Hindi Manjari Class IX Hindi solution Odisha Board (TLH) फिर महान बन नरेन्द्र शर्मा

नरेन्द्र शर्मा का जन्म सन् 1913 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के बुलंदर शहर जनपद के जहाँगीरपुर नामक गाँव में हुआ। सन् 1936 ईस्वी में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम. ए. पास किया। साहित्य- सृजन के प्रति उनकी पहले सी ही रुचि रही। छात्र जीवन में ही भूलझूलतथा कर्णफूलप्रकाशित हुए। फिर उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। जेल गए। कुछ दिनों तक अध्यापक हुए। फिर सिनेमा के लिए गीत लिखे। बाद में मुम्बई आकाशवाणी केन्द्र में नियुक्त हुए। 1988 में आपका देहान्त हो गया। प्रमुख कविता संकलन हैं :- प्रभात फेरी, प्रवासी के गीत, प्रीति कथा, कामिनी, अग्नि शस्य, कदली वन, प्यासा निर्झर, उत्तरजय, बहुत रात गए आदि

नरेन्द्र शर्मा की कविता में मानव – प्रेम, प्रकृति-सौन्दर्य के सरल और सजीव चित्र मिलते हैं। जड़ वस्तुओं में मानवीय चेतना, करुणा की भावधारा बहती है। बाद में वे समाज के दुख-दर्द के प्रति आकृष्ट हुए और असुविधाओं को दूर करने की आवाज उठाई। विद्रोह किया।

शर्माजी की भाषा सरल, शुद्ध और भावगर्भक होती है।

फिर महान बन, मनुष्य !

फिर महान बन।

मन मिला अपार प्रेम से भरा तुझे,

इसलिए कि प्यास जीव मात्र की बुझे,

विश्व है तृषित, मनुष्य, अब न बन कृपण।

फिर महान बन।

शत्रु को न कर सके क्षमा प्रदान जो,

जीत क्यों उसे न हार के समान हो?

शूल क्यों न वक्ष पर बनें विजय सुमन !

फिर महान बन।

दुष्ट हार मानते न दुष्ट नेम से,

पाप से घृणा महान है, न प्रेम से

दर्प – शक्ति पर सदैव गर्व कर न, मन।

फिर महान बन।

महान – श्रेष्ठ।, अपार – असीम।, प्यास – तृष्णा।, तृषित – प्यासा।, कृपण – कंजूस।, क्षमा – माफी।, जीवमात्र प्राणीमात्र।, जीत विजय।, हार – पराजय।, विजय सुमन – जीत के फूल।, शूल – काँटा, पीड़ा।, सुमन पुष्प, फूल, प्रसून, कुसुम।, घृणा – नफरत।, सदैव – सदा, सर्वदा।, गर्व – घमंड, अभिमान।, वक्ष – हृदय।, नेम – नियम, कायदा, दस्तूर, रीति।, दर्पशक्ति – घमण्ड।

मनुष्य अमृत की संतान है। अपनी महानता के कारण वह सबसे श्रेष्ठ प्राणी के रूप में परिचित है। लेकिन आज वह अपना कर्त्तव्य भूल गया है। अपने कर्त्तव्य पर सचेतन होने के लिए कवि ने इस कविता में सलाह दी है। मनुष्य को मनुष्यता का पाठ पढ़ाने के लिए, संसार को स्वर्ग बनाने के लिए यह कवि की चेतावनी है। कवि ने को फिर महान बनने की प्रेरणा दी है।

(क) मनुष्य को किस प्रकार का मन मिला है? उससे वह क्या कर सकता है?

उत्तर – मनुष्य को अपार प्रेम से भरा मन मिला है। उस मन से वह पूरी दुनिया में प्रेम की वर्षा अर्थात् खुशियाँ बाँट सकता है।

(ख) महान मनुष्य किसे कहते हैं?

उत्तर – कविता के अनुसार महान मनुष्य उसे कहते हैं जो समस्त प्राणियों के प्रति प्रेमपूर्ण व्यवहार करे, अपने शत्रुओं को क्षमा कर दे और जिसमें एक पल के लिए भी अभिमान न आए।

(ग) मनुष्य को महान बनने के लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए?

उत्तर – मनुष्य को महान बनने के लिए संपूर्ण प्राणिजगत से प्रेम   करना चाहिए न कि नफरत। विजय पाने के बाद भी अभिमानी न होते हुए नम्रता से अपने शत्रुओं को माफ कर देना चाहिए और कभी भी किसी से घृणा भाव नहीं रखनी चाहिए। 

(घ) मनुष्य को महान बनने के लिए कवि ने क्या प्रेरणा दी है?

उत्तर – मनुष्य को महान बनने के लिए कवि ने यह प्रेरणा दी है कि मनुष्य जीवन तभी सार्थक और अनुकरणीय बनता है जब इसे अपने हित में व्यय न करके मानवता के लिए व्यय किया जाए।  

(ङ) किसी की जीत हार के समान क्यों होनी चाहिए?

उत्तर – कवि का मानना यह है कि हम बल और शक्ति के प्रयोग से किसी पर अपना अधिकार तो जमा सकते हैं पर उसके मन पर विजय नहीं पा सकते। कवि यह कहते हैं कि अगर हम बलबुद्धि से विजय प्राप्त भी कर लें फिर भी हमें नम्र ही रहना चाहिए। ऐसे में हम अभिमान और घमंड से दूर रहते हैं।  

(क) कवि ने मनुष्य से क्या बनने को कहा?

उत्तर – कवि ने मनुष्य से महान बनने को कहा है।

(ख) मनुष्य को किस प्रकार मन मिला है?

उत्तर – मनुष्य को अपार प्रेम से भरा मन मन मिला है।

(ग) विश्व आज क्या है?

उत्तर – विश्व आज प्रेम का प्यासा है।

(घ) कवि मनुष्य से क्या न बनने को कहा है?

उत्तर – कवि मनुष्य से कृपण अर्थात् प्रेम बाँटने में कंजूसी न करने वाला व्यक्ति बनने को कहा है।  

(ङ) जो शत्रु को क्षमा प्रदान नहीं करता, उसकी जीत किसके समान है?

उत्तर – जो शत्रु को क्षमा प्रदान नहीं करता, उसकी जीत हार के समान है।

(च) विजय का सुमन क्या बनता है?

उत्तर – विजय का सुमन शूल बनता है।

(छ) किस से घृणा महान है?

उत्तर – पाप से घृणा महान है।

(ज) किस पर सदैव गर्व न करना चाहिए?

उत्तर – दर्प-शक्ति पर सदैव गर्व नहीं करना चाहिए।

(झ) फिर महान बनकविता के कवि का नाम क्या है?

उत्तर – फिर महान बनकविता के कवि का नाम नरेंद्र शर्मा है।   

(ञ) फिर महान बनकविता का मूल भाव क्या है?

उत्तर – फिर महान बनकविता का मूल भाव यह है कि मनुष्य सभी जीवधारियों से श्रेष्ठ है और अपनी श्रेष्ठता को बनाए रखने में ही मनुष्य की महानता है। इसलिए कवि मनुष्य को महान बनने के लिए कह रहे हैं।

फिर महान बन

शत्रु को न कर सके क्षमा प्रदान जो.

जीत क्यों उसे न हार के समान हो?

दुष्ट हार मानते न दुष्ट नेम से,

पाप से घृणा महान है न प्रेम से  

दर्प-शक्ति पर सदैव गर्व करना न मन  

1. उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्दों के समानार्थक शब्द लिखिए –

उदाहरण :

महान – विशिष्ट

सुमन पुष्प

कृपण – कंजूस  

मनुष्य – मानव  

अपार – प्रचुर  

शत्रु – दुश्मन  

क्षमा – माफी  

प्रेम – प्यार  

प्यास – तृष्णा

हार – पराजय  

भूल – गलती  

जीव – प्राणी

वक्ष – हृदय  

नेम – नियम  

दर्प – घमंड  

दुष्ट – शठ  

गर्व – अभिमान

2. उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्दों के विलोम/विपरीत शब्द लिखिए :

उदाहरण : प्रेम – घृणा

शत्रु – मित्र

क्षमा – आशीर्वाद  

प्रदान – स्वीकरण

महान – तुच्छ

जीत – हार

कृपण – उदार

समान – असमान

मनुष्य – दानव

दुष्ट – भद्र  

3. निम्नलिखित शब्दों के वचन बदलिए

उदाहरण :

मनुष्य – मनुष्य

विजय – विजय .

पाप – पाप  

तुझे – तुमलोग

जीव – जीव

कवि – कविवृन्द

4. आप भी एक कविता लिखने की कोशिश करें।

उत्तर – छात्र स्वयं करें।  

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