महादेवी वर्मा-
महादेवी वर्मा जी विश्व स्तर की कवयित्री हैं। उन्हें ‘आधुनिक मीरा’ भी कहा जाता है। उनका जन्म 24 मार्च, 1907 को फरुखाबाद में हुआ। उनके पिता गोविंद प्रसाद वर्मा और माता हेमारानी थीं। उन्होंने प्रयाग के विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. उपाधि प्राप्त कर प्रयाग के महिला विद्यापीठ में प्रधानाध्यापिका का पद संभाला।
महादेवी वर्मा जी ने गद्य और पद्य दोनों
की रचना की है। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं :
यामा, सांध्यगीत, दीपशिखा, नीरजा, नीहार, अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, मेरा परिवार, शृंखला की कड़ियाँ आदि।
महादेवी वर्मा जी को सेक्सरिया, मंगल प्रसाद, द्विवेदी पदक आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त हैं। उनकी ‘यामा’ के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त है।
इस महान् रचनाकार का निधन सितंबर, सन् 1987 को हुआ।
कौन कह सकता है कि पशु- पक्षी भावहीन प्राणी हैं? वे भी हमारी तरह कभी-कभार हमसे भी अधिक भावानुकूल, विचारवान् और सहृदय व्यवहार करते हैं। महादेवी वर्मा ने एक छोटा-सा जीव, गिलहरी के बच्चे का रेखांकन कर प्राणी जगत् की मानव – सहज जीवन शैली का प्रभावशाली चित्रण किया है। आज के संदर्भ में जहाँ मानव के स्वार्थ के कारण पशु-पक्षी की जातियाँ लुप्त होती जा रही हैं, वहाँ महादेवी वर्मा जी का यह ‘संस्मरण’ उनकी रक्षा करने और उनके प्रति प्रेमभाव जगाने की दिशा में एक सार्थक प्रयत्न सिद्ध होता है।
इस पाठ से स्नेहभाव तथा प्राणी-दया की सीख मिलती है। पशु-पक्षियों के स्वभाव और उनकी जीवन-शैली के साथ-साथ उनके प्रति महादेवी वर्मा के प्रेम से बच्चे परिचित होते हैं।
गिल्लू
अचानक एक दिन सबेरे कमरे से बरामदे में आकर मैंने देखा दो कौए एक गमले के चारों ओर चोंचों से छुआ-छुऔवल जैसा खेल खेल रहे हैं। यह काकभुशुण्डि भी विचित्र पक्षी है – एक साथ समादरित, अनादरित, अति सम्मानित, अति अवमानित।
हमारे बेचारे पुरखे न गरुड़ के रूप में आ सकते हैं, न मयूर के, न हंस के। उन्हें पितरपक्ष में हमसे कुछ पाने के लिए काक बनकर ही अवतीर्ण होना पड़ता है। इतना ही नहीं, हमारे दूरस्थ प्रियजनों को भी अपने आने का मधुर संदेश इनके कर्कश स्वर में ही देना पड़ता है। दूसरी ओर हम कौआ और काँव-काँव करने को अवमानना के अर्थ में ही प्रयुक्त करते हैं।
मेरे काकपुराण के विवेचन में अचानक बाधा आ पड़ी, क्योंकि गमले और दीवार की संधि में छिपे एक छोटे से जीव पर मेरी दृष्टि रुक गयी। निकट जाकर देखा, गिलहरी का एक छोटा-सा बच्चा है, जो सम्भवतः घोंसले से गिर पड़ा है और अब कौए जिसमें सुलभ आहार खोज रहे हैं।
काकद्वय की चोंचों के दो घाव उस लघुप्राण के लिए बहुत थे, अतः वह निश्चेष्ट-सा गमले से चिपका पड़ा था।
सबने कहा, कौए की चोंच का घाव लगने के बाद यह बच नहीं सकता, अतः इसे ऐसे ही रहने दिया जावे।
परन्तु मन नहीं माना – उसे हौले से उठाकर अपने कमरे में लायी, फिर रुई से रक्त पोंछकर घावों पर पेन्सिलिन का मरहम लगाया। कई घंटे के उपचार के उपरान्त उसके मुँह में एक बूँद पानी टपकाया जा सका। तीसरे दिन वह इतना अच्छा और आश्वस्त हो गया कि मेरी उँगली अपने दो नन्हें पंजों से पकड़कर, नीले काँच के मोतियों जैसी आँखों से इधर-उधर देखने लगा।
तीन-चार मास में उसके स्निग्ध रोयें, झब्बेदार पूँछ और चंचल – चमकीली आँखें सबको विस्मित करने लगीं। हम उसे गिल्लू कहकर बुलाने लगे। मैंने फूल रखने की एक हल्की डलिया में रुई बिछाकर उसे तार से खिड़की पर लटका दिया।
दो वर्ष वही गिल्लू का घर रहा। वह स्वयं हिलाकर अपने घर में झूलता और अपनी काँच के मनकों-सी आँखों से कमरे के भीतर और खिड़की से बाहर न जाने क्या देखता – समझता रहता था। परन्तु उसकी समझदारी और कार्य – कलाप पर सबको आश्चर्य होता था।
जब मैं लिखने बैठती तब अपनी ओर मेरा ध्यान आकर्षित करने की उसे इतनी तीव्र इच्छा होती थी कि उसने एक अच्छा उपाय खोज निकाला।
वह मेरे पैर तक आकर सर्र से परदे पर चढ़ जाता और फिर उसी तेजी से उतरता। उसका यह दौड़ने का क्रम तब तक चलता, जब तक मैं उसे पकड़ने के लिए न उठती।
कभी मैं गिल्लू को पकड़कर एक लंबे लिफ़ाफ़े में इस प्रकार रख देती कि उसके अगले दो पंजों और सिर के अतिरिक्त सारा लघु गात लिफ़ाफ़े के भीतर बंद रहता। इस अद्भुत स्थिति में कभी-कभी घंटों मेज़ पर दीवार के सहारे खड़ा रहकर वह अपनी चमकीली आँखों से मेरा कार्य-कलाप देखा करता।
भूख लगने पर चिक चिक करके मानो वह मुझे सूचना देता और काजू या बिस्कुट मिल जाने पर उसी स्थिति में लिफ़ाफ़े से बाहरवाले पंजों से पकड़कर उसे कुतरता रहता।
फिर गिल्लू के जीवन का प्रथम वसंत आया। बाहर की गिलहरियाँ खिड़की की जाली के पास आकर चिक-चिक करके न जाने क्या कहने लगीं।
गिल्लू को जाली के पास बैठकर अपनेपन से बाहर झाँकते देखकर मुझे लगा कि इसे मुक्त करना आवश्यक है। मैंने कीलें निकालकर जाली का एक कोना खोल दिया और इस मार्ग से गिल्लू ने बाहर जाने पर सचमुच ही मुक्ति की साँस ली। इतने छोटे जीव को घर में पले कुत्ते – बिल्लियों से बचाना भी एक समस्या ही थी। मेरे कमरे से बाहर जाने पर वह भी खिड़की की खुली जाली की राह बाहर चला जाता और दिन भर गिलहरियों के झुण्ड का नेता बना, हर डाल पर उछलता-कूदता रहता और ठीक चार बजे वह खिड़की से भीतर आकर अपने झूले में झूलने लगता।
मुझे चौंकाने की इच्छा उसमें न जाने कब और कैसे उत्पन्न हो गयी थी। कभी फूलदान के फूलों में छिप जाता, कभी परदे की चुन्नट में और कभी सोनजुही की पत्तियों में।
मेरे पास बहुत से पशु-पक्षी हैं और उनका मुझसे लगाव भी कम नहीं है। परन्तु उनमें से किसी को मेरे साथ मेरी थाली में खाने की हिम्मत हुई है, ऐसा मुझे स्मरण नहीं आता।
गिल्लू इनमें अपवाद था। मैं जैसे ही खाने के कमरे में पहुँचती, वह खिड़की से निकलकर आँगन की दीवार – बरामदा पार करके मेज पर पहुँच जाता और मेरी थाली में बैठ जाना चाहता। बड़ी कठिनाई से मैंने उसे थाली के पास बैठना सिखाया, जहाँ बैठकर वह मेरी थाली में से एक-एक चावल उठाकर बड़ी सफाई से खाता रहता। काजू उसका प्रिय खाद्य था और कई दिन काजू न मिलने पर वह अन्य खाने की चीज़ें या तो लेना बंद कर देता था या झूले से नीचे फेंक देता था।
उसी बीच मुझे मोटर दुर्घटना में आहत होकर कुछ दिन अस्पताल में रहना पड़ा। उन दिनों जब मेरे कमरे का दरवाज़ा खोला जाता, गिल्लू अपने झूले से उतरकर दौड़ता और फिर किसी दूसरे को देखकर तेजी से अपने घोंसले में जा बैठता। सब उसे काजू दे जाते, परंतु अस्पताल से लौटकर जब मैंने उसके झूले की सफाई की तो उसमें काजू भरे मिले, जिनसे ज्ञात होता था कि वह उन दिनों अपना प्रिय खाद्य कितना कम खाता रहा।
मेरी अस्वस्थता में वह तकिये पर सिरहाने बैठकर अपने नन्हे नन्हे पंजों से मेरे सिर और बालों को हौले-हौले सहलाता रहता।
गर्मियों में जब मैं दोपहर में काम करती रहती तो गिल्लू न बाहर जाता, न अपने झूले में बैठता। वह मेरे पास रखी सुराही पर लेट जाता और इस प्रकार समीप भी रहता और ठंडक में भी रहता।
गिलहरियों के जीवन की अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं होती, अतः गिल्लू की जीवन-यात्रा का अंत आ ही गया। दिन भर उसने न कुछ खाया, न वह बाहर गया।
पंजे इतने ठंडे हो रहे थे कि मैंने जागकर हीटर जलाया और उसे उष्णता देने का प्रयत्न किया। परन्तु प्रभात की प्रथम किरण के साथ ही वह चिर निद्रा में सो गया।
उसका झूला उतारकर रख दिया गया है और खिड़की की जाली बंद कर दी गई है, परन्तु गिलहरियों की नयी पीढ़ी जाली के उस पार चिक-चिक करती ही रहती है और सोनजुही खिलती ही रहती है।
सोनजुही की लता के नीचे गिल्लू की समाधि है। इसलिए भी कि उसे वह लता सबसे अधिक प्रिय थी, इसलिए भी कि उस लघु गात का, किसी वासन्ती दिन, जुही के पीताभ छोटे फूल के रूप में खिल जाने का विश्वास, मुझे संतोष देता है।
टिप्पणी :-
काकभुशुण्डि : पुराण कथा में कौए को पक्षियों के गुरु के रूप में स्वीकार किया गया है।
शब्दार्थ :
- सोनजुही – Jasmine
- कली – Bud
- अनायास – बिना प्रयास के
- जीव – प्राणी
- स्मरण – याद
- लता – Creeper
- हरीतिमा – हरापन
- लघुप्राण- छोटा जीवन
- स्वर्णिम – सुनहरा
- छूआ—छुऔवल – एक प्रकार का खेल
- काकभुशुंडि – कौआ
- विचित्र – अनोखा
- समादरित – समान आदर वाला
- अनादरित – बेइज़्ज़त
- पितरपक्ष – कृष्ण पक्ष
- काक – कौआ
- अवतीर्ण – अवतार के रूप में उत्पन्न
- दूरस्थ – दूर का स्थान
- संदेश – ख़बर
- कर्कश – कड़वा
- अवमानना – तिरस्कार
- संधि – जोड़ मेल
- संभवतः – possibly
- सुलभ – आसान, सरल, सहज
- आहार – भोजन
- काकद्वय – दो कौए
- चोंच – Beak
- निश्चेष्ट – बेहोश-सा
- रक्त – लहू, खून
- पेंसिलिन – एक प्रकार की दवा
- मरहम – लेप
- उपचार – इलाज
- आश्वस्त – निश्चिंत
- पंजा – Paws
- स्निग्ध – चिकना
- रोएँ – लोम
- विस्मित – आश्चर्य
- मनका – मोती
- आकर्षित – Attract
- तीव्र – द्रुत, तेफ़
- क्रम – सिलसिला
- लिफ़ाफ़ा – खाम, Envelope
- लघुगात – छोटा शरीर
- अतिरिक्त – के अलावा
- अद्भुत – विचित्र
- मुक्त – आज़ाद
- नित्य – प्रतिदिन
- चुन्नट – Wrinkle
- अपवाद – Exceptional
- दुर्घटना – Accident
- आहत – चोट
- खाद्य – भोजन
- प्रिपरिचारिका – Care taker
- सुराही – मिट्टी का बर्तन
- समीप – नज़दीक
- ठंडक – शीतलता
- यातना – कष्ट
- मरणासन्न – मरने की स्थिति
- उष्णता – गर्मी
- समाधि – क़ब्र
- पीताभ – जिसमें पीला रंग झलक रहा हो
- संतोष – Satisfaction
I. एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
- लेखिका ने कौए को क्यों विचित्र पक्षी कहा है?
उत्तर – लेखिका ने कौए को विचित्र पक्षी कहा है क्योंकि कौआ भारतीय संस्कृति में एक साथ समादरित, अनादरित, अति सम्मानित, अति अवमानित पक्षी है।
- गिलहरी का बच्चा कहाँ पड़ा था?
उत्तर – गिलहरी का बच्चा गमले और दीवार की संधि में अधमरी स्थिति में निश्चेष्ट-सा पड़ा हुआ था।
- लेखिका ने गिल्लू के घावों पर क्या लगाया?
उत्तर – लेखिका ने गिल्लू के घावों पर पैंसिलिन का मरहम लगाया।
- वर्मा जी गिलहरी को किस नाम से बुलाती थीं?
उत्तर – वर्मा जी गिलहरी को गिल्लू नाम से बुलाती थीं।
- गिलहरी का लघु गात किसके भीतर बंद रहता था?
उत्तर – गिलहरी का लघु गात लिफ़ाफ़े के भीतर बंद रहता था।
- गिलहरी का प्रिय खाद्य क्या था?
उत्तर – गिलहरी का प्रिय खाद्य काजू था।
- लेखिका को किस कारण से अस्पताल में रहना पड़ा?
उत्तर – एक मोटर दुर्घटना में घायल हो जाने के कारण लेखिका को अस्पताल में रहना पड़ा।
- गिलहरी गर्मी के दिनों में कहाँ लेट जाता था?
उत्तर – गिलहरी गर्मी के दिनों में सुराही पर लेट जाता था।
- गिलहरियों की जीवनावधि सामान्यतया कितनी होती है?
उत्तर – गिलहरियों की जीवनावधि सामान्यतया दो वर्षों की होती है।
- गिलहरी की समाधि कहाँ बनायी गयी है?
उत्तर – गिलहरी की समाधि सोनजूही लता के नीचे बनायी गयी है।
II. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
- लेखिका को गिलहरी किस स्थिति में दिखायी पड़ी?
उत्तर – लेखिका को गिलहरी अधमरी हालत में गमले और दीवार की संधि में दिखाई पड़ी। वास्तव में कौओं ने अपने चोंच से प्रहार करके उस गिलहरी की ऐसी बुरी हालत कर दी थी।
- लेखिका ने गिल्लू के प्राण कैसे बचाये?
उत्तर – लेखिका ने घायल गिल्लू के जख्मों पर पैंसिलिन का मरहम लगाया और रुई की बत्ती बनाकर उसके मुँह में दूध के बूँदें टपकाने लगीं जिससे उसे ऊर्जा मिले। इस तरह गिल्लू की देखभाल करके लेखिका ने गिल्लू के प्राण बचाए।
- लेखिका का ध्यान आकर्षित करने के लिए गिल्लू क्या करता था?
उत्तर – लेखिका का ध्यान आकर्षित करने के लिए गिल्लू लेखिका के पैर तक आकर तेज़ी से पर्दे पर चढ़ जाता और फिर तेज़ी से उतरता। गिल्लू का यह सिलसिला उस समय तक चलता रहता जब तक लेखिका उसे पकड़ने के लिए न उठती। इस प्रकार गिल्लू लेखिका का ध्यान आकर्षित करने में सफल हो जाता।
- वर्मा जी को चौंकाने के लिए गिल्लू कहाँ-कहाँ छिप जाता था?
उत्तर – लेखिका महादेवी वर्मा जी को चौंकाने के लिए गिल्लू कभी फूलदान के फूलों में छिप जाता, कभी परदे की चुन्नट में और कभी सोनजुही की पत्तियों में छिप जाता था।
- गिल्लू ने लेखिका की गैरहाज़री में दिन कैसे बिताये?
उत्तर – गिल्लू ने लेखिका की गैरहाज़री में एक भी काजू नहीं खाया। वह महादेवी वर्मा की अनुपस्थिति में उदास रहने लगा था।
III. पाँच छह वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
- गिल्लू के कार्य-कलाप के बारे में लिखिए।
उत्तर – गिल्लू लेखिका का ध्यान आकर्षित करने के लिए लेखिका के पैर तक आकर तेज़ी से पर्दे पर चढ़ जाता और फिर तेज़ी से उतरता था। लेखिका को चौंकाने के लिए वह कभी फूलदान के फूलों में छिप जाता, कभी परदे की चुन्नट में और कभी सोनजुही की पत्तियों में छिप जाता था। लेखिका जब खाने बैठती तो बड़ी सफाई से उनकी थाली से एक-एक चावल का दाना उठाकर वह खाता था। कमरे की खिड़की की खुली जाली की राह बाहर चला जाता और दिन भर गिलहरियों के झुण्ड का नेता बना, हर डाल पर उछलता-कूदता रहता था।
- लेखिका ने गिलहरी को क्या-क्या सिखाया?
उत्तर – लेखिका ने गिल्लू को बड़ी कठिनाई से थाली के पास बैठना सिखाया, जहाँ बैठकर वह थाली में से एक-एक चावल उठाकर बड़ी सफाई से खाता रहता। लेखिका के लेखन कार्य के दौरान गिल्लू शरारत न करे इसलिए उसे एक लंबे लिफ़ाफ़े में इस प्रकार रख दिया करती कि उसके अगले दो पंजों और सिर के अतिरिक्त सारा लघु गात लिफ़ाफ़े के भीतर बंद रहता। इस अद्भुत स्थिति में कभी-कभी घंटों मेज़ पर दीवार के सहारे खड़ा रहकर वह अपनी चमकीली आँखों से लेखिका का कार्य-कलाप देखा करता और भूख लगने पर काजू या बिस्कुट को लिफ़ाफ़े से बाहरवाले पंजों से पकड़कर उसे कुतरता रहता।
- गिल्लू के अंतिम दिनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – गिलहरियों की जीवन अवधि लगभग दो वर्ष की होती है। जब गिल्लू का अंतिम समय आया तो उसने दिन भर कुछ भी नहीं खाया। वह घर से बाहर भी नहीं गया। वह अपने अंतिम समय में झूले से उतरकर लेखिका के बिस्तर पर निश्चेष्ट लेट गया। उसके पंजे पूरी तरह ठंडे पड़ चुके थे। वह अपने ठंडे पंजे से लेखिका की अँगुली पकड़ कर हाथ से चिपक गया। लेखिका ने हीटर जलाकर उसे गर्मी देने का प्रयास किया परंतु इसका कोई लाभ न हुआ। सुबह होने तक गिल्लू की मृत्यु हो चुकी थी।
- गिल्लू के प्रति महादेवी वर्मा जी की ममता का वर्णन कीजिए।
उत्तर – लेखिका महादेवी वर्मा जी की ममता की साक्षात् प्रतिमूर्ति थीं। कौओं की चोंच से घायल गिलहरी के बच्चे को अपने कमरे में ले आई और रूई से उसका खून पोंछकर उसके घावों पर पेंसिलिन का मरहम लगाया। लेखिका ने रूई की पतली बत्ती दूध से भिगोकर बार-बार उसके नन्हें से मुँह पर लगाया। लेखिका के इस प्रकार के उपचार के तीन दिन बाद ही गिलहरी का बच्चा पूरी तरह अच्छा और स्वस्थ हो गया। लेखिका ने उसे अपनी थाली के पास बैठाकर खाना खाना भी सिखाया और उसके अंतिम समय में भी हीटर जलाकर उसे उषणता देने की कोशिश की।
IV. रिक्त स्थान भरिए :-
- यह ___________ भी विचित्र पक्षी है।
उत्तर – काकभुशुण्डि
- उसी बीच मुझे ___________ में आहत होकर कुछ दिन अस्पताल में रहना पड़ा।
उत्तर – मोटर दुर्घटना
- गिल्लू के जीवन का प्रथम ___________ आया।
उत्तर – वसंत
- मेरे पास बहुत से ___________ हैं।
उत्तर – पशु-पक्षी
- गिल्लू की ___________ का अंत आ ही गया।
उत्तर – जीवन-यात्रा
V.अनुरूप शब्द लिखिए :-
- 1907 : महादेवी वर्मा जी का जन्म :: 1987 : महादेवी वर्मा जी की मृत्यु
- गुलाब : पौधा :: सोनजुही : लता
- हंस : सफेद :: कौआ : काला
- बिल्ली : म्याऊँ म्याऊँ :: गिल्लू : चिक-चिक
- कोयल : मधुर स्वर :: कौआ : कर्कश
VI. कन्नड या अंग्रेज़ी में अनुवाद कीजिए :-
- कई घंटे के उपचार के उपरांत उसके मुँह में एक बूँद पानी टपकाया जा सका।
उत्तर – ಹಲವಾರು ಗಂಟೆಗಳ ಚಿಕಿತ್ಸೆಯ ನಂತರ, ಒಂದು ಹನಿ ನೀರನ್ನು ಅವನ ಬಾಯಿಗೆ ಹಾಕಬಹುದು.
After several hours of treatment, a drop of water could be dripped into his mouth.
- बड़ी कठिनाई से मैंने उसे थाली के पास बैठना सिखाया।
उत्तर – ತುಂಬಾ ಕಷ್ಟಪಟ್ಟು ತಟ್ಟೆಯ ಬಳಿ ಕೂರಲು ಕಲಿಸಿದೆ.
With great difficulty I taught him to sit near the plate.
- गिल्लू मेरे पास रखी सुराही पर लेट जाता था।
उत्तर – ನನ್ನ ಹತ್ತಿರ ಇಟ್ಟಿದ್ದ ಜಗ್ ಮೇಲೆ ಗಿಲ್ಲು ಮಲಗುತ್ತಿತ್ತು.
Gillu used to lie down on the jug kept near me.
- दिन भर गिल्लू ने न कुछ खाया, न वह बाहर गया।
उत्तर – ಗಿಲ್ಲು ಇಡೀ ದಿನ ಏನನ್ನೂ ತಿನ್ನಲಿಲ್ಲ, ಹೊರಗೆ ಹೋಗಲಿಲ್ಲ.
Gillu neither ate anything the whole day nor did he go out।
VI. दिये गये सही स्त्रीलिंग शब्दों को चुनकर संबंधित पुल्लिंग शब्द के आगे लिखिए :-
(मयूरी, लेखिका, श्रीमती, कुतिया)
पुल्लिंग स्त्रीलिंग
लेखक लेखिका
श्रीमान श्रीमती
मयूर मयूरी
कुत्ता कुतिया
VIII. खाली जगह भरिए :-
एकवचन बहुवचन
- उँगली उँगलियाँ
- आँखें आँख
- पूँछ पूँछें
- खिड़कियाँ खिड़की
- फूल फूल
- पंजे पंजा
- लिफ़ाफ़ा लिफ़ाफ़े
- कौआ कौए
- गमले गमला
- घोंसले घोंसला
IX. दाहरणानुसार प्रेरणार्थक क्रिया रूप लिखिए :-
- चिपकना चिपकाना चिपकवाना
लिखना लिखाना लिखवाना
मिलना मिलाना मिलवाना
चलना चलाना चलवाना
- देखना दिखाना दिखवाना
भेजना भिजाना भिजवाना
खेलना खेलाना खेलवाना
देना दिलाना दिलवाना
- सोना सुलाना सुलवाना
रोना रुलाना रुलवाना
धोना धुलाना धुलवाना
खोलना खुलाना खुलवाना
- पीना पिलाना पिलवाना
सीना सिलाना सिलवाना
सीखना सिखाना सिखवाना
- माँगना मँगाना मँगवाना
बाँटना बँटाना बँटवाना
माँझना मँझाना मँझवाना
जाँचना जँचाना जँचवाना
X. विलोम शब्द लिखिए :-
निकट X दूर
- दिन X रात
- भीतर X बाहर
- चढ़ना X उतरना
विश्वास X अविश्वास
- प्रिय X अप्रिय
- संतोष X असंतोष
- स्वस्थ X अस्वस्थ
बलवान X बलहीन
- बुद्धिमान X बुद्धिहीन
- शक्तिमान X शक्तिहीन
- दयावान X दयाहीन
उत्तीर्ण X अनुत्तीर्ण
- उपयोग X अनुपयोग
- उपस्थिति X अनुपस्थित
- उचित X अनुचित
ईमान X बेईमान
- होश X बेहोश
- खबर X बेखबर
- चैन X बेचैन
धन X निर्धन
- जन X निर्जन
- बल X निर्बल
- गुण X निर्गुण
XI. समानार्थक शब्दों को चुनकर लिखिए :-
खाना, शरीर, चिकित्सा, इलाज, देह, तलाश, भोजन, साहस, अचरज, धैर्य, ढूँढ़, आश्चर्य)
उदा : उपचार चिकित्सा इलाज
- गात – शरीर, देह
- आहार – खाना, भोजन
- विस्मय – अचरज, आश्चर्य
- हिम्मत – साहस, धैर्य
- खोज – तलाश, ढूँढ़
XII. कारक का नाम लिखिए :-
उदा : गमले के चारों ओर – संबंध कारक
- मुँह में एक बूँद पानी – अधिकरण कारक
- गिल्लू को पकड़कर – कर्म कारक
- जीवन का प्रथम वसंत – संबंध कारक
- खिड़की की खुली जाली – संबंध कारक
- मैंने कीलें निकालकर – कर्ता कारक
- झूले से उतरकर – अपादान कारक
- सुराही पर लेट जाता – अधिकरण कारक
- कुछ पाने के लिए – संप्रदान कारक
XIII. दी गयी शब्द – पहेली से पशु-पक्षियों के नाम ढूँढ़कर लिखिए:-
मो | कु | म | यू | र |
र | त्ता | ग | रु | ड़ |
हं | क | बू | त | र |
स | बि | ल्ली | कौ | आ |
1) मोर
2) हंस
3) कबूतर
4) कुत्ता
5) बिल्ली
6) कौआ
7) मयूर
8) गरुड़
I. उदाहरणसहित स्वर संधि के पाँच भेदों का नाम लिखिए।
स्वर संधि के पाँच प्रमुख भेद निम्नलिखित हैं, जिनके साथ उदाहरण भी दिए गए हैं :-
- गुण संधि
जब अ, आ + इ, ई → ए या
अ, आ + उ, ऊ → ओ
में परिवर्तन हो जाए, तो इसे गुण संधि कहते हैं।
उदाहरण –
नर + उत्तम – नरोत्तम
गण + ईश = गणेश
- वृद्धि संधि
जब अ, आ + ए → ऐ या
अ, आ + ओ → औ
में परिवर्तन हो जाए, तो इसे वृद्धि संधि कहते हैं।
उदाहरण:
सदा + एव = सदैव
महा + औषध = महौषध
- यण संधि
जब किसी शब्द में इ, ई, उ, ऊ, या ऋ के बाद कोई असमान स्वर आता है, तो इ, ई का य्, उ, ऊ का व्, और ऋ का र् हो जाता है, तो इसे यण संधि कहते हैं-
उदाहरण:
इति + आदि = इत्यादि
सु + आगत = स्वागत
परि + अवसान = पर्यवसान
- अयादि संधि
जब ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’, और ‘औ’ के साथ कोई अन्य स्वर आता है, तो ‘ए’ का ‘अय्’, ‘ऐ’ का ‘आय्’, ‘ओ’ का ‘अव्’, और ‘औ’ का ‘आव्’ बन जाता है. इसे अयादि संधि कहते हैं-
उदाहरण:
ने + अन = नयन
पो + अन = पवन
- दीर्घ संधि
जब दो समान स्वर मिलकर दीर्घ स्वर बनाते हैं, तो इसे दीर्घ या स्वर संयोग संधि कहते हैं।
उदाहरण:
राम + अर्चना = रामार्चना
रवि + ईश = रवीश
व्यंजन संधि
व्यंजन के साथ स्वर अथवा व्यंजन के मेल से उत्पन्न परिवर्तन को व्यंजन संधि कहते हैं।
उदाहरण : जगत् + नाथ = जगन्नाथ
सत् + आचार = सदाचार
वाक् + मय = वाङ्मय
वाक् + ईश = वागीश
षट् + दर्शन = षड्दर्शन
II. संधि विच्छेद करके लिखिए :-
तल्लीन – तत् + लीन
चिदानंद – चित् + आनंद
दिगम्बर – दिक् + अंबर
सज्जन – सत् + जन
सद्गति – सत् + गति
III. स्वर संधि और व्यंजन संधि के शब्दों की सूची बनाइए :-
सदाचार, गिरीश, वागीश, इत्यादि, सदैव, नयन, जगन्नाथ, महोत्सव षड्दर्शन, जगन्मोहन
स्वर संधि व्यंजन संधि
गिरीश सदाचार
इत्यादि वागीश
सदैव जगन्नाथ
नयन षड्दर्शन
महोत्सव जगन्मोहन
पशु-पक्षियों की ध्वनियों की तालिका बनाइए।
उत्तर – पशु-पक्षियों की ध्वनियों की तालिका
पशु/पक्षी का नाम ध्वनि (आवाज़)
शेर (Lion) दहाड़ना (गर्जना)
बाघ (Tiger) गर्जना (गुर्राना)
कुत्ता (Dog) भौंकना
बिल्ली (Cat) म्याऊँ-म्याऊँ
हाथी (Elephant) चिघाड़ना
घोड़ा (Horse) हिनहिनाना
गाय (Cow) रंभाना
भैंस (Buffalo) डकारना
बकरी (Goat) मिमियाना
भेड़ (Sheep) मिमियाना
सुअर (Pig) घुरघुराना (ग्रंटिंग)
गधा (Donkey) रेंकना
ऊँट (Camel) बोलना (गर्जना)
बंदर (Monkey) किकियाना
साँप (Snake) फुफकारना
चिड़िया (Sparrow) चहचहाना
कौआ (Crow) काँव-काँव करना
उल्लू (Owl) हूटना (हूटिंग)
कबूतर (Pigeon) गुटरगूँ करना
मुर्गा (Rooster) बाँग देना
हंस (Swan) हँसना (क्रेंक करना)
बत्तख (Duck) क्वैक-क्वैक करना
मच्छर (Mosquito) भनभनाना
मधुमक्खी (Bee) गुंजार करना (भिनभिनाना)
झींगुर (Cricket) झनझनाना
आपके प्रिय पालतू जानवर के बारे में दस वाक्य लिखिए।
उत्तर – मेरा प्रिय पालतू जानवर गाय है। इसके बारे में दस वाक्य इस प्रकार हैं –
गाय एक शाकाहारी पालतू पशु है, जिसे हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है।
यह हमें पौष्टिक दूध देती है, जिससे घी, मक्खन, दही और पनीर बनाया जाता है।
गाय के गोबर का उपयोग जैविक खाद, उपले और बायोगैस बनाने में किया जाता है।
भारत में गाय को ‘गौमाता’ कहा जाता है और इसे सम्मान दिया जाता है।
गाय की विभिन्न नस्लें होती हैं, जैसे साहीवाल, गिर, जर्सी, और सिंधी।
गाय बहुत ही शांत और सरल स्वभाव की होती है और जल्दी इंसानों से घुल-मिल जाती है।
गाय का मूत्र आयुर्वेद में औषधीय गुणों के लिए उपयोग किया जाता है।
प्राचीन काल से गाय कृषि कार्यों में सहायक रही है, विशेषकर बैलों के रूप में।
गाय की सेवा करने से समाज में सकारात्मक ऊर्जा और सुख-समृद्धि का भाव बना रहता है।
हमें गायों की अच्छी देखभाल करनी चाहिए और उन्हें भरपूर चारा और स्वच्छ पानी देना चाहिए।
गाय न केवल एक पालतू जानवर है बल्कि भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग भी है।
पाठ में प्रयुक्त क्रिया शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर – करते हैं।
खोज रहे हैं।
चिपका पड़ा था।
दिया जावे।
देखने लगा।
लटका दिया।
होता था।
खोज निकाला।
झूलने लगता।
फेंक देता था।
बाहर गया।
रहती है।
देता है।
पाठ में प्रयुक्त बिंदु, चंद्रबिंदु और नुक्ता के पाँच-पाँच शब्द लिखिए।
उत्तर – बिंदु – हंस, घंटे, स्वयं, चंचल, पंजों
चंद्रबिंदु – काँव-काँव, मुँह, बूँद, पूँछ, काँच
नुक्ता – तेज़ी, सफ़ाई, लिफ़ाफ़े, मेज़, चीज़ें
‘यू ट्यूब’ में ‘गिल्लू’ का वीडियो देखिए।
उत्तर – https://youtu.be/lw6s9t4RC8Y