Hindi Manjari Class IX Hindi solution Odisha Board (TLH) वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन (विज्ञान) धीरंजन मालवे

धीरंजन मालवे का जन्म बिहार के नालंदा जिले के डुवरावाँ गाँव में 9 मार्च 1952 को हुआ। उन्होंने ऊँची डिग्रियाँ हासिल कीं। एम.एस.सी. के साथ एम. बी. ए. और एल. एल. बी. भी पास की। वे आकाशवाणी और दूरदर्शन से जुड़े रहे। वैज्ञानिक जानकारी लोगों तक पहुँचाने का काम किया। कई भारतीय वैज्ञानिकों की संक्षिप्त जीवनियाँ भी लिखीं। ये सब उनकी विश्व-विख्यात भारतीय वैज्ञानिकपुस्तक में समाहित हैं। मालवेजी की भाषा सीधी, सरल और वैज्ञानिक शब्दावली से युक्त है।

पेड़ से सेब गिरते हुए तो लोग सदियों से देखते आ रहे थे, मगर गिरने के पीछे छिपे रहस्य को न्यूटन से पहले कोई और जान नहीं पाया था। ठीक उसी प्रकार विराट समुद्र की नील वर्णीय आभा को भी असंख्य लोग आदिकाल से देखते आ रहे थे, मगर इस आभा पर पड़े रहस्य के परदे को हटाने के लिए हमारे समक्ष उपस्थित हुए सर चंद्रशेखर वेंकट

रामन्।

बात सन् 1921 की है जब रामन् समुद्री यात्रा पर थे। जहाज के डेक पर खड़े होकर नीले समुद्र को निहारना प्रकृति-प्रेमी रामन् को अच्छा लगता था। वे समुद्र की नीली आभा में घंटों खोए रहते। लेकिन रामन् केवल भावुक प्रकृति-प्रेमी ही नहीं थे, उनके अंदर एक वैज्ञानिक की जिज्ञासा भी उतनी ही सशक्त थी। यही जिज्ञासा उनसे सवाल कर बैठी

– ‘आखिर समुद्र का रंग नीला ही क्यों होता है? कुछ और क्यों नहीं?रामन् सवाल का जवाब ढूँढ़ने में लग गए। जवाब ढूँढ़ते ही वे विश्वविख्यात बन गए।

रामन् का जन्म 7 नवंबर सन् 1888 को तामिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नगर में हुआ था। इनके पिता विशाखापत्तनम् में गणित और भौतिकी के शिक्षक थे। पिता इन्हें बचपन से गणित और भौतिकी पढ़ाते थे। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जिन दो विषयों के ज्ञान ने उन्हें जगत प्रसिद्ध बनाया, उनकी सशक्त नींव उनके पिता ने ही तैयार की थी। कॉलेज की पढ़ाई उन्होंने पहले ए. बी. एन. कॉलेज, तिरुचिरापल्ली से और फिर प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास से की। बी. ए. और एम. ए. दोनों ही परीक्षाओं में उन्होंने काफ़ी ऊँचे अंक हासिल किए।

रामन् का मस्तिष्क विज्ञान के रहस्यों को सुलझाने के लिए बचपन से ही बेचैन रहता था। अपने कॉलेज के ज़माने से ही उन्होंने शोधकार्यों में दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था। उनका पहला शोधपत्र फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था। उनकी दिली इच्छा तो यही थी कि वे अपना सारा जीवन शोधकार्यों को ही समर्पित कर दें, मगर उन दिनों शोधकार्य को पूरे समय के कैरियर के रूप में अपनाने की कोई खास व्यवस्था नहीं थी। प्रतिभावान छात्र सरकारी नौकरी की ओर आकर्षित होते थे। रामन् भी अपने समय के अन्य सुयोग्य छात्रों की भाँति भारत सरकार के वित्त विभाग में अफ़सर बन गए। उनकी तैनाती कलकत्ता में हुई।

कलकत्ता में सरकारी नौकरी के दौरान उन्होंने अपने स्वाभाविक रुझान को बनाए रखा। दफ़्तर से फुर्सत पाते ही वे लौटते हुए बहू बाज़ार आते, जहाँ इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंसकी प्रयोगशाला थी। यह अपने आपमें एक अनूठी संस्था थी, जिसे कलकत्ता के एक डॉक्टर महेंद्रलाल सरकार ने वर्षों की कठिन मेहनत और लगन के बाद खड़ा किया था। इस संस्था का उद्देश्य था देश में वैज्ञानिक चेतना का विकास करना। अपने महान् उद्देश्यों के बावजूद इस संस्था के पास साधनों का नितांत अभाव था। रामन् इस संस्था की प्रयोगशाला में कामचलाऊ उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए शोधकार्य करते। यह अपने आपमें एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था, जिसमें एक साधक दफ़्तर में कड़ी मेहनत के बाद बहू बाज़ार की इस मामूली-सी प्रयोगशाला में पहुँचता और अपनी इच्छाशक्ति के ज़ोर से भौतिक विज्ञान को समृद्ध बनाने के प्रयास करता। उन्हीं दिनों वे वाद्ययंत्रों की ओर आकृष्ट हुए। वे वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के पीछे छिपे वैज्ञानिक रहस्यों की परतें खोलने का प्रयास कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने अनेक वाद्ययंत्रों का अध्ययन किया जिनमें देशी और विदेशी, दोनों प्रकार के वाद्ययंत्र थे।

वाद्ययंत्रों पर किए जा रहे शोधकार्यों के दौरान उनके अध्ययन के दायरे में जहाँ वायलिन, चैलो या पियानो जैसे विदेशी वाद्य आए, वहीं वीणा, तानपूरा और मृदंगम् पर भी उन्होंने काम किया। उन्होंने वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर पश्चिमी देशों की इस भ्रांति को तोड़ने की कोशिश की कि भारतीय वाद्ययंत्र विदेशी वाद्यों की तुलना में घटिया

हैं। वाद्ययंत्रों के कंपन के पीछे छिपे गणित पर उन्होंने अच्छा-खासा काम किया और अनेक शोधपत्र भी प्रकाशित किए।

उस ज़माने के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी को इस प्रतिभावान युवक के बारे में जानकारी मिली। उन्हीं दिनों कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का नया पद सृजित हुआ था। मुखर्जी महोदय ने रामन् के समक्ष प्रस्ताव रखा कि वे सरकारी नौकरी छोड़कर कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद स्वीकार कर लें। रामन् के लिए यह एक कठिन निर्णय था। उस ज़माने के हिसाब से वे एक अत्यंत प्रतिष्ठित सरकारी पद पर थे, जिसके साथ मोटी तनख्वाह और अनेक सुविधाएँ जुड़ी हुई थीं। उन्हें नौकरी करते हुए दस वर्ष बीत चुके थे। ऐसी हालत में सरकारी नौकरी छोड़कर कम वेतन और कम सुविधाओंवाली विश्वविद्यालय की नौकरी में आने का फ़ैसला करना हिम्मत का काम

था।

रामन् सरकारी नौकरी की सुख-सुविधाओं को छोड़ सन् 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय की नौकरी में आ गए। उनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख- सुविधाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के शैक्षणिक माहौल में वे अपना पूरा समय अध्ययन, अध्यापन और शोध में बिताने लगे। चार साल बाद यानी सन् 1921 में समुद्र – यात्रा के दौरान जब रामन् के मस्तिष्क में समुद्र के नीले रंग की वजह का सवाल हिलोरें लेने लगा, तो उन्होंने आगे इस दिशा में प्रयोग किए, जिसकी परिणति रामन् प्रभाव की खोज के रूप में हुई।

रामन् ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल या ठोस रवेदार पदार्थ से गुज़रती है तो गुज़रने के बाद उसके वर्ण में परिवर्तन आता है। वजह यह होती है कि एकवर्णीय प्रकाश की किरण के फोटॉन जब तरल या ठोस रवे से गुज़रते हुए इनके अणुओं से टकराते हैं तो इस टकराव के परिणामस्वरूप वे या तो ऊर्जा का कुछ अंश खो देते हैं या पा जाते हैं। दोनों ही स्थितियाँ प्रकाश के वर्ण (रंग) में बदलाव लाती हैं। एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे अधिक ऊर्जा बैंजनी रंग के प्रकाश में होती है। बैंजनी के बाद क्रमश: नीले, आसमानी, हरे, पीले, नारंगी और लाल वर्ण का नंबर आता है। इस प्रकार लाल – वर्णीय प्रकाश की ऊर्जा सबसे कम होती है। एकवर्णीय प्रकाश तरल या ठोस रवों से गुज़रते हुए जिस परिमाण में ऊर्जा खोता या पाता है, उसी हिसाब से उसका वर्ण परिवर्तित हो जाता है।

रामन् की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी। इसका पहला परिणाम तो यह हुआ कि प्रकाश की प्रकृति के बारे में आइंस्टाइन के विचारों का प्रायोगिक प्रमाण मिल गया। आइंस्टाइन के पूर्ववर्ती वैज्ञानिक प्रकाश को तरंग के रूप में मानते थे, मगर आइंस्टाइन ने बताया कि प्रकाश अति सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान है। इन अति सूक्ष्म कणों की तुलना आइंस्टाइन ने बुलेट से की और इन्हें फोटॉननाम दिया। रामन् के प्रयोगों ने आइंस्टाइन की धारणा का प्रत्यक्ष प्रमाण दे दिया, क्योंकि एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्त्तन यह साफ़तौर पर प्रमाणित करता है कि प्रकाश की किरण तीव्रगामी सूक्ष्म कणों के प्रवाह के रूप में व्यवहार करती है।

रामन् की खोज की वजह से पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन सहज हो गया। पहले इस काम के लिए इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था। यह मुश्किल तकनीक है और गलतियों की संभावना बहुत अधिक रहती है। रामन् की खोज के बाद पदार्थों की आणविक और परमाणविक संरचना के अध्ययन के लिए रामन् स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाने लगा। यह तकनीक एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन के आधार पर पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की सटीक जानकारी देती है। इस जानकारी की वजह से पदार्थों का संश्लेषण प्रयोगशाला में करना तथा अनेक उपयोगी पदार्थों का कृत्रिम रूप से निर्माण संभव हो गया है।

रामन् प्रभाव की खोज ने रामन् को विश्व के चोटी के वैज्ञानिकों की पंक्ति में ला खड़ा किया। पुरस्कारों और सम्मानों की तो जैसे झड़ी-सी लगी रही। उन्हें सन् 1924 में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया। सन् 1929 में उन्हें सरकी उपाधि प्रदान की गई। ठीक अगले ही साल उन्हें विश्व के सर्वोच्च पुरस्कार भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें और भी कई पुरस्कार मिले, जैसे रोम का मेत्यूसी पदक, रॉयल सोसाइटी का ह्यूज़ पदक, फ़िलोडेल्फ़िया इंस्टीट्यूट का फ्रैंकलिन पदक, सोवियत रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार आदि। सन् 1954 में रामन् को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्नसे सम्मानित किया गया। वे नोबेल पुरस्कार पानेवाले पहले भारतीय वैज्ञानिक थे। उनके बाद यह पुरस्कार भारतीय नागरिकता वाले किसी अन्य वैज्ञानिक को अभी तक नहीं मिल पाया है। उन्हें अधिकांश सम्मान उस दौर में मिले जब भारत अंग्रेज़ों का गुलाम था। उन्हें मिलनेवाले सम्मानों ने भारत को एक नया आत्म- सम्मान और आत्म-विश्वास दिया। विज्ञान के क्षेत्र में उन्होंने एक नयी भारतीय चेतना को जाग्रत किया।

भारतीय संस्कृति से रामन् को हमेशा ही गहरा लगाव रहा। उन्होंने अपनी भारतीय पहचान को हमेशा अक्षुण्ण रखा। अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि के बाद भी उन्होंने अपने दक्षिण भारतीय पहनावे को नहीं छोड़ा। वे कट्टर शाकाहारी थे और मदिरा से सख्त परहेज रखते थे। जब वे नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने स्टॉकहोम गए तो वहाँ उन्होंने शराब पीने से इनकार किया तो एक आयोजक ने परिहास में उनसे कहा कि रामन् ने जब अल्कोहल पर रामन् प्रभाव का प्रदर्शन कर हमें आह्लादित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, तो रामन् पर अल्कोहल के प्रभाव का प्रदर्शन करने से परहेज़ क्यों?

रामन् का वैज्ञानिक व्यक्तित्व प्रयोगों और शोधपत्र – लेखन तक ही सिमटा हुआ नहीं था। उनके अंदर एक राष्ट्रीय चेतना थी और वे देश में वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन के विकास के प्रति समर्पित थे। उन्हें अपने शुरुआती दिन हमेशा ही याद रहे जब उन्हें ढंग की प्रयोगशाला और उपकरणों के अभाव में काफ़ी संघर्ष करना पड़ा था। इसीलिए उन्होंने एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोध-संस्थान की स्थापना की जो बंगलौर में स्थित है और उन्हीं के नाम पर ‘रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट्नाम से जानी जाती है। भौतिक शास्त्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने इंडियन जरनल ऑफ़ फ़िज़िक्सनामक शोध- पत्रिका प्रारंभ की। अपने जीवन काल में उन्होंने सैकड़ों शोध छात्रों का मार्गदर्शन किया।

जिस प्रकार एक दीपक से अन्य कई दीपक जल उठते हैं, उसी प्रकार उनके शोध – छात्रों ने आगे चलकर काफ़ी अच्छा काम किया। उन्हीं में कई छात्र बाद में उच्च पदों पर प्रतिष्ठित हुए। विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए वे ‘करेंट साइंसनामक एक पत्रिका का भी संपादन करते थे। रामन् प्रभाव केवल प्रकाश की किरणों तक ही सिमटा नहीं था;

उन्होंने अपने व्यक्तित्व के प्रकाश की किरणों से पूरे देश को आलोकित और प्रभावित किया। उनकी मृत्यु 21 नवंबर सन् 1970 के दिन 82 वर्ष की आयु में हुई।

रामन् वैज्ञानिक चेतना और दृष्टि की साक्षात् प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने हमें हमेशा ही यह संदेश दिया कि हम अपने आसपास घट रही विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं की छानबीन एक वैज्ञानिक दृष्टि से करें। तभी तो उन्होंने संगीत के सुर-ताल और प्रकाश की किरणों की आभा के अंदर से वैज्ञानिक सिद्धांत खोज निकाले। हमारे आसपास ऐसी न जाने कितनी ही चीजें बिखरी पड़ी हैं, जो अपने पात्र की तलाश में हैं। ज़रूरत है रामन् के जीवन से प्रेरणा लेने की और प्रकृति के बीच छुपे वैज्ञानिक रहस्य का भेदन करने की।

आभा – चमक।,  जिज्ञासा – जानने की इच्छा।,  नींव – आधार।,  दिलचस्पी – इच्छा, रुचि, आग्रह।,  दिली इच्छा – मन या हृदय की कामना।,  तैनाती – नियुक्ति।,  विश्वविख्यात – संसार में प्रसिद्ध।,  निहारना – देखना।,  असंख्य – अनगिनत।,  बहुत – अधिक।,  रुझान – झुकाव।, इस्तेमाल – व्यवहार।,  भौतिकी – पदार्थ विज्ञान, वह विज्ञान जिसमें तत्त्वों के गुण आदि का विवेचन किया गया हो, (Physics),  शोध – खोज (Research); अनुसंधान।,  तनख्वाह – वेतन।,  माहौल – वातावरण।,  ठोस रवों – बिल्लौर, मणिभ।,  फोटॉन – प्रकाश का अंश।,  एकवर्णीय- एक रंग का।,  ऊर्जा – शक्ति, बल।,  क्रांति – आंदोलन, उलटफेर।,  संरचना – गठन रीति।,  आणविक – अणु संबंधित (Moleculer)।,  परमाणविक – परमाणु से संबंधित(Atomic)।,  अक्षुण्ण – अखंडित।,  आह्लादित – आनंदित।,  इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कापी – अवरक्त स्पेक्ट्रम विज्ञान।,  संश्लेषण – मिलान करना (Synthesis),  कट्टर – दृढ़।,  नोबेल पुरस्कार – यह एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर का सर्वोच्च पुरस्कार है जो साहित्य, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, अर्थशास्त्र तथा शांति के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य के लिए दिया जाता है। नोबेल पुरस्कार के जन्मदाता अल्फ्रेड नोबेल हैं, जिनका जन्म सन 1833 ई. में स्वीडेन स्टॉकहोम नामक स्थान में हुआ था। अल्फ्रेड नोबेल ने सन् 1866 ई. में विध्वंसकारी डायनामाइट का आविष्कार किया था। इस नोबेल पुरस्कार को सर्वप्रथम सन् 1901 ई. में दिया गया।

प्रस्तुत पाठ में नोबेल विजेता प्रथम भारतीय वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रामन् का जीवन वर्णित है। उनके जीवन के संघर्ष की कथा कही गई है। रामन् ने ग्यारह साल की उम्र में मैट्रिक पास किया। फिर विशेष योग्यता के साथ इंटरमीडिएट पास किया। आगे भौतिकी और अंग्रेजी में स्वर्णपदक के साथ बी. ए. और प्रथम श्रेणी में एम. ए. की डिग्री हासिल की। मात्र अट्ठारह साल की उम्र में कोलकाता में भारत सरकार के वित्त विभाग में नौकरी की। उनकी प्रतिभा से उनके अध्यापक भी अभिभूत थे। रामन् भारत में विज्ञान की उन्नति के चिर आकांक्षी थे। भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में उन्होंने नयी खोज की। इसलिए सन् 1930 ई. में उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला। एक मेधावी छात्र से महान वैज्ञानिक तक की रामन् की संघर्षमय जीवन-यात्रा और उनकी उपलब्धियों की जानकारी यह पाठ प्रदान करता है।

(क) रामन् के प्रारंभिक शोध कार्य को आधुनिक हठयोग क्यों कहा गया है?

उत्तर – रामन् के प्रारंभिक शोधकार्य को आधुनिक हठयोग कहा गया है क्योंकि उनकी परिस्थितियाँ बिलकुल विपरीत थीं। वे अत्यधिक महत्त्वपूर्ण तथा व्यस्त नौकरी पर थे। उन्हें हर प्रकार की सुख-सुविधा प्राप्त हो गई थी पर यह उनका  विज्ञान के प्रति प्रेम ही था जिसके कारण कलकत्ता में एक छोटी-सी प्रयोगशाला जहाँ उपकरणों की काफी कमी थी फिर भी वे पूरे मनोयोग से अपने शोधकार्य किया करते थे। 

(ख) रामन्-प्रभाव का परिणाम कैसा रहा?

उत्तर – रामन् की खोज की वजह से पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन सहज हो गया। रामन् की खोज के बाद पदार्थों की आणविक और परमाणविक संरचना के अध्ययन के लिए रामन् स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाने लगा। यह तकनीक एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन के आधार पर, पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की सटीक जानकारी देती है। इस जानकारी की वजह से  पदार्थों का संश्लेषण प्रयोगशाला में करना तथा अनेक उपयोगी पदार्थां का कृत्रिम रूप से निर्माण संभव हो गया है।  

(ग) भारतीय संस्कृति से रामन् का लगाव कैसा था?

उत्तर – भारतीय संस्कृति से रामन् को हमेशा ही गहरा लगाव रहा। उन्होंने अपनी भारतीय पहचान को हमेशा अक्षुण्ण रखा। अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि के बाद भी उन्होंने अपने दक्षिण भारतीय पहनावे को नहीं छोड़ा। वे कट्टर शाकाहारी थे और मदिरा से सख्त परहेज रखते थे।

(घ) देश में वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन के विकास के लिए रामन् ने क्या योगदान दिया?

उत्तर – रामन् के अंदर एक राष्ट्रीय चेतना थी और वे देश में वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन के विकास के प्रति समर्पित थे। उन्हें अपने शुरुआती दिन हमेशा ही याद रहे जब उन्हें ढंग की प्रयोगशाला और उपकरणों के अभाव में काफ़ी संघर्ष करना पड़ा था। इसीलिए उन्होंने एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोध—संस्थान की स्थापना की जो बैंगलोर में स्थित है और उन्हीं के नाम पर ‘रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट’ नाम से जानी जाती है। भौतिक शास्त्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने ‘इंडियन जरनल ऑफ़ फ़िज़िक्स’ नामक शोध—पत्रिका प्रारंभ की। अपने जीवनकाल में उन्होंने सैकड़ों शोध—छात्रों का मार्गदर्शन किया।

(ङ) रामन् को क्या-क्या पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए?

उत्तर – सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् को समय—समय पर निम्नलिखित पुरस्कारों से सम्मानित  किया गया-

i. सन् 1924 में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया।

ii.  सन् 1929 में उन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान की गई।

iii. सन् 1930 उन्हें विश्व के सर्वोच्च पुरस्कार-भौतिकी में नोबेल पुरस्कार-से सम्मानित किया गया।

iv.  रोम का मेत्यूसी पदक प्रदान किया गया।  

v. रॉयल सोसाइटी का ह्यूज़ पदक प्रदान किया गया।

vi. फ़िलोडेल्फ़िया इंस्टीट्यूट का फ्रैंकलिन पदक प्रदान किया गया।

vii. सोवियत रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

viii. सन् 1954 में रामन् को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

(क) पेड़ से सेब गिरने के पीछे छिपे रहस्य को सबसे पहले कौन समझ पाया?

उत्तर – पेड़ से सेब गिरने के पीछे छिपे रहस्य को सबसे पहले सर आइजेक न्यूटन समझ पाए थे।

(ख) रामन् का जन्म कब हुआ था?

उत्तर – रामन् का जन्म 7 नवंबर सन् 1888 को तामिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नगर में हुआ था।

(ग) रामन् के पिता किस विषय के शिक्षक थे?

उत्तर – इनके पिता विशाखापत्तनम् में गणित और भौतिकी के शिक्षक थे।

(घ) रामन् का पहला शोधपत्र किस में प्रकाशित हुआ?

उत्तर – रामन् का पहला शोधपत्र फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था।

(ङ) रामन् को भारत सरकार के किस विभाग में नौकरी मिली?

उत्तर – रामन् को भारत सरकार के वित्त विभाग में नौकरी मिली थी।

(च) डॉक्टर महेन्द्रलाल सरकार ने कौन-सी संस्था खड़ी की थी?

उत्तर – डॉक्टर महेन्द्रलाल सरकार ने इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस संस्था खड़ी की थी।

(छ) रामन् ने कब सरकारी नौकरी छोड़ दी?

उत्तर – रामन् ने 1917 में सरकारी नौकरी छोड़ दी।

(ज) समुद्र – यात्रा पर रामन् कब निकले?

उत्तर – 1921 में रामन् समुद्र – यात्रा पर निकले थे।

(झ) रामन् को कब सरकी उपाधि मिली?

उत्तर – रामन् को सन् 1929 में उन्हें सरकी उपाधि प्रदान की गई।

(ञ) सन् 1954 ई. में रामन् को किस सम्मान से सम्मानित किया गया?

उत्तर – सन् 1954 में रामन् को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्नसे सम्मानित किया गया।

(ट) रामन् की खोज ने किसे सहज बनाया?

उत्तर – रामन् की खोज ने पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन सहज हो गया।

(ठ) रामन् ने रामन् इंस्टीट्यूटकी स्थापना क्यों की?

उत्तर – भौतिक शास्त्र में तरह-तरह के प्रयोगों को पूरा करने के लिए ही रामन् ने रामन् इंस्टीट्यूटकी स्थापना क्यों की।

(क) एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सब से अधिक ऊर्जा बैंजनी रंग के

प्रकाश में होती है। (नीले, बैंजनी, नारंगी, आसमानी )

(ख) रामन् की खोज भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी। (गणित, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान, भौतिक विज्ञान)

(ग) रामन् को सन् 1924 में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया था। (1921, 1929, 1924, 1954)

(घ) रामन् नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय वैज्ञानिक थे।

(दूसरे, तीसरे, पहले, चौथे)

(ङ) रामन् की मृत्यु 82 वर्ष की आयु में हुई। (85, 82, 83, 84)

1. समानार्थी शब्द लिखिए :

समुद्र – अर्णव

दफ्तर – कार्यालय

प्रकाश – उजाला

तलाश – खोज

मेहनत – परिश्रम

जवाब – उत्तर

सवाल – प्रश्न

पेड़ – वृक्ष

फैसला – निर्णय

2. पाठ में आए निम्न शब्दों के लिंग बताइए :

यात्रा – स्त्रीलिंग

समुद्र – पुल्लिंग

जिज्ञासा – स्त्रीलिंग

नींव – स्त्रीलिंग

ऊर्जा – स्त्रीलिंग

आभा – स्त्रीलिंग

दीपक – पुल्लिंग

फैसला – पुल्लिंग

प्रस्ताव – पुल्लिंग

परदा – पुल्लिंग

3. वचन बदलिए :

ध्वनि – ध्वनियाँ

नौकरी – नौकरियाँ

चीज़ – चीज़ें

जिज्ञासा – जिज्ञासाएँ

4. विज्ञान + इक = वैज्ञानिक

यहाँ ‘विज्ञान’ शब्द में ‘इकप्रत्यय जुड़कर नया शब्द वैज्ञानिकबना है। इसी प्रकार इकप्रत्यय जोड़कर पाँच शब्द बनाइए।

उत्तर – भूत + इक = भौतिक

दिन + इक = दैनिक

परिवार + इक = पारिवारिक

सेना + इक = सैनिक

योग + इक = यौगिक  

5. निम्नलिखित वाक्यों के रेखांकित शब्दों को स्पष्ट कीजिए : (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया आदि)

(क) वे समुद्र की नीली आभा में घंटों खोए रहते।

उत्तर – क्रिया

(ख) इस संस्था का उद्देश्य था देश में वैज्ञानिक चेतना का विकास करना।

उत्तर – विशेषण

(ग) प्रतिभावान छात्र, सरकारी नौकरी की ओर आकर्षित होते थे।

उत्तर – संज्ञा, संज्ञा

(घ) हमारे आसपास ऐसी न जाने कितनी ही चीजें बिखरी पड़ी हैं।

उत्तर – सर्वनाम , क्रिया

6. सही विराम चिह्नों का प्रयोग कीजिए :

(क) वे अपना पूरा समय अध्ययन अध्यापन और शोध में बिताने लगे उत्तर – वे अपना पूरा समय अध्ययन, अध्यापन और शोध में बिताने लगे।

(ख) आखिर समुद्र का रंग नीला ही क्यों होता है

उत्तर – आखिर समुद्र का रंग नीला ही क्यों होता है?

(ग) बैंजनी के बाद क्रमशः नीले आसमानी हरे पीले नारंगी और लाल वर्ण का नंबर आता है

उत्तर – बैंजनी के बाद क्रमशः नीले, आसमानी, हरे, पीले, नारंगी और लाल वर्ण का नंबर आता है।

7. रिक्त स्थानों में सही परसर्ग भरिए :

(क) भारतीय संस्कृति से रामन् का हमेशा ही गहरा लगाव रहा।

(ख) रामन् वैज्ञानिक चेतना और दृष्टि के साक्षात् प्रतिमूर्त्ति थे।

(ग) रामन् की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी।

(क) नोबेल पुरस्कार पानेवाले भारतीयों के बारे में जानकारी हासिल कीजिए।

उत्तर – छात्र स्वयं करें।  

(ख) आइजक न्यूटन की उपलब्धि के बारे में पता लगाइए।

उत्तर – छात्र स्वयं करें।  

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