रामधारीसिंह ‘दिनकर’
कवि रामधारीसिंह दिनकर जी का जन्म ई. सन् 1908 को बिहार प्रांत के मुंगेर जिले में हुआ। पहले वे रेडियो विभाग में काम करते थे। बाद में एक सरकारी कॉलेज के प्राध्यापक बने। आगे चलकर वे भारत सरकार के हिंदी सलाहकार के पद पर नियुक्त हुए। ई. सन् 1974 को इनका देहावसान हुआ।
कवि की कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं – हुँकार, रेणुका, रसवंती, सामधेनी, धूप-छाँह, कुरुक्षेत्र, बापू, रश्मिरथि आदि। कवि की हर रचना में हृदय को प्रभावित और उत्साहित करने की पूर्ण शक्ति है। इनकी भाषा सजीव और विषय के अनुकूल है। ‘अभिनव मनुष्य’ पद्यभाग ‘कुरुक्षेत्र’ के षष्ठ सर्ग से लिया गया है।
इस पद्यभाग में वैज्ञानिक युग और आधुनिक मानव का विश्लेषण हुआ है। कवि दिनकर जी इस कविता द्वारा यह संदेश देना चाहते हैं कि आज के मानव ने प्रकृति के हर तत्व पर विजय प्राप्त कर ली है। परंतु कैसी विडंबना है कि उसने स्वयं को नहीं पहचाना, अपने भाईचारे को नहीं समझा। प्रकृति पर विजय प्राप्त करना मनुष्य की साधना है, मानव-मानव के बीच स्नेह का बाँध बाँधना मानव की सिद्धि है। जो मानव दूसरे मानव से प्रेम का रिश्ता जोड़कर आपस की दूरी को मिटाए, वही मानव कहलाने का अधिकारी होगा।
इस कविता के द्वारा बच्चे स्नेह, मानवीयता, भाईचारा आदि का महत्व समझ सकते हैं।
अभिनव मनुष्य
आज की दुनिया विचित्र, नवीन ;
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन।
है बँधे नर के करों में वारि, विद्युत, भाप,
हुक्म पर चढ़ता-उतरता है पवन का ताप।
हैं नहीं बाकी कहीं व्यवधान
लाँघ सकता नर सरित् गिरि सिन्धु एक समान।
यह मनुज,
जिसका गगन में जा रहा है यान,
काँपते जिसके करों को देख कर परमाणु।
यह मनुज, जो सृष्टि का शृंगार,
ज्ञान का, विज्ञान का, आलोक का आगार।
व्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है ज्ञेय,
पर, न यह परिचय मनुज का, यह न उसका श्रेय।
श्रेय उसका, बुद्धि पर चैतन्य उर की जीत,
श्रेय मानव की असीमित मानवों से प्रीत;
एक नर से दूसरे के बीच का व्यवधान
तोड़ दे जो, बस, वही ज्ञानी, वही विद्वान,
और मानव भी वही।
01
आज की दुनिया विचित्र, नवीन ;
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन।
है बँधे नर के करों में वारि, विद्युत, भाप,
हुक्म पर चढ़ता-उतरता है पवन का ताप।
हैं नहीं बाकी कहीं व्यवधान
लाँघ सकता नर सरित् गिरि सिन्धु एक समान।
व्याख्या –
कविता की इन पंक्तियों में आधुनिक दुनिया की प्रगति और मनुष्य द्वारा प्रकृति पर प्राप्त की गई विजय का वर्णन किया गया है। कवि यह दर्शा रहे हैं कि मनुष्य ने विज्ञान और तकनीक के माध्यम से प्राकृतिक शक्तियों को नियंत्रित कर लिया है।
यहाँ कवि कहते हैं कि आज की दुनिया अद्भुत और नई है। मनुष्य ने चारों ओर प्रकृति पर विजय प्राप्त कर ली है और अब वह उस पर शासन करने की स्थिति में है। जल (पानी), विद्युत (बिजली) और भाप (स्टीम) जैसी शक्तियाँ अब मनुष्य के नियंत्रण में हैं। उसने विज्ञान के सहारे इन प्राकृतिक तत्त्वों को अपनी सुविधा के अनुसार उपयोग में लाना सीख लिया है। इतना ही नहीं, वह तापमान (गर्मी और ठंडक) को भी अपने अनुसार नियंत्रित करने में सक्षम हो गया है। अब मनुष्य के लिए कोई बाधा शेष नहीं रही। वह नदियों (सरिता), पहाड़ों (गिरि), और महासागरों (सिन्धु) को भी समान रूप से पार कर सकता है। इसका अर्थ है कि विज्ञान और तकनीक के माध्यम से मनुष्य ने परिवहन और संचार के ऐसे साधन विकसित कर लिए हैं जिससे कोई भी भौगोलिक बाधा उसके मार्ग में रुकावट नहीं बन सकती।
संक्षिप्त व्याख्या –
ये पंक्तियाँ विज्ञान और तकनीकी प्रगति के कारण मनुष्य की शक्ति और उपलब्धियों को दर्शाती है। पहले जो प्राकृतिक शक्तियाँ मनुष्य के लिए बाधा थीं, वे अब उसकी सेवा में हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि मनुष्य ने अपनी बुद्धि के बल पर प्रकृति को अपने नियंत्रण में ले लिया है और अपने जीवन को अधिक सुविधाजनक बना लिया है।
02
यह मनुज,
जिसका गगन में जा रहा है यान,
काँपते जिसके करों को देख कर परमाणु।
यह मनुज, जो सृष्टि का शृंगार,
ज्ञान का, विज्ञान का, आलोक का आगार।
व्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है ज्ञेय,
पर, न यह परिचय मनुज का, यह न उसका श्रेय।
व्याख्या –
कविता की इन पंक्तियों में कवि मनुष्य की वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियों का वर्णन करते हुए यह प्रश्न उठाते हैं कि क्या यही उसका वास्तविक परिचय और गौरव है?
यहाँ कवि मनुष्य की वैज्ञानिक उपलब्धियों की ओर संकेत करते हैं। वे कहते हैं कि आज का मनुष्य इतना शक्तिशाली हो गया है कि उसने अंतरिक्ष (गगन) में यान भेजने की क्षमता हासिल कर ली है। यह आधुनिक विज्ञान की एक बड़ी उपलब्धि है। कवि यह भी इंगित कर रहे हैं कि मनुष्य की शक्ति इतनी बढ़ गई है कि उसने परमाणु बम जैसी विनाशकारी ताकत भी हासिल कर ली है। उसकी शक्ति को देखकर स्वयं परमाणु भी काँपने लगते हैं, अर्थात् उसकी वैज्ञानिक उन्नति अत्यधिक प्रभावशाली हो गई है। मनुष्य केवल शक्ति का प्रतीक ही नहीं, बल्कि वह सृष्टि का सौंदर्य (शृंगार) भी है। वह ज्ञान, विज्ञान और प्रकाश (आलोक) का भंडार है। अर्थात् उसकी बुद्धि और विवेक से ही दुनिया प्रगति कर रही है और विकास के नए आयाम छू रही है। मनुष्य ने अपनी खोजी प्रवृत्ति और विज्ञान के सहारे आकाश (व्योम) से लेकर धरती के गर्भ (पाताल) तक की हर चीज़ को जान लिया है। अब उसके लिए कोई भी क्षेत्र रहस्यमय नहीं रहा। यहाँ कवि यह कहते हैं कि ये उपलब्धियाँ ही मनुष्य का वास्तविक परिचय नहीं हैं। केवल विज्ञान, तकनीक, और बाहरी शक्तियाँ ही मनुष्य के श्रेय का निर्धारण नहीं कर सकतीं। उसका असली परिचय उसकी मानवीयता, संवेदनशीलता, नैतिकता और आध्यात्मिक मूल्यों से होगा।
संक्षिप्त व्याख्या –
कवि कविता की इन पंक्तियों में यह संदेश दे रहे हैं कि भले ही मनुष्य ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में असाधारण प्रगति कर ली हो, लेकिन यह उसकी पहचान नहीं हो सकती। वास्तविक पहचान उसकी नैतिकता, करुणा, और आध्यात्मिक मूल्यों में निहित है। केवल बाहरी उपलब्धियों से मनुष्य महान नहीं बनता, बल्कि उसकी आत्मिक और नैतिक ऊँचाइयाँ ही उसे सच्चा गौरव प्रदान करती हैं।
03
श्रेय उसका, बुद्धि पर चैतन्य उर की जीत,
श्रेय मानव की असीमित मानवों से प्रीत;
एक नर से दूसरे के बीच का व्यवधान
तोड़ दे जो, बस, वही ज्ञानी, वही विद्वान,
और मानव भी वही।
व्याख्या –
कविता के इस अंश में कवि यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि मनुष्य का वास्तविक श्रेय और पहचान उसकी वैज्ञानिक उपलब्धियों में नहीं, बल्कि उसकी मानवीयता में है। मनुष्य का असली श्रेय (गौरव) तब है जब उसकी बुद्धि (तर्क और ज्ञान) पर उसके हृदय की चैतन्यता (सजगता, संवेदनशीलता) की विजय हो। अर्थात् केवल वैज्ञानिक और बौद्धिक प्रगति ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसमें संवेदनशीलता, प्रेम और करुणा का समावेश भी होना चाहिए। मनुष्य का सबसे बड़ा श्रेय यह नहीं कि उसने कितनी वैज्ञानिक खोजें कर लीं, बल्कि यह है कि वह दूसरों से असीमित प्रेम (अथाह स्नेह) कर सके। उसकी सच्ची पहचान उसकी मानवता और दूसरों के प्रति उसका स्नेह है। जो व्यक्ति मनुष्यों के बीच की दीवारों (भेदभाव, संकीर्णता, जाति, धर्म, राष्ट्र, ऊँच-नीच आदि के अंतर) को तोड़ दे, वही सच्चा ज्ञानी और वास्तविक विद्वान है। केवल किताबों का ज्ञान या वैज्ञानिक उपलब्धियाँ किसी को ज्ञानी नहीं बनातीं, बल्कि दूसरों को जोड़ने की क्षमता ही सच्ची विद्वत्ता का प्रमाण है। जो व्यक्ति भेदभाव और अलगाव को समाप्त कर, मानवता और प्रेम को बढ़ावा देता है, वही सच्चा मनुष्य कहलाने योग्य है।
संक्षिप्त व्याख्या –
कवि इन पंक्तियों में यह संदेश देते हैं कि मनुष्य का गौरव उसकी वैज्ञानिक उपलब्धियों या भौतिक सफलताओं में नहीं, बल्कि उसकी संवेदनशीलता, प्रेम और मानवीय एकता में है। जो व्यक्ति दूसरों के साथ प्रेम और सौहार्द से रहता है और समाज में बँटवारे की दीवारें गिराता है, वही सच्चा ज्ञानी और वास्तविक मानव है।
शब्दार्थ :
अभिनव – नया, नवीन, आधुनिक
वारि – जल,
भाष्प – वाष्प
हुक्म – आज्ञा,
व्यवधान – रुकावट, बाधा;
सरित् – नदी, सरिता;
सिंधु- सागर, समुद्र,
आलोक – प्रकाश,
ज्ञेय – जानकारी,
श्रेय – यश,
कल्याण – मंगल।
I. एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
- आज की दुनिया कैसी है?
उत्तर – आज की दुनिया विचित्र और नवीन है।
- मानव के हुक्म पर क्या चढ़ता और उतरता है?
उत्तर – मानव के हुक्म पर पवन (हवा) और ताप (तापमान) चढ़ता और उतरता है।
- परमाणु किसे देखकर काँपते हैं?
उत्तर – परमाणु मनुष्य की असाधारण योग्यता और उसके हाथों को देखकर काँपते हैं।
- ‘अभिनव मनुष्य’ कविता के कवि का नाम लिखिए।
उत्तर – ‘अभिनव मनुष्य’ कविता के कवि का नाम रामधारी सिंह ‘दिनकर’ है।
- आधुनिक पुरुष ने किस पर विजय पायी है?
उत्तर – आधुनिक पुरुष ने प्रकृति के सभी तत्त्वों पर विजय पाई है।
- नर किन-किनको एक समान लाँघ सकता है?
उत्तर – नर नदी, पर्वत और समुद्र को एक समान लाँघ सकता है।
- आज मनुज का यान कहाँ जा रहा है?
उत्तर – आज मनुष्य का यान गगन और अंतरिक्ष में जा रहा है।
II. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
- ‘प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन’ इस पंक्ति का आशय समझाइए।
उत्तर – प्रश्नोक्त पंक्ति का आशय यह है कि मनुष्य ने चारों ओर प्रकृति पर विजय प्राप्त कर ली है। जल, विद्युत और भाप जैसी शक्तियाँ अब मनुष्य के नियंत्रण में हैं। इतना ही नहीं, वह तापमान को भी अपने अनुसार नियंत्रित करने में सक्षम हो गया है। वह नदियों, पहाड़ों, और महासागरों को भी समान रूप से पार कर सकता है।
- दिनकर जी के अनुसार मानव का सही परिचय क्या है?
उत्तर – दिनकर जी के अनुसार सच्चे मानव का सही परिचय है कि जो व्यक्ति मनुष्यों के बीच भेदभाव, संकीर्णता, जाति, धर्म, वर्ण, राष्ट्र, ऊँच-नीच की दीवारों को तोड़ दे, वही सच्चा ज्ञानी और वास्तविक विद्वान है। वास्तव में मानवता और प्रेम को बढ़ावा देने वाले ही सच्चा मनुष्य कहलाने योग्य है।
- इस कविता का दूसरा कौन-सा शीर्षक हो सकता है? क्यों?
उत्तर – इस कविता का दूसरा शीर्षक ‘प्रकृति श्रेष्ठ’ हो सकता है, क्योंकि इस कविता में मनुष्यों की श्रेष्ठता को रूपायित किया गया है। साथ ही साथ इसमें एक विचार को भी घोला गया है कि सच्चे अर्थों में मनुष्यों का स्वभाव और आचरण कैसा होना चाहिए?
III. भावार्थ लिखिए :-
यह मनुज, जो सृष्टि का शृंगार,
ज्ञान का, विज्ञान का, आलोक का आगार।
व्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है ज्ञेय,
पर, न यह परिचय मनुज का, यह न उसका श्रेय।
उत्तर – कवि कविता की इन पंक्तियों में यह संदेश दे रहे हैं कि यह मनुष्य सृष्टि का शृंगार है। पर आज भले ही मनुष्य ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में असाधारण प्रगति कर ली हो, आकाश से लेकर पाताल तक सभी प्राकृतिक उपदानों का ज्ञान हासिल कर लिया हो, लेकिन यह उसकी पहचान नहीं हो सकती। वास्तविक पहचान उसकी नैतिकता, करुणा, और आध्यात्मिक मूल्यों में निहित है। केवल बाहरी उपलब्धियों से मनुष्य महान नहीं बनता, बल्कि उसकी आत्मिक और नैतिक ऊँचाइयाँ ही उसे सच्चा गौरव प्रदान करती हैं।
IV. उदाहरण के अनुसार तुकांत शब्दों को पहचानकर लिखिए :-
उदा : नवीन – आसीन
- भाप – ताप
- व्यवधान – समान
- शृंगार – आगार
- ज्ञेय – श्रेय
- जीत – प्रीत
V.पंक्तियाँ पूर्ण कीजिए :- :-
आज की दुनिया ______ नवीन ;
प्रकृति ______ विजयी ______ आसीन।
______ में वारि, ______भाप,
हुक्म पर ______ का ताप।
उत्तर –
आज की दुनिया विचित्र, नवीन ;
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन।
है बँधे नर के करों में वारि, विद्युत, भाप,
हुक्म पर चढ़ता-उतरता है पवन का ताप।
VI. पर्यायवाची शब्द लिखिए :-
- दुनिया – जग, संसार
- विचित्र – अनोखा, निराला
- नवीन – नया, आधुनिक
- नर – मानव, आदमी
- वारि – जल, पानी
- कर – हस्त, पाणि
- आगार – गृह, घर
VII. विलोम शब्द लिखिए :-
- आज X कल
- नवीन x प्राचीन
- चढ़ता X उतरता
- समान X असमान
- ज्ञान X अज्ञान
- जीत X हार
- असीमित x सीमित
- तोड़ X जोड़
VIII. एक शब्द लिखिए :-
जैसे : सभी जगहों में — सर्वत्र
- आसन पर बैठा हुआ – आसीन
- बचा हुआ – शेष
- मनु की संतान – मानव
- विशेष ज्ञान – विज्ञान
- अधिक विद्या प्राप्त – विद्वान
IX. अनुरूप शब्द लिखिए :-
- गिरि : पहाड़ :: वारि : जल
- पवन : वायु :: सिंधु : समुद्र
- ज़मीन : आसमान :: आकाश : पाताल
- नर : आदमी :: उर : हृदय
दिनकर जी की अन्य काव्य-कृतियों का परिचय प्राप्त कीजिए।
उत्तर – रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हिंदी साहित्य के एक महान कवि, लेखक और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हें राष्ट्रीय कवि के रूप में भी जाना जाता है। उनकी कविताएँ वीर रस, ओजस्विता और राष्ट्रीय चेतना से भरपूर होती थीं।
दिनकर जी की प्रमुख काव्य-कृतियाँ एवं उनका परिचय
- कुरुक्षेत्र (1946)
यह महाभारत के युद्ध के बाद की परिस्थितियों पर आधारित एक महाकाव्य है।
इसमें युद्ध की अनिवार्यता और शांति का महत्व दर्शाया गया है।
यह द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में लिखा गया था।
- रश्मिरथी (1952)
यह दिनकर जी की सबसे प्रसिद्ध कृति है।
इसमें कर्ण के जीवन को केंद्र में रखकर उनकी संघर्ष-गाथा को प्रस्तुत किया गया है।
इसमें कर्ण की दानशीलता, त्याग, और सामाजिक अन्याय के खिलाफ उनका संघर्ष दिखाया गया है।
इसके ओजस्वी छंद और वीर रस के कारण यह अत्यंत लोकप्रिय है।
- परशुराम की प्रतीक्षा (1957)
यह एक दीर्घ कविता है, जिसमें परशुराम के प्रतीक के माध्यम से सामाजिक विषमताओं और अन्याय के प्रति आक्रोश व्यक्त किया गया है।
इसमें शक्ति, अहंकार और करुणा के विभिन्न रूपों को दर्शाया गया है।
- हुंकार (1938)
यह काव्य-संग्रह स्वतंत्रता संग्राम की भावना से ओतप्रोत है।
इसमें देशभक्ति, क्रांति और राष्ट्रीय चेतना का सशक्त वर्णन किया गया है।
- सामधेनी (1947)
इसमें सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को काव्य रूप में प्रस्तुत किया गया है।
यह स्वतंत्रता के बाद की परिस्थितियों और राष्ट्रवाद पर आधारित है।
- उर्वशी (1961)
यह खंडकाव्य प्रेम और सौंदर्य पर आधारित है।
इसमें पुरुष और नारी के संबंधों, भौतिक और आध्यात्मिक प्रेम का दार्शनिक विवेचन किया गया है।
इस कृति के लिए दिनकर जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
- द्वंद्वगीत (1940)
यह उनकी प्रारंभिक रचनाओं में से एक है, जिसमें संघर्ष, प्रेम और समाज की वास्तविकताओं को दर्शाया गया है।
- अर्धनारीश्वर (1955)
इसमें नारी-पुरुष संबंधों, स्त्री के अधिकारों और समाज में स्त्री की स्थिति पर विचार व्यक्त किए गए हैं।
विशेषताएँ –
उनकी रचनाएँ वीर रस, ओज, क्रांति, राष्ट्रवाद और सामाजिक चेतना से परिपूर्ण होती थीं।
उन्होंने शांतिवादी दृष्टिकोण और संघर्षशील मानसिकता के बीच संतुलन स्थापित किया।
उनकी शैली संस्कृतनिष्ठ हिंदी में थी, जो प्रभावशाली और प्रवाहमयी थी।
“मानव की सही पहचान बुद्धि व तर्क नहीं परंतु मानवीयता है। इस विषय पर कक्षा में एक वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन कीजिए।
उत्तर – विषय: “मानव की सही पहचान बुद्धि व तर्क नहीं, परंतु मानवीयता है।”
पक्ष में तर्क
संवेदनशीलता ही मानवता की पहचान है-
यदि केवल बुद्धि और तर्क से ही मनुष्य की पहचान होती, तो वह एक संवेदनहीन मशीन की तरह होता।
मानवीय गुण, जैसे करुणा, प्रेम, दया और सहयोग, ही मनुष्य को विशिष्ट बनाते हैं।
बुद्धि विनाश का कारण भी बन सकती है-
इतिहास गवाह है कि जब मनुष्य ने केवल बुद्धि और तर्क पर ध्यान दिया, तो उसने युद्ध, हिंसा और शोषण को जन्म दिया।
परमाणु बम, युद्ध और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएँ बुद्धि और तर्क का दुरुपयोग होने के उदाहरण हैं।
समाज को जोड़ने वाली शक्ति – मानवीयता –
केवल तर्क और बुद्धि से समाज नहीं चलता, बल्कि सहानुभूति और सहयोग समाज को आगे बढ़ाते हैं।
यदि मनुष्य में मानवीयता न हो, तो उसके तर्क और बुद्धि का कोई मूल्य नहीं रह जाता।
महापुरुषों का उदाहरण –
महात्मा गांधी, मदर टेरेसा, स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष अपनी बुद्धि के लिए नहीं, बल्कि अपनी मानवीयता और करुणा के लिए पहचाने जाते हैं।
विपक्ष में तर्क
बुद्धि और तर्क के बिना मानव अधूरा है –
यदि केवल मानवीयता महत्वपूर्ण होती, तो मनुष्य आज भी विकास के आरंभिक चरण में होता।
बुद्धि और तर्क ने विज्ञान, चिकित्सा और तकनीकी प्रगति को जन्म दिया, जिससे जीवन आसान हुआ है।
तर्क ही सही-गलत का निर्णय कराता है –
बिना तर्क के, मनुष्य अंधविश्वास और भावनाओं में बह सकता है।
न्याय व्यवस्था भी तर्क पर आधारित होती है, न कि केवल भावनाओं पर।
बुद्धि और तर्क से ही मानवीयता को सही दिशा मिलती है –
यदि मानवीयता बिना तर्क के हो, तो वह गलत निर्णय भी ले सकती है।
उदाहरण: यदि कोई अपराधी क्षमा माँगे, तो मानवीयता उसे माफ करने को कहेगी, लेकिन तर्क और न्याय उसे सजा देने की आवश्यकता बताते हैं।
मानव का विकास तर्क और बुद्धि से ही हुआ है –
यदि केवल मानवीयता से काम लिया जाता, तो हम आज भी जंगलों में रह रहे होते।
विज्ञान, चिकित्सा, शिक्षा और तकनीकी उन्नति बुद्धि और तर्क के कारण संभव हुई है।
निष्कर्ष
यह बहस इस बात पर निर्भर करती है कि हम “मानव की पहचान” को कैसे परिभाषित करते हैं।
यदि हम “सही पहचान” को सामाजिक और नैतिक दृष्टि से देखें, तो मानवीयता अधिक महत्वपूर्ण है।
यदि हम “सही पहचान” को विकास और अस्तित्व के आधार पर देखें, तो बुद्धि और तर्क को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
लेकिन आदर्श स्थिति यह होगी कि मानवीयता और बुद्धि, दोनों का संतुलन हो।