हरिशंकर परसाई
कलम को लेखक की तलवार माननेवाले श्री हरिशंकर परसाई हिन्दी साहित्य जगत् की एक बेजोड़ निधि हैं। इनका जन्म मध्यप्रदेश के जमानी गाँव में 22 अगस्त 1924 को हुआ था। इनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं – हँसते हैं रोते हैं, भूत के पाँव पीछे, सदाचार का तावीज़, वैष्णव का फिसलन आदि। हिन्दी के व्यंग्य साहित्य के विकास में इनका योगदान अद्वितीय है।
इस जगत् में अच्छाई-बुराई दोनों दिखाई देती हैं। हंस – क्षीर न्याय की तरह इनमें हमें सिर्फ अच्छाई को अपनाकर बुराई को छोड़ देना चाहिए। बेईमानी भी एक अवगुण है। बेईमानों पर व्यंग्य करते हुए प्रस्तुत रचना द्वारा लेखक ने सचेत किया है कि हम बेईमानी से दूर रहें।
प्रस्तुत व्यंग्य रचना में एक सामाजिक असंगति की ओर संकेत किया गया है। इसमें हास्य और व्यंग्य का सुंदर सम्मिश्रण है। इस रचना के माध्यम से परसाई जी ने ईमानदार कहलानेवाले लोगों की बेईमानी का पर्दाफाश किया है।
ईमानदारों के सम्मेलन में
मैंने कतई ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे ईमानदार माना जाऊँ। न जाने उन्हें कैसे यह भ्रम हो गया कि मैं ईमानदार हूँ। मुझे पत्र मिला, “हम लोग इस शहर में एक ईमानदार सम्मेलन कर रहे हैं। आप देश के प्रसिद्ध ईमानदार हैं। हमारी प्रार्थना है कि आप इस सम्मेलन का उद्घाटन करें। हम आपको आने-जाने का पहले दर्जे का किराया देंगे तथा आवास, भोजन आदि की उत्तम व्यवस्था करेंगे। आपके आगमन से ईमानदारों तथा उदीयमान ईमानदारों को बड़ी प्रेरणा मिलेगी।” मैं गया। लेकिन हलफिया कहता हूँ कि ईमानदारी के लिए नहीं गया। ईमान से मुझे कुछ लेना-देना नहीं है। मैं यह हिसाब लगाकर गया कि दूसरे दर्जे में जाऊँगा और पहले का किराया लूँगा। इस तरह एक सौ पचास रुपये बचेंगे। यह बेईमानी कहलायेगी। पर उन लोगों ने मुझे राष्ट्रीय स्तर का ईमानदार माना ही क्यों?
स्टेशन पर मेरा खूब स्वागत हुआ। लगभग दस बड़ी फूल-मालाएँ पहनायी गयीं। सोचा, आस-पास कोई माली होता तो फूल-मालाएँ भी बेच लेता।
मुझे होटल के एक बड़े कमरे में ठहराया गया। मेरे कमरे के बायें और सामने दो हॉल थे, जिनमें लगभग तीस – पैंतीस प्रतिनिधि ठहरे थे। मेरे दो ईमानदार साथी भी मेरे ही कमरे में आ गये। मैंने सोचा ताला लगाया जायेगा, तो इन्हें तकलीफ होगी। मैंने ताला नहीं लगाया। उद्घाटन शानदार हुआ। मैंने लगभग एक घंटे तक भाषण दिया।
लोग जा चुके थे। मैं था मुख्य अतिथि। मुझसे लोग बातें कर रहे थे। मैं चलने लगा, तो चप्पल पहनने गया। देखा, मेरी चप्पलें गायब थीं। नयी और अच्छी चप्पलें थीं। अब वहाँ एक जोड़ी फटी-पुरानी चप्पलें बची थीं। मैंने उन्हें ही पहन लिया। यह बात फैल गयी कि मेरी नयी चप्पलें कोई पहन गया।
एक ईमानदार डेलीगेट मेरे कमरे में आये। कहने लगे, “क्या आपकी चप्पलें कोई पहन गया?”
मैंने कहा, “हाँ, इतने बड़े जलसे में चप्पलों की अदला-बदली हो ही जाती है।” फिर मैंने ध्यान से देखा, उनके पाँवों में मेरी ही चप्पलें थीं। वह भी मेरी चप्पलें देख रहे थे। वे बहुत करके उनकी ही थीं।
पर वह बेहिचक मुझे समझाने लगे, “देखिए, चप्पलें एक जगह नहीं उतारनी चाहिए। एक चप्पल यहाँ उतारिये, तो दूसरी दस फीट दूर। तब चप्पलें चोरी नहीं होतीं। एक ही जगह जोड़ी होगी, तो कोई भी पहन लेगा। मैंने ऐसा ही किया था।”
मैं देख रहा था कि वह मेरी ही चप्पलें पहने हैं और मुझे समझा रहे हैं।
मैंने कहा, “कोई बात नहीं। सुबह दूसरी खरीद लूँगा। आपकी चप्पलें नहीं गयीं, यह गनीमत है।”
फिर मैंने देखा कि एक बिस्तर की चादर गायब है। मैंने आयोजनकर्ताओं से कहा, तो उन्होंने जवाब दिया, “होटलवाले ने धुलाने को भेज दी होगी। दूसरी आ जायेगी।” पर दूसरी आयी नहीं।
दूसरे दिन गोष्ठियाँ शुरू हो गयीं। रात को गोष्ठियों से लौटा। देखा कि दो और चादरें गायब हैं। तीनों चली गयीं।
दूसरे दिन बैठक में जाने के लिए धूप का चश्मा खोजने लगा, तो नहीं मिला, शाम को तो था।
मैंने एक-दो लोगों से कहा, तो बात फैल गयी।
इसी समय बगल के कमरे में हल्ला हुआ, “अरे मेरा ब्रीफकेस कहाँ चला गया? यहीं तो रखा था।”
मैंने पूछा, “उसमें पैसे तो नहीं थे?”
जवाब मिला, “पैसे तो नहीं थे। कागज़ात थे।”
मैंने कहा, “तो मिल जायेगा।”
मैं बिना धूप का चश्मा लगाये बैठक में पहुँचा।
बैठक में पंद्रह मिनट चाय की छुट्टी हुई। लोगों ने सहानुभूति प्रकट की। एक सज्जन आये। कहने लगे, “बड़ी चोरियाँ हो रही हैं। देखिए, आपका धूप का चश्मा ही चला गया।”
वह धूप का चश्मा लगाये थे। मुझे याद था, एक दिन पहले वह धूप का चश्मा नहीं लगाये थे। मैंने देखा, जो चश्मा वह लगाये थे, वह मेरा ही था।
कहने लगे, “आपने चश्मा लगाया नहीं था?”
मैंने कहा, “रात को क्या चाँदनी में धूप का चश्मा लगाया जाता है? मैंने कमरे की टेबुल पर रख दिया था।”
वह बोले, “कोई उठा ले गया होगा।”
मैं उन्हें देख रहा था और वह मेरा चश्मा लगाये इतमीनान से बैठे थे। तीसरे दिन रात को लौटा, तो कुछ हरारत थी थोड़ी ठण्ड भी थी। मैंने सोचा, बिस्तर से कम्बल निकाल लूँ। पर कम्बल भी गायब था।
फिर हल्ला हुआ। स्वागत समिति के मंत्री आये। कई कार्यकर्ता आये। मंत्री कार्यकर्ताओं को डाँटने लगे, “तुम लोग क्या करते हो? तुम्हारी ड्यूटी यहाँ है। तुम्हारे रहते चोरियाँ हो रही हैं। यह ईमानदार सम्मेलन है। बाहर यह चोरी की बात फैली, तो कितनी बदनामी होगी?”
कार्यकर्ताओं ने कहा, “हम क्या करें? अगर सम्माननीय डेलीगेट यहाँ- वहाँ जायें, तो क्या हम उन्हें रोक सकते हैं?”
मंत्री ने गुस्से से कहा, “मैं पुलिस को बुलाकर यहाँ सबकी तलाशी करवाता हूँ।”
मैंने समझाया, “ऐसा हरगिज़ मत करिये। ईमानदारों के सम्मेलन में पुलिस ईमानदारों की तलाशी लें, यह बड़ी अशोभनीय बात होगी। फिर इतने बड़े सम्मेलन में थोड़ी गड़बड़ी होगी ही।”
एक कार्यकर्ता ने कहा, “तलाशी किनकी करवायेंगे, आधे के लगभग डेलीगेट तो किराया लेकर दोपहर को ही वापस चले गये।”
रात को पहनने के कपड़े सिरहाने दबाकर सोया। नयी चप्पलें और शेविंग का डिब्बा बिस्तर के नीचे दबाया।
सुबह मुझे लौटना था। मुझे उन लोगों ने अच्छा पैसा दिया। मैंने सामान बाँधा।
मंत्री ने कहा, “परसाई जी, गाड़ी आने में देर है। चलिये, स्वागत समिति के साथ अच्छे होटल में भोजन हो जाये। अब ताला लगा देते हैं।”
पर ताला भी गायब था। ताला तक चुरा लिया। गजब हो गया। मैंने कहा, “रिक्शा बुलवाइये। मैं सीधा स्टेशन जाऊँगा। यहाँ नहीं रुकूँगा।”
मंत्री हैरान थे। बोले, “ऐसी भी क्या नाराज़गी है?”
मैंने कहा, “नाराज़गी कतई नहीं है। बात यह है कि चीज़ें तो सब चुरा ली गयीं। ताला तक चोरी में चला गया। अब मैं बचा हूँ। अगर रुका तो मैं ही चुरा लिया जाऊँगा।”
शब्दार्थ :
पर्दाफाश – अनावरण,
कतई – हरगिज़,
तकलीफ – कष्ट,
शानदार – वैभवयुक्त,
डेलीगेट – Delegate, प्रतिनिधि
जलसा- समारोह, उत्सव
हिचक – संकोच,
कागज़ात-कागज-पत्र,
हल्ला – शोर,
हलफिया – कसम से,
चश्मा – ऐनक,
गनीमत – खुशी की बात
इतमीनान – भरोसा, विश्वास,
हरारत – हल्का ज्वर;
हरगिज़ – बिल्कुल, किसी दशा में भी,
सिरहाना – तकिया
I. एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
- प्रस्तुत कहानी के लेखक कौन हैं?
उत्तर – प्रस्तुत कहानी के लेखक हरिशंकर परसाई जी हैं।
- लेखक दूसरे दर्जे में क्यों सफर करना चाहते थे?
उत्तर – लेखक दूसरे दर्जे में सफर करके पहले दर्जे का किराया लेना चाहते थे ताकि वे पचास रुपए बचा सकें।
- लेखक की चप्पलें किसने पहनी थीं?
उत्तर – एक ईमानदार डेलीगेट ने लेखक की चप्पलें पहन रखी थीं।
- स्वागत समिति के मंत्री किसको डाँटने लगे?
उत्तर – स्वागत समिति के मंत्री कार्यकर्ताओं को उनकी लापरवाही की वजह से डाँटने लगे।
- लेखक पहनने के कपड़े कहाँ दबाकर सोये?
उत्तर – लेखक पहनने के कपड़े सिरहाने में दबाकर सोये थे।
- सम्मेलन में लेखक के भाग लेने से किन-किन को प्रेरणा मिल सकती थी?
उत्तर – सम्मेलन में लेखक के भाग लेने से ईमानदारों और समाज के उदित होते ईमानदारों को प्रेरणा मिल सकती थी।
- लेखक को कहाँ ठहराया गया?
उत्तर – लेखक को होटल के एक बड़े कमरे में ठहराया गया।
- ब्रीफकेस में क्या था?
उत्तर – ब्रीफकेस में ज़रूरी कागजात थे।
- लेखक ने धूप का चश्मा कहाँ रखा था?
उत्तर – लेखक ने धूप का चश्मा शाम के वक्त टेबुल पर रखा था।
- तीसरे दिन लेखक के कमरे से क्या गायब हो गया था?
उत्तर – तीसरे दिन लेखक के कमरे से कंबल गायब हो गया था।
II. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
- लेखक को भेजे गये निमंत्रण पत्र में क्या लिखा गया था?
उत्तर – लेखक को भेजे गए निमंत्रण पत्र में लिखा गया था, “हम लोग इस शहर में एक ईमानदार सम्मेलन कर रहे हैं। आप देश के प्रसिद्ध ईमानदार हैं। हमारी प्रार्थना है कि आप इस सम्मेलन का उद्घाटन करें। आपके आगमन से ईमानदारों तथा उदीयमान ईमानदारों को बड़ी प्रेरणा मिलेगी।”
- फूल मालाएँ मिलने पर लेखक क्या सोचने लगे?
उत्तर – स्टेशन पर लेखक का फूल-मालाओं से खूब स्वागत हुआ। इन फूल मालाओं के मिलने पर लेखक सोचने लगे कि आस-पास कोई माली होता तो फूल-मालाएँ बेच लेता और कुछ आमदनी हो जाती।
- लेखक ने मंत्री को क्या समझाया?
उत्तर – मंत्री के क्रोध को शांत करते हुए लेखक ने कहा कि पुलिस को मत बुलाइए। ईमानदारों के सम्मेलन में पुलिस ईमानदारों की तलाशी लें, यह बड़ी अशोभनीय बात होगी। फिर इतने बड़े सम्मेलन में थोड़ी गड़बड़ी होगी ही।
- चप्पलों की चोरी होने पर ईमानदार डेलीगेट ने क्या सुझाव दिया?
उत्तर – चप्पलों की चोरी होने पर ईमानदार डेलीगेट ने सुझाव दिया कि चप्पलें एक जगह नहीं उतारनी चाहिए। एक चप्पल यहाँ उतारिये, तो दूसरी दस फीट दूर। ऐसे में चप्पलें चोरी नहीं होतीं।
- लेखक ने कमरा छोड़कर जाने का निर्णय क्यों लिया?
उत्तर – होटल में पहले दिन लेखक की चप्पलें चोरी हुई। दूसरे दिन चादर, फिर धूपवाला चश्मा, फिर कंबल और अंत मे ताला। लेखक को लगने लगा कि कहीं मैं ही न चुरा लिया जाऊँ इसलिए उन्होंने कमरा छोड़कर जाने का निर्णय लिया
- मुख्य अतिथि की बेईमानी कहाँ दिखाई देती है?
उत्तर – मुख्य अतिथि की बेईमानी दो जगह दिखाई देती है। पहली तो उस समय जब वे दूसरे दर्जे में यात्रा करके पहले दर्जे का किराया वसूलने की बात करते हैं। दूसरा, जब उनके स्वागत हेतु अर्पित फूल-माला को बेचने की बात सोचते हैं।
III. चार-पाँच वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
- लेखक के धूप का चश्मा खो जाने की घटना का वर्णन कीजिए।
उत्तर – सम्मेलन के दूसरे दिन बैठक में जाने के लिए लेखक धूप का चश्मा खोजने लगे, तो नहीं मिला। तब लेखक बिना धूप का चश्मा लगाए बैठक में पहुँचे। लोगों ने उनसे सहानुभूति प्रकट की जिनमें से एक सज्जन कहने लगे, “बड़ी चोरियाँ हो रही हैं। देखिए, आपका धूप का चश्मा ही चला गया।” वास्तव में वही सज्जन लेखक के धूप का चश्मा लगाए हुए थे।
- मंत्री तथा कार्यकर्ताओं के बीच में क्या वार्तालाप हुआ?
उत्तर – मंत्री तथा कार्यकर्ताओं के बीच होटल के कमरों में ठहरे ईमानदार लोगों की सामानों की हो रही चोरी को लेकर बहस हुई। मंत्री ने सारे कार्यकर्ताओं को सही से काम न करने पर डाँट लगाई और पुलिस बुलाकर सबकी तलाशी लेने को कहा। इस पर कार्यकर्ताओं ने कहा कि, हम क्या करें? अगर सम्माननीय डेलीगेट यहाँ-वहाँ जाएँ, तो क्या हम उन्हें रोक सकते हैं? और जहां तक तलाशी की बात है वह तो अब संभव नहीं क्योंकि आधे के लगभग डेलीगेट तो किराया लेकर दोपहर को ही वापस चले गए हैं।
- सम्मेलन में लेखक को कौन-से अनुभव हुए? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर – सम्मेलन में लेखक को अनेक तिक्त अनुभव हुए। पहला अनुभव तो यह हुआ कि पहले ही दिन उनकी चप्पलें चोरी हो गई फिर चादर और दूसरे दिन उनका धूप वाला चश्मा। तीसरे दिन कंबल और चौथे दिन ताला। अंत में अपने बचे सामानों को बचाने के लिए उन्होंने रात को पहनने के कपड़े, नई चप्पलें और शेविंग का डिब्बा बिस्तर के नीचे दबाया। सुबह मंत्री के और थोड़ा रुक जाने के अनुरोध को भी न मानते हुए वे स्टेशन की ओर चल पड़े। वास्तव में उन्हें डर था कि कहीं उन्हें ही कोई चुरा न ले।
IV.अनुरूपता :-
- पहला दिन : चप्पलें गायब थीं :: दूसरे दिन : धूप का चश्मा
- तीसरे दिन : कम्बल गायब था :: चौथे दिन : ताला
- रिक्शा : तीन पहियों का वाहन :: साइकिल : दो पहियों का वाहन
- रेलगाड़ी : पटरी :: हवाई जहाज : आकाश
V. रिक्त स्थान भरिए :-
- हम लोग इस शहर में एक __________ सम्मेलन कर रहे हैं।
उत्तर – ईमानदार
- मेरी चप्पलें __________ थीं।
उत्तर – गायब
- वह मेरा चश्मा लगाये __________ से बैठे थे।
उत्तर – इतमीनान
- फिर इतने बड़े सम्मेलन में थोड़ी __________ होगी ही।
उत्तर – गड़बड़ी
VI. विलोम शब्द लिखिए :-
- आगमन X गमन
- रात X दिन
- जवाब X सवाल
- बेचना X खरीदना
- सज्जन X दुर्जन
VII. बहुवचन रूप लिखिए :-
- कपड़ा – कपड़े
- चादर – चादरें
- बात – बातें
- डिब्बा – डिब्बे
- चीज़ – चीज़ें
VIII. प्रेरणार्थक क्रिया रूप लिखिए :-
- ठहरना – ठहराना – ठहरवाना
- धोना – धुलाना – धुलवाना
- देखना – दिखाना – दिखवाना
- लौटना – लौटाना – लौटवाना
- उतरना – उतारना – उतरवाना
- पहनना – पहनाना – पहनवाना
IX. संधि-विच्छेद करके संधि का नाम लिखिए :-
- स्वागत – सु + आगत = यण स्वर संधि
- सहानुभूति – सह + अनुभूति = दीर्घ स्वर संधि
- सज्जन – सत् + जन = व्यंजन संधि
- परोपकार – पर + उपकार = गुण स्वर संधि
- निश्चिंत – नि: + चिंत = विसर्ग संधि
- सदैव – सदा + ऐव = वृद्धि स्वर संधि
X. कन्नड या अंग्रेज़ी में अनुवाद कीजिए :-
- हम आपको आने-जाने का पहले दर्जे का किराया देंगे।
उत्तर – ನಾವು ನಿಮಗೆ ಪ್ರಥಮ ದರ್ಜೆಯ ಪ್ರಯಾಣ ಭಡಿಯನ್ನು ನೀಡುತ್ತೇವೆ.
We will pay you first-class fare for travel.
- स्टेशन पर मेरा खूब स्वागत हुआ।
उत्तर – ನಾನು ಸ್ಟೇಷನ್ನಲ್ಲಿ ಭಾರೀ ಸ್ವಾಗತವನ್ನು ಪಡೆದೆ.
I received a grand welcome at the station.
- देखिए, चप्पलें एक जगह नहीं उतारनी चाहिए।
उत्तर – ನೋಡಿ, ಚಪ್ಪಲಿಗಳನ್ನು ಒಂದೇ ಸ್ಥಳದಲ್ಲಿ ಬಿಟ್ಟುಬಿಡಬಾರದು.
Look, slippers should not be taken off in one place.
- अब मैं बचा हूँ। अगर रुका तो मैं ही चुरा लिया जाऊँगा।
उत्तर – ಈಗ ನಾನು ಮಾತ್ರ ಉಳಿದಿದ್ದೇನೆ. ನಾನು ನಿಲ್ಲಿದರೆ, ನಾನೇ ಕದಿಯಲ್ಪಡುವೆ.
Now I am the only one left. If I stop, I will be the one who gets stolen.
XI. ईमान गुण के सामने सही चिह्न (✅) और बेईमान गुण के सामने गलत चिह्न (x) लगाइए :-
- दूसरे लोगों की वस्तुओं को वापिस पहुँचाना। ✅
- चोरी करना। x
- रास्ते में मिली वस्तुओं को पुलिस स्टेशन पहुँचाना। ✅
- कामचोरी करना। x
- बगल में छुरी मुँह में राम-राम करना। x
- झूठ बोलना। x
- नेक मार्ग पर चलना। ✅
- जानबूझकर गलती करना। x
- बहाना बनाना। x
- सच बोलना। ✅
- समय पर काम पूरा करना। ✅
- धोखा देना। x
- जालसाज़ी करना। x
- चोर बाज़ारी और मिलावट करना। x
- निष्ठा से कार्य करना। ✅
- भ्रष्टाचार में शामिल होना। x
- सेवाभाव से दूसरों की सहायता करना। ✅
- देश के प्रति सच्चा अभिमान रखना। ✅
- सच्चे भाव से बड़ों का आदर करना। ✅
- अपने सहपाठियों के साथ भाईचारे का व्यवहार करना। ✅
XII. चित्र देखकर कहानी रचिए और उसके लिए एक उचित शीर्षक दीजिए :-
उत्तर – ईमानदार ऑटोवाला
एक बार की बात है। शिबू नाम के एक ऑटो रिक्शाचालक ने एक यात्री को उसके गंतव्य स्थान तक पहुँचा दिया। यात्री किराया देकर अपनी राह ले चुका था। तभी शिबू की नजर एक ब्रीफकेस पर पड़ी जो उसी यात्री का था जो अभी-अभी उसकी ऑटो से उतरा था। शिबू ने इधर-उधर उस यात्री को ढूँढने की बहुत कोशिश की पर यात्री शायद कहीं दूर निकल चुका था। ईमानदार शिबू ने एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका अदा करते हुए नजदीकी पुलिस थाने में जाकर वह ब्रीफकेस दे दिया। पुलिस ने तत्परता दिखाई और ब्रीफकेस मिलने की सूचना स्थानीय टीवी चैनलों पर दिखाने लगे। कुछ ही समय बाद ब्रीफकेस का स्वामी वहाँ आ पहुँचा। पुलिस सहित ब्रीफकेस के स्वामी ने भी ईमानदार ऑटोवाले की प्रशंसा की और उसे फूलों का हार भी पहनाया।
I. दिए गए निर्देशानुसार वाक्य बदलिए :-
- मेरे पास चप्पल नहीं थी। (वर्तमान काल में)
उत्तर – मेरे पास चप्पल नहीं है।
- एक बिस्तर की चादर गायब है। (भूतकाल में)
उत्तर – एक बिस्तर की चादर गायब थी।
- उसमें पैसे तो नहीं थे। (भविष्यत् काल में)
उत्तर – उसमें पैसे नहीं होंगे।
- कोई उठा ले गया होगा। (वर्तमान काल में)
उत्तर – कोई उठा ले जा रहा है।
- वह धूप का चश्मा लगाये थे। (भविष्यत् काल में)
उत्तर – वह धूप का चश्मा लगाया होगा।
- सुबह मुझे लौटना था। (भविष्यत् काल में)
उत्तर – सुबह मुझे लौटना होगा।
II.निम्नलिखित वाक्यों के आगे काल पहचानकर लिखिए :-
- मैंने सामान बाँधा।
उत्तर – भूतकाल
- बड़ी चोरियाँ हो रही हैं।
उत्तर – वर्तमान काल
- पहले दर्जे का किराया लूँगा।
उत्तर – भविष्यत् काल
- डेलीगेट दोपहर को ही वापस चले गये।
उत्तर – भूतकाल
- मेरी चप्पलें देख रहे थे।
उत्तर – भूतकाल
III. इन कहावतों का अर्थ समझकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :-
जैसे : कहावत जहाँ चाह वहाँ राह।
अर्थ – इच्छा होने पर उसे पाने का मार्ग स्वयं मिल जाता है।
वाक्य – यदि मनुष्य चाहे तो कठिन से कठिन कार्य को भी पूरा कर सकता है, क्योंकि जहाँ चाह वहाँ राह।
- गुरु गुड़ ही रहे, चेले शक्कर हो गये।
उत्तर – अर्थ – शिष्य (विद्यार्थी) अपने गुरु (शिक्षक) से भी अधिक बुद्धिमान, कुशल और योग्य बन गए।
वाक्य – हमारे विद्यालय के कई छात्र आज बड़े वैज्ञानिक और अधिकारी बन चुके हैं, सच में “गुरु गुड़ ही रहे, चेले शक्कर हो गए”।
- जैसा देश, वैसा भेस।
उत्तर – अर्थ – जिस स्थान या समाज में व्यक्ति रहता है, उसे वहाँ की परिस्थितियों, रीति-रिवाजों और संस्कृति के अनुसार अपने व्यवहार और पहनावे को ढाल लेना चाहिए।
वाक्य – जब सुधीर विदेश गया, तो उसने वहाँ के अनुसार रहन-सहन और भाषा सीख ली – जैसा देश, वैसा भेस।
- निर्बल के बल राम।
उत्तर – अर्थ – जो व्यक्ति कमजोर, असहाय या विपत्ति में होता है, उसके लिए भगवान ही सबसे बड़ा सहारा होते हैं।
वाक्य – जब जीवन में सभी रास्ते बंद हो जाते हैं, तब केवल भगवान ही सहारा होते हैं – निर्बल के बल राम।
- बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद।
उत्तर – अर्थ – अज्ञानी या अयोग्य व्यक्ति किसी मूल्यवान या गुणवान वस्तु का सही मूल्यांकन नहीं कर सकता।
वाक्य – रोनित को चित्रकला का ज्ञान नहीं, फिर भी वह प्रसिद्ध चित्रकार की कलाकृति की आलोचना कर रहा था – बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद।
- हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और।
उत्तर – अर्थ – कुछ लोग बाहर से बहुत अच्छे और ईमानदार दिखते हैं, लेकिन अंदर से वे अलग ही होते हैं।
वाक्य – कई कंपनियाँ अपने उत्पादों को स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद बताती हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही होती है – हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और।
विद्यार्थियों की समस्याओं पर अपनी पाठशाला में एक विद्यार्थी सम्मेलन का आयोजन कीजिए।
उत्तर – विद्यार्थी सम्मेलन: विद्यार्थियों की समस्याओं पर विचार-विमर्श
दिनांक: 12-01-2025
स्थान: बैंगलोर, कर्नाटक
प्रतिभागी: विद्यालय के विद्यार्थी, शिक्षकगण एवं प्रधानाचार्य
सम्मेलन की रूपरेखा –
हमारे विद्यालय में विद्यार्थियों की विभिन्न समस्याओं पर चर्चा करने और उनके समाधान खोजने के लिए एक विद्यार्थी सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन का उद्देश्य विद्यार्थियों की शैक्षणिक, मानसिक, सामाजिक और व्यक्तिगत चुनौतियों को समझना और उनका समाधान निकालना था।
प्रमुख समस्याएँ और समाधान –
1️⃣ पढ़ाई से संबंधित समस्याएँ
👉 समस्या – कठिन विषयों को समझने में परेशानी, पढ़ाई का दबाव, नोट्स की कमी।
👉 समाधान –
✅ नियमित मार्गदर्शन के लिए अतिरिक्त कक्षाएँ और शिक्षकों से चर्चा।
✅ सीनियर विद्यार्थियों द्वारा जूनियर्स की मदद के लिए ‘स्टडी ग्रुप’ बनाना।
✅ डिजिटल लर्निंग टूल्स (यूट्यूब, ई-बुक्स) का उपयोग।
2️⃣ परीक्षा और मानसिक तनाव
👉 समस्या – परीक्षा का डर, नंबरों का तनाव, आत्मविश्वास की कमी।
👉 समाधान –
✅ नियमित अभ्यास और प्रश्नपत्र हल करने की आदत।
✅ ध्यान (मेडिटेशन) और खेल-कूद के लिए प्रेरित करना।
✅ परीक्षा को सीखने का अवसर मानकर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना।
3️⃣ अनुशासन और व्यवहार
👉 समस्या – कुछ विद्यार्थियों का अनुशासनहीन व्यवहार, अनुचित गतिविधियों में शामिल होना।
👉 समाधान –
✅ नैतिक शिक्षा और काउंसलिंग से मार्गदर्शन।
✅ सीनियर विद्यार्थियों को अनुशासन बनाए रखने की ज़िम्मेदारी देना।
✅ विद्यालय में प्रेरणादायक संगोष्ठियों का आयोजन।
4️⃣ तकनीकी और डिजिटल शिक्षा की कमी
👉 समस्या – ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म की जानकारी का अभाव, इंटरनेट की कमी।
👉 समाधान –
✅ विद्यालय में डिजिटल कक्षाओं की सुविधा देना।
✅ विद्यार्थियों को इंटरनेट और तकनीकी शिक्षा के प्रति जागरूक करना।
✅ कंप्यूटर और डिजिटल साक्षरता पर कार्यशालाएँ आयोजित करना।
5️⃣ खेल और अन्य सह-पाठ्यक्रम गतिविधियाँ
👉 समस्या – खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए पर्याप्त समय न मिलना।
👉 समाधान –
✅ समय-सारणी में खेलकूद और अन्य गतिविधियों के लिए समय निर्धारित करना।
✅ विद्यालय में वार्षिक खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन।
निष्कर्ष:
यह सम्मेलन बहुत उपयोगी रहा, क्योंकि इसमें विद्यार्थियों की समस्याओं को खुलकर सुना गया और उनके समाधान पर गंभीरता से विचार किया गया। सभी विद्यार्थियों ने सहमति जताई कि इस तरह के सम्मेलन नियमित रूप से होने चाहिए, ताकि उनके शैक्षणिक और व्यक्तिगत विकास में मदद मिल सके।
“विद्यार्थियों की समस्याओं को समझना और उन्हें हल करना ही एक सफल शिक्षा प्रणाली की पहचान है।”
किसी सम्मेलन में भाग लेकर वहाँ के अनुभवों पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर – सम्मेलन में भाग लेने का अनुभव
पिछले सप्ताह मैंने ‘डिजिटल इंडिया और टेक्नोलॉजी का भविष्य’ विषय पर आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया। यह सम्मेलन हमारे शहर के एक प्रतिष्ठित ऑडिटोरियम में हुआ, जहाँ देश-विदेश के कई विशेषज्ञ, विद्यार्थी और शोधकर्ता उपस्थित थे।
सम्मेलन की शुरुआत –
कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि के स्वागत और उद्घाटन भाषण से हुई। उन्होंने डिजिटल युग में तकनीकी नवाचारों के महत्त्व पर जोर दिया। इस दौरान कई विशेषज्ञों ने अपने विचार साझा किए और नई तकनीकों के बारे में बताया।
ज्ञानवर्धक सत्र –
सम्मेलन में कई सत्र आयोजित किए गए, जहाँ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर सुरक्षा, ऑनलाइन शिक्षा और डिजिटल मार्केटिंग जैसे विषयों पर चर्चा हुई। मैंने “साइबर सुरक्षा और डेटा प्राइवेसी” पर एक कार्यशाला में भाग लिया, जिसमें हमें ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचने और सुरक्षित इंटरनेट उपयोग के टिप्स मिले।
नए लोगों से मुलाकात –
यह सम्मेलन मेरे लिए नेटवर्किंग का भी बेहतरीन अवसर रहा। मैंने कई उद्योग विशेषज्ञों, प्रोफेसरों और अन्य विद्यार्थियों से बातचीत की, जिससे मुझे नए विचारों और संभावनाओं के बारे में जानकारी मिली।
अनुभव और सीख –
इस सम्मेलन ने मुझे डिजिटल युग की नई संभावनाओं और चुनौतियों के बारे में गहराई से सोचने का मौका दिया। मैंने महसूस किया कि तकनीकी ज्ञान को अपडेट रखना कितना जरूरी है और सही मार्गदर्शन से हम अपने करियर को ऊँचाइयों तक ले जा सकते हैं।
निष्कर्ष:
सम्मेलन का अनुभव न केवल शिक्षाप्रद था बल्कि प्रेरणादायक भी। इससे मुझे नई जानकारियाँ मिलीं और मैं भविष्य में ऐसे सम्मेलनों में भाग लेने के लिए और भी उत्साहित हूँ। ऐसे आयोजनों से न केवल ज्ञान बढ़ता है बल्कि नए अवसरों के द्वार भी खुलते हैं।
पाठ से आगे
- पालतू और जंगली जानवरों की सूची तैयार कीजिए :-
पालतू जानवर (Domestic Animals)
कुत्ता (Dog)
बिल्ली (Cat)
गाय (Cow)
भेड़ (Sheep)
बकरी (Goat)
घोड़ा (Horse)
ऊँट (Camel)
गधा (Donkey)
सुअर (Pig)
खरगोश (Rabbit)
जंगली जानवर (Wild Animals)
शेर (Lion)
बाघ (Tiger)
हाथी (Elephant)
भालू (Bear)
हिरण (Deer)
गेंडा (Rhinoceros)
तेंदुआ (Leopard)
लोमड़ी (Fox)
भेड़िया (Wolf)
जिराफ़ (Giraffe)
II. नीचे लिखे शब्दों के आधार पर लिखिए कि कौन क्या काम करता है?
उदाहरण :
बढ़ई – लकड़ी का काम
- कुम्हार – मिट्टी का काम
- लुहार – लोहे का काम
- सुनार – आभूषण बनाने (स्वर्ण) का काम
- जुलाहा – कपड़े बुनने का काम
- दुकानदार – समान बेचने का काम
- हलवाई – मिठाइयाँ बनाने का काम
- डॉक्टर – इलाज करने का काम
- अध्यापक – पढ़ाने का काम
- सैनिक – देश की रक्षा करने का काम
- किसान – अन्न उगाने का काम