज़ार में लोग क्या कर रहे थे?
उत्तर – बाज़ार में लोग अपने-अपने कामों में लगे थे।
- बाज़ार में नारियलवाले ने बाबू भाई को कहाँ जाने को कहा?
उत्तर – बाज़ार में नारियलवाले ने बाबू भाई को मंडी जाने को कहा।
- पचास पैसे में नारियल कहाँ मिलनेवाले थे?
उत्तर – पचास पैसे में नारियल बंदरगाह के पास मिलनेवाले थे।
- कितने पैसे बचाने की सोच में बाबू भाई में फुर्ती आ गयी?
उत्तर – पच्चीस पैसे बचाने की सोच में बाबू भाई में फुर्ती आ गई।
- बाबू भाई ने मुफ़्त में नारियल किससे माँगा?
उत्तर – बाबू भाई ने माली से मुफ़्त में नारियल माँगा।
- घुड़सवार ने कितने रुपए देने की बात कही?
उत्तर – घुड़सवार ने सौ रुपए देने की बात कही।
- ऊँट सवार ने कितने रुपए देने की बात कही?
उत्तर – ऊँट सवार ने दो सौ रुपए देने की बात कही।
II. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
- नारियल को झट से छीनकर बाबू भाई से नारियलवाले ने क्या कहा?
उत्तर – नारियल को झट से छीनकर बाबू भाई से नारियलवाले ने कहा, “माफ़ करो, काका। एक रुपया या फिर कुछ नहीं।” लेकिन बाबू भाई का निराश चेहरा देखकर बोला, “बंदरगाह पर चले जाओ, हो सकता है वहाँ तुम्हें पचास पैसे में मिल जाए।”
- बाबू भाई मन-ही-मन क्या सोचने लगे?
उत्तर – बाबू भाई मन-ही-मन सोचने लगे कि अगर नारियलवाले की बात मानकर मैं थोड़ा आगे जाकर बंदरगाह तक पहुँच जाऊँ तो मुझे नारियल कम कीमत पर मिल सकता है और मन में ही यह सोचने लगे, “आखिर पचास पैसे तो पूरे पचास पैसे हैं। वैसे भी मेरी टाँगों में अभी भी दम है।”
- नाववाले से बाबू भाई ने नारियल को पच्चीस पैसे में देने के लिए किस तरह आग्रह किया?
उत्तर – नाववाले से बाबू भाई ने नारियल को पच्चीस पैसे में देने के लिए आग्रह किया और बोले मैं इतनी दूर से पैदल आया हूँ। इतना थक गया हूँ और तुम कहते हो पचास पैसे! मेरी मेहनत बेकार हो गई। ना भाई ना! पचास पैसे बहुत ज़्यादा हैं। मैं तुम्हें पच्चीस पैसे दूँगा।
- बाबू भाई ने किन-किन से मदद माँगी?
उत्तर – बाबू भाई ने सबसे पहले माली से मदद माँगी पर उसने मना कर दिया इसके बाद उन्होंने ऊँटवाले से मदद माँगी और अंत में घोड़ेवाले से।
III. जोड़कर लिखिए :-
- बाबू भाई दो सौ रुपये
- माली सौ रुपये
- हे भगवान! बगीचा
- ऊँटवाला नारियल
- घुड़सवार पच्चीस पैसे!
पसीना
उत्तर –
- बाबू भाई नारियल
- माली बगीचा
- हे भगवान! पच्चीस पैसे!
- ऊँटवाला सौ रुपये
- घुड़सवार पसीना
IV. विलोम शब्द लिखिए :-
- दिन X रात
- मीठा X कड़वा
- छोटी X बड़ी
- बहुत X कम
- सही X गलत
- अच्छा X बुरा
- दूर X पास
- जवाब X सवाल
- सामने X दूर
- पसंद X नापसंद
- खरीदना X बेचना
V. अन्य वचन रूप लिखिए :-
- घर – घर
- जूता – जूते
- रुपया – रुपए
- पैसा – पैसे
- आवाज़ – आवाज़ें
- बात – बातें
- पेड़ – पेड़
- नज़र – नज़रें
- घोड़ा – घोड़े
VI. अन्य लिंग शब्द लिखिए :-
- भाई – बहन
- काका – काकी
- माली – मालिन
- घोडा – घोड़े
- ऊँट – ऊँटनी
- आदमी – औरत
- बाप – माँ
VII. पाठ में ‘वाला’ परसर्ग का प्रयोग हुआ है।
जैसे – नारियलवाला, नाववाला, ऊँटवाला आदि।
‘वाला’ परसर्ग जोड़कर रिक्त स्थान भरिए :-
उदाहरण : ऊँटवाला इधर ही आ रहा है। (ऊँट) पुल्लिंग रूप)
- कामवाली आज काम पर नहीं आयी। (काम) (स्त्रीलिंग रूप)
- आज गीत गानेवाले बहुत हो गये। (गाने) (बहुवचन रूप)
- गहरी नींद सोनेवाले जल्दी जागते नहीं। (सोने) (बहुवचन रूप)
- अच्छा परिणाम चाहनेवाला परिश्रम करता है। (चाहने) (एकवचन रूप)
- संतुलित आहार खानेवाला स्वस्थ रहता है। (खाने) (एकवचन रूप)
VIII. बाबू भाई के नारियल खरीदने का सौदा कितने रुपए से लेकर कहाँ तक आ पहुँचा?
निम्नलिखित उदाहरण के अनुसार तालिका में लिखिए :-
- पहली बारी बाज़ार में नारियलवाले से दो रुपए
- दूसरी बार मंडी में नारियलवाले से एक रुपया
- तीसरी बार बंदरगाह में नावलवाले से पचास पैसे
- चौथी बार बगीचे में माली से नारियल पच्चीस पैसे में
- अंत में स्वयं नारियल के पेड़ पर चढ़कर तोड़ने से मुफ़्त में।
IX. कन्नड़ में अनुवाद कीजिए :-
- घर में तो एक भी नारियल नहीं था।
उत्तर – “ಮನೆಯಲ್ಲಿ ಒಂದೂ ತೆಂಗಿನಕಾಯಿ ಇರಲಿಲ್ಲ.”
- यहाँ से थोड़ी दूर जो मंडी है वहाँ शायद मिल जाए।
उत्तर – “ಇಲ್ಲಿ ಸ್ವಲ್ಪ ದೂರದಲ್ಲಿರುವ ಮಾರುಕಟ್ಟೆಯಲ್ಲಿ ಬಹುಶಃ ಸಿಗಬಹುದು.”
- इतनी दूर से पैदल आया हूँ।
उत्तर – “ಇಷ್ಟು ದೂರ ಪಾದಯಾತ್ರೆಯಿಂದ ಬಂದಿದ್ದೇನೆ.”
- बाबू भाई ने जल्दी-जल्दी पेड़ पर चढ़ना शुरू किया।
उत्तर – “ಬಾಬೂ ಭಾಯ್ ತ್ವರಿತವಾಗಿ ಮರಕ್ಕೆ ಹತ್ತಲು ಪ್ರಾರಂಭಿಸಿದರು.”
- बाबू भाई ने नारियल को पकड़ लिया।
उत्तर – “ಬಾಬೂ ಭಾಯ್ ತೆಂಗಿನಕಾಯಿಯನ್ನು ಹಿಡಿದರು.”
X. पाठ में ‘ना जी ना’ शब्द का प्रयोग हुआ है। यह नकारात्मक भाव को सूचित करता है। वैसे ही ‘हाँ जी हाँ’ शब्द सकारात्मक भाव को सूचित करता है। निम्नलिखित तालिका में कुछ वाक्य दिये गये हैं, उनके सामने सोचकर इन शब्दों को लिखिए:
क्र.सं. वाक्य आप क्या कहते है।
- मैं पुस्तक पढ़ना चाहता हूँ। – हाँ जी हाँ
- मैं दूसरों की निंदा करता हूँ। – ना जी ना
- पर्यावरण की रक्षा करना चाहिए। – हाँ जी हाँ
- पेड़ हमारे मित्र हैं। – हाँ जी हाँ
- परीक्षा में नकल करना है। – ना जी ना
- माता-पिता की बात माननी है। – हाँ जी हाँ
- गुरुजनों का आदर करना है। – हाँ जी हाँ
X.अनुरूपता :-
- दो-चार : शब्द युग्म :: अपने-अपने : दिवरुक्ति शब्द
- काका : काकी :: चाचा : चाची
- माफ़ : नुक्ता शब्द :: मंडी : अनुस्वार
- हे भगवान! : विस्मयबोधक :: कौन? : प्रश्नवाचक
भाषा ज्ञान
द्वित्व शब्द – एक साथ युग्म रूप में प्रयुक्त शब्द द्वित्व शब्द कहलाते हैं।
द्वित्व शब्द –
पुनरुक्ति या दिवरुक्ति – एक ही अर्थ देनेवाले एक शब्द, जैसे – अच्छे-अच्छे, दस-दस, धीरे-धीरे, कभी-कभी, रो-रो खा-खा आदि।
द्वित्व शब्द –
शब्द-युग्म/जोड़ी शब्द, विलोमार्थक, सार्थक-निरर्थक, अन्यलिंग
शब्द-युग्म/जोड़ी शब्द – आज-कल, सुबह-शाम, छोटा-बड़ा आदि,
विलोमार्थक – सुबह-शाम, मार-पीट, झाड़-फूँक, डाँट-डपट आदि,
सार्थक-निरर्थक – चाय-वाय, मेज़-वेज़, पैसा-वैसा आदि,
अन्यलिंग – माँ-बाप, भाई-बहन, लड़का-लड़की, आदि।
- पाठ में से द्वित्व शब्दों को ढूँढ़कर लिखिए :-
उदाहरण : 1. मीठा-मीठा
- हरे-हरे
- अपने-अपने
- देखते-पूछते
- ऊँची-ऊँची
- पसीना-पसीना
- हक्के-बक्के
- जल्दी-जल्दी
- चढ़ते-चढ़ते
10.ज़ोर-ज़ोर
अध्यापन संकेत :-
* छात्र दुकान जाते हैं, तो दुकानदार और उनके बीच का संवाद कैसा रहेगा? लिखवाएँ।
उत्तर – छात्र – नमस्ते काका!
दुकानदार – नमस्ते बेटा! बताओ, क्या चाहिए?
छात्र – मुझे कुछ कॉपी, पेन और पेंसिल चाहिए। क्या आपके पास अच्छी क्वालिटी की कॉपी है?
दुकानदार – हाँ बेटा, हमारे पास कई तरह की कॉपियाँ हैं। तुम्हें बड़ी चाहिए या छोटी?
छात्र – बड़ी कॉपी दिखाइए, जिसमें अच्छी क्वालिटी का पेज हो।
दुकानदार – यह देखो, यह 100 पन्नों वाली है और यह 200 पन्नों वाली।
छात्र – 200 पन्नों वाली अच्छी लग रही है। इसकी कीमत क्या है?
दुकानदार – यह 80 रुपये की है।
छात्र – ठीक है, एक कॉपी दे दीजिए। और पेन कौन-कौन से उपलब्ध हैं?
दुकानदार – हमारे पास जेल पेन और बॉल पेन दोनों हैं। कौन-सा चाहिए?
छात्र – एक जेल पेन और दो बॉल पेन दे दीजिए। साथ में दो पेंसिल भी चाहिए।
दुकानदार – यह लीजिए, कुल 150 रुपये हुए।
छात्र – (पैसे देते हुए) ये लीजिए काका।
दुकानदार – धन्यवाद बेटा! पढ़ाई अच्छे से करना।
छात्र – धन्यवाद काका, फिर मिलेंगे!
* कक्षा में स्थानीय लोककथा को सुनवाएँ।
उत्तर – बहुत समय पहले की बात है, ओड़िशा के एक छोटे से तटीय गाँव में धनु नाम का एक मछुआरा रहता था। वह बहुत मेहनती और ईमानदार था, लेकिन उसकी किस्मत हमेशा उसका साथ नहीं देती थी। कई बार समुद्र में जाने के बाद भी उसे बहुत कम मछलियाँ मिलतीं, जिससे उसका परिवार भूखा रह जाता।
एक दिन, जब वह समुद्र में जाल डाल रहा था, तभी अचानक एक ज़ोरदार लहर आई और उसका जाल फट गया। वह बहुत दुखी हुआ और किनारे पर बैठकर सोचने लगा, “क्या समुद्र देवता मुझसे नाराज़ हैं?”
उसी समय, एक सुंदर पर सुनहरी मछली उसके पास आकर बोली, “धनु, तुम इतने उदास क्यों हो?”
धनु को आश्चर्य हुआ कि एक मछली उससे बात कर रही थी! उसने अपनी सारी परेशानियाँ उसे बताईं। मछली मुस्कुराई और बोली, “अगर तुम सच्चे मन से समुद्र की पूजा करोगे और किसी को धोखा नहीं दोगे, तो समुद्र देवता तुम्हारी मदद करेंगे।”
धनु ने मछली की बात मान ली और हर सुबह समुद्र देवता की प्रार्थना करने लगा। कुछ ही दिनों में उसका भाग्य बदल गया! अब वह जब भी समुद्र में जाता, उसे ढेर सारी मछलियाँ मिलतीं, और उसका परिवार कभी भूखा नहीं रहता।
गाँव के लोगों को जब यह बात पता चली, तो वे भी समुद्र की पूजा करने लगे और मछलियों को सम्मान देने लगे। तब से, ओड़िशा के तटीय क्षेत्रों में यह मान्यता बन गई कि समुद्र देवता की कृपा से ही मछुआरों का जीवन चलता है, और हर सुबह समुद्र की पहली लहर (ढेउ) को प्रणाम किया जाता है।
शिक्षा –
यह लोककथा हमें सिखाती है कि प्रकृति का सम्मान करना चाहिए, सच्चाई और ईमानदारी से जीवन जीना चाहिए, और कठिन समय में धैर्य रखना चाहिए।