Class X, Hindi Vallari, Third Language, Karnataka Board, KSEEB, Chapter Soor-Shyam, Soordas, The Best Solutions, 14 सूर – श्याम

सूरदास

(सन् 1540-1642)

भक्त कवि सूरदास हिंदी साहित्याकाश के सूर्य माने जाते हैं। इन्हें भक्तिकाल की सगुण भक्तिधारा की कृष्णभक्ति शाखा के प्रवर्तक माना जाता है। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के रुनकता गाँव में सन् 1540 को हुआ था। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- ‘सूर सागर’, ‘सूर सारावली’ एवं ‘साहित्यलहरी’। इनकी मृत्यु सन् 1642 को हुई। इनके काव्यों में वात्सल्य, शृंगार तथा भक्ति का त्रिवेणी संगम हुआ है।

बच्चे स्वभाव से भोले होते हैं। वे हमेशा अपने माता-पिता से अपने भाई, बहन और मित्रों की कुछ-न-कुछ शिकायत करते रहते हैं। उनका बाल सहज स्वभाव देखकर बड़ों को हँसी आती है और उन्हें पुचकारकर सांत्वना देते हैं। माँ और बेटे के ऐसे सहज संबंध की कल्पना कर सूरदास जी ने अपने इस पद में उसका मार्मिक चित्रण किया है।

प्रस्तुत पद में कवि सूरदास ने कृष्ण की बाल लीला का वर्णन करते हुए उसके स्वभाव, भोलेपन एवं माता यशोदा के वात्सल्य का सुंदर चित्रण किया है।

मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।

मोसों कहत मोल को लीनो, तोहि जसुमति कब जायो॥

कहा कहौं इहि रिस के मारे, खेलन हौं नहिं जात

पुनि पुनि कहत कौन है माता, को है तुमरो तात॥

गोरे नंद जसोदा गोरी, तुम कत स्याम सरीर।

चुटकी दै दै हँसत ग्वाल, सब सिखै देत बलबीर॥

तू मोहिं को मारन सीखी, दाउहि कबहुँ न खीझै।

मोहन को मुख रिस समेत लखि, जसुमति सुनि सुनि रीझै॥

सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही को धूत।

‘सूर’ स्याम मोहिं गोधन की सौं, हौं माता तू पूत॥

मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।

मोसों कहत मोल को लीनो, तोहि जसुमति कब जायो॥

कहा कहौं इहि रिस के मारे, खेलन हौं नहिं जात

पुनि पुनि कहत कौन है माता, को है तुमरो तात॥

गोरे नंद जसोदा गोरी, तुम कत स्याम सरीर।

चुटकी दै दै हँसत ग्वाल, सब सिखै देत बलबीर॥

तू मोहिं को मारन सीखी, दाउहि कबहुँ न खीझै।

मोहन को मुख रिस समेत लखि, जसुमति सुनि सुनि रीझै॥

सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही को धूत।

‘सूर’ स्याम मोहिं गोधन की सौं, हौं माता तू पूत॥

परिचय – यह पद भक्त सूरदास द्वारा रचित है, जिसमें उन्होंने बाल-कृष्ण के मनोहर संवाद को दर्शाया है। इस पद में बाल कृष्ण माता यशोदा से शिकायत कर रहे हैं कि उनके बड़े भाई बलराम उन्हें बहुत चिढ़ाते हैं।

व्याख्या –

कृष्ण अपनी माता यशोदा से शिकायत कर रहे हैं कि दाऊ मुझे बहुत सताते हैं। मुझसे कहते हैं कि “तुझे तो यशोदा माँ ने किसी से खरीदकर लिया है, तू उनकी असली संतान नहीं है।” यह कहकर बलराम कृष्ण को ताने मारते हैं कि यशोदा तेरी असली माँ नहीं हैं। कृष्ण बलराम की इन बातों से बहुत दुखी हो जाते हैं और इस कारण से वे खेल भी नहीं पा रहे हैं। बलराम बार-बार उनसे पूछते हैं कि “तेरी माँ कौन है? तेरे पिता कौन हैं?” बलराम और ग्वाले कृष्ण को चिढ़ाते हुए कहते हैं कि नंद बाबा और यशोदा तो गोरे-चिट्टे हैं, फिर तू काला क्यों है? बलराम यह सब ग्वालों को भी सिखा देते हैं और वे भी कृष्ण को चिढ़ाने लगते हैं।कृष्ण माँ से कहते हैं कि मैया, मैं बलराम को कभी नहीं चिढ़ाता, लेकिन उन्होंने मुझे सताने की आदत बना ली है! और तुम भी मुझे ही मारती हो बलराम को कभी कुछ भी नहीं कहती हो। यशोदा अपने नटखट कान्हा की ये बातें सुनकर प्रसन्न हो जाती हैं। अंत में माता यशोदा कृष्ण से कहती हैं कि बलराम तो बचपन से ही बहुत धूर्त हैं। वह तो बड़ा चुगलखोर भी है। मैं अपने गायों की सौगंध खाकर कहती हूँ कि तू ही बेटा है और मैं ही तेरी माँ हूँ।  

भावार्थ –

यह पद बाल-कृष्ण की भोली-भाली शिकायत को दर्शाता है। बलराम उन्हें चिढ़ाते हैं कि वे यशोदा और नंद के असली पुत्र नहीं हैं, क्योंकि वे गोरे हैं और कृष्ण काले हैं। यह सुनकर कृष्ण बहुत दुखी होते हैं और माँ से शिकायत करते हैं। अंत में, माँ यशोदा कृष्ण को विश्वास दिलाते हुए कहती हैं कि मुझे अपने गायों की सौगंध है, तुम ही बेटे हो और मैं ही तुम्हारी माँ हूँ!

शब्दार्थ :

मैया – माँ,

मोहिं – मुझे,

दाऊ – भैय्या (बलराम),

खिझाना – चिढ़ाना,

मोसों – मुझसे,

मोल – मूल्य, दाम;

 तोहि – तुझे,

जसुमति – जसोदा, यशोदा

जायो – जन्म दिया,

रिस – क्रोध,

के मारे – के कारण,

तुमरो – तुम्हारे,

तात – पिता,

कत – क्यों,

स्याम – काला,

ग्वाल – गोपालक,

सिखै – सिखाना,

बलभद्र – बलबीर, बलराम

रीझै – मोहित होना,

सुनहु – सुनो,

कान्ह – कृष्ण,

चबाई – पीठ पीछे बुराई करनेवाला, चुगलखोर;

जनमत ही को – जन्म से ही,

सौगंध – कसम

हौं – मैं,

पूत – पुत्र।

धूत – दुष्ट,

लखि – देखकर,

सौं – कसम,

भावार्थ :-

प्रस्तुत पंक्तियों में भाई बलराम के प्रति कृष्ण की शिकायत का मोहक वर्णन किया गया है। कृष्ण अपनी माँ यशोदा से शिकायत करता है कि भाई मुझे बहुत चिढ़ाता है। वह मुझसे कहता है कि तुम्हें यशोदा माँ ने जन्म नहीं दिया है बल्कि मोल लिया है। इसी गुस्से के कारण उसके साथ मैं खेलने नहीं जाता। वह मुझसे बार-बार पूछता है कि तुम्हारे माता-पिता कौन हैं? वह यह भी कहता है कि नंद और यशोदा तो गोरे हैं, लेकिन तुम्हारा शरीर क्यों काला है? उसकी ऐसी हँसी-मज़ाक सुनकर मेरे सब ग्वाल मित्र चुटकी बजा-बजाकर हँसते हैं। उन्हें बलराम ने ही ऐसा करना सिखाया है। माँ, तुमने केवल मुझे ही मारना सीखा है और भाई पर कभी गुस्सा नहीं करती। (अपने भाई के प्रति क्रोधित और सखाओं द्वारा अपमानित) कृष्ण के क्रोधयुत मुख को देखकर और उसकी बातों को सुनकर यशोदा खुश हो जाती है। वह कहती है – हे कृष्ण! सुनो। बलराम जन्म से ही चुगलखोर है। मैं गोधन की कसम खाकर कहती हूँ, मैं ही तेरी माता हूँ और तुम मेरे पुत्र हो।

इस पद में सूरदास ने बालकृष्ण के भोलेपन और यशोदा के वात्सल्य का मार्मिक चित्रण किया है।

I. एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-

  1. सूर – श्याम पद के रचयिता कौन हैं?

उत्तर – सूर – श्याम पद के रचयिता सूरदास जी हैं।

  1. कृष्ण की शिकायत किसके प्रति है?

उत्तर – कृष्ण की शिकायत अपने बड़े भाई बलराम के प्रति है।

  1. यशोदा और नंद का रंग कैसा था?

उत्तर – यशोदा और नंद का रंग गोरा था।

  1. चुटकी दे-देकर हँसनेवाले कौन थे?

उत्तर – चुटकी दे-देकर हँसनेवाले ग्वाले  थे।

  1. यशोदा किसकी कसम खाती हैं?

उत्तर – माता यशोदा गायों की कसम खाती हैं।

  1. बालकृष्ण किससे शिकायत करता है?

उत्तर – बालकृष्ण अपनी माता यशोदा से शिकायत करते हैं।

  1. बलराम के अनुसार किसे मोल लिया गया है?

उत्तर – बलराम के अनुसार कृष्ण को मोल लिया गया है।

  1. बालकृष्ण का रंग कैसा था?

उत्तर – बालकृष्ण का रंग श्याम (साँवला) था।

II. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :-

  1. कृष्ण बलराम के साथ खेलने क्यों नहीं जाना चाहता?

उत्तर – कृष्ण बलराम के साथ खेलने नहीं जाना चाहते क्योंकि बलराम ने सभी ग्वालों से यह कह रखा है कि कृष्ण को मोल लिया गया है। वह माता यशोदा की अपनी संतान नहीं है। इस पर सभी ग्वाले चुटकी बजा-बजाकर कृष्ण का उपहास करते हैं।

  1. बलराम कृष्ण के माता-पिता के बारे में क्या कहता है?

उत्तर – बलराम कृष्ण के माता-पिता के बारे में यह कहते हैं कि माता यशोदा और नंद बाबा तो गोरे हैं और तुम्हारा रंग तो साँवला है। इस लिहाज से वे तो तेरे असली माता पिता नहीं है। तू सच-सच बता तेरे असली माता-पिता कौन हैं।

  1. कृष्ण अपनी माता यशोदा के प्रति क्यों नाराज़ है?

उत्तर – कृष्ण अपनी माता यशोदा के प्रति नाराज़गी ज़ाहिर करते हैं क्योंकि बलराम द्वारा कृष्ण को चिढ़ाए जाने पर भी माता यशोदा बलराम को कभी भी कुछ नहीं कहती। और जब देखो तब वह कृष्ण को ही मारती-डाँटती रहती हैं।

  1. बालकृष्ण अपनी माता से क्या-क्या शिकायतें करता है?

उत्तर – बालकृष्ण अपनी माता से पहली शिकायत तो यह करता है कि बलराम उसे यह कहकर चिढ़ाते हैं कि माता यशोदा उनकी असली माँ नहीं है बल्कि उसे तो कहीं से मोल करके लिया गया है। दूसरी शिकायत यह करते हैं कि माँ यशोदा कभी भी बलराम को कुछ नहीं कहती बस मुझे ही मारती रहती हैं।

  1. यशोदा कृष्ण के क्रोध को कैसे शांत करती है?

उत्तर – यशोदा रूठे कृष्ण के क्रोध को शांत करने के लिए कृष्ण को अपने पास बुलाती हैं और कहती हैं कि बलराम तो बचपन से ही धूर्त और चुगलखोर है। मैं गायों की सौगंध खाकर कहती हूँ कि तू ही मेरा बेटा है और मैं ही तेरी माँ हूँ।

III. चार-छह वाक्यों में उत्तर लिखिए :-

  1. पद का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – यह पद बाल-कृष्ण की भोली-भाली शिकायत को दर्शाता है। बलराम उन्हें चिढ़ाते हैं कि वे यशोदा और नंद के असली पुत्र नहीं हैं, क्योंकि वे गोरे हैं और कृष्ण काले हैं। यह सुनकर कृष्ण बहुत दुखी होते हैं और माँ से शिकायत करते हैं। अंत में, माँ यशोदा कृष्ण को विश्वास दिलाते हुए कहती हैं कि मुझे अपने गायों की सौगंध है, तुम ही बेटे हो और मैं ही तुम्हारी माँ हूँ!

IV. पद्यभाग पूर्ण कीजिए :-

  1. गोरे नंद _ _ _ _ _ सरीर।

_ _ _ _ _ _ बलबीर॥

उत्तर – गोरे नंद जसोदा गोरी, तुम कत स्याम सरीर।

चुटकी दै दै हँसत ग्वाल, सब सिखै देत बलबीर॥

  1. सुनहु कान्ह _ _ _ _ _ ।

_ _ _ _ _ _ तू पूत॥

उत्तर – सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही को धूत।

‘सूर’ स्याम मोहिं गोधन की सौं, हौं माता तू पूत॥

V. अनुरूपता :-

  1. बलभद्र : बलराम :: कान्ह : कृष्ण
  2. जसोदा : माता :: नंद : पिता
  3. रीझना : मोहित होना :: खिजाना : गुस्सा दिलाना
  4. बलबीर : बलराम :: जसोदा : यशोदा

VI.जोड़कर लिखिए :-

अ                   ब

  1. सूरदास का जन्म कृष्ण भक्ति शाखा
  2. सगुण भक्तिधारा की सन् 1540 को हुआ
  3. उत्तर प्रदेश का रुनकता सन् 1642 को हुई
  4. सूरदास जी की मृत्यु सूर का जन्मस्थान

उत्तर –

  1. सूरदास का जन्म सन् 1540 को हुआ
  2. सगुण भक्तिधारा की कृष्ण भक्ति शाखा
  3. उत्तर प्रदेश का रुनकता सूर का जन्मस्थान
  4. सूरदास जी की मृत्यु सन् 1642 को हुई

VII. सही शब्द चुनकर लिखिए :-

(चुगलखोर, गोरी, श्याम, चुटकी, बाल लीला)

  1. जसोदा – गोरी
  2. कृष्ण – श्याम
  3. ग्वाल मित्र – चुटकी
  4. बलराम – चुगलखोर
  5. कृष्ण की – बाल लीला

VIII. आधुनिक रूप लिखिए :-

जैसे – मैया – माता

  1. मोहिं – मुझे
  2. मोसों – मुझसे
  3. रिस – क्रोध
  4. सरीर – शरीर
  5. सिखै – सिखाना
  6. जसुमति – यशोदा
  7. धूत – धूर्त
  8. कान्ह – कान्हा
  9. पूत – पुत्र
  10. जनमत – जन्म से ही

पद से आगे

  • भक्त कवयित्री मीराबाई का परिचय पाइए और कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर – भक्त कवयित्री मीराबाई का परिचय

  1. जन्म एवं प्रारंभिक जीवन –

जन्म: 1498 ईस्वी (संभावित)

स्थान: कुड़की, राजस्थान

पिता: रतनसिंह राठौर (मेड़ता के राजा)

पति: भोजराज (मेवाड़ के राजा राणा सांगा के पुत्र)

  1. भक्ति मार्ग और कृष्ण प्रेम –

मीराबाई बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं। उन्होंने सांसारिक बंधनों को छोड़कर कृष्ण को ही अपना पति और आराध्य माना। विवाह के बाद भी वे कृष्ण की भक्ति में लीन रहीं, जिससे उनके ससुराल वालों को आपत्ति थी। समाज के विरोध के बावजूद, वे कृष्ण भक्ति में दृढ़ रहीं और संन्यासिनी का जीवन अपनाया।

  1. रचनाएँ एवं भक्ति साहित्य –

मीराबाई ने हजारों भक्ति पद और भजन रचे, जिनमें श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम, समर्पण और भक्ति की गहराई झलकती है। उनकी रचनाएँ राजस्थानी, ब्रज और हिंदी में हैं।

  1. प्रसिद्ध रचनाएँ –

“पायो जी मैंने राम रतन धन पायो”

“मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई”

“मन रे, परसि हरि की सेवा”

“जो मैं ऐसा जानती, प्रीत किए दुख होय”

  1. समाज पर प्रभाव –

मीराबाई का जीवन और काव्य भक्तिकाल के संत-कवियों जैसे कबीर, तुलसीदास और सूरदास की परंपरा में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। वे स्त्रियों के लिए आध्यात्मिक स्वतंत्रता और भक्ति आंदोलन की प्रतीक बनीं।

  1. निधन –

माना जाता है कि 1547 ईस्वी के आसपास द्वारका (गुजरात) में वे श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन होकर कृष्ण में ही विलीन हो गईं।

निष्कर्ष –

मीराबाई भारतीय भक्ति परंपरा की एक महान कवयित्री और संत थीं। उनका जीवन त्याग, प्रेम, भक्ति और समाज की रूढ़ियों के विरोध का अद्वितीय उदाहरण है। उनके भजन आज भी भक्ति संगीत में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

  • कन्नड के कवि पुरंदरदास और कनकदास की जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर – पुरंदरदास और कनकदास – कन्नड़ के महान कवि एवं संत

  1. पुरंदरदास (Purandara Dasa)

जन्म: 1484 ईस्वी (संभावित), कर्नाटक

मृत्यु: 1564 ईस्वी

मुख्य योगदान: भक्ति आंदोलन, कर्नाटकी संगीत के जनक

भाषा: कन्नड़ और संस्कृत

मुख्य रचनाएँ: 4,75,000 से अधिक भक्ति गीत (कीर्तन), लेकिन वर्तमान में लगभग 1,000 गीत उपलब्ध हैं।

परिचय –

पुरंदरदास एक व्यापारी थे, लेकिन उन्होंने सांसारिक जीवन छोड़कर हरिदास परंपरा को अपनाया। वे भगवान विष्णु के भक्त थे और “कर्नाटकी संगीत के पितामह” माने जाते हैं। उन्होंने संगीत को सरल बनाया और इसे आम जनता तक पहुँचाया। उनकी रचनाएँ मुख्य रूप से श्री हरि (विष्णु) की भक्ति पर आधारित हैं।

प्रसिद्ध कृति –

“ನಾರಾಯಣ ನಂ ನಮಕೆ” (Narayana Nam Namake)

“ಇಂದ್ರನೀಗು ಕಮಲಾನಿಗು” (Indranigu Kamalanigu)

  1. कनकदास (Kanaka Dasa)

जन्म: 1509 ईस्वी, कर्नाटक

मृत्यु: 1609 ईस्वी

मुख्य योगदान: भक्ति काव्य और समाज सुधार

भाषा: कन्नड़

मुख्य रचनाएँ: हरिदास परंपरा में अनेक भजन और कीर्तन

परिचय –

कनकदास एक योद्धा जाति में जन्मे थे, लेकिन उन्होंने भक्ति मार्ग को अपनाया। वे भगवान कृष्ण के भक्त थे और सामाजिक समानता का संदेश देते थे। उनकी रचनाएँ सादगी और आध्यात्मिकता से भरपूर थीं। वे श्रीरंगपट्टण (कर्नाटक) के प्रसिद्ध उडुपी कृष्ण मंदिर की एक घटना के लिए प्रसिद्ध हैं, जिसमें कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने उनके लिए दीवार में एक छेद बनाकर दर्शन दिए।

प्रसिद्ध कृति –

“ಬಾಗಿಲನು ತೆರೆಯಿರಿ” (Bagilanu Tereyiri)

“ಕಂದನು ಕರಗನ ಹೋಯಿತು” (Kandanu Karagana Hoyitu)

पुरंदरदास और कनकदास का योगदान –

✅ भक्ति आंदोलन को दक्षिण भारत में फैलाया।

✅ कर्नाटकी संगीत और हरिदास परंपरा को आगे बढ़ाया।

✅ सामाजिक सुधार के संदेश दिए, जाति-पाति के भेदभाव को खत्म करने की कोशिश की।

✅ भक्ति गीतों और कविताओं के माध्यम से भगवान विष्णु और कृष्ण की महिमा गाई।

ये दोनों संत और कवि कर्नाटक की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत के अमूल्य रत्न हैं।

चित्र देखकर एक कहानी रचिए और उसके लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।

उत्तर – माँ और शिशु

इस चित्र में एक माँ संध्या के समय अपने शिशु को गोद में लेकर घर के आँगन में खड़ी हैं। आकाश में चंद्रमा सहित अनेक तारे भी टिमटिमा रहे हैं। माँ अपने शिशु को इन चाँद-तारों को दिखाते हुए खिलाने का प्रयत्न कर रही हैं। जब शिशु खाने में आना-कानी करता है तो माँ अपने हाथ का निवाला चाँद को खिला देने की बात अपने शिशु से कहती है ताकि वह खाना खा ले। इस दृश्य में उनके घर का पालतू कुत्ता भी खड़ा है जो माँ और शिशु की तरह ही ध्यानमग्न होकर आकाश के चाँद को देख रहा है।

 

IX. अर्थपूर्ण वाक्य बनाइए :-

  1. श्यामू

    इनाम

     

    टोली

     

    कंचा

     

    देते हैं।

     

    कलेक्टर साहब

    बनती है।

     

    मोहन

    खेलते हैं।

     

    बालकों की

    बनाते हैं।

     

    बालक

    लेता है।       

    खेलता है।

     

    जैसे : श्यामू कंचा खेलता है।

    कलेक्टर साहब इनाम देते हैं।

    मोहन इनाम लेता है।

    बालकों की टोली बनती है।

    बालक कंचा खेलता है।

भाषा ज्ञान 

I. व्यक्तिवाचक और जातिवाचक संज्ञाओं को पहचानिए :-

मुखिया, कलेक्टर, गाँव, बाल-शक्ति, श्यामू, रामू, बालक, गणित, मोहन, गुरुजी, मनोज, कमीज़

व्यक्तिवाचक संज्ञा

श्यामू

रामू

मोहन

मनोज

जातिवाचक संज्ञा

मुखिया

कलेक्टर

गाँव

बाल-शक्ति

बालक

गणित

गुरुजी

II.इस नाटिका में मार, छोड़, पकड़, बोल, डाल, दे, लगा, मान जैसे अनेक धातुओं का प्रयोग हुआ है। नीचे दिये गये शब्दों को उचित धातुओं के साथ लिखिए:

  1. कमीज – छोड़
  2. पेड़ – पकड़
  3. रुपये – दे
  4. कंचा – दे
  5. गुस्सा – लगा
  6. सच – बोल
  7. बात – मान
  8. कूड़ा – डाल

विशेष सूचना : ‘क्रिया’ का मूल रूप ‘ धातु’ है।

III. इस नाटिका में ‘संयुक्त क्रियाओं का प्रयोग हुआ है जैसे-खेलने लगा, बन गया इत्यादि। इस तरह के क्रिया-युग्मों को ढूँढ़कर सूची बनाइए।

सूचना : संयुक्त क्रिया / क्रिया-युग्म ‘दो क्रियाओं का एक साथ प्रयोग।’

उत्तर – मार दूँगा।

झगड़ रहे हो

दे देना।

बोलने पड़ते हैं।

बोलने लगा है।

कहा करते हैं।

बात मानता है।

जी चुराते हैं।

* सोचिए, अगर आपका कोई साथी रामू जैसे होता तो उसे सुधारने के लिए आप क्या योजना बनाते?

उत्तर – यदि मेरा कोई मित्र शरारती या अनुशासनहीन होगा तो मैं उसे सुधारने के लिए धैर्य, समझ और सही मार्गदर्शन दूँगा और दूसरों को भी निम्नलिखित उपाय अपनाने की सलाह दूँगा।

  1. प्यार और संवाद बढ़ाएँ-

बच्चे को डांटने या मारने की बजाय प्यार से समझाएँ।

उसकी भावनाओं और समस्याओं को जानने का प्रयास करें।

नियमित रूप से उससे बातचीत करें ताकि वह अपनी बात खुलकर कह सके।

  1. अनुशासन और नियम बनाएँ-

बच्चे को अच्छे और बुरे व्यवहार में फर्क सिखाएँ।

घर और स्कूल में पालन करने के लिए सरल नियम निर्धारित करें।

यदि वह नियम तोड़ता है, तो उचित दंड (जैसे टीवी देखने से रोकना) दें।

  1. सकारात्मक गतिविधियों में लगाएँ-

उसे खेल, संगीत, कला या अन्य रचनात्मक कार्यों में व्यस्त करें।

उसकी ऊर्जा को सही दिशा में लगाने से वह अनुशासित बनेगा।

  1. अच्छे मित्रों और आदर्शों से जोड़ें-

ध्यान दें कि बच्चा किन दोस्तों के साथ समय बिताता है।

उसे अच्छे रोल मॉडल (जैसे महापुरुषों की कहानियाँ) से प्रेरित करें।

  1. प्रोत्साहन और प्रशंसा दें-

जब बच्चा अच्छा व्यवहार करे, तो उसकी सराहना करें।

छोटी-छोटी उपलब्धियों पर इनाम दें ताकि वह प्रेरित हो।

  1. सही मार्गदर्शन और सलाह दें-

उसकी गलतियों को प्यार से समझाएँ और उन्हें सुधारने में मदद करें।

जरूरत पड़ने पर शिक्षक, काउंसलर या मनोवैज्ञानिक की सलाह लें।

सही परवरिश और धैर्य से हर बच्चे का व्यवहार सुधारा जा सकता है!

 * अपना गाँव, अपना जिला, अपना परिसर सब कुछ अपना है। इन्हें सुधारने के लिए आपने क्या किया है? क्या करना चाहते हैं? अपने मित्रों से चर्चा कीजिए।

उत्तर – अगर हमें अपने गाँव, जिला और परिसर को सुधारना है, तो व्यक्तिगत रूप से पहल करनी होगी। निम्नलिखित कार्य करके समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश की हो सकती है –

  1. स्वच्छता अभियान में भागीदारी

गाँव और स्कूलों में सफाई अभियान चलाया।

प्लास्टिक कचरे को कम करने के लिए लोगों को जागरूक किया।

सार्वजनिक स्थानों पर कचरा न फैलाने की आदत डाली और दूसरों को प्रेरित किया।

  1. पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य

वृक्षारोपण किया और अन्य लोगों को भी पेड़ लगाने के लिए प्रेरित किया।

जल संरक्षण के लिए वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) पर काम किया।

प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करने के लिए जागरूकता फैलाई।

  1. शिक्षा और जागरूकता अभियान

गाँव के बच्चों को निःशुल्क पढ़ाने में योगदान दिया।

वयस्कों को साक्षर बनाने के लिए ‘साक्षरता अभियान’ में भाग लिया।

डिजिटल शिक्षा और नई तकनीकों के बारे में लोगों को जानकारी दी।

  1. यातायात और अनुशासन पर कार्य

सड़क सुरक्षा नियमों का पालन किया और दूसरों को भी प्रेरित किया।

हेलमेट और सीटबेल्ट पहनने की आदत डाली और गाँव में इसके प्रति जागरूकता फैलाई।

  1. समाज में आपसी सौहार्द बढ़ाने के प्रयास

धार्मिक और जातिगत भेदभाव को कम करने के लिए लोगों को जोड़ा।

गाँव में छोटे बच्चों और बुजुर्गों की सहायता करने का प्रयास किया।

सरकारी योजनाओं की जानकारी लोगों तक पहुँचाई और उनका लाभ उठाने में मदद की।

निष्कर्ष:

बदलाव लाने के लिए हमें पहले खुद को बदलना होगा। छोटे-छोटे प्रयासों से ही बड़ा परिवर्तन संभव होता है। मैंने जो भी कार्य किए या करने की कोशिश की, वह मेरे गाँव, जिला और परिसर को सुधारने के लिए एक छोटा कदम है, लेकिन अगर हम सभी मिलकर प्रयास करें, तो यह बदलाव और भी प्रभावी हो सकता है।

* स्कूल के वार्षिकोत्सव पर इस नाटिका का अभिनय कीजिए।

उत्तर – छात्र शिक्षक की मदद से इसे करें।

* इस नाटिका का अपनी मातृभाषा में अनुवाद कर स्कूल की वार्षिक पत्रिका में प्रकाशित करें।

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।

* साहस प्रदर्शन या सेवा कार्य के लिए पुरस्कार प्राप्त बच्चों की कथाओं का चार्ट बनाकर प्रदर्शनी का आयोजन करें।

उत्तर – भारत में कई साहसी और सेवा-भावी बच्चों ने अपने अद्वितीय कार्यों से समाज को प्रेरित किया है। यहाँ कुछ ऐसे बच्चों की कहानियाँ प्रस्तुत हैं –

  1. आदित्य विजय ब्रम्हणे (महाराष्ट्र)

12 वर्षीय आदित्य ने अपने भाइयों हर्ष और श्लोक को नदी में डूबने से बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी इस वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार 2024 से सम्मानित किया गया।

  1. अलाइका (हिमाचल प्रदेश)

13 वर्षीय अलाइका ने एक दुर्घटना के दौरान अपनी माता, पिता और दादा की जान बचाई। उनकी तत्परता और साहस ने उनके परिवार को एक बड़े हादसे से सुरक्षित रखा।

  1. अमनदीप कौर (पंजाब)

अमनदीप ने जलती हुई गाड़ी में फंसे चार बच्चों को बचाने का साहसिक कार्य किया। उनकी बहादुरी के लिए उन्हें भारतीय बाल कल्याण परिषद (ICCW) द्वारा वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

  1. प्रफुल्ल शर्मा (हिमाचल प्रदेश)

सरकाघाट के प्रफुल्ल ने अनियंत्रित बस को ब्रेक लगाकर 20 बच्चों की जान बचाई। उनकी इस अदम्य साहस के लिए उन्हें राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से नवाजा गया।

  1. मुकेश निषाद (छत्तीसगढ़)

दुर्ग जिले के 17 वर्षीय मुकेश ने खलिहान में आग लगने पर छह बच्चों की जान बचाई। उनके इस साहसिक कार्य के लिए उन्हें राष्ट्रीय वीरता सम्मान से सम्मानित किया गया।

इन बच्चों की कहानियाँ न केवल प्रेरणास्पद हैं, बल्कि यह दर्शाती हैं कि साहस और सेवा की भावना किसी उम्र की मोहताज नहीं होती।

 

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