कहानीकार का परिचय :
जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 ईं में हुआ। उनके पिता सुंघनी साहू मशहूर तम्बाकू व्यापारी थे। वे व्यवसाय करते थे, लेकिन लिखते थे काव्य-कविता। क्योंकि उनके पिता देवीप्रसाद विद्वानों- गुणीजनों का आदर करते थे। प्रसादजी को उच्च शिक्षा नहीं मिली। उन्होंने घर पर हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी पढ़ी | माता-पिता का जल्दी देहान्त हो गया। इसलिए उन्हें किशोरावस्था से ही पारिवारिक भार उठाना पड़ा। सन् 1937 ई. को 48 वर्ष की उम्र में ही उनका निधन हो गया।
प्रसाद जी मानव – मन के पारखी थे; प्रकृति के सुन्दर दृश्यों से मोहित थे। उन्होंने मानव के प्रेम, इच्छा, आकांक्षाओं का मार्मिक वर्णन किया। वे भारतीय इतिहास तथा संस्कृति के उद्गाता थे। उन्होंने अच्छे ऐतिहासिक नाटक लिखे, सुन्दर कहानियाँ लिखीं, तीन उपन्यास भी लिखे हैं।
प्रसाद की रचनाएँ इस प्रकार हैं–
काव्य
‘कानन कुसुम’ प्रसाद की प्रारंभिक कविताओं का प्रथम संग्रह है। अन्य काव्य- कृतियों में चित्राधार, प्रेम-पथिक, महाराजा का महत्त्व, करुणामय, झरना, लहर, आँसू और कामायनी उल्लेखनीय हैं।
नाटक
एक घूँट, कामना, विशाख, राजश्री, जनमेजय का नागयज्ञ, अजातशत्रु, ध्रुवस्वामिनी, स्कन्दगुप्त और चन्द्रगुप्त।
कहानी-संग्रह
छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आंधी और इन्द्रजाल।
उपन्यास
कंकाल, तितली और इरावती।
आलोचनात्मक निबंध –
‘काव्यकला’ तथा अन्य निबंध |
ममता
ममता
रोहतास-दुर्ग के प्रकोष्ठ में बैठी हुई युवती ममता, शोण के तीक्ष्ण गम्भीर प्रवाह को देख रही थी। ममता विधवा थी। उसका यौवन शोण के समान ही उमड़ रहा था। मन में वेदना, मस्तक में आँधी, आँखों में पानी की बरसात लिए वह सुख के कंटक – शयन में विकल थी। वह रोहतास दुर्गपति के मंत्री चूड़ामणि की अकेली दुहिता थी। फिर उसके लिए कुछ अभाव का होना असंभव था, परन्तु वह विधवा थी। हिन्दू विधवा संसार में सबसे तुच्छ, निराश्रय प्राणी है तब विडम्बना का कहाँ अन्त था?
चूड़ामणि ने चुपचाप उस प्रकोष्ठ में प्रवेश किया। शोण के प्रवाह में वह अपना जीवन मिलाने में बेसुध थी। पिता का आना न जान सकी। चूड़ामणि व्यथित हो उठे स्नेहपालिता पुत्री के लिए क्या करें; यह स्थिर न कर सकते थे। लौटकर बाहर चले गए। ऐसा प्राय: होता, पर आज मंत्री के मन में बड़ी दुश्चिन्ता थी। पैर सीधे न पड़ते थे।
एक पहर रात बीत जाने पर फिर वे ममता के पास आये। उस समय उनके पीछे दस सेवक चाँदी के बड़े थालों में कुछ लिए खड़े थे, कितने ही मनुष्यों के पद-शब्द सुन ममता ने घूम कर देखा। मंत्री ने सब थालों के रखने का संकेत किया। अनुचर थाल रखकर चले गए।
ममता ने पूछा
“यह क्या है पिताजी?”
“तेरे लिए बेटी, उपहार है।”यह कहकर चूड़ामणि ने आवरण उलट दिया। सुवर्ण का पीलापन उस सुनहली संध्या में विकीर्ण होने लगा। ममता चौंक उठी…
“इतना स्वर्ण ! यह कहाँ से आया?”
“चुप रहो ममता ! यह तुम्हारे लिए हैं।”
“तो क्या आपने म्लेच्छ का उत्कोच स्वीकार कर लिया? पिताजी ! यह अर्थ नहीं, अनर्थ है। लौटा दीजिए। पिताजी ! हम लोग ब्राह्मण हैं, इतना सोना लेकर क्या करेंगे?”
“इस पतनोन्मुख प्राचीन सामन्त – वंश का अन्त समीप है, बेटी; किसी भी दिन शेरशाह रोहतास पर अधिकार कर सकता है। उस दिन मंत्रित्व न रहेगा, तब के लिए बेटी !”
“हे भगवान् ! तब के लिए ! विपद् के लिए इतना आयोजन ! परमपिता की इच्छा के विरुद्ध इतना साहस? पिताजी, क्या भीख न मिलेगी? क्या कोई हिन्दू भू-पृष्ठ पर न बचा रह जाएगा, जो ब्राह्मण को दो मुट्ठी अन्न दे सके? असम्भव है। फेर दीजिए पिताजी ! मैं काँप रही हूँ- इसकी चमक आँखों को अन्धा बना रही है।”
“मूर्ख है”- कहकर चूड़ामणि चले गये।
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दूसरे दिन जब डोलियों का ताँता भीतर आ रहा था, ब्राह्मण मंत्री चूड़ामणि का हृदय धक् धक् करने लगा। वह अपने को न रोक सका। उसने जाकर रोहतास-दुर्ग के तोरण पर डोलियों का आवरण खुलवाना चाहा। पठानों ने कहा- “यह महिलाओं का अपमान करना है।”
बात बढ़ गयी। तलवारें खिंचीं, ब्राह्मण मंत्री वहीं मारा गया और राजा, रानी तथा कोष सब छली शेरशाह के हाथ पड़े; निकल गयी ममता। डोली में भरे हुए पठान सैनिक दुर्ग भर में फैल गये, पर ममता न मिली।
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काशी के उत्तर धर्मचक्र बिहार मौर्य और गुप्त सम्राटों की कीर्त्ति का खंडहर था – भग्नचूड़ा, तृणा-गुल्मों से ढके हुए प्राचीर ईंटों के ढेर में बिखरी हुई भारतीय शिल्प की विभूति, ग्रीष्म रजनी की चन्द्रिका में अपने को शीतल कर रही थी।
जहाँ पंचवर्गीय भिक्षु गौतम का उपदेश ग्रहण करने के लिए पहले मिले थे, उसी स्तूप के भग्नावशेष की मलिन छाया में एक झोंपड़ी के दीपालोक में एक स्त्री पाठ कर रही थी-
‘अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।”
पाठ रुक गया। एक भीषण और हताश आकृति दीप के मंद प्रकाश में सामने खड़ी थी। स्त्री उठी, उसने कपाट बन्द करना चाहा; परन्तु व्यक्ति ने कहा-
“माता ! मुझे आश्रय चाहिए।”
“तुम कौन हो?” स्त्री ने पूछा।
“मैं मुगल हूँ। चौसा- युद्ध में शेरशाह से विपन्न होकर रक्षा चाहता हूँ। इस रात अब आगे चलने में असमर्थ हूँ।”
“क्या शेरशाह से?” स्त्री ने अपने होंठ काट लिये।
“हाँ, माता !”
“परन्तु तुम भी वैसे ही क्रूर हो। वही भीषण रक्त की प्यास, वही निष्ठुर प्रतिबिम्ब तुम्हारे मुख पर भी है। सैनिक ! मेरी कुटी में स्थान नहीं। जाओ, कहीं दूसरा आश्रय खोज लो।”
“गला सूख रहा है, साथी छूट गए हैं, अश्व गिर पड़ा है – इतना थका हुआ हूँ, इतना !”कहते वह व्यक्ति धम से बैठ गया और उसके सामने ब्रह्माण्ड घूमने लगा। स्त्री ने सोचा, यह विपत्ति कहाँ से आयी; उसने जल दिया। मुगल के प्राणों की रक्षा हुई। वह सोचने लगी-
“सब विधर्मी दया के पात्र नहीं – मेरे पिता का वध करने वाले आततायी!” घृणा से उसका मन विरक्त हो गया।
स्वस्थ होकर मुगल ने कहा- “माता ! तो फिर मैं चला जाऊँ?”
स्त्री विचार कर रही थी – “मैं ब्राह्मण हूँ, मुझे तो अपने धर्म – अतिथि देव की उपासना का पालन करना चाहिए; परन्तु यहाँ ……. नहीं नहीं, यह सब विधर्मी दया के पात्र नहीं; परन्तु यह दया तो नहीं कर्त्तव्य करना है। तब?”
मुगल अपनी तलवार टेक कर उठ खड़ा हुआ। ममता ने कहा – “क्या आश्चर्य है कि तुम भी छल करो।”
“छल ! नहीं, तब नहीं स्त्री ! जाता हूँ, तैमूर का वंशधर स्त्री से छल करेगा ! जाता हूँ, भाग्य का खेल है।”
ममता ने मन में कहा – “यहाँ कौन दुर्ग है ! यही झोंपड़ी है, जो चाहे ले ले। मुझे तो अपना कर्त्तव्य करना पड़ेगा।” वह बाहर चली आयी और मुगल से बोली, “जाओ भीतर, थके हुए भयभीत पथिक ! तुम चाहे कोई हो, मैं तुम्हें आश्रय देती हूँ | मैं ब्राह्मण- कुमारी हूँ, सब अपना धर्म छोड़ दें तो मैं भी क्यों छोड़ दूँ?”
मुगल ने चन्द्रमा के मंद प्रकाश में वह महिमामय मुखमंडल देखा। उसने मन ही मन नमस्कार किया। ममता पास की टूटी हुई दीवारों में चली गयी। भीतर थके पथिक ने झोंपड़ी में विश्राम किया।
प्रभात में खंडहर की संधि से ममता ने देखा, सैकड़ों अश्वारोही उस प्रान्त में घूम रहे हैं। वह अपनी मूर्खता पर अपने को कोसने लगी।
अब उस झोंपड़ी से निकल कर उस पथिक ने कहा – “मिरजा ! मैं यहाँ हूँ।”
शब्द सुनते ही प्रसन्नता की चीत्कार – ध्वनि से वह प्रान्त गूँज उठा। ममता अधिक भयभीत हुई। पथिक ने कहा- “वह स्त्री कहाँ है? उसे खोज निकालो।” ममता छिपने के लिए अधिक सचेष्ट हुई। वह मृगदाव में चली गयी। दिन भर उसमें से न निकली। संध्या को जब उनके जाने का उपक्रम हुआ, तो ममता ने सुना, पथिक घोड़े पर सवार होते हुए कह रहा था – “मिरजा ! उस स्त्री को मैं कुछ भी न दे सका। उसका घर बनवा देना, क्योंकि विपत्ति में मैंने यहाँ आश्रय पाया था। यह स्थान भूलना मत।”- इसके बाद वे चले गये।
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चौसा के मुगल-पठान युद्ध को बहुत दिन बीत गये। ममता अब सत्तर वर्ष की वृद्धा है। वह अपनी झोंपड़ी में एक दिन पड़ी थी। शीतकाल का प्रभाव था। उसका जीर्ण कंकाल खाँसी से गूँज रहा था। ममता की सेवा के लिए गाँव की दो-तीन स्त्रियाँ उसे घेर कर बैठी थीं, क्योंकि वह आजीवन सब के सुख – दुःख की सहभागिनी रही।
ममता ने जल पीना चाहा। एक स्त्री ने सीपी से जल पिलाया। सहसा एक अश्वारोही उसी झोंपड़ी के द्वार पर दिखायी पड़ा। वह अपनी धुन में कहने लगा “मिरजा ने जो चित्र बनाकर दिया है, वह तो इसी जगह का होना चाहिए। वह बुढ़िया मर गई होगी। अब किससे पूछें कि एक दिन शाहंशाह हुमायूँ किस छप्पर के नीचे बैठे थे? यह घटना भी तो सैंतालीस वर्ष से ऊपर की हुई।”
ममता ने अपने विकल कानों से सुना। उसने पास की स्त्री से कहा – “बुलाओ।”
अश्वारोही पास आया। ममता ने रुक-रुक कर कहा- “मैं नहीं जानती वह शाहंशाह था या साधारण मुगल; पर एक दिन इसी झोंपड़ी के नीचे वह रहा था। मैंने सुना था, वह मेरा घर बनाने की आज्ञा दे गया था। मैं आजीवन अपनी झोंपड़ी खुदवाने के डर से भयभीत रही थी।”
“भगवान ने सुन लिया, मैं आज इसे छोड़े जाती हूँ। अब तुम इसका मकान बनाओ या महल; मैं अपने चिर विश्राम गृह में जाती हूँ।”
वह अश्वारोही अवाक् खड़ा था। बुढ़िया के प्राण – पक्षी अनन्त में उड़ गये।
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वहाँ एक अष्टकोण मन्दिर बना और उस पर शिलालेख लगाया गया-
“सातों देशों के नरेश हुमायूँ ने एक दिन यहाँ विश्राम किया था। उनके पुत्र अकबर ने उसकी स्मृति में यह गगनचुम्बी मन्दिर बनवाया।”
पर उसमें ममता का कहीं नाम न था।
शब्दार्थ
शोण – एक नदी का नाम।, विकल – व्याकुल।, बेसुध – बेहोश, मग्न।, विकीर्ण – फैला या छितराया हुआ।, म्लेच्छ – मनुष्यों की वे जातियाँ जिनमें धर्म न हो।, उत्कोच – घूस या रिश्वत।, डोली – एक प्रकार की सवारी जिसे कहार कन्धों पर लेकर चलते हैं।, ताँता – कतार।, कोष – संचित धन।, पठान – अफगानिस्तान और पश्चिम पाकिस्तान के बीच बसी हुई एक मुसलमान जाति जो वीरता, कठोरता आदि के लिए प्रसिद्ध है।, मुगल- मंगोल देश का निवासी, मुसलमानों का एक वर्ग।, धर्मचक्र – धर्म का समूह।, तृणगुल्म – कई शाखाओं में होकर निकलनेवाली घास।, चन्द्रिका – चाँदनी।, स्तूप – एक दूह या टीला जिसके नीचे भगवान् बुद्ध की अस्थि, दाँत, केश आदि स्मृति चिह्न सुरक्षित हों।, कपाट – किवाड़, पट, दरवाजा।, खण्डहर – किसी टूटे हुए या गिरे हुए मकान का बना हुआ भाग।, मृगदाव – काशी के पास ‘सारनाथ‘ नामक स्थान का प्राचीन नाम।, सीपी – कड़े आवरण के भीतर रहनेवाला शंख, घोंघा आदि की जाति का एक जल-जन्तु।
विचार-बिन्दु :
‘ममता’ जयशंकर प्रसाद की एक सुप्रसिद्ध कहानी है। रोहतास दुर्ग के ब्राह्मण – मंत्री चूड़ामणि की विधवा बेटी ममता के माध्यम से कहानीकार ने भारतीय संस्कृति और पारंपरिक मूल्यबोध को दिखाया है।
ममता मध्ययुग के रोहतास दुर्ग के ब्राह्मण-मंत्री चूड़ामणि की विधवा पुत्री है। उसकी माता का पहले ही देहान्त हो चुका है। स्नेहपालिता पुत्री का दुख कुछ कम करने के लिए पिता चूड़ामणि पठानों से प्राप्त स्वर्ण- मुद्रा भेंट करते हैं; पर ममता यह कहकर कि ‘हम लोग ब्राह्मण हैं, इतना सोना लेकर क्या करेंगे’ यह भेंट ठुकरा देती है। कुछ दिनों के पश्चात् पठानों से हुए संघर्ष में ममता के पिता मारे जाते हैं। दुर्ग पर शेरशाह का अधिकार हो जाता है। ममता भाग निकलती है और एक बौद्ध मठ के खण्डहरों में जा छिपती है।
आगे चलकर मुगल बादशाह हुमायूँ चौसा- युद्ध में शेरशाह से हारकर एक रात को ममता की झोंपड़ी में पहुंचते हैं और आश्रय की भिक्षा मांगते हैं। ‘अतिथि देवो भव’ – इसी भारतीय सांस्कृतिक परंपरा के नाम पर ममता हुमायूँ का परिचय मालूम न होते हुए भी उन्हें उस झोंपड़ी में आश्रय देती है एवं स्वयं पास की टूटी दीवारों में चली जाती है। दूसरे दिन सुबह हुमायूँ ममता की खोज करने का आदेश सैनिकों को देते हैं, पर ममता कहीं नहीं मिलती। तब उस झोंपड़ी के स्थान पर एक घर बनाने का आदेश मिरजा को देते हुए हुमायूँ लौट जाते हैं।
फिर 47 सालों के बाद अकबर जब मुगल बादशाह बनते हैं, तब उनकी आज्ञा से मिरजा ममता का घर बनवाने के लिए आते हैं। उस समय ममता 70 साल की वृद्धा है। मुगलों को अपनी झोंपड़ी सौंपकर ममता स्वर्ग सिधार जाती है। उस स्थान पर हुमायूँ की स्मृति में एक अष्टकोण मन्दिर बनवाया तो जाता है, पर कहीं भी उस मन्दिर पर ममता का
नाम लिखा नहीं जाता।
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दीजिए।
(क) ‘ममता‘ कहानी का सारमर्म अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – जयशंकर प्रसाद जी की अमर कृति ‘ममता’ इतिहास के उस दौर की सच्चाई हम पाठकों के सामने लाता है जब ममता नाम की एक ब्राह्मण विधवा महिला ने अपनी कुटी में मुगल शहंशाह हुमायूँ को शरण देकर उनके प्राणों की रक्षा की थी। इस घटना के 47 साल बाद अकबर के आदेश पर उस जगह एक भव्य अष्टकोण मन्दिर बनवाया गया पर ममता के नाम का उल्लेख वहाँ कहीं नहीं था।
(ख)‘ममता‘ कहानी का मुख्य चरित्र कौन है? उसकी चारित्रिक विशेषताओं को बताइए।
उत्तर – ‘ममता‘ कहानी का मुख्य चरित्र स्वयं ममता ही है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ कुछ इस प्रकार की है –
ईमानदार – वह अपने पिता द्वारा लाए गए स्वर्ण को लौटा देने की बात कहकर अपनी ईमानदारी का प्रमाण देती है।
धर्म परायण – तत्कालीन हिन्दू मान्यता के अनुसार विधवा होने पर वह पुनर्विवाह नहीं करके अपने धर्म-परायणता को सिद्ध करती है।
भारतीय संस्कृति की वाहिका- हुमायूँ को अपने कुटी में शरण देकर वह अतिथि देवो भव: की परंपरा का पालन करती है।
(ग) इस कहानी से आपको क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर – यह कहानी हमें यह सिखाती हैं कि हमें अपने ऊपर किसी का ऋण नहीं रखना चाहिए। हमें सदैव जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। हमें कभी भी अपने स्वाभिमान को खंडित नहीं होने देना चाहिए।
(घ) इस कहानी में लेखक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – जयशंकर प्रसाद जी अपने इस ऐतिहासिक कहानी के माध्यम से पाठकों को भारतीय संस्कृति के गौरवशाली दौर से परिचित कराना चाहते हैं। उन्हें भारतीय नारियों की कर्तव्यनिष्ठा और सत्यनिष्ठा से अवगत कराना चाहते हैं। लेखक यह भी चाहते हैं कि उस अष्टकोण मंदिर के शिलालेख में ममता का नाम भी आए।
2. निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक या दो वाक्यों में दीजिए।
(क) रोहतास दुर्ग के प्रकोष्ठ में बैठी हुई युवती ममता किसे देख रही थी?
उत्तर – रोहतास-दुर्ग के प्रकोष्ठ में बैठी हुई युवती ममता, शोण नदी के तीक्ष्ण गम्भीर प्रवाह को देख रही थी।
(ख) ममता का यौवन किसके समान उमड़ रहा था?
उत्तर – ममता का यौवन शोण नदी के समान ही उमड़ रहा था।
(ग) संसार में सबसे तुच्छ निराश्रय प्राणी कौन है?
उत्तर – संसार में सबसे तुच्छ निराश्रय प्राणी हिन्दू विधवा संसार है।
(घ) चूड़ामणि क्यों व्यथित हो गये?
उत्तर – चूड़ामणि व्यथित हो उठे क्योंकि उनकी स्नेहपालिता पुत्री ममता यौवनावस्था में ही वैधव्य जीवन व्यतीत कर रही थी और वे अपनी पुत्री के लिए कुछ भी नहीं कर पा रहे थे।
(ङ) ममता ने पिता का उपहार क्यों स्वीकार नहीं किया?
उत्तर – ममता धर्म से हिन्दू और जाति से ब्राह्मण थी। ब्राह्मणों के लिए आवश्यकता से अधिक धन रखना वर्जित हुआ करता था। इसलिए ममता ने पिता का उपहार स्वीकार नहीं किया
(च) चूड़ामणि का हृदय क्यों धक् धक् करने लगा?
उत्तर – रोहतास-दुर्ग में डोलियों का ताँता भीतर आ रहा था, जिसमें पठान छिपे बैठे थे। यह अनुभव करके ब्राह्मण मंत्री चूड़ामणि का हृदय धक् धक् करने लगा।
(छ) ब्राह्मण – मंत्री कैसे मारा गया?
उत्तर – ब्राह्मण मंत्री चूड़ामणि रोहतास-दुर्ग के तोरण पर डोलियों का आवरण खुलवाना चाह रहा था इस पर पठानों आपत्ति जताई। फिर बात बढ़ गई। तलवारें खिंचीं और ब्राह्मण मंत्री वहीं मारा गया।
(ज) मौर्य और गुप्त सम्राटों की कीर्त्ति का खण्डहर कहाँ था?
उत्तर – काशी के उत्तर धर्मचक्र, बिहार मौर्य और गुप्त सम्राटों की कीर्त्ति के खंडहर थे।
(झ) भारतीय शिल्प की विभूति कहाँ बिखरी हुई थी?
उत्तर – काशी और बिहार में स्थित मौर्य और गुप्त कालीन खंडहर के भग्नचूड़ा, तृणा-गुल्मों से ढके हुए प्राचीर ईंटों के ढेर में भारतीय शिल्प की विभूति बिखरी हुई है।
(ञ) ‘सब विधर्मी दया के पात्र नहीं‘ – ऐसा ममता ने क्यों कहा?
उत्तर – ‘सब विधर्मी दया के पात्र नहीं‘ – ममता ने ऐसा कहा क्योंकि उसके पिताजी की मृत्यु का कारण वही आश्रय इच्छुक (हुमायूँ) व्यक्ति था।
(ट) स्त्री क्या विचार कर रही थी
उत्तर – स्त्री विचार कर रही थी – “मैं ब्राह्मण हूँ, मुझे तो अपने धर्म – अतिथि देव की उपासना का पालन करना चाहिए।
(ठ) ममता ने मन में क्या कहा?
उत्तर – ममता ने मन में आश्रय पाने वाले व्यक्ति से कहा – “यहाँ कौन दुर्ग है ! यही झोंपड़ी है, जो चाहे ले ले। मुझे तो अपना कर्त्तव्य करना पड़ेगा।”
(ड) किसके प्रकाश में मुगल ने ममता का मुखमण्डल देखा?
उत्तर – मुगल ने चन्द्रमा के मंद प्रकाश में ममता का महिमामय मुखमंडल देखा।
(ढ) ममता ने मुगल से क्या कहा?
उत्तर – ममता ने मुगल से कहा कि तुम भीतर जाओ, थके हुए भयभीत पथिक ! तुम चाहे कोई हो, मैं तुम्हें आश्रय देती हूँ। मैं ब्राह्मण- कुमारी हूँ, सब अपना धर्म छोड़ दें तो मैं भी क्यों छोड़ दूँ?”
(ण) प्रभात में खण्डहर की सन्धि से ममता ने क्या देखा?
उत्तर – प्रभात में खंडहर की संधि से ममता ने देखा कि सैकड़ों अश्वारोही उस प्रान्त में घूम रहे हैं।
(त) किस युद्ध को बहुत दिन बीत गये?
उत्तर – चौसा के मुगल-पठान युद्ध को बहुत दिन बीत गये।
(थ) हुमायूँ ने एक दिन कहाँ विश्राम किया था?
उत्तर – हुमायूँ ने एक रात ममता की कुटिया में विश्राम किया था।
(द) हुमायूँ कौन था? उसका युद्ध किससे और कहाँ हुआ?
उत्तर – हुमायूँ मुगल शहंशाह था और उसका युद्ध चौसा में पठान शेरशाह से हुआ था।
(ध) हुमायूँ ने मिरजा से क्या करने के लिए कहा?
उत्तर – हुमायूँ ने मिरजा से ममता का घर बनवा देने के लिए कहा था क्योंकि हुमायूँ ने वहाँ आश्रय पाया था।
(न) ममता ने अश्वारोही से क्या कहा?
उत्तर – ममता ने अश्वारोही से कि मैं नहीं जानती वह शाहंशाह था या साधारण मुगल; पर एक दिन इसी झोंपड़ी के नीचे वह रहा था। मैंने सुना था, वह मेरा घर बनाने की आज्ञा दे गया था। मैं आजीवन अपनी झोंपड़ी खुदवाने के डर से भयभीत रहती थी।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक शब्द में दीजिए।
(क) रोहतास दुर्गपति के मंत्री कौन थे?
उत्तर – चूड़ामणि रोहतास दुर्गपति के मंत्री थे।
(ख) ममता किसकी पुत्री थी?
उत्तर – ममता मंत्री चूड़ामणि की पुत्री थी।
(ग) शोण के प्रवाह में अपना जीवन मिलाने में कौन बेसुध थी?
उत्तर – शोण के प्रवाह में ममता अपना जीवन मिलाने के लिए बेसुध थी।
(घ) सुनहली सन्ध्या में किसका पीलापन विकीर्ण होने लगा?
उत्तर – सुवर्ण का पीलापन उस सुनहली संध्या में विकीर्ण होने लगा।
(ङ) म्लेच्छ का उत्कोच किसने स्वीकार किया था?
उत्तर – मंत्री चूड़ामणि ने म्लेच्छ का उत्कोच स्वीकार किया था।
(च) किसने कहा कि ‘माता‘, मुझे आश्रय चाहिए?
उत्तर – विपन्न हुमायूँ ने कहा कि ‘माता‘, मुझे आश्रय चाहिए।
(छ) कौन-से युद्ध में शेरशाह से विपन्न होकर मुगल रक्षा चाहता था?
उत्तर – चौसा के युद्ध में शेरशाह से विपन्न होकर मुगल रक्षा चाहता था।
(ज) किसने सोचा कि उसे अतिथि देव की उपासना का पालन करना चाहिए?
उत्तर – ममता ने सोचा कि उसे अतिथि देव की उपासना का पालन करना चाहिए
(झ) ‘भाग्य का खेल है‘ – यह वाक्य किसने कहा?
उत्तर – ‘भाग्य का खेल है‘ – यह वाक्य हुमायूँ ने ममता से कहा।
(ञ) सैनिकों के खोजने पर ममता कहाँ चली गयी?
उत्तर – सैनिकों के खोजने पर ममता मृगदाव में चली गई।
(ट) किसका जीर्ण-कंकाल खाँसी से गूँज रहा था?
उत्तर – ममता का जीर्ण-कंकाल खाँसी से गूँज रहा था।
(ठ) ममता की सेवा के लिए गाँव की कितनी स्त्रियाँ उसे घेर कर बैठी थीं?
उत्तर – ममता की सेवा के लिए गाँव की दो-तीन स्त्रियाँ उसे घेर कर बैठी थीं
(ड) कौन अवाक् खड़ा था?
उत्तर – अश्वारोही अवाक् खड़ा था।
(ढ) ममता की झोंपड़ी पर कौन – सा मन्दिर बना?
उत्तर – ममता की झोंपड़ी पर गगनचुंबी अष्टकोण मन्दिर बना।
(ण) सातों देशों का नरेश कौन था?
उत्तर – हुमायूँ सातों देशों का नरेश था।
(त) गगनचुम्बी मन्दिर किसने बनवाया?
उत्तर – अपनी पिता हुमायूँ की इच्छा पूरी करने के उद्देश्य से अकबर ने गगनचुम्बी अष्टकोण मन्दिर बनवाया था।
(थ) किसमें ममता का नाम नहीं था?
उत्तर – गगनचुम्बी अष्टकोण मन्दिर के शिलालेख में ममता का नाम नहीं था।
(द) किसने कहा कि ‘यह महिलाओं का अपमान करना है‘?
उत्तर – पठानों ने मंत्री चूड़ामणि से कहा कि ‘यह महिलाओं का अपमान करना है‘ ।
(ध) ममता को एक स्त्री ने किससे जल पिलाया?
उत्तर – ममता को एक स्त्री ने सीपी से जल पिलाया।
4. निम्नलिखित अवतरणों को पढ़कर उनका आशय स्पष्ट कीजिए।
(क) उसका यौवन शोण के समान ही उमड़ रहा था।
उत्तर – ममता भरे यौवन में ही वैधव्य जीवन व्यतीत कर रही थी। उसका यौवन ठीक उसी तरह उमड़ रहा था जिस तरह शोण नदी। दोनों की साम्यता के कारण ही प्रसाद जी ने ऐसा कहा है।
(ख) शोण के प्रवाह में वह अपना जीवन मिलाने में बेसुध थी।
उत्तर – ममता अपने जीवन से तनिक भी खुश नहीं थी। जिस काल में उसे अपने पति के साथ सावन के झूले झूलने चाहिए थे। उस वयस में वह निराश्रित-सी पीड़ा के संसार में अकेली रह गई थी। इसलिए वह अपनी जीवन लीला समाप्त करने के लिए शोण के प्रवाह में वह अपना जीवन मिलाने में बेसुध थी।
(ग) इस पतनोन्मुख प्राचीन सामन्त वंश का अंत समीप है।
उत्तर – मंत्री चूड़ामणि तत्कालीन सामंत वंश और उनके शासन पद्धति को बखूबी भाँप गए थे कि यह सामन्त वंश अपने पतन के अत्यंत समीप है और समय रहते अगर कुछ न किया गया तो कुछ भी नहीं बचेगा। यही बात वह अपनी बेटी ममता से कहते हैं और ढेर सारी स्वर्ण मुद्राएँ अपने दुर्दिन के लिए संरक्षित कर लेने का सुझाव देते हैं।
(घ) परन्तु तुम भी वैसे ही क्रूर हो। वही भीषण रक्त की प्यास, वही निष्ठुर प्रतिबिम्ब तुम्हारे मुख पर भी है।
उत्तर – आश्रय की अभिलाषा लिए जब हुमायूँ ममता के सामने अनुनय-विनय कर रहा था और ममता के पूछने पर अपना परिचय देता है तो ममता उसे भी आड़े हाथों लेती हुई कहती है कि तुम भी रक्त के प्यासे हो। तुम भी रक्तपात करते हो। तुम भी क्रूर बनकर मासूम लोगों की हत्या करते हो। नृशंसता तुम्हारे चेहरे पर साफ झलक रही है।
(ङ) मैं ब्राह्मण – कुमारी हूँ, सब अपना धर्म छोड़ दें तो मैं भी क्यों छोड़ दूँ?
उत्तर – ये वाक्य ममता के हैं जो इसकी धर्मनिष्ठा को प्रमाणित करती है। उसके पिता की मृत्यु का कारण हुमायूँ शरणागत बनकर उसके सम्मुख आश्रय की याचना कर रहा है। धर्मसंकट में पड़ी ममता ने अतिथि को देवता मानकर उसे रहने के लिए अपनी कुटिया दे ही दी।
(च) उस स्त्री को मैं कुछ भी न दे सका
उत्तर – एक रात ममता की कुटिया में आश्रय लेने के बाद हुमायूँ सुबह जब उस कुटिया से जा रहा था तो उसे इस बात का मलाल था कि उसने आश्रय के बदले में उस महिला को कुछ नहीं दिया। हालाँकि, उसने उस महिला को खोजने की भरपूर कोशिश की पर वह नहीं मिली। इस पर हुमायूँ ने अपने मिरज़ा को हुक्म दिया कि इस कुटिया की जगह एक अच्छा घर बनवा दिया जाए।
(छ) अब तुम इसका मकान बनाओ या महल, मैं अपने चिर विश्राम गृह में जाती हूँ।
उत्तर – ममता उस अश्वारोही से कहती है जो 47 साल बाद अकबर की आज्ञा से उसकी कुटिया को एक मंदिर बनवाने के उद्देश्य से वहाँ पहुँचा था। ममता उसे अपनी कुटी दे देती है और कहती है तुम्हें इस जगह जो बनवाना है बनवाओ मैं तो चिर विश्राम गृह अर्थात् मृत्यु को प्राप्त करने जा रही हूँ।
5. निम्नलिखित वाक्यों को ‘किसने‘ और ‘किससे‘ कहा?
(क) क्या आपने म्लेच्छ का उत्कोच स्वीकार कर लिया?
उत्तर – ममता ने अपने पिता चूड़ामणि से कहा
(ख) यह महिलाओं का अपमान करना है।
उत्तर – पठानों ने मंत्री चूड़ामणि से कहा
(ग) माता, मुझे आश्रय चाहिए।
उत्तर – हुमायूँ ने ममता से कहा।
(घ) गला सूख रहा है, साथी छूट गये हैं, अश्व गिर पड़ा है।
उत्तर – हुमायूँ ने ममता से कहा।
(ङ) उस स्त्री को मैं कुछ भी न दे सका।
उत्तर – हुमायूँ ने मिरजा से कहा।
भाषा – ज्ञान
1. प्रस्तुत कहानी में अनेक तत्सम शब्द आये हैं। जैसे – कंटक, दुर्गपति, निराश्रय आदि।
इसी तरह इस पाठ में आए तत्सम शब्दों को छाँटिए और उनका अर्थ लिखिए।
उत्तर – तीक्ष्ण – नुकीला
यौवन – जवानी
वेदना – कष्ट, पीड़ा
शयन – सेज
दुहिता – बेटी
अन्त – समापन
अनुचर – नौकर
समीप – नजदीक
2. निम्नलिखित वाक्यों पर ध्यान दीजिए।
– ‘आँखों में पानी की बरसात लिए वह सुख के कंटक शयन में विकल थी।‘
– ‘तो क्या आपने म्लेच्छ का उत्कोच स्वीकार कर लिया?
उपर्युक्त वाक्यों में ‘बरसात‘ स्त्रीलिंग है और ‘उत्कोच‘ पुल्लिंग है। इसी कारण इन शब्दों के पहले प्रयुक्त विभक्ति का प्रयोग क्रमशः ‘की‘ और ‘का‘ के रूप में हुआ हैI
इसी तरह के वाक्य चुनकर रेखांकित करने के साथ-साथ लिंग बताइए।
उत्तर – प्रभात में खंडहर की संधि से ममता ने देखा, सैकड़ों अश्वारोही उस प्रान्त में घूम रहे हैं।
संधि – स्त्रीलिंग
देखा – पुल्लिंग
उत्तर – शब्द सुनते ही प्रसन्नता की चीत्कार – ध्वनि से वह प्रान्त गूँज उठा।
चीत्कार – स्त्रीलिंग
प्रान्त – पुल्लिंग
3. नीचे लिखे वाक्यों में विराम चिह्न लगाइए।
मैं नहीं जानती कि वह शाहंशाह था या साधारण मुगल पर एक दिन इसी झोंपड़ी के नीचे वह रहा था मैंने सुना था वह मेरा घर बनाने की आज्ञा दे गया था मैं आजीवन अपनी झोंपड़ी खुदवाने के डर से भयभीत रही थी।
उत्तर – “मैं नहीं जानती वह शाहंशाह था या साधारण मुगल; पर एक दिन इसी झोंपड़ी के नीचे वह रहा था। मैंने सुना था, वह मेरा घर बनाने की आज्ञा दे गया था। मैं आजीवन अपनी झोंपड़ी खुदवाने के डर से भयभीत रही थी।”
4. नीचे दिये गये उपसर्ग एवं प्रत्यय – युक्त शब्दों के मूल शब्द बताइए।
प्रकोष्ठ = प्र + कोष्ठ
निराश्रय = निर् + आश्रय
इस तरह के कुछ शब्दों की सूची तैयार कीजिए।
दुश्चिन्ता = दु: + चिंता
पतनोन्मुख = पतन + उन्मुख
मंत्रित्व = मंत्री + त्व
असम्भव = अ + सम्भव
पंचवर्गीय = पंचवर्ग + ईय
असमर्थ = अ + समर्थ
प्रतिबिम्ब = प्रति + बिम्ब
गृहकार्य :
1. मुगल बादशाह हुमायूँ और शेरशाह के बीच हुए चौसा- युद्ध का विवरण इतिहास- पुस्तक से प्राप्त कीजिए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
2. इतिहास में मौर्य और गुप्त सम्राटों की कीर्त्ति की कहानी पढ़िए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
3. ‘ममता‘ कहानी का नाट्य रूप प्रस्तुत करके अपने विद्यालय के वार्षिक उत्सव पर इसका अभिनय कीजिए।
उत्तर – छात्र शिक्षक के दिशानिर्देश में करें।