पी. एस. रामानुजम् का जन्म 6 अक्तूबर 1941 को चामराजनगर के बेडमूडलु गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम प्रतिवादी भयंकर संपतकुमार आचार्य था। माता का नाम इंदिरम्मा था। प्रारंभिक शिक्षा चामराजनगर के हरदनहल्ली में शुरू हुई। मैसूरु के महाराजा कॉलेज में बी.ए. में पाँच स्वर्ण पदक लेकर उत्तीर्ण हुए। संस्कृत में इन्होंने पीएच.डी. और डी. लिट. की उपाधि प्राप्त की।
बचपन से ही कविता, कहानी लिखने की रुचि इनमें थी। आई. पी. एस. में छटा रैंक प्राप्त करके कर्नाटक के पुत्तूरु, कोडगु, कोलार आदि स्थानों में ए.एस.पी., एस.पी., डी.जी.पी के पदों पर काम करके निवृत्त हुए। ‘बिल्ली की भाषा’ और अन्य लेखों के संकलन से इनको कीर्ति मिली। 30 से अधिक रचनाएँ इन्होंने की हैं। साहित्य सेवा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा पुलिस विभाग में योग्य सेवा के लिए इनको राष्ट्रपति पदक भी प्राप्त हुआ है। प्रस्तुत व्यंग्य रचना ‘बिल्ली की भाषा’ से चुना गया है। इसका अनुवाद प्रो. नंदिनी गुंडुराव जी ने किया है।
इस व्यंग्य रचना में लेखक ने अंग्रेज़ी भाषा मोह के प्रभाव का तीक्ष्ण व्यंग्य किया है। हमारे पठन-लेखन से लेकर गाँव-शहरों के नाम, राजा-महाराजाओं के नाम और यहाँ तक कि भगवानों के नामों का भी संक्षिप्तीकरण करने से होनेवाली असमंजसता के बारे में प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। छात्रों को इस रचना द्वारा सुझाव दिया गया है कि वे अपने नाम और जन्मस्थानों की पहचान बनाए रखने के लिए पूर्वाक्षर का पूर्वाग्रह छोड़ दें।
पूर्वाक्षर का पूर्वाग्रह
आजकल शहरों के नाम पूर्वाक्षरों में यानी अंग्रेजी के इनिशियलों में सिमट रहे हैं। यह बड़े खेद की बात है। इन इनिशियलों के मारे हमारे कर्नाटक के शहरों के नाम अपना कन्नड़पन, अपनी पहचान, अपना अस्तित्व खो रहे हैं।
एक ज़माना था जब केवल आदमियों के नाम के पहले इनिशियल लगता था। आज हम ये पूर्वाक्षर S.K.D.R. Circle शहरों के नामों को भी बाँट रहे हैं। समझ में नहीं आता इसके पीछे दीर्घ का लघु बनाने की मानव- सहज प्रवृत्ति है या यह कोई नया फैशन है। अथवा यह भी हो सकता है कि लोकोपयोगी विभाग वालों ने गाँवों के नाम लिखने के लिए छोटे फलक बनाए हों, फिर उनके आकारानुसार नामों को भी काट छाँटकर छोटा बनाया गया हो।
इस संकोच – प्रक्रिया की बलि बने हुए कुछ गाँवों के नामों का परिशीलन करना ठीक रहेगा। सुंदर ‘तिरुमकूडलु नरसीपुर’ अब ‘टी नरसीपुर’ बन गया है। आगे आने वाले संशोधकों को पथभ्रष्ट करने का काम है यह। आगे चलकर कभी दैववशात, हमारे देश से अंग्रेज़ी भाषा के हट जाने का सौभाग्य अगर प्राप्त हुआ, तो इन इनिशियलों का अर्थ ढूँढ़ना मुश्किल हो जाएगा। अनेक खोजें की जाएँगी और विचित्र परिणाम प्राप्त होंगे। संशोधक शायद इस निर्णय पर पहुँचेंगे कि ‘टी नरसीपुर’ नाम प्रायशः नरसीपुर में टी (चाय) के बागान होने के कारण आया होगा।
वह तो फिर भी अच्छा ही है। समझ लीजिए कि ‘करीदोड्डन पाल्य’ नामक एक गाँव है। यह ‘के. डी. पाल्या’ बन जाएगा। क्रमशः वह ‘केडी पाल्य’ में रूपांतरित हो जाएगा और गाँव को बदनाम कर देगा। आगे चलकर एक दिन संशोधक निर्णय लेंगे कि इस गाँव में ‘केडीयों’ (गुंडे) के होने से यह नाम आया होगा। और इस तरह उस गाँव की निष्कलंक कीर्ति में दाग लग जाएगा। अंग्रेज़ी के पूर्वाक्षरों से होनेवाली हानि देखी न आपने?
अब ‘होले नरसीपुर’ की कहानी सुनिए। मनोहर, मंजुल निनाद करती हेमावती नदी और नरसिंह का वह भव्य मंदिर, वह होले नरसीपुर आज एच.एन. पुरा बन गया है। क्रमशः इसका हेच्चिपुर (फालतू नगर) अथवा ‘एच्चमपुर’ में कन्नड़ीकरण हो जाएगा, इसके इर्द-गिर्द दंतकथाएँ फैल जाएँगी। कुछ भी कहिए नदी, नरसिंह, सब अंग्रेज़ी के आद्याक्षरों में डूबकर, उनकी सुंदरता लोकोपयोगी विभाग के पत्थरों में पत्थर बन गई है। यह होले नरसीपुरवालों का, हेमावती नदी का और नरसिंह का भी बदनसीब ही है।
‘चिक्कनायकन हल्ली’ को ही लीजिए, आज वह ‘सी. एन. हल्ली’, बन गया है। आगे चलकर वह ‘सीयनहल्ली’ भी हो सकता है। वैसे ही ‘चन्नरायपट्टण’ ‘सी. आर. पट्टण’ बन गया है। ‘हेग्गडदेवनकोटे’ ‘एच. डी. कोटे’ बना है। इन प्रदेशों पर जिन-जिन नायकों ने राजाओं ने, देवताओं ने राज किया था, उन सबको पूर्वाक्षरों में छिपा देना बड़ा ही दर्दनाक विषय है।
‘कालमुद्दन दोड्डी’ आज ‘के. एम. दोड्डी’ कहलाता है। पता नहीं कब श्रवणबेलगोल ‘एस.बी. गोला’ बन जाएगा, विजयपुर ‘वि. पुर’ बन जाएगा। दो-तीन शब्दों से बने नामों में पूर्वाक्षरों के प्रयोग से ह्रस्वीकरण हो जाता है। लगता है, आजकल लंबे-लंबे नाम पुकारने के लिए लोगों के पास समय नहीं है। एक ज़माना था जब ‘तिरुमले श्रीनिवासवरद रंगनाथ देशिक ताताचार’ आदि नाम रखे जाते थे। सुबह नाम पुकारना प्रारंभ करो तो समाप्त होते-होते शाम हो जाती थी। आज समयाभाव के कारण हम मोहन, संदीप जैसे छोटे-छोटे नाम रख रहे हैं। लेकिन शहरों-गाँवों के नामों को तो उनके हाल पर ही छोड़ सकते थे…
शायद अंग्रेज़ों ने भी अपने गाँवों के नामों को इस तरह विकृत नहीं किया होगा। इस एक विषय में हम उनसे भी आगे बढ़ गए हैं और सब नामों को हमने छोटे-छोटे फॉर्मूलों की तरह बना डाला है। इस नाममय संसार में ‘झूठो है यह जग’ वाले सिद्धांतानुसार हम उनके आद्य नामों को ‘अदृश्य’ बना रहे हैं।
मुझे लगता है, व्यवहार में आसानी लाने के लिए आगे चलकर हमारे सारे व्यवहारों में इसी तरह की ह्रस्व अभिव्यक्ति का स्टाइल चल पड़ेगा। उदाहरण के लिए अगर कोई कहे कि “मैंने एक संकल्प किया है, उसके लिए टी. डी. जाकर वि.सी. के दर्शन कर आऊँगा तो हमें आश्चर्य में नहीं पड़ना चाहिए।” इसका अर्थ यह होगा कि तिरुपति देवालय जाकर वेंकटाचलपति के दर्शन कर आऊँगा। उसी तरह अगर कोई कहे कि “एम कोटे जाकर सी. आर. स्वामी से मिलकर आऊँगा” तो हमें उलझन में नहीं पड़ना चाहिए, इसका मतलब यह है कि मेलुकोटे जाकर चलुवराय स्वामी से मिलकर आऊँगा। वैसे ही अगर कोई आस्तिक महाशय कहे कि “वि.जी. स्वामी का अभिषेक कराना है” तो समझना चाहिए कि वेणु गोपाल स्वामी का अभिषेक किया जा रहा है।
हमारा ‘बिलीगिरिरंगनबेट्ट’ तो बी. आर. हिल्स बनकर पूरा अंग्रेज़ी हो गया है। उसमें वास्तव्य करने वाला ‘रंगनाथ स्वामी’ भी आर. एन. स्वामी बन गया है। आप डी. आर. दुर्ग जानते हैं? वही अपना देवरायन दुर्ग। वहाँ दो स्वामीजी रहते हैं, एक हैं वाई. एन. स्वामी और दूसरे बी. एन. स्वामी याने योगानरसिंह स्वामी और भोगानरसिंह स्वामी। नरसीपुर में जी. एन. स्वामी रहते हैं याने गुंजा नरसिंह स्वामी।
अत्यंत मनोहर, सुंदर वृंदावन गार्डन्स वाला कृष्णराज सागर आज नीरस के.आर. सागर हो गया है। इसका लघुकरण वहीं पर नहीं रुका है, वह के. आर. एस. बनकर अंग्रेज़ी वर्णमाला के तीन अक्षरों में सिमटकर अपनी पहचान ही खो बैठा है। यह भी हमारा दुर्दैव है कि श्रीरंगपट्टण एस. आर. पट्टण बनकर रंगनाथ स्वामी आज आर. एन. स्वामी बन गया है।
व्यक्तियों के नामों का इन इनिशियलों में छुपना तो ठीक है, पर गाँवों के नामों के लिए इसकी ज़रूरत नहीं है, यह तो सरासर अन्याय है। व्यक्तियों के नामों के लिए इस प्रकार ह्रस्वीकरण आवश्यक है, नहीं तो कोई किसी को पुकार नहीं सकेगा। अपने नाम के पीछे कुल का नाम, गाँव का नाम, बाप का नाम आदि सब कुछ लगा लेने वाले का इस देश में नाम लेकर पुकारना एक महासाहस बन जाता है। ये बड़े-बड़े नाम याद रखकर पुकारते – पुकारते शाम हो जाती है।
पूरी तरह से व्यक्तिगत होने पर भी इस संदर्भ में एक घटना के बारे में कहने को जी चाहता है। मैं आय्. पी. एस. उत्तीर्ण होकर आगे की पढ़ाई के लिए माऊंट आबू की शिक्षा – अकादमी में गया था। पहले दिन हम सबको एक कतार में खड़ा कर एक अफसर हम सबके नाम लिखने लगे। हम कवायद मैदान में ही खड़े होकर नाम बताने लगे। सबको अपना- अपना पूरा नाम बताना था याने पूर्वाक्षरों का विस्तार कर बताना था। इस तरह नामों को बताना प्रारंभ हुआ। पहले ने अपना नाम महेंद्रनारायण सिंह बताया, दूसरे ने देवव्रत बंद्योपाध्याय। ऐसे ही चल रहा था। मेरी बारी आई। मैंने एक ही साँस में अबाधगति से अपने पी. एस. इन पूर्वाक्षरों का विस्तार कर ‘प्रतिवादी भयंकर संपतकुमाराचार्य रामानुजम्’ बताया। उस अफसर ने क्षण-भर के लिए मुझे गर्दन उठाकर देखा और तीक्ष्ण स्वरों में दृढ़तापूर्वक कहा, “मेरे ऑफिस में आकर इसे लिखा जाना” और बिना कुछ लिखे वे अगले शिक्षार्थी का नाम लिखने लगे। नाम अगर इतना लंबा हो तो बेचारे और क्या कर सकते हैं?
खैरियत इस बात की है कि अब तक हमने इस पूर्वाक्षरों की पद्धति का प्रयोग पाठ्य-पुस्तकों पर नहीं किया – विशेषतः इतिहास की पाठ्य-पुस्तक पर। अगर ऐसा कुछ हो जाए तो राणा प्रतापसिंह आर. पी. सिंह बन जाएगा, औरंगजेब ए. जेब बनेगा और समुद्रगुप्त एस. गुप्त हो जाएगा। चंद्रगुप्त सी. गुप्त और अमात्य राक्षस ए. राक्षस बनेगा, पुलिकेशी पी. केशी और मयूर वर्मा एम. वर्मा बनेगा।
इस तरह से नामों के अर्धभाग इनिशियलों में छिपते ही जा रहे हैं। कभी-कभी तो पूरा का पूरा नाम ही अंग्रेज़ी वर्णों में सिकुड़ जाता है। पाठशाला – कॉलेजों में यह आम बात है। सभी अध्यापक विद्यार्थियों की जिह्वा पर अंग्रेज़ी के वर्ण बनकर सुशोभित होते है।
अंग्रेज़ी वर्णों का प्रभाव हमारे नामों पर हुआ है, इसमें कोई शक नहीं है, यह एक नया वर्ण व्यामोह है। इसका हमें त्याग करना चाहिए। कन्नड़ के वर्णों का प्रयोग ही हमारे लिए क्षेमकारक है। कन्नड के उन सुंदर नामों का संपूर्ण रूप में प्रयोग करना और भी अच्छा है। हमारा उच्चारण भी शुद्ध होगा और नाम भी बच जाएँगे।
शब्दार्थ :
खेद – दुःख, व्यथा
के मारे – के कारण
शहर – नगर
पहचान – परिचय
फैशन – शोभाचार, बनावट
बाँट – वितरण
ढूँढना – खोजना
मुश्किल – कष्ट, मुसीबत
इर्द-गिर्द – आस-पास
पत्थर – शिला
हाल – स्थिति
संसार – दुनिया, विश्व
उलझन – बाधा, अटकाव
कतार – पंक्ति
खैरियत – कुशल-क्षेम
अभिवादन – नमस्कार, प्रणाम
शक – संदेह, शंका
व्यामोह – अज्ञान
क्षेमकारक – लाभदायक
I. एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
- शहरों के नाम किसमें सिमट रहे हैं?
उत्तर – आजकल शहरों के नाम पूर्वाक्षरों में याने अंग्रेजी के इनिशियलों में सिमट रहे हैं।
- किन गाँवों के नामों का परिशीलन करना ठीक रहेगा?
उत्तर – उन गाँवों के नामों का परिशीलन करना ठीक होगा जो संकोच-प्रक्रिया के कारण अपने मूल रूप से काफी दूर हो गए हैं, जैसे कि ‘तिरुमकूडलु नरसीपुर’ का अब ‘टी नरसीपुर’ बन जाना।
- हेमावती नदी कहाँ बहती है?
उत्तर – हेमावती नदी मुख्य रूप से कर्नाटक राज्य में बहती है और कावेरी नदी में मिल जाती है।
- लोगों के पास किसके लिए समय नहीं है?
उत्तर – आजकल लंबे-लंबे नाम पुकारने के लिए लोगों के पास समय नहीं है।
- किस कारण से आज हम नाम छोटे-छोटे रख रहे हैं?
उत्तर – आज हम समयाभाव, मुखसुख और लेखन तीव्रता के कारण नाम छोटे-छोटे रख रहे हैं।
- हमें क्या त्याग करना चाहिए?
उत्तर – हमारा अंग्रेज़ी वर्णों के साथ जो व्यामोह (आकर्षण) है, हमें उसका त्याग करना चाहिए।
- इस पाठ के लेखक का पूरा नाम क्या है?
उत्तर – इस पाठ के लेखक का पूरा नाम ‘प्रतिवादी भयंकर संपतकुमाराचार्य रामानुजम्’ है।
II. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
- टी. नरसीपुर के संक्षिप्तीकरण के बारे में लेखक के क्या विचार हैं?
उत्तर – टी. नरसीपुर के संक्षिप्तीकरण के बारे में लेखक के विचार हैं कि यह अंग्रेजी भाषा के प्रभाव के कारण, मुखसुख के कारण और दीर्घ का लघु बनाने की मानव-सहज प्रवृत्ति के कारण ही हुआ है। इसमें लेखक एक संभावना यह भी प्रकट करते हैं कि अगर भारत से कभी अंग्रेजी भाषा लुप्त हो जाए तो संशोधक शायद इस निर्णय पर पहुँचेंगे कि ‘टी नरसीपुर’ नाम प्रायशः नरसीपुर में टी (चाय) के बागान होने के कारण आया होगा।
- ‘करीदोड्डन पाल्य’ के बारे में लेखक क्या कहते हैं?
उत्तर – ‘करीदोड्डन पाल्य’ के बारे में लेखक कहते हैं कि अगर इस गाँव को ‘के. डी. पाल्या’ कहा जाने लगा और भविष्य में वह ‘केडी पाल्य’ में रूपांतरित हो गया तो गाँव बदनाम हो जाएगा। लेखक आगे चलकर एक दिन संशोधक निर्णय लेंगे कि इस गाँव में ‘केडीयों’ (गुंडे) के होने से यह नाम आया होगा।
- इनिशियलों में सिमटे कितने गाँवों के नाम लेखक ने लिया है? वे कौन-कौन से हैं?
उत्तर – इनिशियलों में सिमटे पाँच गाँवों के नाम लेखक ने लिया है ‘तिरुमकूडलु नरसीपुर’ अब ‘टी नरसीपुर’ बन गया है। ‘चिक्कनायकन हल्ली’ ‘सी. एन. हल्ली’, बन गया है। ‘करीदोड्डन पाल्य’ गाँव को ‘के. डी. पाल्या’ कहा जाने लगा और ‘कालमुद्दन दोड्डी’ आज ‘के. एम. दोड्डी’ कहलाता है। ‘बिलीगिरिरंगनबेट्ट’ तो बी. आर. हिल्स बनकर पूरा अंग्रेज़ी हो गया है।
- के. आर. एस नाम अपनी पहचान क्यों खो बैठी है?
उत्तर – अत्यंत मनोहर, सुंदर वृंदावन गार्डन्स वाला कृष्णराज सागर आज नीरस रूप में के.आर. सागर से बदलते हुए के. आर. एस. बनकर अंग्रेज़ी वर्णमाला के तीन अक्षरों में सिमटकर अपनी पहचान ही खो बैठा है।
III. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :-
- आगे आनेवाले संशोधकों को ___________ करने का काम है।
उत्तर – पथभ्रष्ट
- सबको पूर्वाक्षरों में छिपा देना बड़ा ही ___________ विषय है।
उत्तर – दर्दनाक
- सुबह नाम ___________ प्रारंभ करो तो समाप्त होते-होते ___________ हो जाती थी।
उत्तर – पुकारना, शाम
- कभी-कभी तो पूरा का पूरा नाम ही ___________ में सिकुड़ जाता है।
उत्तर – अंग्रेज़ी
- सभी ___________ विद्यार्थियों की जिह्वा पर अंग्रेज़ी के वर्ण बनकर सुशोभित होते हैं।
उत्तर – अध्यापक
IV. जोड़ी मिलाइए :-
- होले नरसीपुर 1. तिरुपति देवालय
- बी. आर. हिल्स 2. कृष्णराज सागर
- टी. डी 3. मयूर वर्मा
- के. अर. एस 4. रंगनाथ स्वामी
- एम. वर्मा 5. नरसिंह मंदिर
उत्तर –
- होले नरसीपुर 1. नरसिंह मंदिर
- बी. आर. हिल्स 2. रंगनाथ स्वामी
- टी. डी 3. तिरुपति देवालय
- के. अर. एस 4. कृष्णराज सागर
- एम. वर्मा 5. मयूर वर्मा
V. विलोम शब्द लिखिए :-
- अपना X पराया
- सहज X कठिन
- नया X पुराना
- सुंदर x असुंदर
- मुश्किल x आसान
- अच्छा X बुरा
- कीर्ति x अपकीर्ति
- हानि x लाभ
- पास x दूर
- सुबह x शाम
VI. निम्नलिखित विलोम शब्दों को सही शब्दों के साथ जोड़कर लिखिए :-
- आस्तिक x अनुत्तीर्ण
- पता X बेशक
- दिन x नास्तिक
- शक X रात
- उत्तीर्ण X लापता
उत्तर – 1. आस्तिक x नास्तिक
- पता X लापता
- दिन x रात
- शक X बेशक
- उत्तीर्ण X अनुत्तीर्ण
VII. अन्य वचन रूप लिखिए :-
- बात – बातें
- प्रवृत्ति – प्रवृत्तियाँ
- गुंडा – गुंडे
- नदी – नदियाँ
- दंतकथा – दंतकथाएँ
- घटना – घटनाएँ
- पुस्तक – पुस्तकें
- देवता – देवतागण
VIII. अन्य लिंग रूप लिखिए :-
- आदमी – औरत
- नायक – नायिका
- राजा – रानी
- देवता – देवी
- स्वामी – स्वामिनी
- बाप – माँ
- अध्यापक – अध्यापिका
IX. कन्नड में अनुवाद कीजिए :-
- चिक्कनायकन हल्ली सी. एन. हल्ली बन गया है।
उत्तर – ಚಿಕ್ಕನಾಯಕನ ಹಳ್ಳಿ ಸಿ. ಎನ್. ಹಳ್ಳಿ ಆಗಿದೆ.
- आज समयाभाव के कारण छोटे-छोटे नाम रख रहे हैं।
उत्तर – ಇಂದು ಕಾಲದ ಕೊರತೆಯಿಂದ ಚಿಕ್ಕಚಿಕ್ಕ ಹೆಸರುಗಳನ್ನು ಇಡಲಾಗುತ್ತಿದೆ.
- रंगनाथ स्वामी भी आर. एन. स्वामी बन गया है।
उत्तर – ರಂಗನಾಥ ಸ್ವಾಮಿ ಕೂಡ ಆರ್. ಎನ್. ಯಜಮಾನರಾದರು.
- अंग्रेज़ी वर्णों का प्रभाव हमारे नामों पर हुआ है।
उत्तर – ಆಂಗ್ಲ ಅಕ್ಷರಗಳ ಪ್ರಭಾವ ನಮ್ಮ ಹೆಸರುಗಳ ಮೇಲೆ ಆಗಿದೆ.
X. अनुरूपता :-
- करीदोड्डुन पाल्या : के.डी. पाल्या :: होले नरसीपुरा : एच.एन. पुरा
- पूर्वाक्षर : उपसर्ग शब्द :: कन्नड़पन : प्रत्यय शब्द
- ए. जेब : औरंगजेब :: एस. गुप्त : समुद्रगुप्त
- बी. आर. हिल्स: बिलिगिरि रंगनबेट्टा :: डी. आर. दुर्ग : देवरायन दुर्ग।
भाषा ज्ञान
‘कि’ और ‘की’ का प्रयोग
‘कि’
समुच्चयबोधक अव्यय के रूप में।
मुख्य वाक्य को आश्रित वाक्य / उपवाक्य से जोड़ने के लिए इस अव्यय का प्रयोग होता है।
उदाहरण : समझ लीजिए कि करीदोड्डन पाल्य नामक एक गाँव है।
‘की’
संबंधबोधक कारक प्रत्यय के रूप में।
उदाहरण : (i) दशरथ की तीन रानियाँ थीं।
(ii) बगीचे की हवा शुद्ध होती है।
- ‘करना’ क्रिया के भूतकाल का स्त्रीलिंग रूप है।
उदाहरण : (i) सिपाही ने देश की रक्षा की।
(ii) उषा ने परीक्षा में नकल नहीं की।
- अन्य कुछ संबंधसूचक अव्ययों के पूर्व ‘की’ का प्रयोग होता है।
उदाहरण : की ओर, की तरफ, की भाँति, की बगल, की अपेक्षा आदि।
- ‘की’ की सहायता से वाक्य पूर्ण कीजिए :-
- मेरी बेटी ने आई.ए.एस की परीक्षा ली है।
- छात्रों की कोई गलती नहीं थी।
- कर्नाटक की राजधानी बेंगलूरु है।
- रमेश ने चोरी नहीं की थी।
- शिल्पा ने गलती नहीं की।
II.’कि’ समुच्चयबोधक अव्यय के प्रयोगवाले पाँच वाक्य पाठ में से चुनकर लिखिए और अर्थ समझिए।
उत्तर – यह भी हो सकता है कि लोकोपयोगी विभाग वालों ने गाँवों के नाम लिखने के लिए छोटे फलक बनाए हों
संशोधक शायद इस निर्णय पर पहुँचेंगे कि ‘टी नरसीपुर’ नाम प्रायशः नरसीपुर में टी (चाय) के बागान होने के कारण आया होगा।
समझ लीजिए कि ‘करीदोड्डन पाल्य’ नामक एक गाँव है।
आगे चलकर एक दिन संशोधक निर्णय लेंगे कि इस गाँव में ‘केडीयों’ (गुंडे) के होने से यह नाम आया होगा।
उदाहरण के लिए अगर कोई कहे कि “मैंने एक संकल्प किया है
इसका अर्थ यह होगा कि तिरुपति देवालय जाकर वेंकटाचलपति के दर्शन कर आऊँगा।
अगर कोई कहे कि “एम कोटे जाकर सी. आर. स्वामी से मिलकर आऊँगा” तो हमें उलझन में नहीं पड़ना चाहिए
यह भी हमारा दुर्दैव है कि श्रीरंगपट्टण एस. आर. पट्टण बनकर रंगनाथ स्वामी आज आर. एन. स्वामी बन गया है।
खैरियत इस बात की है कि अब तक हमने इस पूर्वाक्षरों की पद्धति का प्रयोग पाठ्य-पुस्तकों पर नहीं किया।
अध्यापन संकेत :-
पाठ में दिये गये गाँव नगरों के नामों के अलावा अन्य अनेक जगहों के नामों का संक्षिप्तीकरण हुआ है। छात्रों से उनकी एक सूची बनवाएँ।
उत्तर – जगहों (स्थानों) के नामों के संक्षिप्तीकरण (शॉर्ट फॉर्म या अब्रीविएशन) का उपयोग आमतौर पर सुविधा और संक्षिप्तता के लिए किया जाता है। नीचे कुछ प्रमुख जगहों के नामों के संक्षिप्त रूप दिए गए हैं:
भारत में जगहों के संक्षिप्तीकरण :-
मुंबई – BOM (छत्रपति शिवाजी महाराज अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कोड)
दिल्ली – DEL (इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कोड)
कोलकाता – CCU (नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कोड)
चेन्नई – MAA (अन्ना अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कोड)
बेंगलुरु – BLR (केम्पेगौड़ा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कोड)
हैदराबाद – HYD (राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कोड)
पुणे – PNQ
जयपुर – JAI
अहमदाबाद – AMD
लखनऊ – LKO
नोएडा – New Okhla Industrial Development Authority
दुनिया के प्रमुख स्थानों के संक्षिप्तीकरण :-
न्यूयॉर्क – NYC (JFK, LGA और EWR एयरपोर्ट कोड)
लंदन – LON (LHR, LGW, STN जैसे एयरपोर्ट कोड)
पेरिस – PAR (CDG – चार्ल्स डी गॉल एयरपोर्ट)
दुबई – DXB
सिंगापुर – SIN
टोक्यो – TYO (HND – हनेडा और NRT – नारिटा एयरपोर्ट कोड)
सिडनी – SYD
हांगकांग – HKG
शंघाई – SHA
मॉस्को – MOW
भारतीय राज्यों के संक्षिप्तीकरण (ISO कोड) :-
उत्तर प्रदेश – UP
मध्य प्रदेश – MP
राजस्थान – RJ
महाराष्ट्र – MH
गुजरात – GJ
तमिलनाडु – TN
कर्नाटक – KA
पंजाब – PB
बिहार – BR
पश्चिम बंगाल – WB