शब्दार्थ
ईर्ष्या – जलन/ दाह/ Jealous
सभा – Meeting
मृदुभाषिणी – मधुर बोलने वाली
दरअसल – वास्तव में / Actually
बीमा – Insurance
विभव – ऐश्वर्य
कलेजा हृदय –
मासिक – Monthly
अनोखा – विचित्र
वरदान – Boon
मौजूद – उपस्थित
पक्ष – Favour
दंश – डसना
लाचार – बेबस
वेदना – कष्ट
अभाव – कमी
निमग्न – सोचते रहना
दोष – कसूर
चरित्र – Character
उन्नति – तरक्की
सृष्टि – उत्पत्ति
प्रक्रिया – Process
उद्यम – कोशिश
हानि – क्षति
कर्तव्य – फ़र्ज़
निंदा – शिकायत
अनायास – बिना प्रयास के
रिक्त – खाली
रिक्थ – संपत्ति
ह्रास – कमी
निर्मल – स्वच्छ
द्वेष – क्लेश
मूर्ति – प्रतिमा
फिक्र – ज़रूरत
गुबार – भड़ास
ध्येय – उद्देश्य
बदतर – खराब
मौलिक – वास्तविक
कुंठित – Depressed
बनिस्पत – बजाय
मद्धिम – कम चमकदार
दैत्य – राक्षस
सुयश – कीर्ति
समकक्ष – बराबर
पाक – पवित्र
शरीफ़ – भद्र
दुर्भावना – बुरी भावना
सूत्र – Formula
शंका – Doubt
ऐब – कमी
तरस – Desperate
संकीर्ण – तंग / Narrow
हस्तियाँ – Personality
शोहरत – Fame
मानसिक – Mental
अनुशासन – Discipline
जिज्ञासा – जानने की कोशिश / Curiosity
चुप्पी साधना – मौन धारण करना
एकांत – अकेला
धरातल – Surface
पर्यायवाची
ईर्ष्या – जलन, डाह, द्वेष
कलेजा – हृदय, दिल
लाचार – बेबस, मजबूर
वेदना – कष्ट, पीड़ा, मलाल
उन्नति – तरक्की, प्रगति, विकास
उद्यम – कोशिश, प्रयास, प्रयत्न
निर्मल – स्वच्छ, साफ़
ध्येय – उद्देश्य, लक्ष्य, अभीष्ट
दैत्य – राक्षस, असुर, निशाचर
विलोम
वरदान # अभिशाप
पक्ष # विपक्ष
दोष # निर्दोष
चरित्र # दुश्चरित्र
उन्नति # अवनति
हानि # लाभ
कर्तव्य # अधिकार
निंदा # प्रशंसा
अनायास # सायास
रिक्त # पूर्ण
ह्रास # बढ़ोतरी
निर्मल # मल
दैत्य # देव
सुयश #अपयश
दुर्भावना # भावना
उपकार # अपकार
उपसर्ग / प्रत्यय
दरअसल – दर + असल
प्रक्रिया – प्र + क्रिया
निर्मल – निर्+ मल
अनुशासन – अनु+ शासन
सुयश – सु + यश
प्रत्यय
मासिक – मास + इक
मौलिक – मूल + इक
मानसिक – मानस + इक
पाठ में से
प्रश्न 1. ईर्ष्या का अनोखा वरदान क्या है?
उत्तर – वकील साहब भरे-पूरे इंसान हैं। उनका परिवार भी बहुत खुशहाल है फिर भी वे सुखी नहीं है क्योंकि वे अपने बगल में रहने वाले बीमा एजेंट की सुख-समृद्धि देखकर उनसे जलते थे।
प्रश्न 2. ईर्ष्या की बेटी किसे और क्यों कहा गया है?
उत्तर – ईर्ष्या की बेटी निंदा को कहा गया है क्योंकि जिस व्यक्ति में किसी के प्रति ईर्ष्या होती है वह मौका पाते ही दूसरों के सामने उस व्यक्ति की निंदा करने लगता है। उसका मानना है कि ऐसा करने से वह उस व्यक्ति को दूसरों की नज़र में गिरा देगा और खुद लोगों की नज़र में श्रेष्ठ बन जाएगा ।
प्रश्न 3. ईर्ष्यालु व्यक्ति उन्नति कब कर सकता है?
उत्तर – ईर्ष्यालु व्यक्ति भी उन्नति कर सकता है परंतु उसे दूसरों से ईर्ष्या रखकर उसे पीछे करने की भावना से मुक्त होकर अपने आपको को आगे बढ़ाने की या आत्म-उन्नति के अभियान में शामिल हो जाना चाहिए।
प्रश्न 4. ईर्ष्या का क्या काम है? ईर्ष्या से प्रभावित व्यक्ति किसके समान है?
उत्तर – ईर्ष्या का काम जलाना है। ईर्ष्या से प्रभावित मनुष्य ग्रामोफ़ोन के समान है जिसे श्रोता मिलते ही वह अपने दिल का गुबार निकालना शुरू कर देता है।
प्रश्न 5. ईर्ष्यालु लोगों से बचने का क्या उपाय है?
उत्तर – ईर्ष्यालु से बचने के लिए आपको भीड़ से एकांत की ओर भागना पड़ेगा। आजकल आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा ईर्ष्यालु हो चुका है और अगर आप भी ऐसे लोगों की संगति में ज़्यादा समय व्यतीत करने लगे तो आपको भी ईर्ष्या का संक्रमण हो सकता है। बेहतर यही होगा कि आप काम भर ही ऐसे लोगों से बातचीत करें जिससे न तो रिश्ते में गहराई आए और न ही कड़वाहट।
प्रश्न 6. उचित शब्द द्वारा रिक्त स्थान भरिए –
प्रश्न (क) मनुष्य के पतन का कारण अपने ही भीतर के ______ का ह्रास होता है।
उत्तर – सद्गुणों
प्रश्न (ख) ईर्ष्या मनुष्य के ______ गुणों को ही कुंठित बना डालती है।
उत्तर – मौलिक
प्रश्न (ग) तुम्हारी निंदा वही करेगा, जिसकी तुमने ______ की है।
उत्तर – भलाई
प्रश्न (घ) ये______ हमें सज़ा देती हैं, हमारे गुणों के लिए।
उत्तर – मक्खियाँ
प्रश्न (ङ) आदमी में जो गुण ______ समझे जाते हैं, उन्हीं के चलते लोग उससे जलते भी हैं।
उत्तर – महान
बातचीत के लिए
प्रश्न 1. क्या ईर्ष्या चिंता से ज़्यादा खराब है? विचार कीजिए।
उत्तर – ईर्ष्या चिंता से कई गुना ज़्यादा खराब है क्योंकि चिंता में मनुष्य का शरीर क्षीण हो जाता है परंतु ईर्ष्या में मनुष्य की आत्मा क्षीण हो जाती है। चिंता करने वाले जब सही लोगों से मिलते हैं तो उनकी समस्या का निदान हो जाता है जबकि ईर्ष्यालु व्यक्ति जब किसी से मिलते हैं तो दूसरों की निंदा करना शुरू कर देते हैं।
प्रश्न 2. चिंता – दग्ध मनुष्य समाज की दया का पात्र क्यों है?
उत्तर – चिंता-दग्ध मनुष्य समाज की दया का पात्र है क्योंकि वह अज्ञान के कारण चिंतित रहता है। उसकी क्षीण और दयनीय अवस्था को देखकर समाज के सभ्य और समझदार लोग उसे उपदेश और परामर्श देते हैं जिससे उसकी समस्या का समाधान हो जाता है।
प्रश्न 3. ‘ईर्ष्या से मनुष्य के आनंद में भी बाधा पड़ती है।’ उदाहरण द्वारा सिद्ध कीजिए।
उत्तर – ईर्ष्या के कारण मनुष्य अपने सुखों का लाभ भी पूरी तरह नहीं उठा पाता क्योंकि वह अपने सुख से जितना सुखी नहीं होता है उतना दूसरों के सुख से दुखी होता है।
प्रश्न 4. कोई ऐसी घटना बताइए जब आपको किसी से या किसी को आपसे ईर्ष्या हुई हो।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
अनुमान और कल्पना
प्रश्न 1. कल्पना कीजिए कि आपको प्रार्थना सभा में सफलता के सूत्रों के बारे में अपने सहपाठियों को बताना है/तो आप क्या बताएँगे?
उत्तर – यदि मुझे सफलता के बारे में अपने सहपाठियों को प्रार्थना-सभा में बताना पड़े तो मैं बुलंद आवाज़ में सबसे पहले अपने या किसी महापुरुष के उपलब्धि के बारे में बताऊँगा और उस उपलब्धि को पाने के लिए किए गए मेहनत, रणनीति, ज़िद, लगन, कौशल अर्जन आदि के बारे में भी बताऊँगा।
प्रश्न 2. यदि आपके पड़ोसी या जानकार आपसे ईर्ष्या करें तो आप उनके साथ कैसा व्यवहार करेंगे?
उत्तर – यदि मेरे पड़ोसी या जानकार मुझसे ईर्ष्या करें तो भी मैं उन पर ध्यान नहीं दूँगा और कभी नज़रें मिल जाने पर सामान्य अभिवादन के साथ उनसे सलीके से पेश आऊँगा।
प्रश्न 3. अगर मनुष्य में केवल सकारात्मक भावनाएँ होंगी तो संसार कैसा होगा?
उत्तर – अगर मनुष्य में केवल सकारात्मक भावनाएँ होंगी तो संसार में भले और बुरे में अंतर करने की ज़रूरत ही नहीं होगी और भलाई या सकारात्मक सोच समाज के लिए कितनी महत्त्वपूर्ण हैं यह महत्त्व की बात न रहकर सामान्य बात हो जाएगी।
भाषा की बात
प्रश्न 1. नीचे दिए गए शब्दों में से उपसर्ग व मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए-
शब्द उपसर्ग मूल शब्द
क. अभाव अ भाव
ख़. सुयश सु यश
ग. दुर्भावना दुर् भावना
घ. निमग्न नि मग्न
प्रश्न 2. पाठ में से कोई पाँच भाववाचक संज्ञा शब्द छाँटकर लिखिए-
भाववाचक संज्ञा
क. शोहरत
ख़. ईर्ष्या
ग. सुख
घ. आनंद
ङ. उद्यम
जीवन मूल्य
प्रश्न 1. ईर्ष्या, द्वेष, निंदा, घृणा, गुस्सा आदि नकारात्मक भाव जागने से मनुष्य के व्यक्तित्व में क्या बदलाव आता है?
उत्तर – ईर्ष्या, द्वेष, निंदा, घृणा, गुस्सा आदि नकारात्मक भाव जागने से मनुष्य के व्यक्तित्व में अनिष्ट तत्त्वों का समावेश हो जाता है जिससे उसका व्यक्तित्व मलिन और सोच धूमिल हो जाती है। फलस्वरूप, वह न तो अपने लिए और न ही समाज के लिए कोई उत्थान का कार्य कर पाते हैं।
प्रश्न 2. इन नकारात्मक भावों को मन से निकालने के लिए हम क्या – क्या उपाय कर सकते हैं?
उत्तर – इन नकारात्मक भावों को मन से निकालने के लिए सबसे पहले हमें स्वयं से यह सवाल करना चाहिए की क्या इन सब अवांछित तत्त्वों के हमारे व्यक्तित्व में रहने से हमें किसी भी प्रकार का चिरस्थायी लाभ हो रहा है? मुझे पूरा यकीन है कि उत्तर न में ही मिलेगा और इसके बाद हम अपनी आवश्यकता काम कर सकते हैं।
कुछ करने के लिए
प्रश्न 1. चार्ट पर एक तरफ़ मन में उठने वाले नकारात्मक भाव और उन्हीं के सामने आपके व्यक्तित्व को मज़बूत बनाने वाले सकारात्मक भाव लिखिए और कक्षा में लगाइए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें
2. सकारात्मक सोच पर कविताएँ, कुहानियाँ व सूक्तियाँ पढ़िए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें
अभ्यास सागर
पाठ – 20
ईर्ष्या : तू न गई मेरे मन से
अर्थ के आधार पर
वाक्य भेद
1.
क. चिंता
ख. प्रश्न
ग. इच्छा
घ. सुझाव
ङ. निषेध
2.
क. मैं कई बार दिल्ली जा चुका हूँ।
ख. नरेश भारतीय स्टेट बैंक, रोहतक में क्लर्क है।
3.
क. हमें कभी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए।
ख. देर रात तक जागना अच्छी बात नहीं है।
4. केवल पढ़ने और समझने के लिए।
5.
क. तुम्हारे विद्यालय का नाम क्या है?
ख. आप कहाँ रहते हैं?
6.
क. अहा ! खीर बहुत स्वादिष्ट है।
ख. उफ ! आज बहुत गर्मी है।
7.
क. ईश्वर करे, तुम परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करो।
ख. ख़ुदा सलामत रखे आप दोनों की जोड़ी को।
8.
क. हो सकता है, तुम्हें आज यहीं रुकना पड़ जाए।
ख. शायद वह आज नहीं आए।
9.
क. अगर तुम बाज़ार जाओगे तो मिठाई लेते आना।
ख. यदि तुमने कठिन परिश्रम किया तो परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाओगे।
10.
क. सत् + वाणी
ख. भगवत् + भक्ति
ग. उत् + नति
घ. सम् + वाद
ङ. शुष् + अन
11.
क. प्रमाण
ख. संरक्षक
ग. सम्मति
घ. शरच्चंद्र
ङ. तदनुसार
12.
क. पुजापा
ख. सुगमता
ग. देवत्व
घ. निपुणता
13.
क. वे
ख. खुद
ग. कौन
घ. कुछ
ङ. जैसा, वैसा
14.
क. अमैत्री
ख. दुर्गुण
ग. दुर्बल
घ. ढिलाई
ङ. अनुत्तीर्ण
15.
क. जलधारा
ख. चंद्रशेखर
ग. वनमानुष
घ. आजीवन
ङ. प्रधानाचार्य
च. अमीर-गरीब
16. ईमेल के मुख्य विचार
प्रिय मित्र
रवि
मुझे, तुम्हें यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि मैंने अंतर्विद्यालयी भाषण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया। मित्र, यह मेरी पहली जीत है जिसमें अन्य विद्यालयों के छात्रों से मेरी प्रतियोगिता हुई। इस प्रतियोगिता का विषय था, ‘राष्ट्र के संवर्धन में क्षेत्रीय भाषाओं की भूमिका’। मैंने इस विषय के विपक्ष में अपने मत तथ्यों समेत निर्णायक मंडली और श्रोताओं के सामने रखें। मेरे एक-एक तथ्यों पर भरपूर तालियाँ बज रही थीं। तालियों की आवाज़ मुझमें और भी ऊर्जा भर रही थी। मित्र, इस ईमेल के साथ मैंने अपने भाषण की ऑडियो अटैच की है। तुम इसे ज़रूर सुनना और अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव भी मुझे भेजना। इस ईमेल में बस इतना ही, चाचा-चाची को मेरा प्रणाम कहना और रिंकू को ढेर सारा प्यार।
तुम्हारा मित्र
अवि