अउल फकीर जैनुलाबदीन अब्दुल कलाम जी का जन्म 15-10-1931 को हुआ। बड़े वैज्ञानिक डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जी 25-07-2002 से 24-07- 2007 तक हमारे देश के राष्ट्रपति थे। देश के आदर्श तथा ‘जनवादी राष्ट्रपति’ के नाम से भारत के करोड़ – करोड़ हृदयों में प्रतिष्ठित कलाम जी अपनी 82 वर्षों की उम्र में भी अनेकानेक सामाजिक प्रगतिशील आंदोलनों में अत्यंत सक्रिय रहे। बच्चों तथा युवकों के चैतन्यशील एवं बहुमुखी व्यक्तित्व के निर्माणार्थ आपके नये अभियान का मंत्र था ‘मैं क्या दूँ?’ स्वपरिवर्तन की ओर उन्मुख इस अभियान का उद्घोष था ईमानदार कार्य एवं ईमानदार का नाम। ‘होमपाल’ अभियान द्वारा आप बचपन में ही इन सवालों को बोना चाहते थे कि “मैं देश के लिए क्या दे सकता हूँ? समाज एवं परिसर के लिए क्या कर सकता हूँ? “
भारत के राष्ट्रपति कलाम जी का जीवन सादगी का मिसाल था। उनके माता-पिता का परिश्रम, आडंबरहीन जीवन सबके लिए आदर्शप्राय है। उनका परिवार अतिथियों की सेवा से संतृप्त था। उनका परिवार धार्मिक एकता को मानता था। बच्चों के चैतन्यशील, बहुमुखी व्यक्तित्व के निर्माण के लिए ऐसे आदर्श व्यक्तियों की जीवनी प्रेरणाप्रद है।
इस पाठ के द्वारा छात्र सादगी, धार्मिक सहिष्णुता, मिल-जुलकर रहना और किताबें पढ़ने का प्रयोजन आदि की प्रेरणा पा सकते हैं।
मेरा बचपन
मेरा जन्म मद्रास राज्य (अब तमिलनाडु) के रामेश्वरम् कस्बे में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। मेरे पिता जैनुलाबदीन की कोई बहुत अच्छी औपचारिक शिक्षा नहीं हुई थी और न ही वे कोई बहुत धनी व्यक्ति थे। इसके बावजूद वे बुद्धिमान थे और उनमें उदारता की सच्ची भावना थी। मेरी माँ, आशियम्मा, उनकी आदर्श जीवनसंगिनी थीं। मेरे माता-पिता को हमारे समाज में एक आदर्श दंपती के रूप में देखा जाता था।
मैं कई बच्चों में से एक था, लंबे-चौड़े व सुंदर माता-पिता का छोटी कद-काठी का साधारण सा दिखनेवाला बच्चा। हम लोग अपने पुश्तैनी घर में रहते थे। रामेश्वरम् की मसजिदवाली गली में बना यह घर चूने – पत्थर व ईंट से बना पक्का और बड़ा था। मेरे पिता आडंबरहीन व्यक्ति थे और सभी अनावश्यक एवं ऐशो-आरामवाली चीज़ों से दूर रहते थे। पर घर में सभी आवश्यक चीज़ें समुचित मात्रा में सुलभता से उपलब्ध थीं। वास्तव में, मैं कहूँगा कि मेरा बचपन बहुत ही निश्चिंतता और सादगी में बीता भौतिक एवं भावनात्मक दोनों ही दृष्टियों से।
मैं प्रायः अपनी माँ के साथ ही रसोई में नीचे बैठकर खाना खाया करता था। वे मेरे सामने केले का पत्ता बिछातीं और फिर उस पर चावल एवं सुगंधित, स्वादिष्ट सांबार डालती; साथ में घर का बना अचार और नारियल की ताज़ी चटनी भी होती।
प्रतिष्ठित शिव मंदिर – जिसके कारण रामेश्वरम् प्रसिद्ध तीर्थस्थल है – का हमारे घर से दस मिनट का पैदल रास्ता था। जिस इलाके में हम रहते थे, वह मुसलिम बहुल था। लेकिन वहाँ कुछ हिंदू परिवार भी थे, जो अपने मुसलमान पड़ोसियों के साथ मिल-जुलकर रहते थे। हमारे इलाके में एक बहुत ही पुरानी मसजिद थी, जहाँ शाम को नमाज़ के लिए मेरे पिताजी मुझे अपने साथ ले जाते थे।
रामेश्वरम् मंदिर के सबसे बड़े पुजारी पक्षी लक्ष्मण शास्त्री मेरे पिताजी के अभिन्न मित्र थे। आध्यात्मिक मामलों पर चर्चाएँ करते रहते। जब मैं प्रश्न पूछने लायक बड़ा हुआ तो मैंने पिताजी से नमाज़ की प्रासंगिकता के बारे में पूछा। वे कहते – ‘जब तुम नमाज़ पढ़ते हो तो तुम अपने शरीर से इतर ब्रह्मांड का एक हिस्सा बन जाते हो; जिसमें दौलत, आयु, जाति या धर्म-पंथ का कोई भेदभाव नहीं होता।’
मुझे याद है, पिताजी की दिनचर्या पौ फटने के पहले ही सुबह चार बजे नमाज़ पढ़ने के साथ शुरू हो जाती थी। नमाज़ के बाद वे हमारे नारियल के बाग जाया करते। बाग घर से करीब चार मील दूर था। करीब दर्जन भर नारियल कंधे पर लिये पिताजी घर लौटते और उसके बाद ही उनका नाश्ता होता।
मैंने अपनी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की सारी ज़िंदगी में पिताजी की बातों का अनुसरण करने की कोशिश की है। मैंने उन बुनियादी सत्यों को समझने का भरसक प्रयास किया है कि ऐसी कोई दैवी शक्ति ज़रूर है जो हमें भ्रम, दुःखों, विषाद और असफलता से छुटकारा दिलाती है तथा सही रास्ता दिखाती है।
जब पिताजी ने लकड़ी की नौकाएँ बनाने का काम शुरू किया, उस समय मैं छह साल का था। ये नौकाएँ तीर्थयात्रियों को रामेश्वरम् से धनुषकोडि (सेतुक्कराई भी कहा जाता है) तक लाने-ले जाने के काम आती थीं। एक स्थानीय ठेकेदार अहमद जलालुद्दीन के साथ पिताजी समुद्र तट के पास नौकाएँ बनाने लगे। बाद में अहमद जलालुद्दीन की मेरी बड़ी बहन ज़ोहरा के साथ शादी हो गई। नौकाओं को आकार लेते हुए मैं गौर से देखता था। पिताजी का कारोबार काफ़ी अच्छा चल रहा था। एक दिन सौ मील प्रति घंटे की रफ़्तार से हवा चली और समुद्र में तूफ़ान आ गया। तूफ़ान में सेतुक्कराई के कुछ लोग और हमारी नावें बह गईं। उसी में पामबन पुल भी टूट गया और यात्रियों से भरी ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गई। तब तक मैंने सिर्फ़ समुद्र की खूबसूरती को ही देखा था। उसकी अपार एवं अनियंत्रित ऊर्जा ने मुझे हतप्रभ कर दिया।
उम्र में काफ़ी फर्क होने के बावजूद अहमद जलालुद्दीन मेरे अंतरंग मित्र बन गए। वह मुझसे करीबन पंद्रह साल बड़े थे और मुझे ‘आज़ाद’ कहकर पुकारा करते थे। हम दोनों रोज़ाना शाम को दूर तक साथ घूमने जाया करते। हम मसजिदवाली गली से निकलते और समुद्र के रेतीले तट पर चल पड़ते। मैं और जलालुद्दीन प्रायः आध्यात्मिक विषयों पर बातें करते।
प्रसंगवश मुझे यहाँ यह भी उल्लेख कर देना चाहिए कि पूरे इलाके में सिर्फ़ जलालुद्दीन ही थे, जो अंग्रेज़ी में लिख सकते थे। मेरे परिचितों में, जलालुद्दीन के बराबर शिक्षा का स्तर किसी का भी नहीं था और न ही किसी को उनके बराबर बाहरी दुनिया के बारे में पता था। जलालुद्दीन मुझे हमेशा शिक्षित व्यक्तियों, वैज्ञानिक खोजों, समकालीन साहित्य और चिकित्सा विज्ञान की उपलब्धियों के बारे में बताते रहते थे। वही थे जिन्होंने मुझे सीमित दायरे से बाहर निकालकर नई दुनिया का बोध कराया।
मेरे बाल्यकाल में पुस्तकें एक दुर्लभ वस्तु की तरह हुआ करती थीं। हमारे यहाँ स्थानीय स्तर पर एक पूर्व क्रांतिकारी या कहिए, उग्र राष्ट्रवादी एस. टी. आर. मानिकम का निजी पुस्तकालय था। उन्होंने मुझे हमेशा पढ़ने के लिए उत्साहित किया। मैं, अक्सर उनके घर से पढ़ने के लिए किताबें ले आया करता था।
दूसरे जिस व्यक्ति का मेरे बाल – जीवन पर गहरा असर पड़ा, वह मेरे चचेरे भाई शम्सुद्दीन थे। वह रामेश्वरम् में अखबारों के एकमात्र वितरक थे। अखबार रामेश्वरम् स्टेशन पर सुबह की ट्रेन से पहुँचते थे, जो पामबन से आती थी। इस अखबार एजेंसी को अकेले शम्सुद्दीन ही चलाते थे। रामेश्वरम् में अखबारों की जुमला एक हज़ार प्रतियाँ बिकती थीं।
बचपन में मेरे तीन पक्के दोस्त थे रामानंद शास्त्री, अरविंदन और शिवप्रकाश। ये तीनों ही ब्राह्मण परिवारों से थे। रामानंद शास्त्री तो रामेश्वरम मंदिर के सबसे बड़े पुजारी पक्षी लक्ष्मण शास्त्री का बेटा था। अलग-अलग धर्म, पालन-पोषण, पढ़ाई-लिखाई को लेकर हममें से किसी भी बच्चे ने कभी भी आपस में कोई भेदभाव महसूस नहीं किया।
शब्दार्थ :
कस्बा – छोटा शहर,
जीवन संगिनी – पत्नी,
रोज़ाना – नित्य,
कद-काठी – देह का गठन,
समुचित – योग्य,
पुश्तैनी – पैतृक, जो पीढ़ियों से चला आता हो, जो कई पीढ़ियों तक चला जाय ;
बहुल – बहुत
पौ फटना (मुहावरा) – प्रभात होना,
बुनियाद – नींव,
भरसक – यथा शक्ति,
काम आना (मुहावरा) – इस्तेमाल होना, काम में आना;
तट – किनारा,
रफ़्तार – गति,
रेत – बालू,
असर – प्रभाव,
जुमला – कुल,
महसूस – जिसका ज्ञान या अनुभव हो,
ठेका – A contract (नियत समय या दर पर कोई काम या बात करने-कराने का इकरार),
हतप्रभ – निस्तेज, शिथिल;
करीबन लगभग,
स्तर – मान,
उपलब्धि – प्राप्ति,
दायरा – कार्यक्षेत्र,
अक्सर – Often प्राय:
वितरक – बाँटनेवाला
कारोबार – व्यापार
I. एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
- अब्दुल कलाम जी का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर – अब्दुल कलाम जी का जन्म मद्रास राज्य (अब तमिलनाडु) के रामेश्वरम् कस्बे में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था।
- अब्दुल कलाम जी बचपन में किस घर में रहते थे?
उत्तर – अब्दुल कलाम जी बचपन में अपने पुश्तैनी घर में रहते थे।
- अब्दुल कलाम जी के बचपन में दुर्लभ वस्तु क्या थी?
उत्तर – अब्दुल कलाम जी के बचपन में पुस्तकें एक दुर्लभ वस्तु की तरह हुआ करती थीं।
- अब्दुल कलाम जी के चचेरे भाई कौन थे?
उत्तर – अब्दुल कलाम जी के चचेरे भाई शम्सुद्दीन थे।
II. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
- अब्दुल कलाम का बचपन बहुत ही निश्चिंतता और सादगी में बीतने के कारण लिखिए।
उत्तर – अब्दुल कलाम के पिता जैनुलाबदीन सादगीपूर्ण जीवन जीने के हिमायती थे। घर पर सभी आवश्यक चीज़ें समुचित मात्रा में सुलभता से उपलब्ध थीं। इसलिए अब्दुल कलाम का बचपन बहुत ही निश्चिंतता और सादगी में बीत रहा था।
- आशियम्मा जी अब्दुल कलाम को खाने में क्या-क्या देती थीं?
उत्तर – आशियम्मा जी अब्दुल कलाम को रसोईघर के नीचे केले के पत्ते पर चावल एवं सुगंधित, स्वादिष्ट सांबर देती थी। साथ में घर का बना अचार और नारियल की ताज़ी चटनी भी होती थी।
- जैनुलाबदीन नमाज़ के बारे में क्या कहते थे?
उत्तर – जैनुलाबदीन नमाज़ के बारे में अब्दुल कलाम से कहते थे, “जब तुम नमाज़ पढ़ते हो तो तुम अपने शरीर से इतर ब्रह्मांड का एक हिस्सा बन जाते हो; जिसमें दौलत, आयु, जाति या धर्म-पंथ का कोई भेदभाव नहीं होता।”
- जैनुलाबदीन ने कौन-सा काम शुरू किया?
उत्तर – जैनुलाबदीन ने एक स्थानीय ठेकेदार अहमद जलालुद्दीन के साथ समुद्र तट के पास ही लकड़ी की नौकाएँ बनाने का काम शुरू किया। ये नौकाएँ तीर्थयात्रियों को रामेश्वरम् से धनुषकोडि तक लाने-ले जाने के काम आती थीं।
III. चार -पाँच वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
- अखबारों के वितरण का कार्य कैसे करते थे?
उत्तर – शम्सुद्दीन रामेश्वरम् में अखबारों के एकमात्र वितरक थे। अखबार रामेश्वरम् स्टेशन पर सुबह की ट्रेन से पहुँचती थी, जो पामबन से आती थी। शम्सुद्दीन इस अखबार एजेंसी को अकेले ही बहुत नियोजित तरीके से चलाते थे। शम्सुद्दीन के उत्तम अखबार वितरण व्यवस्था और पाठकों के साथ उनका सौहार्दपूर्ण रवैये के कारण ही रामेश्वरम् में अखबारों कुल एक हज़ार प्रतियाँ बिका करती थीं।
IV. न मुहावरों पर ध्यान दीजिए –
पौ फटना = प्रभात होना
काम आना = काम में आना, इस्तेमाल होना
V.अन्य वचन रूप लिखिए –
बच्चा – बच्चे
गली – गलियाँ
केला – केले
नौका – नौकाएँ
प्रतियाँ – प्रति
पुस्तकें – पुस्तक
VI.विलोम शब्द लिखिए :-
बहुत – कम
शाम – सुबह
सफल – असफल
अच्छा – बुरा
बड़ा – छोटा
अपना – पराया
VI. जोड़कर लिखिए :-
अ आ
- मेरे पिता चचेरे भाई
- म्रदास राज्य अंतरंग मित्र
- शम्सुद्दीन रामानंद शास्त्री
- अहमद जलालुद्दीन जैनुलाबदीन
- पक्का दोस्त तमिलनाडु
रामेश्वरम्
उत्तर –
अ आ
- मेरे पिता जैनुलाबदीन
- म्रदास राज्य तमिलनाडु
- शम्सुद्दीन चचेरे भाई
- अहमद जलालुद्दीन अंतरंग मित्र
- पक्का दोस्त रामानंद शास्त्री
VIII. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :-
- आशियम्मा उनकी आदर्श ________ थीं।
उत्तर – जीवनसंगिनी
- रामेश्वरम् प्रसिद्ध ________ है।
उत्तर – तीर्थस्थल
- पुजारी पक्षी लक्ष्मण शास्त्री मेरे पिताजी के ________ थे।
उत्तर – अभिन्न
- अखबार एजेंसी को अकेले ________ ही चलाते थे।
उत्तर – शम्सुद्दीन
- अहमद जलालुद्दीन की ________ के साथ शादी हो गई।
उत्तर – मेरी बड़ी बहन ज़ोहरा
IX. अनुरूपता –
- गांधीजी : राष्ट्रपिता :: अब्दुल कलामः राष्ट्रपति
- जलालुद्दीन : जीजा :: शम्सुद्दीन :चचेरा भाई
- ट्रेन : भू-यात्रा :: नौका : जल यात्रा
- हिंदू : मंदिर :: इस्लाम : मस्जिद
X. सही शब्द से खाली स्थान भरिए :-
- अब्दुल कलाम का जन्म ________ में हुआ।
अ) चेन्नै
आ) बेंगलूरु
इ) रामेश्वरम्
ई) श्रीरंगम्
उत्तर – इ) रामेश्वरम्
- रामेश्वरम् में प्रतिष्ठित ________ मंदिर है।
अ) विष्णु
आ) अय्यप्पा
इ) हनुमान
ई) शिव
उत्तर – ई) शिव
- जैनुलाबदीन की दिनचर्या ________ के पहले शुरू होती थी।
अ) पौ फटने
आ) सूर्यास्त
इ) दोपहर
ई) शाम
उत्तर – अ) पौ फटने
- अहमद जलालुद्दीन अब्दुल कलाम को ________ कहकर पुकारा करते थे।
अ) अब्दुल
आ) आज़ाद
इ) राष्ट्रवादी
ई) कलाम
उत्तर – आ) आज़ाद
XI. वाक्यों में प्रयोग कीजिए :-
जीवन संगिनी – सुधा मूर्ति जीवन संगिनी के रूप में भी उतनी ही श्रेष्ठ हैं जितनी कि इन्फोसिस कंपनी के चेयरपर्सन के रूप में।
पुश्तैनी – हमारा पुश्तैनी मकान बहुत बड़ा है।
प्रसिद्ध – ताजमहल विश्वप्रसिद्ध है।
दिनचर्या – मेरी दिनचर्या में पढ़ाई-लिखाई के लिए बहुत समय निर्धारित है।
संतुष्टि – आत्म-संतुष्टि ही सबसे बड़ा धन है।
XII. पर्यायवाची शब्द लिखिए :-
घर – मकान, आलय
बुनियाद – नींव, आधार
शाम – संध्या, साँझ
शरीर – तन, काया
दोस्त – मित्र, सखा
I. उदाहरण के अनुसार प्रेरणार्थक क्रिया शब्दों को लिखिए :-
पढ़ना – पढ़ाना
- देखना – दिखाना
- सुनना – सुनाना
- करना – कराना
- जगना – जगाना
- भेजना – भिजवाना
- चलना – चलाना
- बैठना – बिठाना
- रोना – रुलाना
- धोना – धुलाना
- देना – दिलाना
II. उदाहरण के अनुसार प्रेरणार्थक शब्दों की सहायता से पाँच वाक्य बनाइए :-
उदाहरण : अध्यापक कहानी सुनाते हैं।
- नानी हमें सुबह जगाती हैं।
- दादी कहानियाँ सुनाती हैं।
- चाचाजी फिल्म दिखाते हैं।
- शिक्षक हमें पढ़ाते हैं।
- दुख हमें रुलाता है।
भारत के राष्ट्रपतियों के चित्रों का संग्रह करके उनका संक्षिप्त परिचय दीजिये।
उत्तर – भारत के राष्ट्रपति देश के सर्वोच्च नागरिक और सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर होते हैं। 1950 में गणराज्य बनने के बाद से अब तक, भारत ने 15 राष्ट्रपतियों का चयन किया है। नीचे इन राष्ट्रपतियों के संक्षिप्त परिचय और उनके कार्यकाल की जानकारी दी गई है –
डॉ. राजेंद्र प्रसाद (1950-1962): भारत के पहले राष्ट्रपति, जिन्होंने 26 जनवरी 1950 से 13 मई 1962 तक सेवा दी। वे एकमात्र राष्ट्रपति हैं जिन्होंने दो कार्यकाल पूरे किए। स्वतंत्रता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1962-1967): प्रख्यात दार्शनिक और शिक्षाविद, जिन्होंने 13 मई 1962 से 13 मई 1967 तक राष्ट्रपति पद संभाला। उनका जन्मदिन, 5 सितंबर, भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
डॉ. ज़ाकिर हुसैन (1967-1969): भारत के तीसरे राष्ट्रपति और पहले मुस्लिम राष्ट्रपति, जिन्होंने 13 मई 1967 से 3 मई 1969 तक सेवा दी। वे जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के सह-संस्थापक भी थे।
वराहगिरि वेंकट गिरि (1969-1974): पहले कार्यवाहक राष्ट्रपति और बाद में 24 अगस्त 1969 से 24 अगस्त 1974 तक राष्ट्रपति रहे। उन्हें 1975 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
फ़ख़रुद्दीन अली अहमद (1974-1977): 24 अगस्त 1974 से 11 फरवरी 1977 तक राष्ट्रपति रहे। वे अपने कार्यकाल के दौरान निधन होने वाले दूसरे राष्ट्रपति थे।
नीलम संजीव रेड्डी (1977-1982): 25 जुलाई 1977 से 25 जुलाई 1982 तक राष्ट्रपति रहे। वे आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री और सबसे कम उम्र के राष्ट्रपति थे।
ज्ञानी जैल सिंह (1982-1987): 25 जुलाई 1982 से 25 जुलाई 1987 तक राष्ट्रपति पद संभाला। वे पंजाब के मुख्यमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री भी रह चुके थे।
रामास्वामी वेंकटरमण (1987-1992): 25 जुलाई 1987 से 25 जुलाई 1992 तक राष्ट्रपति रहे। वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और केंद्रीय मंत्री भी थे।
डॉ. शंकर दयाल शर्मा (1992-1997): 25 जुलाई 1992 से 25 जुलाई 1997 तक राष्ट्रपति पद पर रहे। वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और केंद्रीय संचार मंत्री भी रह चुके थे।
के. आर. नारायणन (1997-2002): 25 जुलाई 1997 से 25 जुलाई 2002 तक राष्ट्रपति रहे। वे भारत के पहले दलित राष्ट्रपति थे और विभिन्न देशों में राजदूत के रूप में सेवा कर चुके थे।
डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम (2002-2007): 25 जुलाई 2002 से 25 जुलाई 2007 तक राष्ट्रपति रहे। वे एक प्रमुख वैज्ञानिक थे और उन्हें “मिसाइल मैन” के रूप में जाना जाता है।
श्रीमती प्रतिभा पाटिल (2007-2012): 25 जुलाई 2007 से 25 जुलाई 2012 तक राष्ट्रपति पद संभाला। वे भारत की पहली महिला राष्ट्रपति थीं।
श्री प्रणब मुखर्जी (2012-2017): 25 जुलाई 2012 से 25 जुलाई 2017 तक राष्ट्रपति रहे। वे वित्त, रक्षा और विदेश मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके थे।
श्री राम नाथ कोविन्द (2017-2022): 25 जुलाई 2017 से 25 जुलाई 2022 तक राष्ट्रपति रहे। वे बिहार के राज्यपाल और राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं।
श्रीमती द्रौपदी मुर्मू (2022-वर्तमान): 25 जुलाई 2022 को राष्ट्रपति पद की शपथ ली। वे झारखंड की पूर्व राज्यपाल हैं और भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं।
इन राष्ट्रपतियों ने अपने-अपने कार्यकाल में देश की सेवा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।