जगतराम आर्य
(सन् 1910 – सन् 1993) :
जगतराम आर्य जी का जन्म ऊना, हिमाचलप्रदेश में 16 दिसंबर सन् 1910 को हुआ। आपकी पढ़ाई निकट गाँव के डी.ए.वी. स्कूल में हुई। स्कूल के वरिष्ठ अध्यापक पं. तुलसीराम जी की देखरेख में शिक्षा पाई। आप अमर शहीद भगतसिंह के साथ कई क्रांतिकारी घटनाओं से जुड़े रहे। आप स्वतंत्रता आंदोलन के समय भाई परमानंद के साथ भी रहे जो बहुत बड़े देशभक्त थे और उनके साथ कई-कई दिन अज्ञातवास भी किया। 4 अगस्त, सन् 1993 को जगतराम आर्य जी का देहांत हुआ।
इस पाठ में पाँच-छह लड़के संगठित होकर अपनी बाल – शक्ति को प्रकट कर रहे हैं। कुछ लड़के एक साथ रहकर अच्छी आदतों को अपनाने का प्रयत्न करते हैं। इतना ही नहीं सब बच्चे मिलकर अपने गाँव को एक नया जीवन प्रदान करते हैं। इस पाठ द्वारा बाल – शक्ति का महत्त्व बताया जा रहा है।
बच्चों में अच्छे और बुरे दोनों गुण होते हैं। अच्छी आदतों के द्वारा उनको गुणी बनाया जा सकता है। इस लघु नाटिका में बच्चों की संगठित शक्ति को उजागर किया गया है जो बहुत ही प्रेरणादायक है।
बाल – शक्ति
पात्र – परिचय
रामू, श्यामू, मोहन, संजय, किशोर, मनोज – स्कूल के छात्र
गुरुजी – स्कूल के अध्यापक
कलेक्टर साहब
एक बुज़ुर्ग
पहला दृश्य
(रामू और श्यामू कंचे खेलने में व्यस्त हैं)
रामू : (श्यामू से) हरेवाले को मार।
(श्यामू मारता है)
श्यामू : लग गयी न? ला, अब सारे कंचे मेरे हो गये।
रामू : तेरे कैसे हो गये? निशाना तो नीलेवाले को लगा है। हरा कंचा तो अलग पड़ा है।
श्यामू : झूठ मत बोल। तू सदा खेल में बेईमानी करता है। दे-दे कंचे। वरना मार दूँगा। (रामू की कमीज़ का कॉलर पकड़ता है |)
रामू : छोड़, मेरी कमीज़ छोड़।
(तीसरे लड़के मोहन का प्रवेश)
मोहन : अरे, अरे! क्यों झगड़ रहे हो?
श्यामू : यह मेरे कंचे नहीं देता। खेल में बेईमानी करता है।
रामू : यह झूठ बोल रहा है।
मोहन : देखो, अब तो स्कूल का समय हो रहा है। घंटी बजनेवाली है। यह फैसला बाद में कर लेना।
श्यामू : अच्छा, अब तो छोड़ता हूँ, पर शाम को दे देना।
रामू : चल चल, अपना रास्ता पकड़। बड़ा आया कंचे लेनेवाला।
मोहन : अरे भाई, स्कूल नहीं चलना है क्या?
रामू : तुम जाओ स्कूल, मैं नहीं जाऊँगा। एक दिन स्कूल नहीं जाने से क्या होता है?
श्यामू : मोहन भैया, यह तो कई दिन स्कूल नहीं जाता। जिस दिन भी गृह – कार्य नहीं करता, उस दिन स्कूल से छुट्टी कर लेता है। आज गणित का काम दिखाना है न?
मोहन : रामू! दिखाओ तो गणित की कॉपी।
रामू : वह तो मैं घर भूल आया।
मोहन : देखो रामू, यह ठीक नहीं। एक झूठ को छिपाने के लिए कई झूठ बोलने पड़ते हैं।
श्यामू : चलो मोहन भैया, इसे रहने दो। स्कूल चलने में देर हो रही है, चलो। (दोनों चले जाते हैं। रामू कंचे खेलने लगता है।)
दूसरा दृश्य
(स्कूल में भोजनावकाश का वक्त है। पाँच बालक स्कूल के एक कोने में एकत्र होकर बातें कर रहे हैं।)
श्यामू : देखो न मोहन भैया, आज रामू ने खेल में फिर से मेरे साथ बेईमानी की।
संजय : वह तो बात-बात में झूठ बोलने लगा है।
मनोज : मैंने सुना है कि बारह साल से नीचे की उम्र के बच्चों को तो कोई पाप नहीं लगता। चाहे वह झूठ बोलना ही क्यों न हो।
श्यामू : अरे मूर्ख, यही तो उम्र है अच्छी आदतें डालने की, अब जो आदत पड़ जाएगी, वह सदा साथ रहेगी
किशोर : गुरुजी भी यही कहा करते हैं।
मोहन : हाँ, हमें अभी से अच्छी आदतें डालनी चाहिए। इसके लिए हमें मिलकर कुछ करना होगा।
किशोर, संजय : क्या करना होगा?
श्यामू : हमें एक टोली बनानी पड़ेगी।
मोहन : इस टोली में हम रामू को भी शामिल करेंगे और उसकी गंदी आदतें छुड़वाएँगे।
(टन – टन करके स्कूल की घंटी बजती है।)
मोहन : चलो, अब कक्षाओं में चलें। शाम को सब यहीं मिलना। हाँ, रामू को कौन लाएगा?
संजय : उसे मैं बुला लाऊँगा। वह मेरी बात मानता है।
तीसरा दृश्य
(मोहन, संजय, किशोर, श्यामू, मनोज और रामू बैठे बातें कर रहे हैं।)
मोहन : आज से हम एक छोटी-सी टोली आरंभ कर रहे हैं। उस टोली का नाम होगा ‘बाल – शक्ति’।
रामू : यह टोली क्या करेगी?
संजय : सबसे पहले तो हम अपने उन साथियों पर ध्यान देंगे जो नियमित रूप से स्कूल नहीं जाते तथा पढ़ाई से जी चुराते हैं।
किशोर : ठीक कहा। दूसरा काम होगा स्कूल के परिसर को स्वच्छ रखना। तीसरा कार्य होगा गाँव की गंदगी को दूर करना। हम रोज़ एक घंटा गाँव की सफाई में लगाएँगे।
मनोज : गाँव में कई गड्ढे हैं, उनको मिट्टी से ढाँपना होगा।
श्यामू : गाँव का कूड़ा डालने के लिए एक निश्चित जगह बनाएँगे तथा गाँव के सभी भाइयों से कहेंगे कि कूड़ा उसी जगह में डालें।
मोहन : टोली का अगला काम होगा गाँव को हरा-भरा रखना। हम गाँव के चारों तरफ पेड़-पौधे लगाएँगे तथा अपने घरों में भी फलदार पेड़ लगाएँगे।
रामू : यह तो बड़ा नेक काम है। हमें कल से ही काम शुरू करना चाहिए।
संजय : पहले तू यह बता कि तू नियमित रूप से स्कूल जाएगा या नहीं।
रामू : जाऊँगा।
मनोज : हम सबको टोली के नियमों का पालन करना होगा।
सब बच्चे : हाँ, करेंगे
श्यामू : अपनी टोली के मुखिया के रूप में मैं मोहन का नाम रखता हूँ। आपकी क्या राय है?
सब बच्चे : हमें मंजूर है।
चौथा दृश्य
–
(एक साल बाद गाँव में विशाल सभा का आयोजन किया गया है। जिले के कलेक्टर, विधायक तथा सरपंच आए हुए हैं। गाँव के सब लोग उपस्थित हैं।)
कलेक्टर : इस गाँव को साफ-सुथरा देखकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हुई है। गाँव को एक नया जीवन प्रदान किया गया है। इन बच्चों की जितनी बड़ाई की जाए उतनी ही थोड़ी है। इन सबने मिलकर गाँव को स्वच्छ वातावरण दिया है। बाल – शक्ति के कारण आपका गाँव एक आदर्श गाँव बन गया है।
(उपस्थित लोग तालियाँ बजाते हैं)
कलेक्टर : सरकार की तरफ से ‘बाल – शक्ति’ टोली को पाँच हज़ार रुपये दिए गए हैं। इस टोली का मुखिया आकर यह राशि स्वीकार करे।
(मोहन जाता है। कलेक्टर साहब मोहन को पाँच हज़ार रुपये का लिफ़ाफ़ा देते हैं।)
मोहन : ये रुपये हम प्राधानाध्यापक जी को दे देंगे। स्कूल के पुस्तकालय में गरीब बच्चों के लिए हम पुस्तकों का प्रबंध करेंगे।
एक बुजुर्ग : ये गाँव के सच्चे सपूत हैं।
सभी लोग बोलते हैं बाल-शक्ति की जय!
शब्दार्थ :
कंचा – Glass Marble;
निशाना – लक्ष्य,
बेईमानी – अप्रामाणिकता, धोखा
फैसला – निर्णय,
गृह कार्य – घर में करने के लिए दिया जानेवाला अभ्यास, Home Work
उम्र – आयु, अवस्था
आदत – अभ्यास, स्वभाव
टोली – मंडली,
समूह – टोली, Group;
शामिल करना – मिलाना,
गंदगी – मैलापन,
गड्ढ़ा – धरती में गहरा स्थान, Pit
ढाँपना – ढाँकना, छिपाना
कूड़ा – घास-फूस आदि गंदी चीजें,
फलदार – फल देनेवाला,
उपयोगी – नेक, अच्छा,
आयोजन – प्रबंध, इंतज़ाम
विधायक – व्यवस्था करनेवाला (MLA), निर्णय करनेवाला, विधानसभा के सदस्य
सरपंच – गाँव का मुखिया,
बड़ाई – प्रशंसा,
लिफ़ाफ़ा – खाम, पत्र आदि भरकर भेजने की थैली,
सपूत – अच्छा बेटा, अच्छा लड़का।
I. एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
- कौन-कौन कंचे खेल रहे थे?
उत्तर – रामू और श्यामू कंचे खेल रहे थे।
- खेल में कौन सदा बेईमानी करता है?
उत्तर – रामू खेल में सदा बेईमानी करता है।
- रामू को स्कूल जाने के लिए कौन कहता है?
उत्तर – रामू को स्कूल चलने के लिए मोहन कहता है।
- रामू ने किस विषय का गृह कार्य नहीं किया था?
उत्तर – रामू ने गणित विषय का गृह कार्य नहीं किया था।
- हमें किस उम्र में अच्छी आदतें डालनी है?
उत्तर – हमें बारह साल की उम्र में अच्छी आदतें डालनी है।
- रामू को टोली में लाने की जिम्मेदारी किसने ली?
उत्तर – रामू को टोली में लाने की जिम्मेदारी संजय ने ली।
- टोली का मुखिया कौन बना?
उत्तर – मोहन टोली का मुखिया बना।
- बच्चों की तारीफ किसने की?
उत्तर – कलेक्टर साहब ने बच्चों की तारीफ की।
II. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
- रामू में कौन-कौन-सी बुरी आदतें थीं
उत्तर – रामू में बेईमानी करने, झूठ बोलने एवं समय पर गृहकार्य पूरा न करने की बुरी आदतें थीं।
- गाँव की सफाई के लिए बालक क्या काम करते हैं?
उत्तर – गाँव की सफाई के लिए कुछ जिम्मेदार बालक एकत्रित हुए। उन्होंने रोज़ एक घंटा गाँव की सफाई में लगाने की सोची। उन्होंने गाँव के कई गड्ढे मिट्टी से ढाँपे, कूड़ा डालने के लिए एक निश्चित जगह बनाया तथा गाँव को हरा-भरा रखने के लिए पेड़-पौधे लगाएँ।
- गाँव को आदर्श गाँव कैसे बनाया जा सकता है?
उत्तर – गाँव को आदर्श गाँव बनाने के लिए प्रत्येक निवासी को अपने सामाजिक कर्तव्यों का सही से पालन करना होगा। पढ़ाई-लिखाई, साफ-सफाई, एकता-अनुशासन आदि के प्रति भी जागरूक होना पड़ेगा, इस तरह से गाँव को आदर्श गाँव बनाया जा सकता है।
- कलेक्टर साहब ने बच्चों की बड़ाई में क्या कहा?
उत्तर – कलेक्टर साहब ने बच्चों की बड़ाई में कहा कि इन बच्चों ने गाँव को एक नया जीवन प्रदान किया है। इन बच्चों की जितनी बड़ाई की जाए उतनी कम है। इन सबने मिलकर गाँव को स्वच्छ वातावरण दिया है। बाल-शक्ति के कारण आपका गाँव एक आदर्श गाँव बन गया है।
- पाँच हज़ार रुपये मिलने पर मोहन क्या सोचता है?
उत्तर – सरकार की तरफ से ‘बाल-शक्ति’ टोली को मिले पाँच हज़ार रुपये पाकर टोली का मुखिया मोहन यह सोचता है कि ये रुपये हम प्राधानाध्यापक जी को दे देंगे। वे इन पैसों से स्कूल के पुस्तकालय में गरीब बच्चों के लिए पुस्तकों का प्रबंध करेंगे।
III. मिलान कीजिए :-
- बेईमानी करनेवाला मोहन
- टोली का नाम पाँच हज़ार
- इनाम के रुपये बुजुर्ग
- टोली का मुखिया रामू
- ये गाँव के सपूत हैं बाल- शक्ति
उत्तर –
- बेईमानी करनेवाला रामू
- टोली का नाम बाल-शक्ति
- इनाम के रुपये पाँच हज़ार
- टोली का मुखिया मोहन
- ये गाँव के सपूत हैं बुजुर्ग
IV. खाली जगह भरिए :-
- रामू और श्यामू __________ खेल रहे थे।
उत्तर – कंचे
- __________ की कॉपी घर पर भूल आया हूँ।
उत्तर – गणित
- अभी से अच्छी __________ डालनी चाहिए।
उत्तर – आदतें
- __________ की गंदी आदतें छुड़वाएँगे।
उत्तर – रामू
- रोज़ एक घंटा गाँव की __________ में लगाएँगे।
उत्तर – सफाई
- कूड़ा डालने के लिए एक __________ जगह बनाएँगे।
उत्तर – निश्चित
- आपका गाँव एक __________ गाँव बन गया है।
उत्तर – आदर्श
V. शब्द लड़ी बनाइए :-
जैसे : कंचा →चारु रुपया→यार रमा (अंतिम वर्ण से एक नया शब्द)
- बालक → कलम – मकान – नरेश – शलगम
- गाँव → वन – नदी – दीवार – रमेश
- टोली → लीची – चीनी – नीलम – मक्का
- फलदार → रवि – विनय – यश – शहर
- इनाम → ममता – ताला – लाल – लड़की
VI. विलोम शब्द लिखिए :-
उदाहरण : अपना x पराया
- रात X दिन
- आदि x अंत
- आयात x निर्यात
- आय X व्यय
- उल्टा X सीधा
- हानि X लाभ
- तोड़ X जोड़
- थोड़ा X बहुत
- उतार X चढ़ाव
VII. ‘बेईमानी’ ईमानी का विलोम शब्द है। ‘ईमानी’ शब्द से पहले ‘बे’ उपसर्ग जोड़ने से यह शब्द बना है। इसी तरह अप, अन, कु, बद उपसर्गों (प्रत्यय) को जोड़कर पाँच-पाँच शब्द बनाइए।
उत्तर – अप + यश = अपयश
अप + मान = अपमान
अप + शब्द = अपशब्द
अप + प्रचार = अपप्रचार
अप + व्यय = अपव्यय
अन + कही = अनकही
अन + पढ़ = अनपढ़
अन + सुना = अनसुना
अन + जान = अनजान
अन + चाहा = अनचाहा
कु + रूप = कुरूप
कु + पुत्र = कुपुत्र
कु + कर्म = कुकर्म
कु + ख्यात = कुख्यात
कु + संग = कुसंग
बद + नाम = बदनाम
बद + रंग = बदरंग
बद + सूरत = बदसूरत
बद + हजमी = बदहजमी
बद + हवाश = बद हवाश
VIII. न’ को अंतिम अक्षर के रूप में प्रयोग कर शब्द रचिए :-
नमूना: जन मन
उत्तर – नमन, नयन, पतन, शयन, पवन, हवन, गबन, शमन, बहन, वहन, चमन, रमन, यमन,
IX. अर्थपूर्ण वाक्य बनाइए :-
श्यामू
इनाम
टोली
कंचा
देते हैं।
कलेक्टर साहब
बनती है।
मोहन
खेलते हैं।
बालकों की
बनाते हैं।
बालक
लेता है।
खेलता है।
जैसे : श्यामू कंचा खेलता है।
कलेक्टर साहब इनाम देते हैं।
मोहन इनाम लेता है।
बालकों की टोली बनती है।
बालक कंचा खेलता है।
भाषा ज्ञान
I. व्यक्तिवाचक और जातिवाचक संज्ञाओं को पहचानिए :-
मुखिया, कलेक्टर, गाँव, बाल-शक्ति, श्यामू, रामू, बालक, गणित, मोहन, गुरुजी, मनोज, कमीज़
व्यक्तिवाचक संज्ञा
श्यामू
रामू
मोहन
मनोज
जातिवाचक संज्ञा
मुखिया
कलेक्टर
गाँव
बाल-शक्ति
बालक
गणित
गुरुजी
II.इस नाटिका में मार, छोड़, पकड़, बोल, डाल, दे, लगा, मान जैसे अनेक धातुओं का प्रयोग हुआ है। नीचे दिये गये शब्दों को उचित धातुओं के साथ लिखिए:
- कमीज – छोड़
- पेड़ – पकड़
- रुपये – दे
- कंचा – दे
- गुस्सा – लगा
- सच – बोल
- बात – मान
- कूड़ा – डाल
विशेष सूचना : ‘क्रिया’ का मूल रूप ‘ धातु’ है।
III. इस नाटिका में ‘संयुक्त क्रियाओं का प्रयोग हुआ है जैसे-खेलने लगा, बन गया इत्यादि। इस तरह के क्रिया-युग्मों को ढूँढ़कर सूची बनाइए।
सूचना : संयुक्त क्रिया / क्रिया-युग्म ‘दो क्रियाओं का एक साथ प्रयोग।’
उत्तर – मार दूँगा।
झगड़ रहे हो
दे देना।
बोलने पड़ते हैं।
बोलने लगा है।
कहा करते हैं।
बात मानता है।
जी चुराते हैं।
* सोचिए, अगर आपका कोई साथी रामू जैसे होता तो उसे सुधारने के लिए आप क्या योजना बनाते?
उत्तर – यदि मेरा कोई मित्र शरारती या अनुशासनहीन होगा तो मैं उसे सुधारने के लिए धैर्य, समझ और सही मार्गदर्शन दूँगा और दूसरों को भी निम्नलिखित उपाय अपनाने की सलाह दूँगा।
- प्यार और संवाद बढ़ाएँ-
बच्चे को डांटने या मारने की बजाय प्यार से समझाएँ।
उसकी भावनाओं और समस्याओं को जानने का प्रयास करें।
नियमित रूप से उससे बातचीत करें ताकि वह अपनी बात खुलकर कह सके।
- अनुशासन और नियम बनाएँ-
बच्चे को अच्छे और बुरे व्यवहार में फर्क सिखाएँ।
घर और स्कूल में पालन करने के लिए सरल नियम निर्धारित करें।
यदि वह नियम तोड़ता है, तो उचित दंड (जैसे टीवी देखने से रोकना) दें।
- सकारात्मक गतिविधियों में लगाएँ-
उसे खेल, संगीत, कला या अन्य रचनात्मक कार्यों में व्यस्त करें।
उसकी ऊर्जा को सही दिशा में लगाने से वह अनुशासित बनेगा।
- अच्छे मित्रों और आदर्शों से जोड़ें-
ध्यान दें कि बच्चा किन दोस्तों के साथ समय बिताता है।
उसे अच्छे रोल मॉडल (जैसे महापुरुषों की कहानियाँ) से प्रेरित करें।
- प्रोत्साहन और प्रशंसा दें-
जब बच्चा अच्छा व्यवहार करे, तो उसकी सराहना करें।
छोटी-छोटी उपलब्धियों पर इनाम दें ताकि वह प्रेरित हो।
- सही मार्गदर्शन और सलाह दें-
उसकी गलतियों को प्यार से समझाएँ और उन्हें सुधारने में मदद करें।
जरूरत पड़ने पर शिक्षक, काउंसलर या मनोवैज्ञानिक की सलाह लें।
सही परवरिश और धैर्य से हर बच्चे का व्यवहार सुधारा जा सकता है!
* अपना गाँव, अपना जिला, अपना परिसर सब कुछ अपना है। इन्हें सुधारने के लिए आपने क्या किया है? क्या करना चाहते हैं? अपने मित्रों से चर्चा कीजिए।
उत्तर – अगर हमें अपने गाँव, जिला और परिसर को सुधारना है, तो व्यक्तिगत रूप से पहल करनी होगी। निम्नलिखित कार्य करके समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश की हो सकती है –
- स्वच्छता अभियान में भागीदारी
गाँव और स्कूलों में सफाई अभियान चलाया।
प्लास्टिक कचरे को कम करने के लिए लोगों को जागरूक किया।
सार्वजनिक स्थानों पर कचरा न फैलाने की आदत डाली और दूसरों को प्रेरित किया।
- पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य
वृक्षारोपण किया और अन्य लोगों को भी पेड़ लगाने के लिए प्रेरित किया।
जल संरक्षण के लिए वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) पर काम किया।
प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करने के लिए जागरूकता फैलाई।
- शिक्षा और जागरूकता अभियान
गाँव के बच्चों को निःशुल्क पढ़ाने में योगदान दिया।
वयस्कों को साक्षर बनाने के लिए ‘साक्षरता अभियान’ में भाग लिया।
डिजिटल शिक्षा और नई तकनीकों के बारे में लोगों को जानकारी दी।
- यातायात और अनुशासन पर कार्य
सड़क सुरक्षा नियमों का पालन किया और दूसरों को भी प्रेरित किया।
हेलमेट और सीटबेल्ट पहनने की आदत डाली और गाँव में इसके प्रति जागरूकता फैलाई।
- समाज में आपसी सौहार्द बढ़ाने के प्रयास
धार्मिक और जातिगत भेदभाव को कम करने के लिए लोगों को जोड़ा।
गाँव में छोटे बच्चों और बुजुर्गों की सहायता करने का प्रयास किया।
सरकारी योजनाओं की जानकारी लोगों तक पहुँचाई और उनका लाभ उठाने में मदद की।
निष्कर्ष:
बदलाव लाने के लिए हमें पहले खुद को बदलना होगा। छोटे-छोटे प्रयासों से ही बड़ा परिवर्तन संभव होता है। मैंने जो भी कार्य किए या करने की कोशिश की, वह मेरे गाँव, जिला और परिसर को सुधारने के लिए एक छोटा कदम है, लेकिन अगर हम सभी मिलकर प्रयास करें, तो यह बदलाव और भी प्रभावी हो सकता है।
* स्कूल के वार्षिकोत्सव पर इस नाटिका का अभिनय कीजिए।
उत्तर – छात्र शिक्षक की मदद से इसे करें।
* इस नाटिका का अपनी मातृभाषा में अनुवाद कर स्कूल की वार्षिक पत्रिका में प्रकाशित करें।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
* साहस प्रदर्शन या सेवा कार्य के लिए पुरस्कार प्राप्त बच्चों की कथाओं का चार्ट बनाकर प्रदर्शनी का आयोजन करें।
उत्तर – भारत में कई साहसी और सेवा-भावी बच्चों ने अपने अद्वितीय कार्यों से समाज को प्रेरित किया है। यहाँ कुछ ऐसे बच्चों की कहानियाँ प्रस्तुत हैं –
- आदित्य विजय ब्रम्हणे (महाराष्ट्र)
12 वर्षीय आदित्य ने अपने भाइयों हर्ष और श्लोक को नदी में डूबने से बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी इस वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार 2024 से सम्मानित किया गया।
- अलाइका (हिमाचल प्रदेश)
13 वर्षीय अलाइका ने एक दुर्घटना के दौरान अपनी माता, पिता और दादा की जान बचाई। उनकी तत्परता और साहस ने उनके परिवार को एक बड़े हादसे से सुरक्षित रखा।
- अमनदीप कौर (पंजाब)
अमनदीप ने जलती हुई गाड़ी में फंसे चार बच्चों को बचाने का साहसिक कार्य किया। उनकी बहादुरी के लिए उन्हें भारतीय बाल कल्याण परिषद (ICCW) द्वारा वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- प्रफुल्ल शर्मा (हिमाचल प्रदेश)
सरकाघाट के प्रफुल्ल ने अनियंत्रित बस को ब्रेक लगाकर 20 बच्चों की जान बचाई। उनकी इस अदम्य साहस के लिए उन्हें राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से नवाजा गया।
- मुकेश निषाद (छत्तीसगढ़)
दुर्ग जिले के 17 वर्षीय मुकेश ने खलिहान में आग लगने पर छह बच्चों की जान बचाई। उनके इस साहसिक कार्य के लिए उन्हें राष्ट्रीय वीरता सम्मान से सम्मानित किया गया।
इन बच्चों की कहानियाँ न केवल प्रेरणास्पद हैं, बल्कि यह दर्शाती हैं कि साहस और सेवा की भावना किसी उम्र की मोहताज नहीं होती।