लेखक परिचय :
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर सन् 1889 ई. को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के ‘आनन्द भवन‘ में हुआ था। उनके पिता पंडित मोतीलाल नेहरू अपने समय के प्रतिष्ठित वकील थे, जिन्होंने अपने ज्ञान और तर्क शक्ति से बहुत नाम कमाया था। जवाहरलाल पर पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव होते हुए भी उनका भारतीय सभ्यता और संस्कृति से बेहद प्यार था।
नेहरूजी ने इंग्लैंड़ के प्रसिद्ध ‘हैरो‘ स्कूल में और उसके बाद ‘ट्रिनिटी कॉलेज‘ में अध्ययन किया। वे विज्ञान के छात्र थे। वे बैरिस्टर बनकर भारत लौटे। सत्याग्रह आन्दोलन में हिस्सा लेने के कारण उन्हें अनेक बार जेल जाना पड़ा। वे कांग्रेस के सभापति भी रहे।
स्वतंत्रता के बाद वे देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने। वे केवल कुशल राजनीतिज्ञ और अधिक परिश्रमी नहीं थे, बल्कि प्रभावशाली लेखक भी थे। उनकी आत्मकथा ‘मेरी कहानी‘, ‘विश्व इतिहास की झलक‘, ‘भारत की खोज‘, ‘पिता का पत्र पुत्री के नाम‘ उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी और मानवता के पुजारी थे। अपने अनमोल व्यक्तित्व और अप्रतिम देश सेवा के कारण भारत सरकार ने उन्हें ‘भारतरत्न‘ सम्मान से सम्मानित किया है।
जेल में मेरे मित्र
जेल में मेरे मित्र
मैं देहरादून जेल की उस कोठरी में लगभग साढ़े चौदह महीने रहा। मुझे लगने लगा कि जैसे यह मेरा ही घर हो। मैं उसके कोने-कोने से परिचित हो गया। सफ़ेद दीवारों, छत और कीड़ों द्वारा खाई हुई कड़ियों पर पड़ी हुई प्रत्येक रेखा और बिंदु को मैं पहचानने लगा था। जेल में दूसरे कार्यों से फुरसत होने के कारण हम प्रकृति के अधिक निकट होते चले गए। अपने सामने आने-जानेवाले जानवरों और कीड़ों को हम बड़े ध्यान से देखते थे। मैंने अनुभव किया कि मेरी यह शिकायत उचित न थी कि मेरा आँगन सूना और उजड़ा हुआ। है। मैंने पाया कि वह तो जीवों से भरा हुआ था। ये सब रेंगने, फिसलकर चलने और उड़नेवाले कीड़े-मकोड़े मेरे दैनिक जीवन में बिना किसी प्रकार की छेड़छाड़ किए हुए रह रहे थे। ऐसा कोई कारण न था कि मैं उनसे किसी प्रकार की छेड़छाड़ करता। हाँ, खटमलों, मच्छरों और मक्खियों से मुझे निरंतर युद्ध करना पड़ता था।
जहाँ पर वृक्ष थे, वहाँ गिलहरियों के झुंड के झुंड मज़े से घूमते रहते। गिलहरियाँ बिलकुल न डरतीं और साहसपूर्वक हमारे पास आ जाती थीं। वे इधर से उधर भागतीं मानो एक-दूसरी से आगे बढ़ने का खेल खेल रही हों। मुझे उनकी अठखेलियाँ देखने में बड़ा आनंद आता।
लखनऊ जेल की बात है। मैं घंटों बिना हिले-डुले बैठा पढ़ता – लिखता रहता। एक गिलहरी मेरे पैरों पर चढ़कर गोद में आ बैठती थी और मेरे मुँह की ओर देखने लगती थी। वह मेरी आँखों की ओर गौर से देखती थी और अनुभव करती थी कि मैं वृक्ष नहीं हूँ। वह मुझे क्या समझती रही, मैं नहीं बता सकता। मैं ज़रा-सा हिलता कि वह भयभीत होकर भाग खड़ी होती। कभी-कभी गिलहरियों के छोटे बच्चे पेड़ों से नीचे गिर जाते थे। उनकी माताएँ उनके पीछे दौड़ी हुई आतीं और उन्हें गेंद की तरह अपने मुँह में दबाकर सुरक्षित स्थान पर ले जाती थीं। कभी-कभी बच्चे खो भी जाया करते थे। हमारे एक साथी ने इस प्रकार गिलहारियों के खोए हुए तीन बच्चों को पाल रखा था।
एक दिन मैंने कुछ शोर सुना। “हाय ! ये गिलहरी के नन्हे-नन्हे बच्चे कहीं मर ही न जाएँ।” मैं उधर गया तो देखा कुछ कैदी खड़े “अरे !” “अरे !” “हाय, हाय !” कर रहे थे ! मैंने उन बच्चों को देखा तो निश्चित हो गया। वे जीवित थे। मैंने कहा, “तुम सब इन बच्चों को घेरे खड़े हो, इनकी माँ इन्हें लेने कैसे आ सकती है? चलो, हम बरामदे में बैठकर देखते हैं।” मैंने कैदियों को बताया कि मैं रोज़ इन गिलहरियों को देखता हूँ। कई बार इनके बच्चे वृक्ष की टहनी से नीचे गिर जाते हैं। इनकी माताएँ फुर्ती से नीचे आती हैं। बड़े ध्यान से इन्हें गेंद की तरह गोल-गोलकर मुँह में दबा लेती हैं और फिर पेड़ पर ले जाती हैं।
संध्या का समय था। धीरे-धीरे रात होने लगी, परंतु माँ गिलहरी न आई। मैं चिंतित हो उठा, कुछ तो करना होगा। कैदी उन बच्चों को उठाकर मेरी कोठरी में ले आए। पांडे जी आते ही बोले, “ये बच्चे तो बहुत ही छोटे हैं, न तो ये पत्ते चबा सकते हैं और न ही इन्हें रोटी का चूरा कर खिलाया जा सकता है, कैसे जीवित रखा जाएगा इन्हें?“
दूसरे ने सुझाव दिया कि इन्हें बोतल से दूध पिलाया जाए, पर कैसे ! जेल में बोतल कहाँ? फिर वे इतने छोटे थे कि बोतल से तो दूध पी न सकते थे। उनका पालन-पोषण करना कठिन समस्या बन गई थी।
सब सोच में पड़े थे कि मेरी दृष्टि पेन में स्याही भरनेवाली नली पर पड़ी। मैंने नली को उठाया और सबको दिखाते हुए कहा, “इसे बनाते हैं बोतल।” फिर शुरू हुआ नली से दूध पिलाने का प्रयास। पर नली से दूध की बूँद कभी बच्चों की नाक पर गिरती और कभी ज़मीन पर। कभी बच्चे मुँह ही न खोल पाते और कभी हम नली को स्थिर न रख पाते। सब परेशान थे कि जल्दी ही दूध न पिलाया गया तो ये बेचारी मर जाएँगे।
जेलर रामप्रसादजी भी यह सब देख रहे थे। उनके मन में कोई विचार कौंधा और वे भागते हुए वहाँ से चले गए। क्षणभर में हाथ में रुई लिए आए। नली में दूध डाला, उस पर रुई लपेटी। रुई दूध से गीली हो गई और गिलहरी का नन्हा बच्चा रुई चूसने लगा। चूस चूसकर बच्चे ने नली का पूरा दूध पी लिया। इसी तरह बाकी दोनों बच्चों को भी दूध पिलाया गया।
हम सब इतने प्रसन्न थे मानो विश्व जीत लिया हो। अब ये तीनों बच्चे हमारे जेल- परिवार के चहेते सदस्य थे।
मैं अल्मोड़ा की जेल को छोड़कर जितनी जेलों में मैं गया, वे सब कबूतरों से भरी रहती थीं। जेलों में हज़ारों कबूतर रहते थे और शाम को आकाश उनसे ढक-सा जाता था। कहीं-कहीं मैना भी रहती थीं। देहरादून जेल की मेरी कोठरी में मैना के एक जोड़े ने अपना घोंसला बना रखा था। मैं उन दोनों को खिलाया पिलाया करता था। वे इतने पालतू हो गए थे कि यदि सुबह या शाम उन्हें खाना मिलने में ज़रा-सी देर हो जाती तो वे चुपचाप मेरे पास बैठ जाते और ज़ोर से चिल्लाकर अपना भोजन माँगने लगते थे। उनकी क्रियाएँ और चिल्लाहट सुनकर बड़ा आनंद आता।
नैनी जेल में हज़ारों तोते थे। एक बहुत बड़ी संख्या मेरी बैरक की दीवारों पर रहा करती थी। उनकी प्रेममय बातचीत देखनेवाली होती थी। उनकी नोक-झोंक सुनने का आनंद तो अनोखा ही था।
देहरादून में सैकड़ों प्रकार की चिड़ियाँ थीं। वे गाती, चहचहाती, मधुर ध्वनि करती थीं। इनमें सर्वश्रेष्ठ कोयल की पुकार रहती थी। उसकी कुहू कुहू सुन हम इतने आनंदित हो उठते और भूल जाते कि जेल में हैं।
बरेली जेल में बंदरों का एक दल बसा हुआ था और उनकी किस्में देखने योग्य थीं। एक घटना ने मुझ पर बड़ा प्रभाव डाला। एक बंदर का बच्चा हमारी बैरक में आ गया और लौटकर फिर दीवार पर न चढ़ सका। वार्डनों और कैदियों ने उसे पकड़ लिया और एक रस्सी से बाँध दिया। ऊँची दीवार के ऊपर से उस बच्चे के माँ-बाप ने यह देखा। उनका क्रोध बढ़ने लगा। एकाएक उनमें से एक बहुत बड़ा और मोटा बंदर खीं खीं करता नीचे कूदा। उसने भीड़ पर सीधा आक्रमण किया। यह बहुत ही बहादुरी का काम था, क्योंकि वार्डन और कैदी हाथों में बड़े-बड़े डंडे घुमा रहे थे। साहस की विजय हुई। मनुष्यों की भीड़ डरी और अपने डंडे छोड़ भाग खड़ी हुई। बड़ा बंदर बच्चे को छुड़ाकर शान के साथ ले गया।
प्रायः हमारी भेंट ऐसे जानवरों से भी हो जाया करती थी जिनका हम स्वागत न कर सकते थे। कोठरियों में अक्सर बिच्छू घूमा करते थे। कभी वे मेरे बिस्तर पर मिलते या उस किताब में मिलते थे जिसे मैं अचानक उठा लिया करता था। पर आश्चर्य की बात है कि उन्होंने कभी मुझे डंक नहीं मारा। एक बार मैंने एक ज़हरीले बिच्छू को एक डोरे में बाँधकर दीवार पर लटका दिया। थोड़ी ही देर बाद वह वहाँ से भाग खड़ा हुआ। इस स्वतंत्र बिच्छू से दोबारा मिलने की मेरी इच्छा न थी। अतएव मैंने अपनी कोठरी के कोने- कोने में उसकी तलाश की, किंतु वह तो गायब हो चुका था।
मेरी कोठरी में और उसके आस-पास तीन-चार साँप भी पाए गए। एक साँप के मिलने की खबर तो समाचार-पत्रों में भी छप गई थी। इस प्रकार की घटनाओं का मैं स्वागत किया करता था, क्योंकि जेल का जीवन प्रतिदिन एक-सा रहता है और जो घटना इस एक-से जीवन की समरसता को भंग करती है, उसका स्वागत किया जाता है। मैं साँपों का स्वागत नहीं करता। किंतु उनसे डरता भी नहीं हूँ, जैसे अन्य लोग डरते हैं। यद्यपि मैं उनके काटे जाने से डरता हूँ और साँप को देखता हूँ तो उससे अपनी रक्षा भी करता हूँ लेकिन मेरे हृदय में किसी प्रकार की घबराहट या भय पैदा नहीं होता।
जीवों और कीड़े-मकोड़ों से मेरी भेंट जितनी जेल के अंदर हुई उतनी जेल के बाहर नहीं हुई। वे मुझे अपने मित्रों जैसे ही लगे और थे भी। क्योंकि वे मेरे अकेलेपन के संगी-साथी थे।
(पं. जवाहरलाल नेहरू की आत्मकथा से)
शब्दार्थ
कोठरी – छोटा कमरा।, परिचित – जान पहचान का।, कड़ियों – लगाम, छोटी धरन।, फुरसत – खाली समय।, कीड़ा – कीट, रेंगनेवाला या उड़नेवाला जन्तु।, शिकायत – अभियोग।, उजड़ा – बरबाद।, रेंगना- धीरे धीरे चलना, चींटी आदि कीड़ों का चलना।, कीड़े-मकोड़े – कीट पतंग।, दैनिक – प्रतिदिन का।, छेड़छाड़ – हँसी दिल्लगी।, खटमल – खाट या कुर्सियों में होनेवाला कीड़ा।, मच्छर – मशक।, मक्खी – मक्षिका।, निरंतर – लगातार।, गिलहरी – एक प्रकार की चुहिया।, झुंड – दल, समूह।, अठखेलियाँ – खेलकूद।, साहसपूर्वक – हिम्मत से।, गोद – क्रोड़।, गौर – ध्यान, ख्याल।, जरा – थोड़ा, कम।, गेंद – कंदुक, बॉल।, खोना – गँवाना, नष्ट करना।, भयभीत – डरा हुआ।, सुरक्षित – अच्छी तरह, रक्षित।, शोर – कोलाहल।, कैदी – बन्दी।, निश्चिंत – चिंता रहित।, बरामदा – दालान।, टहनी – पेड़ की डाली / शाखा।, फुर्ती – तेजी, जल्दी।, गोल – वृत्ताकार घेरे या परिधि वाला।, सुझाव – सलाह, परामर्श।, स्याही – कालिमा, मसि।, प्रयास – प्रयत्न, कोशिश।, परेशान – व्याकुल, व्यग्र।, कौंधा – बिजली की चमक।, रुई – कपास का रेशा।, नन्हा- छोटा।, प्रसन्न – खुश।, चहेते – बहुत प्यारा।, घोंसला – नीड़, बसेरा।, देर – विलंब।, बैरक – जेलखाने का लंबा कमरा।, नोक-झोंक – परस्पर होनेवाली झड़प, आक्षेप।, सैकड़ों – सौ, कई ।, सर्वश्रेष्ठ – सबसे अच्छा / अच्छी।, बन्दर – कपि, वानर।, किस्में – प्रकार।, वार्डन जेल के वार्ड का रक्षक।, एकाएक – अकस्मात, सहसा, अचानक।, डंडा – मोटी छड़ी।, भेंट – मिलाप, मेल, मिलन।, बिस्तर – बिछौना जहरीला – विषैला।, तलाश – खोज, चाह।, गायब – लुप्त, छिपा हुआ।, अतएव – इसलिए।, समरसता – एक जैसा होने का भाव।, यद्यपि- हालाँकि।, घबराहट – व्याकुलता, अधीरता।, अकेलेपन – एकाकी, निर्जनता।, अक्सर – प्रायः।, बहुधा – अधिकतर।
विचार- बिंदु :
विचार- बिंदु :
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू महान स्वतंत्रता सेनानी थे। स्वतंत्रता आन्दोलन के दिनों में उन्हें अनेक बार जेल जाना पड़ा था। अपने जेल- जीवन के दौरान नेहरूजी ने आस-पास पाये जानेवाले जीव-जन्तुओं का अच्छा अध्ययन किया। इन्हीं अनुभवों को उन्होंने बड़े सरल, सरस और सजीव रूप में यहाँ प्रस्तुत किया है।
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दीजिए:
(क) देहरादून जेल नेहरूजी को किस तरह अपना घर मालूम होने लगा?
उत्तर – नेहरूजी देहरादून जेल की एक कोठरी में लगभग साढ़े चौदह महीने रहे थे। नेहरूजी उस कोठरी के कोने-कोने से परिचित हो गए। सफ़ेद दीवारें, छत और कीड़ों द्वारा खाई हुई कड़ियों पर पड़ी हुई प्रत्येक रेखा और बिंदु को बारीकी से जान गए थे। इसलिए उन्हें लगने लगा कि जैसे यह उनका ही घर हो।
(ख) जेल में दूसरे कार्यों से फुरसत होने के कारण नेहरूजी का क्या अनुभव हुआ है?
उत्तर – जेल में दूसरे कार्यों से फुरसत होने के कारण नेहरूजी को यह अनुभव हुआ है कि वे प्रकृति के अधिक निकट आ चुके हैं। अपने सामने आने-जानेवाले जानवरों और कीड़ों को वे बड़े ध्यान से देखते थे। उन्होंने यह भी अनुभव किया वे अकेले नहीं हैं बल्कि उनका आँगन तो तरह-तरह के जीवों से भरा हुआ था।
(ग) खटमलों, मच्छरों और मक्खियों से नेहरूजी को क्यों निरंतर युद्ध करना पड़ता था?
उत्तर – खटमलों, मच्छरों और मक्खियों से नेहरूजी को निरंतर युद्ध करना पड़ता था। इसका कारण यह था कि ये जीव नेहरू जी को कष्ट पहुँचाया करते थे और अन्य जीव जो नेहरू जी को कष्ट नहीं पहुँचाते थे, वे कभी भी उनके साथ छेड़छाड़ नहीं करते थे।
(घ) गिलहरियों के बारे में नेहरूजी ने क्या लिखा है?
उत्तर – गिलहरियों के बारे में नेहरूजी लिखते हैं कि जहाँ पर वृक्ष थे, वहाँ गिलहरियों के झुंड के झुंड मज़े से घूमते रहते। गिलहरियाँ साहसपूर्वक उनके पास आ जाती थीं। गिलहरियाँ इधर-उधर भागतीं मानो एक-दूसरी से आगे बढ़ने का खेल खेल रही हों। नेहरू जी को उनकी अठखेलियाँ देखने में बड़ा आनंद आता।
(ङ) विभिन्न जेलों में नेहरूजी का किन-किन जीवों से सामना हुआ?
उत्तर – बरेली जेल में नेहरूजी ने किस्म-किस्म के बन्दर देखें। देहरादून में सैकड़ों प्रकार की चिड़ियाँ थीं तथा इसी जेल की कोठरी में उनकी मैना के एक जोड़े से दोस्ती हुई थी। लखनऊ जेल में गिलहरियाँ, नैनी जेल में तोते तथा इसके अतिरिक्त साँप-बिच्छू आदि जीवों से भी उनका सामना हुआ।
(च) तरह-तरह के जीवों के बारे में लेखक ने क्या विचार व्यक्त किए?
उत्तर – लेखक नेहरूजी ने तरह-तरह के जीवों के बारे में यह लिखा है कि जीवों और कीड़े-मकोड़ों से मेरी भेंट जितनी जेल के अंदर हुई उतनी जेल के बाहर नहीं हुई। वे मुझे अपने मित्रों जैसे ही लगे और थे भी क्योंकि वे मेरे अकेलेपन के संगी-साथी थे।
(छ) लेखक इन जीव-जन्तुओं से भयभीत क्यों नहीं था?
उत्तर – लेखक इन जीव-जन्तुओं से भयभीत नहीं होते थे क्योंकि उनका यह मानना था कि ये जीव-जन्तु बेवजह किसी का नुकसान नहीं करते हैं। जब इन्हें यह लगता है कि कोई इनका अहित करने वाला है तो ये आक्रामक हो जाते हैं। मक्खी, मच्छर और खटमल के संदर्भ में ये बातें लागू नहीं होती है।
(ज) गिलहरी के बच्चे को बचाने का क्या उपाय किया गया?
उत्तर – गिलहरी के बच्चे को बचाने का यह उपाय किया गया कि पेन में स्याही भरनेवाली नली के माध्यम से दूध पिलाया जाए। पर जब यह उपाय भी असफल हो गया तो उस नली के दूसरे छोर में रुई लपेटा गया और गिलहरी के बच्चों ने रुई से दूध चूस-चूसकर पी लिया।
(झ) गिलहरी के नन्हें बच्चों को किस तरह दूध पिलाया गया?
उत्तर – गिलहरी के नन्हें बच्चों को दूध पलने के लिए पेन में भरने वाली स्याही की नली में दूध डाला गया और उसके दूसरे सिरे पर रुई लपेटा गया। रुई दूध से गीली हो गई और गिलहरी का नन्हा बच्चा रुई चूसने लगा। चूस-चूसकर बच्चे ने नली का पूरा दूध पी लिया। इसी तरह बाकी दोनों बच्चों को भी दूध पिलाया गया।
(ञ) नेहरूजी ने अल्मोड़ा जेल में रहनेवाले मैना के एक जोड़े के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर – देहरादून जेल की कोठरी में मैना के एक जोड़े ने अपना घोंसला बना रखा था। नेहरूजी उन दोनों को खिलाया-पिलाया करते थे। वे इतने पालतू हो गए थे कि यदि सुबह या शाम उन्हें खाना मिलने में ज़रा-सी देर हो जाती तो वे चुपचाप नेहरू जी के पास बैठ जाते और ज़ोर से चिल्लाकर अपना भोजन माँगने लगते थे। उनकी क्रियाएँ और चिल्लाहट सुनकर नेहरूजी को बड़ा आनंद आता।
(ट) देहरादून जेल में नेहरूजी कैसे भूल जाते थे कि वे जेल में हैं?
उत्तर – देहरादून में सैकड़ों प्रकार की चिड़ियाँ थीं। वे गाती, चहचहाती, मधुर ध्वनि करती थीं। इनमें सर्वश्रेष्ठ कोयल की पुकार रहती थी। उसकी कुहू कुहू की तान सुनकर नेहरूजी इतने आनंदित हो उठते थे। वे ये तक भूल जाते थे कि अभी वे जेल में हैं।
(ठ) बरेली जेल में बन्दरों के साहस की कैसे विजय हुई?
उत्तर – बरेली जेल में एक बंदर का बच्चा बैरक में आ गया और लौटकर फिर दीवार पर न चढ़ सका। वार्डनों और कैदियों ने उसे एक रस्सी से बाँध दिया। ऊँची दीवार के ऊपर से उस बच्चे के माँ-बाप ने यह देखा तो उनका क्रोध बढ़ने लगा। एकाएक उनमें से एक बहुत बड़ा और मोटा बंदर खीं-खीं करता हुआ नीचे कूदा। उसने भीड़ पर सीधा आक्रमण कर दिया। यह बहुत ही बहादुरी का काम था, क्योंकि वार्डन और कैदी हाथों में बड़े-बड़े डंडे घुमा रहे थे। बंदर बच्चे को छुड़ाकर बड़ी शान के साथ ले गया और इस तरह साहस की विजय हुई।
(ड) बरेली जेल के बिच्छू के बारे में नेहरूजी के क्या विचार थे?
उत्तर – बरेली जेल के बिच्छू के बारे में नेहरूजी ने लिखा है कि जेल की कोठरियों में अक्सर बिच्छू घूमा करते थे। कभी वे उनके बिस्तर पर मिलते या उस किताब में मिलते थे जिसे वे अचानक उठा लिया करते थे। पर आश्चर्य की बात है कि उन्होंने कभी उन्हें डंक नहीं मारा। एक बार नेहरू जी ने एक ज़हरीले बिच्छू को एक डोरे में बाँधकर दीवार पर लटका दिया। थोड़ी ही देर बाद वह वहाँ से भाग नेहरूजी ने अपनी कोठरी के कोने- कोने में उसकी तलाश की, किंतु वह तो गायब हो चुका था।
2. निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक या दो वाक्यों में दीजिए :
(क) देहरादून जेल की उस कोठरी में नेहरूजी लगभग कितने महीने रहे?
उत्तर – नेहरूजी देहरादून जेल की उस कोठरी में लगभग साढ़े चौदह महीने रहे थे।
(ख) नेहरूजी जेल में क्या-क्या चीजें पहचानने लगे थे?
उत्तर – नेहरूजी जेल में जिस कोठरी में रहते थे उसके कोने-कोने से परिचित हो गए थे। सफ़ेद दीवारों, छत और कीड़ों द्वारा खाई हुई कड़ियों पर पड़ी हुई प्रत्येक रेखा और बिंदु को वे पहचानने लगे थे।
(ग) जेल में दूसरे कार्यों से फुरसत होने के कारण नेहरूजी किसके अधिक निकट होते चले गए?
उत्तर – जेल में दूसरे कार्यों से फुरसत होने के कारण नेहरूजी प्रकृति के अधिक निकट होते चले गए।
(घ) किससे नेहरूजी को निरंतर युद्ध करना पड़ता था?
उत्तर – नेहरूजी को निरंतर खटमलों, मच्छरों और मक्खियों से युद्ध करना पड़ता था।
(ङ) नेहरूजी को किसकी अठखेलियाँ देखने में बड़ा आनन्द आता था?
उत्तर – नेहरूजी को गिलहरियों की अठखेलियाँ देखने में बड़ा आनन्द आता था।
(च) नेहरूजी लखनऊ जेल में घंटों बैठे क्या करते थे?
उत्तर – नेहरूजी लखनऊ जेल में घंटों बिना हिले-डुले बैठा पढ़ते-लिखते रहते थे।
(छ) गिलहरियों के बच्चे पेड़ की टहनी से नीचे गिर जाने पर उनकी माताएँ क्या करती थीं?
उत्तर – गिलहरियों के बच्चे पेड़ की टहनी से नीचे गिर जाने पर उनकी माताएँ उनके पीछे दौड़ी हुई आतीं और उन्हें गेंद की तरह अपने मुँह में दबाकर सुरक्षित स्थान पर ले जाती थीं।
(ज) नेहरूजी किसलिए चिंतित होने लगे?
उत्तर – गिलहरियों के तीन बच्चे जब पेड़ से नीचे गिर गए और उनकी माताएँ रात हो जाने पर भी उन्हें लेने नहीं आईं तो नेहरूजी चिंतित होने लगे।
(झ) कौन गिलहरी के बच्चे को उठाकर नेहरूजी की कोठरी में ले आया?
उत्तर – जेल का एक अन्य कैदी गिलहरी के बच्चे को उठाकर नेहरूजी की कोठरी में ले आया।
(ञ) पांडे जी आते ही गिलहरी के बच्चों के बारे में क्या बोले?
उत्तर – पांडे जी आते ही गिलहरी के बच्चों के बारे में बोले कि ये बच्चे तो बहुत ही छोटे हैं, न तो ये पत्ते चबा सकते हैं और न ही इन्हें रोटी का चूरा कर खिलाया जा सकता है, इन्हें कैसे जीवित रखा जाएगा।
(ट) जेल में किनका पालन-पोषण करना कठिन समस्या हो गई थी? उत्तर – जेल में गिलहरी के बच्चे का पालन-पोषण करना कठिन समस्या हो गई थी।
(ठ) गिलहरी के बच्चे के बारे में सब क्यों परेशान थे?
उत्तर – गिलहरी के बच्चे के बारे में सब परेशान थे क्योंकि अगर उन्हें जल्दी ही दूध न पिलाया गया तो ये बेचारे मर जाएँगे।
(ड) नेहरूजी की कोठरी में किसने अपना घोंसला बना रखा था?
उत्तर – देहरादून जेल में नेहरूजी की कोठरी में मैना के एक जोड़े ने अपना घोंसला बना रखा था।
(ढ) अल्मोड़ा जेल में नेहरूजी को क्या सुनकर बड़ा आनन्द आता था? उत्तर – अल्मोड़ा जेल में नेहरूजी मैना के एक जोड़े से काफी घुल-मिल गए थे। वे इतने पालतू हो गए थे कि यदि सुबह या शाम उन्हें खाना मिलने में ज़रा-सी देर हो जाती तो वे चुपचाप उनके पास बैठ जाते और ज़ोर से चिल्लाकर अपना भोजन माँगने लगते थे। उनकी ये क्रियाएँ और चिल्लाहट सुनकर बड़ा नेहरूजी को बड़ा आनंद आता।
(ण) बरेली जेल में क्या देखने योग्य थीं?
उत्तर – बरेली जेल में बंदरों का एक दल बसा हुआ था और उनकी किस्में देखने योग्य थीं।
(त) भीड़ पर किसने सीधा आक्रमण किया?
उत्तर – एक बहुत बड़ा और मोटा बंदर खीं-खीं करता हुए दीवार से नीचे कूदा और उसने भीड़ पर सीधा आक्रमण किया।
(थ) नेहरूजी ने अपनी कोठरी में किसकी तलाश की?
उत्तर – नेहरूजी ने अपनी कोठरी में एक स्वतंत्र बिच्छू की तलाश की।
(द) साँप के बारे में नेहरूजी के मन में क्या विचार थे?
उत्तर – साँप के बारे में नेहरूजी के मन में ये विचार थे कि वे साँपों से डरते नहीं थे। यद्यपि उनके काटे जाने का भय उनमें था। वे साँप को देखकर उनसे अपनी अपनी रक्षा भी करते थे लेकिन उनके हृदय में किसी प्रकार की घबराहट या भय पैदा नहीं होता था।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखिए।
(क) यह निबंध किसकी आत्मकथा का अंश है?
(i) महात्मा गांधी
(ii) जवाहरलाल नेहरू
(iii) लोकमान्य तिलक
(iv) स्वामी विवेकानन्द
उत्तर – (ii) जवाहरलाल नेहरू
(ख) जेल में दूसरे कार्यों से फुरसत होने के कारण लेखक किसके अधिक निकट होता था?
(i) प्रकृति
(ii) सूर्य
(iii) अमीर आदमी
(iv) जेल के अधिकारी
उत्तर – (i) प्रकृति
(ग) गिलहरियों का कौन-सा काम देखकर लेखक को बड़ा आनंद आता था?
(i) दौड़ना
(ii) सोना
(iii) खेलना
(iv) अठखेलियाँ
उत्तर – (iv) अठखेलियाँ
(घ) लखनऊ जेल में एक गिलहरी लेखक के पैरों पर चढ़कर कहाँ बैठती थी?
(i) सिर
(ii) गोद
(iii) हाथ
(iv) कान
उत्तर – (ii) गोद
(ङ) क्षणभर में जेलर हाथ में क्या लाए?
(i) स्याही
(ii) रोटी
(iii) पानी
(iv) रुई
उत्तर – (iv) रुई
(च) गिलहरी के बच्चों ने चूस चूसकर क्या पिया?
(i) पानी
(ii) दूध
(iii) दही
(iv) लस्सी
उत्तर – (ii) दूध
(छ) अलमोड़ा जेल में नेहरूजी की कोठरी में किसका एक जोड़ा था?
(i) कबूतर
(ii) मैना
(iii) तोता
(iv) कौआ
उत्तर – (ii) मैना
(ज) देहरादून जेल में सैकड़ों प्रकार की क्या थी?
(i) मैना
(ii) तोता
(iii) चिड़ियाँ
(iv) गिलहरी
उत्तर – (iii) चिड़ियाँ
(झ) बरेली जेल में किसकी विजय हुई?
(i) बहादूरी
(ii) साहस
(iii) कायरता
(iv) दुर्बलता
उत्तर – (ii) साहस
(ञ) बरेली जेल की कोठरियों में अक्सर क्या घूमा करते थे?
(i) साँप
(ii) बिच्छू
(iii) बन्दर
(iv) चूहे
उत्तर – (ii) बिच्छू
(ट) लेखक को भिन्न-भिन्न जेलों में क्यों रहना पड़ा?
(i) उनके लेख आपत्तिजनक थे।
(ii) उनके पास रहने का कोई घर नहीं था।
(iii) वे जेलों के जीवन का अध्ययन कर रहे थे।
(iv) वे अंग्रेजो के विरुद्ध थे।
उत्तर – (iv) वे अंग्रेजो के विरुद्ध थे।
(ठ) लेखक के अनुसार जेल का जीवन कैसा होता है?
(i) आनंदित करनेवाला
(ii) विविधतापूर्ण
(iii) मौज़ – मस्ती भरा
(iv) प्रतिदिन एक सा
उत्तर – (iv) प्रतिदिन एक सा
(ड) लेखक का जेल की कोठरियों में मिले जीवों से कैसा संबंध नहीं था?
(i) सद्भावनापूर्ण
(ii) प्रेमपूर्ण
(iii) मित्रता का
(iv) भय का
उत्तर – (iv) भय का
भाषा – ज्ञान
1. उदाहरण के अनुसार वचन बदलिए।
एकवचन बहुवचन वचन का कारक / विभक्ति सहित रूप
उदाहरण :
गिलहरी गिलहरियाँ गिलहरियों ने
मक्खी मक्खियाँ मक्खियों के
कोठरी कोठरियाँ कोठरियों में
दीवार दीवारें दीवारों पर
आँख आँखें आँखों में
माता माताएँ माताओं को
रेखा रेखाएँ रेखाओं में
बोतल बोतलें बोतलों में
कीड़ा कीड़े कीड़ों ने
बच्चा बच्चे बच्चों को
चिड़िया चिड़ियाँ चिड़ियों ने
रस्सी रस्सियाँ रस्सियों से
महीना महीने महीनों में
बरामदा बरामदे बरामदों में
रोटी रोटियाँ रोटियों से
2. सुबह पक्षी घोंसले से बाहर निकलते हैं।
शाम को गायें घर लौटती हैं
ऊपर के वाक्यों में सुबह का विलोम/विपरीत शब्द शाम है। उसी प्रकार बाहर का विलोम/विपरीत शब्द घर है। उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित के विलोम/विपरीत शब्द लिखिए:
दूर – पास
अपरिचित – परिचित
शान्ति – अशांति
पास – दूर
अपना – पराया
स्वतंत्र – परतंत्र
देर – जल्दी
सरल – कठिन
असुरक्षित – सुरक्षित
ऊपर – नीचे
भरा – खाली
बड़ा – छोटा
अनेक – एक
कठोर – मुलायम
पालतू – आवारा
सीधा – टेढ़ा
3. –पेड़ के नीचे नेहरूजी बैठे हैं।
– गिलहरी मुँह की ओर देखने लगती।
– कोठरी के अंदर साँप घुस आया।
उपर के वाक्यों में ‘के नीचे‘, ‘की ओर‘, ‘के अंदर‘ शब्द पेड़, गिलहरी, कोठरी के साथ आए हैं। ये शब्द क्रमश: नेहरूजी, मुँह, साँप से इनका संबंध बता रहे हैं।
जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम के साथ लगकर उनका संबंध वाक्य के अन्य शब्दों के साथ बताएँ, वे संबंधबोधक अव्यय कहलाते हैं। सामान्य रूप से ‘के‘ से संबंधबोधक शब्दों की पहचान की जा सकती है।
कुछ संबंधबोधक शब्द : के आगे, के पीछे, के बाहर, के सामने, के बहाने, के विपरीत, के मार्फत, की ओर, की तरह, की भाँति आदि।