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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता ‘बादल राग’ का सम्पूर्ण अध्ययन

Baadal Raag By Sooryakant Tripathi Nirala,The Best Explanation

तिरती है समीर-सागर पर

अस्थिर सुख पर दुख की छाया –

जग के दग्ध हृदय पर

निर्दय विप्लव की प्लावित माया –

यह तेरी रण-तरी

भरी आकांक्षाओं से,

घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर

उर में पृथ्वी के, आशाओं से

नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,

ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!

फिर-फिर

बार-बार गर्जन

वर्षण है मूसलधार,

हृदय थाम लेता संसार,

सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।

अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,

क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,

गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा धीर।

हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार –

शस्य अपार,

हिल-हिल

खिल-खिल,

हाथ हिलाते,

तुझे बुलाते,

विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।

अट्टालिका नहीं है रे

आतंक-भवन

सदा पंक पर ही होता

जल-विप्लव-प्लावन,

क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से

सदा छलकता नीर,

रोग-शोक में भी हँसता है

शैशव का सुकुमार शरीर।

रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष

अंगना-अंग से लिपटे भी

आतंक अंक पर काँप रहे हैं।

धनी, वज्र-गर्जन से बादल!

त्रस्त – नयन मुख ढाँप रहे हैं।

जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,

तुझे बुलाता कृषक अधीर,

ऐ विप्लव के वीर!

चूस लिया है उसका सार,

हाड़-मात्र ही है आधार,

ऐ जीवन के पारावार!

बादल राग कविता अनामिका में छह खंडों में प्रकाशित है। यहाँ उसका छठा खंड लिया गया है।

कवि निराला को वर्षा ऋतु अधिक आकृष्ट करती है क्योंकि बादल के भीतर सृजन और ध्वंस दोनों की ताकत एक साथ समाहित है। बादल किसानों के लिए उल्लास एवं निर्माण का प्रतीक है तो मज़दूर के संदर्भ में क्रांति एवं बदलाव का अग्रदूत है। अमीरों और पूँजीपतियों के संदर्भ में यह विनाश का प्रतीक है क्योंकि वज्रपात से बड़े-बड़े अट्टालिका धराशायी हो जाते हैं।

बादल राग – क्रांति का संगीत

जल प्लावन – क्रान्ति

प्रफुल्ल जलज – खिला हुआ कमल अर्थात् शोषक वर्ग

वज्र हुंकार – भीषण हुंकार

बादल – क्रांतिकारी

अंकुर, छोटे पौधे, जलज, नन्हें शिशु – समाज का दबा कुचला, वंचित (सर्वहारा वर्ग)

अचल – समाज का ताकतवर वर्ग (पूँजीपति)

पंक – सामाजिक बुराई

विप्लव- क्रांति

सुप्त अंकुर – जिन्हें खिलने का अवसर नहीं मिला।

त्रस्त–नयन – आँखों की व्याकुलता

 

पंक्तियाँ 01

तिरती है समीर-सागर पर – तैरती, वायु, समुद्र

अस्थिर सुख पर दुख की छाया – क्षणिक, अस्थायी

जग के दग्ध हृदय पर – संसार, जला हुआ या  दुखी

निर्दय विप्लव की प्लावित माया – क्रूर या  कठोर, विनाश या बाढ़, डूबा हुआ, खेल

यह तेरी रण-तरी – युद्ध की नौका

भरी आकांक्षाओं से,  -कामना

घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर – बादल, युद्ध में बजने वाले नगाड़ों की आवाज़, सोया हुआ, बीज

उर में पृथ्वी के, आशाओं से – हृदय

नवजीवन की, ऊँचा कर सिर, – नया उत्साह

ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल! -एकटक देखना

फिर-फिर

शब्दार्थ :

तिरती – तैरती। समीर – वायु। सागर-समुद्र। अस्थिर-क्षणिक, अस्थायी। जग-संसार। दग्ध-जला हुआ, दुखी। निर्दय-क्रूर, कठोर। विप्लव – विनाश, बाढ़। प्लावित-डूबा हुआ, पानी से भरा हुआ। माया-खेल, क्रीड़ा। रण- तरी- युद्ध की नौका। आकांक्षा-कामना। घन – बादल। भेरी-गर्जन-युद्ध में बजने वाले नगाड़ों की आवाज़। सजग-जागरूक। सुप्त-सोया हुआ, जो फूटा न हो। अंकुर-बीच। उर- हृदय, दिल। नवजीवन-नया उत्साह। ताकना-अपेक्षा से एकटक देखना।

व्याख्या-

कवि कहता है-बादल वायु रूपी सागर पर मँडरा रहे हैं। वे इस प्रकार घुमड़-घुमड़ कर छाए हुए हैं जैसे अस्थायी सुखों पर अनंत दुखों की काली छाया मँडरा रही हो। वे संसार के दुख-दग्ध हृदय पर क्रूर विनाश का जल-भरा खेल रच रहे हैं। आशय यह है कि यह संसार शोषण और अभाव के दुखों से परिपूर्ण है। बादल क्रांतिदूत बनकर ऐसी दुख बन दुनिया को डुबा डालना चाहते हैं।

कवि बादल को वीर योद्धा की संज्ञा देता हुआ कहता है-ओ विनाशकारी बादलो! तुम्हारी रणनौका अर्थात् गरज-तरज और घुमड़न में क्रांति और विनाश ला देने की प्रबल आकांक्षा है। तुम्हारी गर्जन के नगाड़े सुनकर धरती की कोख में छिपे अंकुर नवजीवन मिलने की आशा से, धरती से फूटने की उमंग से सिर ऊँचा करके अधीरतापूर्वक तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। हे विनाश के बादल ! तुम्हारी क्रांतिकारी वर्षा से ही दबे हुए अंकुरों का उद्धार संभव है। इसलिए तुम बार-बार गरजो और बरसो। प्रतीकार्थ यह है कि ‘क्रांति’ से ही दलितों का उद्धार संभव है और सुविधाभोगी वर्ग का दमन संभव है।

 

सामान्य प्रश्न

1.’अस्थिर सुख पर दुख की छाया’ किसे कहा गया है और क्यों?

उत्तर – सुख अस्थिर होते हैं और उस सुख पर दुख के काले बादल मँडरा रहे हैं।

2.कवि ने ‘जग के दग्ध हृदय’ का प्रयोग किसके लिए किया है?

उत्तर – कवि ने शोषण से पीड़ित लोगों को ‘जग के दग्ध हृदय’ कहा है।

3.बादल ‘निर्दय विप्लव’ क्यों रचा रहे हैं?

उत्तर – बादल लोगों का निर्मम शोषण देखकर विप्लव रचा रहे हैं।

4.‘रण-तरी में आकांक्षाओं का भरा होना’ से क्या आशय है?

उत्तर – जिस तरह युद्ध नौका में युद्ध सामग्री भरी होती है उसकी तरह इस रण-तरी आम जनत की आकांक्षाएँ भरी हुई हैं।

5.घनी गर्जना का स्वर सुनकर सोए हुए अंकुरों पर क्या प्रतिक्रिया हुई?

उत्तर – बादलों की घनी गर्जना सुनकर धरती की कोख में सोए नए अंकुर अर्थात् शोषित वर्ग नवजीवन पाने की आशा और आकांक्षा से ऊँचा सिर किए हुए प्रसन्न होने लगे।

6.‘ऐ विप्लव के बादल!’ का क्या अर्थ है?

उत्तर – हे विनाश के बादल ! तुम बार-बार गरजो और बरसो क्योंकि ‘क्रांति’ से ही दलितों का उद्धार और सुविधाभोगी वर्ग का दमन संभव है।

पंक्तियाँ 02

बार-बार गर्जन गर्जन-गरजना।

वर्षण है मूसलधार, वर्षण – बारिश। तेज़ बारिश।

हृदय थाम लेता संसार, – भयभीत होना

सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार। -भयंकर, -वज्रपात के समान भीषण आवाज़।

अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर, – बिजली का गिरना, शाप ग्रस्त, विकसित, सैकड़ों

क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर, – घायल, मरा हुआ, अडिग

गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा धीर। -आकाश को छूने वाला, आगे बढ़ने की होड़ करने के लिए बेचैन।

हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार – हलके

शस्य अपार, -हरियाली, बहुत अधिक

हिल-हिल

खिल-खिल,

हाथ हिलाते,

तुझे बुलाते,

विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते। शोर, हलचल।

शब्दार्थ :

गर्जन-गरजना। वर्षण – बारिश। मूसलधार – मोटी-मोटी बारिश। हृदय थामना – भयभीत होना। घोर-भयंकर। वज्र-हुंकार-वज्रपात के समान भीषण आवाज़। अशनि-पात- बिजली का गिरना। शापित-शाप ग्रस्त। उन्नत – बड़ा, विशाल, विकसित। शत-शत- – सैकड़ों। क्षत-विक्षत – घायल, लहूलुहान। हत-मृत, मरा हुआ। अचल-पर्वत, अडिग। गगन-स्पर्शी-आकाश को छूने वाला। स्पर्द्धा-धीर-आगे बढ़ने की होड़ करने के लिए बेचैन। लघुभार- हलके। शस्य-हरियाली। अपार-बहुत अधिक। रव-शोर, हलचल।

व्याख्या –

हे बादल ! तेरे बार-बार गरजने तथा धारासार बरसने से सारा संसार भय के मारे अपना कलेजा थाम लेता है। तेरी भीषण गर्जन और घनघोर ध्वनि से सब लोग आतंकित हो जाते हैं। सभी को तेरी विनाशलीला में बह जाने का भय सताने लगता है। अर्थात् क्रांति का स्वर सुनकर संपूर्ण संसार के लोगों के हृदय काँप जाते हैं। बादलों के भयंकर वज्रपात से उन्नति के शिखर पर पहुँचे हुए सैकड़ों सैकड़ों वीर परास्त होकर भूमिसात हो जाते हैं। बादलों के भीषण तड़ित-पात से गगन को छूने की स्पर्धा में लगे हुए ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों के कठोर शरीर तक घायल होकर छलनी हो जाते हैं। जो जितने ऊँचे होते हैं, वे उतने ही अधिक घायल होते हैं। जबकि उसी बादल की विनाशलीला में छोटे से अस्तित्व वाले लघु पौधे हँसते हैं, मुसकराते हैं। वे उस विनाश से जीवन प्राप्त करते हैं। वे शस्य-श्यामल हो उठते हैं। इसलिए हे बादल ! वे छोटे-छोटे पौधे तो तुझे हिल-हिल कर, खिल-खिल कर, हाथ हिलाते हुए अनेक संकेतों से बुलाते हैं, तुझे निमंत्रण देते हैं। तुम्हारे आगमन से उन्हें नवजीवन मिलता है। विनाश के शोर से सदा लघुप्राण ही लाभ एवं शोभा पाते हैं।

सामान्य प्रश्न

1.बादलों की घनघोर वर्षा से संसार पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर – बादलों की घनघोर वर्षा को देखकर संसार के लोग डर के मारे अपना हृदय थाम लेते हैं।

2.‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ का क्या आशय है?

उत्तर – इसका आशय यह है कि वज्रपात के कारण अर्थात् क्रांति से सैकड़ों धनी लोगों के धन की हानि होती है। 

3.‘क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर’ का क्या आशय है?

उत्तर – इसका आशय यह है कि क्रांति से धनी और सम्पन्न लोगों को बहुत हानि होगी।

4.छोटे पौधे किसके प्रतीक हैं? वे क्यों हँसते हैं?

उत्तर – छोटे पौधे सामान्य शोषित जनों के प्रतीक हैं। क्रांति के कारण उन्हें लाभ पहुँचेगा इसलिए वे हँसते हैं है।

5.गगन-स्पर्शी स्पर्धा-धीर किन्हें कहा गया है और क्यों?

उत्तर – ‘गगन-स्पर्शी स्पर्धा-धीर’ ऐसे पूँजीपतियों को कहा गया है जो पहले ही धन-वैभव के कारण बहुत ऊँचे हैं। उनके भवन आकाश को छूने की होड़ कर रहे हैं। फिर भी उनमें आपसी होड़ा-होड़ी मची हुई है।

6.आशय स्पष्ट कीजिए – विप्लव – रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।

उत्तर – क्रांति से हमेशा छोटे लोग, सामान्य जन, किसान-मजदूर ही लाभ प्राप्त करते हैं। पूँजीपतियों का नाश होता है।

पंक्तियाँ 03

अट्टालिका नहीं है रे – महल

आतंक-भवन – भय का निवास

सदा पंक पर ही होता – कीचड़, बुराई

जल-विप्लव-प्लावन, – बाढ़

क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से – सामान्य जन

सदा छलकता नीर, – आँसू बहना

रोग-शोक में भी हँसता है –

शैशव का सुकुमार शरीर। – छोटा बच्चा

रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष – बंद, खजाना, क्रुद्ध, संतोष

अंगना-अंग से लिपटे भी – पत्नी,

आतंक अंक पर काँप रहे हैं। -गोद

धनी, वज्र-गर्जन से बादल!

त्रस्त – नयन मुख ढाँप रहे हैं। डरी हुई आँखें

शब्दार्थ :

अट्टालिका – महल। आतंक – भवन- भय का निवास। पंक – कीचड़। प्लावन – बाढ़। क्षुद्र-तुच्छ, लघु। प्रफुल्ल – प्रसन्न, खिला हुआ। जलज – कमल। नीर- जल। शोक-दुख। शैशव – बचपन। सुकुमार- कोमल। रुद्ध-रुका हुआ, बंद। कोष-खजाना। क्षुब्ध- क्रुद्ध। तोष-संतोष, शांति। अंगना – पत्नी। अंक-गोद। वज्र-गर्जन-वज्र के समान गर्जन। त्रस्त-भयभीत, डरा हुआ। नयन- आँख।

व्याख्या-

कवि कहता है कि ये ऊँचे-ऊँचे भवन वास्तव में ऊँचे अर्थात् महान नहीं हैं। ये तो भय और त्रास के निवास हैं। इनमें रहने वाले लोग सदा भयभीत रहते हैं। जल की विनाशलीला तो सदा पंक में बुराई पर ही होती है। वहीं बाढ़ और विनाश का दृश्य उपस्थित होता है। आशय यह है कि सदा निम्न वर्ग के लोग ही क्रांति घटित करते हैं। समृद्ध लोग तो भयत्रस्त ही रहते हैं। जल में खिले छोटे-छोटे फूलों से अर्थात् सामान्य जन की आँखों से सदा पानी-रूपी अश्रु बहा करते हैं। और उनके बच्चे इतने सहनशील, संघर्षशील और जुझारू होते हैं कि रोग-शोक में भी मुसकराते रहते हैं।

समृद्ध लोगों ने धन से परिपूर्ण अपने खजानों को अपने लिए सुरक्षित रखकर बंद किया हुआ है। उन्होंने औरों को उस धन से वंचित कर दिया है। इतना धन-ऐश्वर्य होने पर भी उनके मन में संतोष नहीं है। वे सदा आतंकित रहते हैं। अपनी सुंदर स्त्रियों के अंगों से लिपटे होने पर भी बादलों की भयंकर गर्जना सुनकर वे भय से काँप रहे हैं। वे बादलों की गर्जन-तर्जन सुनकर भय के मारे अपनी आँखें मींचे हुए हैं, मुँह छिपाये हुए हैं। आशय यह है कि क्रांति का नाम सुनते ही धनी लोग भयभीत हो उठते हैं।

सामान्य प्रश्न

1.आशय स्पष्ट कीजिए- अट्टालिका नहीं है रे आतंक – भवन।

उत्तर – बड़े-बड़े धनपतियों के ऊँचे-ऊँचे महल क्रांति का नाम सुनते ही आतंक से काँपने लगे हैं।

2.आशय स्पष्ट कीजिए- क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से सदा छलकता नीर।

उत्तर – इसका अर्थ आहुया कि समाज के छोटे और दबे-कुचले वर्ग हमेशा दुखी रहते हैं।

3.कौन लोग काँपकर आँख मूँदे पड़े हैं और क्यों?

उत्तर – मोटे-मोटे पूँजीपति अपने-अपने महलों में अपनी पत्नियों के अंगों से लिपटे हुए भी काँप रहे हैं क्योंकि उन्हें उनके धन के लुट जाने का दर साता रहा है।

 

पंक्तियाँ 04

जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर, – कमज़ोर,  भुजा, दुर्बल

तुझे बुलाता कृषक अधीर, – किसान, व्याकुल

ऐ विप्लव के वीर! – विनाश

चूस लिया है उसका सार, –प्राण

हाड़-मात्र ही है आधार, हड्डियों का ढाँचा

ऐ जीवन के पारावार! -समुद्र

शब्दार्थ :

जीर्ण–जर्जर, पुराना, फटा हुआ। बाहु–भुजा। शीर्ण-कमज़ोर, दुर्बल। कृषक- किसान। अधीर-व्याकुल। विप्लव–विनाश। सार–प्राण। हाड़-मात्र- हड्डियों का ढाँचा। पारावार-समुद्र।

व्याख्या-

कवि बादलों को संबोधित करके कहता है-हे विनाश रचाने में प्रवीण बादल ! देखो, तुम्हें जीर्ण-जर्जर भुजाओं वाला, दुर्बल-हीन शरीर वाला किसान अधीर होकर बुला रहा है। उसने अपनी भुजाओं का सारा बल जिस समृद्धि को उत्पन्न करने में गँवा दिया, उस समृद्धि ने उसके शरीर का सारा रस ही मानो चूस लिया है। इस धनिक वर्ग ने ही किसान का शोषण करके उसकी ऐसी बुरी दशा बनाई है। अब तो उस किसान के शरीर में मात्र हड्डियों का पंजर ही शेष रह गया है। उसका रक्त-माँस शोषण-व्यवस्था ने चूस लिया है। ऐसी अवस्था में हे जीवन-दाता, जल के सागर, बादल ! तुम्हीं बरसकर उस पर कृपा करो। तुम्हीं ऐसी क्रांति घटित करो, जिससे वह शोषण मुक्त हो सके तथा उसकी सूखी हड्डियों में पुनः रक्त-माँस आ सके।

सामान्य प्रश्न

1.कवि ‘विप्लव के वीर’ किसे कहता है और क्यों?

उत्तर – कवि बादलों को ‘विप्लव के वीर’ कहता है क्योंकि ये क्रांति करते हैं।

2.कवि ने ‘कृषक अधीर’ शब्द का प्रयोग क्यों किया है?

उत्तर – बेबस और लाचार किसान अधीर है क्योंकि वह बादलों के क्रांति से अपने अच्छे दिनों की उम्मीद लगाए हुए हैं।

3.’जीवन के पारावार’ किसे कहा गया है?

उत्तर – क्रांति रूपी बादल को जीवन का पारावार कहा गया है।

4.किसानों को किसका सहारा शेष है?

उत्तर – किसानों के लिए बदलों की क्रांति का सहारा ही शेष है।

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