मुंशी प्रेमचंद
प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के पास लमही नामक गाँव में हुआ था। इनका वास्तविक नाम धनपतराय था। वे शिक्षा विभाग में नौकरी करते थे। बचपन में ही प्रेमचंद मातृ प्रेम से वंचित रहे। इनका जीवन गरीबी में ही गुज़रा। वे मेट्रिक तक ही पढ़ पाये। वे यथार्थवादी कथाकार थे।
इनकी प्रमुख रचनाएँ – गोदान, सेवासदन, गबन, निर्मला, कर्मभूमि आदि इनके प्रमुख उपन्यास हैं। बड़े घर की बेटी, नमक का दरोगा, पंच परमेश्वर, पूस की रात आदि इनकी प्रसीद्ध कहानियाँ हैं। प्रेमचंद की कहानियाँ ‘मानसरोवर’ नाम से संकलित हैं।
लेखक अपना अनुभव बताते हुए पाठकों को सचेत करते हैं कि अगर खरीदारी करते समय सावधानी नहीं बरतें तो धोखा खाने की संभावना होती है।
इस कहानी में बाज़ार में लोगों के साथ होनेवाली धोखेबाज़ी पर प्रकाश डाला गया है और खरीदारी करते समय सावधानी बरतने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।
कश्मीरी सेब
कल शाम को चौक में दो-चार ज़रूरी चीजें खरीदने गया था। पंजाबी मेवाफरोशों की दुकानें रास्ते ही में पड़ती है। एक दुकान पर बहुत अच्छे रंगदार, गुलाबी सेब सजे हुए नज़र आये। जी ललचा उठा। आजकल शिक्षित समाज में विटामिन और प्रोटीन के शब्दों में विचार करने की प्रवृत्ति हो गई है। टोमाटो को पहले कोई भी न पूछता था। अब टोमाटो भोजन का आवश्यक अंग बन गया है। गाजर भी पहले गरीबों के पेट भरने की चीज़ थी। अमीर लोग तो उसका हलवा ही खाते थे; मगर अब पता चला है कि गाजर में भी बहुत विटामिन हैं; इसलिए गाजर को भी मेजों पर स्थान मिलने लगा है। सेब के विषय में तो यह कहा जाने लगा है कि एक सेब रोज़ खाइए तो आपको डॉक्टरों की ज़रूरत न रहेगी। डॉक्टर से बचने के लिए हम निमकौड़ी तक खाने को तैयार हो सकते हैं। सेब तो रस और स्वाद में अगर आम से बढ़कर नहीं है तो घटकर भी नहीं। सेब को यह स्थान मिल चुका है। अब वह केवल स्वाद की चीज़ नहीं है, उसमें गुण भी हैं। हमने दुकानदार से मोल-भाव किया और आध सेर सेब माँगे।
दुकानदार ने कहा – बाबूजी, बड़े मज़ेदार सेब आए हैं, खास कश्मीर के। आप ले जाएँ, खाकर तबीयत खुश हो जायेगी।
मैंने रुमाल निकालकर उसे देते हुए कहा चुन-चुनकर रखना।
दुकानदार ने तराजू उठायी और अपने नौकर से बोला- सुनो, आध सेर कश्मीरी सेब निकाल ला। चुनकर लाना।
लौंडा चार सेब लाया। दुकानदार ने तौला, एक लिफ़ाफ़े में उन्हें रखा और रुमाल में बाँधकर मुझे दे दिया। मैंने चार आने उसके हाथ में रखे।
घर आकर लिफ़ाफ़ा ज्यों का त्यों रख दिया। रात को सेब या कोई दूसरा फल खाने का कायदा नहीं है। फल खाने का समय तो प्रातःकाल है। आज सुबह मुँह-हाथ धोकर जो नाश्ता करने के लिए एक सेब निकाला, तो सड़ा हुआ था। एक रुपए के आकार का छिलका गल गया था। समझा, रात को दुकानदार ने देखा न होगा। दूसरा निकाला। मगर यह आधा सड़ा हुआ था। अब संदेह हुआ, दुकानदार ने मुझे धोखा तो नहीं दिया है। तीसरा सेब निकाला। यह सड़ा तो न था; मगर एक तरफ दबकर बिलकुल पिचक गया था। चौथा देखा। वह यों तो बेदाग था; मगर उसमें एक काला सुराख था जैसा अक्सर बेरों में होता है। काटा तो भीतर वैसे ही धब्बे, जैसे बेर में होते हैं। एक सेब भी खाने लायक नहीं। चार आने पैसों का इतना गम न हुआ जितना समाज के इस चारित्रिक पतन का। दुकानदार ने जानबूझकर मेरे साथ धोखेबाजी का व्यवहार किया। एक सेब सड़ा हुआ होता, तो मैं उसको क्षमा के योग्य समझता। सोचता, उसकी निगाह न पड़ी होगी। मगर चारों के चारों खराब निकल जाएँ, यह तो साफ धोखा है। मगर इस धोखे में मेरा भी सहयोग था। मेरा उसके हाथ में रुमाल रख देना मानो उसे धोखा देने की प्रेरणा थी। उसने भाँप लिया कि यह महाशय अपनी आँखों से काम लेनेवाले जीव नहीं हैं और न इतने चौकस हैं कि घर से लौटाने आएँ। आदमी बेईमानी तभी करता है जब उसे अवसर मिलता है। बेईमानी का अवसर देना, चाहे वह अपने ढीलेपन से हो या सहज विश्वास से, बेईमानी में सहयोग देना है। पढ़े-लिखे बाबुओं और कर्मचारियों पर तो अब कोई विश्वास नहीं करता। किसी थाने या कचहरी या म्युनिसिपैलिटी में चले जाइए, आपकी ऐसी दुर्गति होगी कि आप बड़ी से बड़ी हानि उठाकर भी उधर न जायेंगे।
पहले ऐसा नहीं था। व्यापारियों की साख बनी हुई थी। यों तौल में चाहे छटाँक-आध छटाँक कस लें; लेकिन आप उन्हें पाँच की जगह भूल से दस के नोट दे आते, तो आपको घबराने की कोई ज़रूरत न थी। आपके रुपए सुरक्षित थे। मुझे याद है, एक बार मैंने मुहर्रम के मेले में एक दुकानदार से एक पैसे की रेवड़ियाँ ली थीं और पैसे की जगह अठन्नी दे आया था। घर आकर जब अपनी भूल मालूम हुई तो दुकानदार के पास दौड़ा गया। आशा नहीं थी कि वह अठन्नी लौटायेगा, पर लेकिन उसने प्रसन्नचित्त से अठन्नी लौटा दी और उलटे मुझसे क्षमा माँगी। यहाँ कश्मीरी सेब के नाम से सड़े हुए सेब बेचे जाते हैं। मुझे आशा है, पाठक बाज़ार में जाकर मेरी तरह आँखें न बंद कर लिया करेंगे। नहीं तो उन्हें भी कश्मीरी सेब ही मिलेंगे।
शब्दार्थ :
मेवाफरोश – मेवा या ताजे फल बेचने वाला
दृष्टि – नज़र, निगाह, दिखाई देना
निमकौड़ी – नीम का फल,
स्वाद – रुचि,
लौंडा – छोकरा, बालक;
मोल-भाव – मूल्य, कीमत, दाम;
तराजू – तौलने का साधन, Balance
कायदा – नियम, रीति;
गलना – किसी वस्तु का घनत्व कम होना
बेदाग – साफ, जिसमें कोई दाग न हो;
भाँप लेना – पहचानना,
सुराख – छेद,
बेर – एक प्रकार का फल
चौकस – सचेत, सावधान;
कचहरी – Court
साख – लेन-देन,
छटाँक – सेर (1 किलो) का सोलहवें भाग की एक तौल,
रेवड़ी – तिल और चीनी से बनी मिठाई।
I. एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
- लेखक चीजें खरीदने कहाँ गये थे?
उत्तर – लेखक चीजें खरीदने नजदीकी चौक गए थे।
- लेखक को क्या नज़र आया?
उत्तर – लेखक को पंजाबी मेवाफरोशों की एक दुकान पर बहुत अच्छे रंगदार, गुलाबी सेब सजे हुए नज़र आए।
- लेखक का जी क्यों ललचा उठा?
उत्तर – पंजाबी मेवाफरोशों की दुकान पर बहुत अच्छे रंगदार, गुलाबी सेब देखकर लेखक का जी ललचा उठा।
- टोमाटो किसका आवश्यक अंग बन गया है?
उत्तर – आजकल टोमाटो भोजन (खान-पान) का आवश्यक अंग बन गया है।
- स्वाद में सेब किससे बढ़कर नहीं है?
उत्तर – स्वाद में सेब आम से बढ़कर नहीं है।
- रोज़ एक सेब खाने से किनकी ज़रूरत नहीं होगी?
उत्तर – रोज़ एक सेब खाने से डॉक्टर (चिकित्सक) की ज़रूरत नहीं होगी।
II. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
- आजकल शिक्षित समाज में किसके बारे में विचार किया जाता है?
उत्तर – आजकल शिक्षित समाज स्वास्थ्य और पोषण को लेकर काफी जागरूक हो गया है। शिक्षित समाज में सेहत के लिए आवश्यक तत्त्व जैसे – प्रोटीन और विटामिन पर विचार किया जाता है। इस वजह से ही टोमाटो और गाजर जिसे पहले कोई पूछता नहीं था उसे आज के दौर में खान-पान का आवश्यक अंग बना लिया गया है।
- दुकानदार ने लेखक से क्या कहा?
उत्तर – दुकानदार ने लेखक से कहा कि बाबूजी, हमारे पास बड़े मज़ेदार सेब आए हैं, खास कश्मीर के। आप ले जाएँ, खाकर तबीयत खुश हो जाएगी।
- दुकानदार ने अपने नौकर से क्या कहा?
उत्तर – दुकानदार ने लेखक को कश्मीरी सेब देने के लिए तराजू उठाई और अपने नौकर से बोला- सुनो, आध सेर कश्मीरी सेब निकाल ला। और हाँ, चुनकर लाना। इसके बाद दुकानदार ने सेब तौला, उसे एक लिफ़ाफ़े में रखा और रुमाल में बाँधकर लेखक को दे दिया।
- सेब की हालत के बारे में लिखिए।
उत्तर – लेखक ने आधा सेर कश्मीरी सेब खरीदा था जो केवल चार ही थे। सुबह मुँह-हाथ धोकर नाश्ता करने के लिए जब लेखक ने एक सेब निकाला, तो उसमें एक रुपए के आकार का जितना छिलका गल गया था। दूसरा आधा सड़ा हुआ था। तीसरा एक तरफ दबकर बिलकुल पिचक गया था और चौथे में एक काला सुराख था।
III. जोड़कर लिखिए :-
अ ब
- सेब को रुमाल में बाँधकर प्रातःकाल है।
- फल खाने का समय तो मुझे दे दिया।
- एक सेब भी खाने बनी हुई थी।
- व्यापारियों की साख लायक नहीं।
उत्तर –
- सेब को रुमाल में बाँधकर मुझे दे दिया।
- फल खाने का समय तो प्रातःकाल है।
- एक सेब भी खाने लायक नहीं।
- व्यापारियों की साख बनी हुई थी।
IV. विलोम शब्द लिखिए :-
- शाम X सुबह
- खरीदना x बेचना
- बहुत X कम
- अच्छा X बुरा
- शिक्षित X अशिक्षित
- आवश्यक x अनावश्यक
- गरीब X अमीर
- रात X दिन
- संदेह X नि:संदेह
- साफ X मैला
- बेईमान X ईमानदार
- विश्वास x अविश्वास
- सहयोग X असहयोग
- हानि X लाभ
- पास X दूर
- ग़म X खुशी
V.अनुरूपता :-
- केला : पीला रंग :: सेब : गुलाबी
- सेब : फल :: गाजर : सब्ज़ी
- नागपुर : संतरा :: कश्मीर : सेब
- कपड़ा : नापना :: टोमाटो : किलो
VI. अन्य वचन लिखिए :-
- चीजें – चीज
- रास्ता – रास्ते
- फल – फल
- घर – घर
- रुपए – रुपया
- आँखें – आँख
- कर्मचारी – कर्मचारीगण
- व्यापारी – व्यापारीगण
- रेवड़ी – रेवड़ियाँ
- दुकान – दुकानें
VII. प्रत्येक शब्द के अंतिम अक्षर से एक और शब्द बनाइए :-
उदा : सेब → बंदर रंग गरम
- दुकान – नल – लगाम – मगरमच्छ
- बाज़ार – रसायन – नगर – रमेश
- रुमाल – लहर – रमन – नसीहत
- लेखक – कबूतर – रमा – माता
VIII. निम्नलिखित वाक्यों को सही क्रम से लिखिए :-
- गाजर गरीबों भी पहले के पेट की चीज़ भरने थी।
उत्तर – गाजर भी पहले गरीबों के पेट भरने की चीज़ थी।
- अब चीज़ नहीं है वह केवल स्वाद की।
उत्तर – अब वह केवल स्वाद की चीज़ नहीं है।
- नहीं लायक खाने भी सेब एक।
उत्तर – एक सेब भी खाने लायक नहीं।
- मालूम हुई घर आकर अपनी भूल।
उत्तर – घर आकर अपनी भूल मालूम हुई।
IX. कन्नड अथवा अंग्रेज़ी में अनुवाद कीजिए :-
- गाजर भी पहले गरीबों के पेट भरने की चीज़ थी।
उत्तर – ಕ್ಯಾರೆಟ್ ಅನ್ನು ಮೊದಲು ಬಡವರಿಗೆ ಆಹಾರಕ್ಕಾಗಿ ಬಳಸಲಾಗುತ್ತಿತ್ತು.
Carrots were also used to feed the poor earlier.
- दुकानदार ने कहा बड़े मज़ेदार सेब आये हैं।
उत्तर – ತುಂಬಾ ರುಚಿಯಾದ ಸೇಬುಗಳು ಬಂದಿವೆ ಎಂದು ಅಂಗಡಿಯವ ಹೇಳಿದ.
The shopkeeper said that very tasty apples have arrived.
- एक सेब भी खाने लायक नहीं।
उत्तर – ಒಂದು ಸೇಬು ಕೂಡ ತಿನ್ನಲು ಯೋಗ್ಯವಾಗಿಲ್ಲ
Not even an apple is worth eating.
- दुकानदार ने मुझसे क्षमा माँगी।
उत्तर – ಅಂಗಡಿಯವನು ನನ್ನಲ್ಲಿ ಕ್ಷಮೆಯಾಚಿಸಿದ
The shopkeeper apologized to me।
कक्षा में प्रेमचंद की कुछ सरल कहानियाँ पढ़कर उनकी चर्चा कीजिए।
उत्तर – प्रेमचंद की कहानियाँ सरल भाषा में गहरी सीख देती हैं। उनकी कुछ सरल और प्रसिद्ध कहानियाँ नीचे दी गई हैं –
- ईदगाह
कहानी का सार –
यह कहानी छोटे हामिद की है, जो गरीब होते हुए भी अपने दोस्तों की तरह ईद मेले में जाता है। जहाँ अन्य बच्चे मिठाइयाँ और खिलौने खरीदते हैं, वहीं हामिद अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदता है, ताकि वह रोटी बनाते समय जल न जाए। यह कहानी त्याग, सच्चे प्रेम और समझदारी को दर्शाती है।
- पंच परमेश्वर
कहानी का सार –
यह कहानी दो घनिष्ठ मित्रों, अल्गू चौधरी और जुम्मन शेख की है। जब जुम्मन की बूढ़ी खाला उससे न्याय माँगती है, तो अल्गू दोस्ती छोड़कर सच्चा न्याय करता है। बाद में, जब अल्गू को भी न्याय की जरूरत पड़ती है, तो जुम्मन भी निष्पक्षता दिखाता है। यह कहानी न्याय और ईमानदारी का संदेश देती है।
- बड़े भाई साहब
कहानी का सार –
यह एक मजेदार और शिक्षाप्रद कहानी है, जिसमें दो भाइयों के स्वभाव का अंतर दिखाया गया है। बड़ा भाई मेहनती और अनुशासित है, जबकि छोटा भाई नटखट और चतुर है। कहानी बताती है कि केवल पढ़ाई ही नहीं, बल्कि अनुभव भी जीवन का बड़ा शिक्षक होता है।
- ठाकुर का कुआँ
कहानी का सार –
यह कहानी एक गरीब दलित महिला गंगी की है, जिसका पति बीमार है। गाँव में ठाकुर के कुएँ से पानी लाने की उसकी कोशिश सामाजिक भेदभाव और अन्याय को दर्शाती है। यह जातिवाद और छुआछूत पर करारी चोट करती है।
- नमक का दरोगा
कहानी का सार –
यह कहानी ईमानदारी बनाम भ्रष्टाचार की लड़ाई को दर्शाती है। नायक मुंशी वंशीधर को एक अमीर व्यापारी रिश्वत देने की कोशिश करता है, लेकिन वह ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करता है। अंततः, उसकी सत्यनिष्ठा की जीत होती है।
- पूस की रात
कहानी का सार –
यह कहानी एक गरीब किसान हल्कू की है, जो ठंड से बचने के लिए रजाई खरीदने के बजाय कर्ज चुकाने को प्राथमिकता देता है। पूरी रात ठंड से कांपते हुए, वह अपनी गरीबी पर रोता है। यह किसानों की कठिनाइयों और गरीबी को दर्शाती है।
- कफन
कहानी का सार –
यह सबसे चर्चित और मार्मिक कहानियों में से एक है। इसमें एक गरीब बाप-बेटा (घीसू और माधव) अपनी मरती हुई पत्नी/बहू के लिए कफन खरीदने के बजाय शराब पीते हैं। यह गरीबी, लाचारी और सामाजिक व्यंग्य को दर्शाती है।