(1912-2009)
मानव जीवन का यथार्थ चित्रण करनेवाले लेखकों में विष्णु प्रभाकर जी का महत्वपूर्ण स्थान है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर के मीरपुर में सन् 1912 ई. में हुआ। पंजाब में शिक्षा पाकर वहीं 15 वर्ष तक उन्होंने सरकारी नौकरी की। सन् 1955 में आकाशवाणी के दिल्ली केंद्र में नाटक निर्देशक बने। डेढ़ वर्ष बाद वहाँ से त्यागपत्र दिया और तब से स्वतंत्र साहित्यिक के रूप में जीवन यापन कर रहे थे।
विष्णु प्रभाकर जी गांधीवादी लेखक माने जाते हैं। आपके एकांकी मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत हैं। मानवीय संबंधों का मनोवैज्ञानिक धरातल पर भावात्मक चित्रण उनके एकांकियों की विशेषता है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं आवारा मसीहा, तट के बंधन, निशिकांत, दर्पण का व्यक्ति, धरती अब भी घूम रही है, युगे-युगे क्रांति, गृहस्थी आदि।
विष्णु प्रभाकर मानव-मन के पारखी लेखक हैं। इस एकांकी में उन्होंने स्वाभिमान, परदुःखकातरता जैसी मानवीय भावनाओं का सुंदर चित्रण किया है। गरीब होकर भी स्वाभिमानी और परिश्रम की कमाई से जीनेवाले बसंत और प्रताप एक ओर हैं तो दूसरी ओर कंगालों के प्रति हमदर्दी दिखाते हुए आदर के साथ व्यवहार करनेवाले राजकिशोर जैसे पात्र अनुसरणीय हैं।
छात्र इस एकांकी में चित्रित बालक के चरित्र से प्रेरित होकर प्रामाणिकता से जीना सीख सकते हैं।
बसंत की सच्चाई
पात्र – परिचय
बसंत : एक गरीब शरणार्थी लड़का
प्रताप : बसंत का छोटा भाई
पंडित राजकिशोर : एक नेता
डॉक्टर तथा दो राह चलते व्यक्ति
पहला दृश्य
(स्टेज पर सुविधानुसार एक बड़े नगर के बाज़ार का प्रतीकात्मक दृश्य। आने-जाने, लेने-देने का शोर, फेरीवालों की पुकार। उन्हींके बीच में एक लड़का, नंगे पैर, फटे कपड़े पहने, हाथ में सामान संभाले भागता हुआ आता है। उसकी आयु लगभग 12 वर्ष की है। उसका नाम बसंत है। वह पुकार रहा है।)
बसंत : छलनी ले लो, बटन ले लो, दियासलाई ले लो।
(कोई उसकी बात नहीं सुनता। सब उसे देखते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। इसी समय एक खद्दरधारी व्यक्ति वहाँ से जाते दिखाई देते हैं। वे मजदूर नेता पं. राजकिशोर हैं। बसंत उन्हें देखकर उनके पीछे भागता है।)
बसंत : साहब! बटन लीजिए, देसी बटन। साहब, दियासलाई लीजिए।
राजकिशोर : भाई! मुझे कुछ नहीं चाहिए। जाओ, किसी और को दो।
बसंत : साहब छलनी लीजिए। दूध छानिए, चाय छानिए…
राजकिशोर : मुझे नहीं चाहिए।
बसंत : बटन…
राजकिशोर : नहीं।
बसंत : दियासलाई…
राजकिशोर : नहीं, नहीं।
बसंत : (विनम्र स्वर) साहब एक छलनी ले लीजिए। सिर्फ दो आना कीमत है।
राजकिशोर : पर भाई! मुझे नहीं चाहिए तो कैसे ले लूँ?
बसंत : अच्छा आप छ: पैसे…।
राजकिशोर : ओहो! कह दिया मुझे कुछ नहीं चाहिए।
बसंत : (रुआँ – सा) साहब, सबेरे से अब तक कुछ नहीं बिका। आपसे आशा थी। साहब! एक तो ले लीजिए।
राजकिशोर : (जेब से दो पैसे निकालते हुए) तुम तो… अच्छा तुम्हें पैसे चाहिए। लो, ये दो पैसे लो और जाओ।
बसंत : (एकदम) नहीं साहब, नहीं। मैं पैसे नहीं लूँगा।
राजकिशोर : नहीं लोगे?
बसंत : जी नहीं, आप छलनी ख़रीद लीजिए।
राजकिशोर : अच्छा, एक छलनी में तुम्हें क्या बचेगा?
बसंत : दो पैसे।
राजकिशोर : तो बस पैसे ले लो और समझ लो मैंने एक छलनी ख़रीद ली।
बसंत : नहीं साहब, नहीं। यह तो भीख है। मैं भीख नहीं लूँगा। आप छलनी ले लें।
(राजकिशोर पर इस बात का बड़ा असर होता है। वे सहसा उस बच्चे को देखते हैं फिर जेब टटोलते हैं, पर पैसे नहीं मिलते।)
राजकिशोर : भाई, मेरे पास पैसे नहीं हैं। होते तो ले लेता, नोट है।
बसंत : (उदास) नोट है। पैसे तो मेरे पास भी नहीं हैं। कुछ बिका ही नहीं।
राजकिशोर : तभी तो कहता था। अच्छा, कल ले लूँगा या मेरे घर ले आना। किशनगंज में रहता हूँ।
बसंत : (एकदम) नहीं साहब, आज ही ले लीजिए। आप नोट मुझे दीजिए, मैं अभी बाज़ार से भुना लाता हूँ।
राजकिशोर : भाई तुम तो…
बसंत : बस मैं यह आया।
राजकिशोर : अच्छा लो, भुना लाओ, अभी आना।
बसंत : अभी आया, साहब। आप यहीं ठहरें ; अभी पलक मारते ही आया।
(बसंत नोट लेकर बाज़ार की ओर भागता है। राजकिशोर वहीं खड़े रहते हैं। धीरे-धीरे पंद्रह-बीस मिनट बीत जाते हैं। जैसे-जैसे समय बीतता है, वे उत्सुक होकर बाज़ार की ओर देखते हैं।)
राजकिशोर : पंद्रह मिनट हो गए, अब तक नहीं आया। कहाँ रह गया? मुझे तो लगता है अब नहीं लौटेगा।
दूसरा दृश्य
(स्टेज पर ज़रा सा परिवर्तन के साथ पहले जैसा दृश्य। एक ओर किशनगंज का बोर्ड लगा हुआ है। हल्का शोर है। संध्या हो गई है। लोग घरों की ओर लौट रहे हैं। उन्हींके बीच में एक दुबला-पतला लड़का जल्दी-जल्दी आता है। वह नंगे पैर है, कपड़े फटे हैं। आयु लगभग दस वर्ष है। उसकी शक्ल बसंत से मिलती है। वह उसका छोटा भाई प्रताप है। वह आते-जाते व्यक्तियों से कुछ पूछ रहा है। उसके मुख पर व्यग्रता है।)
प्रताप : क्यों जी. किशनगंज यही है?
एक व्यक्ति : हाँ।
प्रताप : पं. राजकिशोर कहाँ रहते हैं?
एक व्यक्ति : कौन राजकिशोर?
प्रताप : जो लैक्चर देते हैं। मजदूरों की बस्ती में जाते हैं।
एक व्यक्ति : मैं नहीं जानता, आगे पूछो।
(प्रताप आगे बढ़ जाता है, और एक दूसरे व्यक्ति से पूछता है।)
प्रताप : क्यों जी, पं. राजकिशोर कहाँ रहते हैं?
दूसरा व्यक्ति : कौन पं. राजकिशोर? वे जो मजदूरों के नेता
प्रताप : हाँ, हाँ, वे ही।
दूसरा व्यक्ति : (इशारा करके) उधर देखो, वह नीला परदा है न!
प्रताप : हाँ।
दूसरा व्यक्ति : बस वे वहीं रहते हैं।
(व्यक्ति आगे बढ़ जाता है। प्रताप नीले परदेवाले मकान के सामने जाकर पुकारता है।)
प्रताप : राजकिशोर जी, पं. राजकिशोर जी!
(अंदर से आवाज़ आती है।)
राजकिशोर : कौन? (खिड़की से झाँककर देखते हैं) क्यों भाई, क्या बात है?
प्रताप : जी, मुझे मेरे भाई ने भेजा है।
राजकिशोर : तुम्हारा भाई! ठहरो मैं आता हूँ। (बाहर आकर) तेरा भाई कौन है, बच्चे!
प्रताप : आज दोपहर को उसने आपको एक छलनी बेची थी।
राजकिशोर : हाँ, हाँ, आज मैंने एक लड़के से एक छलनी ली थी। एक रुपए का नोट दिया था।
प्रताप : वह नोट भुनाने गया था, मगर जब भुनाकर लौट रहा था तो मोटर के नीचे आ गया। मोटर उसके ऊपर से निकल गई।
राजकिशोर : (अचरज) क्या! मोटर उसके ऊपर से निकल गई!
प्रताप : (स्वर गिरता है) उसका सामान, पैसे, सब बिखर गए। उसके दोनों पैर कुचले गए।
राजकिशोर : (भय) पैर कुचले गए…
प्रताप : (रुआँ-सा) जी हाँ। और इसलिए वह आपके पास न आ सका। वह बेहोश हो गया था। बड़ी मुश्किल से उसे घर ले गए। बड़ी देर में जब उसे होश आया तो उसने मुझे आपके पैसे लौटाने को कहा। मैं आपके साढ़े चौदह आने लाया हूँ।
राजकिशोर : (खोया-खोया) मेरे साढ़े चौदह आने लाए हो! उसने भेजे हैं! लेकिन बच्चे! वह अब कहाँ है?
प्रताप : घर।
राजकिशोर : घर में कौन है?
प्रताप : कोई नहीं।
राजकिशोर : कोई नहीं…?
प्रताप : जी हाँ! मैं और मेरा भाई, हम दोनों भीखू अहीर के घर में रहते हैं।
राजकिशोर : तुम्हारे माँ – बाप क्या…
प्रताप : (रो पड़ता है) वे मारे गए। दंगों के दिनों में उन्हें किसी ने मार डाला…
राजकिशोर : (खोया-खोया) उन्हें किसी ने मार डाला? तुम दोनों भीखू अहीर के घर रहते हो! (एकदम जागकर) बच्चे! रोओ मत। मैं अभी तुम्हारे साथ चलता हूँ। अभी …
प्रताप : आप मेरे साथ चलेंगे?
राजकिशोर : हाँ, अभी चलो। (आगे बढ़ते हैं) पर हाँ! तुम्हारा घर कहाँ है?
प्रताप : अहीर टीले में।
राजकिशोर : (अंदर की ओर देखकर) अमरसिंह! मैं अहीर टीला जा रहा हूँ। तुम इसी वक्त डॉ. वर्मा को लेकर वहाँ आओ। कहना कि एक लड़के की टाँगें मोटर के नीचे आकर कुचली गई हैं। जल्दी करो! भीखू अहीर का घर पूछ लेना। (मुड़कर) आओ बच्चे, चलें।
(प्रताप चकित – विस्मित उन्हें देखता है। फिर ठगा सा उनके आगे-आगे जाता है। परदा गिरता है |)
तीसरा दृश्य
(स्टेज पर एक कच्चे घर के अंदर के ओसारे का दृश्य। ज़मीन पर दरी बिछी है, उस पर बसंत लेटा है। रह-रह कर दर्द से कराह उठता है। प्रताप और राजकिशोर का प्रवेश)
प्रताप : यह रहा, साहब।
राजकिशोर : अरे! यह तो ज़मीन पर लेटा है।
बसंत : (चकित होकर) आप! आप आए हैं….
राजकिशोर : कहाँ चोट लगी है, बेटा? देखूँ….
(राजकिशोर पास आकर टाँग देखते हैं। किसी ने फस्ट ऐड दी है। पट्टी बँधी है। छूते ही चीख़ निकल जाती है। बसंत ओठ भींचकर आह खींचता है।)
बसंत : ओह, ओह …
(राजकिशोर कुछ देर इसी तरह देखते हैं।)
राजकिशोर : नहीं, नहीं, घबराओ नहीं।
बसंत : (दर्द से कराहते हुए) मैं मोटर से टकरा गया था, इसलिए तब आपके पैसे न लौटा सका।
राजकिशोर : उस बात की चिंता न करो, बेटा! मैंने डॉक्टर को बुलवाया है। तुम ठीक हो जाओगे।
बसंत : डॉक्टर को बुलवाया है…
(डॉक्टर का प्रवेश)
डॉक्टर : हैलो पंडित जी! मैंने इसे बाज़ार में देखा है।
राजकिशोर : जी हाँ! ज़रा देखिए तो।
(डॉक्टर पैर देखते हैं। बसंत ज़ोर से ओठ भींचता है। प्रताप की आँखों से आँसू झरते हैं। वह कभी भाई को देखता है, कभी डॉक्टर को। राजकिशोर उत्सुकता से पूछते हैं।)
राजकिशोर : क्यों डॉक्टर! ठीक हो जाएगा न?
डॉक्टर : (गंभीर) पंडित जी! ऐसा लगता है कि पैर की हड्डी टूट गई है। स्क्रीन करके देखना होगा। दूसरा पैर ठीक है, पर इसे अभी अस्पताल ले जाना चाहिए।
राजकिशोर : तो क्या हुआ, अभी ले चलो। मैं एम्बुलंस के लिए फोन कर आता हूँ।
डॉक्टर : जी हाँ, कर आइए। मैं तब तक इंजेक्शन लगाता हूँ।
बसंत : (आँखें खोलकर)आप! आप क्या कर रहे हैं? मैं गरीब हूँ…
राजकिशोर : (हँसकर) तुम चिंता मत करो। बस चुपचाप लेटे रहो बेटा! डॉक्टर साहब! जब तक मैं नहीं आता आप यहीं रहें, इसे बचाना ही होगा। यह गरीब है पर इसमें एक दुर्लभ गुण है, यह ईमानदार है।
(डॉक्टर प्रताप की सहायता से इंजेक्शन तैयार करते हैं। बसंत आँखें बंद कर लेता है। क्षण भर के लिए उसके मुख पर शांति और कृतज्ञता उभर आती है। डॉक्टर इंजेक्शन लगाते हैं, बसंत ओठ भींचता है। प्रताप भाई का सिर थामता है, और परदा गिरता जाता है।)
शब्दार्थ :
राह – मार्ग रास्ता,
दियासलाई – माचीस
छलनी – जालीदार छोटा उपकरण,
एक आना- छह पैसे,
रुआँसा – रोने जैसा
अहीर – ग्वाला,
टीला – बस्ती, ऊँची जगह
ओठ-भींचना – दर्द सहन करना,
फेरीवाले – घूम-फिरकर सामान बेचनेवाले व्यापारी,
भुना लाना – बड़े सिक्के को चिल्लर / छुट्टे के रूप में बदलना,
ओसारा – बरामदा, घर के आगे का भाग;
शक्ल – स्वरूप, आकृति
व्यग्रता – व्याकुल, उद्विग्न, बेचैन।
I. एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
- बसंत क्या – क्या बेचता था?
उत्तर – बसंत फेरीवाला था, वह छलनी, बटन और दियासलाई बेचता था।
- बसंत के भाई का नाम क्या था?
उत्तर – बसंत के भाई का नाम प्रताप था।
- पंडित राजकिशोर क्या काम करते थे?
उत्तर – पंडित राजकिशोर मजदूरों के नेता थे। वे मजदूरों के हित में उनकी बस्तियों में जाकर भाषण दिया करते थे।
- छलनी का दाम क्या था?
उत्तर – छलनी का दाम केवल दो आने था।
- बसंत और प्रताप कहाँ रहते थे?
उत्तर – बसंत और प्रताप अहीर टीले में भीखू अहीर के घर में रहते थे।
- ‘बसंत की सच्चाई’ एकांकी में कितने दृश्य हैं?
उत्तर – ‘बसंत की सच्चाई’ एकांकी में कुल तीन दृश्य हैं।
- एकांकी का प्रथम दृश्य कहाँ घटता है?
उत्तर – एकांकी का प्रथम दृश्य एक बड़े नगर के बाज़ार में घटित होता है।
- बसंत के घर पर डॉक्टर को कौन ले आता है?
उत्तर – पंडित राजकिशोर के कहे अनुसार अमरसिंह बसंत के घर पर डॉक्टर को ले आता है।
- पं. राजकिशोर के अनुसार बसंत में निहित दुर्लभ गुण कौन-सा है?
उत्तर – पंडित राजकिशोर के अनुसार बसंत में ईमानदारी का दुर्लभ गुण निहित है।
- पं. राजकिशोर कहाँ रहते थे?
उत्तर – पंडित राजकिशोर किशनगंज में रहते थे।
II. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
- छलनी से क्या-क्या कर सकते हैं?
उत्तर – पाठ में बसंत के कहे अनुसार छलनी से दूध छान सकते हैं और चाय भी छान सकते हैं।
- बसंत राजकिशोर से क्या विनती करता है?
उत्तर – बसंत पंडित राजकिशोर से छलनी, बटन या दियासलाई लेने की विनती करता है। इस पर जब राजकिशोर मना करते हैं कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए तब वह उनसे यह कहता है कि सुबह से अभी तक कुछ नहीं बिका। आपसे बड़ी आशा है कि आप कुछ ले लें। यह कहकर वह दो आने में छलनी ले लेने की विनती करता है।
- बसंत राजकिशोर से दो पैसे लेने से क्यों इनकार करता है?
उत्तर – बसंत राजकिशोर से दो पैसे लेने से इनकार करता है क्योंकि वे सामान न लेकर सहायतार्थ दो पैसे दे रहे थे। पंडित राजकिशोर की यह दया स्वाभिमानी बसंत को भीख की तरह लग रही थी।
- बसंत राजकिशोर के पास क्यों नहीं लौटा?
उत्तर – बसंत राजकिशोर के पैसे भुनाने के लिए बाज़ार गया पर लौटते समय एक मोटर के नीचे आ गया और उसके दोनों पैर कुचले गए। इसी कारण से वह राजकिशोर के पास नहीं लौट सका।
- प्रताप राजकिशोर के घर क्यों आया?
उत्तर – प्रताप राजकिशोर के घर आया क्योंकि उसके बड़े भाई बसंत ने प्रताप को पंडित राजकिशोर के साढ़े चौदह आने बकाया राशि लौटाने का निर्देश दिया था।
- बसंत ने राजकिशोर को छलनी खरीदने के लिए किस तरह प्रेरित किया?
उत्तर – बसंत एक कुशल और ईमानदार फेरीवाला था। उसने राजकिशोर को छलनी खरीदने के लिए इसकी उपयोगिता बताते हुए दूध और चाय छानने जैसी बातें बताई और दो आने की कम कीमत का हवाला भी दिया।
- बसंत के पैर देखकर डॉक्टर ने क्या कहा?
उत्तर – बसंत के पैर देखकर डॉक्टर ने कहा कि ऐसा लगता है कि पैर की हड्डी टूट गई है। स्क्रीन करके देखना होगा। दूसरा पैर ठीक है, पर इसे अभी अस्पताल ले जाना पड़ेगा।
III. चार-छह वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
- बसंत ईमानदार लड़का है। कैसे?
उत्तर – बसंत ईमानदार लड़का है। इस कथन की पुष्टि निम्नलिखित घटनाओं से होती है –
पहला, जब उसने ईमानदारी से राजकिशोर जी को छलनी से होने वाले दो पैसे के लाभ की बात कही।
दूसरा, जब उसने राजकिशोर जी के द्वारा दी जाने वाली दो पैसे की सहायता लेने से इनकार कर दिया।
तीसरा, मोटर दुर्घटना के बाद होश में आने पर अपने छोटे भाई प्रताप को किशनगंज भेजकर राजकिशोर के साढ़े चौदह आने बकाया राशि लौटाने की घटना।
- बसंत और प्रताप अहीर के घर में क्यों रहते हैं?
उत्तर – बसंत और प्रताप भीखू अहीर के घर में रहते हैं क्योंकि किसी दंगे में उसके माँ-पिताजी दोनों ही मारे गए थे। अब वे अनाथ हो चुके हैं और मजबूरन सिर छिपाने के लिए भीखू अहीर के घर में रहते हैं। अपनी रोजी रोटी के लिए बसंत छलनी, बटन और दियासलाई बेचता था।
- राजकिशोर के मानवीय व्यवहार का परिचय दीजिए।
उत्तर – पंडित राजकिशोर मानवता की साक्षात् प्रतिमूर्ति थे। सबसे पहले तो वे मजदूरों के नेता थे और उनके हित के लिए उनकी बस्तियों में जाकर भाषण दिया करते थे। उन्होंने बसंत की सहायता के लिए सबसे पहले तो आवश्यक न होने पर भी छलनी खरीद लिया और बसंत की ईमानदारी से परिचित होने के बाद उसके इलाज के लिए डॉक्टर वर्मा को बुलाया। बसंत की गंभीर स्थिति में भी वे डॉक्टर से उसे बचाने के लिए कहते हैं क्योंकि उन्हें बसंत की ईमानदारी का बोध था। इन तमाम घटनाओं से यह तो स्वत: ही सिद्ध हो जाता है कि पंडित राजकिशोर असहायों और ईमानदारों के लिए मसीहा के समान थे।
IV. अनुरूपता :-
पं. राजकिशोर : किशनगंज :: बसंत : अहीर टीला
पं. राजकिशोर : मजदूरों के नेता :: बसंत : फेरीवाला
पं. राजकिशोर मालिक :: अमर सिंह : नौकर
प्रताप : छोटा भाई :: वर्मा : डॉक्टर
? : प्रश्नार्थक चिह्न :: ! : विस्मयादिबोधक चिह्न
V.रिक्त स्थान भरिए :-
- मैं अभी बाज़ार से __________ लाता हूँ।
उत्तर – भुना
- मैं आपके __________ आने लाया हूँ।
उत्तर – साढ़े चौदह
- हम दोनों __________ के घर में रहते हैं।
उत्तर – भीखू अहीर
- मैं __________ के लिए फोन कर आता हूँ।
उत्तर – एंबुलेंस
- इसमें एक दुर्लभ गुण है, यह __________ है।
उत्तर – ईमानदार
VI. निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार लिखिए :-
- एक छलनी में तुम्हें क्या बचेगा? (वर्तमान काल में)
उत्तर – एक छलनी में तुम्हें क्या बचता है?
- मैं अभी बाज़ार से भुना लाता हूँ। (भूतकाल में)
उत्तर – मैंने अभी बाज़ार से भुना लाया है।
- एक दूसरे व्यक्ति से पूछता है। (भविष्यत् काल में)
उत्तर – एक दूसरे व्यक्ति से पूछेगा।
VII. विलोम शब्द लिखिए :-
- पीछे X आगे
- खरीदना x बेचना
- लेना X देना
- आना X जाना
- शांति X अशांति
- गरीब X अमीर
VIII. कन्नड या अंग्रेज़ी में अनुवाद कीजिए :-
- उसकी आयु लगभग 12 वर्ष की है।
उत्तर – ಅವನ/ಅವಳ ವಯಸ್ಸು ಸುಮಾರು 12 ವರ್ಷಗಳು.
His/Her age is approximately 12 years.
- सबेरे से अब तक कुछ नहीं बिका।
उत्तर – ಬೆಳಿಗ್ಗೆಯಿಂದ ಇತ್ತಿವರೆಗೆ ಏನೂ ಮಾರಾಟವಾಗಿಲ್ಲ.
Nothing has been sold since morning.
- मैं भीख नहीं लूँगा।
उत्तर – ನಾನು ಭಿಕ್ಷೆ ಬೇಡಿಕೊಳ್ಳುವುದಿಲ್ಲ.
I will not beg.
- बड़ी मुश्किल से बसंत को घर ले गए।
उत्तर – ದೊಡ್ಡ ಕಷ್ಟದಿಂದ ಬಸಂತನ್ನು ಮನೆಗೆ ತೆಗೆದುಕೊಂಡು ಹೋದರು.
With great difficulty, they took Basant home.
- बसंत ओठ भींचकर आह खींचता है।
उत्तर – ಬಸಂತ್ ತುಟಿಗಳನ್ನು ಕಚ್ಚಿಕೊಂಡು ನಿಟ್ಟುಸಿರು ಬಿಡುತ್ತಾನೆ.
Basant clenches his lips and sighs.
- यह गरीब है पर इसमें एक दुर्लभ गुण है।
उत्तर – ಅವನು ಬಡವನಾಗಿದ್ದಾನೆ, ಆದರೆ ಅವನಲ್ಲಿ ಅಪರೂಪದ ಗುಣವಿದೆ.
He is poor, but he has a rare quality.
विष्णु प्रभाकर के अन्य एकांकियों की सूची बनाइए और किसी एक एकांकी का सार संक्षेप में लिखिए।
उत्तर – विष्णु प्रभाकर हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक थे, जिन्होंने कहानियों, उपन्यासों, नाटकों और एकांकियों का सृजन किया। उनके एकांकियों में सामाजिक, नैतिक और प्रेरणादायक विषयों को प्रमुखता दी गई है।
विष्णु प्रभाकर के प्रमुख एकांकी-
न्याय की देवी
शेर की माँद में
आखिरी टिकट
सूरज की ओर
देश का सेवक
अमिट यादें
एक माँ की पुकार
मुक्ति पथ
तीसरा वरदान
अनहोनी
‘न्याय की देवी’ एकांकी का सारांश:
यह एकांकी न्याय और सत्य की रक्षा के महत्त्व पर आधारित है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे एक न्यायप्रिय व्यक्ति समाज में फैले अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ता है। कहानी में मुख्य पात्र अपने नैतिक मूल्यों से कोई समझौता नहीं करता, भले ही उसे व्यक्तिगत हानि ही क्यों न उठानी पड़े। इस एकांकी के माध्यम से लेखक यह संदेश देना चाहते हैं कि सत्य और न्याय के लिए संघर्ष करना ही सच्ची मानवता की पहचान है।
I. लिंग पहचानकर अलग-अलग सूची बनाइए और उनके अन्य लिंग शब्द लिखिए :-
लड़का, बच्ची, दुबला, पतला, थैली, साहिबा, भाई, माँ, डॉक्टर, पंडिताइन
पुल्लिंग स्त्रीलिंग
उदाहरण:
- लड़का लड़की
- बच्चा बच्ची
- दुबला दुबली
- पतला – पतली
- थैला – थैली
- साहब – साहिबा
- भाई – बहन
- पिता – माँ
- डॉक्टर – डॉक्टरनी
- पंडित – पंडिताइन
II. रेखांकित शब्द का वचन पहचानिए और उस शब्द का अन्य वचन रूप लिखिए :-
उदाहरण : राजकिशोर पर इस बात का बड़ा असर होता है। बातें
- फिर वे जेब टटोलते हैं। जेबें
- अंदर से आवाज़ आती है। आवाज़ें
- एक लड़के की टाँगें मोटर के नीचे कुचली गई हैं। टाँग
- बसंत आँखें बंद कर लेता है। आँख
- लोग अपने-अपने घर लौट रहे हैं। घर
- लोग घर की ओर लौट रहे हैं। लोग
- मजदूरों की बस्ती में राजकिशोर का मकान है। मकान
- बसंत के दोनों पैर कुचले गए। पैर
- मेरे पास पैसे नहीं हैं। पैसा
- उसका कपड़ा फटा है। कपड़े
- राजकिशोर खिड़की से झाँकते हैं। खिड़कियाँ
- बसंत के पैर की हड्डी टूट गयी है। हड्डियाँ
समास
‘समास’ का तात्पर्य है ‘संक्षिप्तीकरण’। दो या दो से अधिक शब्दों का मेल ‘समास’ कहलाता है। इनके मेल से उत्पन्न नया और सार्थक शब्द ‘सामासिक पद’ अथवा ‘समस्त पद’ कहलाता है। शब्दों को अलग करके लिखना ‘विग्रह वाक्य’ कहलाता है।
जैसे : समस्तपद विग्रह वाक्य
- राजपुत्र – राजा का पुत्र
- माता-पिता माता और पिता
‘समास’ में दो पद होते हैं।
- पूर्वपद – पहला पद
- उत्तर पद – दूसरा पद अथवा आगेवाला पद
जैसे : पलक मारना
पूर्वपद-पलक, उत्तर पद – मारना,
विग्रह वाक्य- पलक को मारना
III. रिक्त स्थान भरिए:
समस्त पद विग्रह वाक्य समास का भेद
उदा: बेहोश होश जिसमें न हो अव्ययीभाव समास
- सुविधानुसार – सुविधा के अनुसार – तत्पुरुष समास
- दुबला-पतला – दुबला और पतला – द्वंद्व समास
- नीलपरदा – नीले रंगवाला परदा – कर्मधारय समास
- पंद्रह मिनट – पंद्रह मिनटों का समूह – द्विगु समास
- भग्नपाद – टूटे हैं पैर जिसके – बहुब्रीहि समास
‘बसंत की सच्चाई’ एकांकी का मंचन अपनी कक्षा में कीजिए।
उत्तर – छात्र शिक्षक के दिशानिर्देश पर इसे अपने स्तर पर करें।
प्रेमचंद की कोई एक कहानी पढ़िए और कक्षा में सुनाइए।
उत्तर – प्रेमचंद की कहानी – “पंच परमेश्वर” का सारांश
परिचय-
मुंशी प्रेमचंद की “पंच परमेश्वर” एक प्रसिद्ध कहानी है, जो न्याय, सत्य और मित्रता के महत्व को दर्शाती है। इस कहानी में बताया गया है कि जब कोई व्यक्ति न्याय की कुर्सी पर बैठता है, तो उसे निजी संबंधों से ऊपर उठकर सत्य का पक्ष लेना चाहिए।
कहानी का सार-
गाँव के दो मित्र, जुम्मन शेख और अलगू चौधरी, बचपन से गहरे दोस्त थे। जुम्मन की बूढ़ी खाला ने अपनी सारी संपत्ति उसे सौंप दी थी, लेकिन बाद में जुम्मन और उसकी पत्नी ने उसका ध्यान रखना बंद कर दिया। मजबूर होकर खाला ने पंचायत बुलाई, जिसमें सरपंच अलगू चौधरी बने।
अलगू चौधरी, दोस्ती और न्याय के बीच संघर्ष करते हैं, लेकिन अंततः वे सत्य का साथ देते हुए जुम्मन को उसकी गलती का एहसास कराते हैं और निर्णय खाला के पक्ष में देते हैं। इससे जुम्मन नाराज हो जाता है और दोनों मित्रों के संबंध खराब हो जाते हैं।
बाद में, जब अलगू पर भी एक विवाद आता है, तो जुम्मन सरपंच बनता है। इस बार भी वह अपने पुराने गिले-शिकवे भूलकर न्याय करता है और अलगू के पक्ष में निर्णय देता है। इस घटना से दोनों मित्रों को समझ में आता है कि “पंच” का पद व्यक्ति से बड़ा होता है और सच्चा न्याय ही सबसे महत्वपूर्ण होता है।
निष्कर्ष:
यह कहानी दिखाती है कि न्याय हमेशा निष्पक्ष और सत्य के आधार पर होना चाहिए। यह भी दर्शाता है कि जब कोई व्यक्ति न्यायाधीश की भूमिका में होता है, तो उसे अपने निजी रिश्तों से ऊपर उठकर फैसला करना चाहिए।
‘यू ट्यूब’ में ‘ईमानदार लड़का’ वीडियो देखिए और कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर इसे करें।