रहीम का जन्म 17 दिसंबर 1556 को लाहौर में हुआ था। उनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना है। उनके पिता का नाम बैरमखान, माता का नाम सुल्ताना बेगम था। रहीम सतसई, बरवै नायिका भेद, श्रृंगार सोरठा आदि इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इनके काव्य में नीति, भक्ति, प्रेम, श्रृंगार का सुंदर समावेश हुआ है।
छात्र इन दोहों के द्वारा सज्जनों तथा महान् लोगों का स्वभाव समझ सकते हैं। इसी प्रकार छोटे तथा साधारण वस्तुओं के महत्त्व की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
रहीम के दोहे –
- तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम परकाजहित, संपत्ति सँचहि सुजान॥
- जो रहीम उत्तम प्रकृति का करी सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग॥
- ‘रहिमन’ देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
- बड़े बड़ाई न करै, बड़े न बोलें बोल।
‘रहिमन’ हीरा कब कहै, लाख टका मम मोल॥
रहीम के दोहे – व्याख्या सहित
- तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम परकाजहित, संपत्ति सँचहि सुजान॥
शब्दार्थ –
तरुवर = वृक्ष (पेड़)
सरवर = तालाब (सरोवर)
पियहि न पान = स्वयं जल नहीं पीता
परकाजहित = दूसरों के हित के लिए
संपत्ति सँचहि सुजान = बुद्धिमान लोग संपत्ति का संचय दूसरों के लाभ के लिए करते हैं
अर्थ –
रहीम इस दोहे में परोपकार की महानता को बताते हैं। वे कहते हैं कि वृक्ष अपने उगाए हुए फल स्वयं नहीं खाते, और तालाब भी अपना जल स्वयं नहीं पीते। इसी प्रकार, बुद्धिमान और महान व्यक्ति अपनी संपत्ति का संचय केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज और दूसरों की भलाई के लिए करते हैं।
व्याख्या –
इस दोहे में रहीम ने परोपकार, उदारता और समाज सेवा का संदेश दिया है। वे बताते हैं कि जिस तरह पेड़ और जलाशय दूसरों के लिए फल और पानी उपलब्ध कराते हैं, उसी प्रकार सच्चे और ज्ञानी लोग अपनी धन-संपत्ति और ज्ञान को समाज की भलाई के लिए उपयोग करते हैं। यह दोहा हमें सिखाता है कि स्वार्थी न बनकर हमें अपने संसाधनों को दूसरों के हित में लगाना चाहिए। सेवा और परोपकार ही सच्चे जीवन के लक्षण हैं।
विशेष –
स्वार्थ से ऊपर उठकर परोपकार करना चाहिए।
जो भी धन-संपत्ति या ज्ञान प्राप्त हो, उसे दूसरों की भलाई में लगाना चाहिए।
सेवा और उदारता से व्यक्ति का सम्मान बढ़ता है और वह सच्ची महानता प्राप्त करता है।
- जो रहीम उत्तम प्रकृति का करी सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग॥
शब्दार्थ –
उत्तम प्रकृति = श्रेष्ठ स्वभाव वाला, महान चरित्र वाला
कुसंग = बुरी संगति
चंदन = सुगंधित पवित्र वृक्ष
विष व्यापत नहीं = विष का प्रभाव नहीं होता
भुजंग = साँप
अर्थ –
रहीम इस दोहे में बताते हैं कि उत्तम स्वभाव वाला व्यक्ति बुरी संगति का प्रभाव नहीं लेता। जैसे चंदन के वृक्ष से लिपटे रहने के बावजूद साँप का विष चंदन में नहीं समा पाता, उसी प्रकार महान और सच्चे चरित्र के व्यक्ति पर बुरे लोगों की संगति का असर नहीं होता।
व्याख्या –
यह दोहा हमें चरित्र और नैतिकता की महानता का संदेश देता है। जब किसी व्यक्ति का स्वभाव और आदर्श उच्च होते हैं, तो वह बुरी संगति में रहकर भी प्रभावित नहीं होता, जैसे चंदन का पेड़ सर्पों के लिपटे रहने के बावजूद अपनी सुगंध और पवित्रता बनाए रखता है, उसी तरह उत्तम व्यक्ति भी नकारात्मक माहौल में अपनी अच्छाई नहीं खोता। यह दोहा हमें यह भी सिखाता है कि बुरी संगति से दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए, लेकिन अगर मजबूरी में रहना भी पड़े, तो अपने अच्छे गुणों को बनाए रखना चाहिए।
विशेष –
बुरी संगति में रहकर भी अपने अच्छे गुणों को बनाए रखना चाहिए।
सच्चे और चरित्रवान व्यक्ति पर बुरे प्रभाव हावी नहीं होते।
हमें भी चंदन की तरह सुगंध (अच्छाई) फैलानी चाहिए, चाहे आसपास कैसी भी परिस्थितियाँ हों।
- ‘रहिमन’ देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
शब्दार्थ –
बड़ेन = बड़े (विशाल या शक्तिशाली चीजें)
लघु = छोटा (कम महत्त्वपूर्ण समझी जाने वाली चीजें)
डारि = छोड़ देना
सुई = सूई (छोटी लेकिन उपयोगी वस्तु)
तलवारि = तलवार
अर्थ –
रहीम इस दोहे में सिखाते हैं कि कभी भी छोटे और साधारण दिखने वाली चीजों या व्यक्तियों को तुच्छ नहीं समझना चाहिए। जैसे कपड़ा सिलने के लिए सूई जरूरी होती है, और वहाँ तलवार किसी काम की नहीं होती, वैसे ही हर व्यक्ति और वस्तु की अपनी उपयोगिता होती है।
व्याख्या –
यह दोहा हमें छोटी चीजों और व्यक्तियों की महत्ता को पहचानने की सीख देता है। सिर्फ बड़े और शक्तिशाली चीजों पर ध्यान देने की बजाय हमें छोटे और साधारण चीजों की भी कद्र करनी चाहिए। कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं, जहाँ बड़े साधन बेकार साबित होते हैं और छोटे साधन ही लाभकारी होते हैं, जैसे, सूई कपड़े सिलने में उपयोगी होती है, जबकि तलवार वहाँ बेकार होती है, वैसे ही हर वस्तु और व्यक्ति की अपनी जगह और महत्त्व होता है। यह दोहा हमें व्यवहारिक ज्ञान और संतुलन की सीख देता है कि बड़े और छोटे दोनों का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि समय आने पर दोनों की आवश्यकता पड़ सकती है।
विशेष –
छोटी चीजों और व्यक्तियों को कभी भी तुच्छ न समझें।
हर व्यक्ति और वस्तु की अपनी खासियत और उपयोगिता होती है।
जीवन में संतुलन बनाए रखें और सभी चीजों का सम्मान करें।
बाहरी दिखावे से ज्यादा व्यावहारिक उपयोगिता को पहचानें।
- बड़े बड़ाई न करै, बड़े न बोलें बोल।
‘रहिमन’ हीरा कब कहै, लाख टका मम मोल॥
शब्दार्थ:
बड़े = महान, ज्ञानी, गुणी व्यक्ति
बड़ाई = अपनी प्रशंसा करना
बोलें बोल = डींगें हांकना, घमंड से बातें करना
हीरा = बहुमूल्य रत्न
लाख टका मम मोल = “मेरा मूल्य लाखों में है” (यह हीरा खुद नहीं कहता)
अर्थ –
रहीम इस दोहे में कहते हैं कि सच्चे महान व्यक्ति कभी अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं करते। जैसे हीरा खुद यह नहीं कहता कि उसकी कीमत लाखों में है, बल्कि लोग उसके गुणों को पहचानकर उसे मूल्यवान मानते हैं, वैसे ही गुणी और महान व्यक्ति अपने गुणों का स्वयं बखान नहीं करते, बल्कि उनके कार्य ही उनकी पहचान बनते हैं।
व्याख्या –
सच्ची महानता दिखावे की मोहताज नहीं होती। जो वास्तव में श्रेष्ठ और गुणवान होते हैं, वे अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं करते, बल्कि उनके कर्म उन्हें महान बनाते हैं। हीरा बहुत मूल्यवान होता है, लेकिन वह स्वयं अपनी कीमत नहीं बताता। उसी तरह, सच्चे ज्ञानी और गुणी लोग खुद को श्रेष्ठ नहीं बताते, बल्कि उनका आचरण और कार्य ही उनकी श्रेष्ठता को सिद्ध करता है। जो लोग अपनी ही प्रशंसा करते रहते हैं, वे अक्सर उतने महान नहीं होते, जितना वे दिखाने की कोशिश करते हैं। यह दोहा हमें विनम्रता और आत्मसंयम की सीख देता है कि अपने गुणों की प्रशंसा स्वयं न करें, बल्कि अपने कार्यों से खुद को साबित करें।
विशेष –
सच्चे गुणी लोग अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं करते।
विनम्रता सच्ची महानता की पहचान है।
अपने गुणों को दिखाने के बजाय अपने कार्यों से पहचान बनानी चाहिए।
जो व्यक्ति अपनी प्रशंसा स्वयं करता है, वह हीरे की तरह मूल्यवान नहीं होता।
शब्दार्थ :
तरुवर – वृक्ष, पेड़
सरवर – सरोवर
पान – पानी
काज- काम, कार्य
हित – भलाई, अच्छाई
संपत्ति – धन
सुजान – सज्जन
पर – दूसरे लोग,
सँचहि – संग्रह,
बुरी – संगत
साँप – सर्प, भुजंग
कुसंग – बुरी संगत,
चंदन – एक सुगंधित वृक्ष,
लिपटना – सटे रहना,
लघु – छोटा,
डारि – डाल छोड़ना
सुई – needle
बड़ाई – प्रशंसा,
हीरा – diamond,
मोल – दाम
तलवार – खड्ग,
मम – मेरा,
टका – मुद्रा, सिक्का
भावार्थ
- रहीम कहते हैं कि जैसे पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते और सरोवर अपना पानी खुद नहीं पीते, वैसे ही सज्जन दूसरों के कल्याण के लिए संपत्ति का संग्रह करते हैं।
- रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छे स्वभाव का होता है, बुरी संगत उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता, जैसे चंदन के पेड़ से साँप लिपटे रहने पर भी चंदन में उसका विष व्याप्त नहीं होता।
- रहीम कहते हैं कि रईस और बड़े लोगों को देखकर छोटे और साधारण लोगों को छोड़ मत दीजिए (तिरस्कार मत कीजिए) ; क्योंकि जहाँ सुई काम आती है, वहाँ तलवार क्या कर सकती है?
- बड़े लोग न ज़्यादा बोलते हैं, न ही अपनी प्रशंसा करते हैं। रहीम कहते हैं कि हीरा कब कहता है कि उसका मूल्य लाख मुद्राएँ हैं।
I. एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
- सुजान लोग संपत्ति क्यों संग्रह करते हैं?
उत्तर – सुजान अर्थात् सज्जन लोग दूसरों की सहायता करने के लिए संपत्ति का संग्रह करते हैं।
- चंदन के पेड़ से कौन लिपटे रहता है?
उत्तर – चंदन के पेड़ से भुजंग अर्थात् विषैले साँप लिपटे रहते हैं।
- रहीम किसका तिरस्कार न करने के लिए कहते हैं?
उत्तर – रहीम सामान्य व्यक्तियों का तिरस्कार नहीं करने के लिए कहते हैं।
- कौन अपनी प्रशंसा नहीं करते हैं?
उत्तर – जो वास्तव में बड़े होते हैं वे अपनी प्रशंसा नहीं करते हैं।
II. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
- रहीम ने सज्जनों के बारे में क्या कहा है? सोदाहरण समझाइए।
उत्तर – रहीम ने सज्जनों के बारे में कहा है कि जिस तरह पेड़ और जलाशय दूसरों के लिए फल और पानी उपलब्ध कराते हैं, उसी प्रकार सच्चे सज्जन और ज्ञानी लोग अपनी धन-संपत्ति और ज्ञान को समाज की भलाई के लिए उपयोग करते हैं।
- रहीम ने भुजंग के उदाहरण से क्या बताया है?
उत्तर – रहीम ने भुजंग के उदाहरण से बताया है कि जैसे चंदन का पेड़ साँपों से लिपटे रहने के बावजूद अपनी सुगंध और पवित्रता बनाए रखता है, उसी तरह उत्तम व्यक्ति भी नकारात्मक माहौल में अपनी अच्छाई नहीं खोता।
- छोटे लोगों के महत्त्व को रहीम ने कैसे व्यक्त किया है?
उत्तर – छोटे लोगों के महत्त्व को रहीम ने व्यक्त करते हुए कहा है कि कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं, जहाँ बड़े साधन बेकार साबित होते हैं और छोटे साधन ही लाभकारी होते हैं, जैसे – सूई कपड़े सिलने में उपयोगी होती है, जबकि तलवार वहाँ बेकार होती है।
- हीरे के बड़प्पन को रहीम ने कैसे बताया है?
उत्तर – हीरे के बड़प्पन को रहीम ने सिद्ध करते हुए बताया है कि हीरा बहुत मूल्यवान होता है, लेकिन वह स्वयं लाख टका अपनी कीमत नहीं बताता। उसी तरह, सच्चे ज्ञानी और गुणी लोग खुद को श्रेष्ठ नहीं बताते, बल्कि उनका आचरण और कार्य ही उनकी श्रेष्ठता को सिद्ध करता है।
III. जोड़कर लिखिए :-
- तरुवर – लाख टका मम मोल
- चंदन पेड़ – लघु न दीजिये डारि
- देख बड़ेन को – लिपटे रहत भुजंग
- हीरा – फल नहीं खात है
उत्तर –
- तरुवर फल नहीं खात है
- चंदन पेड़ लिपटे रहत भुजंग
- देख बड़ेन को लघु न दीजिये डारि
- हीरा लाख टका मम मोल
IV.अनुरूप शब्द लिखिए :-
- तरु : पेड़ :: तलवार : असि
- दूध : क्षीर :: भुजंग : साँप
- मोल : दाम :: बोल : कथन
- काज : कार्य :: संपत्ति : धन
V. इन शब्दों के अलग-अलग अर्थ लिखिए :-
- वर – दूल्हा, वरदान
- सर – सिर, सम्मानित व्यक्तियों के लिए आदरसूचक सम्बोधन
- पर – पंख, अगर
- जान – जीवन, जानना क्रिया
VI. तुकांत शब्द लिखिए :-
- पान – सुजान, दान, मान
- डारि – वारि, तलवारि
- कुसंग – भुजंग, सत्संग
- बोल – मोल, गोल, खोल
VII. इन शब्दों का उच्चारण लगभग समान प्रतीत होता है, किंतु अर्थ भिन्न हैं इनके अर्थ नीचे दिए गए शब्दों में से चुनकर लिखिए: (कंजूस, दिवस, यश, पवित्र, हवा, आशा, कटार, रचना, तिरस्कार, दरिद्र)
- पवन – हवा
पावन – पवित्र
- दिन – दिवस
दीन – दरिद्र
- अपेक्षा – आशा
उपेक्षा – तिरस्कार
- कृपण – कंजूस
कृपाण – कटार
- कीर्ति – यश
कृति – रचना
VIII. चारों दोहों को कंठस्थ कीजिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
IX. ऊपर से नीचे रिक्त स्थानों को भरकर दी गई शब्द पहेली का हल कीजिए :-
(सहायता के लिए संकेत चित्र दिए गए हैं)
इ | अ | बै | श | ब |
मा | ज | ल | र | र |
र | ग | गा | ब | त |
त | र | ड़ी | त | न |
X.शुद्ध रूप लिखिए :-
- रुवतर – तरुवर
- गजंभु – भुजंग
- वातरिल – तलवारि
- प्रतिकृ – प्रकृति
- कातहिजरप – परकाजहित
परियोजना :-
* किन्हीं पाँच अत्यमूल्य धातुओं के बारे में पाँच-पाँच वाक्य लिखिए। उनके रंगीन चित्र बनाइए।
उत्तर – 1. प्लैटिनम (Platinum)
प्लैटिनम एक दुर्लभ और महंगी धातु है, जो अपनी चमक, मजबूती और जंग-प्रतिरोधी गुणों के लिए प्रसिद्ध है।
यह मुख्य रूप से दक्षिण अफ्रीका, रूस और कनाडा में पाई जाती है।
प्लैटिनम का उपयोग आभूषणों, औद्योगिक उपकरणों, और चिकित्सा उपकरणों (जैसे पेसमेकर) में किया जाता है।
यह कैटेलिटिक कन्वर्टर में भी प्रयोग होती है, जिससे वाहनों के उत्सर्जन को कम किया जाता है।
यह अन्य धातुओं की तुलना में अधिक दुर्लभ है और सोने से भी अधिक मूल्यवान हो सकती है।
- रोडियम (Rhodium)
रोडियम दुनिया की सबसे महँगी धातुओं में से एक है और यह अत्यधिक दुर्लभ होती है।
यह मुख्य रूप से प्लैटिनम और निकेल खदानों में सह-उत्पाद के रूप में पाई जाती है।
रोडियम अत्यधिक जंग-प्रतिरोधी होती है और इसे उच्च परावर्तक सतहों के लिए उपयोग किया जाता है।
ऑटोमोबाइल उद्योग में इसका उपयोग कैटेलिटिक कन्वर्टर में किया जाता है, जिससे प्रदूषण को कम किया जाता है।
यह आभूषणों की चमक बढ़ाने और उन्हें जंग से बचाने के लिए प्लेटिंग में भी उपयोग होती है।
- पैलेडियम (Palladium)
पैलेडियम एक बहुमूल्य धातु है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और आभूषणों में किया जाता है।
यह प्लैटिनम ग्रुप की धातु है और मुख्य रूप से रूस, दक्षिण अफ्रीका और कनाडा में पाई जाती है।
पैलेडियम हल्की और उच्च चालकता वाली धातु होती है, जिससे यह इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में महत्वपूर्ण होती है।
यह ऑटोमोबाइल में कैटेलिटिक कन्वर्टर के लिए प्रयोग की जाती है, जिससे प्रदूषक गैसों को कम किया जाता है।
हाल के वर्षों में इसकी कीमत सोने से भी अधिक बढ़ गई है, जिससे यह निवेशकों के लिए आकर्षक बनी हुई है।
- ओस्मियम (Osmium)
ओस्मियम सबसे घनी धातु मानी जाती है और इसका उपयोग विशेष औद्योगिक अनुप्रयोगों में किया जाता है।
यह एक कठोर और नीला-धूसर रंग का धातु है, जो प्लैटिनम ग्रुप की धातुओं में आती है।
ओस्मियम का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स, पेन की निब और चिकित्सा उपकरणों में किया जाता है।
यह अत्यधिक विषैली हो सकती है, इसलिए इसका उपयोग सावधानीपूर्वक किया जाता है।
इसकी दुर्लभता और विशेष गुणों के कारण यह बहुत महंगी होती है।
- इरिडियम (Iridium)
इरिडियम पृथ्वी पर पाई जाने वाली सबसे कठोर और संक्षारण-प्रतिरोधी धातुओं में से एक है।
यह प्लैटिनम ग्रुप की धातु है और मुख्य रूप से उल्कापिंडों और प्लैटिनम खदानों में पाई जाती है।
इरिडियम का उपयोग उच्च तापमान सहने वाले उपकरणों, घड़ियों और चिकित्सा उपकरणों में किया जाता है।
इसका उपयोग अंतरिक्ष यान और डीप-सी ड्रिलिंग उपकरणों में भी किया जाता है।
इसकी उच्च दुर्लभता और मजबूत गुणों के कारण यह बहुत कीमती होती है।
अध्यापन संकेत :-
* कबीरदास के किन्हीं चार दोहों को कक्षा में सुनाएँ।
उत्तर – 1. साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय॥
व्याख्या –
कबीरदास कहते हैं कि इंसान को सूप (अनाज फटकने का यंत्र) की तरह होना चाहिए, जो काम की चीज़ (सार) को बचा लेता है और बेकार चीज़ों (थोथा) को उड़ा देता है। इसी तरह, हमें भी ज्ञान और सत्य को अपनाना चाहिए और निरर्थक बातों को छोड़ देना चाहिए।
- बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
व्याख्या –
केवल ऊँचा (बड़ा) होने से कोई लाभ नहीं, जैसे खजूर का पेड़ ऊँचा तो होता है, पर उसकी छाया किसी को राहत नहीं देती और फल भी इतनी ऊँचाई पर होते हैं कि कोई आसानी से तोड़ नहीं सकता। इसी तरह, अगर कोई व्यक्ति धन, ज्ञान या पद में बड़ा है, लेकिन दूसरों के काम नहीं आता, तो उसका बड़ा होना व्यर्थ है।
- निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।
बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय॥
व्याख्या –
कबीरदास कहते हैं कि आलोचकों (निंदकों) को अपने पास ही रखना चाहिए, क्योंकि वे हमारी गलतियों को बताते हैं, जिससे हम अपने सुधार कर सकते हैं। जैसे बिना साबुन और पानी के भी, कोई व्यक्ति हमें स्वच्छ बनाने में मदद कर सकता है, उसी प्रकार आलोचक हमें सुधारने में सहायता करते हैं।
- जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
सब अंधियारा मिट गया, जब दीपक देख्या माहिं॥
व्याख्या –
जब तक व्यक्ति अहंकार से भरा रहता है, तब तक ईश्वर (सत्य) का अनुभव नहीं कर पाता। लेकिन जब वह अहंकार छोड़कर ईश्वर को समर्पित होता है, तब उसे सच्ची रोशनी (ज्ञान) प्राप्त होती है, और उसका अज्ञान मिट जाता है।
* कन्नड कवि सर्वज्ञ के वचनों को छात्रों से वाचन कराएँ।
उत्तर – कन्नड कवि सर्वज्ञ (15वीं-16वीं शताब्दी) एक प्रसिद्ध वचनकार थे, जो अपने संक्षिप्त और सारगर्भित वचनों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके वचन आम लोगों को नैतिकता, जीवन के सत्य और व्यवहारिक ज्ञान सिखाने के लिए लिखे गए थे।
‘सर्वज्ञ’ के कुछ प्रसिद्ध वचन (कन्नड में)
“ಅರೆ ಜ್ಞಾನವು ಭಾರವಯ್ಯ”
👉 अर्धज्ञान भार होता है।
(अधूरी जानकारी व्यक्ति के लिए समस्या खड़ी कर सकती है।)
“ದಾನ ಮಾಡಿದ ಮನಸು ಮಲಿನವಲ್ಲ”
👉 दान करने वाला मन कभी अपवित्र नहीं होता।
(सच्चे दान से मन शुद्ध रहता है।)
“ನಾಲಿಗೆ ಒಣಗಿದರೆ ಕಾಳಜಿ ಬೇಡ”
👉 जब तक जीभ सूखी न हो, चिंता की जरूरत नहीं।
(जब तक हम अपनी वाणी पर नियंत्रण रखते हैं, तब तक हम सुरक्षित रहते हैं।)
“ಹಚ್ಚಿದ ಬೆಂಕಿ ಕೈಗೆ ಸುಟ್ಟಂತಿಲ್ಲ”
👉 जलती आग को छूने से हाथ जल ही जाएगा।
(गलत कार्य का परिणाम भोगना ही पड़ता है।)
“ಅಣ್ಣ ತೆಕ್ಕಿದವನೆಂದು ಅಜ್ಜ ತೆಕ್ಕದಿರು”
👉 बड़े का सम्मान करो, पर आँख बंद करके मत मानो।
(बड़ों की बातें सुनो, लेकिन सोच-समझकर अमल करो।)
सर्वज्ञ के वचनों की विशेषता :-
छोटे, सरल, लेकिन गहरे अर्थ वाले होते हैं।
समाज और जीवन के व्यावहारिक ज्ञान को व्यक्त करते हैं।
धार्मिक, नैतिक और दार्शनिक संदेश देते हैं।
क्या आप किसी विशेष विषय पर सर्वज्ञ के वचन चाहते हैं?