इस पाठ से बच्चे साहस गुण, दृढ़ निश्चय, अथक परिश्रम, मुसीबतों का सामना करना इत्यादि आदर्श गुण सीखते हैं। इसके साथ हिमालय की ऊँची चोटियों की जानकारी भी प्राप्त करते हैं। यह पाठ सिद्ध करता है कि ‘मेहनत का फल अच्छा होता है।
इस लेख द्वारा छात्र यह जानकारी प्राप्त कर सकते हैं कि महिलाएँ भी साहस प्रदर्शन में पुरुषों से कुछ कम नहीं हैं। बिछेंद्री पाल इस विचार का एक निदर्शन है। ऐसी महीलाओं से प्रेरणा पाकर छात्र साहसी भाव अपना सकते हैं।
महिला की साहसगाथा
पहली महिला एवरेस्ट विजेता बिछेंद्री पाल को एवरेस्ट की चोटी पर चढ़नेवाली पहली भारतीय महिला होने का गौरव प्राप्त है। बिछेंद्री का जन्म एक साधारण भारतीय परिवार में हुआ था। पिता किशनपाल सिंह और माँ हंसादेई नेगी की पाँच संतानों में यह तीसरी संतान हैं। बिछेंद्री के बड़े भाई को पहाड़ों पर जाना अच्छा लगता था। भाई को देखकर उन्होंने निश्चय कर लिया कि वे भी वही करेंगी जो उनका भाई करते हैं। वे किसी से पीछे नहीं रहेंगी, उनसे बेहतर करके दिखलाएँगी। इसी जज़्बे से उन्होंने पर्वतारोहण का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया।
बिछेंद्री को बचपन में रोज़ पाँच किलोमीटर पैदल चल कर स्कूल जाना पड़ता था। बाद में पर्वतारोहण – प्रशिक्षण के दौरान उनका कठोर परिश्रम बहुत काम आया। सिलाई का काम सीख लिया और सिलाई करके पढ़ाई का खर्च जुटाने लगीं। इस तरह उन्होंने संस्कृत में एम.ए तथा बी. एड तक की शिक्षा प्राप्त की।
पढ़ाई के साथ-साथ बिछेंद्री ने पहाड़ पर चढ़ने के अपने लक्ष्य को भी हमेशा अपने सामने रखा। इसी दौरान उन्होंने ने ‘कालानाग’ पर्वत की चढ़ाई की। सन् 1982 में उन्होंने ‘गंगोत्री ग्लेशियर’ (6672 मी) तथा ‘रूड गेरो’ (5819 मी) की चढ़ाई की जिससे उनमें आत्मविश्वास और बढ़ा।
अगस्त 1983 में जब दिल्ली में हिमालय पर्वतारोहियों का सम्मेलन हुआ तब वे पहली बार तेनजिंग नोर्गे (एवरेस्ट पर चढ़नेवाले पहले पुरुष) तथा जुंके ताबी (एवरेस्ट पर चढ़नेवाली पहली महिला) से मिलीं। तब उन्होंने संकल्प लिया कि वे भी उनकी तरह एवरेस्ट पर पहुँचेंगी और वह दिन भी आया, जब 23 मई 1984 को एवरेस्ट पहुँचकर भारत का झंडा फहरा दिया। उस समय उनके साथ पर्वतारोही अंग दोरजी भी थे।
भारत की इस महिला द्वारा लिखित यह इतिवृत्तांत बहुत प्रेरणादायक तथा रोचक है। इसमें उन्होंने इस बात का वर्णन किया है कि वे एवरेस्ट के शिखर पर कैसे पहुँचीं?
कर्नल खुल्लर ने साउथ कोल तक की चढ़ाई के लिए तीन शिखर दलों के दो समूह बना दिए। मैं सुबह चार बजे उठ गई, बर्फ पिघलाई और चाय बनाई। कुछ बिस्कुट और आधी चॉकलेट का हल्का नाश्ता करने के पश्चात् मैं लगभग साढ़े पाँच बजे अपने तंबू से निकल पड़ी। अंग दोरजी ने मुझसे पूछा क्या मैं उनके साथ चलना चाहूँगी। मुझे उन पर विश्वास था। साथ ही साथ मैं अपनी आरोहण क्षमता और कर्मठता के बारे में भी आश्वस्त थी।
सुबह 6.20 पर जब अंग दोरजी और मैं साउथ कोल से बाहर निकले तो दिन ऊपर चढ़ आया था। हल्की-हल्की हवा चल रही थी और ठंड बहुत अधिक थी। हमने बगैर रस्सी के ही चढ़ाई की। अंग दोरजी एक निश्चित गति से ऊपर चढ़ते गए। मुझे भी उनके साथ चलने में कोई कठिनाई नहीं हुई। जमी हुई बर्फ की सीधी व ढलाऊ चट्टानें इतनी सख्त और भुरभुरी थीं, मानो शीशे की चादर बिछी हो। हमें बर्फ काटने के लिए फावड़े का इस्तेमाल करना पड़ा।
दो घंटे से कम समय में ही हम शिखर कैंप पर पहुँच गए। अंग दोरजी ने पीछे मुड़कर पूछा, “क्या तुम थक गई हो?” मैंने जवाब दिया, “नहीं” यह सुनकर वे बहुत अधिक आश्चर्यचकित और आनंदित हुए। थोड़ी चाय पीने के बाद हमने पुनः चढ़ाई शुरू कर दी। ल्हाटू एक नायलॉन की रस्सी लाया था इसलिए अंग दोरजी और मैं रस्सी के सहारे चढ़े, जबकि ल्हाटू एक हाथ से रस्सी पकड़े हुए बीच में चला। तभी ल्हाटू ने गौर किया कि मैं इन ऊँचाईयों के लिए आवश्यक चार लीटर ऑक्सीजन की अपेक्षा लगभग ढाई लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट की दर से लेकर चढ़ रही थी। मेरे रेगुलेटर पर जैसे ही उसने ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई मुझे कठिन चढ़ाई आसान लगने लगी।
दक्षिणी शिखर के ऊपर हवा की गति बढ़ गई थी। उस ऊँचाई पर तेज़ हवा के झोंके भुरभुरे बर्फ के कणों को चारों तरफ उड़ा रहे थे जिससे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। मैंने देखा कि थोड़ी दूर तक कोई ऊँची चढ़ाई नहीं है। ढलान एकदम सीधी नीची चली गई है। मेरी साँस मानो एकदम रुक गई थी। मुझे लगा कि सफलता बहुत नज़दीक है। 23 मई, 1984 के दिन दोपहर के 1 बजकर 7 मिनट पर मैं एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचनेवाली मैं प्रथम भारतीय महिला थी।
एवरेस्ट की चोटी पर इतनी जगह नहीं थी कि दो व्यक्ति साथ-साथ खड़े हो सकें। चारों तरफ हज़ारों मीटर लंबी सीधी ढलान को देखते हुए हमारे सामने मुख्य प्रश्न सुरक्षा का था। हमने फावड़े से पहले बर्फ की खुदाई कर अपने आपको सुरक्षित रूप से स्थिर किया। इसके बाद मैं अपने घुटनों के बल बैठी। बर्फ पर अपने माथे को लगाकर मैंने सागरमाथे के ताज का चुंबन किया। बिना उठे ही मैंने अपने थैले से हनुमान चालीसा और दुर्गा माँ का चित्र निकाला। मैंने इन्हें अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा और छोटी-सी पूजा करके इनको बर्फ में दबा दिया। उठकर मैं अपने रज्जु नेता अंग दोरजी के प्रति आदर भाव से झुकी। उन्होंने मुझे गले लगाया। कुछ देर बाद सोनम पुलजर पहुँचे और उन्होंने फोटो लिए।
इस समय तक ल्हाटू ने हमारे नेता को एवरेस्ट पर पहुँचने की सूचना दे दी थी। तब मेरे हाथ में वॉकी-टॉकी दिया गया। कर्नल खुल्लर ने मुझे बधाई दी और बोले, “देश को तुम पर गर्व है।” हमने शिखर पर 43 मिनट व्यतीत किए और अपनी वापसी यात्रा 1 बजकर 55 मिनट पर आरंभ की। अंग दोरजी और मैं साउथ कोल पर सायं पाँच बजे तक पहुँच गए। सबने साउथ कोल से शिखर तक और वापस साउथ कोल तक की यात्रा (चोटी पर रुकने सहित) पूरे 10 घंटे 40 मिनट के अंदर पूरी करने पर बधाई दी। मैं जब तंबू में घुस रही थी, मैंने मेजर कुमार को कर्नल खुल्लर से वायरलैस पर बात करते सुना, “आप विश्वास करें या न करें श्रीमान, बिछेंद्री पाल केवल तीन घंटे में ही वापिस आ गई है और वह उतनी ही चुस्त दिख रही है जितनी वह आज सुबह चढ़ाई शुरू करने से पहले थी।”
मुझे पर्वतारोहण में श्रेष्ठता के लिए भारतीय पर्वतारोहण संघ का प्रतिष्ठित स्वर्ण-पदक तथा अन्य अनेक सम्मान और पुरस्कार प्रदान किए गए। पद्मश्री और प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार की घोषणा की गई। सबके आकर्षण और सम्मान का केंद्र होना मुझे बहुत अच्छा लगा।
इस तरह बिछेंद्री को एवरेस्ट पर पहुँचनेवाली पहली भारतीय महिला होने का गौरव प्राप्त हुआ।
(बिछेंद्री पाल द्वारा लिखित ‘एवरेस्ट – मेरी शिखर यात्रा’ पर आधारित)
शब्दार्थ :
चोटी – शिखर,
जज़्बा – हौसला,
दौरान – उस समय,
झंडा – पताका, ध्वज
कर्मठता – काम करने की शक्ति का भाव
तंबू – शिविर, शामियाना
उपयोग – इस्तेमाल
आरोहण – चढ़ना,
बगैर – बिना,
फावड़ा – खुदाई का साधन,
नज़दीक – पास
रज्जु – रस्सी
I. एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
- बिछेंद्री पाल को कौन-सा गौरव प्राप्त हुआ है?
उत्तर – बिछेंद्री पाल को माउंट एवरेस्ट की चोटी पर कदम रखने वाली भारत की प्रथम महिला होने का गौरव प्राप्त है।
- बिछेंद्री के माता-पिता कौन थे?
उत्तर – बिछेंद्री के पिता किशनपाल सिंह और माँ हंसादेई नेगी थी।
- बिछेंद्री ने क्या निश्चय किया?
उत्तर – बिछेंद्री ने निश्चय किया कि वह भी अपने भाइयों की तरह ही पहाड़ों पर चढ़ेगी।
- बिछेंद्री ने किस ग्लेशियर पर चढ़ाई की?
उत्तर – बिछेंद्री ने गंगोत्री ग्लेशियर पर चढ़ाई की।
- सन् 1983 में दिल्ली में कौन-सा सम्मेलन हुआ था?
उत्तर – सन् 1983 में दिल्ली में हिमालय पर्वतारोहियों का सम्मेलन हुआ था।
- एवरेस्ट पर भारत का झंडा फहराते समय पाल के साथ कौन थे?
उत्तर – एवरेस्ट पर भारत का झंडा फहराते समय पाल के साथ अंग दोरजी भी थे।
- कर्नल का नाम क्या था?
उत्तर – कर्नल का नाम दर्शन कुमार खुल्लर था।
- ल्हाटू कौन – सी रस्सी लाया था?
उत्तर – ल्हाटू नायलॉन की रस्सी लाया था।
- बिछेंद्री ने थैले से कौन – सा चित्र निकाला?
उत्तर – बिछेंद्री ने थैले से दुर्गा माँ का चित्र निकाला था।
- कर्नल ने बधाई देते हुए बिछेंद्री से क्या कहा?
उत्तर – कर्नल खुल्लर ने बिछेंद्री को बधाई दी और बोले, “देश को तुम पर गर्व है।”
- मेजर का नाम क्या था?
उत्तर – मेजर का नाम किरण आई. कुमार था।
- बिछेंद्री का भारतीय पर्वतारोहण संघ ने कौन-सा पदक देकर सम्मान किया?
उत्तर – बिछेंद्री पाल को भारतीय पर्वतारोहण संघ ने प्रतिष्ठित स्वर्ण-पदक देकर सम्मानित किया।
II. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
- बिछेंद्री पाल के परिवार का परिचय दीजिए।
उत्तर – बिछेंद्री का जन्म सन् 1954 को भारत के उत्तराखंड के उत्तरकाशी में एक साधारण भारतीय भोटिया परिवार में हुआ था। उनके पिता किशनपाल सिंह और माँ हंसादेई नेगी थीं। बिछेंद्री पाल कुल पाँच भाई-बहन हैं जिनमें इनका स्थान तीसरा है।
- बिछेंद्री का बचपन कैसे बीता?
उत्तर – बिछेंद्री का बचपन अनेक संघर्षों और चुनौतियों का सामना करते हुए बीता। उन्हें रोज़ पाँच किलोमीटर पैदल चल कर स्कूल जाना पड़ता था। आर्थिक तंगी का सामना करने के लिए उन्होंने सिलाई का काम सीखा और सिलाई करके पढ़ाई का खर्च जुटाने लगीं। इस तरह उन्होंने संस्कृत में एम.ए तथा बी. एड तक की शिक्षा प्राप्त की।
- बिछेंद्री ने पर्वतारोहण के लिए किन-किन चीज़ों का उपयोग किया?
उत्तर – बिछेंद्री ने पर्वतारोहण के लिए आरोही उपस्कर, ऑक्सीज़न के सिलेंडर, नायलॉन की रस्सी और बर्फ काटने के लिए फावड़े आदि चीजों का उपयोग किया।
- एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचकर बिछेंद्री ने क्या किया?
उत्तर – एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचकर बिछेंद्री अपने घुटनों के बल बैठी। बर्फ पर अपने माथे को लगाकर सागरमाथे के ताज का चुंबन किया। बिना उठे ही अपने थैले से हनुमान चालीसा और दुर्गा माँ का चित्र निकाला। छोटी-सी पूजा की और अपने साथ लाए लाल कपड़े में इनको लपेटकर बर्फ में दबा दिया।
III. चार-पाँच वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
- बिछेंद्री ने पहाड़ पर चढ़ने की तैयारी किस प्रकार की?
उत्तर – बिछेंद्री ने पहाड़ पर चढ़ने की तैयारी भरपूर ऊर्जा और उत्साह से किया। वह सुबह चार बजे उठ गई, बर्फ पिघला कर चाय बनाई। कुछ बिस्कुट और आधी चॉकलेट का हल्का नाश्ता करने के पश्चात् लगभग साढ़े पाँच बजे अपने तंबू से निकल पड़ी। सुबह 6.20 मिनट पर अंग दोरजी के साथ साउथ कोल से बाहर निकली तो दिन ऊपर चढ़ आया था। हल्की-हल्की हवा चल रही थी और ठंड बहुत अधिक थी। इन्होंने बगैर रस्सी के ही चढ़ाई की तथा बर्फ काटने के लिए फावड़े का इस्तेमाल किया।
- दक्षिणी शिखर पर चढ़ते समय बिछेंद्री के अनुभव के बारे में लिखिए।
उत्तर – बिछेंद्री ने सुबह 6.20 मिनट अंग दोरजी के साथ आगे की चढ़ाई शुरू की। दिन ऊपर चढ़ आया था और हल्की-हल्की हवा चलने के कारण ठंड बहुत अधिक थी। इन्होंने बगैर रस्सी के ही चढ़ाई की। जमी हुई बर्फ की सीधी व ढलाऊ चट्टानें इतनी सख्त और भुरभुरी थीं जिसे काटने के लिए इन्हें फावड़े का इस्तेमाल करना पड़ा। दो घंटे से कम समय में ही ये शिखर कैंप पर पहुँच गए। थोड़ी चाय पीने के बाद इन्होंने पुनः चढ़ाई शुरू कर दी। ल्हाटू एक नायलॉन की रस्सी लाया था इसलिए अंग दोरजी और बिछेंद्री रस्सी के सहारे चढ़े, जबकि ल्हाटू एक हाथ से रस्सी पकड़े हुए बीच में चला। ल्हाटू ने इसी बीच बिछेंद्री रेगुलेटर पर जैसे ही ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई तो बिछेंद्री को कठिन चढ़ाई भी आसान लगने लगी।
- प्रस्तुत पाठ से क्या संदेश मिलता है?
उत्तर – इस पाठ से हमें यह संदेश मिलता है कि अगर हम यह ठान लें कि हमें जीवन में कुछ बड़ा कर दिखाना है तो हम अपने उस लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं। लेकिन केवल लक्ष्य निर्धारित कर लेने भर से ही लक्ष्य हासिल नहीं होगा अपितु उसे अर्जित करने के लिए कठोर परिश्रम, अभ्यास, संघर्ष और जुझारूपन की आवश्यकता होगी। आर्थिक तंगी को अपने लक्ष्य के रास्ते में पत्थर बनने से रोकने वाली बिछेंद्री पाल ने यह सिद्ध कर दिखाया कि जहाँ चाह होती है वहाँ राह मिल ही जाती है।
IV.जोड़कर लिखिए :
अ ब
- गंगोत्री ग्लेशियर की चढ़ाई सन् 1984
- पर्वतारोहियों का सम्मेलन सन् 1985
- एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचना सन् 1982
सन् 1983
उत्तर – अ ब
- गंगोत्री ग्लेशियर की चढ़ाई सन् 1982
- पर्वतारोहियों का सम्मेलन सन् 1983
- एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचना सन् 1984
V. अनुरूप शब्द लिखिए :-
- पहाड़ : गिरि :: चोटी : शिखर
- कालानाग : पर्वत :: गंगोत्री : ग्लेशियर
- कर्नल : खुल्लर :: मेजर : किरण आई कुमार
- चाय: गरम :: बर्फ : ठंडी
- पहले हिमालय पर्वतारोही पुरुष : तेनजिंग नोर्गे :: पहली एवरेस्ट पर्वतारोही महिला : जुंके ताबी(जनको तबेई)
VI.स्त्रीलिंग शब्द लिखिए :-
पुल्लिंग स्त्रीलिंग
- बाप माँ
- पुरुष स्त्री
- भाई बहन
- बेटा बेटी
- श्रीमान श्रीमती
VII. उदाहरण के अनुसार लिखिए :-
- पढ़ + आई = पढ़ाई
- चढ़ + आई = चढ़ाई
- कठिन + आई = कठिनाई
- ऊँचा + आई = ऊँचाई
- बड़ + आई = बड़ाई
VIII. अन्य वचन लिखिए :-
- चट्टान – चट्टानें
- रस्सी – रस्सियाँ
- शीशा – शीशे
- चोटी – चोटियाँ
- चादर – चादरें
IX. विलोम शब्द लिखिए :-
- आरोहण x अवरोहण
- चढ़ना X उतरना
- ठंडा X गरम
- परिश्रम X आलस
- सामने X दूर
X. समानार्थक शब्द लिखिए :-
उदाहरण : पहाड़ = गिरि, पर्वत
चोटी = शिखर, शंकु
सुबह = प्रातः, उषा
महिला = स्त्री, नारी
नज़दीक = पास, समीप
XI. निम्न शब्दों में विशेषण तथा संज्ञा शब्दों को अलग-अलग कीजिए :-
शब्द संज्ञा विशेषण
उदाहरण: ऊँचा पर्वत पर्वत ऊँचा
मधुर स्वर स्वर मधुर
कर्कश आवाज़ आवाज़ कर्कश
बड़ा साधु साधु बड़ा
ठंडी हवा हवा ठंडी
नायलॉन रस्सी रस्सी नायलॉन
XII. अनेक शब्द के लिए एक शब्द दिये गये हैं, ढूँढ़कर लिखिए :-
उदा : जो पढ़ा लिखा न हो – अनपढ़
- जहाँ पहुँचा न जा सके – अगम
- मास में एक बार आनेवाला – मासिक
- जो कभी न मरे – अमर
- अच्छे चरित्रवाला – सच्चरित्र
- जो आँखों के सामने हो – प्रत्यक्ष
- जो स्थिर रहे – तटस्थ
- जिसे क्षमा न किया जा सके – अक्षम्य
- जो वन में घूमता हो – वनचर
- जिसका संबंध पश्चिम से हो – पाश्चात्य
- जो उपकार मानता हो – कृतज्ञ
XII. कन्नड या अंग्रेज़ी में अनुवाद कीजिए : :-
- बिछेंद्री का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था।
उत्तर – ಬಚೇಂದ್ರಿಯ ಜನ್ಮ ಒಂದು ಸಾಧಾರಣ ಕುಟುಂಬದಲ್ಲಿ ಆಯಿತು.
Bachendri was born into an ordinary family.
- बिछेंद्री को रोज़ पैदल चलकर स्कूल जाना पड़ता था।
उत्तर – ಬಚೇಂದ್ರಿಗೆ ಪ್ರತಿದಿನ ನಡೆದು ಶಾಲೆಗೆ ಹೋಗಬೇಕಾಗುತ್ತಿತ್ತು.
Bachendri had to walk to school every day.
- दक्षिणी शिखर के ऊपर हवा की गति बढ़ गई थी।
उत्तर – ದಕ್ಷಿಣ ಶಿಖರದ ಮೇಲೆ ಗಾಳಿ ವೇಗ ಹೆಚ್ಚಾಗಿದೆ.
The wind speed had increased over the southern summit.
- मुझे लगा कि सफलता बहुत नज़दीक है।
उत्तर – ನನಗೆ ಯಶಸ್ಸು ಬಹಳ ಹತ್ತಿರವಾಗಿದೆ ಎಂದು ಅನಿಸಿತು.
I felt that success was very near.
- मैं एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचनेवाली प्रथम भारतीय महिला थी।
उत्तर – ನಾನು ಎವರೆಸ್ಟ್ ಶಿಖರವನ್ನು ತಲುಪಿದ ಪ್ರಥಮ ಭಾರತೀಯ ಮಹಿಳೆ.
I was the first Indian woman to reach the summit of Everest.
परियोजना :-
साहसी महिलाओं के नाम तथा क्षेत्र की सूची बनाइए।
उत्तर –
महिला का नाम | क्षेत्र | उपलब्धि |
रानी लक्ष्मीबाई | स्वतंत्रता संग्राम | 1857 की क्रांति में वीरता से अंग्रेजों का सामना किया। |
कल्पना चावला | अंतरिक्ष विज्ञान | अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला। |
मदर टेरेसा | समाज सेवा | गरीबों और बीमारों की सेवा के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया। |
इंदिरा गांधी | राजनीति | भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। |
किरण बेदी | पुलिस सेवा | भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी। |
मिताली राज | खेल (क्रिकेट) | भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान रहीं और कई रिकॉर्ड बनाए। |
मैरी कॉम | खेल (मुक्केबाजी) | छह बार की विश्व चैंपियन और ओलंपिक पदक विजेता। |
बछेंद्री पाल | पर्वतारोहण | माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय महिला। |
सुनीता विलियम्स | अंतरिक्ष विज्ञान | नासा की अंतरिक्ष यात्री, कई मिशनों का हिस्सा बनीं। |
अरुणिमा सिन्हा | पर्वतारोहण | एवरेस्ट फतह करने वाली पहली दिव्यांग महिला। |
अपने किसी दोस्त की अथवा अपनी ही कोई साहस गाथा कक्षा में सुनाइए।
उत्तर – साहस गाथा – मेरे दोस्त उमेश की कहानी
उमेश मेरे बचपन का सबसे अच्छा दोस्त है। वह एक साधारण परिवार से था, लेकिन उसमें असाधारण हिम्मत और आत्मविश्वास था।
मुश्किल समय और हौसला
एक बार, जब वह 12वीं कक्षा में था, तब उसके पिता की अचानक मृत्यु हो गई। घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई। उसकी पढ़ाई छोड़ने की नौबत आ गई थी, लेकिन उसने हार नहीं मानी।
संघर्ष और मेहनत
उमेश ने सुबह अखबार बेचना शुरू किया, दिन में कॉलेज जाता और रात में ट्यूशन पढ़ाता। उसकी यह मेहनत रंग लाई और उसने कॉलेज में टॉप किया। बाद में, उसने एक सरकारी परीक्षा पास की और आज एक सफल अधिकारी है।
संदेश
उमेश की यह कहानी हमें सिखाती है कि अगर हौसला हो, तो कोई भी मुश्किल हमारी राह नहीं रोक सकती। सही मेहनत और आत्मविश्वास से हर समस्या को पार किया जा सकता है।