शब्दार्थ
चतुर – चालाक
कौवा – काक, कौआ, Crow
प्यास – Thirst
मारा-मारा – परेशानी की स्थिति में
भटक – Wander
बेचारा – अभागा, बदकिस्मत, Unblessed
गाँव – ग्राम, Village
नगर – शहर, Town
हारा – पराजित
सहसा – अचानक
घड़ा – मटकी, Pot
कंकड़ – पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े
गरदन – Neck
निज – अपना
अक्ल – बुद्धि, Intellect
मेहनत – परिश्रम
बल – ताकत सफलता – Success
कविता में से
प्रश्न 1. कौवा क्यों भटक रहा था?
उत्तर – कौवा बहुत प्यासा था और वह पानी की तलाश में भटक रहा था।
प्रश्न 2. कौवे ने पानी को कहाँ-कहाँ ढूँढा?
उत्तर – कौवे ने पानी गाँव-गाँव और नगर-नगर में ढूँढा।
प्रश्न 3. कौवे ने पानी को ऊपर लाने के लिए क्या किया?
उत्तर – कौवे ने पानी ऊपर लाने के लिए घड़े के पास पड़े कंकड़ों को अपनी चोंच से उठा-उठाकर घड़े में डालना शुरू किया और इस तरीके से पानी घड़े के गरदन तक आ गया।
प्रश्न 4. कौवे को सफलता कैसे मिली?
कौवे ने मेहनत करके उसे पानी वाले घड़े को ढूँढ निकाला और अपनी बुद्धि से घड़े में कंकड़ डालकर पानी को घड़े के गरदन तक ले आया और अपनी प्यास बुझाई। अतः, कहा जा सकता है कि कौवे को सफलता उसकी बुद्धि और मेहनत से मिली।
बातचीत के लिए
प्रश्न 1. किन-किन कामों के लिए पानी की ज़रूरत होती है ?
उत्तर – पीने के लिए, खाना बनाने के लिए, नहाने के लिए, कपड़े धोने के लिए आदि कामों के लिए पानी की ज़रूरत पड़ती है।
प्रश्न 2. पानी को बचाने के लिए आप क्या – क्या करते हैं?
उत्तर – पानी बचाने के लिए मैं पानी का उपयोग ज़रूरत के अनुसार करता हूँ। कहीं भी अगर नल खुला दिखे तो मैं उसे बंद कर देता हूँ। मैंने अपने पानी की टंकी में सायरन भी लगा रखी है जब पानी पूरा भर जाता है तो सायरन बजने लगता है और मैं मोटर बंद कर देता हूँ।
प्रश्न 3. जब आपको प्यास लगती है तो आप क्या – क्या पीकर अपनी प्यास बुझाते हैं?
उत्तर – जब मुझे प्यास लगती है तो मैं पानी पीकर अपनी प्यास बुझाता हूँ। इसके अलावा मैं रसना पीकर, लस्सी पीकर, छाँछ पीकर, फलों का रस पीकर भी अपनी प्यास बुझाता हूँ।
आपकी कल्पना
प्रश्न 1. अगर कौवे को आस-पास एक स्ट्रॉ या पाइप मिल जाता तो वह क्या करता? चर्चा कीजिए।
उत्तर – अगर कौवे को आस-पास एक स्ट्रॉ या पाइप मिल जाती तो भी वह उसकी मदद से घड़े का पानी नहीं पी पाता क्योंकि कौवे की चोंच स्ट्रॉ या पाइप के उपयुक्त होती ही नहीं है।
प्रश्न 2. अगर आप कौवे की जगह होते तो क्या करते?
उत्तर – अगर मैं कौवे की जगह होता तो ढेरों कंकड़ उसमें फेंकने की बजाय अपनी चोंच से घड़े के उस स्थान में छेद कर देता जहाँ से पानी बहने लगता और मैं अपनी प्यास बुझा लेता।
भाषा की बात
प्रश्न 1. कविता में से जोड़े वाले शब्द छाँटकर लिखिए–
नगर-नगर , गाँव-गाँव , कंकड़-कंकड़
प्रश्न 2. अगर कवितामें कौवे की जगह ‘चिड़िया‘ होती तो कविता की पंक्तियों में क्या बदलाव आता?
बड़ी प्यास से मारी-मारी
भटक रही थी चिड़िया बेचारी
गाँव-गाँव में नगर-नगर में,
पानी ढूँढ न पाई हारी।
3. नीचे दी गई कविता की पंक्तियों को पूरा कीजिए-
बहुत भूख से बेचैन थी वह,
भटक रही थी इधर-उधर।
गाँव-गाँव में गली-गली में,
भोजन न ढूँढ पाई, हारी।
अचानक उसने देखा रोटी का टुकड़ा,
पर वह भी बिलकुल रूखा-सूखा।
उसे ही खाकर भूख मिटाई,
खुशी से वह फूली न समाई।
पानी कहाँ-कहाँ?
1. हमें पानी अनेक स्रोतों से मिलता है। जिन स्रोतों से हमें पानी मिलता है, उन पर सही (सही) का निशान लगाइए-
पेड़ के अतिरिक्त सभी सही है।
þ þ ý þ
बरसात
नल
सागर
झरना
तालाब
कुआँ
झील
नदी
जीवन मूल्य
कौवा पानी के लिए इधर-उधर भटका और कोशिश करके वह अपनी प्यास बुझा सका।
प्रश्न – क्या आप भी समस्याएँ आने पर उनका हल ढूँढ सकते हैं?
उत्तर – जी हाँ, मैं भी समस्याएँ आने पर उनके हल ढूँढ सकता हूँ।
प्रश्न – आप कौवे की सहायता किस प्रकार करते?
उत्तर – मैं उस कौवे की मदद करने के लिए अपने घर के सामने और छत पर किसी बर्तन में पानी रखूँगा ताकि कौवे जैसे अन्य पक्षी तथा पशु भी गर्मी के मौसम में बिना किसी समस्या के पानी पी सके।
कुछ करने के लिए.
एक गिलास पानी लीजिए, उसमें चुटकी भर नमक और दो चम्मच चीनी घोल लें। जब उसमें चीनी – नमक अच्छी तरह से घुल जाए तब उसमें आधा कटा हुआ नींबू निचोड़ दें। उसे ठंडा करने के लिए दो-तीन टुकड़े बर्फ़ के डालें और पीकर आनंद ले।
छात्र स्वयं करें
भाषा अभ्यास
पाठ – 2
चतुर कौवा
1. आसमान घड़ा कौवा सूरज
2. घड़ा बड़ा मकड़ा घोड़ा
चढ़ना पढ़ना बढ़ना बूढ़ा
3. क. भटक लटक मटक पटक
ख. घड़ा अड़ा बड़ा कड़ा
ग. पानी मानी रानी दानी
घ. बल पल हल कल
4. घर सेब तोता
कौवा कार हाथ
5. क. पानी – जल
ख. सहसा – अचानक
ग. निज – अपना
घ. मेहनत – परिश्रम
6. क. मेहनत – मेहनत से ही उन्नति होती है।
ख. घड़ा – कौवे ने एक घड़ा देखा।
ग. सहसा – सहसा मेरे सामने एक साँप आ गया।
घ. सफलता – परिश्रम से सफलता हासिल होती है।
7. गर्मी का मौसम था। ऐसे में एक कौवे को प्यास लगी। अपनी प्यास बुझाने के लिए वह गाँव-गाँव और नगर-नगर भटक रहा था, सहसा उसे एक घड़ा दिखा जिसमें थोड़ा ही पानी था। उस घड़े के सामने कुछ छोटे-छोटे पत्थर पड़े हुए थे। कौवे ने अपनी बुद्धि का प्रयोग किया और अपनी चोंच से उन पत्थरों को घड़े में डालने लगा। थोड़ी देर बाद पानी घड़े के गर्दन तक पहुँच गया फिर कौवे ने अपनी प्यास बुझाई और उड़ गया।
विशेष द्रष्टव्य – ‘कौआ’ ऐसे भी लिखा जाता है।