Class – X, Sparsh, Chapter -5, Sumitranandan Pant – Pravat Pradesh Me Paavas, (NCERTHindi  Course B)

(1900-1977)

20 मई 1900 को उत्तराखंड के कौसानी-अलमोड़ा में जन्मे सुमित्रानंदन पंत ने बचपन से ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। सात साल की उम्र में स्कूल में काव्य पाठ के लिए पुरस्कृत हुए। 1915 में स्थायी रूप से साहित्य सृजन शुरू किया और छायावाद के प्रमुख स्तंभ के रूप में जाने गए।

पंत जी की आरंभिक कविताओं में प्रकृति प्रेम और रहस्यवाद झलकता है। इसके बाद वे मार्क्स और महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हुए। इनकी बाद की कविताओं में अरविंद दर्शन का प्रभाव स्पष्ट नज़र आता है। जीविका के क्षेत्र में पंत जी उदयशंकर संस्कृति केंद्र से जुड़े। आकाशवाणी के परामर्शदाता रहे। लोकायतन सांस्कृतिक संस्था की स्थापना की। 1961 में भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण सम्मान से अलंकृत किया। हिंदी के पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता हुए।

पंत जी को कला और बूढ़ा चाँद कविता संग्रह पर 1960 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार, 1969 में चिदंबरा संग्रह पर ज्ञानपीठ पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उनका निधन 28 दिसंबर 1977 को हुआ। इनकी अन्य प्रमुख कृतियाँ हैं – वीणा, पल्लव, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्णकिरण और लोकायतन।

भला कौन होगा जिसका मन पहाड़ों पर जाने को न मचलता हो। जिन्हें सुदूर हिमालय तक जाने का अवसर नहीं मिलता वे भी अपने आसपास के पर्वत प्रदेश में जाने का अवसर शायद ही हाथ से जाने देते हों। ऐसे में कोई कवि और उसकी कविता अगर कक्षा में बैठे-बैठे ही वह अनुभूति दे जाए जैसे वह अभी-अभी पर्वतीय अंचल में विचरण करके लौटा हो, तो!

प्रस्तुत कविता ऐसे ही रोमांच और प्रकृति के सौंदर्य को अपनी आँखों निरखने की अनुभूति देती है। यही नहीं, सुमित्रानंदन पंत की अधिकांश कविताएँ पढ़ते हुए यही अनुभूति होती है कि मानो हमारे आसपास की सभी दीवारें कहीं विलीन हो गई हों। हम किसी ऐसे रम्य स्थल पर आ पहुँचे हैं जहाँ पहाड़ों की अपार शृंखला है, आसपास झरने बह रहे हैं और सब कुछ भूलकर हम उसी में लीन रहना चाहते हैं।

महाप्राण निराला ने भी कहा था : पंत जी में सबसे ज़बरदस्त कौशल जो है, वह है ‘शेली’ (Shelley) की तरह अपने विषय को अनेक उपमाओं से सँवारकर मधुर से मधुर और कोमल से कोमल कर देना।

पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,

  पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश

  मेखलाकार पर्वत आपार

  अपने सहस्र दृग सुमन फाड़

  अवलोक रहा है बार-बार

  नीचे जल में निज महाकार,

  -जिसके चरणों में पला ताल   

  दर्पण-सा फैला है विशाल !

शब्दार्थ –

1.पावस- वर्षा

2. ऋतु- मौसम

3. पर्वत- पहाड़

4. प्रदेश – प्रांत, राज्य

5. पल-पल- क्षण-क्षण

6. परिवर्तित- बदला हुआ

7. प्रकृति- कुदरत

8. वेश- रूप  

9. मेखलाकार- करघनी के आकार का  

10. आकार- गढ़न या बनावट

11. आपार- विशाल

12. सहस्र- हज़ार

13. दृग- नेत्र, नयन

14. सुमन- फूल

15.अवलोक- देख

16. बार-बार- लगातार

17. जल- पानी

18. निज- अपना

19. महाकार- विशाल रूप

20. चरण- पद

21. पला-पोषित

22. ताल- तालाब

23. दर्पण- आईना

वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रदेशों की आपार सुंदरता तथा पल-पल प्रकृति द्वारा नवीन रूप धारण कर लेना मन को मोह लेता है। करघनी के आकार की ढाल वाले पर्वतों की दूर तक फैली पर्वतमालाओं पर अनगिनत फूल सुशोभित हैं, लगता है मानो पर्वत अपनी पुष्प रूपी आँखों से तलाब में हैरानी से अपनी विशालता को देख रहा है। पर्वतों के चरणों में तालाब दर्पण-सा फैला हुआ है तथा पर्वतों का महाकार उसके जल में प्रतिबिम्बित हो रहा है।

गिरि का गौरव गाकर झर-झर

मद में नस-नस उत्तेजित कर

मोती की लड़ियों-सी सुंदर

झरते है झाग भरे निर्झर !

   गिरिवर के उर से उठ-उठ कर

   उच्चाकांक्षाओं से तरुवर

   हैं झाँक रहे नीरव नभ पर

   अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर ।

शब्दार्थ –

1. गिरि- पर्वत

2. गौरव- बड़प्पन

3. मद- मस्ती

4. उत्तेजित- तीव्रता

5. निर्झर- झरना

6. उर- हृदय

7. उच्चाकांक्षाओं- ऊँची इच्छाएँ

8. तरुवर- पेड़ों का समूह

9. नीरव- शांत

10. नभ- आकाश

11. अनिमेष- बिना पलक झपकाए

12. अटल- दृढ़

पहाड़ों से झरते हुए झरने मधुर स्वर उत्पन्न करते हैं। लगता है ये झरने पर्वतों की विशालता और महानता की यशोगाथा गा रहे हैं। इनसे निकलता हुआ मधुर स्वर तथा इनकी अनुपम छ्टा तन-मन में अभूतपूर्व जोश, उमंग व उल्लास का संचार कर देती है। झरनों से गिरती जल की बूंदें मोती की लड़ी-सी दिखाई पड़ती हैं तथा झरनों। का जल सुंदर सफ़ेद फेन बनाता है। पर्वतों पर बड़े-बड़े वृक्ष सुशोभित हैं। लगता है, मानो ये पर्वतों की ऊपर उठाने की कामनाएँ हैं। ये वृक्ष शांत आकाश की ओर एकटक देखते हुए अत्यंत चिंतातुर से प्रतीत होते हैं।

उड़ गया अचानक लो भूधर

फड़का अपार पारद के पर !

रव शेष रह गए निर्झर !

है टूट पड़ा भू पर अंबर!

  धँस गए धरा में सभय शाल!

  उठ रहा धुआँ जल गया ताल!

  यों जलद यान में विचर-विचर

  था इंद्र खेलता इंद्रजाल।!

शब्दार्थ –

1. अचानक- एकाएक

2. भूधर- पहाड़

3. पारद- एक प्रकार का सफ़ेद धातु

4. पर- पंख

5. रव- ध्वनि

6. भू- पृथ्वी

7. अंबर- आकाश

8. धरा- पृथ्वी

9. सभय- भय के साथ

10. शाल- एक प्रकार का पेड़

11. यों- इस तरह

12. जलद- मेघ

13. यान- परिवहन का माध्यम

14. विचर-विचर- घूम-घूम

15. इंद्रजाल- जादूगरी

पर्वतीय प्रदेश में पलभर में बादलों के आने से समस्त दृश्य अदृश्य हो जाता है तो कवि कह उठते है कि लगता है कि बादलों के पंख लगाकर पलभर में ही पहाड़ वहाँ से उड़कर कहीं चले गए हैं। अब कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा है। मात्र झरने की मधुर आवाज़ उस निस्तब्ध वातावरण की मनोरमता में वृद्धि कर रही है। अचानक लगता है, मानो आकाश ही धरती पद टूट पड़ा है। तथा भयवश शाल के वृक्ष धरती की गोद में समा गए हों या मानो वह तालाब ही जल गया है और उसी का धुआँ बादल की तरह चारों दिशाओं में व्याप्त है। तभी अचानक बादल छँट जाते हैं। सूर्य के प्रकट होने से आकाश में बड़ा-सा इंद्रधनुष दिखाई देता है, मानो इंद्र बादल रूपी विमान में घूम-घूम कर अपनी जादूगरी की माया का प्रदर्शन कर रहे हों।

1 –निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

1. पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – पावस ऋतु में कभी आकाश में सूर्य चमकता दिखाई देता है कभी अचानक बादल धुएँ की तरह छा जाते हैं और घने बादलों में पर्वत, पेड़ सब छिप जाते हैं।

2.मेखलाकार’ शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है?

उत्तर – पहाड़ों की ढलान को देखकर कवि को ऐसा लगता है कि मानो यह कमर में पहना जाने वाला लड़ियों युक्त गहना है। कवि ने इस शब्द का प्रयोग पर्वतों की शृंखला के लिए किया है जो दूर-दूर तक फैली हैं तथा करघनी के भाँति ही धरती पर सुशोभित हैं। 

3.सहस्र दृग-सुमन’ से क्या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा?

उत्तर – पावस ऋतु में पर्वतों पर खिले सहस्र सुमनों को कवि पर्वतों की आँखों के समान कह रहे हैं।

4. कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों?

उत्तर – कवि ने तालाब की समानता दर्पण के साथ दिखाई है। तालाब के जल में पर्वतों की परछाईं पड़ती हैं तो लगता है कि पर्वत आईना देख रहा है।

5. पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे- ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?

उत्तर – पर्वत के हृदय से उठे वृक्ष चिंतामग्न होकर आकाश को देख रहे हैं ऊँचे उठे वृक्ष पर्वतों की उच्च आकाक्षाओं को प्रतिबिम्बित करते हैं।

6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए?

उत्तर – बादल फैलने से लगा मानो तालाब जल गया हो और धुआँ फैल रहा हो। इससे शाल के वृक्ष भयभीत होकर मानो धरती में समा गए हों।

7. झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?

उत्तर – झरने पर्वतों की महानता का गान कर रहे हैं। बहते झरने का शीतल जल मोती की लड़ियों से दिखाई पड़ते हैं।

1. है टूट पड़ा भू पर अंबर।

उत्तर – कवि कहते हैं कि बादलों के अचानक छा जाने पर पहाड़ अदृश्य हो जाते हैं ऐसे दृश्य को देख कर ऐसा लगता है मानो पहाड़ों पर आकाश ही टूट कर गिर गया हो। 

2. -यों जलद—यान में विचर—विचर

था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

उत्तर – कवि कहते हैं कि बादलों को देखने से ऐसा लगता है, मानो बादलों ने किसी को ढक रखा है तभी अचानक बादल छँट जाते हैं। सूर्य के प्रकट होने से आकाश में बड़ा-सा इंद्रधनुष दिखाई देता है, मानो इंद्र बादल रूपी विमान में घूम-घूम कर अपनी जादूगरी की माया का प्रदर्शन कर रहे हों।

3. गिरिवर के उर से उठ—उठ कर

उच्चाकांक्षाओं से तरुवर

हैं झाँक रहे नीरव नभ पर

अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

उत्तर – कवि कहते हैं कि पर्वतों के हृदय पर बड़े-बड़े वृक्ष सुशोभित हैं। लगता है, मानो ये पर्वतों की ऊपर उठाने की कामनाएँ हैं। ये वृक्ष शांत आकाश की ओर एकटक देखते हुए अत्यंत चिंतातुर से प्रतीत होते हैं।

1. इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- इस कविता में पर्वतों का आँखें फाड़कर देखना, झरनों का गाना गाना, पेड़ों का चिंतातुर होना, शाल के पेड़ों का डर जाना ये सब मानवीय क्रियाएँ हैं। यहाँ प्रकृति में मानवीय गुणों का आरोप है। अतः यहाँ मानवीकरण अलंकार है।

2. आपकी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर करता है –

(क) अनेक शब्दों की आवृत्ति पर।

(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर।

(ग) कविता की संगीतात्मकता पर।

उत्तर – (ग) कविता की संगीतात्मकता पर।

3. कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।

उत्तर – अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़, अवलोक रहा है बार-बार

   उड़ गया, अचानक लो, भूधर फड़का अपार पारद· के पर!

1. इस कविता में वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों की बात कही गई है। आप अपने यहाँ वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर – छात्र इस प्रश्न का उत्तर अपने स्तर पर करें।

1. वर्षा ऋतु पर लिखी गई अन्य कवियों की कविताओं का संग्रह कीजिए और कक्षा में सुनाइए।

उत्तर – छात्र इस प्रश्न का उत्तर अपने स्तर पर करें।

2. बारिश, झरने, इंद्रधनुष, बादल, कोयल, पानी, पक्षी, सूरज, हरियाली, फूल, फल आदि या कोई भी प्रकृति विषयक शब्द का प्रयोग करते हुए एक कविता लिखने का प्रयास कीजिए।

उत्तर – छात्र इस प्रश्न का उत्तर अपने स्तर पर करें।

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