भगवतीचरण वर्मा
श्री भगवतीचरण वर्मा का जन्म 30 अगस्त 1903 को उन्नाव जिले (उ.प्र) के शफीपुर गाँव में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद से बी. ए. एल. एल. बी. की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने ‘विचार’ और ‘नवजीवन’ नामक पत्रिकाओं का संपादन किया था। आकाशवाणी के कई केंद्रों में भी सेवा की। उनके ‘चित्रलेखा’ उपन्यास पर दो बार फिल्म निर्माण हुआ। दूसरा
उपन्यास ‘भूले-बिसरे चित्र’ साहित्य अकादमी से पुरस्कृत है। अपने खिलौने, पतन, तीन षर्ष, टेढ़े-मेढ़े रास्ते, युवराज चूण्डा (उपन्यास), मेरी कहानियाँ, मोर्चाबंदी तथा संपूर्ण कहानियाँ (कहानी-संग्रह), मेरी कविताएँ, सविनय और एक नाराज़ कविता (कविता-संग्रह), मेरे नाटक, वसीयत (नाटक) आदि उनकी अन्य लोकप्रिय कृतियाँ हैं। 5 अक्तूबर 1981 को वर्मा जी का देहांत हुआ।
भगवतीचरण वर्मा के नाम को हिन्दी साहित्य में आदर के साथ लिया जाता है। प्रस्तुत कविता में कवि के देशप्रेम की झलक दिखायी देती है। वे मातृभूमि को प्रणाम करते हुए उसमें विद्यमान अपार वन-संपदा, खनिज संपत्ति का वर्णन करते हुए भारत के महान् विभूतियों का स्मरण करते हैं। इस कविता से भारत की महानता का परिचय प्राप्त होता है।
कविता का उद्देश्य
इस कविता के द्वारा कवि मातृभूमि की विशेषता का परिचय देते हुए छात्रों के मन में देशप्रेम का भाव जगाना चाहते हैं।
मातृभूमि
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम!
अमरों की जननी, तुमको शत शत बार प्रणाम!
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम।
तेरे उर में शायित गांधी, बुद्ध और राम,
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
हरे-भरे हैं खेत सुहाने,
फल-फूलों से युत वन –
उपवन, तेरे अंदर भरा हुआ है
खनिजों का कितना व्यापक धन।
मुक्त – हस्त तू बाँट रही है
सुख-संपत्ति, धन-धाम,
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम।
एक हाथ में न्याय-पताका,
ज्ञान- दीप दूसरे हाथ में,
जग का रूप बदल दे,
हे माँ, कोटि-कोटि हम आज साथ में।
गूँज उठे जय-हिंद नाद से
सकल नगर और ग्राम,
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम।
01
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम!
अमरों की जननी, तुमको शत शत बार प्रणाम!
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम।
तेरे उर में शायित गांधी, बुद्ध और राम,
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
व्याख्या –
कविता की ये पंक्तियाँ मातृभूमि (माँ के समान देश) के प्रति श्रद्धा, सम्मान और प्रेम को व्यक्त करती हैं। इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मैं अपनी मातृभूमि को सैकड़ों बार प्रणाम करता हूँ। यह भूमि अमर आत्माओं (महान विभूतियों, देशभक्तों) को जन्म देने वाली है, इसलिए इसे बार-बार नमन किया जाता है। यहाँ कहा गया है कि इस पवित्र भूमि में महात्मा गांधी, गौतम बुद्ध और भगवान राम जैसे महान व्यक्तित्व जन्मे हैं। ये तीनों महान विभूतियाँ शांति, करुणा, सत्य, अहिंसा और धर्म के प्रतीक हैं।
संक्षिप्त व्याख्या –
इन पंक्तियों में मातृभूमि की महिमा का वर्णन किया गया है। भारत को महान संतों, दार्शनिकों और नायकों की भूमि बताया गया है, जिसने पूरी दुनिया को शांति, सत्य, करुणा और प्रेम का संदेश दिया है। यह एक देशभक्ति से ओत-प्रोत कविता है, जो मातृभूमि के प्रति गहरे सम्मान को दर्शाती है।
02
हरे-भरे हैं खेत सुहाने,
फल-फूलों से युत वन –
उपवन, तेरे अंदर भरा हुआ है
खनिजों का कितना व्यापक धन।
मुक्त – हस्त तू बाँट रही है
सुख-संपत्ति, धन-धाम,
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम।
व्याख्या –
इन पंक्तियों में मातृभूमि की प्राकृतिक सुंदरता, उसकी संपन्नता और उदारता का गुणगान किया गया है। प्रत्येक पंक्ति मातृभूमि के प्रति गहरे प्रेम और आभार की भावना को प्रकट करती है। यहाँ मातृभूमि की प्राकृतिक समृद्धि का वर्णन किया गया है। हरे-भरे खेत इसकी उर्वरता को दर्शाते हैं, जबकि फलों और फूलों से भरपूर जंगल और उपवन इसकी जैव विविधता और सौंदर्य को प्रकट करते हैं। यह पंक्तियाँ भारत की कृषि प्रधानता और प्राकृतिक संसाधनों की भरमार को दिखाती हैं। इसका अर्थ है कि यह धरती न केवल कृषि की दृष्टि से समृद्ध है, बल्कि इसके गर्भ में खनिजों का अपार भंडार भी समाहित है। इससे तात्पर्य है कि भारत खनिज संपदा में भी अत्यंत धनी है। इन पंक्तियों में मातृभूमि की उदारता को भी दर्शाया गया है। यह धरती बिना किसी भेदभाव के सभी को अपनी संपदा, धन और समृद्धि प्रदान करती है। यह पंक्ति इस बात का प्रतीक है कि भारत ने हमेशा सभी को प्रेम, सहयोग और समृद्धि दी है। इसलिए कवि अपनी मातृभूमि के प्रति कृतज्ञता प्रकट करता है और बार-बार उसे नमन करता है।
संक्षिप्त व्याख्या –
इस कविता के माध्यम से कवि अपनी मातृभूमि की प्राकृतिक संपदा, कृषि समृद्धि, खनिज संपदा और उसकी उदारता का गुणगान करता है। वह यह दिखाता है कि यह धरती हर जीव को समान रूप से सुख और समृद्धि प्रदान करती है, और इसी कारण हम सबको इसे बार-बार प्रणाम करना चाहिए।
03
एक हाथ में न्याय-पताका,
ज्ञान- दीप दूसरे हाथ में,
जग का रूप बदल दे,
हे माँ, कोटि-कोटि हम आज साथ में।
गूँज उठे जय-हिंद नाद से
सकल नगर और ग्राम,
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम।
व्याख्या –
कविता की इन पंक्तियों में मातृभूमि की शक्ति, ज्ञान और न्यायप्रियता का वर्णन किया गया है। साथ ही, देशवासियों को एकजुट होकर राष्ट्र के उत्थान में योगदान देने का संदेश दिया गया है। यहाँ मातृभूमि को न्याय और ज्ञान की प्रतीक बताया गया है। भारत माता के एक हाथ में ‘न्याय-पताका’ (न्याय का झंडा) इस बात को दर्शाता है कि यह भूमि सत्य, न्याय और धर्म की रक्षा के लिए खड़ी रहती है। भारत माता के दूसरे हाथ का ‘ज्ञान-दीप’ (ज्ञान का दीपक) इंगित करता है कि यह देश शिक्षा, विद्या और बौद्धिक प्रगति का केंद्र रहा है। भारत ने हमेशा पूरे विश्व को ज्ञान और सभ्यता का प्रकाश दिया है। यहाँ कवि यह कहते हैं कि यदि मातृभूमि हमें आशीर्वाद दे, तो करोड़ों देशवासी मिलकर पूरे संसार को बदल सकते हैं। यह राष्ट्रीय एकता और सामूहिक प्रयासों का संदेश देता है कि जब सभी नागरिक एकजुट होंगे, तो समाज में सकारात्मक परिवर्तन आ सकता है। ये पंक्तियाँ देशभक्ति के जोश से भरी हुई हैं। कवि चाहते हैं कि पूरे देश—चाहे वह शहर हो या गाँव हो या कस्बा —‘जय हिंद’ के नारों से गूँज उठे। देश के प्रत्येक कोने में राष्ट्रभक्ति की भावना होनी चाहिए, जिससे पूरा राष्ट्र सशक्त और संगठित बन सके। अंत में, कवि अपनी मातृभूमि को फिर से सैकड़ों बार प्रणाम करता है, जो उसकी असीम श्रद्धा और भक्ति को दर्शाता है।
संक्षिप्त व्याख्या :-
इन पंक्तियों में मातृभूमि को न्याय, ज्ञान और शक्ति का प्रतीक मानकर उसका गौरवगान किया गया है। कवि चाहते हैं भारत माता फिर से इस दुनिया का रूप बदल दें। आज उनकी करोड़ों संतानें उनके साथ खड़ी हैं। कवि यह भी चाहते हैं कि देश के लोग एकजुट होकर राष्ट्र को महान बनाएँ और उनके देशभक्ति के ‘जय हिंद’ के नारे पूरे गाँव, शहर और दुनिया में गूँज उठें। यह पंक्तियाँ देशप्रेम, एकता और जागरूकता का संदेश देती हैं। कवि भारत माता के प्रति अपनी समर्पण भाव प्रकट करने हेतु शत-शत बार प्रणाम करते हैं।
शब्दार्थ :
शायित – सोया हुआ,
अमर – मृत्युहीन जो कभी नहीं मरता;
हस्त – हाथ,
सुहाने – सुंदर,
युत – भरा हुआ
न्याय – इंसाफ
पताका – झंडा
धाम – घर,
गूँजना – प्रतिध्वनित होना।
कोटि-कोटि – करोड़-करोड़
नाद – ध्वनि
मातृ-भू, – जन्म भूमि
सकल – सारे
शत-शत – सौ-सौ
शब्द युग्म :
हरे-भरे, फल-फूल, वन – उपवन, सुख-संपत्ति, धन-धाम
द्विरुक्ति शब्द :
शत-शत, कोटि-कोटि
I. एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
- कवि किसे प्रणाम कर रहे हैं?
उत्तर – कवि अपनी मातृभूमि भारत माता को प्रणाम कर रहे हैं।
- भारत माँ के हाथों में क्या है?
उत्तर – भारत माँ के एक हाथ में न्याय पताका है और दूसरे हाथ में ज्ञानदीप।
- आज माँ के साथ कौन है?
उत्तर – आज माँ के साथ इनके कोटि-कोटि पुत्र हैं।
- सभी ओर क्या गूँज उठा है?
उत्तर – सभी ओर ‘जय हिंद’ का नारा गूँज उठा है।
- भारत के खेत कैसे हैं?
उत्तर – भारत के खेत उर्वरता से भरपूर हरे-भरे और सुहाने हैं।
- भारत भूमि के अंदर क्या-क्या भरा हुआ है?
उत्तर – भारत भूमि के अंदर नाना प्रकार के खनिज द्रव्य भरे हुए हैं।
- सुख-संपत्ति, धन-धाम को माँ कैसे बाँट रही है?
उत्तर – माँ, सुख-संपत्ति, धन-धाम को मुक्त हस्त से बाँट रही हैं।
- जग के रूप को बदलने के लिए कवि किससे निवेदन करते हैं?
उत्तर – जग के रूप को बदलने के लिए कवि भारत माता से निवेदन करते हैं।
- ‘जय हिंद’ का नाद कहाँ-कहाँ पर गूँजना चाहिए?
उत्तर – ‘जय हिंद’ का नाद हर शहर, हर गाँव और हर कस्बे में गूँजना चाहिए।
II. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
- भारत माँ के प्रकृति-सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर – भारत माँ का प्रकृति-सौंदर्य अद्वितीय है। यहाँ सोना उगलने वाली उर्वरता से भरी हरे-भरे खेत हैं, जो सुहाने लगते हैं। यहाँ के उपवनों में विविध फूल खिले हुए हैं। भारत माता के गर्भ में नाना प्रकार के खनिज द्रव्य हैं जो इसे सभी दृष्टियों से संपूर्ण बनाते हैं। भारत माता इन सभी धन-धान्य का अपने संतानों को मुक्त हस्त से दान करती हैं।
- मातृभूमि का स्वरूप कैसे सुशोभित है?
उत्तर – मातृभूमि का स्वरूप अतीव सुशोभित है। यहाँ हरे-भरे खेत भारत माता की समृद्धि के सूचक हैं तो खनिज द्रव्यों की बहुलता इसे पूर्णता प्रदान करती हैं। भारत माँ ने प्रसूता के रूप में महान विभूतियों को जन्म देकर न्याय-पताका और ज्ञान-दीप की परंपरा को आगे बढ़ाया है। इसके साथ ही भारत माँ ने अपनी करोड़ों संतानों को मुक्त हस्त से अपने संसाधनों का अक्षय दान दिया है।
III. अनुरूपता:
- वसीयत : नाटक :: चित्रलेखा : उपन्यास
- शत-शत : द्विरुक्ति :: हरे-भरे : युग्म
- बायें हाथ में : न्याय पताका :: दाहिने हाथ में : ज्ञान दीप
- हस्त : हाथ :: पताका : झंडा
IV. दोनों खंडों को जोड़कर लिखिए :
- तेरे उर में शायित अ. वन-उपवन
- फल-फूलों से युत आ. आज साथ में
- एक हाथ में इ. कितना व्यापक
- कोटि-कोटि हम ई. शत शत बार प्रणाम
- मातृ-भू उ. न्याय-पताका
ऊ. गांधी, बुद्ध और राम
उत्तर –
- तेरे उर में शायित ऊ. गांधी, बुद्ध और राम
- फल-फूलों से युत अ. वन-उपवन
- एक हाथ में उ. न्याय-पताका
- कोटि-कोटि हम आ. आज साथ में
- मातृ-भू ई. शत शत बार प्रणाम
V. रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए :-
- कवि मातृभूमि को ___________ बार प्रणाम कर रहे हैं।
उत्तर – शत शत
- भारत माँ के उर में गांधी, बुद्ध और राम ___________ हैं।
उत्तर – शायित
- वन, उपवन ___________ से युक्त है।
उत्तर – फल-फूलों
- ___________ हस्त से मातृभूमि सुख-संपत्ति बाँट रही है।
उत्तर – मुक्त
- सभी ओर ___________ का नाद गूँज उठे।
उत्तर – जय हिंद
VI. भावार्थ लिखिए :-
एक हाथ में न्याय-पताका,
ज्ञान दीप दूसरे हाथ में,
जग का रूप बदल दे, हे माँ,
कोटि-कोटि हम आज साथ में।
गूँज उठे जय हिंद नाद से
सकल नगर और ग्राम,
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम।
उत्तर – इन पंक्तियों में मातृभूमि को न्याय, ज्ञान और शक्ति का प्रतीक मानकर उसका गौरवगान किया गया है। कवि चाहते हैं भारत माता फिर से इस दुनिया का रूप बदल दें। आज उनकी करोड़ों संतानें उनके साथ खड़ी हैं। कवि यह भी चाहते हैं कि देश के लोग एकजुट होकर राष्ट्र को महान बनाएँ और उनके देशभक्ति के ‘जय हिंद’ के नारे पूरे गाँव, शहर और दुनिया में गूँज उठें। यह पंक्तियाँ देशप्रेम, एकता और जागरूकता का संदेश देती हैं। कवि भारत माता के प्रति अपनी समर्पण भाव प्रकट करने हेतु शत-शत बार प्रणाम करते हैं।
VII. पद्य भाग को पूर्ण कीजिए :-
हरे-भरे _______________
_______________________
_______________________
__________________हुआ है
_______________________
_______________________
__________________ प्रणाम।
उत्तर –
हरे-भरे हैं खेत सुहाने,
फल-फूलों से युत वन –
उपवन, तेरे अंदर भरा हुआ है
खनिजों का कितना व्यापक धन।
मुक्त – हस्त तू बाँट रही है
सुख-संपत्ति, धन-धाम,
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम।
देशभक्ति से संबंधित कोई कन्नड कविता कक्षा में सुनाइए।
उत्तर – कन्नड़ भाषा में कई देशभक्ति कविताएँ लिखी गई हैं, जिनमें मातृभूमि के प्रति प्रेम, बलिदान और राष्ट्रीय चेतना की भावना व्यक्त की गई है। कन्नड़ के प्रसिद्ध कवि कुवेंपु (Kuvempu), डॉक्टर राजकुमार, और डी.आर. बेन्द्रे (D.R. Bendre) जैसे रचनाकारों ने राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत रचनाएँ लिखी हैं।
- करुणाडु तन्ना दत्तु (ಕರ್ನಾಟಕ ತಣ್ಣಾ ತಂದು)
(कर्नाटक तेरा गौरव)
-यह एक प्रसिद्ध कन्नड़ देशभक्ति गीत है, जिसे कर्नाटक राज्य के सम्मान में लिखा गया है।
ಕರ್ನಾಟಕ ತಣ್ಣಾ ತಂದು, ಕನ್ನಡ ನಾಡಿನ ಪರ್ವತಗ೦ಗು,
ನಮ್ಮ ಗರುಡ ನಾಡ ಪಾರಿಜಾತ, ನಮ್ಮ ಕನಸುಗಳ ನೆಲೆ!
(अनुवाद)
“हे कर्नाटक, तू शांत और समृद्ध भूमि है,
तेरे पर्वत और नदियाँ हमें गौरव प्रदान करते हैं।
हमारा यह पवित्र क्षेत्र हमारे सपनों का स्थान है!”
- जय भारत जनನಿಯ ತನುಜಾತೆ (Jaya Bharata Jananiya Tanujate) – कुवेंपु
यह गीत भारत की महिमा का गुणगान करता है और कर्नाटक राज्य गान (State Anthem of Karnataka) के रूप में अपनाया गया है।
ಜಯ ಭಾರತ ಜನನಿಯ ತನುಜಾತೆ, ಜಯ ಹೇ ಕರ್ನಾಟಕ ಮಾತೆ!
ಸುಂದರ ನದಿಗಳ ದೇಶ, ಶ್ರೇಷ್ಟ ಪರ್ವತ ಗಿರಿಗಳ ಗೇಹ
ಶಾಂತಿಯ ತೋಟ, ವಿದ್ಯೆಯ ನೆಲೆ, ಶಾರದೆಯ ಮಂಗಳ ಧಾಮ!
(अनुवाद)
“हे भारत माता की संतान, हे कर्नाटक माता, जय हो!
सुंदर नदियों और महान पर्वतों का यह देश
शांति का उपवन, विद्या का निवास, और सरस्वती का पावन धाम है!”
यह गीत कर्नाटक की महानता, प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक धरोहर और देशभक्ति की भावना को प्रकट करता है।
- राष्ट्र गीत – डी.आर. बेन्द्रे
ಭಾರತ ದೇಶ ನಮ್ಮ ತಾಯಿ,
ನಾವು ಎಲ್ಲರು ಅವಳ ಮಕ್ಕಳು!
ಅವಳ ಸಿಹಿ ಮಡಿಲು ನಮ್ಮ ತಲೆಬುರುಡೆ,
ನಾವೆಲ್ಲ ನಂಬಿದ ಹಕ್ಕಿಗಳು!
(अनुवाद)
“भारत देश हमारी माता है,
हम सभी उसके पुत्र हैं!
उसकी मधुर गोद हमारी शरणस्थली है,
हम सब उसमें बसे हुए पंछी हैं!”
हिंदी की अन्य देशभक्ति – कविताओं की कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर – कुछ प्रसिद्ध हिंदी देशभक्ति कविताओं का संकलन जिनमें मातृभूमि के प्रति प्रेम, बलिदान और राष्ट्रीय चेतना की भावना प्रकट होती है।
- सरफ़रोशी की तमन्ना (राम प्रसाद बिस्मिल)
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-कातिल में है।
यह कविता भारत की स्वतंत्रता संग्राम के समय क्रांतिकारियों का प्रेरणास्रोत बनी। इसमें देश के लिए बलिदान देने की भावना व्यक्त की गई है।
- झंडा ऊँचा रहे हमारा (श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’)
झंडा ऊँचा रहे हमारा, विजय विश्व तिरंगा प्यारा।
सदा शक्ति बरसाने वाला, प्रेम सुधा सरसाने वाला।
यह राष्ट्रध्वज के सम्मान में लिखी गई प्रसिद्ध कविता है, जो भारतीयों के मन में गौरव और सम्मान की भावना उत्पन्न करती है।
- यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता जमुना तीरे (सुभद्रा कुमारी चौहान)
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता जमुना तीरे,
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।
इस कविता में भारतीय संस्कृति, विरासत और मातृभूमि के प्रति स्नेह और अपनत्व झलकता है।
- खून से खेलेंगे होली (अज्ञात)
खून से खेलेंगे होली, गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
यह कविता क्रांतिकारी जोश और मातृभूमि की रक्षा के लिए बलिदान की भावना से भरी हुई है।
- विजयी विश्व तिरंगा प्यारा (श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’)
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा।
सदा शक्ति बरसाने वाला, प्रेम सुधा सरसाने वाला।
यह कविता राष्ट्रीय ध्वज के प्रति सम्मान और गौरव को प्रकट करती है।